Thursday 24 June 2021

*परम पूज्य संत कवि कबीर दास जी के जयंती के अवसर म भावांजलि सादर अर्पित हे।* 🌺🌺🌺💐💐💐 *सदगुरु संत कबीरदास जी* ---------------------------- हिंदी साहित्य के इतिहास म भक्ति काल ल स्वर्ण युग कहे जाथे काबर के वो समे(लगभग 500 -600 साल पहिली) अइसे-अइसे महामानव ,पथ प्रदर्शक,जन-जन म प्रेम अउ मानवता के अलख जगइयाँ संत कवि होइन जिंकर सृजन मन ल असली म कालजयी कहे जा सकथे। उही मन म सर्वश्रेष्ठ रहस्यवादी ,क्रांतिकारी, निर्गुण ब्रह्म उपासक संत कवि कबीरदास जी माने जाथें। *जीवन परिचय*-- संत कवि कबीरदास जी के जन्म तिथि, माता पिता ,परिवार ,शिक्षा दिक्षा आदि के संबंध म कई प्रकार के मान्यता हे काबर के ये सबंध म इतिहास के कोनो पुस्तक म स्पष्ट अउ प्रमाणिक उल्लेख नइये। तभो ले अधिकांश विद्वान मन कबीर दास जी के जन्म काशी(वाराणसी) म *लगभग सन् 1398 म* मानथें पिता नीरू अउ माता नीमा जे मन जुलाहा रहिन के घर मानथें। कबीर दास जी के अनुयायी मन के मान्यता हे के कबीरदास जी ह काशी के लहरतारा ताल म पुरइन के पत्ता उपर प्रगट होये रहिन जेकर पालन पोषण नीरू अउ नीमा करे रहिन। संत कबीरदास जी के पत्नी लोई अउ संतान कमाल(पुत्र) अउ कमाली(पुत्री) ल माने जाथे। कबीरदास जी के गुरु काशी के प्रख्यात वैष्णव संत *रामानंद* ह आँय जेकर ले कबीरदास जी ह राम नाम के दीक्षा प्राप्त करे रहिस।ये बात के उल्लेख स्वयं कबीरदास जी ह अपन साखी अउ सबद म करे हावयँ। कबीर दास जी के मृत्यु मगहर नामक जगा म जेन ह वाराणसी के तीर गंगा के वो पार घाट म हे ,लगभग सन 1518 म होये रहिस। ये जगा म आजो कबीरदास जी के समाधि (मठ) हाबय। इहें *सिद्ध पीठ कबीर चौंरा मठ मुलगड़ी* हावय जिहाँ संत के खड़ाऊ, रुद्राक्ष के माला,जेला गुरु रामानंद जी दे रहिन हें अउ उनखर बउरे आन जिनिस मन तको रखाय हाबयँ जेकर दर्शन बर देश-दुनिया के लोगन आथें। ये मठ म कबीरदास जी के बाद पहिली मठाधीश सर्वानंद जी राहत रहिन। संत कबीरदास जी के अंतिम क्रिया करे के समे के एकठन रोचक जनश्रुति हे के हिंदू अउ मुस्लिम मन अपन अपन ढंग ले संत कबीरदास जी के मृत शरीर के क्रिया कर्म करे बर झगरा होइन फेर जब ढँकाये कफन ल हटाइन त उहाँ शरीर नइ रहिसे सिरिफ फूल बिखरे रहिस हे तब वोमन उही ल बाँट के क्रियाकर्म करिन। हकीकत काये तेला परमात्मा जानय काबर के -जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। हाँ अतका जरूर हे एक सच्चा संत ,महात्मा मन के जीवन म अइसन चमत्कार होवत सुने अउ देखे गेहे। *संत कबीरदास जी के साहित्य*-- संत कबीरदास जी कोनो स्कूल या फेर आश्रम म पढ़े-लिखे नइ रहिन । ये बात के पता उँखर एक प्रसिद्ध साखी ले चलथे जेमा लिखाये हे-- *मसि कागद छुवौ नहीं, कलम गह्ये नहिं हाथ।