Wednesday 31 August 2022

सुन मोर सुवा ना -सरला शर्मा

 सुन मोर सुवा ना -सरला शर्मा

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   हमर छत्तीसगढ़ के लोकगीत मन मं सुवा गीत हर नारी मन के सुख दुख के जनारो देवइया अकेल्ला गीत आय जेमा बाबू लइका मन के कोनो भूमिका नइ रहय दूसर बात के एहर समूह नृत्य घलाय आय तीसर बात के एकर प्रस्तुति मं कोनो किसिम के   बाजा ( वाद्य यंत्र ) के उपयोग नइ करे जावय । 

     एक ठन चरैहा ( टुकनी ) नहीं त दौंरी मं चाउर भर के दू ठन सुवा बैठारे जाथे जेला शिव पार्वती के प्रतीक माने जाथे काबर के गौरा गौरी बिहाव के समय ही सुवा गीत सुनाथे । पारा मोहल्ला के बहिनी भौजी मन टुकनी के चारों मुड़ा गोल घेरा बना के सुवा नाचथें । कोनो कोनो गीत हर सवाल जवाब शैली मं घलाय होथे त आधा झन मन निहुर के नाचत रहिथें , आधा झन मन खड़े खड़े रहि के सवाल करथें जेकर जवाब निहुर के नचइया मन देथें । विशेषता ए हर आय के हांथ के ताली अउ गोड़ के थाप दूनों एक संग परथे " तरी नरी नहना मोर तरी नरी नहना रे सुवा ना " शीर्षक  डांड़ रहिथे । 

     राम कथा , कृष्ण जन्म , शिव पार्वती बिहाव ,राजा हरिश्चंद्र कथा असन जुन्ना पुराण कथा मन के प्रसंग सुवा गीत मं गाये जाथे । समय बदलत गिस धीरे सुस्थे समाज मं घटित प्रासंगिक घटना मन घलाय एमा जघा बनाए लगिन विशेषकर महात्मा गांधी के चरखा , ललमुंहा अंगरेज त आजकल के साक्षरता अभियान असन घटना मन । संगवारी मन ! अब चिटिक पाछू डहर चलिन के कोन परिस्थिति मं सुवा गीत के जनम होए रहिस होही । अईसे लागथे के दुलौरिन नोनी गवन पठौनी के बाद जब ससुरार आवत रहिस होही त उंहां तो सबो झन अनचिन्हार रहंय , दूसर बात के लइकन चल देवयं खेले कूदे त सियान मन खेती किसानी मं लग जावयं , बपुरी नवा बहुरिया घर मं अकेल्ला काकर  तीरन बोलय बतरावै त परछी मं नहीं त अंगना के ओरवाती के पिंजरा मं बइठे सुवा संग सुख दुख गोठिया लेवत रहिस होही ...। सास ननद के बोली ठोली , देरानी जेठानी के हिजगा पारी , त धनी के प्रेम पिरीत अतके भर नहीं मइके के सुरता दाई ददा के मया दुलार , संगी जंवरिहा मन के हांसी ठठ्ठा काकर तीर कहय सुनय , काला बतावय त सुवा ल सुना के जी जुड़वा लेवत रहिस होही ...उही हर सुवा गीत के रूप मं उजागर होइस होही । 

     सुवानाच के ओढ़र मं नोनी लइका मन ल चिटिक घर ले बाहिर निकले के मौका मिल जाथे अतके नहीं नाचे गाये के अपन गुन ल बताए के रस्ता मिल जाथे । इही नहीं पारा परोस के नोनी लइका मन ल जुर मिल के उदिम करके गौरा गौरी बिहाव करे बर चार पैसा घलाय मिल जाथे , परभरोसी नोनी लइकन के मन मं अपन बल बूता मं चरियारी काम करेके मौका घलाय मिल जाथे जेहर उंकर संगठन शक्ति अउ प्रबंधन के जब्बर उदाहरण आय । 

    कोनो कोनो सुवा नाच मंडली मं टुकनी मं बड़े हीरामन सुवा के चारों मुड़ा पांच ठन छोटे छोटे सुवा राखे के रिवाज हे जेहर आत्मा अउ मनसे के पांचों इन्द्रिय के प्रतीक होथे । अईसे भी तो  सुवा ल आत्मा राम घलाय कहिथें , दूसर बात के आत्मा ही हर तो पांचों इन्द्रिय ल बस मं करके परमात्मा ल पाए के उदिम करथे एई हर सुवा गीत के दार्शनिक पक्ष  आय । 

   सुवा च हर सबो पंछी पंखेरू मन मं ऐसनहा जीव आय जेहर मनसे के बोली सुनथें , समझथे , बोलथे । थोरकुन अउ पीछू चलिन त पाबो के महाभारत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास गुनी मानी मनसे रहिन त अपन बेटा के नांव शुकदेव काबर राखे रहिन ओहू वो बेटा के जेहर अपन बाप ले जादा गुणधर रहिस , ज्ञानी ध्यानी रहिस । मन मं सवाल उठथे के भाषा के जानकार , बुधियार व्यास मुनि ल आउ कोनो नांव नइ मिलिस के शुक ( सुवा)  नांव धरिन ? जवाब मिलथे के सुवा ज्ञानी ध्यानी जीव आय , आत्मा के प्रतीक आय तभे तो आत्मज के नांव सुकदेव राखे रहिन । रामायण के लिखइया वाल्मीकि के आश्रम तुरतुरिया के पिंजरा मं झूलत सुवा  लव कुश संग रामायण गान करय , सीता के सिखोये राम राम रटय । 

   श्रीमद्भागवत पुराण मं सुक सनकादिक ऋषि मुनि मन के ज्ञान सभा के वर्णन मिलथे जिहां इहलोक परलोक , गति मुक्ति , आत्मा परमात्मा के बारे मं गहन गम्भीर चर्चा चलय । बड़े बड़े सन्त महात्मा ये सभा मं सत्संगति लाभ लेवयं । 

  संस्कृत के विद्वान साहित्यकार बाणभट्ट के उपन्यास ' कादम्बरी ' मं वैशम्पायन नांव के सुवा के प्रसंग आथे जेहर बुधियार मंत्री असन राजा ल सलाह मशविरा देवय । अतके नहीं रानी के सुघराई के वर्णन करय , गति मुक्ति के गोठ बात करय , समझावय । 

      " शुकनासोपाख्यान" के सुवा हर तो बड़े बड़े गुरुजी असन  सिखौना देवय जेहर इहलोक परलोक दूनों बर संजीवनी बूटी के काम करय । अतके नहीं " शत सहस्त्र रजनी " मं नारी घाती राजा ल उचित शिक्षा देहे बर मंत्री के बेटी अपन जीव प्राण ल होम के राजा संग बिहाव करथे त छोटे बहिनी अउ सुवा ल माध्यम बना के हजार ठन कहानी राजा ल सुनाथे ..विशेषता ये आय के सबो कहानी मंगला चरण ले शुरू होवय फेर सबके कल्याण होवय संग खतम होवय । इहां सुवा हर कल्याण करइया , साखी रहइया पखेरु के भूमिका निभावत दिखथे । 

            तइहा दिन ले आज तलक सुवा ल सबो झन कल्याणकारी , उचित शिक्षा देवइया , सुख दुख के साखी अउ परमात्मा संग भेंट कराने वाला , संदेश वाहक पाखी समझथें , मानथें । 

      सुवागीत के लौकिकता अउ पारम्परिकता ऊपर कोनो किसिम के उजर आपत्ति नइये फेर एकर दार्शनिक , पारलौकिक पक्ष उपर घलाय ध्यान देना चाही । सुवा लोकगीत , लोकनृत्य के पारम्परिकता , ऐतिहासिकता अउ लोकमंगल के भावना उपर विचार करे के , संरक्षण , संग्रहण  अउ विकास बर ठोस कदम उठाए जाना चाही त शासकीय संरक्षण के संगे संग एला राजकीय लोकनृत्य के सम्मान मिलना चाही । छत्तीसगढ़ महतारी के दुलौरिन बेटी मन के लोक नृत्य ल सम्मान देना छत्तीसगढ़ के माटी के  वंदना होही । 

  साभार **** 'आखर के अरघ ' लिखइया ....सरला शर्मा 

   प्रस्तुति 

सरला शर्मा ( दुर्ग )

सुवा नृत्य तिरिया जनम झन दे, ना रे सुवना

 सुवा नृत्य

तिरिया जनम झन दे, ना रे सुवना

सुवा नृत्य छŸाीसगढ़ के लोकप्रिय नृत्य हरे। भारतीय साहित्य म जऊन जघा कोइली (कोयल) ल मिले हे उही जघा लोक जीवन (छत्तीसगढ़ी) म सुवा (मिट्ठू, तोता सुग्गा) ल मिले हे। आदिकाल ले सुवा ल संदेश वाहक के रुप म जाने जाथे। सुवा ले जुड़े ‘सुवा नृत्य’ ह छत्तीसगढ़ के आदिवासी मन के धार्मिक मान्यता अऊबिसवास ले जुड़े हे। गोड़ मन शंकर (गौरी) अऊ पार्वती (गौरी) के बिहाव ले ‘गौरा पर्व’ के रुप म मनाथे। धनतेरस के दिन ले सुवा नृत्य के शुरुआत होथे। इही रात ले गोड़िन मन गौरागुड़ी म फूल कुचरथे अऊ दिन म घरो-घर जोहारे बर जाथे। गपौरा-गौरी के बिहाव के आयौजन खातिर धन राशि सकेले के उद्देश्य ले माईलोगन मन के सुवा नृत्य के शुरुआत होइस होही। शंकर अऊपार्वती के प्रतीक स्वरुप टूकनी (कड़रा जात के मन बनाथे) म धन ऊपर दू ठन सुवा ल बइठार के धान के बाली ले इखर सोभा ला बढ़ाथे। टूकनी बोहइया नोनी ल सुग्गी कहिथन। सुग्गी ह माटी के सुवा बना के काड़ी म ओखर पेट ल गोभ के घाम म सुखो देथे। सुखाए के बाद चोंच ल चूरी (लाल) रंग म अऊ बाकी ल टेहर्रा (हरा) रंग म रंगा के जुग जोड़ी ल टूकनी म बइठार देथे।


    माईलोगन मन सुवा नाचे बर सिंगार कर के निकल थे। इखर कान म खोंचाए दावना ह आदिवासी लोक संस्कृति के परिचय कराथे। कलई म ऐंठी, हररैया, बांह म पहूंची, गला म सुर्रा, रुपिया, सूता, हाथ के अंगरी म मूंदरी, कान म खिनवा, झूमका, नाक म फूली, नथनी, मूड़ी म किलीप, पीन, कनिहा म-करधन, गोड़ म लच्छा, सांटी, पायल, टोड़ा अऊ पांव के अंगरी म बिछिया ले तन ह भरे रहिथे। पांव के माहूर हथेरी के मेंहदी अऊमाथे के टिकुली ह तो नारी के सौंदर्य ल निखार देथे। सुवा नृत्य करइया दल ठाकुर जोहारे ल आए हन कहि के घर म प्रवेश करथे। सुवा गीद म नारी जीवन ले जुड़े वेदना, अनुराग, अन्तव्र्यथा गीद, पौराणिक अऊ धार्मिक विकास ले जुड़े गीद क संगे संग स्वतंत्र कथा शैली म सुवा गीद के समागम रहिथे जऊन ह असीस गीद ले सिराथे। टूकनी ल बीच म मड़ा के गोल घूम के थपरी (ताली) पीटत सुवा नाचथे। एक झन ह सुवा गीद ला गावत आगु तीन बढ़थे तेन ल बाकी मन दुहराथे। सुवा नृत्य के शुरुआत देवी देवता के संगे संग भूईया, अकास, भवाानी अऊ मरता-पिता के वेदना ले प्रारंभ होथे-

     सुमिरौ मय सकल जहान सिया रामे हो सुवा 

     अइसे सुनो हो सराइयो सुवा 

     हथवाा म सुमिरौ मय धरती चरनिया

     उपरै सुमिरौ भगवान

     पुरब ले सुमिरौ मैं उगत सुरुजिया

     पश्चिम सुमिरौ सुविहान 

     उत्तर म सुमिरौ मैं सरसती मइया

     कंठे म गौरी गनेस।

पहिलीच गवन म मोला डेहरी म बइठार के जोड़ी बेपार करे बर परदेश चले हे। नारी के पीरा ल नारिच ह जानथे तभे तो छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य गम्मत म लोटिहारिन 8जनाना9 ह गाथे-जोड़ी बिना जग लागे सून्ना य नइ भावय मोला सोना चांदी महल अटारी। जिनगी के अधार पति हरे। जोड़ी बिना तो जग ह अंधियार लागबेच करही।

घर दुआर तोर बहुरिया, डेहरी म पांव झन देहा कहि के सावस ह डेहरी के ओपार पांव रखे बर मनाही कर देथे। अब तो माईलोगन बर पिंजरा म धंधाए सुवा ह दुख-सुख के संगवारी रहि जथे। टपट कुरु टपट कुरु कहि दे रे मिट्ठू, राम-राम काह रे मिट्ठू , साग आवत हे पानी दे दे वो दीदी.... सुवा ल पढ़ावत-पढ़ावत मन के पीरा ल सुवा करा गोठिया के दुख के भारी पांव ल हरु कर लेथे। नारी ह गरुवा ताय। जि5ंहे बांध देबे उंहे बंधा जथे। पति के विरजह म जरत नारी जिनगी ले तंग आ के चंदा सुरुज ले बिनती करथे कि मोला सब योनी म जनम देबे फेर नारी जनम झन देबे-

प्इंया मय लागत हंव चंदा सुरुज के सुवना

तिरिया जनम झनि दे रे सुवना 

तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर रे सुवना

जंह पठावय तहं जाय रे सुवना

 अगंठिन मोरा-मोरी घर लिपवाय रे सुवना मोर ननदी के मन नइ आय रे सुवना

पहिली गवन के डेहरी बइठारय रे सुवना

छोड़ी चलय बनजर रे सुवना

सुवा गीद तो करुण रस म गिदगिद ले फिंजे हे। तय तो अघात सुन्दर दिखत हस सुवा। तोर  चोंच ह पक्का कुंदरा कस सुरुक लाल हे। तोर आंखी ह मसूर दार कस ललहूँ हे। अऊ तोर पांख ह तो जोंधरा (भूट्टा) के पाना कस हरियर हे। सुवा के बड़ई करके जोड़ी करा अपन संदेश पहुँचाए बर बिनती करथे-

  चेंच तोर हवय लाली कुंदरु अस रे सुवना

  टांखी दिखय मसुरी के दार 

  जोंधरी के पान सहि डेना सँवारय रे सुवना 

  सुन लेबे बिनती हमार 

  सास मोर मारय, ननद गारी देवय रे सुवना

  राजा मोर गइन बिदेस

  लहुरा देवर मोर जनम के बइरी रे सुवना 

  लेई जाबे तिरिया संदेश......

सुवा नृत्य दल ल घर मालकिन मन धान, रुपिया, तेल, फरा आदि जेखर जतना बन जथे ओतने उपहार ल सूपा म लान के देथें तहान सुवा नचइया मन घर वाले मन ल सुवा गीद के माध्यम ले एदइसन असीस देथे--

  तरि नरि नाहा नरि नहा नरि नाना रे सुवना 

  तरि नरि नहा नरि नाना

  जइसे के माता लिहे दिहे आना रे सुवना

  तइसे तंय लइ ले असीस

  धने दोगाली तोर घर भरही रे सुवना

  जीबे जुग लाख बरीस.......

  सुरहोती (लक्ष्मी पूजा) के रात ठाकुर (गोड़) मन, सुवा नचइया मन ल उपहार म जउन रुपिया, तेल फूल ल गौरी-गौरा के बिहाव म उपयोग करथे। फरा घलो मिले रथे। तेला गौरी-गौरा बनइया अऊबजनइया मन एदे गीद ल गा के लूट के खाथे-

  झूपे ते झूपे

  फरा ल लूटे 

  ठही गांव के टूरा मन 

  फरा ल लूटे

राऊत नृत्य ह निमगा पुरुष मन के हरे उही किसम ले सुवा नृत्य ह सिरीफ माईलोगन मन के हरे। राऊत मन कस सुवा नचइया मन घलो जेठऊनी तक ठाकुर (मालिक) मन घर जोहारथे। सुवा नाचे बर दूसर गांव चलो जाथे। जऊन भी उपहार मिलथे वोला आपस म बरोबर-बरोबर बांट लेथे। जेठउनी (देव उठनी) के बिहान दिन सुवा ल ठण्डा कर देथे। सुवा नृत्य ह भले समाप्त हो जथे फेर गीद बखत-बखत म फूटत रहिथे। महतारी ह सुवा गीद गावत लइका ल भुलवारथे। पेट सेंके के बखत, निंदई कोड़ई करत, धान लुवत सुवा गीद सुने बर मिलथे। छत्तीसगढ़ म सुवा (पड़की) नृत्य सरीख पोवा नाचथे। माईलोगन मन हरेली के दिन चूकिया म रोटी भर के पेड़ म पटकथे। गोबर के फोदा उपर तरोई के फूल ल खोच के मड़ा देथे। फोदा ल बीच म राख के गोल घुम-घुम के थपरी बजावत नाचथे तेन ला पोवा कहिथन।सुवा नृत्य ह नारी जीवन के दरसन कराथे। जबकि पोवा ह माईलोगन मन के इमनोरंजन करथे। आज जोड़ी ह संग म रहितीस ते जीनगी ल हांसत कुलकत पहा लेतेन। फेर भगवान ह तो मोर गोसईया ल नंगा लीस। मोर जीनगी बेअधार होगे। का करबे कोन जनम के पाप ल भोगत हंव ते मोर हाथ के सुवना (जोड़ी) ह उड़ागे। गम्मत म जनाना ह आत्मा ल सुवा अऊ तन ल पिंजरा माने हे....

