Saturday 29 July 2023

लोक परंपरा के मोहक रूप 'नगमत'

 लोक परंपरा के मोहक रूप 'नगमत'

    हमर छत्तीसगढ़ म सांस्कृतिक विविधता के अद्भुत दर्शन होथे. इहाँ कतकों अइसन परब अउ परंपरा हे, जेला कोनो अंचल विशेष म ही बहुतायत ले देखे बर मिलथे. हमर इहाँ एक 'नारबोद' परब मनाए जाथे, एला जादा कर के वन्यांचल क्षेत्र म ही जादा कर के देखे जाथे. ठउका अइसने 'नगमत' के परंपरा घलो हे, जेला क्षेत्र विशेष म ही बहुतायत ले देखे जाथे.

    'नगमत' के आयोजन ल जादा करके नागपंचमी के दिन ही करे जाथे. वइसे कोनो-कोनो गाँव म एकर आयोजन ल हरेली या पोरा के दिन घलो कर लिए जाथे. जानकर मन के कहना हे, बरसात के दिन म सांप-डेड़ू जइसन जहरीला जीव-जंतु खेत-खार आदि म जादा कर के निकलथे, अउ ठउका इही बेरा खेती किसानी के बुता घलो भारी माते रहिथे, अइसन म लोगन ल खेत-खार जाएच बर लागथेच एकरे सेती उंकर मनके प्रकोप ले बांचे खातिर एक प्रकार के पूजा-बंदना करे जाथे. उंकर मनके जस गीत गा के सुमिरन करे जाथे.

    ग्रामीण संस्कृति म बइगा कहे जाने वाला मंत्र साधक के अगुवाई म नगमत के आयोजन होथे. एमा बइगा ह अपन अउ मंत्र साधक चेला मन संग मिलके नगमत के जोखा मढ़ाथे. बताए जाथे, जे बइगा ह सांप चाबे के जहर ल उतारे म सक्षम होथे, तेनेच ह ए आयोजन के अगुवाई करथे, अउ ए आयोजन म जेन चेला के सबो चेला मन म श्रेष्ठ प्रदर्शन करथे, वोला ए सांप के जहर उतारे वाले बुता म या कहन बइगई करे के अनुमति देथे. बाकी चेला मनला घलो अनुमति होथे, फेर वो मनला सिरिफ छोटे-मोटे फूक-झाड़ के ही.

    इहाँ ए बात जाने के लाइक हे, हमर छत्तीसगढ़ म हरेली परब के दिन अपन-अपन मांत्रिक शक्ति के पुनर्जागरण या पुनर्पाठ करे के परंपरा हे. इही दिन गुरु-शिष्य बनाए के परंपरा हे, जेला इहाँ पाठ-पिढ़वा देना या लेना कहे जाथे. ठउका अइसने च नगमत के आयोजन ले जुड़े परंपरा घलो हे. 

    वइसे नगमत के आयोजन ल सांप मनके पूजा-सुमरनी अउ  पुराना पीढ़ी द्वारा नवा पीढ़ी ल अपन परंपरा के पोषण अउ आगू ले जाए के जिम्मेदारी खातिर प्रेरित करे के उद्देश्य खातिर घलो करे जाथे. कतकों लोगन खातिर ए ह सिरिफ मनोरंजन के माध्यम होथे, तेकर सेती वो मन सावन महीना के लगते एकर आयोजन के जोखा म लग जाथें. एकर मनोरंजक रूप के आनंद ले खातिर आस-पास के गांव वाले मन घलो गंज संख्या म सकलाथें.

    नगमत के शुरुआत गाँव के ठाकुर देव, मेड़ो देव अउ आने जम्मो ग्राम्य देवता मन के संगे-संग अपन-अपन ईष्ट देवता मनके पूजा-सुमरनी के साथ होथे. जइसे गौरा-ईसरदेव परब म कोनो विशेष जगा ले पवित्र माटी लान के चौंरा बनाए जाथे, ठउका अइसने च एकरो खातिर नाग मन के रेहे के ठउर जेला भिंभोरा या बांबी आदि कहे जाथे, उहाँ ले माटी लान के एकरो खातिर एक चौंरा बनाए जाथे, जेमा पूजा-अर्चना करे जाथे. जस गीत गाने वाला सेउक मन नाग देवता के मांदर-ढोलक,   झांझ-मंजीरा संग जस गान करथें.-


गुरुसर गुरुसर गुर नीर गुरु साहेर शंकर 

गुरु लक्ष्मी गुरु तंत्र मंत्र गुरु लखे निरंजन 

गुरु बिना हुम ला हो काला रचे हो नागिन


गुरु के आवत जनि सुन पातेंव

चौकी चंदन पिढ़ुली मढ़ातेंव

लहुर छोड़ के अंगना बहारतेंव

रूंड काट मुंड बइठक देतेंव

जिभिया कलप के हो....


    इही बीच बइगा ह अपन मंत्र शक्ति के प्रयोग ले इच्छित लोगन के ऊपर नाग या अन्य सांप मनके आव्हान करथे, जेकर ले उनमा उंकर आगमन होथे, तहाँ ले जेन सांप उंकर ऊपर आए रहिथे, वोकरे अनुसार वोमन झूमथें-नाचथें, अंटियाथें-फुफकारथें, भुइयां म घोनडइया मारथें. इही बेरा ह देखइया मन बर मोहनी हो जाथे. एक निश्चित बेरा के बाद वोकर मन के शरीर ले वो सांप ल उतारे के परंपरा ल पूरा करे जाथे.

    आखिर म वो जगा सकलाय लोगन ल परसाद बांटे जाथे. ए परसाद म नांगजरी के विशेष महत्व होथे. उहू ल लोगन ल अउ आने परसाद संग संघार के दिए जाथे. एला कोनो भी बिखहर सांप के जहर उतारे बर रामबाण दवा माने जाथे. ए नांगजरी ल बइगा ह विशेष पूजा-पाठ कर के लाने रहिथे. हमन ल बताए जाय, रिंगनी पेंड़ के जड़ ल कोनो निश्चित दिन म निमंत्रण देके, रतिहा म पूजा-पाठ कर के लाने जाथे. नगमत के परंपरा ल पूरा करे के बाद जेन चेला ल विशिष्ट रूप ले मंत्र दीक्षा दिए जाथे, वोला कहूँ जगा ले भी सांप चाबे के जानकारी मिलथे, उहाँ जाना जरूरी होथे.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

सुघ्घर लबारी चन्द्रहास साहू

 सुघ्घर लबारी

      

                                  चन्द्रहास साहू

                                    मो 8120 578897

"त्रेता युग मा शबरी के कुटिया मा आके अब्बड़ सुघ्घर करे राम। दरसन तो देयेस जूठा बोइर घला खायेस। पर के बेटा होके दाई शबरी ला मान देयेस.... तभे मर्यादा पुरुषोत्तम बनेस। आज  शबरी बरोबर महुँ अगोरा करत हँव राम ! मोरो घर आके दरसन दे दे....। मोरो बेटा बन जा.....। आँखी पथरा होगे बेटा के अगोरा मा। रोज दुवारी मा बइठ के बेटा के अगोरा करथंव। मोर एकलौता बेटा-कुलदीपक....?  कोन जन राम कहाँ गवागे मोर जवनहा हा ते ? दाई बर दवई लाने बर गेये रिहिन शहर अउ उहिन्चे गवां गे। शहर मा कोनो गवां सकथे का मोर राम .... ? कोनो पाये-पोगराये होही ते दे देव मोर लइका ला ! जीये के सहारा तो उँही लइका आय। मोर दुख ला टार दे मोर भांचा राम ! कब तक पाँव परावत रहिबे भांचा ! ये मामी के कलपना ला सुन।''

सबितरी डोकरी रामसीता के फोटो मा अगरबत्ती बारके माथ नवाइस। दीया बारिस धूप देखाइस अउ ..... कलप-कलप के रोये लागिस।

      शबरी कस  रोज अगोरा करथे जवनहा बेटा के सबितरी हा । बिहनिया ले अंगाकर रोटी मा घीव चुपरके रद्दा देखथे। बेटा ला अब्बड़ सुहाथे घीव चुपरे अंगाकर रोटी, जिमिकांदा के साग, रखिया बरी, चेंच भाजी बोइर डारके अउ महेरी बासी । रोज आने-आने जिनिस रांध-गड़के अगोरा करथे मयारुक बेटा के। दिन होवय कि रात जागत रहिथे। ठुक ले आरो आथे राचर के अउ नींद उमछ जाथे। देखे लागथे मोर बेटा आगे। झकनका के उठथे अउ मोहाटी ला देखथे। 

"रोगहा कुकुर-बिलई हो ! दाई के पीरा ला तुमन का जानहु  ? कभु घला आ के मोहाटी के राचर ला ढ़केल देथो। मोला भोरहा हो जाथे बेटा आगे अइसे। फेर एक दिन सिरतोन मोर बेटा आही, तब तुमन जानहु। अभिन वोखर बाँटा के जेवन ला खावत हव तब फुटानी मारत हव। लांघन रहू न..... तब जानहु। मोर बेटा आतेच होही..... ?''

साठ-पैसठ बच्छर के डोकरी कुरबुरावत देखे लागतिस अपन बेटा ला। उछाह नंदा जाथे अउ सुन्ना आँखी ले फेर खटिया मा लहुट जाथे।.... फेर नींद नइ आवय। बिहनिया के अगोरा करथे लाहर-ताहर करत। 

.....अउ अब बिहनिया ले आरो करत हाबे।

"लच्छन ! ये बाबू लच्छन ! हेर तो बेटा कपाट ला। खिड़खिड़-खिड़खिड़ ......।''

कपाट के सांकल ला बजावत हावय डोकरी हा।

"काय फुलदाई ! का होगे ओ !''

लच्छन कुनमुनावत आइस। कपाट ला हेरिस। सबरदिन बरोबर एकेच सवाल अउ ये सवाल के एकेच जवाब।

"फुलदाई ! भाई आही हमर घर तब बता दुहुँ तोला ओ! अतका परेशान झन होये कर। आ जाही झटकुन कहाँ हाबे चंडाल हा ते ... ? चला भीतरी कोती चाहा पी ले।''

भीतरी कोती चल दिस डोकरी हा। रंधनी कुरिया मा डबकत चायपत्ती अउ अदरक के ममहासी ले घर भरगे अब।

लच्छन के लइका मन पढ़त हाबे। चहा दिस वोमन ला। लच्छन के दाई हा परछी के बरदखिया खटिया के पुरती हो गेहे। उठाबे तब उठही, सुताबे तब सुतही-परभरोसा। मुँहू अब्बड़ चलथे फेर काया माटी हो गेहे। लोकवा मार देहे जेवनी कोती ला।  दाई ला आरो करिस लच्छन हा। 

"उठ ओ दाई !''

उठाये लागिस मुड़ी अउ पीठ ला सहारा देके। भलुक चरबज्जी उठ के दुवार-पानी दतोंन-मुखारी बना डारथे दाई हा। फेर कभु-कभु अउ सूत जाथे। आधा गिलास कुनकुना पानी पीयिस अउ अब जम्मो कोई चाहा पीये लागिस।

"बइदराज के दवई-दारू बने असर नइ करत हावय फुलदाई ! अब शहर के डॉक्टर ला देखाये ला लागही अइसे लागथे। पइसा के बेवस्था हो जाही तब लेगहु दाई ला।''

"अउ कहाँ लेगबे गा ! अब काया माटी के होगे हे। सरहा काया मा झन लगा जादा पइसा-कौड़ी। तोरो लोग-लइका हाबे पढ़ा-लिखा साहेब-सुधा बना। अब मोर सरहा काया माटी मा पटाही बेटा।''

लच्छन के दाई केहे लागिस चाहा के घूँट पीयत।  

"बने हो जाबे दीदी !  बेटा हा जतन करत हाबे। पइसा लगाही, ईलाज करही।''

डोकरी सबितरी लच्छन के गोठ मा पंदोली दिस।

"अब्बड़ गरीबी देखे हावय बेटा लच्छन ! तोर दाई हा। जब ले ये गाँव मा आये हावय तब ले अब्बड़ बुता कमाये हे। झउहा-झउहा माटी बोहो के कतको गड्डा ला पाटे हावय तब नानकुन घर अउ खार मा दू हरिया के खेत बिसाइस। तीन-तीन झन नोनी बाबू के जतन करके बड़का करिस। पइसा भलुक कमती रिहिस फेर साध पूरा करिस लइका मन के तोर दाई हा। जतन कर बेटा ! जीयत ले जतन करे बर लागही..। मोरो बेटा कब आही ते दाऊ ! मोरो सेवा करही हो...हो.......!''

सबितरी डोकरी अब गोहार पार के रो डारिस लच्छन ला समझावत। 

"सब बने होही फुलदाई ! संसो झन कर।''

डोकरी ला समझाये लागिस लच्छन हा।

       इही पीरा गरीबी मजबूरी हा दाई-ददा के पाहरो ले लच्छन के पाहरो मा घला आइस। ये गरीबी के भंवरी ले कब उबरही ते...? तीन पीढ़ी तो गरीबी के अँधियार मा अँधरा होगे। अब्बड़ सपना देखथे- समृद्धि के अँजोर बगरावंव,लइका मन ला पढ़ा-लिखा के पोठ मइनखे बनावंव अइसे फेर गरीबी के सुरसा...? बाढ़ते हाबे। लइका मन ला प्राइवेट इंग्लिश मीडियम स्कूल ले नाव कटवा के सरकारी स्कूल मा भर्ती करवाये हावय तभो ले पढ़ाये बर पइसा कमती पड़ जाथे लच्छन करा। उवत के बुड़त बुता करथे शहर जाके। बड़का-बड़का महल-अटारी बनाथे मंदिर-मस्जिद गुरुद्वारा बनाथे फेर अपन घर ला नइ सिरजा सके। जी अब्बड़ धुकुर-पुकुर होवत रिहिस फेर टिन-टिप्पा छाके चौमासा ला बुलकाये रिहिन। अब तो बखरी के भाड़ी ला  बनाये ला लागही, कुरिया ला सिरजाये ला लागही।

लच्छन गुनत हाबे।

"बाबू !  स्कूल फीस मंगाए हावय गुरुजी हा। देबे गा आज आखिरी तारीख आय।''

लच्छन के बड़का टूरा किहिस। संसो अउ सुरता ले उबरिस लच्छन हा। नान्हे टूरी घला आगे अब। वहुँ केहे लागिस फीस बर।

लच्छन ला संसो होगे। पाछू दरी मरखण्डा बछवा ला बेच के फीस जमा करे रिहिन। अब का करही......?

लिम्बू अथान संग बासी खावत हाबे लच्छन हा।  गोसाइन देवकी घला तियार होवत हाबे। ड्यूटी जाये बर- मिस्त्री रेजा बुता के डयूटी आय। चौमासा गरमी सर्दी कभु नागा नइ करे दुनो कोई शहर कमाये ला जाये बर। लच्छन अउ देवकी के कमई मा घर चलथे अउ दाई के ईलाज होवत हाबे। खार के खेत तो खाये के पुरती हो जाथे। 

लइका मन फेर पदोये लागिस।

"देना बाबू ! पइसा।''

"हांव बेटा-बेटी हो ! पइसा मिल जाही। अभिन अपन ददा ला तंग झन करो। काली ठेकेदार ला माँग के लानहु पइसा ला। तब तुमन ला दे दिहु।''

लच्छन के गोसाइन किहिस गोसाइया ला मुक्का देख के। लइका मन मान गे।

"सिरतोन देवकी ! कभु जी अइसे लागथे कोनो जादूगर रहितेंव ते घर मा पइसा छाप लेतेंव, सड़क तीर के जम्मो बम्बूर रुख ला पइसा के रुख बना देतेंव- कोनो गरीब आतिस अउ अपन जरूरत के पुरती लेग जातिस टोर के। कोनो कही जिनिस बर झन लुलवातिस। जम्मो कोई के दुख-पीरा मजबूरी ला हर लेतेंव अइसे लागथे ओ ! कभु अइसे लागथे कोनो सेठ साहूकार के नोट ले भरे गड्डी मिल जातिस मोला ते घर ला पक्का बना लेतेंव। दाई के ईलाज करवा लेतेंव। तोर बर गहना जेवर बनवातेंव अउ लइका मन ला अब्बड़ पढ़ातेंव-लिखातेंव।''

सायकिल ला पोछत किहिस लच्छन हा।

"कोन कहिथे तोला जादू-टोना नइ जाने अइसे। जदवाहा तो हाबस...?''

"का जदवाहा देवकी.....? में..... में...मेंहा कुछु नइ जानो भई ।''

लच्छन अब अकबकागे देवकी के गोठ सुनके। 

"सिरतोन ओ ....! कोन कहिथे मोला जदवाहा ..?''

लच्छन अब खखवात रिहिस।

"हांव ! जम्मो गॉंव के मन कहिथे तोला जदवाहा।

देवकी किहिस अउ मनेमन मा मुचकाये लागिस। टिफिन मा बासी जोर डारिस। तगाड़ी कैचा गोली टेप जम्मो के तियारी कर डारिस। लच्छन अब पछिना ला पोछे लागिस गमछा मा। 

"भलुक जदवाहा कहिथे फेर टोनहा तो नइ कहे ना देवकी गाँव के मन। कोनो ला अइसन कहना सुघ्घर नोहे ओ ....!''

लच्छन उदास होके संसो करत पूछिस।

"हा.....हा....जदवाहा तो हाबस तेहा ! तभे तो अपन जादू मा मोला फाँस डारेस।''

"अच्छा जी, कोनो कुछु नइ कहाय तेहा कहत हस।''

देवकी के गोठ ला सुनके किहिस लच्छन हा अउ दुनो कोई ससनभर हाँस डारिस एक दुसर ऊप्पर झुलके। हेंडिल मा झोला अरवाय हे अउ पाछू कोती देवकी लदाये हावय। लच्छन तरिया के चढ़ाव मा तनियाके सायकिल के पैडल ला मसकिस अउ अब मेन रोड मा आगे। अब शहर के रद्दा मा दउड़त हाबे सायकिल हा।

"फुलदाई के बेटा कहाँ गवागे हाबे जी ! पाँच बच्छर होगे सुनत हँव फेर आज ले नइ जानो मेंहा ओला।''

देवकी किहिस

"कोन जन ओ ! कहाँ चल दे हाबे ते ? छे बच्छर होगे अब आही तब आही कहिके बाट जोहत रहिथे। कोन जन जीयत हावय धुन मरगे हाबे ते कोनो सोर-संदेश घला नइ हाबे।

"जीयत रहितिस ते सोर-सन्देश तो मिलतिस ....? वहुँ हा काबर जातिस वो दिन शहर।''

"शहर नइ जाही तब कहाँ जाही ओ ...! दवई बिसाये बर तो गेये रिहिस। मइनखे ले मइनखे ला डर होगे हाबे तब का कर डारबे ? दू रंग के टोपी वाला के मार-कांट चलत रिहिस वो दिन। नानचुन गोठ अउ जी के काल होगे। चौक में झंडा लहराये बर झगरा मात गे। आने शहर ले गुंडा मन आके हुड़दंग मचाइस । अब्बड़ पुलिस बल रिहिस। तभो ले उपद्रवी मन ले सिधवा मन नइ बाचीस। अंधरा कनवा लुलवा खोरवा होगे कतको झन तब कतको झन के मौत घला होगे। कतको गुमशुदा होगे। फुलदाई हा भगवान राम के भक्तिन आवय अपन बेटा के हाथ मा जय श्रीराम गोदवाये रिहिस। सिरतोन का आय तेला नइ जानो फेर हाथ के गोदना हा जान ले डारिस अइसे कहिथे जानकार मन।''

लच्छन किहिस। देवकी के जी काँपगे। सिरतोन आज पहिली दरी शहर जाये बर जी डर्राये लागिस देवकी के। सायकिल ला ठाड़े कराइस अउ गोड़ ला सोझियाइस। उतरके झोला के बासी ला घला सोज करिस। लच्छन पछिना ला पोछिस अउ फेर सायकिल चलाये लागिस। थोकिन बाँचीस अब शहर के रिंग रोड हा। रेलवाही नाहक के लच्छन के कमाये के ठीहा हाबे। एक दू ठन ददरिया सुनावत सायकिल के पैडल ला मसकत हाबे अउ आगू बाढ़त हाबे। फेर ये का......? सायकिल ला अतार दिस। निहर के अल्था-कल्था के देखे लागिस नानचुन हैंड बैग परे हाबे साबुत। ऐती-ओती देखिस फेर कोनो नइ दिखिस। अब बैग ला उठा के चैन ला हेर के देखिस तब तो सिरतोन लच्छन के धड़कन बाढ़गे। अकबकासी लाग गे। हफरासी लाग गे। देवकी घला ठाड़ सुखागे। पूरा जिनगी भर खोंटहा सिक्का तक ला नइ पाये रिहिस अउ आज पाँच सौ अउ दू हजार के नोट ले भरे हैंड बैग ला पा डारिस लच्छन हा। तरतर-तरतर पछिना निकले लागिस। पछिना पोंछ के गड़गड़-गड़गड़ पी डारिस बॉटल भर पानी ला। 

"ये कइसन संजोग आय भगवान ! आजेच घर मा गोठियाये रेहेंव अउ सौहत तोर आसीस दिखगे। अतका पइसा मा मोर भसकहा घर ला सिरजा डारहूं। दाई के ईलाज करवा लुहुँ। लइका मन के स्कूल फीस जमा कर लुहुँ। गोसाइन ला गहना-जेवर पहिरा लुहुँ। फुलदाई के खाये पीये के बेवस्था घला कर डारहूं। खेत बिसा लुहुँ अतका पइसा मा तब हटर-हटर कमाये ला नइ लागे। का करो देवकी.... ?  सिरतोन भगवान देथे ते छप्पर फाड़ के देथे ओ। बता, बता देवकी का करव मेंहा अतका पइसा के  ? 