* संत कबीरदास जी ह अपन विचार अउ शिक्षा ल मुँह अँखरा बोलयँ अउ उँखर शिष्य मन ,प्रमुख रूप ले धनी धर्मदास जी ह लिखयँ। पश्चिमी विद्वान एच०एच० विल्सन ह संत कबीरदास जी के आठ ग्रंथ, जी०एच०वेस्काट ह चौरासी त भारतीय विद्वान रामदास गौड़ ह एकहत्तर ग्रंथ मानथें। संत कबीरदास जी के साहित्य के संग्रह ग्रंथ ल *बीजक* कहे जाथे जेन साखी(दोहा), सबद (गीत) अउ रमैनी(रहस्यमयी उलटबांसी) के रूप म हावय। ये जम्मों रचना कालजयी हें। आजो जन-जन म पढ़े अउ सुने जाथे। एक निरक्षर जेन अद्भुत ज्ञानी रहिसे के रचना उपर आज संसार के बड़े-बड़े विश्वविद्यालय म शोध होवत हे अउ डाक्टरेट के उपाधि दे जावत हे। *ये रचना मन कोनो साधारण पुस्तक नोहयँ। ये मन ग्रंथ* *आयँ।हमर विचार से ग्रंथ मतलब जेन मनखे के मन के गाँठ ल खोल दय। ग्रंथ मलतब जेन मनखे के मानवता के ग्रंथि ल जगा दय जेकर ले प्रेम के रस स्रावित होवय ,जेकर ले हिरदे के आँखी उघर जय अउ सत्य के दर्शन होवय।* संत कबीरदास जी के साहित्य के भाषा खिचड़ी, साधुक्ड़ी हे जेमा पंजाबी, व्रज, अवधी, राजस्थानी अउ पूर्वी खड़ी बोली मिंझरे हे। भाषा सहज अउ सरल हे । *संत कबीरदास जी के शिक्षा अउ साहित्य म संदेश*---- *निर्गुण ब्रह्म के उपासना* कबीर दास जी निर्गुण ब्रह्म उपासक ज्ञानमार्गी संत कवि रहिन। अध्यात्म म आत्ममुक्ति,आत्मज्ञान (जेला मोक्ष, निर्वाण,मुक्ति, दुख निवृत्ति, भवसागर ले तरना, जन्म मृत्यु के बंधन ले मुक्त हो जाना आदि नाम ले अपन- अपन मान्यता ,संप्रदाय ,पंथ आदि के अनुसार पुकारे जाथे) ल पाये के *तीन प्रमुख मार्ग--ज्ञान, भक्ति अउ कर्म* बताये जाथे।एमा सबले कठिन रास्ता *ज्ञान मार्ग* हाबय। येला तलवार के धार म चलना कहे जाथे। गोस्वामी तुलसीदास दास जी कहिथें के-- *ग्यान पंथ कृपाण की धारा। परत खगेस लागहिं नहिं बारा।।* ज्ञान मार्ग म चलना एखर सेती अबड़ेच कठिन हे के सबो सजीव, निर्जीव म एक उही परमात्मा के दर्शन करके सबो संग भेदभाव ल त्याग के निर्मल प्रेम करे बर परथे। एक कीड़ा अउ इंसान दूनों बर तको समान भाव रखे बर परथे। जरा सोचे जाय ये कतका कठिन हे? हमर सदग्रंथ अउ सतपुरुष मन इही ज्ञान ल जगाये के शिक्षा दे हावयँ। परम पूज्य संत गुरु घासीदास जी ह इही ल *मनखे-मनखे एक समान कहे हें* त वेद ह *वसुधैव कुटुम्बकं* कहे हे। गोस्वामी जी ह *सियाराम मैं सब जग जानी। करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।