Wednesday 23 June 2021

जउन मन कबीर ला जान लिही कबीर ओखरे आय*।


 

दिनांक___23/06/2021

पद्मा साहू ‘पर्वणी‘

खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़

*जउन मन कबीर  ला जान लिही कबीर ओखरे आय*।


हमर भारतीय दर्शन मा बहुत से साहित्यकार, संत पुरुष होय  हे जेमा संत कबीर हा भक्ति काल के एक अइसे संत हरै जेकर ज्ञान अटपट हे जेला समझ पाना बहुत कठिन हे। कबीर जी सधुक्कड़ी जीवन अपनाइस, अपन जीवन ला साधु के समान बिताइस ।कबीर के ज्ञान ला जाने बर  पहिली अपन आप ला जाने ल पड़ही । कबीर के ज्ञान छोटे-मोटे ज्ञान नोहे कबीर एक अइसे व्यक्तित्व , महान पुरुष हरै जेन ला आज पूरा दुनिया हा जानथे अउ संत कबीर के ज्ञान ला मानथे। 

       कबीर के गुरु रामानंद स्वामी जी हा कबीर के वास्तविक रूप, ज्ञान ला जान के कबीर ला गुरु मानीस  फेर कबीर के आज्ञा ले कबीर के गुरू बने रहिस। रामानंद गुरु हा  शालिग्राम के मूर्ति ला नहा धोवा के तैयार कराथे फेर माला पहिनाय बर भूला जाथे त अपन माला ला हेरथे  ओहा गर ले निकलबे नइ करे। कबीर कहीथे गांठ ला खोलव, अज्ञानता के भ्रम ला तोड़व, तब माला गर ले निकलही अउ भव बंधन हा छुटही उही दिन ले स्वामीजी ला ब्रह्म तत्व  अपन अंतस के राम के ज्ञान होथे, अउ कबीर के आगु मा नतमस्तक हो जाथे। 

          कबीर भक्ति काल के इकलौता संत हरै। 

कबीर कहीथे__

        एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट–घट बैठा।

        एक राम सकल पसारा, एक राम सबहुँ ते न्यारा।


एक राम दशरथ के, दुसर राम तीसर घट–घट वासी हे, तीसर राम सर्वव्यापी हे,अऊ जउन राम हा  सर्वव्यापकता ले ऊपर हे न्यारा हे उही राम के गुणगाथे कबीर हा।


       कबीर कहीथे कि राम अविनाशी नाम निराकार हे , साधना के प्रतीक  हे। 

अऊ ओ राम के दर्शन कब होही?

कबीर कहीथे__ 

         मन सागर मनसा लहरी, बूड़ै बहुत अचेत।

         कहहीं कबीर ते बांचिहैं, जिनके ह्रदय विवेक।।


 अर्थात मन सागर हे अउ ये सागर मा काम, क्रोध, विषय, वासना, लोभ, मोह, अहंकार के कई लहर उठथे। जउन मनखे मन अपन अंतस मन के ये लहर ल काबू  मा कर लेथे ब्रह्म तत्व ला जान लेथे उही मन भव सागर ले पार हो जाथे । जेन मन, मन के लहरा  ला शांत नइ कर पाय वो मन दुनिया के माया मा डूब जाथे।


    संत कबीर माया ले बचे बर दुनिया ला अगाह करथे ।

           मन माया तो एक है, माया मन ही समाय।

           तीन लोक संशय पड़ा , काहि कहूं समझाय।।


माया अउ मन एक हे।  माया मन मा ही बैइठे हे । जेकर से तीनों लोक संशय मा पड़गे  जेन मनला देवता कहिथे वहू मन नइ बाचिस।  त अब कोन हा कोन ला समझाही । अइसन अद्भुत हे कबीर के ज्ञान हा। 

 कबीर सम्यक तत्व ला समझाय के प्रयास करे हे दुनिया ला। 


         मन ऐसा निर्मल भया , जैसे गंगा नीर ।

         पाछे–पाछे हरि फिरै, कहत कबीर–कबीर।।


कबीर मनखे के असल रूप ला बतात हुए कहीथे कि तुम भगवान ल मत खोजव अपन मन ला अइसे निर्मल बनाव अउ अपन अस्तित्व ला जानव निर्गुण ब्रह्म तत्व ला जानव तहां ले हरि खुद तुम ला खोजत आही।

