*कहां जाबे रे कनवा*
*- दुर्गा प्रसाद पारकर*
छत्तीसगढ़ म तो लोक कथा के भरमार हे। आज बबा अऊ डोकरी दाई मन करा ले जादा ले जादा कहानी किस्सा ल बटोरे के जरूरत हे। नइ सकेलबो ते फेर सियान मन के माटी म मिलते भार लोक कथा ह मटिया मेट हो जही। गुलाल राम ह गुड़ी म बइठ के एदे लोक कथा ल सुनइस-एक झिन किसान के चार झिन बेटा राहे ग। चारो म सबले छोटे टूरा के नाव गिजोरवा राहे। काम न धाम के गीज-गीज करत राहे। बहू आए के बाद घलो काम बूता नइ करय । भइया भऊजी मन गिजोरवा के कोड़ियाई ले हदास होगे ताहन लड़ई झगरा मात गे। गिजोरवा के ददा ह अपन बेटा बहू मन ल समझइस-अरे भई गिजोरवा ह काम बूता भले नइ करय फेर कविता तो लिखथे। अतका म बड़े भाई कथे-कविता ले पेट थोरे भरही ग। बर बिहाव नइ होय रिहिस त गिजोरवा ल पोसत रेहेन फेर अब तो बहू आगे। अपन परिवार के जिम्मेदारी ल खुदे उठाए अऊ काली ले अलग खाय। रात कन गिजोरवा ल भारी उदास देख के ओकर गोसइन कथे-राजा के राज दरबार म जा के अरजी करबे, उहें तोर कविता के कदर हो जय। अपन घरवाली के बात ल मान के चांऊर दार धर के मोटरी म रोटी बांध के शहर जाए बर निकल गे।
रेंगत-रेंगत गिजोरवा थक गे। पीपर पेड़ के खाल्हे म अपन मोटरी ल मड़ा के अंगाकर रोटी खाए बर धर लिस। कनवा मुसवा के नीयत ह गिजोरवा के मोटरी उपर परगे। मोटरी ल मुसवा ह देखे बर धर लिस | देख के गिजोरवा कथे-टुकुर-टुकुर देखत हवे। थोकिन देर बर मुसुवा ह मोटरी डाहर रेंगे ल धर लेथे। ओला देख के गिजोरवा कथे-धुसुर-धुसुर रेंगत हवे।
मुसवा ह मोटरी ल कोड़ियाए बर धर लेथे। गिजोरवा फेर कथे-कइसे खुसुर-खुसुर कोड़त हवे। गिजोरवा के भाखा ल मुसवा ओरख के रेंगे ल धर लेथे। देख के गिजोरवा कथे-कहां जाबे रे कनवा। कविराज गिजोरवा ह बहुत खुश होगे चलो आज एक ठन कविता बन गे-
टुकुर-टुकुर देखत हवे, धुसुर-धुसुर रेंगत हवे,
खुसुर-खुसुर कोड़त हवे, कहां जाबे रे कनवा।
गिजोरवा ह गीज-गीज करत मार रटपट-रटपट शहर चल देथे। राजा के महल म पहुंच के अपन अरजी देथे। गिजोरवा के परीक्षा बिहान दिन लेहूं कहि के राजा ह मंत्री करा ओकर रेहे बसे के बेवस्था करवा देथे। गिजोरवा मने मन गुनथे नौकरी के सवाल हे बने कविता ल याद कर लेथंव कहि के अधरतिया अपन कविता ल याद करत रिहिसे - कइसे टुकुर-टुकुर देखत हवे। ठऊंका उही समे तीन झिन चोर महल म चोरी करे बर टुकुर-टुकुर देखत राहे। चोर मन फूसुर-फूसुर गोठियाए ल धर लिन-कलेचुप राहव कोनो जागत हे तइसे लागत हे कहि के तिजौरी डाहर रेंगे ल धर लिन। ओतके बेर गिजोरवा काहत रिहिस-धुसुर-धुसुर रेंगत हवे। ए बात सुन्न के तीनो चोर सन्न रहिगे। बड़ हिम्मत करके तिजौरी ल कोड़े बर धर लिन। गिजोरवा ह फेर याद करत राहय -खुसुर-खुसुर कोड़त हे। चोर मन सोचथे कि अब हम्मन ल कोनो देख डरिस कही के थोर बहुत गाहना गुरिया ल धर के भागत राहय। ओतके बेर गिजोरवा पढ़त राहे-कहां जाबे रे कनवा। संयोग से चोर के सरदार कनवा रिहिसे घबरा के चोर मन मंत्री करा आत्म समर्पण कर दिस।
कउनो हम्मन आत्म समर्पण नइ करबो ते राजा भारी सजा देही कही के। जबकि गिजोरवा उन ल नइ देखे रिहिस। बिहान दिन सबो घटना ल जब मंत्री ह राजा ल बतइस त राजा ह राज्य के धन रक्षा करे के अवेजी म कविराज गिजोरवा ल सम्मानित करीस।
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