अब बइहाये लागिस लच्छन हा।

"कोनो लहुट के आही अउ पुछही तौन ला दे देबो। आने के  जिनिस बर आस नइ हाबे भलुक हमर ओगरत पछिना ऊप्पर बिसवास हाबे जी ! कमाके पढ़ाबो-लिखाबो लइका मन ला, दाई के ईलाज कराबोन पछिना ओगरा के तौन काम आही।''

छीन भर मा कतका मोह हो गे रिहिस लच्छन ला।  फेर देवकी आँखी उघार दिस। लच्छन घला सिधवा आय फेर पइसा ला देख के....?

अब आधा घंटा एक घंटा देख डारिस फेर कोनो नइ आइस पुछे बर। 

"अब का करव.....? कोनो मंदिर देवाला मा चढ़ा देन का .....? नही। कोनो अस्पताल ला दे देंव का....? नही । कोनो स्कूल मा दान करव का....? नही। दुसर  के जिनिस मा वाहवाही नइ मारन.....। अब थाना कोती जावत हाबे। 

थाना के मोहाटी मा खुसरिस डर्रावत। 

"कौन हो रे ......! क्या काम है.....?''

पुलिसवाला दबकावत किहिस। 

"क... क ...कुछु नही साहेब !''

उदुप ले पुलिस वाला ला चिन्ह डारिस लच्छन हा। पाछू दरी पान ठेला वाला ला धमकी-चमकी लगाके पइसा वसूले रिहिस। एक झन पुलिस वाला हा पटइल के केस ला दबाये बर घूस लेवत रिहिस। दुनो बइमान पुलिस वाला ला जान डारिस लच्छन हा। उल्टा पाँव लहुटगे। जी हाय लागिस। देवकी ला होटल मा बइठारे रिहिस, बलाइस। अब अपन ठीहा कोती चल दिस।

"का करन देवकी ये पइसा ला  ? अब्बड़ संसो होवत हाबे ओ !''

"मोरो बुध पतरागे।  का करन तिही बता.... ?'' लच्छन के गोठ सुनके किहिस देवकी हा।

"देवकी एक बात हावय....?''

"बता ।''

"ये पइसा ला बैंक मा जमा करवा देथन। फेर ?''

"का फेर .....? 

"हमर एकाउंट मा नही भलुक फुलदाई के बैंक एकाउंट मा।''

"काबर ?''

देवकी पूछिस लच्छन ला। 

"देख ओ ! फुलदाई अब्बड़ दुखयारी हाबे। बेटा सिरतोन मा नइ हाबे वोकर। मोटियारी रिहिस कमा लेवय ईटा पथरा के बुता। अब न कोनो बुता तियारे अउ न कोनो बुता कर सके। बेटा जीयत रहितिस, दुरिहा मा रहितिस तब पइसा पठौतिस महीना पुट। अउ नइ हाबे तब ......?''

"हांव मेंहा जान डारेव अब।''

देवकी मुचकावत किहिस। वृद्धावस्था पेंशन के पइसा निकलवाये बर गेये रिहिस अपन फुलदाई संग तब पोस्ट ऑफिस पासबुक ला धरे रिहिस। झोला मा हाबे अभिन तक। पाँच हजार ला बचाके जम्मो पइसा ला फुलदाई के  पोस्ट ऑफिस के खाता मा जाके जमा करवा दिस  लच्छन अउ देवकी हा।

कोस्टाहू लुगरा बिसाइस अउ गाँव लहुट गे दुनो कोई।

"फुलदाई !''

एकेच आरो ला सुनते साठ मोहाटी के कपाट उघर गे। 

"देख फुलदाई ! हमर देवर हा का पठोये हाबे तेन ला।''

"का पठोये हाबे ओ बहुरिया ! कहाँ हाबे मोर लइका हा। कब आही, कहाँ लुका गे हाबे। कोरी खइरखा सवाल कर डारिस। 

"आ जाही फुलदाई ! अभिन लुगरा पठोये हाबे पइसा पठोये हाबे। अपन बुता ला निपटा के वहुँ आ जाही। डाकिया कका हा बतावत रिहिस शहर मा अमराये रेहेंव अइसे। अब तो महीना पुट पाँच हजार पठोहु कहिके काहत रिहिस ओ ! ये महीना के पाँच हजार ला झोंक।''

लच्छन किहिस अउ पइसा ला दे दिस। डोकरी के आँखी ले आँसू के धार बोहाये लागिस।

"मेंहा कहाव सबरदिन सरपंच मन ला मोर बेटा कहँचो कमावत खात हाबे कहिके। अब पतियाही जम्मो कोई ।''

कभु हाँसत हाबे फुलदाई हा तब कभु रोवत हाबे।

"सुकारो  सुलोचना दुरपति रैपुरहीन केंवटिन सुनो ओ ! मोर बेटा हा मोर बर लुगरा पइसा पठोये हाबे।''

फुलदाई अब चिचियावत आरो करिस। रोवई हँसई जम्मो के रंग छा गे दाई सबितरी के चेहरा मा।

लच्छन अउ देवकी तो सजीवन बुटी के घूँट पीया दिस फुलदाई ला। चारो खूंट उछाह के सोर बगरगे अब। सिरतोन अतका उछाह कभु नइ देखे रिहिस डोकरी सबितरी ला। सिरतोन सबितरी के राम आगे आज, अइसन उछाह मा मगन हाबे फुलदाई हा। लच्छन अउ देवकी घला ये सुघ्घर लबारी मार के दुख ले उबार लिस अपन फुलदाई ला।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

पब जी"

 "पब जी"

सुकालू गली गली म चिल्लावत राहय भाव बड़गे ,भाव बड़गे। में पूछेंव काखर भाव बड़गे जी कहिथे टमाटर के भाव बड़गे।त ऐमा अतिक डिंडोरा पिटे के काय बात हे भाव सबके बड़ना  चाही।अऊ भाव बड़हाय म काखर हाथ हे? एक समे म टमाटर ल सिलपट्टी चटनी बर बिसान अब तो बिन टमाटर के सब्जी नरी म नई लिलाय।तो भाव बड़ना सुभाविक हे।अऊ भाव बड़गे त खुशी मनाना चाही।तुही मन तो कथो किसान के आय दुगुना होना चाही।तेखरे सेती कहिथे मनखे दुसर के दुख ले खुशी अऊ खुशी ल देख के दुखी होथे।जेन दिन दस के तीन चार किलो नपाथो त बारी वाला मन के दुख पीरा नी जनाय। आज कल के मनखे मन बड़ इंटेलिजेंट होथे ,वेतन बाढ़े, महंगाई भत्ता बाढ़े, फेर मंहगाई नी बड़ना चाही।

सुकालू भड़क गे नी चिल्लाबो एमा सरकार के हाथ हे। में कहेंव हव भाई नवा संसद भवन ल टमाटर,प्याज,अदरक लगाय बर बनाय हे।इंहा अवईया जवईया मन ट्रेक्टर म जोतही,निंदही,कोड़ही अऊ तुहर गरिबी ल भगाही‌।सुकालू कथे हमर ताकत ‌ देखे नई हस हम सरकार ल हिला देबो टमाटर सौ,अदरक चार,सौ? में कहेव सुकालू  तै खूदे हालत हस अस्सी के पव्वा ल रोज अकेल्ला लगाथस तो मंहगाई नी जनाय।

         अस्सी के पव्वा,अऊ

        बीस      के    चखना

        कमा -कमाके हो गेहे

        सुवारी लईका ह पखना।

     सुकाल कथे तहू मन संज्ञान वाले समुह म सामिल होना चाही न। संज्ञान देखे बर कोनो अलग से चस्मा राहत हो ही न बड़े भाई।जेमे एक (हिस्सा) भाग दिखथे दूसर भाग नी दिखय,जईसे कनवा मन ल करिया चस्मा पहिराय ले पता घलो नी चलें के कदे आंखी ले देखथे। कतको झन तो  लऊठी धर के रेंगत रहिथे तो कतको झन दूसर के पीठ,हाथ ल धर के रेगथे।कईयो झन इशारा म चलथे।जईसे स्काउट म कथे,दांया मुड़,बांया मुड़,पिछे मुड़,आगे बड़। देश के कुटका,कुटका हो ही कही त तहूं ह बिज्जूल संज्ञान नी लेबे।हमर देश म कतको दुखियारी,दुखियारा हे फेर कोनो संज्ञान नई ले। संज्ञान घलो चेहरा मोहरा देख के बने राहत हो ही।कईयो झन कतको केस म जमानत ले के घुमत हे कतको झन,दारु,गांजा म सजा काटत हे।वाह रे समानता के अधिकार?सुकालू ल कहेंव अवईया चुनाव म तहूं ह पारटी बना लेबे अऊ नाम रख लेबे संज्ञान पारटी,अऊ सब ल बराबर अधिकार देबर लड़बे।बैनर म लिखवाबे -आंखी के अंधरा, नाम नयन सुख।

             सुकालू कहीं काम बुता नी करस जी का काम करबे भाई ठेलहा बेरोजगार घुमत हन। कोनो दुकान पानी नी धरतेस जी।आज कल आनी- बानी के दुकान आगे, चखना दुकान, टमाटर अदरक, मोहब्बत के दुकान। आज कल ऐकरे जादा चलन हे ये भाई। मोहब्बत म कोनो सीमा पार आथे, कोनो पार जाथे। कोनो एक के संग चार फिरी ला थे।शहर उही मन भाही जिंहा फिरी के मिलही मलाई। फेर मोहब्बत के दुकान मारकांट वाले जगा म खोलना मना हे। जब सबो ल मोहब्बत हो जाही त राजनीति कहां चल पाही।

       पब जी खेलत- खेलत

      प्यार      होगे        जी

      वो तो चार  लईका   ल

      धरके सीमा पार होगे जी।

           

                     फकीर प्रसाद साहू

                         "  फक्कड़ "

                        ग्राम -सुरगी

                        राजनांदगांव

Monday 24 July 2023

ताकत

 ताकत

              जम्मो झन एके संघरा खड़े रहिबो कहिके .. हमर देश के बड़का बड़का मुड़ी मन सकलाय लगिन । मोरो तिर कुछु बुता काम नइ रहिगे रिहिस । बइठे बइठे तरिया के पानी नइ पुरय .. मेहा तो अइसने टुटपुँजिया आँव ... । थोर बहुत पाय सकलाय के लालच म महूँ हा येकरे मन के संग म संघरे के इरादा कर डरेंव । मोला जनावत रिहिस के संघरा खड़े रेहे म बहुत फायदा होवत होही । येकरे मन के तिर म अमर गेंव । जम्मो झिन एक दूसर के हाथ ला किड़किड़ ले धरके खड़े रिहिन । मोला अपन संग म आगे हे सोंचत खुश होके ... मोरो हाथ ला किड़किड़ ले धर लिन । एके जगा खड़े खड़े बड़ बेर होगे । असकटाके पूछ पारेंव – काबर अइसन खड़ा होय हन भइया ?  बाजू वाला किथे – चुप रे .. नि जानस का ?  वहा तिर म जे कुर्सी दिखत हे .. तिही ला कबजियाय बर सकलाय खड़े हन । मोरो मुँहु बड़ खजवात रहय – ओमा तो मनसे बइठे दिखत हे .. । ओ किथे – तोला मनसे दिखत होही ... फेर ... चल छोंड़ ... उही ला घुचाना हे ...। मे फेर पूछेंव – बइठे हे तेला बइठे रहन दव ना जी ... ओकर बइठे म तुँहर का पिरावत हे तेमा । ओहा भड़कगे – हमर नि पिरावत हे ... तोला कतका दुख देवत हे तेला तैं का समझबे .. हम जानत हन .. । तोला झन पिराय कहिके हम मरत हन अऊ तैं हमीं ला सवाल करथस । थोरिक बेर म एके जगा खड़े .. गोड़ पिराये ला धर लिस – में उही तिर म माढ़े पिढ़हा म बइठे धरेंव । ओ मनखे हा मोला अपन बर माढ़े पिढ़हा म बइठन नइ दिस । मोर हाथ ईंच के मोला सोज खड़े करा दिस । 

               में सोंचेंव ... आगू कोति दिखत मनखे हा कुर्सी ला छोड़बे नइ करत हे .. येमन ओला कइसे पाहीं । में केहेंव – त चलव ना जी .. ओला कुर्सी ले उतारबो अऊ हमन बइठवो .. । मोर हाथ ला कस के चपकत एक झन कथे – उतारबो तो जरूर फेर तैं काबर फोकट चंदन बनके कुर्सी म बइठे के सपना देखत हस । में केहेंव – अरे .. मोला जनाकारी नइ रिहिस भइया के खड़े होवइया सबो बर नोहे कुर्सी हा कहिके । त आगू कोति बढ़हू तभे तो जी .. । आगू तनि बढ़े के कोशिस होय लगिस फेर एक इंच नइ हालिन । में देखत भर ले देखेंव तहन छटपटाके हाथ छोंड़ा के जाये के प्रयास करेंव । मोला छेंक लिन । मोर देखासिखि .. जवनहा हा मोर हाथ ला धरके कुर्सी डहर जाये बर छटपटाये लगिस । ओकर हाथ थमइया अऊ दूसर संगवारी मन ओला अइसे तिरिन के बपरा हा मुड़भसरा गिरगे । एक झन सियनहा हा सलाह दिस जम्मो झन एके संघरा गोड़ उचाबो  ... एक पाँव नि उसल पइस .. ओकर भतीजा हा तोलगी ला तिर दिस । अब ओकर एक हाथ हा तोलगी सम्हारे म लगगे । सबो के भाई भतीजा मन अपन अपन कका अऊ दीदी फुफु ला हुद कराये लगिस । हाथ थमइया मन के एकेक हाथ हा दूसर के गोड़ तक अमरे रहय तेकर सेती ... हाथ छोंड़ा के आगू डहर जा सकना सम्भव नइ रिहिस .. पिछु घुचे बर कोई रोड़ा अटका टटका नइ रिहिस । मोर मुँहु फेर खजवागे – जे हिम्मत करके आगू जावत हे तेला जावन दव ना जी .. । एक झन किथे – अइसन म तोर संग पाके .. उदुपले ओला अकेल्ला कुर्सी मिल जहि त ... हमन कहूँ के नइ रहिबो ... ।   

               मोर मन म एक ठन सवाल अइस । मं पूछेंव – तुमन अतेक झन ... कुर्सी एक ठिन .. के झिन बइठहू .. ? ओमन किथे – ओला उतारन तो दे ... तहन सोंचबो । में केहेंव – में उतार सकत हँव .. फेर तुम पहिली तै तो करव के कति ओमा बइठे के काबिल हे .. । काबिल शब्द सुन ओकर मनके नाड़ी जुड़ाय बर धर लिस । एक झन तोतरात बताय लगिस – हमर जवान बाबू ले काबिल कोन्हो हो सकत हे का ?  ठेठवार लउठी भाँजत आगे ... जवान तो हमू हन .. हम नइ बइठबो का ?  कुछ बेरा ये बइठही .. कुछ बेरा में ... ओकर पाछू कका ... दीदी ... फुफु .. डोकरा बबा ... अऊ बहिनजी ... ।  में पूछेंव –  एके परिवार अव का जी .. । बड़ लम्भा हे तुँहर परिवार हा .. । बाँटा खोंटा नइ होय हव का जी .. ?  पाछू लड़हू तो निही ? ओमन बतइन – बाँटा हो चुके हे जी .. फेर कुर्सी मिले के पाछू जे मिलही तेला आपस म अऊ बाँट लेबो । लड़े के कोई कारण नइहे बइहा ... काबर लड़बो । रिहिस बात परिवार के .. त सुन .. हमन अलग अलग जात के आवन .. फेर अभू एके म खावत हन । खड़े होय बर युनाइट हन बइहा .. बइठे तक कोशिस रइहि । में केहेंव – एक जगा म नानुक स्टूल मिले के पाछू ... ओमा बइठे बर सगे भाई मन के बीच म कतेक दिन ले झगरा चलिस ... आधा आधा दिन बइठे के गोठ उँकर महतारी हा करे रिहिस सुने हन ... फेर सगे भाई मनके बीच म तको अइसन सम्भव नइ होइस ।  अलग अलग पेट ले आय अलग अलग मन मानही .. ? 

               एक झिन मोर उपर भड़कगे – हमन अतेक युनाइट होके खड़े हन .. । तैं हा अइसन बोल के काबर मनभेद उपजात हस .. कुर्सी मिलन तो दे तब तोरो हिसाब करबो .. । मोरो ताकत ला सब जानत रिहिन .. देखे घला रिहिन .. फेर मोर इज्जत कभू नइ करिन .. । फेर मोर ताकत जामे के समय नि आय रिहिस तेकर सेती मोला कोन्हो कुछ नइ समझे । कुछ समे पाछू ... मोर हाथ म ताकत जामे के बेरा होगे । मोर अबड़ अकन हाथ बनगे । मोर गोड़ म शक्ति के संचार होगे ... जेन खड़े रिहिन तेन अऊ जेन बइठे रिहिन तेन .. सबो के पाँव मोर ताकत देख उसले लगिस । सब मोर डंडाशरण होके माफी उपर माफी मांगे लगिन । मोरो म बड़ बिचित्र गुण रिहिस ... जइसे मोर ताकत जामय तहन .. मोर सोंचे समझे के गुण खिरे लगे .. मेंहा जम्मो के सरी गलती ला भुला जाँव अऊ माफ कर देवँव । 

               में बीते सरी बात ला भुला गेंव । कुछ हाथ इँकर संग रहिगे .. कुछ ला बइठे मन लेगे । दुनों के बीच जंग शुरू होगे । जंग के बीच अपने कुनबा म ... भितरे भितर खँचका खनाय लगिस । कुर्सी तिर अमरे के पहिली कुछ मन भसरंगले उलंडगे । कुछ के माड़ी कोहनी म सबर दिन बर घाव गोंदर जनम धर डरिस .. । मोला एती ओती झन भागे सोचके .. मोर बर कतको जिनीस .. फोकट म लाने के बात ला .. कागज म फुदकियाके धरा दिन । महिना पाछू ... मोर ताकत अपने अपन सकलागे । बइठइया मन बइठ गिन । खड़े रहवइया मन ... गोलिया के मोला छेंक लिन । कुछ समे बर युद्ध विराम के घोषणा हो गिस । मोला बीच म मढ़ाके .. गोल गोल रानी इत्ता इत्ता पानी कहत .. मोर चारों डहर घूमे लगिन । में उँकर बीच ले कब निकलेंव .. कोन्हो ला पता नइ चलिस । मोला बीच म हाबे सोंच एमन गोल गोल घुमतेच रहँय । जेकर पीठ हा कुर्सी डहर होय .. तेला कुर्सी म विराजित मनखे हा .. अच्छा मनखे लगे लागय । फेर एती घूमय तहन ... कुर्सी धारी हा खराब दिखय । चार बछर अइसने चलिस । पाँचवा के आरो शुरू होगे । मोर खोज खबर शुरू होइस । कोंटा म कलेचुप भुँइया म पसरे बइठे रेहेंव ... मोला खोजत पहुँचइया के गनती बाढ़गे । मोला अपन संग म खड़े करके राखे के उदिम शुरू होगे । में खड़े हो गेंव तहन सब जान डरिन के एकर हाथ गोड़ म ताकत जामे के समे आगे .. । मोर आगू पिछू लुहुर टुपुर होय लगिन ।  

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन .. छुरा .

