*सब ले कीमती जमीन।* (ऐतिहासिक नाटक)
पात्र--
*गुरु गोविंद सिंह*-सिख मन के दशम गुरु,खालसा पंथ के संस्थापक।
*दीवान टोडरमल जैन*---सरहिंद(पंजाब) के दीवान
*वजीर खाँ*---बादशाह औरंगजेब के सर हिंद के फौजदार
*गंगू*---सरहिंद के निवासी
*साहिबजादा जोरावरसिंह*--गुरु गोविंद सिंह के 9 साल के बेटा
*साहिबजादा फतेह सिंह*---गुरु गोविंद सिंह के 5 साल के छोटे बेटा
सैनिक, एक आदमी आदि
स्थान---सरहिंद
तिथि-- 26 दिसम्बर सन् 1705
दृश्य--1
( वजीर खाँ के महल। वजीर खाँ कुछ सोंचत बइठे हे। वोतके बेर एक मुगल सैनिक के प्रवेश होथे)
सैनिक--- (झुक के सलाम करत)--अस्लामु अलैकुम।
वजीर खाँ--वलेकुल सलाम। बोल सैनिक का बात हे--।
सैनिक--जनाब फौजदार जी। एक झन आदमी जेन अपन नाम गंगू बतावत हे,तूमन से मिलना चाहत हे।
वजीर खाँ --मिलना चाहत हे---काबर ? जा पूछ के आ।
सैनिक--- क्षमा करहू जनाब।
पूछे हँव फेर वो ह कारण ल तुहीं मन ल बताहूँ कहिथे।
वजीर खाँ---अच्छा--जा ले आ वोला।
(सैनिक जाथे अउ गंगू संग आथे)
गंगू---(सिर झुका के वजीर खाँ ल सलाम करथे)
वजीर खाँ--- बोल कइसे आये हस।
गंगू--- मैं ह एक ठन बहुत बड़े खुश खबरी दे बर आये हँव जनाब।
वजीर खाँ---खुश खबरी अउ तैं ---बोल का खुश खबरी हे।
गंगू---तुँहर मन के खाँटी दुश्मन जेला खोजत हव तेकर पता ठिकाना मैं जानत हँव।
वजीर खाँ--(खुश होके) का कहे? काकर ठिकाना --वो काफिर गुरु गोविंद सिंह के ?
गंगू--- नहीं जनाब। वो तो नइये फेर वोकर दू झन नान नान औलाद साहिब जादा फतेह सिंह अउ जोरावर सिंह अउ इँखर दादी गुजरी बाई के ठिकाना ल जानत हँव।
वजीर खाँ--(म्यान ले तलवार खींचत) कहाँ हे वोमन तुरत बता ?
गंगू---वोमन गुरु गोविंद सिंह के जत्था ले भटक के मोर घर म शरण ले हावयँ।
वजीर खाँ--वाहह वाह जोरदार खबर। साँप नहीं ते सँपोला सहीं। बादशाह औरंगजेब जब इँखर पकड़ाये या फेर मौत के खबर सुनही त बहुतेच खुश हो जही। वाहह-- खुदा के रहमो करम---वाह
(थोकुन रुक के)
फेर एक बात सुन ले तैं--
गंगू---( सिर झुका के)--- हुकुम जनाब ।
वजीर खाँ---ये ले अभीच्चे हजारों सोन के अशर्फी इनाम। अउ कहूँ ये खबर झूठा होही त तोर सिर तुरते कलम कर दे जाही।
गंगू --(इनाम ल झोंकत)--मंजूर हे जनाब।
वजीर खाँ--अरे सैनिक। तैं ह अपन संग म अउ सौ-दू सौ सैनिक ले ले अउ एखर संग जाके उन दूनो सपोला मन ल पकड़ के जिंदा मोर सामने हाजिर करव।
सैनिक-- जी जनाब।
(गंगू के संग बहुत झन मुगल सैनिक आथें अउ दूनो साहिब जादा मन ल पकड़ के ले जथें। रात भर ठंड म बुर्ज म बाँध के राखथें तहाँ बिहनिया दरबार म पेश करथे। )
वजीर खाँ--(ठहाका लगावत)---आवव --आवव --काफिर के औलाद सँपोला हो।
साहिबजादा फतेह सिंह--जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल।
साहिबजादा जोरावर सिंह-- -(दूनों हाथ उठा के ,जोर से) जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल।
वजीर खाँ --(आग बबूला होके) तुँहर मोर आगू म ,मोर दरबार म अतका जुर्रत। चुप राहव नहीं ते तुँहर जुबान खींच लेहौं।