* कहे हावय। संत कबीरदास जी इही घट-घट म समाये परमात्मा के उपासना के शिक्षा दे हावयँ। *आडंबर के विरोध*-- आडम्बर ह मनखे ल भटकाके गिरा देथे। असली ल छोड़के मनखे ह नकली कोती जादा भागे ल धर लेथे काबर के वोमा आकर्षण दिखथे। संसार के सबले बड़का क्रांतिकारी कवि कबीर दास जी ह( अरबी भाषा के शब्द कबीर के अर्थ बड़े होथे) समाज म व्याप्त नाना प्रकार के आडम्बर, मिथ्याचार जेन चाहे हिंदू मन म रहिस या मुस्लिम मन म वोकर पुरजोर विरोध करके ,आडम्बर ल छोड़े के शिक्षा दे हें। मूर्ति पूजा के विरोध करत उन कहिथे--- *पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।* *था ते तो चाकी भली,जा ते पीसी खाय संसार*। अइसने मस्जिद के उपर चढ़के जोर-जोर ले चिल्लाना ल सुनके ये आडम्बर बर भड़कत संत कबीर के वाणी के ललकार हे-- *काकर पाथर जोर के, मस्जिद दई चुनाव।* *ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।* अइसने अउ नाना प्रकार के आडम्बर मन के विरोध म संत कबीरदास जी के साहसिक अउ प्रेरणादायक वाणी हें। *मानवतावादी सीख*--- संत कबीरदास मानवतावादी कवि यें।उन दीन-दुखी के सेवा ल परमात्मा के सेवा माने हें। परहित के सीख देवत उन कहिथें-- *जो तोकौ काँटा बुवै, ताहि बोवे फूल।* *तोहि फूल के फूल है, वाको है तिरसूल।।* *सत्य के महिमा बखान*--संत कबीरदास जी सत्यदृष्टा ,सत्यप्रचारक रहिन। उखँर सत्य के संदेश सिक्ख धर्म के आदि ग्रंथ म शामिल तो हाबेच ओखर प्रभाव अनेक संत मन के शिक्षा म तको दिखथे। उन कहे हें-- *साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।* *जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप।* *प्रेम के संदेश*--- संत कबीरदास जी परमात्मा ले कभू पती भाव ले, त कभू माता-पिता अउ सखा के रूप म निश्छल अउ निर्मल प्रेम करयँ। कतका सुंदर प्रेम हे- *हरि मोर पिउ,मैं राम की बहुरिया।* मलिन लौकिक प्रेम ल बिरथा बतावत उन सबो प्राणी ले प्रेम के उपदेश देवत कहिथें- *पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।* *ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।* *प्रेम प्रेम सब कोई कहे, प्रेम न चिन्है कोय।* *आठ पहर भीगा रहे, प्रेम कहावय सोय।* *गुरु के महिमा बखान*-- ये तो अकाट्य सत्य हे के बिना गुरु के ज्ञान कभू नइ मिल सकय। जानकारी (नालेज) गली गली अउ कखरो से भी मिल सकथे। ज्ञान (अध्यात्म ज्ञान ,खुद ल जाने के ज्ञान) अउ जानकारी म जमीन-आसमान के अंतर हे। अध्यात्म ज्ञान सदगुरु ले ही मिलथे। सदगुरु ईश्वर तुल्य होथे। संत साहित्य गुरु महिमा के बखान ले सराबोर मिलथे। गुरु के संबंध म संत कबीरदास के साखी सबके जुबान म रहिथे।उन कहे हें-- *गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाय।* *बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।* आज नैतिक पतन अउ घोर आडम्बर के ये युग म मानवता ,प्रेम ,सत्य ,अहिंसा अउ भाईचारा के शिक्षा देवत संत कबीरदास जी के वाणी म व्यक्त शिक्षा ल अपनाये के बहुतेच आवश्यकता हे। चोवा राम वर्मा 'बादल' हथबंद, छत्तीसगढ़