छत्तीसगढ़ी कहानी)*

 -


*"नइ कहें ये तब ला का होइस।काही मैं वोमन ले पाहू झन हो जाँव गंगा -असनान  बर।आज खास दिन आय। आज साही-असनान ये। वोमन बुड़की लेत तोर-हमर बर जरूर नाँव धरके बुड़की लिहीं। मितान कहही... हे गंगा मइया... ये बुड़की हर मोर मितान बर ये। मितानिन कहहीं.. ये बुड़की मोर मितानिन बर ये... ।अउ.. अउ... येती मैं... ?" मानसाय कहिस।*




                   *गति -मुक्ति*


              *(छत्तीसगढ़ी कहानी)*



             मानसाय अठ बोधराम दूनो बइठे- बदे मितान तो नहीं फेर वोकर से कोंहो जादा मितानी ला मनइया जीव। फेर समय के संग

सब्बो जिनिस म, लोहा कस जंग लग जाथे। वोमन के संबंध हर पहिली कस नई ये अब अपन कमावत हे, अपन खावत हें Iहफ्ता - पंद्रह दिन मा कोंहो जगहा ठेसा-टकरा गइन त दू पद गोठ बात निकल गय नहीं त अब कोई मतलब नइये काकरो से कोनो ला...।


*                   *               *              *


"अरे जावन दे न वोमन ल कुम्भ मेला देखे बर परायग राज...। अरे भई, जेकर रहही तेहर नई जाही का? हमरो रथिस त हमू मन जाथेन...।" मानसाय अपन परानी धरमिन ला किहिस जऊन हर अभीच्चे खोल कोती ला आके ये गोठ ला अपन गोसान मानसाय ला बताय रहिस के उन्कर मितान मन कुँभ मेला चल दिन।


          धरमिन कुछु नई कहिस फेर बहिरी ला घर के अभी-अभी बहराय घर ला फेर बाहरे लागिस;जाने- माने वोहर वो गोठ ला बाहर के

निकाले के कोसिस करत रहिस। फेर वोला अब ले घलो भाँय-भाँय लागत रहिस; काबर के कुम्भ मेला जाये के  तो वोहू मन के मन  रहिस अऊ अइसन नइये के मानसाय हर कोंहो लेढुवा -थेथवा ये जेहर अपन कुटुम-परिवार ल, बोधराम कस परयाग के दरसन करा के नइ लाने सकिही। असल गोठ रहय... पूछ... पूछारी के। अतकी चलत रहेन

अऊ चलत घलो हावन तव मितानन अउ मितानिन कोंहो एको पद

कम से कम... बात जीते बर घलो नइ कहिन के चला संग मा... कहिके। वोमन ये गोठ ला बरोबर जानत है के संग मा जाय ले मानसाय

अऊ वोकर परिवार हर, कभु काकरो बर बोझा नइ होवय, वोहर खुद आने के बोझा ला उठाये हे... तन, मन अऊ धन ले घलो ।


*                   *                  *                 *


          पहिली मानसाय घलो पूरा परिवार सहित कुंभ मेला देखे जाये के मन बना डारे रहिस...। बारा-बच्छर मा एक पईत तो होथे। अभी नइ जाय पाबे त अवइया आगु बारा बच्छर ले कोन जीयत हे के कोन मरत है, का पता? फेर मितान बोधराम के परिवार के पहिली जवई ल सुनके, वोकर मन हर थोरकुन खिन हो गये; काबर के दुनो परिवार के का... पूरा गाँव भर के पंडा तो वोईच्च महराज आय अऊ बोधराम हर ही काबर गाँव के कोंहो भी परयाग राज जाही तेहर वोकरेच्च डेरा मा जाके रहही।

"देखे... धरमिन.... देखे! मैं हर गुनत रहें के काल वोमन के घर जाके कुंभ असनान करे जाय के सझ मढ़ाबो... । अऊ एती वोमन कहिन न बोलिन... अऊ उदुप ले निकल गईन।" मानसाय धरमिन ला साखी देवत कहिस धरमिन घलो बाहिरी ला छोड़ के

वोकर तीर मा आगस, अऊ कहिस... "संग मा जाये बर कहथिन तब फिर पा के ले जाय बर लागथिस नीही हमन ला वोकरे सेथी नइ कहिन होही।"


        मानसाय धरमिन के गोठ ला सुनिस तब हाँस भरिस वोहर कहिस कछु नहीं अऊ उठके वो जगहा ला कोठा मा आ गय। कोठा

मा बंधाय गाय-बइला मन मा एकठन आनंद आ के समा गय काबर के मानसाय हर गाय गरू मन ला अब्बड़ मया करय आजो भी

कोठा मा जाके बारी-बारी ले वोहर गरूवा मन के घेंच ला समारे के सुरू कर देय रहिस।

मानसाय हर ये गाय -गरू मन के मंझ म आके अपन रिस-पित्त ल भुला जाय। आज घलो इहाँ आके वोला बने लागत रहिस। ये

पोटरू बछवा हर तो हाथ ला चाँटत चाबे कस कर दे रहिस।


           बोधराम परिवार ला कुंभ मेला गय आज पाँचवा दिन ये। कोन जनी वोती का होवत हे तउन ला फेर आज इहाँ तो पोठ अकरासी पानी गिरे हे। अकरासी पानी माने बिन मउसम बरसात.. करा.. पानी...धुल धक्कड़... आँधी तूफान...। पानी अतेक गिरे हे के लागत हे हफ्ता भर... नंगराही चलही अवार मा। दून बर तो पंद्रहा दिन ठीक रहही।


          चल हमर बर येही कासी -परयाग ये... धरमिन... कहत मानसाय अपन नाँगर -बइला ला लेके, खेत कोती निकल गय। मितान के

वेवहार अउ येती अकरासि पानी म, खेत ला जोते के लोभ दूनो के दूनो वोमन के कुंभ मेला जाये के जोम ला बिगाड़ दीन। धरमिन तो

पहिलीच ले ये मेला-ठेला के झेल-झमेला ल एको नइ भावे फेर कुंभ मेला हर नाचा -गाना वाले मेला तो होइस नही येहर तो गति -मुक्ति के परब ये कहिके वह वोहर तियार हो गय रहिस चला बने हरू लागिस हे... धरमिन मने मन मा कहत हाँस परिस।


    *               *              *              *             


       हफ्ता भर नाँगर के चले ले ये दे सबो खेत हर जोता गय अवार। दून तो कभू भी गड़ही। अभी तो धरती अतेक कुँवर हे के दू-चार

दिन अवार-जोत अउ हो सकत है।

"ये! अब अउ नाँगर-बइला ले के कहाँ जावत हव!"धरमिन अबक्क होके अपन गोसान कोती ला देखे लागिस, जउन हर आन दिन कस नाँगर अउ बईला ल लेके निकलत रहिस।

'मितान के कोसमाही डोली... उहें आबे कलेवा पानी पसिया लेके...।" मानसाय आँखी ला मिचकावत कहिस वोला।

" वोमन कहे हावें तुँहला?"

"नइ कहें ये तब ला का होइस।काही मैं वोमन ले पाहू झन हो जाँव गंगा -असनान  बर।आज खास दिन आय। आज साही-असनान ये। वोमन बुड़की लेत तोर-हमर बर जरूर नाँव धरके बुड़की लिहीं। मितान कहही... हे गंगा मइया... ये बुड़की हर मोर मितान बर ये। मितानिन कहहीं.. ये बुड़की मोर मितानिन बर ये... ।अउ.. अउ... येती मैं... ?" मानसाय कहिस।


           धरमिन उदित नरायन सुरूज भगवान के अंजोर ले दप-दप करत अपने गुसान के चेहरा ल देखिस फेर मुचकावत कहिस- "

चला अगुवावा मैं कलेवा धर के आतेच्च हों।"


*रामनाथ साहू*


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आस्था के अस्थि* (ब्यंग)

  *आस्था के अस्थि*

                                                (ब्यंग)

सतसंग अउ आस्था के असर ये रथे कि मनखे कम से कम नौं दिन नइते सावन भर वो सब ला छोड़ देय जेकर ले आस्था ला ठेस लगथे। बस ये परम्परा के पालन करत कतको जुग अउ पीढ़ी बुलक गे। फेर कतको ढीठ परम्परा के मनखे दोंदर भर बोज लेथे तब भक्ति करथें। तर्क बर अतका काफी के कि *भूखे भजन ना होई गोपाला* छाती पीट के रोये ले मरे हर नइ जीये फेर हाड़ा जब तक गंगा नइ नहाय घर मा शान्ति घलो नइ आय। बिचार के वेदना ला शांति करे बर ये करम नइ होइस माने सरग के दरवाजा के रहस्य भूत बँगला के रहस्य असन हो जथे। ढीठ पना मोरे एके झन के होतिस त महूँ मुँहूँ बाँध के रहि लेतेंव। आखिर नौं दिन अउ सावन भर के तो बात हे। फेर गणेश चिकन सेंटर अउ शंकर एग रोल वाले उपर तरस खाना परथे। महूँ कुछ दिन त्याग पत्र लिखित दे देहूं त वो शंकर के नानुक लइका दूध कइसे पीही।ओकर जोरा बर तो दुकान खोलेच बर परही।

         गाँव भर सरकार ले माँग करिन कि हमर गाॅव के सबले बड़का चउँक के नाम हमर राष्ट्रपिता के नाम मा होना चही। उही एक झन अइसे प्रतिभा आय जेकर फोटू सौ के नोट मा देख के समझ मा आ जथे कि ये कोन आय। धरना प्रदर्शन के बिना प्रजातंत्र वाले देश मा कुछू हासिल नइ होवय। गली पारा मिलके चक्का जाम करिन तब बापू के नाम मा चउँक होके आन लाइन जुड़ पाइस। आज मुहल्ला वाले मन ला लागत हे कि बापू हमरे पारा मा जनम लेय रिहिस। जब अतका बड़े महामानव के नाम मा चउँक बनगे तब जनता के प्रति सरकार के आस्था घलो जाग गे। बिना माँगे सँगे सँग ओहू काम  के सुभिता कर दिस जेकर बर लोगन ला चार कोस दुरिहा जाना परे। बापू के चउँक मा सरकारी ठेका के फीता काट डरिन। जेकर बर हाँफत कुदत चार कोस जाना परे आज दुवारी मा मिलत हे। ओकर समर्थन मुल्य के बढोतरी मा कोनो ला आपत्ति नइये। आज वो सबो मनखे मन इही आसिस देवत हे कि सरकार तोर कुरसी सदा साबूत रहे। अतका बड़े उपकार करे हवस वोकर बर हमर एक वोट अभी ले तोर नाँव मा तय हे। श्रद्धा अउ आस्था ले भरे कोनों मनखे संझा बेरा गाँधी चउँक जावत हवँ कथे ओतके मा समझ आ जथे कि ये पवित्र सदन मा सामिल होके आस्था के श्रद्धांजलि देय बर जाबत हे कहिके। अइसन भतीजा ला पाव अकन लाने के बिगारी तो करवा ही सकथस।

               मन अउ आत्मा ला मार के तो सदा दिन जीयत हवन। जेन सुख के आसा करथन वो तो मोहाटी ले लहुट जथे। आवक अतका नइये कि मन मुताबिक सुख सुविधा भोग सकन। फेर हैसियत के हिसाब ले गाँधी चउँक जाय बर नइ छोड़ सकन। ये पँदरा दिन के पाबंदी मा आस्था के अस्थि उजरा जातिस तब मोहाटी घलो नइ खुंदातिस। कंजूस के धन ला किरवा खाथे कथे। गाँठी मुँठी धर के राखे ले न तन सुख पाय न मन। सब ला इँहचे छोड़ के जाना हे त जीयत भर जौन मन करे कर ले मुँहूँ जेन माँगे गोंज दे। संसारी सुख के आनंद ये बिचारा जीभ घलो नइ ले पाही तब दस इन्द्री मे एक इन्द्री मरत ले कोसत रही कि वोकर रसा चाँटे के सुख नइ मिलिस कहिके। मन मार के जीये ले मन भर मजा उड़ा के मर।

                    माथा टेक घोलँड के पाँव  पर नाक रगड़ चरन धो के पी। नीयत तो एके रथे कि कुछ हासिल हो जाय। सवा रुपिया के परसाद चढाये बर पाँच सौ के लुगरा अउ रंग रोगन माला मेकप  लगा के मंदिर जाय ले भगवान समझ जथे कि येला जतका देना रिहिस वोकर ले जादा देवागे कहिके। फेर भगवान घलो मुँहूँ बाँध लेथे कि वो हाना के का होही जेमा केहे हे *भरे ला भरे अउ जुच्छा ला ढरकाय*। असल मा भेद भाव इँहचे ले इँकरे मन ले शुरू होय हावे। बाँट बिराज के देय के नीयत तो भगवान के घलो नइये। हम फोकट पटकू पहिर के घंटा हलात रथन हमरो सुन ले बिधाता कहिके। फेर भाग मा पहिली ले तय हे ओकर का अगोरा अउ का के आसा। बस आस्था बने रहय। एक झन कहि दिस कि देख रे बाबू *कुछ करनी कुछ करम गति, कुछ पुरबल के बात। राई घटे ना तिल बढ़े लिखे छठी के रात*। जे होना हे पहिली ले तय हे तब उपराहा के झन सोच। राजा घर राजा जनम लेथे परजा घर परजा हर। इही भगवान मन घलो जनम धरिन त बड़हर राज घराना मा। हमर राज के राजा मन गरीब हरिजन आदिवासी घर के खाना खा लेथे। गरीब सँग मितानी कर लेथे। फेर राजा बने के लाईक कभू बनन नइ देय। ना अपन सही खाये लाईक बनाय।

               जीयत भर दार नून बर पूछ लेथे तेकर ले मितानी हो सकथे। दीया बाती के मितानी बुझाय के बाद घलो बने रथे। जरहा बाती लटकेच रथे। *प्रीति करे ते अइसे करे जइसे दीया कपास*। इहाँ मरत ले मितानी निभाय बर हैसियत के तेल तमड़े जाथे। फोकट के नून अउ दू रुपिया किलो के चाँउर बर गरीबी रेखा के कारड बनाये बर परथे। चुनई बखत सरपंच उपर श्रद्धा राखे होबे त कारड जल्दी बन जही। नइते गोल्लर के पिछोत बाखा मा तिरसुल दाग के चिनहा पारे रथे ओइसने चिनहा पार के राखथे कि चुनाव बखत काकर बैनर ला छानी मा फहराय रेहे तेला। हमर सलाह ये रथे कि मन के दोगला पना ला ढाँक अउ जीयत भर सँग देय के जबान दे। आखिर जबान ही तो देना हे। ओहू बिना हर्रा फिटकरी के। जबान के सच्चाई अधर मा तो रथे फेर एक दूसर बर आस्था तो बने रथे। अउ फेर मुरदा उठके नइ पूछे कि कतका तीखा ओढाएव या कि कतका झन पँचलकड़िया डारेव। आस्था फकत आध्यात्म के घट भर मा नइ हो सके। हम अपन घर ले देख सकथन। ठूठी बाहरी नइते सूपा मा गोड़ लग जाय तब पाँव परके तिरिया देवन। अब जनम दूवइया दाई ददा ला लात मारके अलग डेहरी नइते वृद्ध आश्रम मा तिरियाय के नवा रिवाज अवतर ले डरे हे। बेटा बहू डोकरा ला जल्दी मरके कउँवा देव बने के बिनती बिनोत रथे। वो भुला जथे कि इही पेड़ के मजबूती ले हमर असन डारा पाना हरियर हावन। बहू मन ला बेटी अनगढ कवि मन अपन कविता मा बताथे। सच के दुनिया अलग हे। परछो लेय बर हे त बेटा के नौकरी भरोसा शहर मा राज करइया बहू ला चार महिना गाँव मा दाई ददा के सेवा बर छोड़ दे। परोस मा भावुक कवि रहत होही वो संयुक्त परिवार के वेदना ला आँसू बोहा बोहा के लिखही।

                 अपन हाथ के खाय मारे पर के परोसे मा हिता जही त आत्म संताप के झेल मा कतका दिन जी पाही। जिनगी ला चार दिन के कहि देय गेहे। पाँचवा दिन के कोनो प्रयोजन ही नइये। काबर कि चार पहर चार घड़ी चार जुग चार बेद चार संगी अउ फेर आखिर मा चार कंधा। कभू पाँचवा के योगदान सपलीमेंट्री के रूप मा घलो नई हो पाईस। हम चार पईसा धरके चार धाम किंजरत हन। जिंहा चार पईसा सिरागे उँहिचे सबो श्रद्धा आस्था सिरा जथे। जब चार पईसा के बैसाखी घलो छुटगे वो दिन आस्था के देंह मा माँस झूलत मिलथे। बस अस्थि टँगाय दिखथे। दीया सबके डेहरी मा बरथे। बाहरी सबो के अँगना मा लगथे। फेर लछमी घलो टाइल्स लगे अँगना अउ फिनाइल के पोछा वाले घर मा जाथे। झिल्ली खाके गोबर देथे ते गाय के गोबर मा लिपाय अँगना मा फकत भिनभिनात माछी खुसर सकथे।

                    ये धरती मा मनखे जोनी ला बिना काम बिना मोल के सबले बेकार कहि दिस। तभे तो दोहा लिखे हे *पशु तन के पनही बने नर तन बने न कोय*। मरे मा तो अइसे भी कोनो काम के नइये। जीयत भर स्वारथ लोभ मोह ईर्ष्या द्वेष कपट मा जीथे। अउ कतको झन तो मर के घलो पेरत रथे। दिखावा के श्रद्धा आस्था विश्वास के नाँव मा ठग करने वाला खुदे कतका ठगाथे गम नइ पाय। पालकी चढ़ना हे त काकरो पीठ मा पाँव मड़ाबे तब चढ़े पाबे। इही रिवाज के दर्शन हर दर्शन शास्त्र के मूल हो सकथे। जे पीठ मा पाँव रखत हे वो पेट मा लात मारे बर नइ छोड़े। आज के समे मा इही नियति आय। माया उपर मोह श्रद्धा आस्था जगत के सार आय। माया जादा सकेलागे त वोकर सिराना बनाके सूत। नइते स्वीस बैंक मा खाता खोलवा सकथस। अब कागजी माया उपर आस्था कम होवत जावत हे। वो एकर सेती कि कते दिन सरकार फरमान जारी कर दिही कि दू हजार के गुलाबी माया चलन ले बाहिर हो जही। अउ हो घलो गे। जेकर तिर नहाय के बाद निचोय बर कुछू नइ हे वोमन बड़ खुश रिहिन कि अब हमर बिरादरी के अबादी बाढ़ही कहिके। फेर छितका कुरिया हर बँगला हवेली के पार नइ पा सके।

                 हरिद्वार मा हरि के दर्शन अउ परसाद बर रेट सूची टँगे मिलथे। सवा रुपिया मा नरियर के खोटली। सौ मा भभूति अउ हजार पाँच हजार मा तिर ले दरसन के सँग पुड़िया बँधे परसाद पाबे। तभो ले मनखे आस्था हिन नइये। पुजारी हाथ के चुटकी अकन भभूत मा सवा किलो लाईचीदाना मा सान के गाँव भर ला बाँटके तिरथ दरसन करा देथे। गाँव के तरिया पार के एकलौता मंदिर गाँव भर ला जोड़ बाँध के राखे रिहिस। आज गली गली मा मंदिर जे हर गांव ला पारा पारा मा बाँट दिस। फेर आस्था ला बढ़ चढ़ के देखाय बर दूसर पारा के मुरती ले अपन पारा के ला बड़का रखना परथे। जगराता के ठेका पंडाल वाले भर के नइ रहय। योगदान सबके रहना चाही। इही कारन हे कि पोंगा माईक के मुँहूँ चारो दिसा मा रखके चौबीसों घंटा भक्ति रस बोहाना परथे। गणिका आजामिल अउ सदन कसाई ला भगवान दरसन देखा दिस। रैदास के कोटना मा गंगा पहुंच गे। सबरी के झाला मा राम जी पहुंचगे। हम श्रद्धा अउ आस्था मा बूड़के डी जे बाजा बजा बजा के नाचत हन कि कभू ते हमरो दरसन हो जाय। इँकर डी जे नाचा बाजा ला देख के हाथ जोडके मोला कहना परथे कि *स्वामी मँय मूरख तुम ज्ञानी*।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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महेंद्र बघेल:

