Monday 24 July 2023

आस्था के अस्थि* (ब्यंग)

  *आस्था के अस्थि*

                                                (ब्यंग)

सतसंग अउ आस्था के असर ये रथे कि मनखे कम से कम नौं दिन नइते सावन भर वो सब ला छोड़ देय जेकर ले आस्था ला ठेस लगथे। बस ये परम्परा के पालन करत कतको जुग अउ पीढ़ी बुलक गे। फेर कतको ढीठ परम्परा के मनखे दोंदर भर बोज लेथे तब भक्ति करथें। तर्क बर अतका काफी के कि *भूखे भजन ना होई गोपाला* छाती पीट के रोये ले मरे हर नइ जीये फेर हाड़ा जब तक गंगा नइ नहाय घर मा शान्ति घलो नइ आय। बिचार के वेदना ला शांति करे बर ये करम नइ होइस माने सरग के दरवाजा के रहस्य भूत बँगला के रहस्य असन हो जथे। ढीठ पना मोरे एके झन के होतिस त महूँ मुँहूँ बाँध के रहि लेतेंव। आखिर नौं दिन अउ सावन भर के तो बात हे। फेर गणेश चिकन सेंटर अउ शंकर एग रोल वाले उपर तरस खाना परथे। महूँ कुछ दिन त्याग पत्र लिखित दे देहूं त वो शंकर के नानुक लइका दूध कइसे पीही।ओकर जोरा बर तो दुकान खोलेच बर परही।

         गाँव भर सरकार ले माँग करिन कि हमर गाॅव के सबले बड़का चउँक के नाम हमर राष्ट्रपिता के नाम मा होना चही। उही एक झन अइसे प्रतिभा आय जेकर फोटू सौ के नोट मा देख के समझ मा आ जथे कि ये कोन आय। धरना प्रदर्शन के बिना प्रजातंत्र वाले देश मा कुछू हासिल नइ होवय। गली पारा मिलके चक्का जाम करिन तब बापू के नाम मा चउँक होके आन लाइन जुड़ पाइस। आज मुहल्ला वाले मन ला लागत हे कि बापू हमरे पारा मा जनम लेय रिहिस। जब अतका बड़े महामानव के नाम मा चउँक बनगे तब जनता के प्रति सरकार के आस्था घलो जाग गे। बिना माँगे सँगे सँग ओहू काम  के सुभिता कर दिस जेकर बर लोगन ला चार कोस दुरिहा जाना परे। बापू के चउँक मा सरकारी ठेका के फीता काट डरिन। जेकर बर हाँफत कुदत चार कोस जाना परे आज दुवारी मा मिलत हे। ओकर समर्थन मुल्य के बढोतरी मा कोनो ला आपत्ति नइये। आज वो सबो मनखे मन इही आसिस देवत हे कि सरकार तोर कुरसी सदा साबूत रहे। अतका बड़े उपकार करे हवस वोकर बर हमर एक वोट अभी ले तोर नाँव मा तय हे। श्रद्धा अउ आस्था ले भरे कोनों मनखे संझा बेरा गाँधी चउँक जावत हवँ कथे ओतके मा समझ आ जथे कि ये पवित्र सदन मा सामिल होके आस्था के श्रद्धांजलि देय बर जाबत हे कहिके। अइसन भतीजा ला पाव अकन लाने के बिगारी तो करवा ही सकथस।

               मन अउ आत्मा ला मार के तो सदा दिन जीयत हवन। जेन सुख के आसा करथन वो तो मोहाटी ले लहुट जथे। आवक अतका नइये कि मन मुताबिक सुख सुविधा भोग सकन। फेर हैसियत के हिसाब ले गाँधी चउँक जाय बर नइ छोड़ सकन। ये पँदरा दिन के पाबंदी मा आस्था के अस्थि उजरा जातिस तब मोहाटी घलो नइ खुंदातिस। कंजूस के धन ला किरवा खाथे कथे। गाँठी मुँठी धर के राखे ले न तन सुख पाय न मन। सब ला इँहचे छोड़ के जाना हे त जीयत भर जौन मन करे कर ले मुँहूँ जेन माँगे गोंज दे। संसारी सुख के आनंद ये बिचारा जीभ घलो नइ ले पाही तब दस इन्द्री मे एक इन्द्री मरत ले कोसत रही कि वोकर रसा चाँटे के सुख नइ मिलिस कहिके। मन मार के जीये ले मन भर मजा उड़ा के मर।