 




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*सदगुरु संत कबीरदास जी*
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हिंदी साहित्य के इतिहास म भक्ति काल ल स्वर्ण युग कहे जाथे काबर के वो समे(लगभग 500 -600 साल पहिली) अइसे-अइसे महामानव ,पथ प्रदर्शक,जन-जन म प्रेम अउ मानवता के अलख जगइयाँ संत कवि होइन जिंकर सृजन मन ल असली म कालजयी कहे जा सकथे।
      उही मन म सर्वश्रेष्ठ रहस्यवादी ,क्रांतिकारी, निर्गुण ब्रह्म उपासक संत कवि कबीरदास जी माने जाथें।
  *जीवन परिचय*--
  संत कवि कबीरदास जी के जन्म तिथि, माता पिता ,परिवार ,शिक्षा दिक्षा आदि के संबंध म कई प्रकार के मान्यता हे काबर के ये सबंध म इतिहास के कोनो पुस्तक म स्पष्ट अउ प्रमाणिक उल्लेख नइये। तभो ले अधिकांश विद्वान मन कबीर दास जी के जन्म काशी(वाराणसी) म *लगभग सन् 1398 म* मानथें पिता नीरू अउ माता नीमा जे मन जुलाहा रहिन के घर मानथें। कबीर दास जी के अनुयायी मन के मान्यता हे के कबीरदास जी ह काशी के लहरतारा ताल म पुरइन के पत्ता उपर प्रगट होये रहिन जेकर पालन पोषण नीरू अउ नीमा करे रहिन।
        संत कबीरदास जी के पत्नी लोई अउ संतान कमाल(पुत्र) अउ कमाली(पुत्री) ल माने जाथे।
      कबीरदास जी के गुरु काशी के प्रख्यात वैष्णव संत *रामानंद* ह आँय जेकर ले कबीरदास जी ह राम नाम के दीक्षा प्राप्त करे रहिस।ये बात के उल्लेख स्वयं कबीरदास जी ह अपन साखी अउ सबद म करे हावयँ।
      कबीर दास जी के मृत्यु मगहर नामक जगा म जेन ह वाराणसी के तीर गंगा के वो पार घाट म हे ,लगभग सन 1518 म होये रहिस। ये जगा म आजो कबीरदास जी के समाधि (मठ) हाबय।
 इहें *सिद्ध पीठ कबीर चौंरा मठ मुलगड़ी* हावय जिहाँ संत के खड़ाऊ, रुद्राक्ष के माला,जेला गुरु रामानंद जी दे रहिन हें अउ उनखर बउरे आन जिनिस मन तको रखाय  हाबयँ जेकर दर्शन बर देश-दुनिया के लोगन आथें। ये मठ म कबीरदास जी के बाद पहिली मठाधीश सर्वानंद जी राहत रहिन।
      संत कबीरदास जी के अंतिम क्रिया करे के समे के एकठन रोचक जनश्रुति हे के हिंदू अउ मुस्लिम मन अपन अपन ढंग ले संत कबीरदास जी के मृत शरीर के क्रिया कर्म करे बर झगरा होइन फेर जब ढँकाये कफन ल हटाइन त उहाँ शरीर नइ रहिसे सिरिफ फूल बिखरे रहिस हे तब वोमन उही ल बाँट के क्रियाकर्म करिन।
     हकीकत काये तेला परमात्मा जानय काबर के -जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। हाँ अतका जरूर हे एक सच्चा संत ,महात्मा मन के जीवन म अइसन चमत्कार होवत सुने अउ देखे गेहे।
*संत कबीरदास जी के साहित्य*--
 संत कबीरदास जी कोनो स्कूल या फेर आश्रम म पढ़े-लिखे नइ रहिन । ये बात के पता उँखर एक प्रसिद्ध साखी ले चलथे  जेमा लिखाये हे--
*मसि कागद छुवौ नहीं, कलम गह्ये नहिं हाथ।*
      संत कबीरदास जी ह अपन विचार अउ शिक्षा ल मुँह अँखरा बोलयँ अउ उँखर शिष्य मन ,प्रमुख रूप ले धनी धर्मदास जी ह लिखयँ। पश्चिमी विद्वान एच०एच० विल्सन ह संत कबीरदास जी के आठ ग्रंथ, जी०एच०वेस्काट ह चौरासी त भारतीय विद्वान रामदास गौड़ ह एकहत्तर ग्रंथ मानथें।
      संत कबीरदास जी के साहित्य के संग्रह ग्रंथ ल *बीजक* कहे जाथे जेन साखी(दोहा), सबद (गीत) अउ रमैनी(रहस्यमयी उलटबांसी) के रूप म हावय।
      ये जम्मों रचना कालजयी हें। आजो जन-जन म पढ़े अउ सुने जाथे। एक निरक्षर जेन अद्भुत ज्ञानी रहिसे के रचना उपर आज संसार के बड़े-बड़े विश्वविद्यालय म शोध होवत हे अउ डाक्टरेट के उपाधि दे जावत हे।
     *ये रचना मन कोनो साधारण पुस्तक नोहयँ। ये मन ग्रंथ* *आयँ।हमर विचार से ग्रंथ मतलब जेन मनखे के मन के गाँठ ल खोल दय। ग्रंथ मलतब जेन मनखे के मानवता के ग्रंथि ल जगा दय जेकर ले प्रेम के रस स्रावित होवय ,जेकर ले हिरदे के आँखी उघर जय अउ सत्य के दर्शन होवय।*
      संत कबीरदास जी के साहित्य के भाषा खिचड़ी, साधुक्ड़ी हे जेमा पंजाबी, व्रज, अवधी, राजस्थानी अउ पूर्वी खड़ी बोली मिंझरे हे।
      भाषा सहज अउ सरल हे ।

