Friday 4 June 2021

छत्तीसगढ़ म गद्य साहित्य*

 *छत्तीसगढ़ म गद्य साहित्य* 

 *भाग-1* 


छत्तीसगढ़ी बोली भाषा - क्षेत्र के दक्षिण पुर्वी विस्तार ल सम्हाले हे| अखड़ रूप म ए क्षेत्र विशेष के भाखा द्रविण -भाषा परिवार के आदीभाषा रूप गोंडी उरांव, तेलंगी,दोरलीऔर आग्नेय भाषा परिवार के आदी भाषा रूप कोरकू खड़िया खेरवारीमन उपमक्षेत्र म समाहित हे|छत्तीसगढ़ी अपन चारो कोति ले अन्य भाषा ले घेराय हे| एकर कारण हे छत्तीसगढ़ भौगोलिक परिक्षेत्र के बनावट|पुर्व म उडड़िया के प्रभाव हे ,पश्चिम म मराठी के,उत्तर पश्चिम म बुंदेली  बघेली हिन्दी के,और दक्षिण भाग म तेलुगू के|

 समे - समे म छत्तीसगढ़ के राज पाठ, संस्कृति, सम्पदा म  होय आक्रमण के सति भाषा साहित्य के उपर घलो अतिक्रमण होइस| लगातार उत्तर -पश्चम आवज्रन, और स्थापन्य ले परिवर्तन और परसंकृतिकरण होय हे|

   देश विदेश के बुधियार और गुणमानी शोधकर्ता भाषा- वैज्ञानिक,साहित्यिक विचारक और भाषाविद ,दार्शनिक मनिषी मन छत्तीसगढ़ी ल स्थानीय रूप म उत्पन्न जन भाखा माने हें| लोकक्रिया के भाखा माने हें|जउन हर हिन्दी के अर्ध मागधी (मगही- हिन्दी) ले मेलखाथे| पर हर क्षेत्र म एकर स्वतंत्र अस्तित्व हे| काबर कि ए बोली-भाखा हर छत्तीसगढ के घरोघर, गली- गली ,गाँव -गाँव खेत - खार के संगेसंग लोक संस्कार, लोक जीवन और लोकशैली के रूप म तनमन रचेबसे हे, अंतरमन म समाये हे ,हिरदे - आत्मा म पोहे हे|| छत्तीसगढ़ी भाषा के व्यापार छत्तीसगढ़िया मनके लोकदर्शन हरे |छत्तीसगढ़ी बोली ल अलग कर दे जावय तव छत्तीसगढ़िया निष्प्राण हो जही बिन जल मछली कस| ए प्रयास भी करे गइस पर लोगन के आत्मा ले छत्तीसगढ़ी ल  निकार नइ पाइन|

       *छत्तीसगढ़ी भाषा विकास के अध्ययन करवइया मन के विचार जानना भी जरुरी हे फेर छत्तीसगढ़ी  साहित्य के होम हवन भी सुंघना हे|* 

 *भाषा के पहिली पहल शोध ग्रियर्शनहर करीन|ए ग्रामर आफ छत्तीसगढ़ी डायल्क्ट1890 .ए हर छत्तीसगढ़िया लेखक हीरालाल काव्योपाध्य के  छत्तीसगढ़ी बोली व्याकरण के अनुवाद लेखन मात्र आए|** 

 उंकर शोध ग्रंथ के कुछ अंश सरलग *लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इंडिया नाम ले के 1904 प्रकाशित होइस|** 

एमा छत्तीसगढ़ी ल  हिन्दी के ही भाग माने गए हे | कारण एक समान लिपि ल माने गइस|ए कहाँ तक नियाव संगत हे अभो महाशोध और सूक्ष्म खोज के विषय हे| परवर्ती शोधार्थी मन इही ल आधार मानत चले गँय |