     उड़ी जाही दीदी ओ

     एक दिन पिंजरा के सुवना उड़ी जाहि ना......


दुर्गा प्रसाद पारकर

आशीष नगर, प्लाट-3,सड़क-11 पश्चिम, रिसाली भिलाई, दुर्ग, (छ.ग) 

7999516642,9827470653

भोजली लोकगीत"-प्रकृति पूजा के प्रतीक(गयाप्रसाद साहू रतनपुरिहा


 

भोजली लोकगीत"-प्रकृति पूजा के प्रतीक(गयाप्रसाद साहू रतनपुरिहा

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    *छत्तीसगढ़ के लोकगीत म "भोजली लोकगीत" ह खूब लोकप्रिय अउ कर्णप्रिय लगथे | ए लोकगीत म कोई भी वाद्ययंत्र के जरूरत नइ होय, जैसे सब प्रकार के वाद्ययंत्र ले बांसुरी ह सब ले सस्ती-सुलभ होते हुए भी सभी वाद्य यंत्र ले जादा मिठास अउ मनमोहनी होथे | तईसनेच "भोजली लोकगीत" ह बिना वाद्य यंत्र के होते हुए भी खूब कर्णप्रिय अउ मनमोहक लगथे | तेकर कारण हवय-  भोजली दाई के पींयर-पींयर स्वरूप ल देखते सांठ तन-मन ला शांति मिलथे, नयनाभिराम लगथे, तईसनेच भोजली दाई के सेवा बर गाने वाला "भोजली गीत" जब पारा-मुहल्ला के जम्मो कुंवारी बेटी -बहिनी के मुखारवृंद ले एक स्वर म सुनाई देथे,तब सुनैया लईका,सियान अउ जम्मो जवान के मन ल मोहित कर देथे | कुंवर पींयर-पींयर  भोजली दाई के स्वरूप ह लोकलुभावन होथे,तईसनेच कुंवारी बेटी बहिनी के मधुरस घोरे सहीं "भोजली लोकगीत" ह जम्मो मनखे के तन-मन म आस्था, श्रद्धा अउ भक्ति भाव से ओतप्रोत कर देथे* |

    *सावन अंजोरी पाख  साते के दिन  जम्मो कुंवारी बेटी मन एक जघा सकला के मुहल्ला के कोनो मुखिया घर सामूहिक रूप से छोटे-छोटे टुकनी म कन्हार के माटी, छेना के खरसी अउ थोकिन राख ल मिला के सात प्रकार के अनाज -गेहूं,चना,तिवरा, ज्वार,बाजरा,जौ, तिलहन आदि ल अच्छा घना बो देथें | दिन भर खेत म धान के रोपा लगाई,निंदाई करके जब भैंसा मुंधियार अपन-अपन घर पहुंचथें,तिहां हाथ-गोड़ धो के जऊन मुखिया घर भोजली बोए रहिथें,तिहां जा के  "भोजली दाई" ल जल सींचथे फेर दीया-अगरबत्ती जलाथें,गुड़-घी के हूम देथें अउ खूब भक्ति भाव से भोजली के सेवा गीत गाथें,तेला भोजली गीत कहिथें* |

   *भोजली गीत के कुछ लाईन प्रस्तुत करत हौं:-*

*पानी बिना मछरी, पवन बिना धाने -२*

*सेवा बिना भोजली के तरसैं पराने*

     *आ हो ! देवी गंगा........*


*देवी गंगा -देवी गंगा लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा*

    *हमरो भोजली दाई के भींजे आठो अंगा*

     *आ हो $$$ देवी गंगा ........*


    *माड़ी भर जोंधरी,पोरीस कुसियारे-पोरीस कुसियारे*

    *, जल्दी -जल्दी बाढ़ौ भोजली, जाहौ ससुरारे*

     *आ हो $$$देवी गंगा ........*


    *लीपी पारेन -पोती पारेन, छोड़ी पारेन संगसा ओ छोड़ी पारेन संगसा*

    *हमरो भोजली दाई ल चाबथे मंगसा !*

     *आ हो $$$ देवी गंगा ........*


   *आई गई पूरा,बोहाई गई कचरा-बोहाई गई कचरा*

     *हमरो भोजली दाई के सोने-सोन के अंचरा*

     *आ हो $$$ देवी गंगा .......*


   *भोजली ल बोए के बाद खुला आंगन या सूर्य के प्रकाश  म नइ राखैं,बल्कि कोठी-किरगा के तरी मुंधियार जघा म राखथें,जिहां सूरूज देवता के रोशनी झन मिले,तेकरे सेती भोजली ह एकदम पींयर-पींयर सोनहा कुंवर -कुंवर दिखथे | तऊने ल लोकगीत के माधुर्य भाव म "हमरो भोजली दाई के सोने-सोन के अंचरा कहिथैं*


   *सावन महीना म गांव-गांव म मच्छर खूब बाढ़ जाथे, तऊने ल भगाए बर धूप अगरबत्ती जलाथें अउ लोकगीत म गाथें-हमरो भोजली दाई ल चाबथे मंगसा*

   

    *जैसे चैत अउ कुवांर म जंवारा बो के नौ दिन-नौ रात तक सेवा करथें, तईहनेच भोजली दाई के नौ दिन-रात तक सेवा करके रक्षाबंधन के दिन राखी बांधथें | चऊमास महीना म भरपूर पानी बरसे जेमा सब किसान के खेत म भरपूर फसल होवय, अईसे मनोकामना करके रक्षाबंधन के बिहान दिन संझा बेरा गांव भर के भोजली ल कुंवारी कईना मन सुग्घर नवा लुगरी-पोलका पहिर के नदियां,नरवा या तालाब के एक घाट म बिसर्जन करे बर समूह गीत गावत जाथें :-*

    *तिरी खेलेन-पासा खेलेन,खेली पारेन डंडा ओ खेली पारेन डंडा*

    *अतेक सुग्घर भोजली ल कईसे करबोन ठंडा ?*

      * *आ हो $$$ देवी गंगा.........*

     

    *नवा रे हंसिया के जरहा हे बेंठे ओ जरहा हे बेंठे*

     *जीयत -जागत रहिबो भोजली, होई जाबो भेंटे !*

     *आ हो $$$ देवी गंगा  ..........*


  *जब नौ दिन-रात तक सेवा कर के भोजली दाई ल उखाड़ के तालाब-नदिया म ठंडा करथें,तब भोजली दाई के प्रति अतेक जादा अपनापन अउ श्रद्धा भक्ति बाढ़ जाए रहिथे, के जम्मो बेटी -बहिनी मन खूब बोमपार के रो डारथे !*

     *हमर पुरखा सियान मन प्रकृति के गोद म पैदा होवत रहिन, जघा-जघा पेड़ -पौधा, तरिया, नरवा, डोंगरी -पहार होवत रहिस | वोही पेड़ -पौधा के फल,फूल,चिरौंजी, लासा आदि द्वारा गुजर -बसर करत रहिन, तेकरे सेती "प्रकृति के पूजा, अन्नपूर्णा दाई के पूजा अउ श्रद्धा भक्ति भाव अपन लईकन के मन मंदिर म जागृत करे बर अन्न के बीरवां ल "भोजली दाई" जंवारा दाई" के उपाधि देहे हवंय*

      *लेकिन आज दिनोदिन जंगल-झाड़ी कटते जावत हवय! तालाब,कुआं पाटते जावत हवंय! अनेक प्रकार के रासायनिक खाद ल जादा पैदावार के लालच म असीमित मात्रा में खेत म ढकेलते जावत हवंय,जेकर से भुईयां के उर्वरा शक्ति समाप्त होवत जाथे!*

     *एही सब संदेश हमर लोकगीत अउ आस्था के बीरवां "भोजली दाई" के सेवा करे म निहित हवय*

    *पारिवारिक -सामाजिक समरसता"*- *छत्तीसगढ़ म भोजली बिसर्जन करत बेरा कुछ भोजली के बीरवां ल अपन-अपन हितु-पिरीतू के कान म खोंच के "भोजली मितान" बदे के परंपरा हवय | एंकर द्वारा आज स्वार्थपरता, संकीर्ण मानसिकता अउ बिखरे हुए समाज ल एकता के सूत्र म बांधे रहिथे | स्वार्थपरता के कारण मित्रता के बहुंत अभाव बढ़ते जावत हवय, लेकिन जउन मनखे भोजली बिसर्जन के बेरा उपस्थित रहिथें,तऊन नोनी मन अपन पसंद के नोनी संग अउ बाबू मन अपन पसंद के बाबू संग "भोजली मितान" बदथें,तेन मित्रता ल जिंनगी भर "राम-सुग्रीव के मैत्री अउ कृष्ण-सुदामा के मैत्री जैसे निभाथें*

    *निज दुख गिरि सम रज करि जाना*

      *मित्रक दुख रज मेरू समाना*

       *जे न मित्र दुख होहीं दुखारी*

       *तिन्हहिं बिलोकत पातक भारी*

       *मित्रता के एही मुख्य आधार अउ उद्देश्य होथे, लेकिन आज भागम भाग जिंदगी,भौतिक लालसा, बेरोजगारी, मंहगाई अतेक जादा बाढ़ते जावत हवय-के भाई-भाई के संबंध, बाप-बेटा के संबंध म दीवार खड़ा होवत जाथे ! अतेक बिखरे सामाजिक ताना-बाना म एक सच्चा मित्र के प्राप्ति बहुंत बड़े भाग्य से ही संभव हो सकथे, वो असंभव मित्रता के प्राप्ति "एही भोजली दाई" के अनुग्रह से ही संभव होथे*

     *भोजली के दल जेमा सात प्रकार के अन्न के अंकुरन रहिथे, रोज धूप-दीप अगरबत्ती दीया जलाए से अउ सूर्य के प्रकाश ले छुपा के राखे ले "भोजली दाई" के दल ह शुगर,बी.पी. कोलेस्ट्रॉल अउ अनेक प्रकार के असाध्य बीमारी ले दूर करे बर अचूक औषधि के रूप म काम आथे*

      *सावन महीना म मच्छर अउ कई प्रकार के कीटाणु ल मारे बर भोजली दाई के सेवा म रोज धूप, दीप अगरबत्ती जलाए ले अनेक प्रकार के कीटाणु समाप्त हो जाथे, हमर स्वास्थ्य बर लाभदायक होथे | भोजली गीत गाए ले अउ सुने ले मन-मस्तिष्क ल आनंद के प्राप्ति होथे | अईसे ढंग से "भोजली दाई के सेवा अउ लोकगीत ले हमर पारिवारिक,सामाजिक, धार्मिक, मनोवैज्ञानिक, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से खूब महत्वपूर्ण होथे*

     *ए सब दृष्टिकोण से आज सख्त आवश्यकता हवय-  अब गांव-गांव म नंदावत "भोजली दाई" के महत्व ल समझते हुए फिर से हर गांव-शहर म "भोजली बोए" बर श्रद्धा भक्ति अउ आस्था जगाना चाही*


दिनांक -३०.८.२०२२)



 आपके अपनेच संगवारी

*गया प्रसाद साहू*

   "रतनपुरिहा "

मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (,छ.ग.)

मो नं -९९२६९८४६०६

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छत्तीसगढ़ के लोकगाथा-सरला शर्मा

 छत्तीसगढ़ के लोकगाथा-सरला शर्मा

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      लोक के पहिली अर्थ संसार त दूसर अर्थ लोग जेला जन या मनसे भी कहिथन होथे । ए लोक मं लोग , जन , मनसे अपन मन के भाव ल गा के त कहि के व्यक्त करत आवत हे । तइहा दिन मं जब लिपि के , भाषा के विकास नइ होए रहिस तभो तो मनसे रोवत , गावत रहिन इही हर वाचिक परम्परा के साहित्य के नांव से जाने जाथे । लोकगाथा इही वाचिक परम्परा ले शुरु होए रहिस । लोक कथा अउ लोक गाथा मं फ़र्क होथे , कथा माने तो कहानी होथे त एहर तो कोनो मनसे के जीवन के एक अंश होइस वो अंश जेमा मनसे ल सुख -दुख  जौन मिलिस तेकर कथा के वर्णन । कथा के ही बड़े रुप होथे गाथा ...काबर के कोनो मनसे के जिनगी भर के लेखा जोखा कहानी के स्वरुप मं कहे जाथे थोरकुन ध्यान देइ के कविता कोनो एक विषय वस्तु के ऊपर होथे फेर महाकाव्य तो जनम भर के लेखा जोखा होथे । 

     लोक गाथा के अंग्रेजी समानार्थी शब्द हे Ballad जेमा सीधा , सरल , सहज , गेय छंद मं कोनो मनसे के जीवन चरित के वर्णन मिलथे । हमर छत्तीसगढ़ के लोकगाथा मन मं भी इही सब विशेषता पाए जाथे । लोक गाथा के मोटामूटी दू ठन रुप मिलथे , पहिली पौराणिक / ऐतिहासिक दूसर लोक मानस मं प्रतिष्ठित मनसे के कथा । 

लोकगाथा के रचनात्मक दृष्टि से भी दू रुप पाए जाथे पहिली मं कथानक छोटे रहिथे फेर गेयात्मकता बहुते रथे त लोक रंजन के दृष्टि से एकर महत्व जादा एकर बर हो जाथे के सुनइया मन के मनोरंजन जादा होथे , लोकगाथा के प्रस्तुति मं एक झन मुख्य वाचक रहिथे त मंडली के सहयोगी मन के संग , वाद्य यंत्र बजइया मन भी उपस्थित रहिथें । दूसर तरह के लोक गाथा मं कथानक बड़े होथे गेयता प्रधान होथे त बीच बीच मं लौकिक प्रसंग जोड़ देहे के सुविधा घलाय रहिथे । वाद्य यंत्र एक से जादा होथे । गुफा मानव जब ले समूह मं रहे के शुरु करिस होही तब ले लोक गाथा के शुरुआत होइस होही निश्चित दिन , तारीख जाने के कोनो उपाय तो है नहीं काबर के पहिली च कहे जा चुके हे के लिखित इतिहास तो है नहीं तभो ए तो सोलहों आना सच आय के लोकगाथा मं मानव समाज के आदिम इतिहास , संस्कृति , कल्पना , गेयता सबो हर बड़ सरसता से वर्णित हे । लोकगाथा के दूसर विशेषता के कोनो तरह के परिचय या भूमिका नइ रहय । तीसर खूबी के आंचलिकता या क्षेत्रीयता उपर जोर देहे के कारण  लोकगाथा के कथानक मं घटा बढ़ी हो जाथे । 

   छत्तीसगढ़ी साहित्य मं सन् 1100 ले 1500 तक ल गाथा काल कहे जाथे । जेमा मध्य युगीन समाज , संस्कृति , तत्कालीन इतिहास के दर्शन मिलथे । मूल भाव " सर्वे सुखिनः भवन्तु " माने तो सबके कल्याण होवय इही होइस न ? 

1890 मं हीरा लाल काव्योपाध्याय लोरिक चंदा के कथानक अनुरूप " चंदा के कहिनी " प्रस्तुत कर रहिन जेला शिष्ट साहित्य के परम्परा मं गिने जाथे । थोरकुन अउ ध्यान दिहिन त 1946 मं बेरियर एल्विन अंग्रेजी अनुवाद ल Folk Songs of chhattisagarh . मं उद्धृत करे हें । 

   सबल सिंह चौहान लिखित " पंडवानी " महाभारत ऊपर आधारित लोकगाथा आय ...सुरता करव न हमर तीजन बाई इही पंडवानी के चलते देश विदेश मं प्रसिद्ध हे ।  

      थोरकुन ध्यान एहू डहर दिहिन के छत्तीसगढ़ मं आने जघा ले आए लोकगाथा मन ल घलाय उचित मान सनमान मिले हे ...। 

लोरिक चंदा च ल देखिन न जेला चंदैनी गायन घलाय तो कहे जाथे फेर इही कथानक हर क्षेत्र के अनुसार थोर बहुत बदलाव के संग उत्तर प्रदेश , भोजपुरी , मैथिली मं बिहार , बंगाली मं बंगाल मं भी प्रस्तुत होथे । 

      दुख ए बात के हे कि प्रिंट मीडिया के दौर चलिस त वाचिक परम्परा के लोकगाथा मन ल मनसे तिरियाये लग गिन । पहिली तो संस्कृत फेर हिंदी ल प्राथमिकता मिलत चलिस एहू हर छत्तीसगढ़ी लोकगाथा मन के नंदाए के जब्बर कारण बन गिस । एक तरह से गांव ले सहर के रस्ता धर लेवइया मनसे मन , त गांव के सुन्ना परत गुड़ी मन भी छत्तीसगढ़ी लोकगाथा के जन अवहेलना के कारण आय । पहिली बात के लोकगाथा हर इतिहास तो नोहय , दूसर बात के व्यक्ति प्रधान नहीं व्यक्तित्व प्रधान आय तीसर जरुरी बात के प्रस्तुत करइया मन के वर्णन मं कुछ जुन्ना छूटत गिस त कुछ नवा जुरत गिस एहू हर पढ़े लिखे सहरी बाबू मन ल लोकगाथा ले थोरकुन दुरिहाये के काम करिस । तभो ए लेख ल लिखत खानी मन मं नवा सोच , नवा आशा जागिस हे कि अब के पीढ़ी अपन साहित्यिक , सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरूक होवत हे ...लोकगाथा फेर सुने , पढ़े बर मिले लग गए हे । 

छत्तीसगढ़ के अलग , अलग लोकगाथा मन ऊपर फेर कोनो दिन चर्चा करबो । 

    सरला शर्मा 

     दुर्ग

Tuesday 30 August 2022

तीजा तिहार (हरितालिका तीज)*


 

