Saturday 13 August 2022

ददरिया अउ साल्हो छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य के विलक्षण पद्य रचना - ददरिया

 














 

ददरिया अउ साल्हो 


छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य के विलक्षण पद्य रचना -  ददरिया 


 किसान अउ बनिहार मन के गीत हरे ददरिया 


   हमर छत्तीसगढ़ म लोक साहित्य ह अब्बड़ पोठ हे.  इहां किसम -किसम के लोकगीत, लोकगाथा अउ लोककथा मन के खजाना भरे हे. पंडवानी, भरथरी ,बांसगीत जइसन गीत मन हर इहां के गजब सुग्घर लोकगाथा हरे. वइसने सुआ, कर्मा, ददरिया, डंडा अउ पंथी मन हर इहां के प्रसिद्ध लोकगीत हरे. 

     आवव आज छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर ग्रुप म दे गे विषय "ददरिया अउ साल्हो" उपर चर्चा करथन .ददरिया किसान अउ बनिहार मन के द्वारा  खेत- खार अउ जंगल -पहाड़ म काम के बखत गानेवाला गीत हरे. येमा चेलिक -मोटियारी मन के प्रेम के सुग्घर अभिव्यक्ति रहिथे. येमा मिलन अउ बिछुड़न के भाव ह उभर के सामने आथे. संयोग अउ वियोग श्रृंगार के सुग्घर दर्शन होथे. येमा नायक अउ नायिका के बीच संवाद अउ सवाल -जवाब होथे. जब चेलिक- मोटियारी मन म प्रेम के रंग चढ़ जाथे तब मगन होके ददरिया गाथे अउ जब दूनो म कोनो ह दगा दे देथे त अपन दिल के दरद ल ददरिया के रुप म गाके दूसर संग अपन पीरा ल बांटथे. संगे- संग दगाबाज प्रेमी -प्रेमिका ल नंगत छरथे. जब कोनो के प्रेमी -प्रेमिका ह आने गांव या परदेश चल देथे त अइसन स्थिति म येमन चकोर पक्षी कस प्रेमरुपी स्वाति नक्षत्र के पानी बर तरसथे तभो अपन हिरदे के पीरा ल ददरिया के रुप म गाथे. जब येमन अब्बड़ समय बर एक- दूसरा ले अलगा जाथे त अपन अंतस के दर्द ल ददरिया रुप म व्यक्त करथे. 



 ये गीत म कोनो बाजा अउ मंच के जरुरत नइ पड़य . प्रकृतिरुपी सुग्घर अंगना ह येकर मंच  अउ काम म मगन नर- नारी मन येकर गवइया -सुनइया होथे.  खेत- खार अउ जंगल- पहाड़ म काम के समय बाजा -गाजा के कल्पना घलो नइ करे जा सकय. 


पर समय के संग येकर प्रस्तुति अब मंच म कतको प्रकार के वाद्य यंत्र के संग करे जावत हे. लड़का -लड़की मन ल नचावत हे. येला समय के संग बदलाल कहन कि पारंपारिता के संग खिलवाड़. खेत खार म नंगत बिधुन होके जउन गाये म मजा आवत होही वइसने मंच के प्रस्तुति म आवत होही का? 



कुछ ददरिया मन म जिनगी के क्षणभंगुरता के भाव घलो झलकथे. 

    ददरिया के पद मन के रुप अउ  रचना हर दोहा छंद के जइसन होथे पर मात्रा के हिसाब ले येहा दोहा छंद ले अलग होथे. ददरिया हर लोकगीत अउ विषम मात्रिक छंद हरे.

   बुधियार साहित्यकार मन के मानना हे कि ददरिया आदिवासी गोंडी बोली म गाये जाय. पर अब येहा छत्तीसगढ़ के सबो कोति गाये जाथे.