 आस्था के अस्थि ह समाज म बगरे सामाजिक,धार्मिक अउ राजनीतिक विसंगति उपर करारा व्यंग हे। कन्हो भी क्षेत्र के विसंगति होय आपके पैनी निगाह ले वोहा नइ बाच सके। आस्था के नाम म उन्माद आज के नवा संस्कार बनत जात हे, पढ़े लिखे आदमी मन संयुक्त परिवार के महत्तम ल भुलावत जात हे, बर-बिहाव होइस तहा बेटा-बहू ल दाई-ददा के बोली -बचन ह नइ सुहाय। भौतिक सुख सुविधा के मायाजाल ह अपन डेना ल दिन दूनी रात चौगुनी फैलावत हे। जेकर ले परिवार अउ समाज के ताना-बाना ह लिल्हर परत जात हे। का दूसर ल कबे एकर बर हम सब जुम्मेवार हन। आप ह इही तमाम विसंगति उपर बड़ बेबाकी ले कलम चलाके समाज के मुंदाय ऑंखी ल उघारे के जतन करत हव।

शानदार भाषा शैली ह जानदार अउ असरदार हे, बीच-बीच म हाना के सटीक उपयोग सन्दर्भ ल प्राणवान बनात हे। धरम के नाम म आम-आदमी ह खुद ल लुटवाके अपन आप ल धन्य महसूस करत हे,तब येकर ले बढ़के समाज के अउ का विसंगति हो सकथे। इही सब ल देखके एक कलमकार के मन ह अंदर ले कचोटथे तब एक सिद्धहस्त कलमकार ल समाजिक दायित्व निभाय बर आस्था के अस्थि जइसे व्यंग्य ल समाज के बीच परोसना पड़थे। ये उदीम बर आपला बहुत बहुत बधाई।       आपके कलम अइसने चलत रहय। कलम के जै हो 🙏🙏🙏

Thursday 20 July 2023

भाव बढ़िस बंगाला के*

 *भाव बढ़िस बंगाला के*


           भोरहा मा झन रबे बाबूजी समय आथे न तब घुरवा के दिन घलो बहुर जथे। काली तक मोला कोनों सोजबाय पूछत नइ रिहिस। आज मोर नाँव लेके खीसा मा जड़कला अमावत हे। खीसा मा हाथ डारत हाथ काँपत हे। काबर कि आज मँय हर मूँड़ ऊँचा करके चलत हवँ। भले मोर ठाठ बाठ ठसन कतको दिन बर रहय। फेर मोला मँउका मिले हे तब तो अँटियावत रेंगबेच करहूं। मोला अइसे लागत हे कि कइयो साल बाद मोर अवकात ला जनता जानिन हे। अरे भाई ये बात ला मँय हर निहीं। वो बजार के बंगाला माने टमाटर उर्फ पताल हर कहत हे। ओकर कारन अतके हे कि हुरहा कुछ दिन ले बंगाला के भाव सब साग भाजी ले जादा हो गेहे। इँहा तक कि अस्सी नब्बे के तीर चलत हे।

             ओकर ठसन ला देख के चेंच भाजी जेकर तारी बंगाला सँग कभू पटबे नइ करिस। ताना मारत कहत रहय। मेंछरा ले रे बंगाला दुवे चारे दिन मेंछराले। आगू के दुकान ले गोंदली कहे मा लगगे---- तोर हश्र हाल ला जानत हन बंगाला। अभी चार महिना पहिली रायगढ़ पत्थलगाँव वाले मन तोला सड़क के बाजू मा कइसे घोंडाय रिहिस। जे किसान मन तोला पालिन पोसिन ओकरो मया नइ मिलिस भरे खेत मा टेकटर चला के रउँदे रिहिन। अउ तँय घर के रेहेन घाट के। ये तो सरकार के नाइन्साफी के सेती हम बैपारी मनके कालाबाजारी जमाखोरी ले बोचक के सफेद बजार मा फटेहाल डालर के भाव मा जावत रथन। बंगाला कथे - - - - कभू काल आज मोर भाव उपर होइस ते सबके आँखी गड़त हे। आज मँय रोज बजार अखबार अउ मनखे के जबान मा खुसरे हवँ त सब जलन मरत हव। जेन दिन मोर हाल सरहा भाजी के लाइक नइ रिहिस, दस रुपिया के चार अउ पाँच किलो रेहेंव तब कोनो मोर तीर मोर आँसू पोछे बर नइ आयेव। हारे नेता के तीर मा मनखे तो का माछी नइ झूमे अइसे मोर लाल रिहिस। कोनो उजबक मन मंच मा फेंके बर सरहा के जगा टाटक ला फेंके। तब मँय अपन तकदीर मा आँसू बोहावत खुद ला कोसवँ। तब मोर हाल पूछे बर कोनों नइ आयेव। फेर आज मोर सौभाग्य हे कि तुंहर मन ले उँचहा जगा मा बइठे हवँ।

     ताना मारे के मिले मँउका ला कड़हा भाँटा गँवाना नइ चाहत रिहिस। कथे-----अतको ऊँचा का काम के जेला देखे के मन नइ करे। मुँहूँ अँइठत गोंदली ला देखके बंगाला कथे----जादा भाव खाना छोड़दे गोंदली। जतका आदर मान सम्मान मनखे समाज मा मोर हे ओतके तोर हे। फेर तैं कहूँ जमाखोरी मुनाफाखोर बैपारी के हाथ लगबे तब तोला जबरन ऊँचा करे जाही। एकर ले साफ हे कि तोर खुद के कुछू औकात नइये। सरत परे रथस तब रेंगइया मुँहूँ तोप के रेंगथे। मोर अपन पहिचान हे। चाहे मँय दस रुपिया किलो रहवँ, दस के चार रहवँ, या फेर सौ रुपिया के। मोर पहिचान अउ स्वाभिमान ला तँय नइ गिरा सकस। मोर उमर भले कमती रथे  चरदिनिया रथे। फेर कोनों बनिया के गोदाम मा कैद होके नइ रहवँ। हम चलत फिरत ये दुनियादारी के बजार ला देखत रथन। अउ वो तोर बाजू मा टेंड़गा घेंच करके  बइठे देखत आलू मोर सँग का गोठियाही। जइसे बिना गठबंधन के सरकार नइ चले, उही किसम के बिना काकरो ले गठबंधन के ओकर साँस नइ चले। मँय मानथ हवँ कि चाल चलन सुभाव अउ व्यक्तित्व अटल आडवानी गाँधी मोदी असन हे। फेर ओहू अकेला सरकार चलाय मा सामर्थ नइये। हम हारबो तभो बहुमत मा रबो। निर्दली रबो तभो टक्कर मा रबो। एकरे सेती कथों आलू अपनो दिन ला गिन।हम छेल्ला रहने वाला आवन। राजनीतिक लफड़ा ले दूर। अउ तोर नाँव  लेके संसद असन मा हल्ला होवत रथे। पियाज जमाखोरी कालाबाजारी मा फँसगे कहिके। चिरकुट असन नेता मन धरना धरे बर जोमत रथे। हमर भाव कतको रहय। आम जनता के आँसू नइ गिरान। फेर तोर ला तैं जान काकर कुरसी गिराबे काकर आँसू बोहाबे अउ कतका झन के खीसा फुलोबे तेला। आज मोर खुशी के बेरा मा दाँत झन कटर।


 राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

अंग्रेजी के बुखार*

 *अंग्रेजी के बुखार*


आज जेन मनखे ला देख तेन ला अंग्रेजी के बुखार चढ़े हे।गोठियावत हे तेनो अंग्रेजी,धमकावत हे तेना अंग्रेजी,पहिरत ओढ़त हन तेनो अंग्रेजी अउ ते अउ संझौती बेरा में धड़कावत हे तेनो अंग्रेजी।माने मनखे ला अब देशी नी भावत हे तभे सोझ अंग्रेजी में झपावत हे।

वाह रे मनखे के चरित्तर।तइहा समय में खान-पान अतेक बढ़िया रिहिस हमर देश के कि मनखे सौ साल तक स्वस्थ मस्त नानी नतरा देख के परान तियागे।अब तो भरे जवानी में मनखे निपट जावत हे।लइका अनाथ हो जावत हे।मोमोज,चाऊमिन,बर्गर अउ पिज्जा के दुकान मन में लोगन के भीड़ देखके अचरित लागथे।सादा सर्वदा खान-पान ल छोड़ के अरबन चरबन खावत मनखे अपन स्वास्थ्य के सत्यानाश करत हे।

कलाकार, खिलाड़ी अउ नेता मन गिटपिट अंग्रेजी गोठियाव में गरब महसूस करथे।पहिरई ओढ़ई में आज के नवा पीढ़ी विदेशी पहिनावा के नकल करत हवै।

पढ़ाई लिखाई के मामला में घलो लोगन अपन लइका मन ला अंग्रेजी माध्यम में पढाय बर तरी ऊपर होवत रथे। इहां तक कि हमर छत्तीसगढ़ में शासन घलो अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोल डरिस कि गरीबहा मनखे मन घलो अपन लोग लइका ल अंग्रेजी माध्यम में पढ़ा सके।फेर का करबे ये स्कूल में गरीब मनखे के लइका कम पैसावाले मनखे मन के लइका मन ज्यादा पढ़थे।देखब में आथे कि अइसन मनखे मन फीस के पैसा बचाय बर अपन लइका मन ला नीजी अंग्रेजी स्कूल ले निकाल के सरकारी अंग्रेजी स्कूल में भर्ती करवा डरिन अउ गरीबहा मनखे के लइका मन ला ओतका लाभ नी मिलिस जतका मिलना रिहिस या शासन के जेन मंशा रिहिस वो पूरा होवत नइ दिखत हे।शिक्षा के बैपार मनमाने फलत फूलत हे।जे जतका पैसा लगात हे वतकी मनमाने कमात हे।पहिली पढ़े रेहेन विद्यार्थी ला सुख नहीं अउ सुखार्थी ला विद्या नहीं। आजकल सुखियार लइका के सुख सुविधा के पूरा ध्यान रखे जावत हे।नीजी स्कूल वाले मन एयरकंडीशन कक्षा के विज्ञापन देवत रथे।जेकर कना जतेक ज्यादा पैसा वो वतकी महंगा स्कूल में अपन लइका मन ला पढ़ावत हे।आजकल के देखावा मा जम्मो झपात हे।

अंग्रेजी विषय के उपयोगिता ला नकारे नइ जा सके।आजकल बहुत जरुरी है हवै।फेर अपन बोली भाखा ला घलो उचित सम्मान देना चाहिए।अंग्रेजी माध्यम में पढाय के भेंडि़या धसान घलो ठीक नोहय।


रीझे यादव

टेंगनाबासा(छुरा,)

भाव पल्लवन--

 🙏


भाव पल्लवन--



हाथी बर चांटी गजब     

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 पहाड़ जइसे भारी भरकम शरीर वाले हाथी बर एक ठन नानचुक चाँटी हा भारी पर जथे। अइसे देखे जाय ता गजराज के सामने चाँटी के का बिसात? हाथी हा हजारों  चाँटी ला अपन पाँव मा पल भर मा कुचर के ऊँकर नामो निशान मिटा सकथे। फेर माने गे हे के कहूँ हाथी के सोंड़ मा एके ठन चाँटी खुसर के वोकर कान मा पहुँच के चाब दिच ता हाथी के प्रान निकल जथे।एकरे सेती भले चाँटी हा  नानकुन होथे फेर हाथी हा वोला डर्रावत रहिथे। चाँटी ले बाँचे बर फूँक-फूँक के पाँव मढ़ाथे।वोहा अतका सावधानी रखथे के चाँटी नइ दिखत ये तभो पैरा, पान-पत्तउवा ,पेंड़ के डारा-पाना ला खाये के पहिली हला-डोला के झर्रा लेथे तभे खाथे। जेन पेंड़ मा चाँटी या फेर छोटे छोटे मछेर के डेरा होथे वोती वो जाबे नइ करय--जानबूझ के बाय नइ लागय।

 अइसनहे अति सुक्ष्म विषाणु मन जेन आँखी मा नइ दिखयँ तेनो मन भारी खतरनाक होथें। इन विषाणु मन अतका ताकतवर होथें के सबले चतुरा मनखें जे मन ज्ञान-विज्ञान मा भारी उन्नति कर डरे हें--मौत ले बाँचे बर का का दवई नइ बना डरे हें तेनो हजारों-लाखों मनखें ला बिमारी फइला के ये विषाणु मन मार डरथें। इँकर ले बँच के रहे मा भलाई होथे।

   इन पटतंर के सार बात ये हे के कोनो ला भी तुच्छ समझ के अहंकार करके वोकर अपमान नइ करना चाही। ये सृष्टि मा जतका भी चर-अचर जीव-जंतु अउ जिनिस हें सबके अपन-अपन महत्व हे।सबके कुछ न कुछ आन ले हटके खासियत होथे। संत कवि रहीम हा सिरतो कहे हें-- 

रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।

जहाँ काम आवै सुई,कहा करै तलवारि।

       कोनो ला भी धन,पद,बल,रूप ,ज्ञान आदि के अहंकार नइ करना चाही। ये सब चरदिनिया होथें। अहंकार मा परके दूसर ला तुच्छ समझ के वोकर अपमान नइ करना चाही। अहंकार हा पतन के कारण होथे।अंहकारी के मूँड़ एक न एक दिन नव के रहिथे।लंकापति ,दसकंधर रावण जइसे बलशाली जेकर रेंगे ले, कहे जाथे के धरती डोलय तेकरो अहंकार के कारण सर्वनाश होगे। वोहा बंदर भालू अउ दू राजकुमार मन ला तुच्छ समझिस फेर ऊँकरे हाथ मारे गेइस।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

हाय रे मोर फोटू ---------------

 हाय रे मोर फोटू

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'बादल' फोटू राखिए, फोटू बिन सब सून।

फोटू बिन अँउटत रथे, रोज्जे तन के खून।।

       फोटू रहना जरूरी हे। फोटू बिना अब कोनो काम नइ चल सकै। आदमी ले जादा इंम्पारटेंट वोकर फोटू होगे हे। बिना फोटू के कोनो सरकारी कागजात बनबेच नइ करै। बिना फोटू वाले कोनो भी सरकारी दस्तावेज हा रद्दी कागज के टुकड़ा समान हो जथे। ककरो जमानत लेना हे ता फोटू वाला पर्ची चाही--नइये ता जमानत होबे नइ करय,भले जमानत लेवइया हा साक्षात खड़े राहय--ये समे वोकर दू कौड़ी के मोल नइ राहय। कहूँ घूमे-फिरे ला गे हच ता फोटू वाला आई डी चाही भले आन के मा अपन फोटू चपकाके बने राहय---चल जही फेर सँउहे सामने खड़े आदमी नइ चलय।फोटू वाला आधार कार्ड नइये ता समझ ले वो आदमी अनाथ हे। फोटू एकर सेती अउ जरूरी होगे हे के भूल से भी कहूँ कोनो बड़े आदमी,नामी आदमी संग फोटू खिंचागे ता का कहना---जिनगी भर ये फोटू ला देखाके वाहवाही लूटे के काम आथे। फूल संग कीरा के तको मोल हो जथे। बड़े नेता,मंत्री-संतरी संग फोटू होगे ता अउ का पूछना--कतेक झन अइसने फोटू ला धरे धौंस जमा के वसूली करे के काम करथें।

    फोटू कतका कीमती होथे ये बात के पता तो कोनो संस्कार कार्यक्रम होथे ता पता चलथे।जन्म ले लेके मरघट्टी तक के यात्रा फोटू बिना व्यर्थ जइसे होगे हे।लइका पैदा होये पाँच मिनट नइ होये राहय दाई-ददा के स्टेटस मा चल दे रहिथे---फोटू देख देख के बधाई के मूसलाधार बरसा होये ला धर लेथे। अइसनहे अब तो कोनो मरत हे ता वोकर फोटू खिंचे के होड़ लग जथे। ये ला श्रद्धा के नाम देये जाथे। ये फोटू ला बड़े जान निकलवाके पूजा करबों कहिथें भले वो जिंयत रहिसे ता कोनो चिटको सेवा- सत्कार झन करे राहयँ।

     शादी बिहाव हा बिना फोटू के होबे नइ करय। मँगनी जँचनी के पहिली फोटू ला जाँचे जाथे।चेहरा फोटूजेनिक हाबय धन नहीं ते कहिके तब बात आगू बढ़थे।फोटू नइये ता का शादी? सबले पहिली जोरदार एलबम बर सनान फोटूग्राफर के इंतजाम करे जाथे। मँगनी-जचनी ले लेके ,भाँवर--डोला परघौनी तक फोटू के भरमार। पहिली वो समे जब फोटू के जमाना नइ रहिस तेन समे जिंकर बिहाव होये हे तेला का कहे जाय समझ ले बाहिर हे। अब तो बरतिया जाये के पहिली टूरा-टनका मन एती-वोती के इंतजाम के सँग नाचे के बेरा खच्चित रूप मा फोटू खिंचे के शर्त रखथें। सगा सोदर ला खाये ला भले मत दे फेर दुल्हा-दुल्हिन संग फोटू जरूर खिंचवा दे नहीं ते मूँह फूलत देर नइ लागय। शादी मा फोटू सेशन के होना जरूरी होगे हे।ये फोटो खिंचई के मारे भले हलाहल हो जय---गोधुलि बेरा के भाँवर भले दस बज्जी होजय--- ढ़ेड़हा-सुवासा भले उँघाये ले धर लय फेर फ्लेश चमकते राहय।

   कोनो भी आयोजन होवय वोमा फोटोग्राफी होना अइसे जरूरी होगे हे जइसे सब्जी बर नून। नइये ता सब सिट्ठा--एकदम निरस।सौभाग्य ले मंच मा चढ़े ला मिलगे---कुछ बोले ला मिलगे--ईनाम-सिनाम झोंके ला मिलगे त तो चाहे बारा उदीम करे ला भले पर जाय फेर फोटू खिंचानच चाही।आयोजक के का भरोसा --अपन हाथ जगन्नाथ।अपन खुद के मोबाइल मा सेल्फी लेके नहीं ते पहिली ले कोनो ल फोटू खिंचे बर सेट करके ये मौका ला भुनाये जाथे तभे तो सोशल मिडिया मा भुनभुनाये के आनंद आथे। दुर्भाग्य ले कहूँ मंच मा चढ़े के चान्स नइये त का होगे कार्यक्रम शुरु होये के पहिली या आखिरी मा जब मंच खाली हे तब तो बिना रोंक टोक खुद मंचासीन होके बेनर पोस्टर संग फोटू खिंचवायेच लेना चाही।भागती भूत के लंगोटी सहीं।येमा मिर्च मसाला डार के शान तो बघारेच जा सकथे।

समझदार आयोजक मन सब झन ला ,विशेष रूप मा ठनठन गोपाल दर्शक या स्रोता मन ला भुलवारे बर ग्रुप फोटू ग्राफी जरूर रखथें। हम तो भइया उही ला कब बबा मरै ,कब बरा भात खाये ला मिलय कस निचट जोहत रहिथन। ठीक ठाक आगे तभो अच्छा नइ अइच तभो अच्छा। मन ला तो संतोष मिल जथे। अइसे भी  अइसन ग्रुप फोटो मा ककरो फोटू ठीक कहाँ आथे? हम तो आजू बाजू वाले ला देख के टिकली जइसे अपन फोटू के पहिचान कर पाथन। 

   फोटू के मामला मा जब हम अपन ला जाँच परख के देखथन ता निच्चट भोकवा पाथन काबर के सेल्फी लेये ला नइ आवय अउ संकोच वश कोनो ला फोटू खींचे बर सेटिंग करे नइ सकवँ।कोनो दीनदयालु मन खुद होके खींच के व्हाट्सएप मा भेंज देथें ता वोकर चरण पखारे के मन होथे।

   फोटू के मामला मा हम निच्चट गरीब हन।कुछ दिन पहली एक ठो बड़का साहित्यिक समारोह मा सम्मान ग्रहण करे के अवसर मिलिच फेर का बताववँ इहाँ हमर फोटू ला गरहन धरलिच। जेला फोटू खींचे ला कहे रहेंव तेन हा बाद मा  माँगे मा हाथ झर्रा दिच। भारी दुख व्यक्त करत कहिस-- "स्वारी बंधु! नेताओं के आपा धापी में आपका पुरस्कार ग्रहण करते फोटो नहीं आ पाया। ये देखो मैनैं तो क्लीक किया था पर उसी समय कोई सामने आ गया और आप दब गये।" अब हम वोला का बतावन के ये जोर से झटका मा हमर हिरदे के मेन नस दब गे। वो समे निकले आत्मा के चित्कार--" हाय रे मोर फोटू"---आजो बेरा-कुबेरा भीतरे-भीतर गूँजत रहिथे। ईश्वर के किरपा ले लकवा मारे ले बाँच गेंव फेर जब-जब ककरो सम्मान होये वाला फोटू ला फेसबुक मा देखथँव ता आजो मोर आत्मा हा चिहर के चिल्ला डरथे----'हाय रे मोर फोटू।'


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

तुतारी चन्द्रहास साहू

 तुतारी

                                           चन्द्रहास साहू

                                         8120578897


      हा.. हा.. तो.. तो.. के  आरो के संग खेत जोतत हावय सियनहा हा । बइला मन घला आज अब्बड़ मेछराइस फेर सियनहा के हाथ के तुतारी हा कच्च ले बाखा म परे तब तरमरा के रेंगें। सियान के जी घला कउवागे आज। अगास ला देखे सादा करिया गुंगवा कस बादर हा रेंगत रहाय फेर भुइंया म नइ गिरीस । 

"चिरीरिरी फट्.....!''

