Friday 26 August 2022

बिहाव गीत-सरला शर्मा

 

बिहाव गीत-सरला शर्मा


 हमर संस्कृति मं मनसे के जीवन हर सोलह संस्कार से संस्कारित होथे जेमा बिहाव संस्कार के सबले जादा महत्व होथे । बिहाव हर दू झन नोनी बाबू के संगे संग दू ठन परिवार के बीच नता रिश्ता जोरथे । सुख सनात के बेरा हर बाजा- गाजा , गीत -गोबिंद बिन सुन्ना लागथे तेइ पाय के नोनी लइका मन गीत गाथें । 

बिहाव के गीत अलग अलग रीत रिवाज के अलग अलग होथे । चुलमाटी , मंगरोहन , दौंतेला , हरदियाही के बेरा सुग्घर गीत गाये जाथे फेर बिहाव के दिन के गीत मन के सुरता करे ले अभियो आंखी बरसे लगथे, मोर इशारा नोनी लइका के बिहाव के दिन …। एक ठन जरूरी बात सुरता राखे बर परही के बिहाव गीत अउ भड़ौनी मं फरक होथे …भड़ौनी मं हांसी ठठ्ठा मिंझरे रहिथे त कभू कभू लोक मर्यादा के सुरता बिसर जाथे । 

    समधी सजन घर दुआर मं ठाढ़े हें त उनमन के गोड़ धो के तो घर मं पधराये जाही न ? त गावत हें फूफू , दीदी , काकी , मामी मन …

" समधी सजन सबो आइन दुआरे , पानी परात मं गोड़ ल बोरिन ।

  पटुका मं गोड़ ल पोंछिन सियनहा , माथ मं चंदन दे  पधराईन हो ….। " 

       बेटी के बबा , कका , ममा , भाई मन माथ नवा के समधी सजन के आदर , सनमान करथें । जेवनार बर तो आनी बानी के रोटी पीठा बने च रहिथे फेर समधी मन ल तो पनवार परोसे जाथे ओहू एके बेर माने कोनो जिनिस दूसरइया बेर परोसे नइ जावय ..। इही बेरा सुनथें समधी मन गारी …जेकर बिना पनवार उघारत तो बनय नहीं …सुनव गारी गीत …। 

" का गारी देबो हमन समधी सजन ल , हमर नता परे हे बड़े भारी हो .।

रैया रौरी के रार बड़े ….

उनकर चरण कमल बलिहारी हो , हमन का गारी देबो समधी सजन ल …

का गारी देबो उनकर बहिनी हे परम पियारी , जेहर पांच पुरुष एक नारी । 

हो रैया रौरी के रार बड़े ….। " 

     चरण कमल के वंदना ओहू एकर बर के समधी तो रौरी ( राजा ) आयं हमन तो रैया (  प्रजा ) अन तभो सुरता करत हन द्रौपदी के काबर ओहू तो समधी मन के बहिनी च आय । सुंदर मसखरी ..जेवन के स्वाद चिटिक गुरतुर चिटिक नुनछुर हो जाथे । 

     दाइज के बेरा होथे ..जथा शक्ति बेटी के बाप महतारी टिकावन टिकथें …कान भर सुनथें मनसे मन ….

" दाई तोर देवय धियरी अचहर पचहर , ददा  देवय सहनभंडार हो …

 भाई तोर देवय धियरी लिलि हंसा घोड़वा , भउजी देवय सिंगरौल हो …। " 

      धन्य छत्तीसगढ़ जिहां बाप अपन बेटी ल सहन भंडार दे के बिदा करथे …तभे तो बेटी दूनों कुल के मरजाद निभाये सकथे । 

दाइज मं पलंग घलाय तो देहे जाथे , भाई खार ले लकड़ी काट के लानथे , बाप बढ़ई बलाथे त महतारी बढ़ई ल कहिथे …… 

" आंछे आंछे छोलना तुम छोलव रे बढ़इया 

के बीचे बीच पुतरी उकेसउ हो लाल .. 

 रिगबिग पुतरी सिख़ौना देही धियरी ल 

अचल एंहवात सम्हारै हो लाल …। " 

     महतारी के मन तो आय डेरावत हे ससुरार मं सबके सुन सहि के रहे के पाठ कोन सीखोहि , कोन अचल एंहवात के महत्ता बताही तेकर बर सिंहासन बत्तीसी के पुतरी के कल्पना आय ….। 

    सेंदुर दान होगिस , भांवर पर गिस अब बिदा के बेरा …बेटी के बिदाई ..सहज नइ होवय जी !मनसे च नहीं कवि कहे हे न …

" बेटी जावत हे ससुरार , फफक फफक के रोवत हे  घर दुआर " । 

त आंसू पोंछत , रोवत रोवत गावत हें सबो झन ……

" ददा तोर रोवय धियरी पटुका भिंजोई के 

  दाई रोवत हे अहोधार ….

 भाई तोर रोवय अलथ कलथ के त

  भउजी के नयन कठोर …। " 

         बिदाई के दुख अपन जघा , दुलौरिन बेटी ल धीरज धरावत , लेवा लाने के बात कहना भी तो जरुरी हे …। 

" दाई कहय आबे आठे पन्द्रही 

 ददा कहय छै मास हो …

भाई कहय बरिस पूरे आही 

भउजी कहय तीजे तिहार हो ….। " 

     हमर छत्तीसगढ़ के बेटी के बिहाव अउ बिदाई के गीत सुन के  पथरा के आंखी हर भी अहोधार बरसे लगही …तेमा तइहा दिन के कन्या दान जब बाप भाई मन समधी के घर पानी तो दुरिहा के बात चोंगी , पान के बीरा घलाय नइ झोंकत रहिन ।

तभे तो शील जी लिखे हें ……

" भइया आइस कुलकत राधेवं खीर , 

  हाय बिधाता कइसे धरिहौं धीर । 

चोंगी छुइस न झोंकिस बीरा पान , 

हाय रे पोथी धन रे कन्यादान । " 

      

*सरला शर्मा*

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