सैनिक---(साहिबजादा मन ल ढपेलत)---अरे काफिर ,पाजी बच्चा हो। जान बँचाना हे त जनाब ल सिर झुका के सलाम करव, नही ते सिर कलम कर दे जाही।
साहिबजादा फतेह सिंह--भले मोर सिर कलम हो जही फेर सिर झुका के सलाम नइ करवँ।
साहिबजादा जोरावर सिंह--- हमन अपन सिर अकाल पुरुख, गुरु, माता अउ पिता के अलावा कखरो आगू म नइ झुकावन। जेन करना हे कर लव।
वजीर खाँ--(तलवार निकाल के गुस्सा ले)---तुँहर अतका हिम्मत ---अभी बोटी-बोटी कर देहूँ।
(पूरा दरबार में सन्नाटा छा जथे ,वजीर खाँ कुछ सोंचके मुस्कुरावत कहिथे)
वजीर खाँ----चलौ तुँहर जान बक्स देहूँ। इस्लाम कबूल कर लव। तुँहर ददा जेला हमन रात-दिन खोजत हन ,वोहू ल क्षमा कर देबो।
दूनों साहिब जादा---(एक संग)---कभी नहीं--कभी नहीं-कभी नहीं---
वैजीर खाँ--(गुस्सा ले तिलमिलावत)---अरे सैनिक हो मैं ए मन ल तड़प-तड़प के मरत देखना चाहत हँव। एमन ल दीवार म जिंदा चुनाई कर दव। अभी--तुरंत
सैनिक---जो हुक्म जनाब।
(दूनों साहिबजादा ल जिंदा दीवार म चुन दे जाथे। ये खबर पूरा सरहिंद म पलभर म फइल जथे। दहशत के संग चारो मुड़ा दुख छा जथे।)
(अपन जहाज हवेली म दीवान टोडरमल जैन बइठे रहिथे)
एक आदमी---( दँउड़त हँफरत आथे)--दीवान जी ---दीवान जी--दीवान जी---
दीवान टोडरमल---का होगे भाई --का होगे---कहाँ ले हँफरत आवत हस।
आदमी---घोर अत्याचार होगे दीवान जी।घोर पाप होगे--
दीवान टोडरमल-- का होगे भाई बताबे तब न जानहूँ।
आदमी--(रोवत--रोवत)-- बहुत बड़े घटना घटगे दीवान जी। क्रूर फौजदार वजीर खाँ ह अपन दरबार तीर गुरु गोविंद सिंह के दू झन छोटे-छोटे साहिबजादा मन ल दीवार म जिंदा चुनवा के तड़पा-तड़पा के मार दीस। दूनों अबोध साहिबजादा मन के लावारिस लाश उही मेर परे हे अउ वजीर खाँ जश्न मनावत हे।
दीवान टोडरमल-- ओह (मुँड़ ल धरके बइठ जथे।कुछ देर पाछू अपन ल संभालत) चलौ मोर संग ।शहर के मनखे मन ल जा बला के ला।
आदमी--हव दीवान जी।
(वो आदमी ह बाहिर जाथे अउ कुछ देर म शहर के नर-नारी संग आथे। तहाँ ले सब दीवान संग वजीर खाँ के महल म आथे)
वजीर खाँ---आवव दीवान जी आवव। फेर ये रोवत हें ते मन चुप रहे ल कहि दे। रंग में भंग मत डारयँ।नहीं ते------ले बता कइसे आये हस।तोर मुँह काबर लटके हे।
दीवान टोडरमल---(हाथ जोर के)---हमन ला ये साहिब जादा मन के अंतिम क्रिया करे के इजाजत देये के कृपा करव।
वजीर खाँ--(हाँस के)--हाँ ,कृपा कर देहूँ।फेर इही मेर क्रिया कर्म करे बर परही।फेर एक शर्त हे।
दीवान टोडरमल-- (हाथ जोर के) ---बोलव फौजदार जी।
वजीर खाँ---इँखर कफन दफन करे बर कतका बड़ जगा चाही।
दीवान टोडरमल --(कुछ सोच के)-- सिरिफ चार गज जमीन दे दव जनाब।
वजीर खाँ---ठीक हे वोतका जगा मिल जही।फेर वोकर कीमत चुकाये ल परही। वो चार गज म सोन के मोहरा बिछाये बर परही। मंजूर हे त बोल।
दीवान टोडर मल---हाँ, ए शर्त मंजूर हे जनाब। मोला अपन घर ले आये के समे दव।
वजीर खाँ--(ठहाका लगा के)--ठीक हे जा अउ जल्दी आ।
(दीवान टोडरमल जाथे अउ अपन खजाना ल खाली करके जम्मों सोन के मोहरा मन ल लाथे।
दीवान टोडरमल---जनाब ये दे आगेंव। अब हमला मोहरा बिछाये के आज्ञा दव।
