Friday 5 August 2022

व्यंग्य-कइसे झंडा फहरही ?


 

व्यंग्य-कइसे झंडा फहरही ? 

                                    पंद्रह अगस्त के पहिली दिन .... सरपंच किथे ‌- डोकरी दई .... ये बछर  हमर बड़का झंडा ला तिहीं फहराबे या ..... । डोकरी दई किथे -  मोर न आँखी  दिखय ..... न कान सुनाये ..... न हाथ चले ..... न गोड़ ..... मेहा का झंडा फहराहूँ ? सरपंच मजाक करिस - ये देश म जे मनखे ला दिखथे .... जे मनखे ला सुनाथे ..... जे अपन हाथ ले बहुत कुछ कर सकत हे ....... जे अपन देहें के ताकत ले दुश्मन के नास कर सकत हे तेमन ला ...... आज तक झंडा फहराये के हक नइ मिलिस । जे कुछ करय निही या कर नइ सके तिही मन झंडा फहराथे दई । खिस खिस ले दाँत निपोर के .... हा हा हा ..... हाँस लिस तहन .... एकदम से चुप होके .... सरपंच आगू केहे लगिस -  ये दारी हमूमन सोंच डरे हाबन के ... जे मनखे ....... हमर देश बर कुछ करे हे ….. तिही मन झंडा फहराही । तेकर सेती बइसका म तोर नाव तै करे हाबन । डोकरी दाई किथे – वा ...... देस म अऊ कतको मनखे हे जेमन देश बर बहुत कुछ करे हे । उही मन ला कहव ..... में नइ जाँव झंडा मंडा फहराये बर .......।    

                                    सरपंच किलौली करे लागिस - हमर ले कुछू गलती होये होही तेला माफी देहू डोकरी दई । फेर कइसनो करके ..... मोर खातिर ये बछर के झंडा फहरा दव । डोकरी दई जिद पकड़ लिस - तें चाहे कहींच कहिले सरपंच ....... में झंडा नइ फहराँव । डोकरी दई के जिद देखके सरपंच किथे - तुँहर जगा तुँहर नाती फहराही त बनही ? डोकरी दई किथे - अपन नाती ल घला नइ फहरावन दंव । में अपन घर के कन्हो ला झंडा फहराये बर भेजबेच नइ करँव । सरपंच परेशान होके कारण पूछे लागिस – काबर नराज हस डोकरी दई । काबर अइसने करथस या  .... ?  

                                    सरपंच के किलौली देख डोकरी दई कारण बताए लगिस – हमन जनता अन सरपंच । हमन ला घेरी बेरी बिगन कारन के नराज होय के हक निये । बीच समे म हमर नराजगी ला कोन सहिही सरपंच ? हमन ला नराजगी के हक पांच बछर म सिर्फ एके बेर मिलथे । उहू ला आजमा नइ सकन ... कोई न कोई भरमा देथे तहन ..... भुला जथन । सरपंच किथे – कुछ तो अऊ बात हे डोकरी दई .... । डोकरी दई लंभा साँस लेवत किथे – कुछ निही बलकी बहुतेच बात हे सरपंच ..... । अभू ले अस्सी बछर पहिली के बात आये बेटा .... । तोर बबा ला झंडा फहराये बर उकसा दिन । उकसइया मन जानत रिहिन के जे मनखे झंडा फहराही तेला ...... अंग्रेज मन गोली मार दिही । तोर बबा नइ जानत रिहिस ...... कहत कहत रो डरिस । भरे जवानी म खाली हाथ होगेंव । मोर बेटा हा अपन ददा के बलिदान के प्रमाण खोजत खोजत मरगे ..... एके झिन नाती हाबे तेला .... झंडा फहराये के उदीम म ओला कन्हो कीमत म नइ भेंजंव .... कोन जनी काये करहू ओकर संग ........। 

                          सरपंच किथे - वा .... ओ दारी अंग्रेज मन के राज रिहिस दई ..... । हमन गुलाम रेहेन ..... अभू आजाद हन ...... कोन गोली चलाही हमर ऊपर ? डोकरी दई किथे -  तैं आजाद होबे सरपंच । हमन कति करा आजाद हन । सरपंच किथे - निही वो डोकरी दई ....... देश म जतका झिन जनता हे जम्मो आजाद हे । डोकरी दई मुहुँ फार दिस - अई ...... हम सोंचत रेहेन के ..... देश म फकत बड़े मनखे मन आजाद होही..... । सरपंच किथे ‌- तहूँ ल ओतकेच आजादी हे जतका बड़े मनखे ला हे । डोकरी दई पूछे लागिस - तैं ये बता सरपंच .... हमन सहींच म ओतके आजाद हन जतका बड़का मनखे मन हे ....? सरपंच किथे - हव डोकरी दई ओतकेच ...। डोकरी दई एकदमेच सीरियस होके पूछे लागिस - त मेंहा कनहों रसदा म सुते मनखे ल ..... अपन गाड़ी म चपक के मार सकथँव ? मेहा जंगल जाके ....... कन्हो पशु के शिकार कर सकत हँव ? मेंहा देश के पइसा खाके डकार सकत हँव अऊ छापा परे म अपन कमइया ला बिरोध करे के बुता म लगा सकत हँव ... अऊ अपन नाक उँच करके .... गाँड़ा कस बछवा ...... छेल्ला किंजर सकत हँव । सरपंच किथे - निही दई ..... दूनों बूता नइ कर सकस । डोकरी दई किथे - त मेंहा कती करा आजाद हँव ? सरपंच समझइस - बने काम करे बर आजादी मिले हे डोकरी दई..... । डोकरी दई पूछिस - का बने काम करँव तिहीं बता ..... ? का ग्राम पंचइत म ..... लबारी मरइया मन के टेंटवा मसक सकथँव ? का बईमानी करइया इंजीनियर ला नौकरी ले निकलवा सकत हँव ? फरेब करके गरीब मनखे के जगा भुंइया ला दूसर के नाव करइया तहसीलदार ला सजा देवा सकत हँव ? येमन ल संरक्षण देवइया बिधायक ला ओकर औकात बता सकत हँव ? संसद म बइठके जहर घोरइया मनखे के हाथ ला टोर के बइठार सकत हँव ? सरपंच मुड़ी गड़िया के किथे - तैं कुछ नइ कर सकस डोकरी दई । अतका के करत ले तुहीं ल जेल हो जाही । डोकरी दई किथे - मेंहा जानत हँव बेटा .. न्याय के रद्दा म रेंगइया मनखेच बर ...... इहाँ जेल बने हे । बईमान दुराचारी मन शान बघारत बाहिर मटकत हे । अब तिहीं बता हमन कती करा आजाद हन ? अऊ हमन आजाद नियन त कहूँ फेर झंडा फहराये के बेरा कन्हो हमर जान ले दिहीं तब ....... ?