अब्बड़ आरो संग गरजिस घुमरिस बादर हा फेर बूंद भर पानी नइ बरसिस । कभू अगास कोती ला कभू नांगर कोती ला देखे अउ नांगर के पड़की ला धर के कुंड म कुंड मिलाये परदेसी हा । फेर भुंइया मा बरोबर पानी दरपाये नइ हावय तब कइसे नांगर हा गड़ही ...? बइला हा घला तुतारी के डर म रेंगे , सामरथ करे। बइला लाहकगे । 

अब्बड़ बिनती करिस परदेसी हा गिर जा गंगा मइया गिर जा। फेर.. पानी नइ गिरिस। काया के पसीना हा गिरे लागिस तरतर - तरतर । परदेसी के नांगर फेर चभकगे । हला डोला के अटेसीस अउ फेर चमकाइस बइला ला। "हर्रे ..हर्र.. तता ... तता...त त....।''

बाखा म फेर तुतारी मारिस। बइला बमियागे। ताकत नस नस मा दउड़े लागिस जइसे  दस हाथी के बल समागे । दुनो बइला संघरा ताकत लगाइस जुड़ा मा... फेर नागर तो टस ले मस नइ होइस अतका सामरथ मा।  फेर जुड़ा हा सुलरागे,नोई टूटगे अउ बइला मन बारा हाथ आगू कोती दउड़े लागिस । परदेसी मुड़ी ला धर के बइठगे का करंव ? भगवान पानी के बेवसथा कहां ले करंव..? एक- एक पइसा ला जोर के बोर खोदवाये हव। पानी घला हावय फेर बिन बिजली अभिरथा होगे हाबे। अब्बड़ दउड़े भागेंव घला। कतको झन साहब मन आइस गिस जम्मो कोई ला तो पइसा देये हव फेर बोर मा बिजली कनेक्शन  नइ खिंचाइस। 

            परदेसी तरमराये लागिस का करंव मेंहा.. हफरगे । कुंदरा ले टूटहा साइकिल ला निकालिस अउ डंडिल मा बांस के कमचील बांध के दुनो चक्का मा हवा भरिस । परदेसी के आरो ला पाके कलवा कुकुर हा घला आगे अउ राख माटी मा घोण्डइया मारे लागिस । 

“ नानजात ”

बखानत नानकून ढ़ेला मा फेंक के मारिस परदेसी हा कुकुर ला । कु.कु... करत भागगे ओहा । लकड़ी के बोझा ला बोहो के आवत रिहिस परदेसी के गोसाइन दमयंतीन हा।

“कहां जावत हस, मार तरमिर. तरमिर.....? "

बोझा ला पटकत किहिस । अउ पसीना ला गुड़री मा पोछे लागिस ।

"जात हव उही डाहर .... तहू जाबे ते चल ।” 

परदेसी किहिस । गड़गड़- गड़गड़  एक लोटा पानी ला पियिस दमयंतीन हा अउ नानकून पोटरी मा कुछू ला धरत साइकिल के केरियल मा बइठगे ।

                       अब शहर हबरगे अउ शहर ले बिजली ऑफिस। अब्बड़ सइमो- सइमो करत रिहिस ऑफिस हा। ऑफिस के एक कोती बिगड़ाहा टासफारमर, तार केबल अउ दुसर कोती पावर हाऊस बड़का- बड़का बिजली खम्बा । संगमरमर लगे ऑफिस के डेरउठी ला जइसे खुंदिस कान ला ततेरे कस आरो आइस।

“फरस ला मइलाहा झन कर डोकरा ।”

चपरासी आए तमकत रिहिस । परदेसी सावचेती होगे।  पनही ला हेरके खनखोरी म चपक लिस अउ दुसर हाथ मा तुतारी ला धरे रिहिस । 

"बड़का साहेब ले भेंट करना हे बाबू ।"

परदेसी के गोठ ला सुनके चपरासी हा भभकत रिहिस। अंगरी देखा के बड़का साहब के कुरिया ला देखा दिस ।  

    “ राम राम साहेब”

परदेसी जोहार भजन करिस । गोटारन कस आँखी हा चश्मा ले देखिस अउ फेर फाइल मा गड़गे । 

"मइलाहा घोंघटाहा ओन्हा पहिरके आ जाथो कोन जन के दिन के नहाये नइ हावस ते..? पसीना के बस्सई छीः छीः...।"

साहब फुसफुसाइस अउ मुहूँ ला करू- करू करे लागिस । 

"स ..स.. साहेब मोर फारम  ?“

गोटारन कस आँखी वाला हा फेर देखिस दुनो  परानी ला अउ फेर फाइल मा आँखी गडि़या दिस । दुनो परानी भुइंया मा फसकराके बइठगे। आगू के गद्दा वाला खुरसी मे बइठे के सामरथ नइ करिस । 

“भागवत” 

साहब के आरो ला सुनके चपरासी आगे।

“बरा भजिया अउ चाहा लानबे  गरमा गरम जा।’’

” हव, जी सर ! "

चपरासी हुकारू दिस अउ ठाड़े रिहिस।

” दे दे पइसा ताहन तोर फारम ला देखहू ।"

साहब किहिस । परदेसी अउ गोसाइन एक दूसर ला देखे लागिस । सलूखा के खिसा ले चिपटी कस मुड़े पचास रूपिया ला दिस ।

“अतकी मा का होही डोकरा...!"

चपरासी मुचकावत किहिस

“पच्चीस पचास अउ दे दे। ”

गोटारन कस आँखी ला रमजत साहब किहिस अउ दमयंतीन हा पोलखा के खिसा ले पंदरा परत ले चिपटाये बीस रूपया ला हेर के दिस । 

“बिन पइसा के आ जाथो। ”

चपरासी हा फुसफुसावत किहिस अउ रेंग दिस । 

                   अब साहब के नजर हा दमयंतीन के उपर ठाढ़े होगे झुंझी चुंदी मुड़ी ,बजरहा खिनवा फुली चिरहा लुगरा अउ चिरहा पोलखा के ओ पार...। 

         टेबल मे परदेसी के फाइल माड़े रिहिस । बड़का-बड़का कागज नकसा खसरा बी वन । परदेसी झटकुन चिन्ह डारिस अपन अंगठा के चिन्हा अउ संरपच के ठप्पा ला। चश्मा ला उठा उठाके अपन आँखी ला एक- एक पन्ना मा गडि़याइस ,कभू करिया पेन मा,कभू लाल पेन मा कागजात मा चिन्हा लगाये लागिस अउ अपन गुड़गुड़ी वाला खुरसी ला आगू तिरत साहब हा कहिथे।

  ’’परदेसी तोर इस्टीमेट बने नइ  हे। टांसफारमर  ले तोर खेत हा सात पोल के दुरिहा हावय अउ ऐमा पांच पोल देखावत हे। ’’

  “कोन जन साहेब नाप जोख तो तुमन ला आथे हमन तो अड़हा आवन। ”

परदेसी किहिस। एखर आगू कभू नकसा खसरा बिगड़गे हावय कहे रिहिन आने साहब मन। तब कभू फारम मा सरपंच के दसकत नइ हे कहिके अब्बड़ दउड़ाये रिहिन आने साहब मन। कब बिजली लगही भगवान ..?

.परदेसी संसो करे लागिस । 

"तोर ले आगू वाला साहब ला चार हजार देये रेहेंव। ओखर आगू वाला ला तो पंद्रा सौ देये रेहेंव साहेब बछवा ला बेचके।" 

परदेसी अब हाथ जोड़ डारे रिहिस।

’’ये जस के बुता तोरे हाथ मा होही अइसे लागथे साहेब ! मोर बनौती बना दे । हाथ जोरत हव साहेब, मोर बनौती बना दे।’’ 

दमयंतीन घला हाथ जोर के किहिस । 

"बन तो जाही परदेसी फेर तोला खरचा करे ला परही पचीस तीस हजार।’’ 

साहेब हा जुड़ सांस लेवत किहिस अउ बरा भजिया ला झड़के लागिस । 

‘कहां ले लानहू साहेब ! अतका पइसा ला।''

परदेसी किहिस । साहेब के आँखी दमयंतीन के बांहा के पहुची मा जामगे । 

"तोर घरवाली हा बाहा मा पहिरे हावय ते का गहना आए परदेसी...? "

दमयंतीन बांहा  ला अचरा मा तोपे लागिस

“पहुची आए साहेब ।”  

सुघ्घर दिखत रिहिस पहुची हा। चांदी के चमकत जोखी भराये सांप कस सलमिल- सलमिल करत हे , सुघ्घर  फुल छप्पा अउ सोनार के कलाकारी घात सुघ्घर हे । 

"साहब मोर दाई हा चिन्हा देये हे। अब्बड़ मया करे साहेब। एक दिन मलेरिया के बुखार होइस अउ एके दिन मा ताला बेली होगे , पान परसाद घलो नइ खवा सकेन ।''

दमयंतीन ऐके सांस मा गोठियाइस। ओखर आँखी जोगनी कस बरिस अउ बुता घला गे। आँखी के कोर के आंसू ला पोछिस दमयंतीन हा । 

"एक ठन उदीम हावय परदेसी तोला पइसा नइ लागे ।''

साहेब अब दुसर रद्दा बताए लागिस।

“का साहेब ?’’ 

परदेसी अउ तीर मा जाके पुछिस। 

"सरकार हा एक ठन योजना बनाये हावय जेखर लाभ देवाहू अउ योजना कोती ले पइसा जमा हो जाही । तोला एको पइसा नइ लागे फेर ... ।"

साहब  काहत- काहत अतरगे । अब चपरासी भागवत चाहा लान डारे रिहिस। चाहा ला ढोक्कोम- ढोक्कोम पीये लागिस ।

"परदेसी मेंहा मोर घर मा छत्तीसगढ़ महतारी के मुरती बनवाथव ओहा तोर गोसाइन के पहुची ला पहिरही तब सुघ्घर लागही। सौहत छत्तीसगढ़ महतारी लागही। अब जमाना घलो बदलगे कोनो नारी परानी अइसन गहना जेवर नइ पहिरे ....।"

साहेब अपन चतुराई मा मुचकाये लागिस अउ दुनो परानी एक दुसर के चेहरा ला बोक खाए देखे लागिस । 

  ’’इनाम तो मांगत हव परदेसी , कतको किसान हा अंकाल मा मरत  हावय। मेंहा तोला बचाये के उदीम बतावत हांवव । तोर बोर मा बिजली अमरही तभे तो भक्कम पानी निकलही अउ अंकाल के मुहुँ ला नइ देखस ...। 

“ देख ले परदेसी तोर गोसाइन के बांहा के पहुची हा मोर घर मा पहुंचही तभे तोर खेत मा बिजली पहुंचही परदेसी इमान से।” 

साहेब हा किरिया  खाइस अउ पान घला । 

’’इमान से मेंहा घूस नइ लेवत हव ,ओ तो छत्तीसगढ़ महतारी के मुरती के सवांगा बर मांगत हव। "

साहब अउ आगू किहिस । 

परदेसी के आँखी मा उज्जर भविस दिखे लागिस । दमयंतीन घला अंकाल के परछो ले  निकले के रद्दा देखे लागिस अउ पहुची ला हेर के दे दिस । छाती म पथरा लदके सुल्हर डारिस पहुची ला । आँखी ले झर- झर आंसू आवत रिहिस। अपन पहेलात नोनी ला गवाइस तब के दुख अउ अब के दुख दुनो बरोबर रिहिस। कतको बड़का दुख आ जावय परदेसी ठाढ़े रहिथे पहार कस । कोनो आँधी धुंका झन आये अइसे । सिरतोन आज के धुंकी तो अधमरहा कर दिस दुनो कोई ला। साहब मुचकाये लागिस जइसे कुबेर के खजाना ला पोगरा डारिस अइसे । कोन जन  ओखर बोर के पानी कब बोहाही ते फेर दमयंतीन के आँखी ले पानी बोहाय लागिस । हाथ गोड़ टूटे कस लागिस । झिमझिमासी लागिस अउ परदेसी के खांध ला धरके थामिस । 

“ए एक महीना पाछू आके आरो कर लिहू।” 

साहब किहिस अउ खिड़की कोती ले पच्च ले पान के पीक ला थूकिस । 

चपरासी हा कोल्ड्रिक के गिलास धरके ठाढ़े रिहिस। साहब झोकिस। 

"लेवव तहू मन पी लेव कोल्ड्रिक।'' 

परदेसी अउ दमयंती दुनो कोई ला किहिस।

"न ...नही साहेब, हमन ला नइ सहे आनी बानी के जिनिस हा .., तूही मन पीयो....।''

परदेसी के अंतस मा अंगरा बरत रिहिस फेर जुड़ाके किहिस । 

साइकिल के मुठा मा सामरथ फबे लागिस। नस- नस मा लहू दउड़े लागिस। साइकिल उत्ता धुर्रा दउड़े लागिस । दमयंतीन केरियल मा बइठे रिहिस अउ पोटरी के फुटे चना ला खवावत गिस परदेसी ला । फुटे चना के संग डुरू चना ला मसक डारिस परदेसी हा अउ कभू-कभू तो गोटी- माटी ला घला खटरंग ले चाबिस। लीम के जुड़ छाव मा अतरके पानी पियिस अउ फेर रेंगे लागिस अपन रद्दा। पेट के भभकत आगी ला कतका बुताइस चना ते उही जाने फेर कोनो डाहर आथे जाथे तब अइसना चना ला धर लेथे दमयंतीन हा ।

             बटकी भर बासी अउ चुटकी भर नून के खवइया परदेसी हा कोनो जिनिस के लालच नइ करिस फेर अगास ला देखथे तब संसो हो जाथे । सावन भादो मा आगी सुलगत सुरूज देवता अउ अइलावत खेत के धान । पानी के मारे पियासे भुइंया अउ मरत मछरी कोतरी...। बटकी भर बासी के बेवस्था  कइसे होही भगवान.....? तहू ठगत हावस का लबरा बादर ...? बिजली वाले साहब कस लबरा । दू महीना होगे आज ले बिजली के दउहा नइ हावय,पइसा पहुची जम्मो गवागे । परदेसी बियाकुल होगे साइकिल ला निकालिस तुतारी ला धर के रेंग दिस शहर के रद्दा ... अकेला । 

            "कइसे साहेब मोर खेत मा बिजली कब लगही ...? अउ लगही कि नही वहू ला बता ...? परदेसी बिजली ऑफिस के बड़का साहब के कुरिया मा खुसरत किहिस।  ओखर आँखी मा लहू उतरे कस लाल रिहिस , चुन्दी छतराये , माथा मा लाल टीका अउ हाथ मा तुतारी चिरहा सलूखा अउ नानकुन पटका । कोठ मा टगाये भगवान  भोलेनाथ के रौद्र रूप देखे साहब हा तब परदेसी के बरन ला।

“ल लग जाही न परदेसी संसो झन कर ।” 

साहब डर्रावत किहिस।

"इही गोठ ला तो सुनत जोजन होगे साहेब ! फेर कब लगही ते ..? महू जानथव सुचना के अधिकार ,लोक सेवा गारंटी अधिनियम ला । जान डारेव तुहरे आफिस मा लगे सी0सी0 टी0वी0 केमरा के आगू मा मोर गोसाइन के पहुची ला नगाये हस तौन ला । सी0डी0 घला बनवा डारे हव इमानदार बाबू जेखर टरासफर करवाये हस तेखर ले मिलके।’’

परदेसी किहिस मेछा ला अइठत। 

    साहब थरथराये लागिस अउ टेबल के तरी मा कही ला खोजे के उदीम करिस ।

’’साहेब कतका लबारी मारथस तौन ला अब घला जान डारेंव । साहेब खेत जोतथन अउ बइला मेंछराए लागथे तब बाखा मा तुतारी परथे तब सोझिया जाथे ।"

परदेसी फेर किहिस ।

   परदेसी के हाथ के तुतारी ला देखे लागिस साहब हा डेढ़ दु हाथ के पातर लउठी अउ आगू कोती खिला लगे सुचकी ....। कच्च ले गड़े कस लागिस साहब ला अउ लाइनमेन ला बला के कागज मा दसकत करत बिजली खंभा तार अउ आने जिनिस ले भरे ट्रक ला पठोय बर किहिस परदेसी संग। टेबल मा माड़हे पहुची ला धर लिस परदेसी हा अपन गोसाइन के अउ गरेरा कस बाहर कोती आगे । 

  साहब हा पसीना पोछे लागिस अड़हा परदेसी हा अब सब ला जानथे .......फुसफुसाइस  अपने अपन ...तुतारी लागे सही कच्च ले गडि़स साहब के अब..।        

                     

                            

   चन्द्रहास साहू

  द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दा नगर धमतरी

जिला धमतरी (छ.ग.)

मो. नं 8120578897

भाव पल्लवन---


भाव पल्लवन---



न उधो के लेना न माधो के देना

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कतेक झन सियान मन अपन अनुभव के अधार  मा नवा पीढ़ी ला सीख देवत कहिथें के -- जिनगी मा सुखी रहना हे---खुशी चाही ता न उधो के लेना न माधो के देना वाले रसता मा चलना चाही मतलब ककरो पाँच-पँदरा मा नइ पड़ना चाही। कोनो दूसर से न तो सहायता लेना चाही ,न तो सहायता देना चाही। उन समझावत कहिथें के दूसर ले सहायता लेये मा वोकर अहसान तरी हमेशा दब के रहे ला परथे अउ दूसर के सहायता करे मा खुद ला नुकसान सहे ला परथे। पर के सहायता करबे वो हा न गुन के होवय न जस के उल्टा जेकर सहायता करबे तेने हा मौका मा धोखा दे देथे----उही हा  पीठ पीछू गारी देथे--चुगरी चारी करथे।अइसन लोगन ले दुखेच मिलथे।

     कोनो ल परशानी मा देखके पइसा उधारी दे देबे ता वो धन डूब जथे -- वापिस नइ मिले ला धरय। कर्जा लेये के समे मनखे हा गाय रूप एकदम सरू होथे --हाथ पाँव जोरत रहिथे अउ लहुटाये के बेरा शेर बरन हो जथे। पइसा वापिस माँगे मा  गुर्रा के हबके ला धर लेथे। मौका परे मा डंडा बजाये बर तइयार तको हो जथे।इहाँ तक के कहि देथे के --जा नइ देववँ, का कर लेबे ?

  सियान मन कथें के अइसनहे दू के झगड़ा मा बीच बँचाव करे बर नइ परना चाही काबर के अक्सर वो मन अपन रीस ला तिसरइया ऊपर उतारे ला धर लेथें। बीच बँचाव करइया भले मानुस ला फोकटे फोकट मार खाये ला पर जथे।अइसन आफत मोल लेये मा दुख अउ पछतावा के अलावा अउ कुछु हाथ नइ आवय। सुखी रहना हे ता ये सब ले दुरिहाके रहना चाही।

 फेर कुछ चिंतक मन के कहना हे के मनखे हा समाजिक प्राणी ये। वोला समाज में हिममिल के, एक-दूसर के काम आके --एक दूसर के सुख-दुख मा शामिल होके रहना चाही। ककरो ले मतलब नइ रखके अकलमुंडा कस जिये मा भला का खुशी--कहाँ के खुशी? असली खुशी तो कोनो दीन-दुखी ,जरूरतमंद के सहायता करे मा--सहयोग करे मा मिलथे। ठीक हे आन ले सहायता नइ लेना चाही फेर अइसना मनखे भला के झन हो सकथे?