*तीजा तिहार (हरितालिका तीज)*


*तीजा तिहार* छत्तीसगढ़ के प्रमुख पारंपरिक तिहार आय। तेखर सेती हमर छत्तीसगढ़ मा तीजा तिहार के विशेष महत्व हे। पोरा तिहार के बाद भादो महीना मा शुक्ल पक्ष के तीसरइया दिन तीजा तिहार मनाय जाथे।  


तीजा तिहार ला *हरितालिका तीज* के नाम से भी जाने जाथे। 

पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में माता पार्वती हर भगवान शंकर ला अपन पति रूप मा पाय बर बिना अन्न जल खाए पीए घोर तपस्या करिस। तब जाके भगवान शंकर हा प्रशन्न होके भादो के महिना हरियाली तीज के दिन  माता पार्वती ला पत्नी के रूप में स्वीकार करिस। उसी दिन ले तीजा तिहार मनाय जाथे ‌।


 *तीजा तिहार* के अगोरा हमर छत्तीसगढ़ के तीजहारीन मन ला साल भर  रहिथें, काबर कि तीजा उपास ला मइके मा रहिके करे के रिवाज हे। मान्यता हे कि माता पार्वती हर अपन मइके मा रहिके भगवान शंकर ला पाय बर उपास रिहीस हे।


*तीजा तिहार* जब आने वाला रहिथे तब तीजहारीन मन बहुत खुश रहिथें। काबर कि हमर छत्तीसगढ़ मा परंपरा हे कि अपन बहिनी, बेटी मन ला ओकर ससुराल मा भाई मन, पिता जी मन तीजा लाय बर जाथें।


तीजा उपवास के पहली दिन सबो घर घर में करेला के साग बनथे, जेला *करू भात* कहे जाथे। करू भात ला खा के तीजहारीन मन उपास रहिथे। जीजा के  दिन बिना पानी पिए निर्जला उपवास रहिथें।


तीजा के दिन बड़े बिहिनिया ले तीजहारीन मन नहाखोर के सुग्घर तइयार होके माता पार्वती अउ भगवान शंकर की पूजा पाठ विधि विधान ले करथें । वइसे तो तीजा उपास व्रत के बहुत नियम होथे। तीजहारीन मन अपन श्रद्धा भाव ले ये विधि ला करथें।माटी के शिवलिंग बनाके पूजा करे जाथे। दिन भर तीजहारीन मन भक्ति मन लगे रहिथे अउ अपन पति के लंबा उमर के कामना करथें। तीजा तिहार पति-पत्नी के अटूट मया ला दर्शाथे।


पहिली तीजहारीन मन तीजा के दिन भर के पेड़ मा झुलना बाँध के एक जगह सकलाके झुलना झुलय, खो-खो खेलय। फेर अभी के जमाना मां ये सब नंदावत जावत हे। 


वइसे तो हमर छत्तीसगढ़ के हर तिहार मा रोटी पीठा बनाए जाथे। जब बात तीजा तिहार के आथे ता तीजा में सात प्रकार के रोटी बनाय जाथे। जेमा ठेठरी, खुरमी, अइरसा, सोंहारी, बरा भजिया, नमकीन, येखर अलावा तीजहारीन मन अपन पसंद के अलग अलग प्रकार के रोटी भी बनाथे। ये रोटी मन ला पूजा के बाद प्रसाद के रूप मा चढ़ाथे। अउ तीजा के बिहान दिन मतलब चतुर्थी के फरहार करथें।


रचनाकार

राजकुमार निषाद राज

बिरोदा धमधा जिला-दुर्ग

7898837338

Friday 26 August 2022

छत्तीसगढ़ के लोकगीत-सरला शर्मा


 छत्तीसगढ़ के लोकगीत-सरला शर्मा

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          लोक माने लोग , आदमी , मनसे त मनसे के गाये गीत ल लोकगीत कहिथें । लोकगीत जन जन के मन के सुख- दुख , हांसी -रोआसी , धरम -करम के भाव के सहज , सरल , साधारण अभिव्यक्ति आय ।  लोकगीत हर वाचिक परम्परा के अलिखित साहित्य आय फेर एकर लिखइया के नांव कोनो नइ जानयं , जाने के उपाय घलाय नइये काबर के लोकगीत के लिखित इतिहास नइये । मुंहखरा एक पीढ़ी से दूसर पीढ़ी तक चलत आवत रहिथे । 

      तभो आजकल भाषा अउ लिपि के विकास के सेतिर लोगन लोकगीत लिखे लगे हें फेर पारम्परिक लोकगीत के लिखित रुप मिले लगे के बावजूद लिखइया के नांव जाने के कोनो उपाय नइये । 

  लोकगीत मं गायन , वादन अउ नृत्य ( नाच   ) तीनों रुप समाए रहिथे एकर सेतिर हमन तीन अउ रुप देखथन पहिली लोकगीत दूसर लोक वाद्य तीसर लोकनृत्य त चलव छत्तीसगढ़ के लोकगीत के ये तीनों रूप ल समझिन ।

   सबले पहिली लोकगीत सुरता करिन ददरिया के जेहर लोक मानस के सहज अभिव्यक्ति आय । खेती किसानी  करइया मनसे खेत खार मं अपन जवंरिहा , संगवारी ल मन के बात ल गा के बताथे । जादा करके ददरिया प्रेम के संयोग अउ वियोग के भाव दरसाथे सियान मन घर परिवार , गली मोहल्ला मं ददरिया गाये नइ देवत रहिन । संवाद शैली के उत्तम काव्यत्मक रुप आय तेकरे बर साल्हो ददरिया कहिथें । कोनों कोनों बुधियार मन साल्हो ल उत्तर अउ ददरिया ल प्रश्न कहिथें ...

  " बटकी मं बासी , बारा मं धरे नून 

    मैं गावत हंव ददरिया , तैं ठाढ़े ठाढ़े सुन । " 

 लोकगीत के  रुप बिहाव गीत घलाय हर आय जेमा बेटी के बिदाई गीत ल सुन के मनसे के मन मं उमड़त करुणा , वात्सल्य छलके लगथे त समधी सजन संग हांसी मसखरी घलाय देखे बर मिलथे । 

  " का गारी देबो हमन समधी सजन ल , हमर नाता परे हे बड़े भारी हो 

     उनकर चरण कमल बलिहारी ....। 

     जिनकर बहिनी हे परम पियारी हो , ओ तो पांच पुरुष एक नारी ....। " 

    एतरह के लोकगीत मन गीत प्रधान होथें जेमा तुक , लय , स्वर के ध्यान रखे जाथे । 

दूसर होइस वादन जेला लोक वाद्य कहिथन ...बहुत अकन वाद्य यंत्र होथे फेर सबले प्रमुख हे बांस गीत ...काबर के बांस गीत मं बजइया एक झन रहिथे ,  दोहा पारथे एक झन , नाच मं कई झन शामिल रहिथें । लोकगीत के एक रूप एहू हर आय । 

तीसर रुप नृत्य या नाच होथे एकर रुप देखे बर  मिलथे सुआनाच मं जेहर नोनी लइका मन के पोगरी आय । सुआ गीत समलाती होथे , नाच मं आधा झन जब निहुर के नाचत रहिथें त आधा झन खड़े नाच मं शामिल रहिथें , सबो झन गोल बांध के सुआ गीत गावत नाचथे । सुआ गीत मं कोनो तरह के वाद्य यंत्र के प्रयोग नइ करे जावय । 

  " तरि नरी नहना मोर तरी नरी नहना रे सुआ ना 

    के तिरिया जनम झनि देय ...मोर सुआ ना रे ! " 

        ए तीनों हर लोकगीत के ही सरुप आय । थोरकुन ध्यान देइ के लोकगीत के विशेषता काय काय होथे ...

1. लोकगीत मुंहखरा होथे एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी सुन सीख के आघू बढ़त जाथे । 

2. जादा करके पांच स्वर के मिले जुले रूप होथे जेला सहजता से गाये जा सकथे । 

3. बहुत अकन लोकगीत मन के धुन एके  असन रहिथे । 

4. लोकगीत मन अति विलम्बित स्वर मं नइ गाये जा सकय । 

5. कोनो कोनो लोकगीत मं सातों सुर के संग कोमल , गांधार अउ कोमल निषाद के प्रयोग घलाय करे जाथे । 

6. लोकगीत धार्मिक , पारिवारिक , प्रकृति सम्बन्धी अउ परम्परागत घलाय होथे । 

 7 . दसों रस के अभिव्यक्ति लोकगीत मं होथे । 

         छत्तीसगढ़ के लोकगीत मं तइहा दिन ले वात्सल्य रस पाए जाथे सुरता करव सोहर गीत के ...लोरी के ...। 

 " चंदन के पलना रेशम के डोरी , 

   झूला झुलावय नंद के रानी ।

   धीरे बाने आ जा रे निंदिया , 

  हाथ बाजय झन गोड़ , 

  पौढ़े हे नंद के लाल  

 सुख निंदिया सोवै गोपाल । " 

       छत्तीसगढ़ के लोकगीत मन मं बिराजत हे छत्तीसगढ़ी संस्कृति , परम्परा , भाषा अउ संस्कार ..। लोकगीत ल संस्कृति संवाहक कहे जाथे । भाषा के , छापा खाना के विकास के संगे संग वाचिक परम्परा के गली ले निकल के लोकगीत अब शिष्ट साहित्य के अंगना मं पग धर लेहे हे एहर बड़ खुशी के बात आय फेर परम्परागत लोकगीत के शब्द , धुन , लय ल बंचाये रखना भी जरुरी हे । इही लोकगीत मन तो हमर धरोहर आयं । 

    सरला शर्मा

छत्तीसगढ़ के लोकगीत-मोहनलाल डहरिया


 

छत्तीसगढ़ के लोकगीत-मोहनलाल डहरिया

हमर छत्तीसगढ महतारी के माटी म लोकगीत शदियो ल चल्ट आवत हे पहिली मनोरंजन के साधन टेलीविजन रेडियो गावं गांव घरो घर नहीं पहुंचे रहिस त गांव म लोकगीत गाके मनोरंजन करय लोकगीत म पहीली स्थान छत्तीसगढ ददरिया के ह जेमा युगल युवती के बिच नोकझोक प्रेम मोहब्बत एक दूस र ताना मारना प्रेम भरे ददरिया गीत से आकर्षित करना ददरिया म प्रेम हे करुणा है दया हे विछोह हे लेकिन ददरिया गीत म अहंकार नहीं हे ददरिया गांव के बाहर काम बुता करत करत गाए जात रहीस इमा दु झन के बीच संवाद हॉथे जैसे जैसे शिक्षा के विकास होइस टेलीविजन रेडियो के आ ये ले नदावत हे 

लोकगीत म सुवागीत हे  देवारी तिहार म गाए जाथे सुवा गीत लड़की मन महिला मन माटी के सुवा बना के घरों घर मनोरंजन करय अभी भी ये लोकगीत चलन म हावय

तिसर लोकगीत हमर गांव के डंडा गीत हे जेमा गांव लइका सियान एक वेशभूषा पहन के कौड़ी के  सिंगार मुड़ म मयूर के पंख बाध के मादर के थाप म डंडा बजा के कुहकी पार के नाचथे

चौथा लोकगीत करमा गीत

करमा म भी श्रृंगार करके मादर के थाप गीत गाकर महिला पुरुष नाचथे ये हमर सरगुजा क्षेत्र म जाता होथे 

पांचवा लोकगीत बांसगीत

लोकगीत म बांसगीत गाए जात रहीस बांस के बने वाद्य यन्त्र मुंह से बजाय जा थे एमा लोरिक चंदा के प्रेम कहानी हे

छठवां लोकगीत चदैनी के हावय

लोरीक अव चंदा के अगाध प्रेम कथा हे 

सातवे लोकगीत भरथरी एमा ढोला मारू के प्रेम कथा हे

जैसे घोड़ा रोवय घोड़सारे म हाथी रोवथे ना  हाथी रोवय सारे हाथिसारे म

आठवी लोकगीत पंथी हे एक लय जोश म बाबाजी कथा गाए जा थे 

छत्तीसगढ म लोकगीत के कोई कमी नईए ये धरोहर ल सकेल के रखना वर्तमान पीढ़ी के हे छत्तीसगढ म अनेक विधा लोकसंगीत के अथाह भंडार हे

जय छत्तीसगढ

छत्तीसगढ़ के लोकगीत-रीझे यादव

 

छत्तीसगढ़ के लोकगीत-रीझे यादव


लोकगीत ह कोनो भी प्रदेश के सांस्कृतिक धरोहर अउ चिन्हारी होथे।जेला सुन के अंदाजा हो जथे कि एला गाने वाला मनखे कोन प्रांत के हो सकथे। छत्तीसगढ़ में घलो लोकगीत के अकूत भंडार हवै।सुआगीत,करमा गीत,ददरिया,पंथी,पंडवानी,गौरी गौरा गीत,सोहर गीत,बिहाव गीत,जस गीत, भोजली गीत,फाग गीत,बांस गीत,चंदैनी गीत,धनकुल गीत,डंडा नृत्य गीत,रीलो अउ भरथरी जइसे लोकगीत छत्तीसगढ़ के चिन्हारी आय। लोकगीत के सिरजन करने वाला रचनाकार मन के कोनो लिखित विवरण नी रहै फेर ये हा एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी तक मुंहअखरा पहुंच जथे।समे के संग ओमा कुछ संशोधन घलो हो जथे कई घांव।माने छत्तीसगढ़ में जनम   से लेके मरन तक लोकगीत गाय के चलन हवै।

सोहर गीत-सोहर गीत शिशु जन्म धरे के बाद ओकर छट्ठी में गाए जथे।जेमा नवजात शिशु ला श्री राम तुल्य मान के ओकर महतारी के भाग्य के सराहना करे जाथे।

धन धन कौशिल्या तोरे भागे ल ओ..


चंदैनी गीत-लोरिक अउ चंदा नाम के दू अमर मयारूक के मया के कथा ला चंदैनी गीत मा बताय जथे।जेकर राग अउ स्थानीय देवी देवता के सुमरनी हा एला विशिष्ट बना देथे।

जय महामाई मोहबा के तोर....


बांस गीत-तइहा बेरा मा जब दइहान चराय खातिर राऊत मन जावय त उंहा अपन मनोरंजन खातिर गीत गावय।जेमा एकझन कोई राजा के कथा बतावय अउ दूसर बांस बजावत संगत करे अउ हुंकारु देवय। प्रायः बांस गीत के शुरुआत तर हरी नाहना रे भाई...बोलत शुरु होवय।


पंडवानी-पंडवानी महाभारत के कथा ऊपर आधारित हवै।लेकिन एमा महाभारत के अन्य पात्र के जघा भीम ला मुख्य पात्र के रुप में प्रस्तुत करे जाथे। गानेवाला के अभिनय अउ भावभंगिमा हा एला श्रवणीय होय के संगे संग दर्शनीय बना देथे।

सुआ गीत/पड़की गीत-देवारी तिहार के समे नान्हे नान्हे नोनी मन के मुंहु ले धार्मिक कथा अउ सीख सिखौना देवत तरी हरि नाह ना रे सुआ हो के बोल के संग गीत के प्रस्तुति होथे।

ददरिया-छत्तीसगढ़ के गांव श्रमशील होथे।गांव के प्रमुख आजीविका के साधन किसानी बुता ही हरे।किसानी बुता करत मन के भाव ला गंवईहा मनखे ददरिया के माध्यम ले मुखरित करथे।कहूं कहूं मया के उद्गार घलो ददरिया बनके आगू आथे।


भरथरी-भरथरी गीत के विशिष्ट गायन शैली अउ शब्द हा मन ला भाव विभोर कर देथे।महाराजा भरथरी के बैराग ऊपर आधारित कथा कान में मंदरस घोरथे।


जसगीत-मातृशक्ति के आराधक हमर छत्तीसगढ राज्य में जंवारा बोए जाथे।दूनों नवरात मा देवी के भगत मन जयकार करत माता के गुणगान करत ओकर जस गीत गाथे।जसगीत में धार्मिक कथा के संगे संग स्थानीय देवी देवता मन के कथा घलो सुने बर मिलथे।जेमा सिंगार रस अउ वीर रस भरपूर रथे।


फाग गीत-फागुन महिना मा छत्तीसगढ़ भगवान कृष्ण के रंग मा रंग जथे अउ बृज बरोबर इंहों रहस नाच अउ फाग गीत सुने बर मिलथे।


जम्मो लोकगीत ला विस्तार देवत लेख हा लंबा हो जही ते पाय के इही मेर विराम देवत हंव।एक ले बढ़ के एक लोकगीत मर्मज्ञ मन के बीच रहिके लोकगीत के बारे में कुछ अलग से अउ नी बता सकंव।भूल चूक गलती बर क्षमा चाहथंव।


रीझे यादव

टेंगनाबासा(छुरा)

छत्तीसगढ़ के लोकगीत


 छत्तीसगढ़ के लोकगीत

लोकगीत माने कि लोक के गीत ,जन के गीत।लोक हर अपन सबे  तरह के भाव अऊ उछाह ला कभू गा के अऊ कभू नाच के परकट करथे । लोकगीत मन ला कोन हा सिरजिस होही कोनो नई जाने फेर लोक में एक पीढ़ी ले दुसर पीढ़ी मा  जावत रहीथे।

       लोकगीत ह कत्का होही येकर गनती नई करे जा सके फेर कोई_ कोई गीत के नाव लिए जा सकत हे।

        कोनो_ कोनो ला नाच _नाच के गाए 

जाथे त कोनो गीत ला खेलत _खेलत गाथें ।

कोई _कोई लोकगीत मां बाजा नई राहय , जयसे कि सुआगीत, ये गीत ला माईलोगन मन अपन हाथ के थपड़ी पीट_ पीट के

गाथे ।डंडा गीत मां बाबू जात मन डंडा बजा बजा के मुंहु ले कुहकी पार के गाथे ।

        खेलगीत मन मा घलो कोई बाजा नई बाजय फेर लईका मन बिधुन हो जथे _

   _ घोर घोर रानी इत्ता इत्ता पानी......