जेमन हे, ए ग्रामर आॕफ छत्तीस गढ़ी डायलक्ट आॕफ हिन्दी- लोचन प्रसाद पाण्डेय जी भालचंदर राव तैलंग जी - *छत्तीसगढ़ी हलबी भतरी बोलीयों के वैज्ञानिक अध्ययन , *  डाॕ शंकर शेष  छत्तीसगढ़ी भाषाशास्त्री अध्ययन , कांति कुमार जी के छत्तीस गढ़ी व्याकरण और कोश| इही क्रम म कतकोन नाम हें-भाषाविद  साधना जैन जी, डाॕ . चितरंजनकर सर,रमेशचंद्र महरोत्रा जी हवें | *फेर शोध के दिशा बदलिन कवि समीक्षक ,कथाकार,गीतकार उपन्यासकार, सिद्धपुरुषहर डाॕ नरेन्द्र देव वर्मा जी हर|1979  म छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास -डाॕ. नरेन्द्रदेव वर्मा के खोज खरोय और छत्तीसगढ़िया विचार ले तपे विश्लेषणा अऊ दृष्टांत ले समृद्ध ग्रंथ हर पूर्व के शोध म नवा अंजोर बगराइन|* साथ ही इकर महत्वपूर्ण उपन्यास सुबह की तलाश नेह के ईंट बरोबर हे|मोला गुरु बनाइलेते-नाटक और 

ढोलामारू रूपक हर काफी लोकप्रिय होइस| *अपुर्वा - छत्तीसगढ़ी गीत* संग्रह हे जेखर गीत *अरपा पैरी के धार अब छत्तीसगढ़िया मनके राजगीत हवे* | आप मन के शोध के प्रभाव होइस कि 1981 के जनगणना म आपके शोधे भाषा ल शामील करे गइस|

  *एक और महत्व पुर्ण नाम शामील करे के आवश्यकता होवत हे| जउन हें कवि, समीक्षक ,पत्रकार ,संपादक-डाॕ विनय कुमार पाठक जी जिन्कर कृति छत्तीसगढ़ी साहित्य अऊ साहित्यकार, सिद्ध शोध ग्रंथ गद्य क्षेत्र बर मील के पथरा हे|* 

मूल बात ए हरे कि पटाक्षेप नइ कर के मौलिक अऊ यथार्थ चिंतन होवय| एकर सबो पक्षधर हवँय फेर थोकन इतिहास ल झाँके म आत्म ज्ञान सँचर थे  | अइसन सोंच हर विकास अनुगामी बताय गय हे| 

पुरखा मन के दिखाय रस्ता ल थाम्हे चलना, उनकर  सम्मान आए| छत्तीसगढ़ी गद्य इतिहास के पुरोधा साहित्यकार और जूनेटहा कलमकार के सुरता जरुरी हे|ए सबो खम्हीया  मन बर एक आदरांजली होही कि जऊन  *धरसा* उन बनाय हें वो मंजिल तक पहुचाही| एक बखत मुखिया के रेंगे,भले फुदकी परे चिन्हा हे,चले म सहुलियत होथे| नरवा झोरकी के पानी हर सरकत थोकन बड़े नँदिया अउ बड़े नँदिया के हर महानंद म समा जथे, फेर ए महानंद हर सागर म मिल जथे| तव नरवा झोरकी हर भी तो संसाधन देथे| उही किसम कलम के धार कखरो अउ  कउनो के सरसरा सकथे| पोठ हो सकत हे|  जंगल के पँयडगरी म गोल्लर पाछू नान्हे नान्हे बछरु मन तको रेंगत एक दिन बुधियार गोल्लर बनथें|अउ गौठान म  उकर भी आरती उतरे लगथे|

      हँस हर अपन पिलवा ल जब उड़े ल खीखोथे तव कइसे सीखोथे| काफी ऊँचाई  तक अपन पीठ म लाद के ढोथे| फेर कई जोजन उपर ले जा के पीठ ल उदका के छोड़ देथे| और नीचे आके फेर पीठ म बैठाके ऊपर ले जथे| ए उदिम हँस हर तब तक करथे जब तक पिलवा हँस अपन पाखीं खोल के उड़े ल नइ सीख जावय| 