*संत कबीरदास जी के शिक्षा अउ साहित्य म संदेश*----
  *निर्गुण ब्रह्म के उपासना* कबीर दास जी निर्गुण ब्रह्म उपासक ज्ञानमार्गी संत कवि रहिन।
       अध्यात्म म आत्ममुक्ति,आत्मज्ञान (जेला मोक्ष, निर्वाण,मुक्ति, दुख निवृत्ति, भवसागर ले तरना, जन्म मृत्यु के बंधन ले मुक्त हो जाना आदि नाम ले अपन- अपन मान्यता ,संप्रदाय ,पंथ आदि के  अनुसार पुकारे जाथे) ल पाये के  *तीन प्रमुख मार्ग--ज्ञान, भक्ति अउ कर्म* बताये जाथे।एमा सबले कठिन रास्ता *ज्ञान मार्ग* हाबय। येला तलवार के धार म चलना कहे जाथे। गोस्वामी तुलसीदास दास जी कहिथें के--
*ग्यान पंथ कृपाण की धारा। परत खगेस लागहिं नहिं बारा।।*
       ज्ञान मार्ग म चलना एखर सेती अबड़ेच कठिन हे के सबो सजीव, निर्जीव म एक उही परमात्मा के दर्शन करके सबो संग भेदभाव ल त्याग के निर्मल प्रेम करे बर परथे।  एक कीड़ा अउ इंसान दूनों बर तको समान भाव रखे बर परथे। जरा सोचे जाय ये कतका कठिन हे? 
   हमर सदग्रंथ अउ सतपुरुष मन इही ज्ञान ल जगाये के शिक्षा दे हावयँ। परम पूज्य संत गुरु घासीदास जी ह इही ल *मनखे-मनखे एक समान कहे हें* त वेद ह *वसुधैव कुटुम्बकं* कहे हे। गोस्वामी जी ह *सियाराम मैं सब जग जानी। करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।* कहे हावय।
        संत कबीरदास जी इही घट-घट म समाये परमात्मा के उपासना के शिक्षा दे हावयँ।
*आडंबर के विरोध*-- आडम्बर ह मनखे ल भटकाके गिरा देथे। असली ल छोड़के मनखे ह नकली कोती जादा भागे ल धर लेथे काबर के वोमा आकर्षण दिखथे।
  संसार के सबले बड़का क्रांतिकारी कवि कबीर दास जी ह( अरबी भाषा के शब्द कबीर के अर्थ बड़े होथे) समाज म व्याप्त नाना प्रकार के आडम्बर, मिथ्याचार जेन चाहे हिंदू मन म रहिस या मुस्लिम मन म वोकर पुरजोर विरोध करके ,आडम्बर ल छोड़े के शिक्षा दे हें। मूर्ति पूजा के विरोध करत उन कहिथे---
*पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।*
*था ते तो चाकी भली,जा ते पीसी खाय संसार*।
      अइसने मस्जिद के उपर चढ़के जोर-जोर ले चिल्लाना ल सुनके ये आडम्बर बर भड़कत संत कबीर के वाणी के ललकार हे--
*काकर पाथर जोर के, मस्जिद दई चुनाव।*
*ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।*
     अइसने अउ नाना प्रकार के आडम्बर मन के विरोध म संत कबीरदास जी के साहसिक अउ प्रेरणादायक वाणी हें।
*मानवतावादी सीख*---
 संत कबीरदास मानवतावादी कवि यें।उन दीन-दुखी के सेवा ल परमात्मा के सेवा माने हें। परहित के सीख देवत उन कहिथें--
*जो तोकौ काँटा बुवै, ताहि बोवे फूल।*
*तोहि फूल के फूल है, वाको है तिरसूल।।*
    