_अटकन मटकन दही चटाका, लहुआ लाटा बन में काटा.....

_अररा गोटा पर्रा गोटा एक धनी दे अईसन चलाकी  भौजी फुगड़ी खेलन दे... फुगड़ी फू फू जी फुगड़ी फू......

      जस गीत , सेवागीत,भोजली गीत जयसे 

गीत मां नाच नई होवय,  बैठे_ बैठे गाए जाथे । एमा नाच नई होवे ,जेकर मां देवता चढ़ते ओकर झुमई ला नाच नई कहे जाय। ईही तरह के गऊरा गीत होथे जेमा कभू _कभू बाजा बाजथे ता कभू_ कभू नई, फेर गीत के लय  ऐसेना हे कि कई झन  सुनईया मन ला डढरिया चढ जाथे _

_जोहर जोहर मोर ठाकुर देवता सेवर लागव तोर 

_एक पतरी रैनी भैनी राय रतन वो दुर्गा देवी

 गऊरा गीत में दफड़ा बाजा बाजथे ताहा देवता  घलो चढ़ जाथे जेनला डढरिया कहे 

जाथे । डढरिया मन ला गांव के राऊत ईहां लेग के दही खवाये जाथे ।

       करमां , शैला,पंथी गीत जईसे गीत मन

 मांदर के थाप मां गाए जाथे ,फाग गीत नंगारा के धुन मां।

   बिहाव गीत,सोहर गीत जईसे संस्कार गीत होथे । बिहाव गीत , देवतला, चूलमाटी ले सुरु 

होके बिहाव के जम्मों नेग के संग_ संग बेटी के बिदा तक चलत रहिथे ।

    बरात परघौनी में दूल्हा _दुल्हीन दोनो डाहा के मन भढऊनी  गा _गा के बिधुन हो 

जथे। हमर गांव मे दू_ चार नोनी मन तो ऐसन  गविया रिहिन हे कि बरतिया मन ला रोआ 

डारे ।एक ले बढ़ के एक भड़ऊनी _

_नरवा तीर के पटवा भाजी ऊलूहा _ऊलूहा दिखथे रे ।

आए हे बरतिया टूरा बुडवा बुडवा        दिखथे  रे ।

  सुरहोती में गऊरा गीत हे त देवारी अऊ 

देवउठनी मां राऊत नाच हे । राऊत मन गाय_गरुवा ल सुहई बांधे बर आथे त दोहा पारथे ईकर अलगे धुन रहिथे _

 अ रे रे रे  से सुरु होथे । मड़ई मेला मे अपन

साज सिंगार के संग राउत मन दोहा पारथे ।

      बांस गीत ,देवार गीत के अपन अलगे 

महत्तम हे।

    गीत    , नाचा( नृत्य) अऊ  बाजा (वाद्य) के संगत ला संगीत कहे जाथे । शास्त्रीय कलाकार मन सात सुर में संगीत के धुन गाथे 

फेर लोकगीत ल कभू कभू लोककलाकार मन  चारे स्वर मा घलो गा लेथे ।

     लोकगीत के गजब महत्तम हे इनकर ले तैहा जमाना के लोक के भाव ,समाज अऊ ससकिरिती के रुप ला समझे मां सहारा मिलथे । आजकाल लोक गीत ह नंदाथे अइ सन गीत मन ला जतन करके राखे ल परही 

       डॉ. बी.नंदा जागृत

छत्तीसगढ़ के लोक गीत- चोवाराम वर्मा बादल


 


छत्तीसगढ़ के लोक गीत- चोवाराम वर्मा बादल

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जन समान्य म आदि काल ले पारंपरिक रूप ले सुने -सुनाये जावत वो जम्मों गीत मन जेकर रचइता आज के समे म अज्ञात हें -लोकगीत कहाथें। ये गीत मन एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी ल मौखिक रूप ले मिलत रहिथें। अइसे भी आदिकाल म हमर निरक्षर पुरखा मन सो  आजकल जइसे कोनो कापी-किताब अउ प्रिंटिंग प्रेस के सुविधा तो रहिस नइये ।

   प्रकृति के गोद म बइठे हमर कोनो पुरखा ह जेन दिन अपन हिरदे के नाना भाव जइसे के सुख-दुख, प्रेम ,विरह,खुशी , उत्साह, निराशा आदि ल या फेर अपन रीति-रिवाज , जंगल ,डोंगरी-पहाड़ , खेत-खार ,फसल के महिमा ल गुनगुना के लय म व्यक्त करिस होही उही दिन ले लोकगीत उदगरिस होही।

  ये लोकगीत मन के उपजन -बाढ़न ठेठ गाँव-गँवई म होये हें तेकर सेती बहुतेच सहज अउ सरल हें।ये मन म पांडित्य(चतुराई) अउ शास्त्रीयता (काव्य शास्त्र के नियम-धियम) खोजना व्यर्थ हे। हाँ कोनो चाहय त लोकगीत के मधुरता के रसपान कर सकथे। लोकगीत म समाये किसान अउ बनिहार के ममहावत माटी म सनाये पछीना के खुशबू  ल सुँघ सकथे।

  ये धरती के कोनो कोना म चल दे, जिहाँ जिहाँ मनखे रहिथें ,उहाँ-उहाँ कोनो न कोनो लोकगीत मिलके रहिथे। लोकगीत बिना तो दुनिया एकदम निरस हो जही तभे कहे जाथे कि लोकगीत मन जन जीवन के खेत म लहलहावत फसल के समान आयँ। दूबी के जर ह जइसे इहाँ-उहाँ खोभियावत फइलत रहिथे ओइसने लोकगीत ह तको ये कंठ ले वो कंठ म पीढ़ी दर पीढ़ी जरी जमावत रहिथे।

     लोकगीत मन के अध्ययन करे ले पता चलथे के कुछ लोकगीत मन ल सिरिफ पुरुष मन गाथें त कुछ ल केवल स्त्रीच मन। कुछ-कुछ लोकगीत अइसे भी हें जइसे छत्तीसगढ़ म ददरिया जेला समिलहा रूप म गाये जाथे। फेर  अतका बात तो तय हे के सोला आना म लगभग चउदा आना लोकगीत मन ल नारीच मन गाथें।ये हा शोध के विषय हो सकथे।अइसे लागथे के नारी जेन सकल सृष्टि के जनम देवइया शक्ति ये ,वोकर हिरदे के ममता ह लोकगीत के तको सिरजन करके वोला दुलारे हे, अपन अमरित दूध पियाये हे।

  लोकगीत मन के संबंध म एक चीज जान के बड़ अचरज होथे के कोनो कथा ले उपजे लोकगीत ह,भले भाषा बोली बदल जथे फेर अबड़ेच जगा उन्नीस-बीस के अंतर ले  सुने-सुनाये जाथे। एकर उलट कुछ लोकगीत अइसे होथें के एक विशेष समुदाय तक सिमटे रहिथें। एकर कारण विशेष रीति रिवाज हो सकथे।

    हमर हरियर छत्तीसगढ़  म तो लोकगीत मन के खदान हें। हमर छत्तीसगढ़िया लोकगीत मन म इहाँ के परंपरा,अचार-विचार, रहन-सहन , खान-पान अउ तीज-तिहार के सुग्घर दर्शन होथे। लोकगीत मन निमगा लोक साहित्य होथें। ये मन ल समाज के दर्पण तको कहि सकथन जेमा हमर परंपरा अउ इतिहास ह झलकथे।

      भाव के दृष्टि ले लोकगीत मन ल मोटी-मोटा ये प्रकार ले बाँटे जा सकथे--

संस्कार गीत,लोकगाथा गीत(कथा गीत), पर्व(तीज-तिहार)गीत, पेशा गीत,जातीय गीत(कोनो समुदाय/जाति विशेष के गीत। छत्तीसगढ़ म जेन लोकगीत मन के चलन हे ओमा के कुछ प्रमुख लोकगीत मन ये हावयँ---

सुआ गीत--नारी परानी मन गोल घेरा म घूम-घूम के ,थपड़ी के ताल देकें गाथें । बीच म टोपली म माटी के बने सुआ ल रखे रइथे। सुआ गीत म एही सुआ ल संबोधित करे जाथे। सुआ गीत के विषय विविध होथे। मुख्य रूप ले नारी जन्म के कष्ट, संषर्ष अउ स्नेह के वर्णन होथे जइसे के-- 

तरी हरी नाना के ना हरि नाना रे सुवना,

तिरिया जनम झनि देबे।

रे सुअना तिरिया जनम झनि देबे।

     छत्तीसगढ़ के मैदानी भाग म देवारी तिहार बखत पंदरा दिन ले सुआ गीत अउ नृत्य के धूम रहिथे।नान-नान नोनी मन ले लेके मोटियारी अउ सियनहिन दाई मन के टोली ह गाँव के घरो-घर अउ हाट-बजार के दुकान मन म सुआ गीत गाके मान पाथें।

ये गीत अउ नृत्य सिरिफ माई लोगिन मन प्रस्तुत करथें।


सेवा गीत/जेंवारा गीत-----

  हमर छत्तीसगढ़ ह आदिकाल ले शक्ति पूजा के केंद्र रहे हे।हमर आदिवासी मन के अराध्य बुढ़ादेव अर्थात भगवान शिव अउ बुढ़ी माई (माता दुर्गा-भवानी) जेला महमाई , शीतला दाई के नाम ले तको पुकारे जाथे  के महिमा के बखान सेवा गीत म करे जाथे।प्रायः हर गाँव म महमाई  जरूर होथे। माता भवानी के गुणगान सेवा गीत म करे जाथे। क्वांर अउ चइत महिना म जब जग जेंवारा बोंवाथे त  सेउक मन के दल के दल माँदर बजावत जिंहा-जिंहा जेंवारा बोंवाये रहिथे उहाँ-उहाँ सेवा गीत  गाथें।ये सेवा गीत मन अतका मनमोहक अउ उत्साह ले भरे होथे के कई झन भाव विभोर होके नाँचे अउ झूमे(झूपे) ल धर लेथें। कहे जाथे के ये मन ल देंवता चढ़गे।

      सेवा या जेंवारा गीत ह दू कड़ियाँ अउ पँचराही के रूप म होथे। दू कड़िया सरल अउ मधुर होथे त पँचकड़िया ह कठिन अउ जोश बढ़इया होथे।

   जेंवारा सेवा लोकगीत के शुरुआत देवी-देवता अउ गुरु वंदना ले होथे---

  इतना के बेरिया कउन देव ल सुमिरवँ, 

 लेववँ ओ भवानी तोरे नाम हो माय।

माता पिता अउ गुरु अपनो ल सुमिरवँ,

लेववँ ओ भवानी तोरे नाम हो माय।

  जेंवारा अउ सेवा  लोकगीत म बिरही फिंजोना ,बाँउत ले लेके पंचमी, आठे(हूमन) अउ नवमी (जेंवारा विसर्जन) तको के विशेष गीत हें।जइसे के  पंचमी के सिंगार गीत--

मइया पांचो रंगा ,मइया जी करे हे सिंगारे हो माय।

सेत सेत तोर ककुनी बनुरिया, सेते पटा तुम्हारे

सेत हवय तोर गल के हरवा ,अउ गज मुक्तन हारे।

मइया पाँचो रंगा मइया जी करे हे सिंगारे हो माय।

      अठवही के दिन जेला हुमन(यज्ञ) के दिन कहे जाथे।ये दिन गाँव के महमाई म सबो निवासी सकलाके महमाई म नरियर चढ़ाथें वोती सेउक मन लोकगीत गाथें--

राजा जगत घर हूमन होवत हे, के मन लकड़ी जलावय हो माय।

राजा जगत घर हूमन होवत हे ,नौ मन लकड़ी जलावय हो माय।

नवमी के दिन विसर्जन (जेंवारा ठंडा) के लोकगीत----

 सुंदर माया जी चलत हे स्नान हो माय।

अलियन नाँहकय मइया गलियन नाँहकय,

नाँहकत हे  बइगा दुवार हो माय।

सुंदर माया जी चलत हे स्नान हो माय।


पंडवानी--- ये हा महभारत के कथा उपर आधारित लोकगीत आय जेमा मुख्य रूप ले भीम के वीरता के वर्णन करे जाथे। ये छत्तीसगढ़ म दू शैली म गाये जाथे।

वेदमती शैली अउ कपालिक शैली। पंडवानी लोकगीत गायन ह मुख्य रूप ले परधान(आदिवासी) अउ देवार जाति के लोकगीत आय। जगत प्रसिद्ध देवरिन  पंडवानी गायिका पद्मश्री श्रीमती तीजनबाई के नाम ल  भला कोन नइ जानत होही। 


भोजली गीत----

 नारी (नोनी मन के) मन के गाये जाने वाला अन्न दाई (गहूँ के उगाये रूप) के गुणगान म भोजली गीत गाये जाथे। अन्न ल देवी के रूप मानना छत्तीसगढ़ी संस्कृति के खास पहिचान हे। कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ म  जब चारों मुड़ा हरियाली छाये रहिथे ते समे  राखी तिहार ,आठे कन्हैया (कृष्ण जन्माष्टमी)अउ तीजा - पोरा के समे गाँव-गाँव म भोजली बोयें के परंपरा हे। भोजली लोकगीत म भोजली जेन हा गँहूँ ल छाँव म जगाये पिंवरा-पिंवरा पौधा होथे के बाउँत ले लेके विसर्जन तक के लोकगीत सुने ल मिलथे।

बाँउत के दिन जम्मों झन ल निमंत्रण देवत नोनी मन आह्वान करथें--

उठव उठव मोर ठाकुर देंवता हो उठव शहर के लोग।

  गहूँ ल टोपली म बोंके वोला जमाये बर (अंकुरण बर)  पानी देवत उन गाथें---

देवी गंगा देवी गंगा लहर तुरंगा।

हमरो भोजली दाई के भिंजे आठो अंगा।

जय हो देवी गंगा, जय हो देवी गंगा।

     भोजली गीत ल सुनके कोनो नोनी भावावेश म आके डंरइया चढ़ जथे त  वोती लोकगीत शुरु होथे--

झूपव झूपव मोर झूपव डँड़रइया हो, झूपव शहर के लोग।

रोनही डँड़इया हो बड़ रँगरेली,

लिमुवा के डारा टूट फूट जँइहयँ।

 ये डँड़इया चढ़े नोनी मन ल हूम-धूप देवा के शांत करे(मनाये) जाथे।

ये लोकगीत म भोजली दाई के सिंगार के मनभावन वर्णन होथे---

आये ल पूरा बोहाये ल पटनी

हमरो भोजली दाई के सोने सोन के ककनी

जय हो देबी गंगा,जय हो देबी गंगा

    सात दिन सेवा करके जब आठवाँ दिन भोजली दाई ल गाँव के तरिया या नरवा-नदिया मा विसर्जन करे के बेरा आथे त बहुतेच विछोह(दुख) के अनभो होथे।भोजहारिन मन के आँखी ले आँसू निकल जथे अउ कंठ ले पीड़ा के स्वर।उन पुकार उठथें--

देवी गंगा देवी गंगा लहर तुरंगा

हमरो भोजली दाई ल कइसे करबो ठंडा

जय हो देवी गंगा,जय हो देवी गंगा।

 लोकगीत भोजली म छत्तीसगढ़ी संस्कार के सुग्घर दर्शन होथे।


बाँस गीत-- नाम के अनुसार  ये लोकगीत म वाद्ययंत्र के रूप म सजे-धजे पोंडा बाँस के प्रयोग करे जाथे। गायक,रागी अउ वादक --तीन झन के टीम होथे। बाँसगीत ह मुख्य रूप ले चरवाहा राउत जाति (भँइसवार या पाहटिया) मन के लोकगीत आय जेला सिरिफ पुरुष मन गाथें। छट्ठी- बरही, बर-बिहाव या फेर मरनी-हरनी के समे जब सगा-सोदर सकलायें रहिथे तब बाँस गीत के आयोजन करे जाथे। 

     बाँस गीत मुख्य रूप ले करुणा के कथा गीत आय जेमा सितबसंत,राजा मोरध्वज , कर्ण आदि के गाथा लोक शैली म गाये जाथे--

देखे बर देखेन दीदी देही डाहर गिसे वो

हाथें म धरे दुहना काँधे म धरे नोई वो।


देवार गीत----देवार जाति ल जन्मजात कलाकार जाति माने जाथे। देवार पुरष मन गाँव म जब छोटकुन  सारंगी ल बजावत भिक्षा माँगे ल जाथें  त लोककथा मन ल गाकें दान माँगथें। ओंड़िया-ओंड़निन मन के तरिया कोड़े के सुग्घर वर्णन देवार गीत म होथे--

नौ लाख ओंड़निन नौ लाख ओंड़िया माटी फेंके बर जाय

अहा माटी कोड़े बर जाय।

ये हरि।


ददरिया---ददरिया ल छत्तीसगढ़ी लोकगीत के राजा कहे जाथे। येहा एक प्रकार के प्रेम गीत आय। येला पुरुष अउ नारी अलग-अलग या फेर युगल रूप म गाथें। दू दी लाइन के ददरिया जेन म दोहा जइसे भाव म कसावट होथे---सवाल-जवाब के रूप म गाये जाथे। खेती-किसानी के काम-बूता करत ,डहर चलत ददरिया झोरे जाथे।ददरिया म प्रेम के निश्छल उद्गार होथे।