अपने आप मा मगन रहिके जियें मा असमाजिक प्राणी बने के खतरा तको होथे। ये तो मनखे के सोच ऊपर रहिथे के वोला कइसन जिनगी जीना हे---कइसन व्यवहार करना हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

बड़े माटी के छोटे करजा*

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               *बड़े माटी के छोटे करजा*                       

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                        *(कहिनी)*



          मंझ अंगना म तुलसी- चौरा अउ अंवरा के पेड़ । नानपन   म महतारी के संग म  भाव - विभोर हो के  दुनों भई के पूजा -आंचा करइ । 



    ये पुन अउ महतारी के अशीष हर दुनों  भई ल बने फलिस।



          आज सरकार -द्वार म बड़े भई हर बड़े- सहाब अउ छोटे भई हर छोटे- सहाब हें।अपन -अपन जगहा म वोमन के बड़ नाम हे।काम -बुता म एकदम चोखट।बड़े भई हर तो  बड़े -बड़े इनाम - इकराम तक पाय हावे ।



         अँगना  म  अब न दई-ददा यें न अँवरा -चौरा ।बस माटी के काया माटी म मिलत..घर के चीन्हा- बूंदा भर दिखत हे।



         बड़े भई तो इहाँ ल निकलिस हे, तब येती ल लहुट के देखे के भी फुरसत नइ पाइस हे।हां, छोटे हर बच्छर म कम से कम एक पइत ,इहाँ आके ये माटी म जुवार भर भर ले बइठे रह जाथे।वोहर जादा से जादा बेर ये जगहा म रहना  चाहत हे.. अइसन लागथे वोला देखे के बाद ।



       राजधानी के एकदम पॉश कॉलोनी म बड़े भई हर दुनों भई बर बढ़िया वास्तु शास्त्र के  अनुसार पूर्वाभिमुख अउ गौमुखी जमीन के व्यवस्था कर देय हे। दुनों भई के आलीशान नवा डिज़ाइन  के बंगला खड़ा हो गय हे।



        बड़े भई के अतका म मन नइ माढे ये।ओहर अब तीर के आन दूसर शहर म एकठन अउ बंगला बनवाय के बारे म सोंचत हे। भइया  ..मोर बर अउ आन  झन कुछु करबे उँहा..।भेंट करे आय छोटे भई हर बड़े ल अपन फैसला सुनावत कहिस ।



      आज अपन जुन्ना गांव वाले जगहा म, छोटे भई के नावा घर  के गृह प्रवेश होवत हे । आलीशान... नावा डिज़ाइन के घर...तीर तखार के गंवईहा घर मन के मंझ म  रग बग  ल उबकत हे जइसन अगास म तारा- जोगनी बीच म चन्दा..!



       छोटकी हर नावा बने तुलसी -चौरा तीर म अंवरा के नानकुन पौधा ल रोपत हे।  फेर ये आगु के अतेक लम्बा -चौड़ा हॉल असन डिज़ाइन हर, शुरू के दिन ल ही काकरो समझ म नइ आवत ये ...!



"सरपंच कका..!गांव के कोई भी जात-सगा के बरतिया आहीं,तब ये जगह हर वो दुल्हा के स्वागत बर तइयार रहही।"छोटे भई कहिस,"अउ हमन ल लागही ये नानकुन कमरा हर, अगर आना- जाना होवत हे तब ।अउ ये पूरा  घर ल स्कूल-अस्पताल के मास्टर कर्मचारी मन अपन जान के उपयोग कर लें।किराया -भाड़ा  के रूप म बच्छर भर म, एमा एक पइत रंग पॉलिश ...सब ल जुर् -मिल  के कराय बर परही ।अउ येकर ल बड़े बात...ये चौरा अउ अंवरा म दिया बाती बारे बर लागही ।"



"जब तोला इहाँ खुर... रोप  के रहना ही नइ ये।तब तंय अतेक बड़े घर ल काबर बनवाय रे... बाबू !"सरपंच थोरकुन अचम्भा म पर गय रहिस ।



" कका, ये माटी के मोर उप्पर बड़ कर्जा हे।ये  माटी हर बड़े ये...बहुत बड़े ये ।  ये बड़े माटी के  बहुत बड़े कर्जा हे,मोर उप्पर ।"छोटे थोरकुन रुकिस,फेर अबगा धीरन्त सुर म कहिस,"ये बड़े माटी के एक ठन छोटे कर्जा ल उतारे भर के कोशिश ये येहर...अउ बस्स कुछु नहीं..।"


         छोटे हर सरपंच कका के गोड़ ल धर डारे रहिस ।



*रामनाथ साहू*


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1 जुलाई जनमदिन//

 

1 जुलाई जनमदिन//

छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति के जोखा करइया डाॅ. मन्तराम यादव

    छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति खातिर जबर बुता करइया डाॅ. मन्तराम जी यादव के पूरा जिनगी भर के जीवन-दर्शन अउ कारज ल देखथौं त मोर मुंह ले ये चार डांड़ अपनेच अपन निकल परथे-


बिन घिसाए लगय नहीं माथ म ककरो चंदन

न होवय पूरा एकर बिन 'भोले' के पूजा-वंदन

अइसनेच होथे जिनगी घलो महके खातिर

धरथे जे संघर्ष के रद्दा होथे वोकरे अभिनंदन


     गाँव देवरहटा (लोरमी) जिला मुंगेली के सियान बइहा राम जी यादव अउ महतारी बतसिया देवी के घर 1 जुलाई सन् 1951 के जनमे डाॅ. मन्तराम जी यादव बहुआयामी व्यक्तित्व के कर्मयोगी मनखे आय. मैं जेन किसम के लोगन ल पसंद करथौं, आगू के डांड़ म सुरता, सरेखा करत गिनथौं ठउका वइसने. मोर मानना हे- 'हम अपन कला-संस्कृति के उज्जर रूप के रखवारी करत वोकर बढ़ोत्तरी करे के उदिम करीन, त एकर बर सिरिफ कागज-कलम भर म लिखे ले जादा भुइयॉं म उतर के ठोसहा बुता करे बर लागही.' मोर ए मानक म डाॅ. मन्तराम  जी ठउका फिट बइठथें. उन कागज-कलम म जतका लिखीन, वोकर ले जादा मैदान म उतर के बुता करीन. चारों खुंट, चाहे सामाजिक बुता होय, सांस्कृतिक बुता होय या फेर जनजागृति के आने अउ कुछू बुता. उन सबोच म कर्मयोगी के भूमिका म भुइयॉं म भीड़े दिखीन.

    मैं जब दैनिक छत्तीसगढ़ के साप्ताहिक पत्रिका 'इतवारी अखबार' के संपादन कारज करत रेहेंव तभे ले उंकर संपादन म हर बछर छपइया पत्रिका 'रऊताही' के संग्रहणीय अंक मनला देखत अउ पढ़त रेहेंव. मन्तराम जी के अनन्य सहयोगी साहित्यकार कृष्ण कुमार भट्ट 'पथिक' जी के माध्यम ले उंकर जम्मो कारज अउ गतिविधि मन के जानकारी घलो मिलत राहय. फेर उंकर संग प्रत्यक्ष भेंट तब होइस, जब मैं शारीरिक अस्वस्थता के सेती घर म ही रहे लगेंव. उन वरिष्ठ साहित्यकार चेतन भारती जी संग खुद मोर ठीहा म पधारे रिहिन.

    उंकर संग मेल-भेंट अउ गोठबात ले मन-अंतस जुड़ाय कस लागिस. काबर ते आज अइसन निष्काम कर्मयोगी मनखे बिरले देखब म आथे, जेन बिना कोनो स्वारथ के अपन उदिम म सरलग भीड़े रहिथे. मन्तराम जी संग गोठबात म उंकर अउ कई रुचि मन के जानबा घलो होवत गिस. जइसे उन अपन निजी समाज, जेन एक किसम के परंपरा के रूप म बंधुआ प्रथा के अंग बने राहय, वोकर ले मुक्ति के अंजोर बगराईन, उनला बंधुआ प्रथा ले मुक्त कराइन. अंचल के पिछड़ा कहे जाने वाला लोगन ल एकफेंट करे खातिर सम्मेलन करवाईन, अपन जनमभूमि गाँव देवरहटा म सन् 1993 ले सरलग अहीर नृत्य अउ शौर्य प्रदर्शन के कारज इहाँ के प्रसिद्ध परब 'छेरछेरा' के दिन करवावतेच हें, एमा उन साहित्यिक अउ सांस्कृतिक प्रतिभा मन के हर बछर सम्मान घलो करथें. उन व्यक्तिगत रूप ले आध्यात्मिक परानी आयॅं, तेकर सेती कतकों किसम के धार्मिक आयोजन घलो करवातेच रहिथें.

    आज उंकर जनमदिन के बेरा म उंकरेच लिखे  ए चार डांड़ के सुरता करत उनला गाड़ा-गाड़ा बधाई संग शुभकामना पठोवत हौं, के उन अपन सोनहा अउ प्रेरणादायी जिनगी के शतक पूरा करॅंय-


काॅंटे ना हो राहों में

ताकत ना हो बाहों में

सपने ना हो आंखों में

तो क्या जाने जीने का मजा.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811


पल्लवन

 


भाव पल्लवन---


करनी दिखय मरनी के बेर

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जन्म अउ मृत्यु ला अटल सत्य कहे गे हे। जेकर जन्म होये हे वोकर मौत होके रइही। जे निर्माण होये हे वोकर विनाश होके रइथे।परिवर्तन ला प्रकृति के नियम कहे गे हे।जेन ये संसार मा आये हे वोला जायेच ला परथे। मौत ला ज्ञानी-अज्ञानी,गरीब-अमीर,कमजोर-बलवान कोनो भी नइ रोक सकै। लोहा के कोठरी मा कोनो ला मौत झन आये सकै सोच के धाँध के रखबे तभो ले मौत आके रइही ।येला सब जानथें फेर एकरे ले बँचे बर नाना उपाय करत रहिथें। सबले बड़े डर मौत के डर होथे।

           जन्म अउ मृत्यु के बीच के अवधि हा जीवन कहाथे अउ ये अवधि मा आदमी नाना प्रकार के अच्छा-बुरा करम करत रहिथे। मौत के पहिली एक पल तको बिना करम करे नइ रहे सकय।करम के सिद्धांत अटल हे के--'जेन जइसन करम करही वइसन फल पाके रइही। कुकरम के बुरा फल अउ सुकरम के अच्छा फल। गीता मा तो साफ-साफ कहे गे हे के--

''यथा कर्म कृतं लोके तथैतानुपपद्यते।।''

       मृत्यु काय ये अउ मृत्यु आये के का का पहिचान होथे---लक्षण होथे तेकर बारे मा प्रायः सबो धर्म अउ दर्शन मा कुछ न कुछ विचार प्रगट करे गेहे।धार्मिक ग्रंथ मन मा तको मृत्यु के बारे मा गंभीर चिंतन मनन करे गे हे।अइसनहे सनातन धर्म के एक ठो ग्रंथ 'गरुड़ पुराण' हे जेमा मृत्यु के विस्तार ले वर्णन हे।

  ये पुराण के अनुसार मौत आये के मोटी- मोटा सात लक्षण होथे जेमा एक ठो प्रमुख लक्षण हे के चाहे पलभर बर काबर नइ हो--घोर बेहोशी छा जथे एक प्रकार के चिर निंद्रा आ जथे अउ ये समे मौत के मुँह मा जाने वाला मानुस ला अपन जिनगी मा करे जम्मों करम हा कोनो सपना मा चलत सिनेमा जइसे टकटक ले दिखे ला धर लेथे।अइसे लागथे के जनामना वो परम सत्ता हा जीव ला काहत हे के देख --मोला दोष झन देबे।अब तैं जइसन करे हस वइसन फल भुगतबे। तोला का भुगतना परही तेमा मोर रंच मात्र भी आड़ क्षेप-- दखलंदाजी नइये।तैं जइसन बोंये हस तइसन लूबे। ये दे मरनी के बेरा तोर करनी ला देख ले। ये मृत्युलोक मा चाहे मैं(भगवान) होववँ चाहे दूसर सब बर इही अटल नियम चलत रइथे।

    ग्रंथ मा ये  प्रकार के विवरण देके ग्रंथकार हा कहना चाहत हे के--' मनुष्य ला अपन मौत ला कभू नइ भूलना चाही अउ चेत करके ---कुकरम करे ले बाँच के--जहाँ तक हो सके सुकरम करते रहना चाही काबर के केवल अच्छा करम हा जीव ला सुख-शांति दे सकथे। अच्छा करम ले ही इह लोक के संग परलोक सुधर सकथे। करम साथ जाथे बाँकी तो सब इँहे रहि जाथे। कहे गे के-

मुट्ठी बाँधे आया जग में, हाथ पसारे जाएगा।

जैसी करनी करे यहाँ पर,  वैसा ही फल पाएगा।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी अस्मिता के सजग प्रहरी सुशील भोले

 छत्तीसगढ़ी अस्मिता के सजग प्रहरी सुशील भोले


जा रे मोर गीत तैं खदर बन जाबे

बिना घर के मनखे बर घर बन जाबे... 

बने अस देखत जाबे कोनो भूख झन मरय

पेट के अगनिया बर लइका कोनो झन बेचय

अइसन कहूँ देखबे त चाउंर बन जाबे... 

जा रे मोर गीत तैं खदर बन जाबे... 


    सुशील भोले के ए वो गीत आय, जेला आकाशवाणी ले प्रसारित कविता पाठ म सुन के मैं उंकर नाम ले पहिली बार परिचित होए रेहेंव. बाद म आकाशवाणी ले उंकर कतकों कविता पाठ के संगे-संग ढेंकी, एॅंहवाती जइसन कतकों कहानी अउ वार्ता घलो सुने बर मिलिस. फेर उंकर संग पहिली बेर भेंट तब होइस, जब वोमन हमर 'संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति मगरलोड के कार्यक्रम म पहुना बन के पहुंचीन. फेर तो लगातार भेंट-मुलाकात होए लागिस, काबर ते उन हमर संगम साहित्य के हर कार्यक्रम म आए लगिन. इहाँ रतिहा बिताए लगिन. तब उंकर संग म लगातार बइठे अउ गोठ बात के अवसर मिलत गिस. इही बेरा म उंकर सम्पूर्ण व्यक्तित्व कृतित्व ले परिचित घलो होएंव. एक बेर हमर गाँव डाभा म होए कवि सम्मेलन म घलो उन पहुंचे रिहिन हें, तब हमर घर म बइठे बर घलो पधारे रिहिन हें.


    2 जुलाई सन् 1961 के महतारी उर्मिला देवी अउ पिता रामचंद्र वर्मा जी के दूसरा संतान के रूप म भाठापारा शहर म जनमे सुशील भोले जी के पैतृक गाँव रायपुर जिला के गाँव नगरगांव आय, जेन हमर राजधानी रायपुर स्थित छत्तीसगढ़ विधानसभा भवन ले उत्तर दिशा म करीब 10 कि.मी. के दुरिहा म हावय. इहाँ ए बताना बने जनावत हे के इंकरे मन के गाँव ले बोहाने वाला कोल्हान नरवा के खंड़ म वो जगा के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल बोहरही धाम हे.


    सुशील भोले जी ल मैं साहित्यकार ले जादा इहाँ के अस्मिता के सजग प्रहरी जादा मानथौं. काबर ते उनला मैं इहाँ के मूल संस्कृति, जीवन पद्धति अउ उपासना विधि खातिर जादा काम करत देखे हौं. हमर इहाँ के कार्यक्रम म उन आवयं त इही विषय म उंकर उद्बोधन जादा सुने बर मिलय. वोमन एकर खातिर एक समिति 'आदि धर्म जागृति संस्थान' घलो बनाए हें, जेकर माध्यम ले जनजागरण के बुता करत रहिथें. ए विषय म उंकर चार डांड़ के सुरता आवत हे-

सुशील भोले के गुन लेवौ ये आय मोती बानी

सार-सार म सबो सार हे, नोहय कथा-कहानी

कहाँ भटकथस पोथी-पतरा अउ जंगल झाड़ी

बस अतके ल गांठ बांध लौ सिरतो बनहू ज्ञानी


    भोले जी सन् 1983 ले दैनिक अखबार म जुड़े रहे हे, तेकर सेती उनला प्रकाशन के मंच घलो जल्दी मिलगे रिहिसे. उंकर रचना मन सन् 83 ले ही अखबार म छपे ले धर लिए रिहिसे. आकाशवाणी म घलो सन् 84 ले उंकर रचना के प्रसारण होवत हे. वोमन बतायंव- वो बखर कविता पाठ के जीवंत प्रसारण होवय. जीवंत माने, एती बोलत जा अउ वोती वोहा रेडियो ले सुनावत जाही. अब तो अइसन कोनो भी कार्यक्रम के पहिली रिकार्डिंग  कर लिए जाथे. बाद म फेर वोकर प्रसारण होथे.

 

   भोले जी के लगातार अखबार म जुड़े रहे के सेती छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य खातिर घलो बने काम होए हे. एक तो वोमन खुद छत्तीसगढ़ी म लगातार कालम लेखन करत राहंय, संग म हमर जइसन नवा लिखइया मनला प्रकाशन मंच दे खातिर छत्तीसगढ़ी परिशिष्ट घलो  निकालत राहंय. दैनिक अमृत संदेश म जब 'अपन डेरा' निकाले के चालू करिन, तब ले महूं ल अपन छत्तीसगढ़ी रचना मनला प्रकाशित करे खातिर एक अच्छा मंच मिले लागिस.  वइसे इहाँ ए जानना महत्वपूर्ण हे, भोले जी छत्तीसगढ़ी भाषा के पहला सम्पूर्ण मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के स्वयं प्रकाशन-संपादन करे हें. 9 दिसम्बर 1987 ले शुरू होय मयारु माटी के ऐतिहासिक महत्व हे. तब वोमन अपन नाम सुशील वर्मा लिखत रहिन. बाद म आध्यात्मिक दीक्षा ले के बाद 'वर्मा' के जगा अपन इष्टदेव 'भोले' ल अपन पहचान बनाइन.


    सुशील भोले जी सन् 1983 ले ही छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन म जमीनी रूप ले जुड़गे रिहिन, तेकर सेती उंकर मन-मतिष्क ह पूरा के पूरा छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया होगे हे. वोमन कहिथें- छत्तीसगढ़ ह हर दृष्टि ले अतका समृद्ध हे, हमला कोनो किसम ले बाहिरी लोगन ऊपर आश्रित होए के जरूरत नइए. वोमन धर्म अउ संस्कृति के संबंध म घलो अइसने कहिथें- न तो हमला बाहिर के कोनो ग्रंथ चाही न संत चाही. इहाँ सबकुछ हे. बस जरूरी हे, त सिरिफ अपन मूल ल जाने, समझे अउ आत्मसात करे के. वोमन छत्तीसगढ़ राज्य बने के बाद घलो आज के राजनीतिक परिदृश्य ले संतुष्ट नइहें. वोमन कहिथें- हमर पुरखा मन जेन उद्देश्य ल लेके राज्य आन्दोलन के नेंव रचे रिहिन हें, वो तो कोनो मेर छाहित होवत नइ दिखत हे. आज घलो उहि परिदृश्य दिखथे, जेन राज्य बने के पहिली रिहिसे. ए विषय म उन एक गीत घलो लिखे हें, जेला कतकों मंच म सुने ले मिलय-

राज बनगे राज बनगे देखे सपना धुआँ होगे

चारोंमुड़ा कोलिहा मन के देखौ हुआँ हुआँ होगे... 

का-का सपना देखे रहिन पुरखा अपन राज बर

नइ चाही उधार के राजा हमला सुख-सुराज बर

राजनीति के पासा लगथे महाभारत के जुआ होगे... 


    सुशील भोले जी के स्पष्ट कहना हे- जब तक छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति, भाषा अउ आध्यात्मिक जीवन पद्धति के स्वतंत्र पहचान नइ बन जाही, तब तक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के अवधारणा अधूरा रइही.


    पाछू तीन-चार बछर ले उन लकवा रोग ले ग्रसित होय के सेती एक किसम के घर रखवार होगे हें. तभो ले उंकर छत्तीसगढ़ी खातिर निष्ठा अउ सक्रियता ह देखते बनथे. सोशलमीडिया म रोज बिहनिया चार डांड़ के कविता संग एक समसामयिक फोटो देख के गजब सुग्घर लागथे. अइसने उन जुन्ना बेरा के बात ल अउ वोकर संग जुड़े साहित्यकार कलाकार आदि मन के जेन जानकारी 'सुरता' के माध्यम ले देवत हें, वो ह हमर जइसन नवा पीढ़ी खातिर एक धरोहर के रूप म सदा दिन सुरता करे जाही.


