Wednesday 10 August 2022

छत्तीसगढ़ के गाँव म तरिया के महत्व- चोवाराम वर्मा बादल


 

छत्तीसगढ़ के गाँव म तरिया के महत्व- चोवाराम वर्मा बादल

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बिना तरिया के कोनो गाँव के कल्पना नइ करे जा सकय।तरिया ह तो हमर ग्रामीण जन जीवन के बहुतेच जरूरी अंग आय।एकर बिना हमर जिनगी ह नइ चल सकय।

   जल ला जीवन कहे गे हे। चाँटी-चिरगुन, जानवर,पेड़-पौधा ले लेके मनखे तक कोनो भी जीव पानी बिना जिंदा नइ रहि सकय।बहुत कस मान्यता के संग ,विज्ञान के तको कहना हे के मनखे के काया हा प्रकृति के पाँच तत्व पृथ्वी,जल, अग्नि,आकाश अउ वायु ले मिलके बने हे जेमा जल के अधिकता हे।

        जीव के उत्पत्ति जल ले  सागर तीर म अउ विकास सभ्यता के महतारी नदिया मन के तीर म माने जाथे। संसार के जतका पुराना ले पुराना कोनो भी सभ्यता हे --चाहे वो सिंधु घाटी सभ्यता हो ,चाहे सुमेरु सभ्यता हो या दजला-फरात(मोसोपोटामिया) सभ्यता हो ,पीये बर या आन काम म बउरे बर पानी के सहजता ले मिले के सेती नदिया

के तीर मन म पनपे हें।

   अइसे लागथे के मनखे मन ह जब खेती किसानी करके अन्न उपजाये ल धरिन होहीं, संगे-संग  जनसंख्या बाढ़िस होही त नदिया तीर के अलावा एती-वोती फइलिन होंही। जंगल ल चतवार के खेत बनाइन होहीं ,घर-कुरिया बनाइन होंही,गाँव बसाइन होंही---बरसा के पानी ल सकेल के रखे बर बड़े-बड़े गड्ढा कोड़िन होहीं।इही मन तरिया ,कुआँ-बावड़ी आयँ।

        हमर छत्तीसगढ़ म कोनो गाँव या शहर अइसे नइये जिंहा तरिया नइ होही। कई जगा तो छै आगर छै कोरी तरिया के उल्लेख मिलथे जइसे रतनपुर,मल्हार ,खरौद, नवागढ़,अड़भार ,धमधा आदि म । ओइसने सरगुजा अंचल म सात आगर सात कोरी तरिया के जिकर होथे। छत्तीसगढ़ म बड़े-बड़े बहुत कस गाँव हे जिंहा दसों तरिया आजो मिल जथे। हमर छत्तीसगढ़ म कतकोन नामी ,बहुत पुराना तरिया तकों हें जइसे रतनपुर के घी कुड़िया तलाब जेकर बारे म मान्यता हे के वोला अपन अश्वमेध यज्ञ के समे राजा मोरध्वज ह कोड़वाके घीव ले भरे रहिस।ओइसने गोपिया तलाब अकलतरा, बालसमुंद तरिया पलारी, सफुरा माता तलाब गिरौदपुरी, बुढ़ा तलाब रायपुर, कंकाली तलाब रायपुर, तेलीबांधा तलाब रायपुर(श्री शोभाराम साव जी के कोड़वाये), किरारी (जाँजगीर )के हीराबाँध तलाब आदि बहुत प्रसिद्ध हें।अइसनेच कतको ठन पहिली के जमीदार -गौंटिया मन के प्राइवेट तरिया घलो हें।

   छत्तीसगढ़ के गाँव म तरिया के अबड़ेच महत्व हे।तरिया के पार अउ घाट घठौंदा म हमर समाजिक ताना-बाना गुँथाये रहिथे। तरिया कोड़वाना अब्बड़ पुन के काम माने जाथे।

 तरिया के समाजिक अउ साँस्कृतिक महत्व--

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 कई ठन तरिया पनपिया (पेयजल बर) या पनखत्ती के काम आथे। अइसन तरिया के पानी कुँआ कस निर्मल होथे।गाँव भरके मनखे मन एला मिलजुल के साफ-सुथरा अउ पवित्र रखथें। ये हा एक प्रकार के झिरिया या बावली के रुप आय।सुदूर जंगली या पहाड़ी क्षेत्र म अइसन तरिया आजो हाबयँ।अइसन तरिया के पानी ले भोजन तको पकाये जाथे। फेर आज के समे ह बोरिंग-नलकूप के जमाना आय तेकर सेती अउ प्राकृतिक जल स्रोत मन के सुखाये के कारण अइसन तरिया मन नँदावत जावत हें। अइसन तरिया ह शौच बर उपयोग नइ करे जाय।  