नवाँ सड़क म रेंगे ल चाँटी वो।

तोर बर लेहौं मैं गउकिन चाँदी के साँटी वो।

जंगल झाड़ी दिखे ल हरियर।

मोटर वाला नइ दिखै बदे हँव नरियर।

      सचमुच म ददरिया ल सुनके हिरदे के दरद (टीस) मिटा जथे अउ अइसे लागथे के सुनते राहँव।


गउरा गउरी गीत--

मुख्य रूप ले गोंड़ आदिवासी मन के लोकगीत आय।देवारी तिहार बखत सुरहुत्ती के  अउ जेठौनी(देवउठनी)  के रात म माटी के गउरा -गउरी बइठा के पूजा करे जाथे। ये हा देवी ल समर्पित होथे। ये दिन पूरा रात भर गउरा(भगवान शिव) अउ गउरी(माता भवानी) के बिहाव के पूरा रस्म निभाये जाथे अउ गउरा गउरी गीत गाये जाथे।ये लोकगीत के शुरुआत स्थान पूजा ले अइसन होथे-

जोहर जोहर मोर गउरा गुड़ी वो

सेउर लागवँ मैं तोर।

  तहाँ ले रस्म के अनुसार लोकगीत के निर्मल धारा फूट जथे--

एक पतरी रैनी बैनी, रायरतन मोर दुर्गा देवी

तोरे शीतल छाँव, चँउकी चंदन पिढ़ुली वो

 गउरी के होथे मान।


करमा गीत---

  करमा गीत ह आदिवासी मन के मुख्य लोकगीत आय। संझा बेरा कउड़ी अउ नाना प्रकार के गाहना-गूँटी ले सजे धजे जनजाति मन करमा गीत म थिरकथें त देखनी हो जथे। ये विश्व प्रसिद्ध  लोकगीत ह सामुहिक रूप ले गाये जाथे।


राउत गीत--

राउत जाति(चरवाहा) मन देवारी तिहार बखत ,मँड़ई जगाये के बेरा दोहा पारथें तेला राउत गीत कहे जाथे। येमा हास्य रस, शांत रस के संग मुख्य रूप ले वीर रस के पुट होथे। राउत ह कछिनिया के(जोश म भरके ) दोहा पारथे।

  अरा ररा

ये पार नद्दी वो पार नद्दि बीच म खोरी गाय रे।

गहिरा टूरा छेंके ल भुलागे, बेंदरा दूहै गाय रे।


मोर लाठी रिंगी चिंगी ,तोर लउठी कुसवा।

खोज खाज के डउकी लानेंव, उहू ल लेगे मुसवा।


राम राम सब जपे, दशरथ जपे न कोय।

एक बार दशरथ जपे, घर घर लइका होय।


अइसन तइसन लाठी नोंहय रे भइया, जेन कुटी कुटी हो जाय।

ये हरे मोर तेलपिया लाठी, परे प्रान ले जाय।


बसदेवा गीत--- छत्तीसगढ़ म जइसे धान पान सकलाथे तहाँ ले जै हो मालिक काहत अउ अपन हाथ म धरे गोल घुनघुना ल बजावत जै गंग के टेही पारत बसदेवा मन आसिस देये बर आथें।कोनो कोनो मन नँदिया बइला तको धरे रहिथें। बसदेवा गीत म कृष्ण कथा विशेष रूप ले कृष्ण-सुदामा के मितानी के कथा रहिथे।

 जै गंगा।

जै हो गौंटिया जय हो तोर।

जय हो गौंटनिन धर्मिन तोर।

जय गंगा।


पंथी गीत--- संत गुरु घासीदास बाबा के जीवन चरित अउ सत के अँजोर अँजोर सरी दुनिया म बगरावत आध्यात्मिक संदेश ले भरे पंथी गीत अउ नृत्य ले भला कोन परिचित नइ होही ? सामूहिक रूप ले झाँझ माँदर के थाप म गाये जाने वाला ये गीत विलक्षण होथे।एकर प्रारंभ गुरु घासीदास जी के गगन भेदी जयकारा के संग नाम सुमरनी ले होथे।

  होत है सकल पाप के क्षय, होत है सकल पाप के क्षय।

एक बार सब प्रेम से बोलो, सत्य नाम के जय।

  तहाँ ले एक ले बढ़के एक कर्णप्रिय गीत संग नयनाभिराम प्रस्तुति होथे।

माटी के काया माटी के चोला, के दिन रहिबे बता न मोला।

ये तन हाबय तोर माटी के खेलौना हो।

माटी के ओढ़ना ,माटी के बिछौना हो।

माटी के काया छोंड़ जाही तोला।

के दिन रहिबे बता न मोला।


भरथरी गीत--  राजा भरथरी अउ रानी पिंगला के कथा ल भरथरी गीत म गाये जाथे। वंदना के पाछू नारी के मधुर कंठ ले भरथरी गीत मंत्रमुग्ध कर देथे।

भाई ये दे जी।

घोड़ा रोवय घोड़सारे म घोड़सारे ,हाथी रोवै हाथीसार।

रानी रोवै मोर महलों म ,राजा रोवै दरबार।

भाई ये दे जी।


बिहाव गीत अउ भड़ौनी गीत--- बिहाव के समे नेंग जोग के समे महिला मन चुलमाटी, तेलमाटी ,हरदी चढ़ाय के गीत अउ भड़ौनी गीत गाथें। ये गीत मन म हास्य व्यंग के संग मया के पुट रहिथे।

सुवासा ल छोलत चुलमाटी गीत म कतका हास्य व्यंग भरे रहिथे-

तोला माटी कोड़े ल नइ आवय ग धीरे धीरे।

धीरे धीरे तोर बहिनी ल तीर धीरे धीरे।

तेल हरदी चढ़त हे अउ वोती दाई-महतारी मन गावत हें--

एक तेल चढ़गे दीदी एक तेल चढ़िगे वो हरियर हरियर।

मड़वा म दुलरू तोर बदन कुम्हलाय।

     बरतिया आय हें।भोजन करे बर बइठे हें अउ वोती भड़ौनी गीत चलत हे जेला सुनके कतकोन बराती तिलमिला के भड़क तको जथें--

 हम का जानी हम का जानी दुरूग भिलई के बानी रे।

आये हे बरतिया मन हा मारत हे फुटानी रे।

मेछा हाबय कर्रा कर्रा गाल हाबय खोंधरा रे।

जादा अँटियावव समधी होगे हाबय डोकरा रे।


फाग गीत-- फागुन महिना भर जब ले होरी रचाये के शुरु होथे तब ले उमंग अउ मस्ती ले भरे नाना प्रकार के फाग गीत के धूम रहिथे। पुरुष मन के द्वारा गाये जाने वाला फाग गीत म  राम अउ कृष्ण कथा के संग ,जीवन दर्शन अउ हँसी ठिठोली के भरमार होथे।

सरा सरा ---

बर काट बउदा भये संगी के, पीपर काट चंडाल।

मँउरे आमा ल काटके, मानुस जनम नहीं पाय।


 चलो हाँ धनुष को रख दे मालिन चौंरा में।

टोरवइया हे राजा राम, अरे टोरवइया हे राजा राम

धनुस को रख दे माल


सरा ररा हो-सुन लो हमारे छंद।

केरा बारी म बिलई टूरी खोभा गड़ि जाय केरा बारी म।

आरी रुँधेंव बारी रुँधेंव तीर तीर म खोभा।

कारी टूरी माँग संवारे तीन दिन के शोभा।

केरा बारी म-----

सरा ररा

मुख मुरली बजाय मुख मुरली बजाय छोटे से श्याम कन्हइया।

चंदैनी गीत-- ये हा एक प्रकार ले कथा गीत आय जेमा लोरिक चंदा के प्रेम गाथा ल प्रस्तुत करे जाथे।

आल्हा गीत-- ए हू हा वीर रस ले ओत-प्रोत कथा गीत आय जेमा आल्हा अउ उदल दू भाई के वीरता के बखान करे जाथे।,

     छत्तीसगढ़ म अइसने अनेक लोकगीत हे। मूल रूप ले बस्तर अउ आदिवासी बहुल क्षेत्र म अनेक लोकगीत जइसे--रीना गीत(गोंड़, बइगा जनजाति), लेंजा गीत(बस्तर के जनजाति), रैला गीत(मुरिया जनजाति के प्रमुख गीत),बैना गीत(तंत्र मंत्र ले संबंधित),बर गीत(कंवर जनजाति),घोटुल पाटा(मुरिया जनजाति मन के मृत्यु के समे गाये जाने वाला लोकगीत जेमा प्रकृति के अनेक रहस्य ल परगट करे जाथे), डंडा गीत(गोंड़ जनजाति के पुरुष मन के क्वार नवरात्रि अउ देवारी के समे ),धनकुल गीत(बस्तर क्षेत्र म), गम्मत गीत(गणेश उत्सव के समे),ढोलकी गीत,नागमत गीत,नचोनी गीत,सोहर गीत आदि।

     ये लोकगीत मन के अध्ययन ले पता चलथे के कुछ मन विशुद्ध रूप ले हमर छत्तीसगढ़ के आयँ त कुछ मन अंते के आयँ फेर छत्तीसगढ़ म अपन छत्तीसगढ़िया ढाँचा म ढल गे हें।

    लोकगीत मन के हमर लोक संस्कृति म अबड़ेच महत्व हे काबर के इही मन  मा हमर संस्कार, परंपरा अउ अचार-विचार के दर्शन होथे। ये लोकगीत मन जनमानस ल खुशी देथे। अपन संस्कृति उपर गर्व करे के अवसर देथें। ये मन ला आधुनिकता अउ पश्चिमी संस्कृति के मार ले बँचा के रखे के जरूरत हे। गाँव-गँवई म अनजान फेर प्रतिभावान लोक कलाकार मन ल प्रोत्साहन देके आगू बढ़ाये के जरूरत हे।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

बिहाव गीत-सरला शर्मा

 

बिहाव गीत-सरला शर्मा


 हमर संस्कृति मं मनसे के जीवन हर सोलह संस्कार से संस्कारित होथे जेमा बिहाव संस्कार के सबले जादा महत्व होथे । बिहाव हर दू झन नोनी बाबू के संगे संग दू ठन परिवार के बीच नता रिश्ता जोरथे । सुख सनात के बेरा हर बाजा- गाजा , गीत -गोबिंद बिन सुन्ना लागथे तेइ पाय के नोनी लइका मन गीत गाथें । 

बिहाव के गीत अलग अलग रीत रिवाज के अलग अलग होथे । चुलमाटी , मंगरोहन , दौंतेला , हरदियाही के बेरा सुग्घर गीत गाये जाथे फेर बिहाव के दिन के गीत मन के सुरता करे ले अभियो आंखी बरसे लगथे, मोर इशारा नोनी लइका के बिहाव के दिन …। एक ठन जरूरी बात सुरता राखे बर परही के बिहाव गीत अउ भड़ौनी मं फरक होथे …भड़ौनी मं हांसी ठठ्ठा मिंझरे रहिथे त कभू कभू लोक मर्यादा के सुरता बिसर जाथे । 

    समधी सजन घर दुआर मं ठाढ़े हें त उनमन के गोड़ धो के तो घर मं पधराये जाही न ? त गावत हें फूफू , दीदी , काकी , मामी मन …

" समधी सजन सबो आइन दुआरे , पानी परात मं गोड़ ल बोरिन ।

  पटुका मं गोड़ ल पोंछिन सियनहा , माथ मं चंदन दे  पधराईन हो ….। " 

       बेटी के बबा , कका , ममा , भाई मन माथ नवा के समधी सजन के आदर , सनमान करथें । जेवनार बर तो आनी बानी के रोटी पीठा बने च रहिथे फेर समधी मन ल तो पनवार परोसे जाथे ओहू एके बेर माने कोनो जिनिस दूसरइया बेर परोसे नइ जावय ..। इही बेरा सुनथें समधी मन गारी …जेकर बिना पनवार उघारत तो बनय नहीं …सुनव गारी गीत …। 

" का गारी देबो हमन समधी सजन ल , हमर नता परे हे बड़े भारी हो .।

रैया रौरी के रार बड़े ….

उनकर चरण कमल बलिहारी हो , हमन का गारी देबो समधी सजन ल …

का गारी देबो उनकर बहिनी हे परम पियारी , जेहर पांच पुरुष एक नारी । 

हो रैया रौरी के रार बड़े ….। " 

     चरण कमल के वंदना ओहू एकर बर के समधी तो रौरी ( राजा ) आयं हमन तो रैया (  प्रजा ) अन तभो सुरता करत हन द्रौपदी के काबर ओहू तो समधी मन के बहिनी च आय । सुंदर मसखरी ..जेवन के स्वाद चिटिक गुरतुर चिटिक नुनछुर हो जाथे । 

     दाइज के बेरा होथे ..जथा शक्ति बेटी के बाप महतारी टिकावन टिकथें …कान भर सुनथें मनसे मन ….

" दाई तोर देवय धियरी अचहर पचहर , ददा  देवय सहनभंडार हो …

 भाई तोर देवय धियरी लिलि हंसा घोड़वा , भउजी देवय सिंगरौल हो …। " 

      धन्य छत्तीसगढ़ जिहां बाप अपन बेटी ल सहन भंडार दे के बिदा करथे …तभे तो बेटी दूनों कुल के मरजाद निभाये सकथे । 

दाइज मं पलंग घलाय तो देहे जाथे , भाई खार ले लकड़ी काट के लानथे , बाप बढ़ई बलाथे त महतारी बढ़ई ल कहिथे …… 

" आंछे आंछे छोलना तुम छोलव रे बढ़इया 

के बीचे बीच पुतरी उकेसउ हो लाल .. 

 रिगबिग पुतरी सिख़ौना देही धियरी ल 

अचल एंहवात सम्हारै हो लाल …। " 

     महतारी के मन तो आय डेरावत हे ससुरार मं सबके सुन सहि के रहे के पाठ कोन सीखोहि , कोन अचल एंहवात के महत्ता बताही तेकर बर सिंहासन बत्तीसी के पुतरी के कल्पना आय ….। 

    सेंदुर दान होगिस , भांवर पर गिस अब बिदा के बेरा …बेटी के बिदाई ..सहज नइ होवय जी !मनसे च नहीं कवि कहे हे न …

" बेटी जावत हे ससुरार , फफक फफक के रोवत हे  घर दुआर " । 

त आंसू पोंछत , रोवत रोवत गावत हें सबो झन ……

" ददा तोर रोवय धियरी पटुका भिंजोई के 

  दाई रोवत हे अहोधार ….

 भाई तोर रोवय अलथ कलथ के त

  भउजी के नयन कठोर …। " 

         बिदाई के दुख अपन जघा , दुलौरिन बेटी ल धीरज धरावत , लेवा लाने के बात कहना भी तो जरुरी हे …। 

" दाई कहय आबे आठे पन्द्रही 

 ददा कहय छै मास हो …

भाई कहय बरिस पूरे आही 

भउजी कहय तीजे तिहार हो ….। " 

     हमर छत्तीसगढ़ के बेटी के बिहाव अउ बिदाई के गीत सुन के  पथरा के आंखी हर भी अहोधार बरसे लगही …तेमा तइहा दिन के कन्या दान जब बाप भाई मन समधी के घर पानी तो दुरिहा के बात चोंगी , पान के बीरा घलाय नइ झोंकत रहिन ।

तभे तो शील जी लिखे हें ……

" भइया आइस कुलकत राधेवं खीर , 

  हाय बिधाता कइसे धरिहौं धीर । 

चोंगी छुइस न झोंकिस बीरा पान , 

हाय रे पोथी धन रे कन्यादान । " 

      

*सरला शर्मा*

जन्म-28 अगस्त .. निधन-22 अगस्त सुराजी वीर अनंतराम बर्छिहा

 


जन्म-28 अगस्त .. निधन-22 अगस्त

सुराजी वीर अनंतराम बर्छिहा


सत् मारग म कदम बढ़ाके, देश-धरम बर करीन हें काम।

वीर सुराजी वो हमर गरब आय, नांव जेकर हे अनंतराम।।


देश ल सुराज देवाय खातिर जे मन अपन जम्मो जिनिस ल अरपन कर देइन, वोमन म अनंतराम जी बर्छिहा के नांव आगू के डांड़ म गिनाथे। वो मन सुराज के लड़ाई म जतका योगदान देइन, वतकेच ऊँच-नीच, छुआ-छूत, दान-दहेज आदि के निवारण खातिर घलोक देइन, एकरे सेती एक बेरा अइसे घलोक आइस के अनंतराम जी ल अपन जाति-समाज ले अलग घलोक रहे बर लागिस। अछूतोद्धार के कारज खातिर गाँधी जी ह छत्तीसगढिय़ा गाँधी के नांव ले विख्यात पं. सुंदरलाल जी शर्मा के संगे-संग जम्मो छत्तीसगढ़ ल अपन गुरु मानिन, त एमा अनंतराम बर्छिहा जइसन मन के घलोक योगदान हवय।


अनंतराम जी बर्छिहा के जनम छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर ले करीब 24 कि.मी. दूरिहा म बसे गाँव चंदखुरी म 28 अगस्त सन् 1890 म होए रिहिसे। ए मेर ये जानना जरूरी हवय के रायपुर के उत्ती दिशा म बसे ये चंदखुरी ह उही ऐतिहासिक गाँव आय, जेला हमन दुनिया के एकमात्र कौशिल्या मंदिर खातिर जानथन। अनंतराम जी के माता के नांव यशोदा बाई अउ पिता के नांव हिंछाराम जी बर्छिहा रिहिसे।