संत कबीर  ये संसार मा रहत हुए भी संसार के माया से दूर रिहिस। कबीर संसार  ला छोड़िस नइ हे फेर संसार ला पकड़िस घलो नहीं। विरक्त होके राहय, इही कबीर के जीवन जिए के कला आय।

 कबीर तो जनम अउ मरण के भ्रम ला घलो तोड़ दीस। लोगन मन के धारणा रहे कि काशी मा मरथे ता मुक्ति मिलथे, मगहर मा मरथे ता गधा बनथे । ये बात हा एक अंधविश्वास हरय ये अन्धविश्वास ला दूर करे बर कबीर खुद 120 वर्ष के उम्र मा काशी ले मगहर गिस । मगहर मा जाके लोगन मन ला समझाइस की आदमी के कोनो जगह मरेले सरग या नरक मा नइ जावय, आदमी के कर्म ओला सरग अउ नरक मा ले  जाथे। 


      ‘क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा।

        जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा’


हिंदू मुस्लिम ल फटकार घलो लगाय हे, एकता के सूत्र मा बाँधे के प्रयास करे हे ।

   हिंदू मुस्लिम के एकता बर काशी के राजा वीर सिंह बघेल अउ मगहर रियासत के मुस्लिम नवाब बिजली खान पठान दोनों कबीर के परम शिष्य हरय जउन मन कबीर के प्राण त्यागे के बाद देह ला अपन–अपन अपनाय बर  झगड़ा लड़ाई  के बात सोंचय । कबीर झगड़ा लड़ाई ला दूर करे बर अंत समय मा भी समन्वय करा दिस। एक दिन आमी नदी जेहा  शंकर के श्राप ले  सुक्खा राहय ऊंहा  कबीर के जाए ले पानी बोहाय लागीस। आज भी बहत हावय। ऊहा ले स्नान करके कबीर हा आइस  अउ अपन ध्यान समाधि बर चादर के बीच मा सोगे ओखर ऊपर फिर चादर ढक दिस। कबीर कहिस की  बिजली खान पठान , राजा वीर सिंह बघेल  चादर मा जो वस्तु मिलही तउन ला बराबर– बराबर बांट लेहू। अउ झगड़ा मत करहु। 

फेर कहीथे__

    उठा लो पर्दा, इनमें नहीं है मुर्दा।

 देखते–देखते चादर मा  कबीर के देह के जगह मा फूल  बनगे वोला हिंदू, मुस्लिम दोनों मन बाँट लिस अउ अपन –अपन  हिंदू मन समाधि, मुस्लिम मन मजार  बनाके कबीर ला माने लागिस।  अहु एक अद्भुत बात आय। जेला देख के बिजली पठान हा अचंभा मा पड़गे।


           संत कबीर नहीं नर देही, जारय जरत न गाड़े गड़ही।

           पठीयों इत पुनि जहाँ पठाना, सुनि के खान अचंभा माना। ।


कबीर अपन सधुक्कड़ी जीवन बिताइस । समाज ला समन्वय  के शिक्षा दीस । अनपढ़ होय के बाद भी पूरा दुनिया ला अपन अइसे शिक्षा दीस कि आज वो शिक्षा के फेर जरूरत हे । अद्भुत हे कबीर  अउ वोकर ज्ञान हा।


जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही।

सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही।।

  तत्व ज्ञान ला पाए बर निर्गुण उपासक कबीर हा अहंकार ला मेट के अपन जीवन ला जान लीस, दुनिया ला उपदेश करीस अंधविश्वास कुरूती ला दूर करे बर जब्बर काम करिस साहित्य ला नवा दिशा दिस।  कबीर के जीवन पूरा ज्ञान से भरे हे। जउन हा कबीर ला जान लिही  कबीर ओखरे आय।


पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।

एक दिना छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात ।।


कबीर साहेब मनखे  मनला नेकी करे बर सलाह देथे, क्षणभंगुर मनखे शरीर के सच्चाई  ला लोगन मन ला बताथे कि पानी के बुलबुला जइसे मनखे के शरीर क्षणभंगुर हे। जइसे प्रभात होथे ता तारा छिप जाथे , वइसने  ये देह हा घलो एक दिन नष्ट हो जाही।


रचनाकार (संकलन कर्ता)

पद्मा साहू "पर्वणी"

खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़

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