                    माथा टेक घोलँड के पाँव  पर नाक रगड़ चरन धो के पी। नीयत तो एके रथे कि कुछ हासिल हो जाय। सवा रुपिया के परसाद चढाये बर पाँच सौ के लुगरा अउ रंग रोगन माला मेकप  लगा के मंदिर जाय ले भगवान समझ जथे कि येला जतका देना रिहिस वोकर ले जादा देवागे कहिके। फेर भगवान घलो मुँहूँ बाँध लेथे कि वो हाना के का होही जेमा केहे हे *भरे ला भरे अउ जुच्छा ला ढरकाय*। असल मा भेद भाव इँहचे ले इँकरे मन ले शुरू होय हावे। बाँट बिराज के देय के नीयत तो भगवान के घलो नइये। हम फोकट पटकू पहिर के घंटा हलात रथन हमरो सुन ले बिधाता कहिके। फेर भाग मा पहिली ले तय हे ओकर का अगोरा अउ का के आसा। बस आस्था बने रहय। एक झन कहि दिस कि देख रे बाबू *कुछ करनी कुछ करम गति, कुछ पुरबल के बात। राई घटे ना तिल बढ़े लिखे छठी के रात*। जे होना हे पहिली ले तय हे तब उपराहा के झन सोच। राजा घर राजा जनम लेथे परजा घर परजा हर। इही भगवान मन घलो जनम धरिन त बड़हर राज घराना मा। हमर राज के राजा मन गरीब हरिजन आदिवासी घर के खाना खा लेथे। गरीब सँग मितानी कर लेथे। फेर राजा बने के लाईक कभू बनन नइ देय। ना अपन सही खाये लाईक बनाय।

               जीयत भर दार नून बर पूछ लेथे तेकर ले मितानी हो सकथे। दीया बाती के मितानी बुझाय के बाद घलो बने रथे। जरहा बाती लटकेच रथे। *प्रीति करे ते अइसे करे जइसे दीया कपास*। इहाँ मरत ले मितानी निभाय बर हैसियत के तेल तमड़े जाथे। फोकट के नून अउ दू रुपिया किलो के चाँउर बर गरीबी रेखा के कारड बनाये बर परथे। चुनई बखत सरपंच उपर श्रद्धा राखे होबे त कारड जल्दी बन जही। नइते गोल्लर के पिछोत बाखा मा तिरसुल दाग के चिनहा पारे रथे ओइसने चिनहा पार के राखथे कि चुनाव बखत काकर बैनर ला छानी मा फहराय रेहे तेला। हमर सलाह ये रथे कि मन के दोगला पना ला ढाँक अउ जीयत भर सँग देय के जबान दे। आखिर जबान ही तो देना हे। ओहू बिना हर्रा फिटकरी के। जबान के सच्चाई अधर मा तो रथे फेर एक दूसर बर आस्था तो बने रथे। अउ फेर मुरदा उठके नइ पूछे कि कतका तीखा ओढाएव या कि कतका झन पँचलकड़िया डारेव। आस्था फकत आध्यात्म के घट भर मा नइ हो सके। हम अपन घर ले देख सकथन। ठूठी बाहरी नइते सूपा मा गोड़ लग जाय तब पाँव परके तिरिया देवन। अब जनम दूवइया दाई ददा ला लात मारके अलग डेहरी नइते वृद्ध आश्रम मा तिरियाय के नवा रिवाज अवतर ले डरे हे। बेटा बहू डोकरा ला जल्दी मरके कउँवा देव बने के बिनती बिनोत रथे। वो भुला जथे कि इही पेड़ के मजबूती ले हमर असन डारा पाना हरियर हावन। बहू मन ला बेटी अनगढ कवि मन अपन कविता मा बताथे। सच के दुनिया अलग हे। परछो लेय बर हे त बेटा के नौकरी भरोसा शहर मा राज करइया बहू ला चार महिना गाँव मा दाई ददा के सेवा बर छोड़ दे। परोस मा भावुक कवि रहत होही वो संयुक्त परिवार के वेदना ला आँसू बोहा बोहा के लिखही।

                 अपन हाथ के खाय मारे पर के परोसे मा हिता जही त आत्म संताप के झेल मा कतका दिन जी पाही। जिनगी ला चार दिन के कहि देय गेहे। पाँचवा दिन के कोनो प्रयोजन ही नइये। काबर कि चार पहर चार घड़ी चार जुग चार बेद चार संगी अउ फेर आखिर मा चार कंधा। कभू पाँचवा के योगदान सपलीमेंट्री के रूप मा घलो नई हो पाईस। हम चार पईसा धरके चार धाम किंजरत हन। जिंहा चार पईसा सिरागे उँहिचे सबो श्रद्धा आस्था सिरा जथे। जब चार पईसा के बैसाखी घलो छुटगे वो दिन आस्था के देंह मा माँस झूलत मिलथे। बस अस्थि टँगाय दिखथे। दीया सबके डेहरी मा बरथे। बाहरी सबो के अँगना मा लगथे। फेर लछमी घलो टाइल्स लगे अँगना अउ फिनाइल के पोछा वाले घर मा जाथे। झिल्ली खाके गोबर देथे ते गाय के गोबर मा लिपाय अँगना मा फकत भिनभिनात माछी खुसर सकथे।