अनंतराम जी के लइकई उमर के नांव नंदा रिहिसे। उंकर सियान हिंछाराम जी कुल 15 एकड़ खेती के जोतनदार रिहिन हें, एकरे सेती घर के आर्थिक स्थिति थोरुक कमजोर रिहिसे। बाबू नंदा ल चौथी कक्षा के बाद अपन पढ़ाई ल छोड़े बर परगे, अउ एकरे संग वो ह नांगर-बक्खर अउ खेती-किसानी म भीडग़े। इही बीच उंकर सियान सरग के रस्ता चल देइन। अब अतेक बड़ परिवार के जोखा-सरेखा नंदा के खांध म आगे, तेमा अकाल-दुकाल के मार। वो अइसे सुने रिहिसे के व्यापार करे म लछमी के आवक जल्दी होथे, एकरे सेती वो खेती के संगे-संग छोटकुन दुकान घलोक चालू करीस। तीर-तखार के गाँव मन म काँवर म समान धरके घलोक जावय। वोकर मेहनत अउ ईमानदारी ह रंग लाइस, अउ देखते-देखत वो बड़का बैपारी के रूप म अपन चिन्हारी बना डारिस। सिरिफ तीरे-तखार के गाँवेच भर म नहीं भलुक दुरिहा के गाँव मन म घलोक वोकर नांव के डंका बाजे लागिस।


सन् 1920 के बात आय। जब गाँधी जी रायपुर आइन त उंकर दरस करे के साध कर के बर्छिहा जी रायपुर आइन, अउ गाँधी जी के वाणी ल सुन के वो गाँधी जी के अनुयायी बनगें। वो बेरा ह तो स्वतंत्रता संग्राम के बेरा रिहिसे। पूरा देश म एकर लहर चलत रिहिसे, तेकरे सेती जम्मो मनखे के मन म कोनो न कोनो किसम ले सुराज के भावना मन रहिबे करय, त भला अनंतराम वो लहरा ले कइसे बांचे सकत रिहिसे। छत्तीसगढ़ अंचल लोकमान्य तिलक के आंदोलन ले प्रभावित हो चुके रिहिसे। पं. माधवराव सप्रे ह सन् 1900 म 'छत्तीसगढ़ मित्र' के प्रकाशन चालू कर डारे रिहिसे। 1903 म भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्थापना रायपुर म होगे रिहिसे। सन् 1907 म स्वदेशी जिनिस मनके दुकान खुलगे रिहिसे। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती 'सामाजिक असमानता' के खिलाफ संघर्ष करत बिलासपुर तक आगे रिहिन हें।


एकर प्रभाव पूरा छत्तीसगढ़ म परत रिहिसे। अइसन म युवा अनंतराम के मन म ए सबके प्रभाव कइसे नइ परतीस? बर्छिहा जी के अपन कुर्मी जाति समाज तो पहिलीच ले ए मारग म आगू बढ़ चुके रिहिसे। गाँधी जी के आगमन तो ये सुलगत आगी म घीव के कारज करीसे। अइसन म बर्छिहा जी भला कहाँ पाछू रहितीन, उहू मन अपन दुकानदारी के जम्मो काम-काज ल अपन छोटे भाई सुखराम बर्छिहा के खांध म सौंप के राष्ट्रीय आंदोलन म कूद गें।


सन् 1923 म नागपुर म झंडा सत्याग्रह चालू होइस। छत्तीसगढ़ के जम्मो खुंट ले सत्याग्रही मन नागपुर पहुंचे लागिन। वो सत्याग्रह म भाग लेके छै-छै महीना के सजा घलोक काट आइन। बर्छिहा जी के ये पहली जेल यात्रा रिहिसे, जेला उन नागपुर केंद्रीय जेल म काटिन। वोकर बाद तो उन घर-बार ल छोड़ के गाँव-गाँव अलख जगाये लागिन। एकर सेती उनला सन् 1930 म एक पइत फेर एक बछर के सजा होइस। सन् 1930 के आंदोलन के केंद्र चंदखुरी च गाँव ह बनगे रिहिसे, जेकर प्रसिद्धि पूरा देश भर म होए रिहिसे। वो गाँव के मन अनंतराम बर्छिहा के अगुवई म असहयोग आंदोलन म बड़का भूमिका निभाए रिहिन हें। गाँव-गाँव जाके विदेशी जिनिस मनके बहिष्कार के बात करयं, वो जिनिस मनके होरी बारयं, छुआछूत मिटाए के बात करयं, खादी ग्रामोद्योग के प्रचार करयं, सहभोज के आयोजन करयं, बीमार मनखे मन के सेवा करयं, उनला दवई बांटयं, गाँव के साफ-सफाई करयं, नान्हें लइका मनला पढ़े खातिर  प्रोत्साहित करयं।


चंदखुरी गाँव वो बखत राष्ट्रीय आंदोलन के गढ़ बनगे रिहिसे। अइसे म फिरंगी शासन कब तक कलेचुप बइठे रहितीस? गाँव म पुलिस के घेरा डार दिए गेइस। एक बटालियन पुलिस उहां तैनात कर दे गइस। फेर वो पुलिस वाला मनके गुजारा होतिस कइसे? सरकारी व्यवस्था के खिलाफ म तो आंदोलन होवत रिहिसे। पुलिस वाले मनला मांगे म कोनो आगी-पानी तक नइ देवत रिहिन हें। बर्छिहा जी के दुकान म बिसाए म घलोक कोनो समान नइ मिलत रिहिसे। अइसन म पुलिसवाला अउ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन के आपस म ठनना स्वभाविक रिहिसे। ए बगावत के असर आसपास के अउ आने गाँव मन म घलोक बगरत जावत रिहिसे।

एकर जानकारी जिला के अधिकारी मन जगा घलोक पहुंचीस। जिला कप्तान चंदखुरी पहुंचीस अउ उहां के लोगन ल समझाए-बुझाए के उदिम करिस। बर्छिहा जी के दुकान ले समान लेना चाहिस। उंकर जगा संदेश भेजवाइस। जेकर जवाब मिलिस- 'आप हमर इहाँ मेहमान बनके आहू त आपके सुवागत हे, फेर कहूं सरकारी अधिकारी बनके आहू, त आपला हमर असहयोग हे।' ए जुवाब ले अधिकारी चिढग़े, अउ पूरा गाँव म कहर मचा देइस। घुड़सवार पुलिस वाला मन पहुंचीन अउ पूरा गाँव ल रौंद डारिन। बर्छिहा जी के दुकान ल लूट डारिन। अतको म उंकर मन नइ माढि़स त घोसना कर डारिन के बर्छिहा जी के दुकान ले जेन कोनो उधारी लिए होहीं वोला वापस झन करे जाय। संग म अनंतराम बर्छिहा के संगे-संग गाँव के अउ सात झनला गिरफ्तार करके जेल भेज देइन। गिरफ्तार लोगन म रिहिन हें- बर्छिहा जी के छोटे भाई सुखराम बर्छिहा, बर्छिहा जी के बड़े बेटा वीर सिंह बर्छिहा, नन्हे लाल वर्मा, गनपतराव मरेठा, हजारीलाल वर्मा, नाथूराम साहू अउ हीरालाल साहू।

बर्छिहा जी के लाखों रुपिया के संपति नष्ट होगे, जेकर निसानी ल आजो देखे जा सकथे। उन सेठ ले फेर फकीर होगे रिहिन हें। तभो ले उनला एक साल के फेर सजा होगे, अउ संग म जुर्माना घलोक लाद देइन। जुर्माना नइ पटाए के सेती उंकर नांगर-बख्खर, गाय-बइला आदि के नीलामी कर दे गइस। बर्छिहा जी के संग ये सिलसिला सन् 1942 तक सरलग चलीस।


सन् 1930-32 के जेल यातना ह आज कस सहज नइ रिहिसे। उंकर मन जगा चक्की चलवायं, घानी म बइला के जगा उनला फांद के तेल पेरवायं, पानी के रहट चलवायं। उनला लोहा के बरतन म खाना देवयं, तेल-साबुन के तो नामे नइ रिहिसे। पहिने खातिर एक जांघिया अउ एक बंडी, कनिहा म बांधे खातिर एक ठन पंछा अउ एक ठन टोपी। बिछाए अउ ओढ़े खातिर दू ठन कमरा अउ एक ठन टाटपट्टी। फेर सत्याग्रही मन म कतकों अइसे राहयं, जेन खादी के छोड़ अउ कोनो जिनिस के उपयोगेच नइ करत रिहिन हें। अनंतराम जी घलोक वइसने खादी धारी रिहिन हें, उन दूसर कपड़ा मनला उपयोग नइ करत रिहिन हें, तेकरे सेती जेल म उन नग्न अवस्था म राहयं। सिरिफ लोक मर्यादा खातिर उन एक ठन कमरा ल लपेट ले राहयं। अइसन खादी व्रतधारी रिहिन हें बर्छिहा जी।


अब चिटिक उंकर सामाजिक क्रांतिकारी रूप के चरचा। सन् 1933 ह अस्पृश्यता निवारण के इतिहास म बहुते महत्वपूर्ण बछर आय। बाबा साहेब अंबेडकर अउ गाँधी जी के बीच होए पुना पेक्ट के अनुसार अस्पृश्यता के कलंक ल मिटाए खातिर पूरा देश म अभियान चालू करिन। छुआछूत के संगे-संग, कुरीती, गरीबी, अज्ञानता, अशिक्षा ल मिटा के स्वावलंबन के रद्दा देखाइन। ये जम्मो बात बर्छिहा जी के अंतस म उतर आइन। अउ ये जम्मो कारज के शुरुवात उन अपनेच घर ले चालू करीन।


वो बखत जम्मो गाँव-घर म छुआछूत के चलन भारी मात्रा म होवत रिहिसे। उन अपनेच गाँव के अइसन जाति कहाने वाला लोगन ल सामाजिक अधिकार देवाए खातिर आंदोलन चलाइन। अइसन जाति-समाज के लोगन मन सार्वजनिक कुंआ ले पानी नइ ले सकत रिहिन हें, वोकर मन खातिर उन अपन घर के कुंआ ल खोलवाइन। मरदनिया मन उंकर हजामत नइ बनावत राहंय, त उन खुद उंकर मनके हजामत बनावयं। धोबी के कारज ल घलोक उन खुदे करयं। उन अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलन चलाइन तेकर सुफल ये होइस के उंकर गाँव के मंदिर ह सबो मनखे खातिर खुलगे। गाँव के वातावरण तो उंकर अनुकुल होगे, फेर वोकर खुद के जाति-समाज के मुखिया मनला ये सब बात नइ सुहाइस, अउ उन बर्छिहा जी के परिवार ल अपन जाति ले बाहिर के रद्दा देखा देइन।


उंकर ले रोटी-बेटी के संबंध, पौनी-पसारी के संबंध, घाट-घटौंदा के संबंध जम्मो ल बंद कर दिए गेइस। वो बखत के स्थिति के चित्रण करत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अउ सामाजिक नेता डॉ. खूबचंद बघेल ह लिखे हवयं- 'गाँव के परिस्थिति विस्फोटक होगे रिहिसे। पांचों पवनी माने- नाऊ, धोबी, राउत, मेहर अउ लोहार मन उंकर जम्मो काम-धाम ल छोड़ दिए रिहिन हें। उंकर समाज उंकर संग जम्मो किसम के व्यवहार ल बंद कर दिए रिहिसे, तभो ले बर्छिहा गाँधी जी के आदर्श म चलत मगन राहयं।'


वो समय तक मनवा कुर्मी समाज म प्रगतिशीलता आए ले धर लिए रिहिसे। बर्छिहा जी के ही विचार ल मानने वाला एक परिवार उंकर बेटी ल अपन बहू के रूप म ले के समाज ले बहिष्कृत होए बर तइयार होगे। फेर बात अतकेच म नइ बनिस। काबर ते बर्छिहा जी के एक ठन अउ संकल्प रिहिसे के 'न तो वो दहेज लेवय, अउ न दहेज देवय।' वो ककरो समझाए म घलोक नइ समझत रिहिन हें। तब वो परिवार वाले मन अइसनो खातिर मानगें।


बर्छिहा जी के जम्मो शर्त ल मानने वाला परिवार दुरुग जिला के सिलघट नामक गाँव के टिकरिहा परिवार रिहिसे। ये बिहाव के जुराव ल मनवा कुर्मी समाज ल दो भाग म बांट देइस। जुन्ना पीढ़ी ए मन ल सबक सिखाए खातिर त नवा पीढ़ी ए नवा सामाजिक सुधार ल लागू करे खातिर। नवा पीढ़ी के वो बखत मुखियाई करत रिहिन हें- डॉ. खूबचंद बघेल, जगन्नाथ बघेल, दुर्गासिंह सिरमौर, प्रेमतीर्थ बघेल, जयसिंह वर्मा, वीरसिंह बर्छिहा के संगे-संग आने समाज के वो समय के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन, जे मन वो बिहाव के पतरी उठाए ले लेके जम्मो किसम के नेंग-जोंग सबो ल करीन।


बर्छिहा जी के बेटी राधबाई ह खादी के साड़ी पहिन के मंडप म बइठिस। भांवर के बाद दहेज के रूप म सिरिफ एक ठन सूत काते के चरखा अउ पानी दे गेइस। अइसन आदर्श बिहाव ये छत्तीसगढ़ अंचल म एकर पहिली कभू नइ होए रिहिसे। आज घलोक अइसन आदर्श के चरचा न तो कहूँ सुने ल मिलय अउ न देखे ल। बर्छिहा जी अइसन महापुरुष रिहिन हें, जेन सामाजिक क्रांति के शुरुआत अपनेच घर ले करे रिहिन हें।


बर्छिहा जी म संघर्षशीलता के संगे-संग प्रशासनिक क्षमता घलोक रिहिस हे। उन कई बछर तक तहसील कांग्रेस के अध्यक्ष रिहिन। सन् 1937 म अपन अंचल ले विधायक घलोक बनीन। उन जब तक जीइन दीया बनके जीइन, लोगन बर अंजोर करीन। छत्तीसगढ़ महतारी के ये सपूत ह अपन पूरा जीवन ल देश खातिर समरपित कर देइस। 22 अगस्त सन् 1952 के उन ये नश्वर दुनिया ले बिदा ले लेइन।


-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर 

मो/व्हा. 98269 92811

छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक वैभव-सुआ गीत-शोभामोहन श्रीवास्तव

 


छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक वैभव-सुआ गीत-शोभामोहन श्रीवास्तव

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छत्तीसगढ़ में लोकगीत के विराट अउ वैभवशाली परंपरा है जेमा सुआ गीत एक प्रसिद्ध लोकगीत विधा हे । ये हर छत्तीसगढ़ के आदिवासी गोंड़ जात के नारी मन के द्वारा विकसित प्रमुख नृत्य -गीत आय, जेन ला समूह मा नाचे अउ गाये जाथे। परम पबरित कार्तिक महिना भगवान राम के बनवास काट के अवध बहुरे अउ गौरी गौरा के बिहाव के मंगलबेरा मा देवारी तिहार के दस दिन पहिली ले गौरी गौरा जगावत तक ये गीत ला गाये के जुन्ना परंपरा हे। ‘गौरी गौरा’ परब हर छत्तीसगढ़ के आदिवासी गोंड़ मन के एक प्रमुख तिहार आय जेन ला  छत्तीसगढ़ के सबो क्षेत्र में धूमधाम ले मनाये जाथे, सुआ गीत अउ गौरी गौरा गीत  ला छत्तीसगढ़ के सबो नारी परानी मन आत्मसात करके सालपुट गाथें। सुआ गीत अउ गौरी गौरा के पूजा एक दूसर ले संबंधित हे। जेन हर असल मा गौरी (माता पार्वती) अउ गौरा ( शिवजी) के बिहाव के उत्सव आय। सुआ गीत गाके जेन अन धन सकलाथे तेकरे ले गौरी गौरा जगाय के तैयारी करे जाथे तेन हर सुआ गीत अउ गौरी गौरा के घनिष्टता के पोठ सत परमान आय। नारी प्रधान गीत होय के सेती येमा कालांतर मा नारी मन अपन मन के दुख सुख ला घलो सुआ गीत संग संघेरत गिन। तेकरे आधार लेवत  छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति सुआ गीत ला मात्र नारी के व्यथा कथा के गीत के रूप मा परिभाषित करे के डउल के गिस, हमर मूल आराध्य ला भुला के येला मात्र नारी के दुख सुख के गीत के रूप मा निरूपित करना उचित नहीं हे,  लोकसंस्कृति अउ लोकपरंपरा ला मूलरूप में ईश्वर के गुणगान हे स्तुति हे।सुवागीत परमात्मा अउ जीव के अंतरंगता के गीत आय ये गीत मा एक गवैया अउ बाकी  राग झोंकैया होथे नारी परानी मन नरगर ले सँभर पकर के दल के दल बिहिनिया कार्तिक नहाथें अउ तरिया नदिया के पार मा बने भोलेनाथ के पूजा पाठ करके जलदेवती मा दीया ढ़िलथें अउ घर बूता रँधना पसना करके जइसे ही बेरा हर कलथथे तहाँ अपन अपन संगी गिंया संग माटी के चुकचुक ले रंगे सुआ ला टुकनी मा मड़ा के दीया बार के झोफ्फा के झोफ्फा निकलथें अपन संग ओमन नान नान दू दू ठन रेंदाय लकड़ी के गुटका ला धरे रहिथे जेला चटका/चुटका कहे जाथे। गोल घेरा बना के एक पग आगू बढ़ा के एक पग पाँव घुँच के एक पग डेरी हाथ अउ एक पग जेवनी हाथ डहर घुँच के थपोड़ी पीट पीट के अउ चुटका/चटका बजा बजा  के गोला बना के एकभाँवर नाचथें। जेकर डेहरी मा चढ़थें तेन घर हर गझिन होके गजगजाय लगथे, हाँसत गावत घर मा अमाथें अउ अन धन जन अउ सुख शांति के असीद देवत जाथें । 


लाली गुलाली छींचत आयेंन ओ छींचत आयेन। 

तोर घर के मुहाटी ला पूछत आयेन।। 


तरी नारी नाना मोर नाना रे नाना रे सुवना

तरी नारी नाना रे ना ।

जेकर अर्थ हे  तरी नारी ना ना मोर ना न रे ना ना रे। मतलब नारी हर समाज मा खाल्हे दर्जा के नोहय पार्वती हर बज्र बैरागी ला अपन तपबल ले बिहाव करे बर खंधो डरिस। उही पार्वती हमर इष्ट देबी आय हमू मन अपन तप अउ साधन ले परमदेव अउ परमगति ला पाबो, भोले बाबा ला मनाबो अइसन महत् भाव समाहित हे। 



*मूल गौरी गौरा के भक्ति सुआगीत* 


ठाढ़ धोवा चाँउर चढ़ा के बेलपतिया 

चढ़ा के बेलपतिया रे सुआ हो।

चलौ गड़ी गौरा ला मनाय, ना रे सुआ हो 

तरी नारी नाना मोर नाना नाना रे सुआ हो..................