*सत्य के महिमा बखान*--संत कबीरदास जी सत्यदृष्टा ,सत्यप्रचारक रहिन। उखँर सत्य के संदेश सिक्ख धर्म के आदि ग्रंथ म शामिल तो हाबेच ओखर प्रभाव अनेक संत मन के शिक्षा म तको दिखथे। उन कहे हें--
*साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।*
*जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप।*

*प्रेम के संदेश*---
  संत कबीरदास जी परमात्मा ले कभू पती भाव ले, त कभू माता-पिता अउ सखा के रूप म निश्छल अउ निर्मल प्रेम करयँ। कतका सुंदर प्रेम हे-
*हरि मोर पिउ,मैं राम की बहुरिया।*

   मलिन लौकिक प्रेम ल बिरथा बतावत उन सबो प्राणी ले प्रेम के उपदेश देवत कहिथें-
*पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।*
*ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।*

*प्रेम प्रेम सब कोई कहे, प्रेम न चिन्है कोय।*
*आठ पहर भीगा रहे, प्रेम कहावय सोय।*

*गुरु के महिमा बखान*-- ये तो अकाट्य सत्य हे के बिना गुरु के ज्ञान कभू नइ मिल सकय। जानकारी (नालेज) गली गली अउ कखरो से भी मिल सकथे। ज्ञान (अध्यात्म ज्ञान ,खुद ल जाने के ज्ञान) अउ जानकारी म जमीन-आसमान के अंतर हे।
अध्यात्म ज्ञान सदगुरु ले ही मिलथे। सदगुरु ईश्वर तुल्य होथे। संत साहित्य गुरु महिमा के बखान ले सराबोर मिलथे। गुरु के संबंध म संत कबीरदास के साखी सबके जुबान म रहिथे।उन कहे हें--
*गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाय।*
*बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।*

         आज नैतिक पतन अउ घोर आडम्बर के ये युग म मानवता ,प्रेम ,सत्य ,अहिंसा अउ भाईचारा के शिक्षा देवत संत कबीरदास जी के वाणी म व्यक्त शिक्षा ल अपनाये के बहुतेच आवश्यकता हे।

चोवा राम वर्मा 'बादल'
 हथबंद, छत्तीसगढ़

4 comments:

  1. छंद के छ गद्य खजाना म लेख ल स्थान देये खातिर हार्दिक आभार आपके।

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  2. बहुत सुग्घर लेख गुरुदेव जी

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  3. बहुत बढ़िया आलेख

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