Friday 26 August 2022

मया के डोरी , महतारी के लोरी


 

मया के डोरी , महतारी के लोरी 

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       '  लोरी '  हर वाचिक परम्परा के गीत आय जेला लोकगीत के रुप मं प्रतिष्ठा मिले हे काबर के छत्तीसगढ़ भर नहीं संसार के पहिली महतारी हर जब अपन लइका ल भुलवारे बर , सुताये बर  जौन किसिम ले गुनगुनाए रहिस होही उही हर पहिली लोरी रहिस होही फेर हमन तीर लिखित इतिहास तो है नहीं । हमर दाई , बूढ़ी दाई मन सो सुने लोरी अउ आजकाल के लिखे लोरी मन के चिटिक सुरता कर लेईन ...। 

  छोटकुन लइका ल तेल चुपरत गावत हे कोनो महतारी ....

" चाकी चाकी लोहरा , तेल ठोंके पोहरा , 

 तेल कस चिकनाई , घानी कस मोटाई । 

 तेल जावै कोरे कोर , लइका बाढ़य पोरे पोर ।

 नोनी / बाबू बाढ़य पोरे पोर .....। 

    लइकन ल नहवाये के पहिली तेल मालिस करथें तभे तो लइका पोट्ठ होही फेर लइका तो रोबे करही त ओला भुलवारे बर जौन गीत गाए जाथे उही हर तो लोरी कहाथे । लइकन ल नहवा -खोरा  के  दूध पिया के सुताये के बेरा हो जाथे फेर लइका तो आंखी मूंदे बर तियारे नइ होवयं , रोथें , रिरियाथें त उनला थपकत थपकत महतारी गुनगुनाए लगथे .....

     " धीरे बाने आबे निंदिया , 

       हांथ बाजै  झन गोड़ ।

      सोवत बाढ़यै मोर दुलरुआ 

      देहें कान होवै पोठ । " 

            लइकन चिटिक अउ बाढ़थें त ओकर बर झुलिया डारे बर परथे , झुलिया झूलत लइकन सुत जाथें ...महतारी काय गावत हे चिटिक सुनिन तो ....

     " चंदन के पलना , रेशम के डोरी , 

    झुलना झुलावत हे नंद के रानी 

    सोए हे बाल गोपाल ।

       पंइया परय मैया , देवी देवता के , 

       आ जा निनी दाई , आ जा न ओ ..। 

     जुग जुग जियय नंदलाल 

        कोनो कोनो डहर इही लोरी ल एरकम भी गाए जाथे ...... 

" चंदन के पलना झुलावै नंदरानी 

 सोये हे बाल गोपाल । 

पंइयां परत हे महादेव के 

जुग जुग जियय नंदलाल ....

    आ जा निनी दाई आ जा ना ओ ...। " 

          मुंहखरा लोरी तो आय ते पाय के शब्द मन थोरिक एती तेती हो जाथें फेर भाव तो एके च आय के लइका निभुर सुत जावय । दुलरुआ के आंखी मं परी दाई सपना आंज देवय । इही मया ल तो हिंदी साहित्य मं सूरदास के सेतिर वात्सल्य नांव मिलिस अउ दसवां रस के आसन मिलिस । 

  गोंगइया छोड़ के लइका डगमग डगमग पांव धरत रेंगे लगिस , नान नान गोड़ दौड़े सीख गिस त अंगना छोड़ के खोर-   गली मं खेले कूदे धर लिहिस , थक जाथे फेर आंखी मूंद के थिराये नइ चाहय ओला नाना उदिम करके सुताये बर महतारी गाये लगथे ...

" धरती अकास मं बगरे चंदनिया , 

 सोवा पर गे हे रात 

दाई ददा के रतन बेटा ।

सुन सुन मोर बात 

सुत जा राजा बाबू ( बेटा ) सुत जा ना ..। 

   बिरबिट कारी रात अंधियारी 

  सुन्ना पर गे हे कोला बारी ।

  चिटिक थिरा के मूंद ले आंखी 

 रात के होथे नींद के पारी 

  सुत जा राजा बाबू  सुत जा ना ...। " 

           महतारी के हलकनी देखव लइका तो कुछु खाए बर तियार नइये , नइ खाए के नौ ठन ओढ़र ..। नहीं निदान महतारी फेर गुनगुना के भुलवारे लगिस ...गुप्प ले कौंरा मुंह मं भर दिस ...। 

 " चंदा ममा तरी आ , मोर घर उतरी जा 

 दार भात सुट ले , मोर बेटा गुट ले ...। " 

        शिष्ट साहित्य के विकास के संगे संग कवि मन लोरी लिखे बर शुरु करिन हें जेहर सहराये लाइक बात आय । मुकुंद कौशल लिखे हें ...." तरिया ले पानी भर लानौ बाबू , फेर तोला झूला झुलाहौ ना ... " 

    झुलना झुलाए के ओढ़र मं महतारी अपन दुलौरिन बेटी ल चिरई- चुरगुन , रूख- राई , फल- फूल के चिन्हारी करावत गाये लगथे ..... 

  " झूल झुलना ओ बेटी , झूल झुलना ।

   आनी बानी के फूल फूले हे , 

  अंगना अउ दुवरिया । 

 झूल झुलना ओ ननिया , झूल झुलना .। 

    कोइली बइठे अमुवा के डारी 

   मैना रानी बइठे लिमुवा ।

  सुवा बइठे बीही के रूख मं 

  पंड़की बइठे हे पिपरवा ।

  झूल झुलना ओ बेटी झूल झुलना ...। 

       लिखइया .... वसंती वर्मा 

              पीरा ले जनमे हीरा के महतारी पुरवाही के बिनती करत हे ...हर- हर ,हर - हर झन बोहाबे पुरवाही मोर लइका लटपट आंखी मूंदिस हे , जाग जाही मोर बिनती ल सुन ...

   " सोवत हे मोर ललना , पुरवाही धीरे बह ना 

     तोर आये ले डोलय डारा पाना , ललना उठ जाही मान मोर कहना । 

    झरर झरर झन बह ना पुरवाही ....। " 

        लिखइया ...रामेश्वर शर्मा 

              संसार के काव्य साहित्य मं गीत विधा के श्री गणेश लोरी से ही होए रहिस काबर के सबले पहिली मया के डोरी महतारी अउ लइका च के बीच मं तो बंधाथे । आज के मशीनी युग मं जिहां लइकन बाजारवादी , उपभोक्तावादी संस्कृति के बीच बाढ़त पौढ़त हें उनमन ल लोरी के सुरता कराना जरुरी हो गए हे । सबले जुन्ना , सबले मजबूत डोरी होथे महतारी के लोरी । 

    सरला शर्मा

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