    आज 2 जुलाई के उंकर जनमदिन के बेरा म उनला शुभकामना देवत छत्तीसगढ़ महतारी ले अरजी हे, उनला जल्दी स्वस्थ करंय, तेमा उन अपन उद्देश्य के रद्दा म सरलग बुता करत राहंय, संग म उंकर जम्मो मनोकामना ल पूरा करंय. छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन म संघरे खातिर उंकर मन म जतका भावना रिहिसे, वोला छाहित करय. 

जय छत्तीसगढ़.. जय छत्तीसगढ़ी.. 

-भोलाराम सिन्हा, 

ग्राम- डाभा, पो. करेली छोटी

वि.खं.मगरलोड, जिला-धमतरी-493662

मो. नं. 9165640803

कमेलिन नोनी

 कमेलिन नोनी             


                                   चन्द्रहास साहू

                                  मो - 8120578897

चौमासा के घरी। किसान मन के मन कुलकत हे ऐसो के पानी-बादर ला देख के। इही करिया-करिया बादर तो आय जौन हा किसान ला भविस के आस देखाथे। भलुक करिया हाबे ते का होइस रंगीन सपना के उजास घला देखाथे। कोइली के कुहुक-कुहुक पपीहा के पिहिप-पिहिप अउ मैना के चैंक-चैंक अब्बड़ सुघ्घर लागत हाबे। ...अउ चिरई जाम के पिंजरा मा धंधाये मिठ्ठू के बोली, अब्बड़ गुरतुर लागथे। करिया-बादर ले जादा करिया-करिया चिरई जाम (जामुन)...? मुँहू मा पानी आ जाथे। ललचा जाथे-मन हा। 

                  सबरदिन बरोबर वोकरो मन ललचावत हावय अब्बड़। पाँख रिहितिस ते उड़िया जातेंव-अगास ला अमरे बर। रंग रिहितिस ते बगर जातेंव-इंद्रधनुष कस। अँजोर रिहितिस ते बन जातेंव जोगनी-रिगबिग-रिगबिग बरे बर। अउ पइसा रिहितिस ते बन जातेंव- महुँ हा विद्यार्थी। नवा स्कूल ड्रेस टाई जूता मोंजा पहिर के इतरातेंव। चुन्दी ला पाटी पारे, आँखी मा काजर आँजे नवा  टिफिन डब्बा धरे स्कूल जातेंव-वोकरो मन कलबलावत हाबे। 

                     बारा ए पंद्रा बच्छर के नोनी आवय वोहा-कंचन। कोनो राजकुमारी नो हरे फेर स्कूल के आगू के जगह हा वोकरे आवय-पोगरी। जंगल के जम्मो रुख-राई वोकरे आय बेरा बखत मा टोर लेथे फल-फलहरी ला। जौन घरी तौन रिकम के जिनिस। जिमीकांदा चार तेंदू केरा गभोती अउ केछरवा कांदा ले बुचरवा कांदा जम्मो मिलथे नोनी कंचन करा। इही जम्मो ला बिन के आनथे अउ स्कूल के आगू मा पसरा लगा के बेच लेथे।

                   हमर छत्तीसगढ़ हा पोठ राज आय जम्मो कोती अइसन दिखथे ....अउ बस्तर के मोहाटी कांकेर जिला चारामा में ये जम्मो मनमोहनी जिनिस अब्बड़ सुघ्घर दिखत हाबे। शहरिया अउ गवइया जम्मो के मन ला भाथे।

        आज अपन पसरा मा चिरई जाम अउ सरई बोड़ा बेचत हाबे कंचन हा। जम्मो अवइया-जवइया मन चिथो-चिथो कर डारिस।

"कतका किलो हरे सरई बोड़ा हा नोनी ?''

नवा-नवा उतरे हाबे अभिन सरई बोड़ा हा। अभिन मेछराये के बेरा हाबे। मेछरावत हाबे अपन दाम मा।  नवा बइला के नवा सिंग चल रे बइला टिंगे-टिंग। कतको झन पूछिस अउ  हिरक के देखे बिना मुँहू करू करत चल दिस। तब कोनो  के मोल भाव नइ पटे के सेती लहुटगे। ...अउ कोनो हा मोल-भाव करत हाबे।

"दू सौ रुपिया पाव ले कमती नइ होवय सेठ।''

"एक सौ तीस रुपिया पाव लगा न ओ !''

अब्बड़ बेरा ले जोजियावत हाबे सेठ हा। नब्बे रुपिया ले शुरू करके पांच-पांच रुपिया बढ़त एक सौ तीस रुपिया तक अमरे हाबे।

"जंगल-झाड़ी,कांटा-खूंटी, अझमहा-निझमहा मा किंजरबे तब मिलथे सरई बोड़ा हा सेठ ! हुडरा-बघवा चितवा-भालू ले ओरभेट्टा हो जाथे कभु-कभु। पाछु बच्छर तो कमारिन दीदी ला भालू खखोल दे रिहिन। लटपट बाचीस।अतका सस्ता मा नइ पोसाये सेठ !''

भाव नइ पटिस। अब नोनी कंचन के गोठ सुनके अपन सोना चांदी के दुकान कोती  सुटूर-सुटूर रेंग दिस सेठ हा। आज तो बेरा हाबे सेठ ले बदला हेरे के। पाछु दरी काकी के माला टुटगे रिहिन, बनाके दिस तब एक्को पइसा कमती नइ करिस।अब्बड़ कहे रिहिन पांच रुपिया चिल्हर नइ हाबे सेठ ! जी छड़ा के माँगे रिहिन। कंचन फुसफुसाइस।

"बोड़ा का हरे बड़का गुरुजी ?''

स्कूल कोती ले तीन झन मास्टर आवत हाबे गोठ-बात करत।

"अब्बड़ गरमी ले तिपे भुइयाँ मा अकरस पानी गिरथे। ये बेरा तापमान आद्रता अउ दंद-कुहर जादा रहिथे तब सरई रुख के जर हा एक रिकम के केमिकल के स्राव करथे, जिहां फंगस हा एसोसिएशन करके अपन ग्रोथ करथे अउ सादा चीनी बाटी बरोबर अपन आकार बना लेथे। इही ला सरई बोड़ा कहिथन। जौन अब्बड़ मिटाथे-गुरतुर। सिजनेबल जिनिस आवय अउ लाने मा अब्बड़ मिहनत लागथे वोकरे सेती अब्बड़ महंगा बेचाथे।''

"ऐहा अब्बड़ पुसटई घला आवय। खनिज लवन विटामिन अउ आयरन अब्बड़ रहिथे।''

लंच के बेरा आवय। स्कूल के तीनों मास्टर मन रोज आथे पसरा मा कुछु जिनिस बिसाये बर-बड़का मंझला अउ नान्हे मास्टर। अब कंचन के पसरा के तीर मा आगे। लइका मन के खेल-खेलई ला मगन होके देखत हाबे नोनी कंचन हा। कोनो लइका झूलना झूलत हाबे तब कोनो लइकामन छू-छुवउल खेलत हाबे।

"के रुपिया आय चिरई जाम हा ?''

कंचन के धियान टूटिस अउ आगू मा गुरुजी मन ला देख के हड़बड़ा गे। टुपटुप-टुपटुप पांव परिस।

"एक सौ बीस रुपिया किलो आवय सर ! सौ रुपिया लगाहुँ।''

भलुक अवइया-जवइया मन पुछिन तब एको पइसा कम नइ करिन कंचन हा फेर बिन मोल-भाव करे  आगू ले चिरई जाम के भाव कम कर दिस।

बड़का गुरुजी हा किलोभर भर बिसा डारिस चिरई जाम ला जम्मो स्टॉफ बर। भलुक किलो भर तौलिस फेर वोकर ले आगर रिहिस।

"गु गु...गुरुजी एक गोठ रिहिस। पुछव का ?''

कंचन के आँखी मा ऑंसू छलछलावत रिहिस। अब्बड़ दिन के पूछे के उदिम करत रिहिन फेर आज सामरथ करिस कंचन हा।

"पूछ न बेटी ! का बात आय ?''

"गुरूजी ! हमन जंगल के रहवइया आवन अब्बड़ रुख-राई लगाथन। हमर कोती गुंगुवा उड़इया कल-कारखाना घला नइ हाबे। जौन ऑक्सीजन ला मइलाहा कर देथे तभो ले गाँव वाला बर ऑक्सीजन कइसे कमती परगे कोरोना दरी मा ? शहरिया मन बाचगे अउ गवइया मन काबर मरगे ? हमर परसा डोली बाहरा खेत ला बेचिन तब एक ठन ऑक्सीजन सिलेंडर बिसाइस कका हा। अइसन बिपत के बेरा सिलेंडर अब्बड़ महंगा काबर बेचाथे गुरुजी ? ''

                   गुरुजी अकबकागे। ससन भर देखे लागिस नोनी कंचन ला। सांवर बरन दाढ़ी मा तीन बुंदिया गोदना तेरा-चौदह बच्छर के नोनी चिरहा ओन्हा पहिरे। कजरारी आँखी नरी मा ताबीज अउ बजरहा खिनवा पहिरे । गोल उदास चेहरा ला देखे लागिस गुरुजी हा।

"कोरोना महामारी विश्व त्रासदी आवय बेटी ! कतको झन के जम्मो परिवार सिरागे ऐमा। इही तो बेरा रिहिन अपन अउ बिरान चिन्हे के। मानवता ला जाने के। आज घला कतको अस्थि के विसर्जन नइ होये हाबे। मालखाना मा धुर्रा खावत परे हे। पुलिस के रजिस्टर मा लावारिस हाबे। भलुक वोकर संपत्ति के सुख भोगइया कोरी-खइरखा हे।''

गुरुजी गुन डारिस जम्मो ला छिन भर मा। वोकरो एकलौता हीरा बेटा ला लील डारिस कोरोना हा ऑक्सीजन के कमती ले। 

"का करबो बेटी ! प्रकृति महतारी के आगू जम्मो नतमस्तक हावन ओ।''

बड़का गुरुजी किहिस अउ रोनहुत होगे। लइका मन के सकेलाये के घण्टी घला बाजगे अब।  काँपत थरथरावत गुरुजी लटपट स्कूल अमरिस अउ लझरंग ले खुर्सी मा बइठ गे। नोनी कंचन के कोंवर चेहरा हा आँखी-आँखी मा झूलत हाबे अउ गोठ हा कान मा चोट करत हाबे। पढ़इया लइका मन के मूल्यांकन कर डारिस गुरुजी हा। फेर पसरा वाली नोनी के कइसे मूल्यांकन करही ? कोन श्रेणी मा राखही ए बी सी...।       

                        गुनत-गुनत आठवी क्लास मा पढ़ाये लागिस-पराक्रमी राजा के कहानी। जौन अपन राज के विस्तार करे बर कतको झन सिपाही के वध करके वोकर लइका मन ला अनाथ कर डारिन। असली पराक्रमी कोन आवय-युद्ध मे लड़इया सिपाही हा कि अनाथ लइका जौन जीवन भर आँसू लेके जीही ? नान-नान जिनिस बर कुकुर गत होही ? पढ़े के उम्मर मा मुड़ी मा बोझा डोहारही, बाजार मा पसरा लगाही। गुरुजी ला आज पढ़ाये के मन नइ होइस।कभु जुच्छा खुर्सी मा कंचन के बइठे के सपना देखथे गुरुजी हा तब कभु घेरी-बेरी खिड़की के ओ पार धियान चल देवय जिहां कंचन पसरा लगाए हाबे।

                  कंचन आधा बोड़ा ले जादा ला बेच डारिस अब अउ चिरई जाम तो उरक घला गे। सोना चांदी के दुकान वाला इहाँ के नामी सेठ हा फेर लहुट के आगे हावय कंचन के पसरा मा सरई बोड़ा बिसाये बर।

"हे... हे... अब तो छँटागे नोनी बोड़ा हा। अब डेढ़ सौ मा एक पाव दे दे।''

सेठ हाँसत किहिस अउ फेर जोजियाये लागिस। 

"नही सेठ ! आज तो रेट कमती नइ होवय।''

"निच्चट ढीठ हस टूरी ! छँटवा माल ला घला कमती नइ करस। बैपार करे बर घला नइ आवय।''

"ढीठ करे बर तो तुहरे मन ले सीखे हँव सेठ ! जइसे तुमन आनी-बानी के टेक्स लगाथो तभो ले दू पइसा कमती नइ करो-कोनो जिनिस मा। भलुक बैपार करे बर नइ आवय फेर मया बढ़ाये ला आथे सेठ ! हमर तो अब्बड़ लरा-जरा हाबे अभिन बेचत भर ले बेचहू ताहन घर जाके फोकट मा बाँटहू।''

सेठ के मुँहू उघरा होगे।

"अतका महंगा जिनिस ला फोकट मा बाँटबे ?''

"काबर नइ बाँटहू सेठ ! वहुँ मन तो हमन ला देथे। रउतइन हा मही देये रिहिन काली, सोनारिन दाई हा गोलेन्दा भाटा। गोंदली के फोरन डारके बनाये रिहिन मोर काकी हा। अब्बड़ मिठाइस रात के साग ला आज बिहनिया घला खाये रेहेंन चाट-चाट के।... वोकरो करजा ला छूटे ला लागही ?''

"तुम छत्तीसगढ़िया मन भलुक अब्बड़ कमा लेथो फेर खाये ला नइ जानव। सब साग मा प्याज लसुन डारके स्वाद ला बिगाड़ देथो।''

"प्याज तो हरे सेठ ! जौन मइनखे के गरमी ला उतारथे। तहुँ मन ला खाना चाहिए।''

कंचन के गोठ चटकन कस लागिस सेठ ला। ऐती-ओती देखे लागिस।

"तुमन तो भलुक प्याज खाये ला छोड़ देये हव फेर ब्याज खाये बर कब छोड़हु सेठ !''

सिरतोन सेठ के मुँहू करू होगे। पच्च ले थुकिस अउ गुटखा के पाउच के जिनिस ला चभलाये लागिस। रुपिया ले भरे  बेग ला एक खाँध ले दूसर खाँध मा पलटिस अउ फेर जोजियाये लागिस। 

"डेढ़ सौ मा एक पाव दे दे नोनी ! सरई बोड़ा।''

अतका बेरा ले एक दू झन अउ बिसा डारिस। बांचे-खोंचे चिरई जाम ला तो उरक घला गे।

"ले सेठ अब्बड़ जोजियाथस। आधा किलो लेबे तब लगाहु डेढ़ सौ रुपिया पाव-तीन सौ के आधा किलो।''

"नही .. ! एक पाव भर दे।''

"अब्बड़ अकन माई-पिला हाबो सेठ ! आधा किलो हा पुरही। ले ले।''

सेठ लिस आधा किलो अउ बड़का गड्डी ले पांच सौ के कड़कड़ाती नोट ला निकाल के दिस कंचन ला। बचत पइसा ला झोंकिस अउ अपन बड़का सोना-चांदी के दुकान कोती चल दिस।     

                  सांझ होगे स्कूल के घंटी बाजिस अउ छुट्टी के बेरा होगे। किलोबाट टुकनी ला सकेलिस। बोरी ले सिलाये नानकुन पाल ला घिरियाइस अउ घर लहुटे के तियारी करत हाबे। फेर उदुप ले देखथे ते पोटा कांप जाथे। जवनहा आवय। माते हाबे छत्तीसगढ़ के सरकारी रसा मा। पांव लड़बड़ावत हाबे अउ मुँहू ले भभका आवत हे। काकी के कनिहा पीरा के पांच रुपिया के दवई लेये बर पइसा नइ हे कहिके हाथ ला झर्रा देये रिहिन बिहनिया। अउ अभिन ? संझा बेरा खुद पीके झुमरत हाबे।

"दे टूरी पइसा दे, कतका कमाये हस ?''

तकादा करे लागिस। कंचन के सगे कका आय।

"आज जादा नइ कमाये हँव कका ! तभो ले, चल घर मे दुहुँ।'' 

"अभिन तो सेठ हा गड्डी निकालत रिहिस तोला देये बर। लबरी, मोला लबारी मारथस। कतका चामड़ी डांटे हाबे जम्मो बुकनी ला झर्रा दुहुँ घर जाहू तब। अभिन दे मोला पइसा।''

"दारू के सेती अइसने गोठियावत हस कका ! नइ पीयस तब अब्बड़ दुलारथस। काबर अब्बड़ दारू पीथस कका ! झन पीये कर।''

"नानकुन टूरी ! मोला बरजथस। मंदहा ला झन बरज। मंदहा बांच जाथे अउ  बरजईया मन  मर जाथे। तोर दाई ददा अब्बड़ बरजे मोला-झन पी सिरा जाबे अइसे फेर उही मन सिरागे कोरोना मा।''

"सिराना रिहिन तब जम्मो परिवार मर जातेंव। दाई-ददा दुनो कोई मरगे अउ टूरी ला छोड़ दिस। अब पढ़ाई-लिखाई शादी-बिहाव के खर्चा मोर माथे परगे। खेत घला बेचागे का थोथना मा बिहाव करहुँ तोर....?''

झोला के चार सौ ला झटक लिस कका हा अउ सरकारी अमृत दुकान कोती रेंग दिस बड़बड़ावत। 

                 आजकल नाचा नंदागे फेर गम्मत देखइया कमती नइ हे। सकेलागे भीड़। कोनो कमेलिन नोनी के मान नइ राखिस भलुक दांत खिसोर के हाँसिस जम्मो कोई। लइका आय ते का होइस ? वोकरो मान हाबे। फेर आज गाँव के सियान मन घला भीष्मपितामह बनगे। अउ जौन बेरा भीष्मपितामह आँखी मुंदथे तब सिरतोन महाभारत होथे। इहाँ तो महुआ रस के नरवा बोहावत हे कोन दुरपति बाचही ? स्कूल के छुट्टी होगे। जम्मो लइका अब अपन-अपन घर जावत हाबे। गुरुजी घला,फेर कंचन के रोनहुत बरन ला देख के अतरगे। तीर मा आके अउ गोठिया डारिस।

"बेटी तोला पढ़े के साध हाबे ते स्कूल मा आ जाबे।''

"नहीं गुरुजी ! पइसा कमा के नइ जाहू तब मोर कका हा मारही नंगतेहे। भलुक मोर काकी अब्बड़ मया करथे फेर कका बखानथे। टूरा रिहतेस तब राखतेंव। कोट-कोट ले दाइज-डोल आतिस फेर तेहां तो टूरी आवस-खरचा करइया। घर ला जुच्छा करइया। भलुक कोनो संग भाग जाबे फेर बिहाव के खरचा झन कराबे कहिथे। कहाँ भागे के गोठ करथे गुरुजी कका हा  ? जौन भागथे तौन मन ला पइसा नइ लागे ?''

गुरुजी फेर मुक्का होगे। आँखी मा ऑंसू आगे। कुछु गुनिस अउ उदुप ले कहिथे।

"बेटी ! मोर घर रहिबे चल, जतका पढ़बे पढ़ाहु।अपन बेटी बना के जतन करहुँ।''

"नही गुरुजी ! भलुक कका हा मोला मर जाये कहिके सरापथे फेर काकी अब्बड़ मया करथे। मोर बिना वहुँ हा नइ जी सकही....।  गुरुजी ! वोला छोड़ के नइ जावव। नवा नत्ता जोरे बर जुन्ना नत्ता ला नइ टोरो गुरुजी''

गुरुजी देखते रहिगे कंचन के चेहरा ला। गरब अउ साभिमान मा सिरतोन कंचन बरोबर चमकत हाबे।

"ठीक हे तोर कका ला रोजी ले मतलब हे न। मेंहा दुहुँ तोला पइसा  फेर काली ले बुता झन करबे सिरिफ पढ़बे।''

"नही गुरुजी ! मोर काकी के ईलाज बर कमाये ला लागही मोला। सब के किस्मत में विद्या धन नइ राहय। मोरो मा नइ होही...? फेर लाँघन नइ मरो गुरुजी मेंहा। अउ  मोर काकी-कका बर जिये ला लागही ..! कका बिगड़ाहा होगे हावय तब महुँ तो अपन आदत ला मइलाहा नइ कर सकवँ गुरुजी !''

