Friday 26 August 2022

छत्तीसगढ़ के लोकगीत-सरला शर्मा


 छत्तीसगढ़ के लोकगीत-सरला शर्मा

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          लोक माने लोग , आदमी , मनसे त मनसे के गाये गीत ल लोकगीत कहिथें । लोकगीत जन जन के मन के सुख- दुख , हांसी -रोआसी , धरम -करम के भाव के सहज , सरल , साधारण अभिव्यक्ति आय ।  लोकगीत हर वाचिक परम्परा के अलिखित साहित्य आय फेर एकर लिखइया के नांव कोनो नइ जानयं , जाने के उपाय घलाय नइये काबर के लोकगीत के लिखित इतिहास नइये । मुंहखरा एक पीढ़ी से दूसर पीढ़ी तक चलत आवत रहिथे । 

      तभो आजकल भाषा अउ लिपि के विकास के सेतिर लोगन लोकगीत लिखे लगे हें फेर पारम्परिक लोकगीत के लिखित रुप मिले लगे के बावजूद लिखइया के नांव जाने के कोनो उपाय नइये । 

  लोकगीत मं गायन , वादन अउ नृत्य ( नाच   ) तीनों रुप समाए रहिथे एकर सेतिर हमन तीन अउ रुप देखथन पहिली लोकगीत दूसर लोक वाद्य तीसर लोकनृत्य त चलव छत्तीसगढ़ के लोकगीत के ये तीनों रूप ल समझिन ।

   सबले पहिली लोकगीत सुरता करिन ददरिया के जेहर लोक मानस के सहज अभिव्यक्ति आय । खेती किसानी  करइया मनसे खेत खार मं अपन जवंरिहा , संगवारी ल मन के बात ल गा के बताथे । जादा करके ददरिया प्रेम के संयोग अउ वियोग के भाव दरसाथे सियान मन घर परिवार , गली मोहल्ला मं ददरिया गाये नइ देवत रहिन । संवाद शैली के उत्तम काव्यत्मक रुप आय तेकरे बर साल्हो ददरिया कहिथें । कोनों कोनों बुधियार मन साल्हो ल उत्तर अउ ददरिया ल प्रश्न कहिथें ...

  " बटकी मं बासी , बारा मं धरे नून 

    मैं गावत हंव ददरिया , तैं ठाढ़े ठाढ़े सुन । " 

 लोकगीत के  रुप बिहाव गीत घलाय हर आय जेमा बेटी के बिदाई गीत ल सुन के मनसे के मन मं उमड़त करुणा , वात्सल्य छलके लगथे त समधी सजन संग हांसी मसखरी घलाय देखे बर मिलथे । 

  " का गारी देबो हमन समधी सजन ल , हमर नाता परे हे बड़े भारी हो 

     उनकर चरण कमल बलिहारी ....। 

     जिनकर बहिनी हे परम पियारी हो , ओ तो पांच पुरुष एक नारी ....। " 

    एतरह के लोकगीत मन गीत प्रधान होथें जेमा तुक , लय , स्वर के ध्यान रखे जाथे । 

दूसर होइस वादन जेला लोक वाद्य कहिथन ...बहुत अकन वाद्य यंत्र होथे फेर सबले प्रमुख हे बांस गीत ...काबर के बांस गीत मं बजइया एक झन रहिथे ,  दोहा पारथे एक झन , नाच मं कई झन शामिल रहिथें । लोकगीत के एक रूप एहू हर आय । 

तीसर रुप नृत्य या नाच होथे एकर रुप देखे बर  मिलथे सुआनाच मं जेहर नोनी लइका मन के पोगरी आय । सुआ गीत समलाती होथे , नाच मं आधा झन जब निहुर के नाचत रहिथें त आधा झन खड़े नाच मं शामिल रहिथें , सबो झन गोल बांध के सुआ गीत गावत नाचथे । सुआ गीत मं कोनो तरह के वाद्य यंत्र के प्रयोग नइ करे जावय । 

  " तरि नरी नहना मोर तरी नरी नहना रे सुआ ना 

    के तिरिया जनम झनि देय ...मोर सुआ ना रे ! " 

        ए तीनों हर लोकगीत के ही सरुप आय । थोरकुन ध्यान देइ के लोकगीत के विशेषता काय काय होथे ...

1. लोकगीत मुंहखरा होथे एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी सुन सीख के आघू बढ़त जाथे । 

2. जादा करके पांच स्वर के मिले जुले रूप होथे जेला सहजता से गाये जा सकथे । 

3. बहुत अकन लोकगीत मन के धुन एके  असन रहिथे । 

4. लोकगीत मन अति विलम्बित स्वर मं नइ गाये जा सकय । 

5. कोनो कोनो लोकगीत मं सातों सुर के संग कोमल , गांधार अउ कोमल निषाद के प्रयोग घलाय करे जाथे । 

6. लोकगीत धार्मिक , पारिवारिक , प्रकृति सम्बन्धी अउ परम्परागत घलाय होथे । 

 7 . दसों रस के अभिव्यक्ति लोकगीत मं होथे । 

         छत्तीसगढ़ के लोकगीत मं तइहा दिन ले वात्सल्य रस पाए जाथे सुरता करव सोहर गीत के ...लोरी के ...। 

 " चंदन के पलना रेशम के डोरी , 

   झूला झुलावय नंद के रानी ।

   धीरे बाने आ जा रे निंदिया , 

  हाथ बाजय झन गोड़ , 

  पौढ़े हे नंद के लाल  

 सुख निंदिया सोवै गोपाल । " 

       छत्तीसगढ़ के लोकगीत मन मं बिराजत हे छत्तीसगढ़ी संस्कृति , परम्परा , भाषा अउ संस्कार ..। लोकगीत ल संस्कृति संवाहक कहे जाथे । भाषा के , छापा खाना के विकास के संगे संग वाचिक परम्परा के गली ले निकल के लोकगीत अब शिष्ट साहित्य के अंगना मं पग धर लेहे हे एहर बड़ खुशी के बात आय फेर परम्परागत लोकगीत के शब्द , धुन , लय ल बंचाये रखना भी जरुरी हे । इही लोकगीत मन तो हमर धरोहर आयं । 

    सरला शर्मा

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