                    ये धरती मा मनखे जोनी ला बिना काम बिना मोल के सबले बेकार कहि दिस। तभे तो दोहा लिखे हे *पशु तन के पनही बने नर तन बने न कोय*। मरे मा तो अइसे भी कोनो काम के नइये। जीयत भर स्वारथ लोभ मोह ईर्ष्या द्वेष कपट मा जीथे। अउ कतको झन तो मर के घलो पेरत रथे। दिखावा के श्रद्धा आस्था विश्वास के नाँव मा ठग करने वाला खुदे कतका ठगाथे गम नइ पाय। पालकी चढ़ना हे त काकरो पीठ मा पाँव मड़ाबे तब चढ़े पाबे। इही रिवाज के दर्शन हर दर्शन शास्त्र के मूल हो सकथे। जे पीठ मा पाँव रखत हे वो पेट मा लात मारे बर नइ छोड़े। आज के समे मा इही नियति आय। माया उपर मोह श्रद्धा आस्था जगत के सार आय। माया जादा सकेलागे त वोकर सिराना बनाके सूत। नइते स्वीस बैंक मा खाता खोलवा सकथस। अब कागजी माया उपर आस्था कम होवत जावत हे। वो एकर सेती कि कते दिन सरकार फरमान जारी कर दिही कि दू हजार के गुलाबी माया चलन ले बाहिर हो जही। अउ हो घलो गे। जेकर तिर नहाय के बाद निचोय बर कुछू नइ हे वोमन बड़ खुश रिहिन कि अब हमर बिरादरी के अबादी बाढ़ही कहिके। फेर छितका कुरिया हर बँगला हवेली के पार नइ पा सके।

                 हरिद्वार मा हरि के दर्शन अउ परसाद बर रेट सूची टँगे मिलथे। सवा रुपिया मा नरियर के खोटली। सौ मा भभूति अउ हजार पाँच हजार मा तिर ले दरसन के सँग पुड़िया बँधे परसाद पाबे। तभो ले मनखे आस्था हिन नइये। पुजारी हाथ के चुटकी अकन भभूत मा सवा किलो लाईचीदाना मा सान के गाँव भर ला बाँटके तिरथ दरसन करा देथे। गाँव के तरिया पार के एकलौता मंदिर गाँव भर ला जोड़ बाँध के राखे रिहिस। आज गली गली मा मंदिर जे हर गांव ला पारा पारा मा बाँट दिस। फेर आस्था ला बढ़ चढ़ के देखाय बर दूसर पारा के मुरती ले अपन पारा के ला बड़का रखना परथे। जगराता के ठेका पंडाल वाले भर के नइ रहय। योगदान सबके रहना चाही। इही कारन हे कि पोंगा माईक के मुँहूँ चारो दिसा मा रखके चौबीसों घंटा भक्ति रस बोहाना परथे। गणिका आजामिल अउ सदन कसाई ला भगवान दरसन देखा दिस। रैदास के कोटना मा गंगा पहुंच गे। सबरी के झाला मा राम जी पहुंचगे। हम श्रद्धा अउ आस्था मा बूड़के डी जे बाजा बजा बजा के नाचत हन कि कभू ते हमरो दरसन हो जाय। इँकर डी जे नाचा बाजा ला देख के हाथ जोडके मोला कहना परथे कि *स्वामी मँय मूरख तुम ज्ञानी*।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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महेंद्र बघेल:

 आस्था के अस्थि ह समाज म बगरे सामाजिक,धार्मिक अउ राजनीतिक विसंगति उपर करारा व्यंग हे। कन्हो भी क्षेत्र के विसंगति होय आपके पैनी निगाह ले वोहा नइ बाच सके। आस्था के नाम म उन्माद आज के नवा संस्कार बनत जात हे, पढ़े लिखे आदमी मन संयुक्त परिवार के महत्तम ल भुलावत जात हे, बर-बिहाव होइस तहा बेटा-बहू ल दाई-ददा के बोली -बचन ह नइ सुहाय। भौतिक सुख सुविधा के मायाजाल ह अपन डेना ल दिन दूनी रात चौगुनी फैलावत हे। जेकर ले परिवार अउ समाज के ताना-बाना ह लिल्हर परत जात हे। का दूसर ल कबे एकर बर हम सब जुम्मेवार हन। आप ह इही तमाम विसंगति उपर बड़ बेबाकी ले कलम चलाके समाज के मुंदाय ऑंखी ल उघारे के जतन करत हव।

शानदार भाषा शैली ह जानदार अउ असरदार हे, बीच-बीच म हाना के सटीक उपयोग सन्दर्भ ल प्राणवान बनात हे। धरम के नाम म आम-आदमी ह खुद ल लुटवाके अपन आप ल धन्य महसूस करत हे,तब येकर ले बढ़के समाज के अउ का विसंगति हो सकथे। इही सब ल देखके एक कलमकार के मन ह अंदर ले कचोटथे तब एक सिद्धहस्त कलमकार ल समाजिक दायित्व निभाय बर आस्था के अस्थि जइसे व्यंग्य ल समाज के बीच परोसना पड़थे। ये उदीम बर आपला बहुत बहुत बधाई।       आपके कलम अइसने चलत रहय। कलम के जै हो 🙏🙏🙏

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