कंचन के विचार ला सुन के गुरुजी गदगद होगे। भलुक वोकर घर जाय बर नइ खंधिस कंचन हा फेर गुरुजी के अंतस मा घर बना डारिस। अब कॉपी किताब बिसाये बर चल दिस गुरूजी हा। नोनी भलुक कतको कमा ले आखर अँजोर तो सब ला चाही। 

"ठीक हे बेटी ! तोला रोज पढ़ाहु छुट्टी के पाछु। तभे तो पोठ बनबे। अपन अधिकार ला जानबे। अपन घर मा भलुक रहा फेर कोनो भी जिनिस के कमती होही अपन बाबूजी समझ के माँग लेबे।''

गुरुजी के गोठ सुनके टुपटुप-टुपटुप पांव परिस कंचन हा। आँखी ले आँसू आवत हाबे अब। गुरुजी घला अपन एकलौता बेटा के दुख ला बिसरा डारिस  कंचन ला देख के।     

             जम्मो लइका मन नाचत-कूदत घर लहुटत हाबे काली नवा उछाह संग स्कूल लहुटे बर। कंचन घला अपन डलिया टुकनी ला मुड़ी मा बोहो के घर कोती लहुटत हाबे अब। ससनभर देखत हाबे गुरुजी हा लुसुर-लुसुर रेंगइया कंचन ला, कमेलिन नोनी अउ गुणवती नोनी ला। 

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

अब बिरले देखे म आथे नगडेवन बजइया

 अब बिरले देखे म आथे नगडेवन बजइया

    नागपंचमी परब के लकठियाते नगडेवन बजइया मन हर गली अउ गाँव म एक हाथ म बांस के बने झोपली म सॉंप धरे अउ पीठ म दूसर झोपली ल कोनो पंछा बानी के कपड़ा म बांध के ओरमाए दिख जावत रिहिन हें. दू-चार झन लइका मनला देखतीन तहाँ वो नगडेवन म नागिन धुन बजा के झोपली के सॉंप ल उघार देवंय अउ ओला हुदर-कोचक के नचाय अस करत राहंय. 

    अब बेरा के संग ए नगडेवन बजइया मन घलो नहीं के बरोबर देखब म आथें. नागपंचमी परब म सॉंप देखा के दान-दक्षिणा  मंगइया तो कतकों दिख जाथें, फेर नगडेवन बजा के दान मंगइया दिखबे नइ करत हें.

    इलेक्ट्रॉनिक बाजा-रूंजी मन के आए ले हमर गजब अकन पारंपरिक बाजा मन कोनो संग्रहालय म प्रदर्शन करे के जिनिस बनत जावत हें. अउ एकरे संग ओकर बजाने वाला कलाकार घलो नंदावत जावत हें. अभी बस्तर ले एकरे ले संबंधित एक समाचार पढ़े बर मिले रिहिसे, जेमा एक समाज विशेष के मुखिया मन मोहरी बजाने वाला नइ मिले के सेती गजब चिंता फिकर करत रिहिन हें. उंकर कहना रिहिसे के उंकर देवता के पूजा-परब म मोहरी के बाजना जरूरी होथे, फेर अब पढ़े लिखे लइका मन एती चेत नइ करत हें, जेकर ले हमर परंपरा के सही रूप म निर्वहन नइ हो पावत हे. ओ मन एकर खातिर नवा लइका मनला विशेष रूप ले प्रशिक्षण दे के बात करत रिहिन हें. वइसे नवा पीढ़ी के लइका मन कला के क्षेत्र म आवत जरूर हें, फेर ओमन पारंपरिक बाजा-रूंजी ल बजाए या सीखे के बलदा इलेक्ट्रॉनिक वाद्ययंत्र ले ओकर धुन निकाल के काम चला लेवत हें.

    नगडेवन जेला हमन हिंदी म बीन कहिथन, एला विशेष किसम के तुमा (लौकी) ले बनाए जावय. वइसे तो सबो किसम के तुमा मन साग रांध के खाए के काम आथे (आजकल तुमा के रस ल औषधि के रूप म पीए के चलन घलो बनेच बाढ़ गे हवय) , फेर एमा कोनो-कोनो मन के आकार-प्रकार अलगेच होथे, जेकर सेती उंकर उपयोग कुछ अलग किसम से घलो कर लिए जाथे. जइसे चकरी किसम के तुमा ले तमुरा बनाए जाथे, त कमंडल बानी के तुमा ले कमंडल. पहिली साधु-महात्मा मन जगा कमंडल जरूर दिख जावत रिहिसे, फेर आजकल इहू ल पीतल के देखब म आ जाथे. इहाँ के वन क्षेत्र म तुमड़ी घलो दिखय, जेकर पानी ह गरमी के दिन म करसी के पानी कस जुड़ बोलय.

    नगडेवन बनाय खातिर जेन तुमा के उपयोग होवय, वोकर आगू भाग ह बेल असन गोल अउ पाछू के भाग ह लम्हरी पातर असन राहय, जेन ह अर्द्ध गोलाकार म मुड़े असन राहय. वो तुमा के बने पाक जाए के बाद ओकर भीतर के गुदा ल निकाल के खाली कर दिए जाय. ओकर पाछू के भाग मुड़े वाला होथे, ओमा आधा म पातर असन कुछ छेदा कर देथें अउ आगू डहार के मोटहा गोल भाग होथे, ओमा आठ-नौ इंच लंबा बांस के टुकड़ा म सात ठन नान्हे छेदा कर देथें. पाछू म तीन इंच के पत्ती काट के लगाए जाथे. बनाने वाले मन अपन-अपन कल्पना अउ पसंद के मुताबिक ओकर आकार अउ सजावटी कर लेथें. फेर ए नगडेवन के पाछू ले मुंह म फूंके ले तुमा म हवा भर जाथे, जेहा पत्ती ले गुजरे ले विशेष आवाज म बाजथे. 

    एकर उपयोग इहाँ घुमंतू संवरा जाति के मन जादा करंय. ओमन एकर उपयोग सॉंप पकड़े खातिर घलो करंय. उंकर बात ल मानिन त, नगडेवन के बाजे ले कइसनो जहरीला साॅंप होवय एकर धुन म बिधुन होके नाचे-झूमे लगथे. जब नाचत-झूमत थक के चूर हो जाथे, तब सपेरा मन ओ सॉंप ल पकड़ के झोपली म बंद कर के रख देथें. ओमन बताथें के सॉंप ल झोपली म बंद कर के रखे के बाद दू-तीन खाय-पीये बर कुछू नइ देवंय, तब सॉंप निच्चट कमजोर हो जाथे. अइसने बेरा म फेर ओकर जहर ल निकाल के ओकर जहर वाले दांत ल टोर देथें. 

    ए प्रक्रिया ल पूरा करे के बाद फेर सॉंप ल बने खवा-पीया के तंदुरुस्त करे जाथे, तेकर बाद फेर उनला प्रदर्शन खातिर लोगन के बीच लानथें.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

कर्जा (ऋण)

 *// कर्जा (ऋण) //*

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          ( निबंध)

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    *माता जी के गर्भ म जब ले कोई बच्चा भ्रूम के रूप म अस्तित्व पाथे,तब ले वो बच्चा ह अपन माताजी के प्रति जिंदगी भर के लिए कर्जदार हो जाथे!* 

      * *कारन-जऊन दिन ले माता जी ल जानकारी होथे- "मोर गर्भ म एक नन्हा सा-प्यारा सा,कलेजा के टुकड़ा एक  बच्चा अस्तित्व म आ गए हे" तब से वो महतारी ह अपन तन-मन,अपन शौक,अपन प्राण ले जादा,अपन होने वाली संतान के सुख-दुख के ध्यान राखथे !*

     *वो नन्हा सा शिशु के नाभी अपन माताजी के आहार नली से जुड़ जाथे अउ माता जी के भोजन पचे के बाद पोषक तत्व के रूप म शुद्ध रस एक निश्चित मात्रा में वो बच्चा ल निरंतर मिलते रहिथे |*

    *माताजी के गर्भाशय नाल से गर्भ म पल रहे शिशु के हर तंत्रिका तंत्र जुड़ जाथे, जेकर द्वारा वो शिशु ल निरंतर आक्सीजन गैस प्राण वायु के रूप म मिलते रहिथे!*

     *माताजी के भोजन के पूरा असर गर्भ म पल रहे वो शिशु ल मिलते रहिथे,तभे तो  सियानीन दाई बुढ़ी सास,काकी सास अउ सास मन अपन बहुरिया ल समझाथैं - जादा मिर्चा वाला तीखा साग झन खाबे बहुरिया नइते लईका ह कलबला जाही ( व्याकुल हो जाही) | जादा करू -कस्सा,जादा नमकीन घलो झन खाबे,सुग्घर नेत-परवान अउ मीठ-मीठ जेवन खाबे, मीठ-मीठ गोठियाबे, तव नवा अवईया पहुना ह तंदुरुस्त रहिही अउ मीठ-मीठ आचरन वाला होही!*

    *गर्भ धारन के दौरान महतारी ल झूठ-लबारी नइ बोलना चाही,कोनो के चारी-चुगली नइ करना चाही, चोरी-लुका कुछू जिनीस ल खाना भी नइ चाही ! कोनो के कुछू नुकसान नइ करना चाही, करम से ही नहीं - अपन मन म कोनो के  प्रति अहित सोचना भी नहीं चाही! गर्भ धारन के दौरान महतारी के जम्मो आचार-विचार के प्रभाव होवईया नन्हा बच्चा ल खच्चित होथे,जैसे उत्तरा के गर्भ से ही अभिमन्यु ह "चक्रव्यूह म प्रवेश करे बर सीख गए रहिस!*

    *नवजात शिशु ल अपन महतारी के गर्भ म पड़ने वाला एही संस्कार ल "पुंसवन संस्कार " कहे जाथे*

    *गर्भ ठहरते ही हर महतारी ल अपन होने वाला औलाद ल संस्कारी बनाए बर सुग्घर भजन कीर्तन,भागवत पुराण सुनना चाही | गीत-गोविंद रामायण के कथा सुनना चाही*   

       *"गर्भ ठहरते ही नौ -दस महीना तक महतारी ह पेट भीतरी अपन संतान के पालन-पोषन करथे, अउ अपार- असहनीय प्रसव पीड़ा सहि के- जीवन-मृत्यु से जूझ के, अपन जिंदगी ल दांव म राख के जब महतारी ह अपन संतान ल पैदा करथे, तब अपन बच्चा ल जिंदा राखे बर ओकर स्तन म "दूध से भरे कटोरा" से दूध पीला के नवजात शिशु ल जिंदा राखथें !  न केवल जिंदा राखथें, बल्कि रात-दिन अपन संतान के मल-मूत्र ल साफ करके ओकर हर प्रकार से सुरक्षा करते हुए बड़े बनाथैं अउ अपन जम्मो इच्छा, जम्मो सुख ल त्याग करके  अपन संतान के सुख-शांति, समृद्धि बर सर्वस्व न्योछावर कर देथे !*।    

        *अत्तेक महान ममतामयी-त्यागमयी महतारी के "दूध के कर्जा ल  ओकर संतान मन का  चुका सकथें ? शायद हीरा,मोती,जवाहरात अउ कीमती से कीमती जिनीस प्रदान करके भी अपन माताजी के "दूध के कर्जा" चुकाना संभव नहीं है !*


    * *एक उपाय हवय- "जब महतारी ह अपार त्याग-तपस्या,कठिन से कठिन दु:ख सहि के अपन संतान ल बड़े करथे, बेटी-बेटा के बिहाव कर देथे, तब बिहाव होय के बाद अपन पति या अपन पत्नी ले जादा अपन दाई के हर सुख-दुख के ध्यान रखते हुए ओकर दुख ल अपन दुख समझ के बिना कुछ बोले निवारण करना चाही | अपन दाई के त्याग-तपस्या,समर्पण भाव,ममता, संवेदना के प्रति हर पल सचेत हो के ओकर सद्भावना के सम्मान करते हुए ओकर हर दुख के निवारण करना चाही | ओकर मान-सम्मान, स्वाभिमान ल ठेस नहीं पहुंचाना चाही अउ दाई के इंतकाल हो जाय ले सुंदर श्रद्धा-भक्ति पूर्वक,वेद रीति-रिवाज के अनुसार दाई के सद्गति बर मृतक संस्कार करना चाही*


   *दाई के "दूध के कर्जा" के बराबर ही "ददा द्वारा पालन-पोषन" के कर्जा होथे!*

      *दाई ह घर म रहि के अपन संतान के देख-भाल करथे,तव ददा ह चिलचिलाती धूप,दिन भर कठिन बरसात म भींगते हुए, हड्डी गलाऊ ठंड म ठिठुरते हुए कठिन मेहनत करके अपन संतान के पालन-पोषण करथें ! अपार दुख सहि के अपन संतान ल तिल भर भी दुख नइ होवन देवै! अपार भूख सहि के,काटोकाट उपवास रहि के अपन संतान के मुंह म दुनो जुवार भोजन के व्यवस्था करथें ! खुद के पहिरे-ओढ़े अउ तन ढांके बर  चेंदरा-ओढ़ना नइ खरीदैं, लेकिन अपन औलाद बर ढेर सारा कपड़ा -ओढ़ना,जूता-मोजा,टाई,स्कूली बैग,पुस्तक कापी के व्यवस्था करके अपन सामर्थ्य के अनुसार अच्छा से अच्छा स्कूल-कालेज म पढ़ाथे,ट्यूशन फीस के जुगाड़ करके ट्यूशन पढ़ाथें, शहर भेज के पढ़ाय-लिखाय बर किसान,मजदूर अउ गरीब पिताजी ह घलो कत्तेक त्याग-तपस्या करथें ? तेकर वर्णन करना संभव नहीं हे !  पिताजी ह अकथनीय प्यार,अपार त्याग-तपस्या अउ अपन लाखों इच्छा के बलिदान करथें,तब एक बेटी-बेटा के पालन-पोषन कर सकथें!*

     

    *अत्तेक त्यागी ! अत्तेक बलिदानी! अपन मुंह के कौरा ल बचा के जउन पिताजी ह अपन संतान के पालन-पोषन करथें, तउन पिताजी द्वारा "पालन-पोषन के कर्जा" कोनो संतान ह का चुका सकथे ?*

     *"पिताजी द्वारा पालन-पोषन के कर्जा" चुकाना बेटी-बेटा के लिए बहुत कठिन होथे !*   *जब बेटी-बेटा  बड़े हो जाथे,तब दाई-ददा ह अपन जिंदगी भर के कमाई ,एक-एक रूपीया ल बंचाके बेटी-बेटा के बिहाव करथें !*

       *तब "सत म सती-कोट म जती" कोनो एक बेटा ह सरवन कुमार जैसे अपन दाई-ददा के आज्ञा के पालन करथे, सुपुत्र अउ सुपात्र हो के दाई-ददा के सेवा करथे | साथ ही बिहाव होय के बाद संतान उत्पन्न करके अपन पीढ़ी ल आगे बढ़ाथे | दाई-ददा ह बुढ़ाई काल म जब शारीरिक रूप से अक्षम हो जाथे,"तब अपन दाई-ददा के अंग बन के, अंधरा के लाठी बन के" दुख के निवारन करथे अउ पिताजी के देहांत होय ले सुग्घर विधि-विधान से, वेद-पुरान रीति-रिवाज से, सामाजिक -पारिवारिक,जातिगत रीति-रिवाज के पालन करते हुए अपन ददा के दाहसंस्कार करथें, पिंड दान करथे,गरूण पुरान सुनथे, गंगा समागम कराथें,गऊ दान,ब्राम्हण भोजन कराथे, रिश्तेदार,समाज ल भोजन कराथे,तभे अपन पिताजी के पालन-पोषन अउ पितृ ऋण से उऋण हो सकथें*

    

     *माता-पिताजी के कर्जा के साथ ही अपन कुल गुरू अउ अध्यात्म गुरू के भी ऋण होथे |*


     *कुल गुरू द्वारा कोई खास तिथि,परब-तिहार के दिन अपन घर म सपरिवार कथा -पुरान सुने ले अपन घर-परिवार के जम्मो लईकन-सियान के आचार-विचार,खान-पान,रहन-सहन ह सात्विक होथे,सदाचार के पालन करथें अउ सुंदर संस्कार के निर्माण होथे | तभे "कुल गुरू के कर्जा (ऋण) से उऋण होथें*

      *अध्यात्म गुरू के कर्जा" से उऋण होए बर गुरू द्वारा बताए गए "गुरू मंत्र" के जिंदगी भर एक घड़ी आधो घड़ी, सुबह-शाम मंत्र जाप, ध्यान -आराधना करे ले हमर आत्मा के शुद्धिकरण होके परम सुख-शांति के प्राप्ति भी होथे*


    *माता-पिताजी के ऋण के समान ही अपन "मातृभूमि,जन्म भूमि, गांव-बस्ती,राज्य अउ अपन देश के प्रति घलो ऋण होथे*


    *मातृभूमि के ऋण चुकाए बर ए धरती माता के श्रृंगार रूपी पेड़-पौधा ल जादा काटना नहीं चाही बल्कि अपने घर-परिवार के कुछू भी दु:ख-सुख जैसे:- नवजात शिशु के जन्म दिन,बिहाव के दिन अउ मृतक व्यक्ति के मृत्यु संस्कार के साथ-साथ  ऊंकर आत्मा के शांति अउ यादगार म हर मनखे ल एक-एक पौधा खच्चित लगाना चाही अउ वो जम्मो पौधा ल अपन बेटी-बेटा सहीं मानते हुए ओ जम्मो पौधा ल हमेशा जिंदा रखे के प्रयास करना चाही*

     *"प्रकृति अर्थात धरती  हमर माता आय !" धरती माता ल अपन सग्गे माता मान के "पर्यावरण प्रदूषण"  कम से कम करना  परम धर्म होना चाही !*

     *जल प्रदूषण,वायु प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण, संस्कार प्रदूषण ल रोकना हमर परम धर्म होना चाही, काबर के शुद्ध जल,वायु से ही हमर जिंदगी संभव हवय!*

     *दूषित जल,वायु से एक पल जीना भी असंभव हो जाही! तेकरे सेती प्रकृति अर्थात् धरती माता अउ पर्यावरण के सेवा करके "मातृभूमि के ऋण" से उऋण होना हमर परम धर्म होना चाही |*

     *ब्रम्हा जी के सृष्टि म "मानव योनी" ह सब से अनुपम,अनमोल अउ दुर्लभ योनी आय !*

     * *सिर्फ मानुष योनी ल  ही विधाता ह बुद्धिजीवी प्राणी बनाए हवय, सिर्फ मनुष्य ल ही हांसे के दुर्लभ योग्यता प्रदान करे हवय |* *पाप-पुण्य,धर्म-अधर्म के ज्ञान भी सिर्फ मनुष्य योनी ल ही प्राप्त हवय ! ये सृष्टि के क्षणभंगुर होए के ज्ञान भी सिर्फ मनुष्य ल ही प्राप्त हवय*

     *तभो ले क्षणभंगुर अउ माटी के पुतला ए मनखे ह अब्बड़ेच घमंड करथें ! अब्बड़ेच झूठ-लबारी बोलथें ! स्वार्थ सिद्ध करे बर साम,दाम,दंड,भेद के अब्बड़ेच उदीम करथें, धन-दौलत कमाए बर खूब पागल हो जाथें !*

     *विधाता के देहे अद्वितीय गुंण बुद्धिजीवी  हो के भी मनखे ह जब कामी,लोभी,दंभी,घमंडी, दुराचारी,हत्यारा, बलात्कारी हो जाथे,तब दुनिया के सकल पशु से भी बद्तर अउ नीच हो जाथें!*

     *तेकरे सेती सिरिफ मनखे बर लागू मातृ ऋण,पितृ ऋण,देव ऋण,ऋषि ऋण,कुल गुरू ऋण, आध्यात्मिक गुरु ऋण, मातृभूमि,जन्म भूमि,अपन घर-परिवार के प्रति ऋण,अपन गांव-बस्ती, जाति,समाज,देश, दुनिया के प्रति ऋण ल जानना खच्चित जरूरी हवय अउ ऊपर बताए गए जम्मो ऋण से उऋण होना ही सच्चा मानव  मात्र के धर्म आय*


      *ये आलेख -कर्जा (ऋण) आप जम्मो भाई-बहिनी ल कईसे लागिस ?*

       *अपन कीमती विचार समय निकाल के जरूर लिखिहौ | कंजूसी मत करिहा, आप मन के बहुमूल्य प्रतिक्रिया के हमेशा अगोरा करत रहिहौं*



 *सर्वाधिकार सुरक्षित*

दिनांक -०4.०7.2023



आपके अपनेच संगवारी


*गया प्रसाद साहू*

"रतनपुरिहा"

*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)*


मो. नं.-9165726696



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