वजीर खाँ-- हाँ, आज्ञा हे बिछावव ।
(दीवान अउ वोकर संगवारी मन चार गज जमीन ल सोन के मोहरा मन ल पट बिछा के ढाँक देथें)
दीवान टोडरमल--फौजदार जी ,देख लव ये चार गज जमीन पूरा ढँकागे हे।अब अंत्येष्ठि के इजाजत दव।
वजीर खाँ--(बिछाये मोहरा मन ल देखके)---ये काये।मैं अइसना ढाँके ल थोरे कहे रहेंव।मोहरा ल पट नइ रखना हे।खड़ी खड़ी मढ़ा के ढाँकना हे।
(वजीर खाँ के बात ल सुनके सब सन्न हो जथें। दीवान के आँखी ले आँसू के धार बोहा जथे।)
दीवान टोडरमल---ठीक हे जनाब।मोला दू घंटा के मोहलत दव।
वजीर खाँ---दू घंटा का चार घंटा के मोहलत देवत हँव।
(दीवान टोडरमल अउ वोकर संगवारी मन लहुट के आथें।तहाँ ले टोडर मल ह अपन महल अउ जमीन जायजाद ल तुरत फुरत बेंच देथे।अउ फेर सोना के मोहरा मन ल काँवर म भरवा के आथें अउ वो चार गज जमीन म खड़ी खड़ी राख के तोप देथे। कुल 78000 हजार सोन के मोहरा लागथे)
दीवान टोडरमल--जनाब फौजदार जी।देख लव शर्त पूरा होगे। अब इजाजत दव।
वजीर खाँ--( अचरज ले देख के)- ठीक हे। अरे सैनिक हो ये जम्मों मोहरा ल उठावव अउ चलव। येमन ल लाश ल जलावन दव।
(वजीर खाँ जाथे तहाँ ले वो चार गज जमीन म दूनो साहिबजादा के अंतिम क्रिया करे जाथे।
लोगन जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल के संग दीवान टोडर मल के जै बोलाथे।
दृश्य --2
(नदिया के तीर म घास फूस के झोपड़ी म दीवान टोडरमल बइठे हे। बाहिर ले जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल के अवाज सुनाई देथे। वो ह झोपड़ी ले बाहिर निकल के देखथे त गुरु गोविंद सिंह अपन जत्था के संग खड़े रहिथे।)
दीवान टोडरमल--अहोभाग्य। सतपुरुष गुरु मोर गरीब के कुटिया म पधारे हे---अहोभाग्य( गुरु गोविंद सिंह के चरण म दंडाशरण गिर जथे)
गुरु गोविंद सिंह---(टोडरमल ल उठाके हिरदे ले लगावत)-- तैं धन्य हस दीवान --तैं धन्य हस। मैं तोर ऋणी हँव। तोर त्याग के गाथा अमर रइही।
मैं भला तोला आशिर्वाद के अलावा अउ का दे सकहूँ।
तभो ले कुछु माँग ले।
दीवान टोडरमल---हे सदगुरु मोला एक वरदान दे दव।
गुरु गोविंदसिंह---बेहिचक बोल पुण्यात्मा।
दीवान टोडरमल-- हे सतगुरु मोला ये वरदान दव के मोर वंशावली मोर संग समाप्त हो जय।
गुरु गोविंद सिंह --(आश्चर्य ले)--ये का माँग लेस धन्यभागी। सब औलाद माँगथे अउ तैं ह उल्टा वंश लकीर मिटे के वर ।अइसन काबर?
दीवान टोडरमल---हे सतगुरु। मैं नइ चाहौं के भविष्य म मोर कोनो वंश ह ये काहय के मोर पुरखा ह संसार के सबले कीमती भुँइया ल खरीदे रहिसे।
अइसे भी सरी सृष्टि भुइयाँ वो अकाल पुरुष के आय अउ उही ल अर्पण करे हँव।मोर कुछु नोहय।
गुरु गोविंद सिंह---( दीवान ल हिरदे ले लगावत) धन्य --धन्य टोडरमल। धन्य हे तोर ये त्याग। धन्य हस--धन्य हस--धन्य हस।
(पर्दा गिरथे)
समाप्त
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🙏
चोवा राम वर्मा 'बादल'
बहुत सुंदर गुरुदेव जी
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ी गद्य लेखन को एक नयी दिशा दी गयी है। बहुत बढ़िया।
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