Friday 4 June 2021

जगवारीन-शोभामोहन श्रीवास्तव

      जगवारीन-शोभामोहन श्रीवास्तव


ब्रह्मा छट्ठी के रात जेन लिख देथे तेन अटल होथे, ये जिनगी के भँउरी मा सुख के सेवाद हर ओतका नहीं जनाय जतका दुख के हर जियानथे। मोरे कस कतको झन अपन अपन पीरा मा कल्हरत होहीं, मही अकेल्ला नहीं भोगत हौं कहि के सुंदरिया हर अपन मन ला धिरोवत भुँइया मा उतान परे मियार मुड़का मन ला टकटकी लगाय निहारत तात तात आँसू ला ढ़रकावत हे। सास ननंद अउ देवर के तपनी भुँजनी मा हरिनबहेरा होय जीव हर फेर कोनजनी कोन मेर लटके रहै । पानी पानी कहिके रेरियावत झाँवा खागे फेर न तो बपरी के कोनो किरवार करइया ना सरेखइया । अब्बड़ बेर पाछू  झम्म झम्म करत आँखी ला उघारथे अउ पूरा सक सकेल के घिसलत कपाट मेर आके भितिया ला थेभत ठाढ़ होथे अउ पूरा जोर लगा के बचाव बचाव कहिके हाँक पारथे, ओकर कपिला गोहार ला कोनो तो कान टेंड़के सुनथे अउ कोनो तो  मिटका देथे, पारा परोस ला तो रोजे ओकर कलकुत ला सुने के टकर परगे रहय, ककरो रुआ टेड़गा नहीं होवय अउ सोग पियास जागै तउनो कभू ओकर घर के चौंखट ला नइ नाहक सकै । फेर आज असकुस होइस ते परोसिन के पथरा असन छाती हर टघलिस अउ दनदनावत सुंदरिया घर के सिंगदरवाजा के संँकरी ला उघार के सुंदरिया जेन खोली मा धँधाय रहिस तेन खोली के आरो लेवत चारोमूड़ा गिंजरत बड़बड़ावत रहे आगी लगै अइसन धन जेन घर के छाहित लछमी के काम नइ आ सकै, महल ताने ले का होही लखटकनीन बने शान बघारत हे घर के बहुरिया पानी बर तरसत हे हत्त रे असत्तीन तोला नरक मा घलो ठउर नहीं मिलै। कोनहा के एकठन खोली मा सइघोबड़ तारा ठेंसाय रहै उहें ले सुंदरिया के गिंगियाय के आरो आवत रहै खोजत खोजत गिस अउ पथरा खोज के जब्बर तारा ला अब्बड़ कुचर कुचर के टोरत रहै तब ओती खोली भीतरी सुंदरिया के जीव पोटपोट करत रहै अब का होही भगवान कहिके ससकत बइठिस फेर गिरगे। रंभा पसीनियागे रहै तब लटपट तारा टूटिस कपाट ला उघारथे तौं अधमरा परे सुंदरिया पानी पानी कहिके आँखी ला लड़ेर दे रहै। रंभा दँउड़त अपन घर ले पानी लानिस अउ पियाये के डउल करिस तौं मार ढ़कर ढ़कर पानी पीयइ ला देखके बोटबिटावत कहिस-एक दिन मर जाबे रे बैरी जा अपन मइके मा चल दे जग मा आय हवस तौ कोनो मेर जीबे खाबे कइसे भाई भतीज मन अर्राय गर्राय दू जुआर तोर पेट ला नहीं चलाहीं । जइसे आज रंभा के डर हर मरगे रहै अउ मनुखई हर जागगे रहै तइसने सुंदरिया के घलो डर हर मरगे रहै अउ जिये के साध हर सास संग भिड़े बर कछोरा भिर डरे रहै, कोनजनी कब मोला अउ अतका संगदेवइया मिलही क नहीं कहत सुंदरिया हर ठान ठान लिस आज कहूँ सासदाई हर अपन रंग देखाही तौ महूँ जीवबचाय सेती अपन रूप देखाहूँ  आज चूकेंव तब भारी चूक हो जाही अइसे कहत डरपोकनी सुंदरिया अपन मन ला कसत रहै, ठउका ओतके बेर सुंदरिया के सास हर अपन चरबत्ता मंडली ले मूड़ ढ़ाके लहुटथे मुँहाटी ला देखत साठ ओकर एड़ी के रीस तरुआ मा चढ़ जथे, भीतरी आके देखथे तौ तारा बेंड़ी टूटे रंभा संग अपन बहुरिया ला बइठे देखथे तौ रखमखावत आके रंभा के डेना ला धरे बर करथे तौ लाम लाहकर जब्बर रंभा अइसे झटकारथे डोकरी दू भाँवर गिंजर के खोली के कोन्टा में जाके गिर परथे ।

                 अब सुंदरिया हर बल करके एक साँस मा अपन सास ला कहिथे-देख सासदाई आज तक तैं जेन करेस काबर करेस? कइसे करेस ? मैं नहीं जानौ, तोर लंबरदार बेटा संग सतभँउरी गिंजर के चार समाज के आगू तोड़ डेहरी ला पाँव परके तोर घर के बहुरिया बने रहेंव, रंग बिरंग के कुँवारी सपना ला ओलियाय अपन मइके ले निकले मैं अड़ानी का जानौं कि कोन जनम के बैरी घर बिधाता मोर भाग लिखे रहिस हे । मैं आज तक नहीं बूझ सकेंव कि तुमन मोर संग अतका अनीत काबर करथौ, मोर ले कुछु अनीत होवत होही तौ बतातेव तौ सुधारतेंव। मोर तो पहिली पठौनी के सब्बो सपना मा पहिलीच दिन आगी लगगे अउ मैं कलेचुप देखत रहिगेंव, मोर 