  गाँव म अधिकतर तरिया अइसे होथें जे मन सार्वजनिक रूप ले नहाये धोये अउ निस्तारी के काम आथे। बिना जाति धरम के भेदभाव के गाँव के जम्मों निवासी बाल-वृद्ध, महिला पुरुष एकर जल मा स्नान करथें। समाजिक समरसता के ये उज्जर उदाहरण आय।ककरो घर मरनी-हरनी होथे तब तरिया के नाहवन घाट ह काठी ले दशगात्र तक मृतक स्नान के काम आथे। तरिया पार म लगे पीपर पेंड ह छँइहा तो देबे करते , मृतक ल पानी देये बर हाँड़ी (माटी के बरतन ) ल टाँगे के काम आथे। पिंडदान अउ कपिला तर्पण तको एकरे तरी करे जाथे। तरिया पार म लोगन अपन पुरखा के सुरता म बर-पीपर,आमा , बेल जइसे पेड़ तको लगवाथें। कतको झन घाट-घटौंदा बनवाके जनसेवा के कारज करके पुण्य कमाथे।

 प्रायः जम्मों तरिया के पार म देवता धामी के मंदिर जरूर होथे खास करके शिव मंदिर तो होबे करथे जेमा लोगन स्नान करके जल चढ़ाथें। कतको जगा हनुमान जी, महमाया अउ शीतला माता,अंगार मोती दाई के मंदिर तको होथे जिंहा नवरात परब म जँवारा बोके जोत जलाये जाथे। हमर छत्तीसगढ़ म  कई ठन तरिया अइसे हें जिंकर पार म परब विशेष म मेला तको भराथे। होरी के दिन मोंहदा गाँव (धरसींवा) के तरिया पार के मेला जग प्रसिद्ध हे। 

    गणेश विसर्जन, जँवारा विसर्जन, गउरा-गउरी विसर्जन,ताजिया विसर्जन तको तरिया के पवित्र जल म करे जाथे। हरेली तिहार के दिन  इही तरिया के पानी म बाहन- बक्खर ल नँहवा- धोके पूजा पाठ करे जाथे। खमरछट पूजा म दाई -दीदी मन के कोड़े सगरी ह एक प्रकार ले तरिया के प्रतीक आय। बारों महिना गाँव के पशुधन के(बरदी के) पानी पियाये बर ,बुड़ोये बर इही तरिया काम आथे।

   कातिक महिना म बड़े फजर स्नान अउ ग्रहण स्नान इही तरिया म होथे। 

कतकोन पूजा पाठ के आयोजन तको तरिया पार म होथे। बस्तर अंचल म बिहाव के बहुत कस रीति रिवाज तरिया म निभाये जाथे। कांकेर क्षेत्र म अइसन आदिवासी समुदाय हें जिंहा बिहाव के दिन दुलहिन-दुल्हा ह तरिया के सात भाँवर घुमथें अउ सगा-सोदर मन हर फेरा के बाद हरदी चढ़ाथें। फेरा होय के पाछू वर ह कन्या ल पिठइया चढ़ाके तरिया म लेगथे अउ बोहे-बोहे डूबकी लगाके ,बोहे-बोहे वापिस आथे।

     हमर छत्तीसगढ़ म तरिया मन के तइहा जुग ले बिहाव करे के परंपरा तको हे। नवा तरिया कोड़े के पाछू वोकर पूजा -पाठ करके ,बीचो बीच अनेक जगा लकड़ी (सरई के) के खंबा गड़िया के वोकर बिहाव के रस्म ल पूरा करे जाथे । किरारी(जांजगीर) के हीराबाँध तलाब म गड़े मिले लकड़ी के खंबा ल लगभग दू हजार साल पुराना बताये जाथे। कहूँ-कहूँ लोहा के खंबा तको हे जइसे सक्ती के महमाया तरिया म लोहा के हे।ओइसने धमधा म ताम्रपत्र म मढ़े खंबा तको हे।आजकल सिमेंट के खंबा चलन म आगे हे। एला आजकल के भाषा म एक प्रकार ले लोकार्पण कहि सकथन। तरिया के बिहाव होये के पाछू वोकर सार्वजनिक उपयोग करे जाथे। कतको तरिया कुँवारा तको होथें जेकर जल के पूजा-पाठ म अबड़े मान्यता होथे।

   हमर लोकगीत अउ लोकगाथा मन म तरिया के सुग्घर बखान मिलथे। जेंवारा गीत म आजो सुने ल मिलथे--

कोन कोड़ावय ताल सगुरिया, कोन बँधावै पारे,

कोन लगावै लख अमरइया, कोन हवै रखवारे।

राम कोड़ावय लख अमरइया, लखन बँधावै पारे।

सिया लगावै लख अमरइया, हनुमत हे रखवारे।

   ओइसने भोजली गीत म कन्या मन तरिया म ठंडा कर बर भोजली ल लेगे बखत गाथें--

देवी गंगा देवी गंगा, लहर तुरंगा।

हमरो भोजली दाई के भिंजे आठो अंगा।

जय हो देवी गंगा।

 अहिमन रानी अउ रेवारानी के लोककथा म उँकर तरिया स्नान के वर्णन होथे। 

 ओंड़िया गीत म तरिया खनइया ओंड़िया-ओंड़निन मन बर गाये जाथे-

नौ लाख ओंड़निन, नौ लाख ओंड़िया 

माटी फेंके बर जाय

अहा माटी फेंके बर जाय।

 ओइसने राजा बालंद के कथा हे जेमा बताये जाथे के वोहा अपन फौज-फटाका संग जिंहा रुकय तिहाँ जोड़ा तरिया खनवावय। लोकोक्ति हे-