लोक साहित्य विद्वान मन के कहना हे कि  दादर माने ऊंचा जगह,जंगल, पहाड़ म ये गीत ल गाये जाय तेकर सेति येकर नाम ददरिया पड़िस.कुछ विद्वान मन के विचार हे कि दादरा  जइसन समान होय के सेति

गीत/ताल ले ददरिया पड़िस .पर यहू

सच हे कि पहिली ददरिया म साज -बाज के प्रयोग  नइ होत रिहिस हे.


 लोक साहित्य के जानकार मन ददरिया के चार प्रकार बताय हे -


1. ठाड़ ददरिया


2. सामान्य ददरिया 


3.  साल्हो ददरिया 


4. गड़हा ददरिया


           साल्हो ददरिया


   बैला  गाड़ी    हकइया द्वारा गाये जाने वाला ददरिया गड़हा ददरिया कहे जाथे. येकरे मुताबिक साल जंगल म गाये जाने वाला ददरिया ल साल्हो कहे गिस होइस. त का नागर चलात नगरिहा द्वारा गाये जाने वाला ददरिया ल नगरिहा ददरिया कहे जाथे का? ये तरह ले ददरिया के प्रकार उचित  नइ लगत हे!  जउन भी हो ददरिया ल हमर छत्तीसगढ़ी लोक गीत मन के राजा कहे जाथे. ठाड़ ददरिया अउ सामान्य ददरिया ल खेत म काम    करइया बनिहार अउ किसान मन ले सुने जा सकथे. ददरिया के स्वर गजब मीठा होथे. ददरिया ल सुन के तन - मन मयूर  

कस नाचे ल लागथे.

    जब रेडियो म लोक गायक शेख हुसैन, केदार यादव, लक्ष्मण मस्तरिहा अउ आने कलाकार मन द्वारा गाये ददरिया ल सुनथन त अब्बड़ मजा आथे.

 ददरिया के कुछ  उदाहरण ...


     1. बटकी म बासी ,अउ चुटकी म नुन,

    मंय गावत हंव ददरिया, तंय कान देके सुन .


2.  नवा सड़किया, रेंगे ल मैना .

 दू दिन के   आवइया,लगाये महीना.


3.  माटी की मटकी , फोड़े म फुटही.


तोरे -मोरे पिरीत हर, टोरे म  टूटही.


4. बागी बगीचा, दिखे ला हरियर.

 दुरुगवाला   नइ दिखे,बदे हंव नरियर.


5. करिया रे हड़िया, उज्जर हवय भात.

निकलत  नइ बने, अंजोरी हवय रात.



ददरिया ह वइसे तो प्रेम के गीत हरे. पर

येमा अलौकिक प्रेम के घलो दर्शन हो जाथे.  उदाहरण...


1. चारे रे खूंटा,चारे हे पाटी.


कंचन तोरे काया ,हो जाही माटी.


2. धाने  रे लुए, उड़ाथे कंसी.

 भगवान के मंदिर म, बाजाथे बंसी.


 ददरिया ह पद्य रचना आय त येमा 

छंद तो होबेच करही.


छंद के हिसाब ले ददरिया हर एक विषम मात्रिक छंद हरे. मतलब येकर चारों चरण म अलग-अलग संख्या म मात्रा होथे. सरलगहा  हिसाब लगाय ले येकर विषम चरण में 8  अउ 13 अउ सम चरण मा 9 अउ 10 मात्रा होथे. कुछ अपवाद हो सकथे. 

 ददरिया के पद /अंतरा म वोकर सम चरण म तुकांत होथे.


संदर्भ - 

1. साकेत स्मारिका 2019 म प्रकाशित - छत्तीसगढ़ी ददरिया म लोक चेतना, लेखक - श्री कुबेर सिंह साहू जी 

2.  छत्तीसगढ़ी लोक गीत -विविध आयाम, डा. पीसी लाल यादव जी 



    ओमप्रकाश साहू अंकुर

    सुरगी, राजनांदगांव

  मो. 7974666840


 






       


               

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