 

इही हर एक परंपरा आए| फेर कोनो  साहित्य समाज के आधार तो मुड़का ही आए| धारन के नइ रहे ले पटिया का मा टिकही ? फेर छानही के बनगत कइसे होही|

पोठ धारन खड़े ले साहित्य समाज तको वोतके मजबूत होही|

              जब पाँच हजार साल पीछू के इतिहास हमन ल अतेक आनंदित करथे| तव हजार साल पहिली के हर वोतेक ऊबाय भी नइ|

जून्ना पेड़ ले ही नवा नवा फूल फर आथे| नवा फर ल फेर धरती म गड़े ल परथे तव अंकुरन होथे| और एक दिन सिरज के झलार करथे| वइसनहे  कोनो भी भाखा के साहित्य होय साधक अउ माध्यम दूनो के आधार मुड़का साहित्यिक व्यक्तित्व मन आँए|

           जिन्करे पुन परतापे कुछ नवा करन,उँखर कागज -पोथी - पतरी ले संस्कार अउ संस्मरण लेवत अपन मती ल सजोर कर सकत हवन| कुछ हजार साल पहिली छत्तीसगढ़ी भाखा हर मनखे के विचार अभिव्यक्ति के माध्यम बनीस|

      तव  आधुनिक शोध  आलेख करवइया मन छत्तीसगढ़ी बोली के जनम १००० ई सन के आस पास मानथें| भाषा साहित्य के बात करन तव मौखिक वाचिक परंपरा के कहिनी कहावत ,हाना , लोकोक्ती ,जनऊला , मन लोकसाहित्य के बिछौना आए|

धिरे ले साहित्य ल राज घराना संरक्षण मिलिस और हैहयवंशी- कलचुरी काल म राजधानी रतन पुर म छत्तीसगढ़ी बोली ल आश्रय मिलेलगीस|

क्रमशः..........

अश्वनी कोसरे कवर्धा कबीरधाम



*छत्तीसगढ़ी भाषा के गद्य साहित्य* 

 *भाग- 2*


हमर छत्तीस गढ़ महतारी हर नैसर्गिक सौंदर्य ,अद्भूत रोमांचकारी और रमणीय प्राकृतिक भू-भाग ले सुसज्जित हे| महतारी के कोरा म अन्न -धन के भण्डार हवय|अकूत और विपुल संपदा के समृद्ध,धनी भुइँया म कोनो रतन के कमती नइ होय हे|

जैसे किसम किसम के रतन पदारथ ल समेटे हे वइसन हे किसम किसम के फसल सियारी के जननी हे | ए भुइँया तो सरग बरोबर हे| समृद्ध महतारी  भुइँया हर आदीम परंपरा,संस्कृति अऊ संस्कार ले तको परिपुर्ण हे| खनिज संपदा , वन संपदा और जल संपदा के संग भोला - भाला ,सरल -सहज ,सदगुणी मनखे संपदा ल घलो सम्हारे हे|

तव उँखर ए तपसी , करमइता और सेवक बेटवा मन अपन महतारी के गुणगान , गाथागान  सेवाबजावत जसगान घलो करे हवँय  | अऊ सदा होवत रइही ए परम्परा बने रइही|जब ए सब संपूरण सबो जिनीस मिले हवे तव भागमानी बेटा- बेटी मन महतारी के अस्तित्व ल बनाय राखे और बढ़ाय खातिर अपन बोली भाखा म साहित्य जतन घलो करे हवँय|

ए बात अलग हे के छत्तीसगढ़ म पद्य साहित्य तो भर पुर मिलथे| और एकर भण्डार भरे हवय सरलग पोठ होवत हे.छत्तीसगढ़ी गद्य लेखन के तुलना में छत्तीसगढ़ी पद्य लेखन पारंम्परिक रूप ले अधिक शसक्त प्राचीन और विकसित हे|

