Thursday 3 June 2021

छत्तीसगढ़ी साहित्य म गद्य साहित्य* : एक विमर्श

 *छत्तीसगढ़ी साहित्य म गद्य साहित्य* : एक विमर्श


        जब कभू साहित्य के गोठबात करे जाथे त गद्य अउ पद्य साहित्य के अलग-अलग गोठबात होथे। एकर सबले बड़े कारण तो इही समझ म आथे कि जम्मो लिखइया मन गद्य अउ पद्य दूनो विधा ल नइ अपनाय। कोनो ल गद्य लिखे म मजा आथे त कोनो ल पद्य लिखे म। कुछ मन अइसे रहिन अउ हावयँ, जिंकर कलम दूनो म बरोबर चलत रहिन अउ चलत हे। साहित्य तो साधना आय। ए अइसे साधना आय जेला दू चार दिन म साधे नइ जा सकय। सरलग अभ्यास अउ उदीम ले लेखन ह मँजाथे। जे जतके जादा पढ़थे अउ चिंतन करथे, बिचार करथे ओ ओतके बने बने लिख पाथे। मोर नजर म साहित्य ल लेके इही पढ़ई अउ चिंतन हर साहित्य साधना आय।

         छत्तीसगढ़ी म गद्य साहित्य के दशा (हाल) अउ दिशा (डगर) जाने बर मोर बिचार म शोध करे के जरूरत हावय। छत्तीसगढ़ी म साहित्य के लिखित सरूप तो छत्तीसगढ़ के राज बने ले जादा देखे सुने ल मिलथे। पहिली मुअँखरा चलत रेहे हे। लिखे लिखाय साहित्य डायरी अउ कापी पन्ना मन म सिमटाय रेहे हे। कतको मन अपन एक बित्ता के पेट ले नइ उबरे सकिन त कतको दूर दराज के गाँव म जिनगी जियत नइ सोच सकिन कि किताब के रूप म छपवा लन। मनखे जनम ले कला अउ सँस्कृति परेमी होथे। अपन परम्परा ल सहेजे के उदीम करत लोक कला म समर्पित रहिथे। गद्य साहित्य के नाटक अउ कहानी पहिली के दू ठन विधा रहे हे जे जनमानस म नाचा गम्मत के रूप म जिंदा रहिन। छत्तीसगढ़ पढ़ई-लिखई(शिक्षा) के मामला म पिछवाय रहिस। जेकर फरक इहाँ के साहित्य म घलव परिस। एक समे रहिस जब छत्तीसगढ़ी के नाँव  म छत्तीसगढ़िया मन घलव लाज मरय। मनखे छत्तीसगढ़ी बोलयँ जरूर, फेर चिट्ठी-पतरी अउ अरजी लिखई हिंदी म होवय। अभियो हाल उहीच हवय, फेर छत्तीसगढ़ी के नाँव ले लाज शरम थोकिन कमतियाय हे। छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के सपना देखइया मन खूब मिहनत करिन। जेकर ले सबके लाज छूट गे, आज हमन पुरखा मन के बोय फसल ल लुवत हन। फेर ए फसल ल खातू पानी ले सजोर करे के पारी हमरे हावय।

         छत्तीसगढ़ी म गद्य साहित्य दउड़े लग गेहे। जरूरत हे सब लिखइया मन के चिन्हारी कर इँकर रफ्तार अउ ऊर्जा ल सकेले के। आज ए रफ्तार सोशल मीडिया म खूब फर्राटा मारत हे। अँगठा अउ अँगरी मोबाइल कोचकत थके नइ। नवा-नेवरिया होय चाहे ख्याति पा चुके कोनो अउ बुधियार लेखक जम्मो झन अपन रचना उत्ताधुर्रा डाले के बूता करथें। कुछ झन अइसे घलव हें जेमन नवा जुन्ना सबो के लिखना ल कलेचुप पढ़थें। सोशल मीडिया ले गद्य साहित्य म होवत उदीम के जानबा मिलथे तो, फेर किताब के मुँहरन म नइ आ पाना छत्तीसगढ़ी साहित्य बर संसो के बात आय। छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के किताब नइ छपे के का  कारण हे? एकर चर्चा अभी जरूरी नइ हे। सोशल मीडिया म मिले लाइक मन ले फूल के कुप्पा होना। आज के पीढ़ी ल भटकात हे।सोशल मीडिया के रचना चरदिनिया होथे, काबर कि मोबाइल हैंग होय के डर म रचना तुरते मिट परथे। अइसन म कभू कभू सोशल मीडिया म लेखन अबिरथा घलव जनाथे। ...फेर किताब रूप म आय के पहिली मंच दे बर इहीच ह वरदान बने हे।

          छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के विकास ल सहेज के उदीम करे बिना छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य ल पहिचान अउ मान दूनो नइ मिलय। पहिली च कहे हँव कि छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य बर शोध के जरूरत हे। गद्य साहित्य लिखइया मन के तब कमी नइ रहिस अउ न अभियो हे। गँवई-गाँव के गोड़ा-गोड़ा म लुकाय सबो गद्य रचनाकार के सुध ले के जरूरत हे। पुरखा मन के लिखे साहित्य ल छपवाय के उदीम अउ उपाय सोचे ल परही। कतको पुरखा मन के पांडुलिपि उपलब्ध हो सकत हे, जउन ल उँकर औलाद मन हम ल काय मिलही कहिके नइ छपवाय। ए पांडुलिपि मन साहित्य के अनमोल धरोहर आय। छत्तीसगढ़ी के बढ़ोत्तरी बर बीड़ा उठाय सरकारी अउ सरकारी अनुदान ले संचालित सँस्था ल ए दिशा म बिचार करना चाही। अइसन करे ले छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य म जम्मो विधा के साहित्य मिल पाही। राजभाषा आयोग नवा पीढ़ी के संगेसंग पुरखा मन के साहित्य छापे बर योजना बनाही, त इहाँ-उहाँ बगरे पुरखौती साहित्य घलव आ सकत हे। बेटा-बहू के आश्रित सियान साहित्यकार मन घलव एकर फायदा उठा सकही। 

        भाषा समे के धार म बोहावत निसदिन नवा शृंगार करथे। कतको शब्द नँदाथे त कतको नवा शब्द जुड़थे। अपन भाषा के शब्द के रहिते आने भाषा के शब्द ल बउरे ले अपन भाषा के सँग अनियाव होथे। अइसन करे म भाषा के शब्द भंडार(कोठी) खिरावत जाही। जउन बने बात नोहय। साहित्य भाषा के संरक्षण करथे। कहे के मतलब जेन भाषा म साहित्य नइ लिखे जाही, वो भाषा जल्दी खतम हो सकथे। 

         छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य म कहानी, निबंध, व्यंग्य, लघुकथा, संस्मरण, जीवनी जइसन विधा म लेखन सोशल मीडिया म पढ़े ल मिलत हे। जे हर गद्य साहित्य बर बढ़िया संदेश आय। कुछ समाचार पेपर मन ए मन ल प्रकाशित कर अपन योगदान देवत हवै। रेडियो घलव लोककथा, नाटक अउ कहिनी वार्ता मन के प्रसारण कर छत्तीसगढ़ी के बढ़ोत्तरी म अपन भूमिका देवत हे। अउ गद्य साहित्य ल प्रोत्साहित घलव करत हे।

        बिना शोध के दू-चार झन  रचनाकार मन के नाँव लिखई, अनचिन्हार साहित्य साधना करइया मन ल कमती आँकना हो जही। उँकर सँग अनियाव होही। ए बात ल धियान रखत गद्य साहित्य के कोनो विधा म पहिचान बना चुके रचनाकार मन के चर्चा नइ करे हँव। मोर पहिली धियान इही रहिस कि गद्य साहित्य अपन कोठी कइसे भरही एकर संसो करन। मोर मानना हे ए संसो साहित्यकार मन ल ही करना हे। दूसर मन संसो करके अपन लहू काबर अउँटाही? एकरे सेती मोर अज्ञानी मति कहिथे कि रचनाकार मन सोशल मीडिया ले जुड़के साहित्य लेखन करत रहयँ। एक दूसर के लेखन म सुधार करत किताब छापे के उदीम घलव करयँ।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार छग.

3 comments:

  1. सुग्घर आलेख जायसवाल जी

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  2. बहुत सुग्घर सर जी

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  3. आप दूनो के आभार

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