गोसइया तुँहर उठाय उठत हें तुँहर बइठाय

 बइठत हें, मोला मोर पति के मुँहरन तो अब्बड़ दूरिहा हे ओकर गोड़ के धुर्रा बर तरसा देव मैं चुप रहेंव, मोर बहुरिया बकठी हे कहिके गाँव भर गोहार पारेव मैं चुप रहेंव, मोला भात पानी बर तरसायेव मैं चुप रहेंव। दिनभर तुँहर बाड़ा मा बनिहारिन बूता करवा के लाँघन राखथौ तभो मोर परान नहीं छुटत हे सासदाई मोर कतका करमदंड बाचे हे ते भगवान जानै,

मैं तो तुँहर घर के लाज ला तोपे बर कलेचुप रहिगेंव सासदाई फेर अइसे झन समझहू कि कोनो कुछु नहीं जानै । मोर पेट के फोरा में तुँहर बड़ौकी के होरा भुँजागे हे । पारा परोस तुँहर मनुखबाहिर चाल के गवाही हे । जब जब मोर पेट मा भूँख के दावा ढिलाथे तब मैं बहिर टंकी के पानी ला पी पी के भाँड़ी मेर सपटे ससके ररहीन असन परोसी मन घर सित्था पेज माँगथौं जेकर दा उलथे तेन दे देथे नहीं तो अपन गड़िया करम ला कोसथौं। पहिली तीजा  मा दाई मेर लुगरा के बदला नगदी देबे  कहिके खँधो के पाँच हजार लाने रहेंव तेन पाँच सौ के नोट ला मैं हर दस बीस रुपिया के समोसा मँगाय बर अनचिन्हार मनखे मेर फेक के ददा भैया कहिके कलकूत करथौं मोर बर कुछु खाय के जिनिस लान दौ कहिके, कोनो मोर बिपत ला देख के मोर बर सोग मरै कोनो मोर भरोसाघात करथें। मोर तो दूसर उपर भरोसा करे के छोड़ आने रद्दा नहीं है। सासदाई तोर बखरी के जाम अउ बोइर के रुख मन धन्य हे ओ जेन मन मनखे ले बढ़के मोर संग देथें । जब भूँख मा आँखी तँवारा मारथे तौ जेन बोइर के रुख तरी जाके अपन फूटहा करम उपर आँसू चुचवाथौं तब उही मन अपन कच्चा पक्का फर ला झरो के मोर दुख मा धीर बँधाथें अउ जियाथे ।  मनखे के जनम धरके अतका मनुखबाहिर चाल चलथौ फेर मैं सवाँस के तुँहर डेहरी ले ओप्पार गोड़ नहीं मढ़ायेंव। तुँहर तपनी ला सवाँस के मैं जब्बर भोरहा कर परेंव सासदाई अब मैं अपन भोरहा ला सुधारहूँ कहत सुंदरिया अपन पठौनी के संदूक ला बोह के निकलिस रंभा पाछू पाछू जा के मोटर 

 बइठारिस अउ गुनत गुनत घर डहर आवत हे बीच बाट मा सुंदरिया के देवर छेंक लिस अउ कहिस -तैं कबले दूसर घर के नियाव पंचइत टोरे लगेस भउजी, हमर घर अपन टँगरी फँसाय हवस तेकर परिणाम तोला भुगतना परही। रंभा कहिस-ले चल रे बाबू रस्ता नाप मैं सुंदरिया नोहौं मोला डरुवा झन अतका दिन ले जेन पाप करत रहेव ओकर फल पाय के बेरा लकठा आगे हे, भोरहा ला छोड़ देहू दाई बेटा बेटी सब्बो झन जेल मा सिगबिगाहू । तुमन कोन से जुग मा जीथौ रे पढ़े लिखे मुरुख हो, सरकारी नियम के हिसाब से तिरियातपनी महापाप हे परोसी के लिखाय रिपोर्ट मा तको अइसे पेराहू कि तुँहर गत ला देख के दूसरो मन के पोंटा काँप जाही कहत अपन घर आके अपन गोसइया ला सबो बात ला रंभा बताथे तौ गोसइन के ये रूप घलो होही कहिके अंताजे नहीं रहै फेर बकखाय सुने पाछू कहिस तैं अउ हम माने समाज के सबो मनखे कहूँ अनीत कुरीत के आगू अइसने जब्बर बनके ठाढ़ होबो तौ सब कुकरमी जेल मा जाहीं अउ बहू बेटी मन के दुख टरही, अपन तीर तखार के घटत घटना बर हमर आँखी मूँदे के टकर के  सेती अइसन रक्सा रक्सीन ढ़िलाय हें। रंभा आज तोर रूप मा छाहित कालीदुर्गा दाई के दर्शन पागेंव ।

ओती मोटर मा बइठे सुंदरिया हर रंभा के बिसाय केरा अंगूर ला खावत घर के जेल कोठरी के बाहिर खुल्ला हवा मा पेट भर साँस साँस लेवत अउ बिसाय बोतलवंद पानी ला पीयत जीये के डहर खोजत जावत हे ।


शोभामोहन श्रीवास्तव

रायपुर

टीप-:(सत्य घटना उपर आधारित कहानी)

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