 *पर गद्य साहित्य के कोठी थोरकन उन्ना हे!* 

  *समय और आवश्यकतानुसार सिरजन जरुरी हे| ताजा समय हर छत्तीसगढ़ी गद्य परंपरा और प्रवृत्ति ल बहुआयामी स्वरूप प्रदान करे के दिशा म प्रयासरत* हे| 

            *दंतेवाड़ा शिलालेख 1703ई.,कलचुरी शिला लेख1724ई. अऊ ,अंतिम कल्चुरी शासक के राजा अमर सिंह के आरंग शिलालेख ल छत्तीसगढ़ी गद्य के उन्मेष माने जाथे| कई शिला लेख और प्रसस्ति लेख मन के अध्ययन होना बाँचे हे जेमन  छत्तीसगढ़ी गद्य के और प्राचीनता ल सिद्ध* कर सकत हें|

 पाली ,तुम्माण, भोरमदेव , खल्लारी  के प्रसस्ति आलेख जोगीमरा गुफा कबरा पहाड़ , सिंघन गढ़ के चित्र आलेख अभी अपन प्रकाश म नइ आए हें|

राजकीय संरक्षण म रतनपुर के प्रसस्ती लेखन बाबू रेवाराम पंडित द्वारा छत्तीसगढ़ी गद्य लेखन  (द्वार प्रस्सस्ती  मुखभाग  ) होय के जान कारी खूबतमाशा नामक ग्रंथ म उल्लिखित हे| ज उन हर ततकालीन समर के भाखा के जानकारी देथे| खैरागढ़ गद्यात्मक शैली के प्रसस्ती लेखन के जानकारी भी उपलब्ध हे ए हर दलम सिंह राव द्वारा करवाय गय रहीस|

     अइसे ही लोक परंपरा , संसकृति ले मेल करथ  गद्यात्मक साहित्य हर स्थापित होवत हे|

 *कहानी,निबंध , लोकगाथा , जीवनी, लघुकहिनीया लघुकथा  नाटक ,उपन्यास ,एकांकी, रिपोतार्ज, यात्रा विवरण, पर्यटन आलेख, समीक्षा साहित्य , शोधपत्रसंपादन प्रकाशन , आलोचनात्मक साहित्य और टिप्पणी आलेख , डायरी लेखन  हाईकू और क्षणिका मन के सुरुआत होइस |* छत्तीसगढ़िया पाठक मन भी पोठ साहित्य ल हाथों हाथ लेथे| और अच्छा रचनाकार ल अपन नयन नक्श म बइठा के रखथें| कुछ नामी साहित्यकार मन के अमर कृतित्व के चर्चा करन तव नाम आथे कहानीकार पं बंशीधर पाण्डेय जी के जिन्कर एक ही कृति  *हीरू के कहनी* हर शीर्ष ख्याति दिलादिस ,साहित्य शिखर म स्थापित होगें||

आपमन के कुल तीन ही रचना उपलब्ध हे. एक हिन्दी और एक उड़िया म हे|

अइसे अनुकरणीय उदाहरण हें| आज खातू कचरा असन साहित्य के बाढ़ आगे हे | हमन ल ठोस व पोठ साहित्य चाही जऊन अवइया पीढ़ी ल निसेनी दे सकय|

गंभीर मूल्यांकन , चुस्त संपादन और वृहत समीक्षा होय विधा के सबो पक्ष उजागर होय| 

अइसन उदाहरण हें *पंडित लोचन प्रसाद पांडेय कृत नाटक "कलिकाल",शिवशंकर शुक्ल के  उपन्यास" दियना के अंजोर* , मोंगरा, रधिया श्री *नंदकिशोर तिवारी कृत एकांकी "परेमा"* |

डाॕ खूबचंद बघेल रचित नाटक " करम छड़हा"|केयुर भूषण कृत फुटहा करम |लखन लाल गुप्त के *सरग ले डोला आइस* कुछ  परमुख निबंधकार मन के निबंध 