सात सौ फौज जोड़ा तलवा, अइसन रहे बालंद रजवा।

    गाड़ी बइला म नून तेल अउ गृहस्थी के समान भरके गाँव-गाँव म घूम के व्यापार करइया नायक बंजारा मन खने छैमासी तरिया के किस्सा तको सुनाये जाथे।

     कुल मिलाके तरिया  ह एक प्रकार ले गाँववासी मन के आध्यात्मिक अउ सांस्कृतिक हलचल के केंद्र बिंदु होथे। 


आर्थिक महत्व--

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      समाजिक अउ सांस्कृतिक महत्व के संग तरिया के जब्बर आर्थिक महत्व उल्लेखनीय हे। अवर्षा के स्थिति म, ए दू पानी बर जब फसल तरसे ल धर लेथे तब तरिया ह अपासी के काम आथे अउ किसान ह दुकाल ले उबर जथे। 

     तरिया चाहे सार्वजनिक होवय चाहे निजी होवय --मछली पालन के उदिम करे के काम आथे।  मछुवारा समिति या महिला स्वसहायता समूह के मन ये तरिया मन ल लिज म लेके मछली पालन करके भरपूर आय कमाथें अउ गरीबी ले उबर के अपन जिनगी ल सँवारथें।कतको झन ल एकर ले रोजगार तको मिलथे।

  तरिया के तीरे-तीर उपजे पसहर चाँउर ल सकेल-बेंच के कतकोन झन हजारों रुपिया कमाथें।कतेक झन सुनसुनिया भाजी,तिनपनिया भाजी , उरई जर,ढेंस ,करमता भाजी, पोखरा ,सिंघाड़ा के उत्पादन तकों करथें।

जब कोनो तरिया ह अवर्षा म सुखा जथे या फेर तरिया के पानी खजुवाये ल धर लेथे तेकर सेती वोला साफ करे बर गाँव वाले मन तरिया के नाखा(गाँसा) ल फोर के या फेर सबमर्सिबल पंप म पानी ल फेंक के अँटवा देथें तब गाँव के मन  जुरमिल के मतावर करके मछरी पकड़थे तहाँ ले जब लद्दी सुखा जथे तब खतुहा लद्दी ल किसान मन अपन खेत म पाल के वोकर उर्वरा शक्ति ल बढ़ाये के संगे संग सामुदायिक जिम्मेदारी के सुग्घर पालन करथें। ये समे मिले ढुलेना काँदा,बुचरवा काँदा अउ कुकरी काँदा के सुवाद ल का कहिबे?

     हमर तरिया मन के महत्व के जतका बखान करे जाय सब कम पर जही। गाँव के तरिया मन भूजल स्तर ल बनाये रखे के अउ बढ़ाये म अपन अमूल्य योगदान देथें। कतको जगा तरिया खाल्हे म धान लूके, ओल्हा गहूँ अउ ओन्हारी तको होथे।

       फेर आजकल के मनखे मन के चाल-ढाल ल देख के बड़ दुख के साथ कहना परथे के हमरे गलती ले तरिया मन के दुर्गति होवत जावत हे। तरिया पार बेजा कब्जा करके घर बनत हें। पैठू जेमा तरिया के उपराहा उलट पानी ह भरय तेन हा बेजा बियारा-बियारी म घेरा गे, गाँव गली के बोहाये कचरा म तरिया के गहिर गाँसा पटा के उथली होगे तेकर सेती तरिया म चार-छै महिना के पुरती पानी नइ भरै। पचरी म काँछे-काँछ बिछाये मिलथे। साफ-सफाई म ककरो धियान नइये। मेड़-पार खियागे। पेड़ लगाना ते दूरिहा के बात ये ,काट के लेगे बर कतकों तइयार मिलथें। मनखे के सोंच अइसे होगे हे के हम ला का करना हे?पंचायत जाना अउ सरकार जानय। अतका नइ सोंचयँ के सरकारी मनरेगा म तलाब गहरीकरण के बूता म भरपूर रोजी लेके उपरे -उपर ल राँपा म खोड़र देथें?का अइसने म तरिया ह गहिरा होही?

     आशा म दुनिया टिके हे। हमू ल लागथे के अब चेत जरूर चढ़ही अउ सब कोई मिलजुल के सरकार के बिना मुँह ताके अपन जीवन रेखा ,पुरखौती तरिया मन के जतन जरूर करबो तभ्भे हमर तरिया मन के दिन बहुरही।


  चोवा राम 'बादल'

 हथबंद, छत्तीसगढ़

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