Thursday 20 July 2023

बरसात मा महँगाई-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 बरसात मा महँगाई-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                 असाढ़ ले सब ला आस रथे, काबर कि असाढ़ आथे धरके पानी, अउ पानी आय जिनगानी। चाहे वो जीव जंतु होय या पेड़ पउधा या फेर तरिया नदिया, सबे इहिच बेरा अघाए दिखथे, फेर भुखाय दिखथे ता हाँड़ी, काबर कि बरसात लगत साँठ खेत खार बारी बखरी मा पानी भर जथे, अउ जम्मो खड़े साग भाजी के फसल चोरोबोरो हो जथे। ना बने भाजी भाँटा मिले ना मिर्चा धनिया। टमाटर,आदा, लहसुन,पियाज, गोभी कस अउ कतको साग भाजी महँगा हो जथे। ये बेरा मा हरियर  साग-भाजी छोट मंझोलन के हाथ घलो नइ आय। चारो मुड़ा महँगाई महँगाई राग सुनावत दिखथे।  एक समय इभी टीवी  पाकिस्तान मा टमाटर के खबर बतावत हाँसत, नइ थकत रिहिस, ते आज  खुदे टमाटर के महँगाई के मारे थर्रा गेहे, तभे तो मुँह ले बख्खा नइ फूटत हे। आज बंगाला,आदा,दार,कस अउ कतको साग भाली दोहरा, तीसरा शतक मारत हे, हाय रे महँगाई। 

                  कथे कि, यदि प्रकृति के संग चलबे ता प्रकृति वोला पालथे, फेर मूरख मनखे मन तो प्रकृति ले मुँह मोड़ लेहे, ता महँगाई भर का अउ कतको आफत झेले बर पड़ही। कटत पेड़, अँटत नदिया नरवा, भँठत बखरी ब्यारा, बढ़त प्रदूषण अउ कांक्रीटीकरण के मारे प्रकृति खुदे आकुल- ब्याकुल हे,ता का मनखे अउ का जीव जानवर। आधुनिकता के मोह मा चूर मनखे प्रकृति ला लात मारत जावत हे। फ़्रिज,टीवी, महल,मीनार,टॉवर,कल कारखाना, खच्चित नवा जमाना मा कूदा सकथे, फेर पेट मा कूदत मुसवा ला नइ चुप करा सके। एखर बर खेती किसानी, बखरी ब्यारा जरूरी हे। कृषि भूमि भारत आज अपन ये छबि ला धूमिल करत जावत हे। किसान अउ कृषि भुइयाँ दिन ब दिन कमती होवत हे। सब ले ले के खाना चाहत हे, उपजा के खवइया गिनती के हे। अइसन मा जे धर पोटार के रखे रही, ओखरे बोलबाला  तको रही, अउ इही होवत हे, कोल्ड स्टोरेज के जमाना मा नफा व्यापारी मन कमावत हे। *मैं तो कथों जे दिन तक कोठी मा धान रही, ते दिन तक ईमान रही।* आज कोठी,काठा के जमाना नइहे, अइसन मा ईमान, धरम ल भूले बर पड़त हे, सब आफत मा अवसर खोजइया हे। किसान के बारी बखरी ले जब इही बंगाला भक्कम निकले, ता सड़क तक मा कोल्लर कोल्लर फेकाय दिथे, अउ जब बरसा घरी धान, पान अउ पानी बादर के सेती बखरी उजड़ गे, ता ये  स्थिति हे। बरसा घरी फकत इही साल अइसन महँगाई आय हे, यहू बात गलत हे। काबर कि अइसन स्थिति हर बछर बनथे। हरियर साग भाजी  सहज नइ मिले, अउ मिलथे ता बनेच महँगा। पेड़ प्रकृति, बखरी ब्यारा, खेत खार ले जतका दुरिहाबों ओतके दुख भोगेल लगही।


             मोला मोर ननपन के सुरता आवत हे, जब डोकरी दाई अउ ममा दाई मन रोज गरमी घरी कभू तूमा, कभू कोंहड़ा, कभू रखिया ता कभू पोगा कस कतको किसम के बरी बनाये, अउ रोज रोज रंग रंग के भाजी पाला ,साग सब्जी ला घाम मा सुखाए। पूछंव ता काहय कि,  चौमासा के जोरा करत हन बेटा। अउ उही जोरा के सेती, वो बेर उन मन ला कभू बाजार हाट के मुँह ताके के जरूरत तको नइ पड़िन। गर्मी मा चौमास बर जोरा सबो चीज के होय, चाहे छेना लकड़ी, पैरा भूँसा, भाजी खोइला होय या छत छानी, पंदोली या फेर टट्टा झिपारी। अउ एखरे सेती चौमासा बढ़िया बीते तको। अइसे नही कि रात दिन बरी बिजौरी ही खाएल लगे, रोज बदल बदल के साग बने। एकात दिन सेमी भाँटा खोइला, ता एकात दिन आलू मसूर-चना। कभू लाखड़ी ता कभू चना चनवरी भाजी, कभू काँदा, कभू बड़ी ता कभू कढ़ी। एखर आलावा हरियर साग भाजी बारी बखरी के तको निकले, जइसे जरी, खोटनी, चेंच, चरोटा,खेकसी, कुंदरू। संग मा खेत खार ले रंग रंग के पुटू, बोड़ा अउ करील। तरिया नरवा मा चढ़त मछरी कोतरी तको ये समय सहज मिल जथे। घरों घर नींबू,पपीता, केरा, मुनगा के पेड़ तको रहय। अदरक के पत्ता चाहा बनाये के काम आ जाय, चाहा तको बढ़िया लगे।फेर आज कहाँ कोनो पीथे। ये प्रकार ले चौमास के जोरा अउ पेड़ प्रकृति ले जुड़े रहे मा, कभू साग सब्जी के किल्लत नइ होवत रिहिस।

 फेर आज मनखे कर न बखरी ब्यारा हे न खेत खार,  अउ थोर बहुत हे उहू मा क्रांकीट अउ मार्बल लगे हे, अइसन मा कहाँ खेकसी कुंदरू, चेंच चरोटा अउ कहाँ के पुटू, बोड़ा अउ काँदा कुसा।

                         आज मनखे रोज रोज बाजार ले भाजी पाला लाथे ता रांधथे खाथे। जबकि पहली के सियान मा कतको दिन के झड़ी, झक्कर अउ पूरा तक मा घर के ही साग भाजी ला खाये। कोन जन आजो अइसने हो जही ता का होही। घर मा ना बरी हे, ना बिजौरी न कुछु सुक्सा अउ न बारी बखरी। मनखे के जिनगी चुक्ता बाजार मा टिके हे, अइसन मा बाजार बाजा बजाबे करही। कभू नरियात, ता कभू कोनो ला गरियात काटव बरसा ला, फेर यहू बात ला झन भुलव कि दोषी खुदे हरव, काबर कि अपन संसो खुदे नइ करत हव। काली बर धन दौलत तो जोड़त हन,फेर जिनगी, नइ जोड़त हन। आज मनखे ला, हाय हटर अउ ताजा ताजा खाबो वाले चोचला, ले डूबत हे। तभे तो रोज रोज लेवत खावत हे। भले बोतल अउ पाउच के बासी पानी, लस्सी, मटर,मशरूम कतको दिन के होय। टमाटर, समाटर तको तुरते के टोरे नइ रहय। ताजा ताजा कहिके राग लमाइया, फ्रिज मा पन्दरा पन्दरा दिन साग भाजी ल रख के खवइया संग कोन मुँह लड़ाय। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

No comments:

Post a Comment