लखन लाल गुप्त के *सोनपान* 

धान के आत्म कथा और छत्तीसगढ़ के आत्म कथा के सुघ्घर उदाहरण हे कपिलनाथ कश्यप कृत *निसेनी* पं श्याम लाल चतुर्वेदी कृत " *भोलवा भोला राम बनीस* 

श्री परदेशी राम वर्मा जी द्वारा रचित *मय बइला नोहव "* नाटक हे|

डाॕ राजेंद्र सोनी जी के " *खोरबहरा तोला गाँधी बनाबो"*कहिनी, डाॕ पालेश्वर शर्मा जी के *सुसक झन कुर्री सुरताले*  स्व. लक्षमण मस्तुरिहा जी,विनय कुमार पाठक  रचित कहानी छत्तीसगढ़ी लोक कथा|  बहुत से विदूषी  साहित्यकार मन के भी स्थान हवय छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य म निरूपमा शर्मा- बुंदों का सार , पतरेंगी, सकुनतला तरार - बन कइना, सरला शर्मा आखर के अरघ| दीदी सुधावर्मा जी समालोचक ,समीक्षक ,संपादक मड़ई देश बंधु| आदरणीया दीदी वासंती वर्मा जी|

       जून्ना कतकोन कलम कार भी हवँय जिन्खर साहित्य जगत म योगदान कभू भुलाय नइ जा सकय | एमन हे , छत्तीसगढ़िया पुरोधा कवि लेखक सव्तंत्रता सेनानी ,संपादक पं सुंदर लाल शर्मा जी, ठाकुर हरि सिंह , पदुम लाल पुन्नालाल बक्क्षी जी , गजानन माधव मुक्तिबोध ,नारारण लाल परमार जी,  टिकेन्द्र टिकरिहा, डाॕ राजेंदर सोनी जी, श्री राम कुमार वर्मा जी, सुकलाल पांडे जी, कपिल नाथ जी - *खुसरा चिरई के बिहाव* ,ऊर्मिला शुक्ल जी ,जय प्रकाश मानस - कला दास के कलाकारी,जीवन यदु,सीताराम साहू, राम लाल निषाद , रामेश्वर शर्मा, पाठक परदेशी राम  डा जे आर सोनी जी,डाॕ विनोद लर्मा जी,  एमनदास मानिक पुरी जी, दादूलाल जोशी जी, डुमन लाल ध्रुव डाॕ अनिल भतपहरी जी, डाॕ सुरेश तिवारी जी,डाॕ पी सी लाल यादव जी ,रामप्रसाद कोसरिया जी ,डाॕ पी डी सोनकर जी,प्रदीप कुमार दास, परमेश्वर वैष्णव, रमेश विश्वहार ,आदरणीय श्री सुधीर शर्मा जी , श्री सुशील भोले जी श्री रामनाथ साहू जी,  श्री चोवा राम बादल जी, श्री बलदाऊ राम साहू जी ,श्री रमेश शर्मा जी, डाॕ साकिर अली जी, श्री निरज मंजीत जी, श्री अजय चंद्रवंशी जी और झेंझरी लिखव इया डाक्टर गोरेलाल चंदेल जी

अइसन बहुत से गुनीमानी प्रगतिशील लेखक मन गद्य साहित्य साधना म रत हें और र इहीं|और गद्य साहित्य भी अब छत्तीसगढ़ मा भरमार  उपलब्ध हे|

*छत्तीस गढ़ी उपन्यास भूलनकाँदा उपर आधारित* फिल्म हर फिल्म जगत में राष्ट्रीय खिताब जीते हे|  

आज छत्तीसगढ़ी साहित्य के पोठ धरातल (पृष्ठभूमि )और कथावस्तु,कथानक , हर राष्ट्रीय रंगमंच के माध्यम ले अऊ छत्तीसगढ़ी सिनेमा के राष्ट्रीय पटल म प्रदर्शन हर छत्तीसगढ़ी साहित्य के मजबूत उपस्थिति, उपादेयता ल अनुप्रमाणीत करत हे| जनमानस ल जागृत करत हे 