तरी नारी ना ना रे ना..................... 

तरी नारी ना ना मोर नाना रे नाना रे सुआ हो । 


देबी परबतिया के दुल्हा औघड़ भोला, 

हमरो पुरोही सब आस, ना रे सुआ हो।

तरी नारी नाना मोर नाना नाना रे सुआ हो..................

तरी नारी ना ना रे ना..................... 


 *नारी विरह रूप* मा प्रचलित सुआगीत

१/

पईयाँ मैं लागँव चन्दा सुरुज के,

रे सुअना तिरिया जनम झनि देय। 

तिरिया जनम मोर गऊ के बराबर,

रे सुअना ! जहँ पठौए तहँ जाए। 


२/

सास मोर मारय-ननद गारी देवय,

रे सुअना! के राजा मोर गये हें बिदेस!

लहुरा देवर मोरे जनम के बैरी,

रे सुअना! ले जाबे तिरिया संदेस। 


३/

ऊँच मनसरुवा के करिया रे अखियाँ रे सुअना!

चुहत हय मेछन के रेख।

कोदई साँवर रंग सुग्घर सुहावन रे सुवना।

वीर बरोबर हे भेख।

४/

बन रोजगारी मोर पिया परदेसिया रे सुवना, 

गये हावै पइसा कमाय। 

हालचाल लेई के तुरत चले अइबे, रे सुअना! 

झिन कोनो राखै बिलमाय।

मोती के झालर डैना गुँथवइहौं,रे सुअना! 

लादे तैं पिया के सन्देस।

सोने के थारी मा जेवन जेवइहौं, रे सुअना! 

पइयाँ टेके सेहूँ हमेस। 


*असीद* 


लोहा के ड़ंडा ला घुना खाथे रे नारे सुवना

कि हम बहिनी देवन असीद। 

गउवा ना गउवा तोर कोठा भरे रे ना रे सुवना

कि हम बहिनी देवन असीद। 

बेटवा व बिटिया ले घर भरै रे ना रे सुवना

कि हम बहिनी देवन असीद। 


शोभामोहन श्रीवास्तव                      

मया के डोरी , महतारी के लोरी


 

मया के डोरी , महतारी के लोरी 

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       '  लोरी '  हर वाचिक परम्परा के गीत आय जेला लोकगीत के रुप मं प्रतिष्ठा मिले हे काबर के छत्तीसगढ़ भर नहीं संसार के पहिली महतारी हर जब अपन लइका ल भुलवारे बर , सुताये बर  जौन किसिम ले गुनगुनाए रहिस होही उही हर पहिली लोरी रहिस होही फेर हमन तीर लिखित इतिहास तो है नहीं । हमर दाई , बूढ़ी दाई मन सो सुने लोरी अउ आजकाल के लिखे लोरी मन के चिटिक सुरता कर लेईन ...। 

  छोटकुन लइका ल तेल चुपरत गावत हे कोनो महतारी ....

" चाकी चाकी लोहरा , तेल ठोंके पोहरा , 

 तेल कस चिकनाई , घानी कस मोटाई । 

 तेल जावै कोरे कोर , लइका बाढ़य पोरे पोर ।

 नोनी / बाबू बाढ़य पोरे पोर .....। 

    लइकन ल नहवाये के पहिली तेल मालिस करथें तभे तो लइका पोट्ठ होही फेर लइका तो रोबे करही त ओला भुलवारे बर जौन गीत गाए जाथे उही हर तो लोरी कहाथे । लइकन ल नहवा -खोरा  के  दूध पिया के सुताये के बेरा हो जाथे फेर लइका तो आंखी मूंदे बर तियारे नइ होवयं , रोथें , रिरियाथें त उनला थपकत थपकत महतारी गुनगुनाए लगथे .....

     " धीरे बाने आबे निंदिया , 

       हांथ बाजै  झन गोड़ ।

      सोवत बाढ़यै मोर दुलरुआ 

      देहें कान होवै पोठ । " 

            लइकन चिटिक अउ बाढ़थें त ओकर बर झुलिया डारे बर परथे , झुलिया झूलत लइकन सुत जाथें ...महतारी काय गावत हे चिटिक सुनिन तो ....

     " चंदन के पलना , रेशम के डोरी , 

    झुलना झुलावत हे नंद के रानी 

    सोए हे बाल गोपाल ।

       पंइया परय मैया , देवी देवता के , 

       आ जा निनी दाई , आ जा न ओ ..। 

     जुग जुग जियय नंदलाल 

        कोनो कोनो डहर इही लोरी ल एरकम भी गाए जाथे ...... 

" चंदन के पलना झुलावै नंदरानी 

 सोये हे बाल गोपाल । 

पंइयां परत हे महादेव के 

जुग जुग जियय नंदलाल ....

    आ जा निनी दाई आ जा ना ओ ...। " 

          मुंहखरा लोरी तो आय ते पाय के शब्द मन थोरिक एती तेती हो जाथें फेर भाव तो एके च आय के लइका निभुर सुत जावय । दुलरुआ के आंखी मं परी दाई सपना आंज देवय । इही मया ल तो हिंदी साहित्य मं सूरदास के सेतिर वात्सल्य नांव मिलिस अउ दसवां रस के आसन मिलिस । 

  गोंगइया छोड़ के लइका डगमग डगमग पांव धरत रेंगे लगिस , नान नान गोड़ दौड़े सीख गिस त अंगना छोड़ के खोर-   गली मं खेले कूदे धर लिहिस , थक जाथे फेर आंखी मूंद के थिराये नइ चाहय ओला नाना उदिम करके सुताये बर महतारी गाये लगथे ...

" धरती अकास मं बगरे चंदनिया , 

 सोवा पर गे हे रात 

दाई ददा के रतन बेटा ।

सुन सुन मोर बात 

सुत जा राजा बाबू ( बेटा ) सुत जा ना ..। 

   बिरबिट कारी रात अंधियारी 

  सुन्ना पर गे हे कोला बारी ।

  चिटिक थिरा के मूंद ले आंखी 

 रात के होथे नींद के पारी 

  सुत जा राजा बाबू  सुत जा ना ...। " 

           महतारी के हलकनी देखव लइका तो कुछु खाए बर तियार नइये , नइ खाए के नौ ठन ओढ़र ..। नहीं निदान महतारी फेर गुनगुना के भुलवारे लगिस ...गुप्प ले कौंरा मुंह मं भर दिस ...। 

 " चंदा ममा तरी आ , मोर घर उतरी जा 

 दार भात सुट ले , मोर बेटा गुट ले ...। " 

        शिष्ट साहित्य के विकास के संगे संग कवि मन लोरी लिखे बर शुरु करिन हें जेहर सहराये लाइक बात आय । मुकुंद कौशल लिखे हें ...." तरिया ले पानी भर लानौ बाबू , फेर तोला झूला झुलाहौ ना ... " 

    झुलना झुलाए के ओढ़र मं महतारी अपन दुलौरिन बेटी ल चिरई- चुरगुन , रूख- राई , फल- फूल के चिन्हारी करावत गाये लगथे ..... 

  " झूल झुलना ओ बेटी , झूल झुलना ।

   आनी बानी के फूल फूले हे , 

  अंगना अउ दुवरिया । 

 झूल झुलना ओ ननिया , झूल झुलना .। 

    कोइली बइठे अमुवा के डारी 

   मैना रानी बइठे लिमुवा ।

  सुवा बइठे बीही के रूख मं 

  पंड़की बइठे हे पिपरवा ।

  झूल झुलना ओ बेटी झूल झुलना ...। 

       लिखइया .... वसंती वर्मा 

              पीरा ले जनमे हीरा के महतारी पुरवाही के बिनती करत हे ...हर- हर ,हर - हर झन बोहाबे पुरवाही मोर लइका लटपट आंखी मूंदिस हे , जाग जाही मोर बिनती ल सुन ...

   " सोवत हे मोर ललना , पुरवाही धीरे बह ना 

     तोर आये ले डोलय डारा पाना , ललना उठ जाही मान मोर कहना । 

    झरर झरर झन बह ना पुरवाही ....। " 

        लिखइया ...रामेश्वर शर्मा 

              संसार के काव्य साहित्य मं गीत विधा के श्री गणेश लोरी से ही होए रहिस काबर के सबले पहिली मया के डोरी महतारी अउ लइका च के बीच मं तो बंधाथे । आज के मशीनी युग मं जिहां लइकन बाजारवादी , उपभोक्तावादी संस्कृति के बीच बाढ़त पौढ़त हें उनमन ल लोरी के सुरता कराना जरुरी हो गए हे । सबले जुन्ना , सबले मजबूत डोरी होथे महतारी के लोरी । 

    सरला शर्मा

आलेख - पोरा तिहार*‌






*आलेख - पोरा तिहार*‌


हमारे भारत देश कृषि प्रधान देश हरय। पहली जमाना में खेती-किसानी के काम पशु मन के द्वारा करे जावत रिहीस। आज भी गाँव में खेती-किसानी के काम बइला-भँइसा के द्वारा करे जाथे। फेर आधुनिक युग मा कृषि काम ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेसर, आदि मशीन से होवत हे, तेखर सेती अब खेती-किसानी में पशु मन के उपयोग कम होगे हे।  


वइसे तो हमर छत्तीसगढ़ में तीज-तिहार के विशेष महत्व हे। जेमा पोरा तिहार बहुत ही खास तिहार आय।

*पोरा तिहार* जेला हिंदी में *पोला पर्व* के रूप में हमर छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश अउ महाराष्ट्र में बड़े धूमधाम से मनाये जाथे। मान्यता हे कि द्वापर युग में कृष्ण भगवान जब लइका रूप में रिहीस तब कंस ह कृष्ण भगवान ला मारे बर कई झन राक्षस मन ला भेजिस जेमा पोलासुर नाम के राक्षस भी रिहीस हे। भगवान कृष्ण हर  पोलासुर ला मारके  बाल रूप में अपन लीला देखाइस। जे दिन पोलासुर के वध होईस वो दिन भादो के महीना अमावस्या के दिन रिहीस हे,  उही दिन ले पोला पर्व मनाय जाथे।


हमर में छत्तीसगढ़ में *पोरा तिहार* के विशेष महत्व हे। ये दिन विशेष रूप से बइला के पूजा करे के रिवाज हे। ये दिन बइला मन ला सजाय जाथे अउ पूजा करे जाथे। गाँव मा खेती-किसानी में जोताई-बोवाँई के काम होय के बाद पोरा तिहार के दिन किसान मन अपन बइला मन के पूजा करथे। येखर अलावा माटी के बइला के भी पूजा करे जाथे, संगे संग माटी के जाता-पोरा के पूजा भी होथे। मान्यता हे कि पहली जमाना में गहूं, चना, राहेर, तिवरा, कोदो अनाज ला जांता मा दरके खाना बनावै। आज के जमाना में सब चीज रेडिमेंट मिल जाथे। 


*पोरा तिहार* मा रोटी पीठा के विशेष महत्व हे। ये दिन सबों घर मा ठेठरी-खुरमी, बरा, सोंहारी, अइरसा, चौसेला, भजिया, गुजिया, चीला आदि  प्रकार के रोटी बनाय जाथे, जेला पूजा के बाद बइला अउ जाता पोरा मा चढ़ाथे। पूजा के बाद बहिनी मन पोरा पटके बर गाँव के चऊँक मा जाथे। पोरा तिहार के दिन नान्हे-नान्हे लइका मन बर माटी के बइला मा चक्का लगाके ओमा बाँस के कमचील लगाके बने सुग्घर तइयार करें जाथे। फेर लइका मन मगन होके गली मा अब्बड़ चलाथें। अउ नोनी मन घर मा जाता पोरा मा सगा पहुना खेलथें।


हमर छत्तीसगढ़ मा कई जगह मे बइला दौड़ प्रतियोगिता के आयोजन भी होथे। जेमा आस-पास के क्षेत्र के किसान मन अपन बइला मन ला सुग्घर सजाके प्रतियोगिता मा भाग ले बर आथे। अउ ये प्रतियोगिता ला देखेबर भी आस-पास के मनखे मन सकलाथें। 


पोरा तिहार के एक अलग मान्यता हे कि *पोरा* माने "पोटरियाना" मतलब धान मा दूध आना। जब खेत के धान के फसल हर गर्भ धारण करथे, या दूध भराथे तेला पोकरी भरना, या पोटरियाना भी कहिथे। तेखर सेती हमर छत्तीसगढ़ मा *पोरा तिहार* मनाय जाथे।


आप सब ला पोला तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई अउ शुभकामना।


रचनाकार 

राजकुमार निषाद *राज*

बिरोदा, धमधा, जिला-दुर्ग

7898837338



Thursday 25 August 2022

छत्तीसगढ़ आगु रहिस जगत सिरमौर*


*छत्तीसगढ़ आगु रहिस जगत सिरमौर*


*- दुर्गा प्रसाद पारकर* 

                        

छत्तीसगढ़ म कतनो राजवंश, नलवंशी, पांडुवंशी, सोमवंशी, कलचुरी राजवंशी, नागवंशी, छिन्दक नागवंशी, गोड़, मराठा अऊ अंग्रेज मन, मन भर के राज करिन। फेर छत्तीसगढ़ म रतनपुरी राजा मन के शासन काल ल सुख समृद्धि अउ उन्नति के दिन बादर माने जा सकत हे। डॉ. महेंद्र कश्यप राही के मुताबिक तो 



रतन देव के हाथ के दीया ह

 बिना आगी बर जाये, 

उही रतनपुर भीख म भइया

 हीरा मोती बांटय। 



स्व. शुकलाल पांडे के आंखी के देखल आय ग-


नाप-नाप काठा म रुपिया,

 बेहर देत रहिन गौटिया। 

कभू नही स्टाम्प लिखाइन 

रिहिन गवाही अउ ये हमर देश

 छत्तीसगढ़ आगु रहिस जगत सिरमौर। 


अइसन छत्तीसगढ़ म राज करइया राजा मन बिक्कट शोषण करिन । चूहक के फोकला कर दिन।

इन तो पहिलिच्च ले छत्तीसगढ़िया मन सीधवा सबले बढ़िहा हे कहि के हमर खून ल जूड़ा देथे ताहन उन मूड़ी म राज करथे । तहू मन ल कुछ नइ काहन सकन। सियान मन बताथे - पहिली जमाना म संसार भर के सोना भारत म जमा होवत रिहिस। तभे तो भारत ल सोन चिरईया काहत रिहिन। बाद म इंग्लैंड म जमा होय ल धर लिस। अंग्रेजी पूंजीवादी नीति के सेती भारत के गरीब किसान थर्रा गे ग। छत्तीसगढ़या किसान तो ए दाई वो कहि के मुड़ी ल धर के बइठ गे। स्व. कुंज बिहारी चौबे ह इसी बात ल उजागर करथे-


अजी अंग्रेज तैंहर हमला बनाए कंगला। 

सात समुद्दर बिलाएत ले आ के हमला बना दे भिखारी जी।

 हमला बनाए बेंदरा बरोबर बन गए तैं मदारी जी। चीथ-चीथ के तैं हमर चेथी के मास ला, 

अपन बर टेकाए बंगला। 


दुनिया भर के उठा पटक करे के बाद अंग्रेज मन के शोषण नीति ह भारत के एकता के आघु म घोरमुहा हो गे। एकर बाद तो अंग्रेज मन कंझा के देश के नाजुक नस ल बइद बरोबर टमरिन। टमरत-टमरत टमर डरिन जी। ओ नस रिहिस धरम के । बेईमान मन भाई ल भाई के विरोध म खड़ा कर के थपरी बजाए बर धर लिन ताहन तो फेर इन मन फूट डालो अऊ राज करो के महामंत्र ले बिक्कट के फायदा उचइन। धीरे-धीरे फैसन कस बगर गे एकर प्रदूषण ह। जेकर प्रभाव ल आजो देखे जा सकत हे |

धान के फसल ल सधौरी खवाए के उत्सव - पोरा तिहार*




*धान के फसल ल सधौरी खवाए के उत्सव - पोरा तिहार*



*- दुर्गा प्रसाद पारकर*



छत्तीसगढ़ म बारो महीना तिहार बार मनाए के परम्परा हे। सबो तिहार ह इहां के लोक जीवन के कहानी कहिथे। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन के आराध्य श्रम आय। श्रम ले सराबोर कृ़षि कार्य के अलग चिन्हारी हे। छत्तीसगढ़ म कृषि संस्कृति अउ रिषी संस्कृति दुनो हे। कृषि संस्कृति म मुख्य फसल धान आय। तिही पाय के छत्तीसगढ़ ल धान के कटोरा केहे जाथे | जउन किसम ले बेटी के गर्भवती होय ले मइके वाले मन सात महीना म सधौरी खवाए बर आनी बानी के व्यंजन बनाके ओकर ससुराल जाथे उही किसम ले धान के गर्भ धारण करके ले ओला सधौरी खवाए बर किसान खेत म चिला चघाए बर जाथे। 