                                   डोकरी दई ला सरपंच भरमाये लागिस - तहूँ अजाद हो जबे दई .... फेर एक शर्त हे । डोकरी दई पूछिस - का ? सरपंच जवाब दिस - तोला टोपी पहिरे बर लागही दई । झंडा फहराये के बेरा ..... तोर मुड़ी म टोपी मढ़ा देबो ..... तहन तहूँ .... उही बेरा ले अजाद हो जबे । तैं जेन बूता करना चाहबे ...... बिगन कन्हो रोक टोंक के कर सकत हस । डोकरी दई किथे - अई .... अभू तक झंडा फहराये बर टोपी पहिरे लागथे । टोपी के सेती तोर बबा हा ओतका भीड़ म चिन्हागे रिहिस अऊ गोली के शिकार होये रिहिस । तूमन फेर कन्हो गरीब ल टोपी पहिरा के मारना चाहत हव ........ । मय न तो तुँहर टोपी ल पहिरँव ...... न झंडा फंहरावँव । सरपंच किथे – दई तैं नइ जानस या .....  अभी हमर देश म केवल टोपी पहिरइया मन सुरक्षित अऊ आजाद हे ....... । तैं एक बेर पहिरके तो देख ....... ।                

                                    दई केहे लागिस – मेंहा टोपी घला पहिर लेहूं ....... फेर मोर बर सादा सचाई के टोपी लान । झंडा फहराये बर घला चल दूहूँ फेर साफ सुथरा आरूग झंडा के बेवस्था तो कर.... । सरपंच किथे – तोर फहराये बर नावा झंडा बिसाये हाबँव डोकरी दई .... । डोकरी दई किथे - उहीच तो बात हे सरपंच । येमे लगे दागी ..... तूमन ला दिखथे कब ? हमर पुरखा के झंडा ल देखे हव कभू ? सरपंच हाँसत किथे - वो तो कब के चिरागे हे दई । डोकरी दई तमतमागे - वो चिराये निये बेटा .. ओला चिरे गेहे । ओला दागदार बनाके कभू कश्मीर म .. कभू असम म .. कभू गुजरात म . कभू केरल म .. रात दिन चिरत  हव । चिरहा झंडा के कतेक शान ... ओला मे काये फहराहूँ ? तुरते बिसाये नावा झंडा ल सरपंच हेर के जइसे देखइस .... सुकुरदुम होगे उही हा खुदे ..... । ध्यान से देखिस .. जगा जगा ले मइलहा ... जगा जगा दाग .. कतको जगा चिरहा .. ? सरपंच किथे - अरे .. दुकानदार मोला ठग दिस या डोकरी दई ? डोकरी दई किथे - दुकानदार नइ ठगे बेटा .. तूमन जनता ल ठगत हव ।  देख तुँहर हाथ परतेच साठ .. नावा झंडा म दाग लग जावत हे बेटा । कभू भ्रस्टाचार .. कभू बइमानी ... कभू आतंक … कभू झूठ .. कभू फरेब के दाग तूहीं मन लगात हव । मोर बर आरूग झंडा ले आन ... में नइ फंहराहूँ त कहिबे । मइलहा दागी फटहा झंडा झिन टेका हमर आगू म । तोर बबा दगदग ले उज्जर झंडा फहरावत अपन जान दे दे रिहिस । ओकर बलिदान ल अभीरथा नइ होवन दँव । सरपंच भटकत हे ... ये दुकान ले वो दुकान , ये गाँव ले ओ गाँव , ये जिला ले वो जिला , ये प्रदेश ले वो प्रदेश ...... । जगा जगा खोज डरिस । कहूँ नइ पइस साफ सुथरा झंडा । डोकरी दई के हाथ ले झंडा फहरवाये के साध अभू तक अधूरा हे ? कोन जनी कब फहरही साफ सुथरा अइसन झंडा .... ?   

        हरिशंकर गजानंद देवांगन  छुरा

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