ए सिरिफ मनोरंजन के साधन मात्र नइ होके जिनगी जिए के प्रेरणा घलो देवत हे|

      व्यक्तिगत साहित्यकार हर अपन कृति ल सुरक्षित रखे के भरपुर प्रयास करथे ल|

वो अर्जित ज्ञानतत्व ल बाँटथे भी लेकिन जिम्मेदार व ईमानदार उत्राधिकारी नइ मिल पावय |

आज छत्तीसगढ़ी गद्य के सबो विधा के साहित्य प्रचुर मात्रा म उपलब्ध हे| वोला सहेजे और सरेखे के महती आवश्यकता हे|

एकर संधान करे के जरुरत हे|

अब तक के ए सबो विधा म होय परमुख अमर कृति मन ल व उंकर पाडूलिपि ल संरक्षित करे ल परही|और कृतिकार मन ल यथोचित सनमान देना होही|संकलन ,संग्रह और नवा तकनिकी जतन ले वेभ फार्म म ,वेभ पाकेट के रुप म,  ई - लाइब्रेरी और ई -सुरक्षा कवच म पिरोय के दायित्व सक्षम हाथ ल करना होही| 

           एकर जवाबदेही तय होय जउन उचित संस्था के निगरानी व निरीक्षण म होय|

व्वसायिक और रोजगारपरक होय ले भाषा साहित्य हर जल्दी विकसित होथे| तेपाय के छत्तीसगढ़ी भाषा के जानकार मन ल प्राथमिकता देवँय | शालेय और उच्च शिक्षा के विद्यर्थी मन के बीच म छत्तीसगढ़ी भाषा म सम-सामयिकविषय म निबंध नाटक लेखन , प्रतियोगिता होय |उकर पाठय क्रम म एक विशेष विषय के प्राथमिकता क्रम म शामील  राहय| विविध विधा ल अइसे.ही जनसमूह समाज के बीच बगरावँय| समाचार पत्र- पत्रिकामन म छत्तीसगढ़ी आलेख कहिनी नाटक मन ल व , साहित्यकार मन के विचार ल प्रमुखता ले छापँय |  विशेष कालम के संगेसंग  आने पन्ना म हरदिन स्थान मिलय|सबो सरकारी अर्धसरकारी, सहकारी और निजि संस्थान म घलो छत्तीसगढ़ी ल प्रोत्साहन देवँय| बिजहा और माई कोठी नंदा गय सोरपतॎ न इ चलत हे| आयोग अऊ  भाषा विभाग मन तको बने सुसतियावत हें|

अइसे म कयइसे साहित्य हर समाज के दरपन बन सकही|

घर के न घाट के होगें|

 सरकारी प्रयास होथे फेर खानापूर्ती ले छत्तीसगढ़ी गद्य  साहित्य के छत्तीस हाल होगे हे  आज भी अपन बढ़वार  के रसता जोहत हे| 

          *एमा हर स्तर के इकाई के जिम्मेदारी हे मजबूत मानसिकता के संग प्रकाशक और संपादक ल तको गंभीर और कर्तव्य निष्ठ होय के जरुरत हेवे के इन सही साहित्य के संपादन और प्रकाशन करँय |* 

                 *अगर साहित्य सामग्री समाजोपयोगी , ज्ञानवर्धी या साहित्यिक विधा म नइ हे तव श्रम और संसाधन के संग समय और ऊर्जा के अखारत व्यय आए| एमा जागरुक बुधियार साहित्यकार और पाठक  मन के तको जिम्मेदारी हे के वो मन आमा ल आमा और अमली ल  अमली लिखँय और पढ़ँय , कहि सकँय| |* 


अश्वनी कोसरे कवर्धा कबीरधाम

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