     पोला पर्व भादो महीना के अमावस्या के मनाए जाथे। पोला ल पोला पाटन , कुशागृहस्थी, कुशा पाटनी घलो केहे जाथे। महाराष्ट्र म पोरा तिहार ल पिठौरी केहे जाथे।

    पोला तिहार के उपर विद्वान मन कतनो  व्याख्या करे हे फेर तुलसी देवी तिवारी के मुताबिक पोरा तिहार मनाए के इतिहास ह भविष्य पुराण म मिलथे। बहुत पहिली के बात आय एक झिन देवधर नाव के ब्राम्हण रिहिस। अपन गोसइन बेटा शंकर अउ बहू बिदेहा के संग राहय। सब बने रिहिसे फेर बिदेहा के लइका ह नइ नांदत राहय। छै झिन लइका मन जनम के बाद जब यमराज घर चल दिन। पंडितिन ह अपन नाती - नतरा के मुंह देखे बर तरसत राहय। बिदेहा ह अपन आप ल दोषी मानत रिहिस। बिदेहा (बहू) के कोख ले एको झिन लइका नांदत नइ हे | वंश परम्परा ह कइसे आगू बढ़ही कहिके ओला घर ले निकाल दिस। छै झिन लइका ल गंवाए के बाद बिदेहा दुख ले उबरे नइ रिहिस उपराहा म ओला घर परिवार वाले मन घर ले निकाल दिन। दुब्बर बर दु अषाढ़ कस होगे। अब तो रोवत - रोवत बिदेहा ह जंगल डाहर निकल गे। जंगल म एक ठिन ठीहा असन दिखिस , ठीहा करा जाए बर आगू बढ़त रिहिसे | साधु मन ओला देख के बिदेहा ल उहां जाए बर स रोकिन, ओती  जोगिन दाई के रहवासा हे ,जान डरही ते तोला खा डरही।

बिदेहा किहिस मय ए संसार ल छोड़ना चाहत हवं, बने होही जोगिन दाई मोला खा डरही ते। बिदेहा उही ठीहा करा जा के लुका गे। रात कन जोगिन दाई मन अइन त मनखे के गंध ल पा के जान डरिन कि हमर अलावा ये मेर कोनो अउ हवय। बिदेहा के दुख ल सुन के जोगिन दाई मन ल दया आगे। ओकर बाद उमन ओकर छैवो लइका ल जिया दिन। घर आए के बाद देवधर पंडित ह बड़ा उत्सव मनाए गिस। बहिनी बेटी, सगा, सोदर मन आन खेल खिलौना लाइस ताहन लइका मन खेलिन। बाबू मन नांदिया बइला मन संग खेलिन त नोनी मन चूकी पोरा संग खेलिन इही दिन ले पोरा तिहार मनाए के परम्परा चले आवत हे।

पोरा तिहार के दिन बेटा मन माटी के बइला संग खेलथे अउ बेटी मन चूकी पोरा संग खेलथे | एकर यहू उद्देश्य हो सकत हे कि बेटा जात मन ल बड़े होय के बाद खेती किसानी करना हे अउ बेटी मन ल रंधनी खोली के बूता करना हे। खेल खेल म घर गृहस्थी के जिम्मेदारी ल ननपन ले जनवा दे जाथे। 

सुधा वर्मा के मुताबिक नंदी ह एक दिन उदास रिहिसे, शिव जी ह कारण पूछथे तब नंदी ह कहिथे कि सबके पूजा होथे फेर मोर पूजा नइ होवय | शिव जी ओकर दुख ल समझ के कहिथे कि चल एक दिन तोला देथंव। भादो  महीना के अमावस के दिन तोर पूजा होही। उही दिन तंय अस्तित्व म घलो आये रेहे। नंदी बहुत खुश हो जथे। शिव जी के संग ओकर स्थापना मंदिर म घलो होथे।

पोला के दिन नंदी मने नांदिया बइला के पूजा होथे। नंदी शिव के वाहन आय। नंदी ल ही छत्तीसगढ़ म नांदिया बइला केहे जाथे। नंदी शिव के वाहन आय। छत्तीसगढ़ के पूरा लोक जीवन ही शिव ले परिपूर्ण हे। आदिकाल ले शिव अर्थात शंकर भगवान ह छत्तीसगढ़ म बड़े देव , बूढ़ा देव, दूल्हा देव आदि के रूप म पूज्य हे। इहां जुन्ना मंदिर म ही नही बल्कि गांव , टोला अउ मुहल्ला म घलो शिव मंदिर के अधिकता हे। छत्तीसगढ़ म शिव सबले जादा लोक पूज्य देव आय। छत्तीसगढ़िया मन बर शिव भगवान देव ही नही बल्कि भोले बाबा आय। ओइसने जइसे भोले बाबा सीधा-सादा निष्कपट अउ निश्छल हे |जेकर आराध्य निश्छल होही ओकर आराधक घलो निश्छल होथे। एकर ले छत्तीसगढ़ के लोक जीवन प्रभावित हे । तभे तो सब झिन छत्तीसढ़िया सबले बढ़िया कहिथेे।

तीजा तिहार म गरीब बाप के पीरा*


*तीजा तिहार म गरीब बाप के पीरा*



*दुर्गा प्रसाद पारकर*


                     

                     पानी के बरसा के संगे–संग तिहार मन के शुरूआत होथे, सउनाही, इतवारी, हरेली, आठे ,पोरा ताहने तीजा, अइसे किसम ले आठ पन्द्रा दिन म एक न एक ठोक तिहार मनाए ल परथे। शहर ले जादा तिहार गांव म मनाए जाथे। जिंकर करा पइसा हे उंकर बर तो रोजे तिहार हरय। फेर जेमन रोज कमाथे अऊ रोज खाथे उंकर मन बर तो तिहार ह सजा कस लागथे। तभो ले दूसर मन ल देख–देख के पीरा ल पियत रहिथे | तिहार मनई ह तो गरीब मन बर सजा आय सजा। दाऊ घर के लइका मन खीर– सोंहारी खाथे, त बनिहार के लइका मन उपास रहिथें। काबर कि कभू–कभू तो हप्ता म तीन चार दिन तिहार हो जेथे। इतवारी तिहार, फांफा बरोए के तिहार, बुधवारी तिहार, अइसने किसम के रंग–रंग के तिहार मनाए के परंपरा हे। बनिहार मन गांव गंवई के अइसन नियम के विरूद्ध म बोल तको नइ सकय | काबर कि अभी भी पूर्वज के बनाय तिहार मन चले आवत हवय। मान ले कोनो तिहार के विरूद्ध बोले के हिम्मत जुटाही वोला डांड़ परही। वोकर नाऊ लोहार छोड़ा दे जाही। यहू कइसन तिहार आय जिहां बनिहार मन के अवाज ल नइ सुने जाय। गांव म अभी घलो ग्रामीण व्यवस्था ल माने बर परथे । आखिर जादा तिहार मनई ह हमर विकास म रूकावट आय कि नोहे । खेत म काम रूक जथे। खेतिहर मजदूर मन तिहार के सेती चउपाल म निठल्ला बइठ के पासा अऊ तास खेलत रहिथें। दू–चार रूपिया हाथ म रहिथे वहू ल पान–बीड़ी म उड़ा डरथे। कुछु नइ सुहावय त चारी निंदा करत रहिथें। जादा बार तिहार म हमर छत्तीसगढ़ के विकास रूकत जावत हे।

धान के कटोरा ह तिहारे तिहार के खरचा म उना होवत जावत हवय, जब काम नइ करबो त पेज पसिया कहां ले मिलही ? जब पइसा नइ मिलही त बेरोजगेारी बाढ़ही। आखिर जादा तिहार मनई ह कतका उचित हवय। यदि हम रोजे काम करबो त रोज पइसा मिलही अऊ रोज हमर घर के चूल्हा म आगी बरही। हमन भूखन लांघन नइ राहन, तब तो हमर बर रोज तिहार रहि। हर रात देवारी अऊ हर रात हरेली रहि।

                      वोइसे यदि मानबो ते रोजे तिहार आय । त का काम करे बर छोंड़ देवन। नइ कमाबो त खाबो काला। अब देख न तीजा आ गे हे। बुधरू के एक झिन दुलौरिन बेटी । तीजा लाए ल जाय बर लागही, इही चिन्ता म बुधरू ह दुबरावत जावत हवय। काबर कि तीजा नइ लाए ल जाबे त बेटी ह कही अब तो हमर मइके वाले मन मरगे हवय। एती बुधारू के गांव वाले मन कही देख सब मन अपन बेटी मन ल तीजा लाए हवय अऊ बुधरू ल देख, एक झिन बेटी ल घलो तीजा नइ ला सके हे। अपन दुख ल अपने जानथे। बुधरू करा तो बहुत अकन समस्या हवय। काला–काला बताए। अरे भई दुनिया हर तो हंसइया हरय, बुधरू के उपर का बीतत हे तेला तो बुधरूच ह जानही। 

                         बुधरू ह अपन बेटी ल तीजा लाने बर जाही त चार दिन के काम ह नांगा होही। आए–जाए बर मोटर गाड़ी के लागही। बेटी–दमांद घर जाबे त कुछु खई–खजाना, चना–फूटेना नइ लेगबे तभो नइ बनय। बेटी आही त ओकर बर अलवा–जलवा लुगरा–पोलखा ले बर लागही | अब बिचारा कइसे करय। आठे के दिन सब घर सूजी, पकवा, सिंघाड़ा बने रिहिस। ओ दिन उंकर घर हंडि़या उपास रिहिस हवय। हे भगवान ! काय पाप करे रिहिसे बुधरू ह तेमा गरीबी भोगत हवय। सब मिले ते मिले फेर बैरी ल घलो गरीबी देखे ल मत मिलय। तीज तिहार तो पइसा वालेे के आय। हरेली के दिन बुधारू ह अपन हंसिया अऊ कुदारी ल बंदन भर के तिलक लगा के छोड़ दे रिहिसे। वो दिन नरिहर घलो फोर नइ सकिस। गांव म अइसे–अइसे उटपुटांग तिहार माने जाथे जिहां के कानून बड़ा सक्त रहिथे। जतका प्रतिबंध कर्फ्यू अऊ बड़े–बड़े शहर म नइ राहय वोतना तो गांव गंवई म रइथे। जऊन दिन फांफा बराथें वो दिन गांव वाले मन म कानून समा जाथे। छेना, लकड़ी धर के तको सहर तनी नइ जा सकय। अब ए बात समझ म नइ आवय कि फांफा बरोए जाथे कि बुधरू जइसे मनखे ल बरोय जाथे, फांफा ह तिहार माने ले भगही कि दवई के छिड़काव करे ले...।

                         अतका लिखत हवंव सबो ह शहर वाले मन बर फालतू लागही, फेर भइया मय तो गांव म रहि के ये सजा ल भोगे हवव। शहर म मान लिस त आठे, देवारी अऊ होली। शहर वाले मन ह तो आठे के दिन सिंघाड़ा, सूजी संउख ले मडि़या के पकवा बनाबे करहीं। देवारी म तो दनादन फटाका फूटबे करही। काबर कि कमई जादा तिहार कम जब तिहार कम मनाही त तिहार ले जुड़े विशेष खरचा कम होही। जिहां खरचा कम होही, बचत जादा होही। बचत जादा होही त हमर पूंजी बाढ़ही ताहन लइका पिचका मन ल पढ़ाए बर कापी किताब बिसा सकत हन। त जादा तिहार मनई ह कहां तक उचित हवय। जउन भी गांव म बनिहार–भूतिहार रहिथे वोकर दुख ह बुधरू जइसे हरय। अंकाल म नोनी ल तीजा लाएच ल लागही। मय तीजा परब के विरोध नइ करत हवंव, फेर बुधारू के बेटी ल अपन ददा के हालात ल समझ के संतोष कर लेना चाही। यदि बुधरू ह अपन बेटी ल तीजा लाए बर नइ गिस त का होइस। ओकर बेटी ल मन मार के अपन ददा के उपर तरस खाना चाही। ए बात ह एक झोक बुधारू के बेटी के बात नोहय, अइसन समस्या के भोगइया कतको बुधरू के बेटी आय।

                           बुधरू घलो चाहथे अपन दुलौरिन बेैटी ल तीजा ला लेतेंव। साल भर म बेटी ल देखे बर मिलथे, फेर का करबे गरीबी ह रोड़ा आ जाथे। बेटी घलव चार महिना आगू ले सपना देखत रहिथे। एसो के तीजा म बिछड़े सहेली मन संग मिल लेतेंव, अऊ पीपर पेड़ म डोर बांध के झून्ना झूलतेंव। फेर का करबे.... ऐसो अंकाल परे हवय, उपराहा म गांव म रोज तिहार मनई म हालत खस्ता हो गे हवय। मय हर तीजा लेय बर नइ आ सकंव बेटी, मोर हिरदे के टुकड़ा तोला नइ देख सकंव, जब कभू पइसा सेकलाही न, त लूगरा धर के आहूं कहिके सोचत बुधरू ह घलो मने मन म बेटी ल समझावत हे..... रिसाबे झन कहिके।

                          बुधरू ऐसो के अंकाल म मरगे। मरबे करिस त बुधवारी तिहार के दिन। लांघन–भूखन मरगे बिचारा ह, अब तिहार के दिन मरे बर गांव म अऊ बुधरू पैदा करत हवय। बिचारी मैना ह अब तीजा घलव नइ जा सकय। अपन संगी–संगवारी मन के संग ठिठोली नइ कर सकय। साल भर के दुख ल नइ बांट सकय।

                          बुधारू के बेटी मैना ह दाऊ के टुरी रइतिस ते आठ पन्द्रा दिन पहिली ले तीजा जातिस। अपन मइके म संगी संगवारी के संग बजार हाट जातिस। चुरी–चाकी पहिरतिस अपन ससुरार म मैना ह लइका ल दूध पियावत–पियावत तीजा के दिन गुनत रहिगे। हे भगवान गरीबी कोनो ल भोगे ल मत मिलय। दुनिया म सब ले बड़े सजा गरीबी आय। न वोहर तिहार मान सकय, न बने लुगरा पहिर सकय, न बने चुरी–चाकी, न बने घर द्वार। वोला तो काली के काम बूता के चिंता रहिथे कि  काम मिलही कि नइ मिलही। मैना मने मन गुनत रहिथे कि गांव म एको ठोक तिहार मत होतिस। नइ ते पेट ह मारे जाही। तिहार नइ होही ते कम से कम काम म तो जाबोन, दू कौड़ी कमा के लइका के मुंहु म चारा डारबोन, जऊन दिन हमर पेट भरही उही दिन तिहार हे। हम्मन तो रोज एक घांव खा के रोज उपास रहिथन तभो ले भगवान प्रसन्न नइ होवय। हो सकत हे भगवान ह हमर मन लेे रिसा गे हावय। काबर कि भगवान म नरिहर तको घलो नइ चढ़ा सकन, जब पेट बर पइसा नइ हे त नरिहर बर कहां ले लाहूं पइसा भगवान फेर तंय तो अवघट दानी हरस , हे भगवान हमु ल पइसा वाला काबर नइ बनायेस। ताहन तिहार हमु मन बने मान सकतेन। बेटी ल तो तीजा लेवा के ला सकतेन अऊ वोकर सऊंख ल पूरा करतेन। तीजा के बहाना बेटी ल साल म एक घांव देख लेतेन भगवान।

                         मोला गरीबी के सेती भले मोर ददा ह तीजा नइ ले जा सकिस ते का होइस, कम से कम हम्मन हमर बेटी ल तो तीजा ला सकन अतेक तो सम्पन्न बना दे। भले जादा बड़े झन बना, फेर जादा गरीब घलो झन बना। कम से कम दू बखत के रोटी ह  नसीब हो सकय। हे शंकर भगवान तंय कइसे प्रसन्न होबे, कइसन उपास करंव अऊ के दिन के उपास राहंव तब मोर उपर प्रसन्न होबे अऊ मोर गरीबी ल दूर करबे। जब हमर गरीबी हट जाही तब तिहार मनाए म आनंद आही। तब कहूं हम्मन गांव के जम्मो तिहार ल चैन से मना सकथन। तिहारे मनई म हमर आर्थिक स्थिति कमजोर होवत जावत हे तेकर ले हमर आर्थिक विकास नइ हो सकय। जऊन जादा जरूरी तिहार हे, उही ल मान के खुशी के इजहार करे म का आपत्ति हे। तेकर ले कम से कम बेटी ल तो तीजा लाए जा सकत हे। कोनो बेटी ह तीजा ले वंचित मत होवय, कउनो मनखे ह बुधरू कस भूख म झन मरय।

                           काम के दिन काम अऊ तिहार के दिन तिहार फेर अलग से गांव स्तर के तिहार। बुधवारी, इतवारी, फांफा बरोई कतको अइसे तिहार हे जेला हम्मन रोक के खेत म काम कर सकथन अऊ खेती के काम ल बढ़ा के अपन आमदनी बढ़ा सकथन। हमर आमदनी बाढ़ही त अपन दुलैरिन बेटी ल तीजा ला सकथन अउ तीजा के बिहान दिन फरहर के दिन मन मड़ाए के लइक लुगरा दे सकथन। जेकर ले बेटी ह तीजा ल साल भर झन भुलावय अऊ अवइया साल के बाट जोहय....।