भोजली लोकगीत"-प्रकृति पूजा के प्रतीक(गयाप्रसाद साहू रतनपुरिहा
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*छत्तीसगढ़ के लोकगीत म "भोजली लोकगीत" ह खूब लोकप्रिय अउ कर्णप्रिय लगथे | ए लोकगीत म कोई भी वाद्ययंत्र के जरूरत नइ होय, जैसे सब प्रकार के वाद्ययंत्र ले बांसुरी ह सब ले सस्ती-सुलभ होते हुए भी सभी वाद्य यंत्र ले जादा मिठास अउ मनमोहनी होथे | तईसनेच "भोजली लोकगीत" ह बिना वाद्य यंत्र के होते हुए भी खूब कर्णप्रिय अउ मनमोहक लगथे | तेकर कारण हवय- भोजली दाई के पींयर-पींयर स्वरूप ल देखते सांठ तन-मन ला शांति मिलथे, नयनाभिराम लगथे, तईसनेच भोजली दाई के सेवा बर गाने वाला "भोजली गीत" जब पारा-मुहल्ला के जम्मो कुंवारी बेटी -बहिनी के मुखारवृंद ले एक स्वर म सुनाई देथे,तब सुनैया लईका,सियान अउ जम्मो जवान के मन ल मोहित कर देथे | कुंवर पींयर-पींयर भोजली दाई के स्वरूप ह लोकलुभावन होथे,तईसनेच कुंवारी बेटी बहिनी के मधुरस घोरे सहीं "भोजली लोकगीत" ह जम्मो मनखे के तन-मन म आस्था, श्रद्धा अउ भक्ति भाव से ओतप्रोत कर देथे* |
*सावन अंजोरी पाख साते के दिन जम्मो कुंवारी बेटी मन एक जघा सकला के मुहल्ला के कोनो मुखिया घर सामूहिक रूप से छोटे-छोटे टुकनी म कन्हार के माटी, छेना के खरसी अउ थोकिन राख ल मिला के सात प्रकार के अनाज -गेहूं,चना,तिवरा, ज्वार,बाजरा,जौ, तिलहन आदि ल अच्छा घना बो देथें | दिन भर खेत म धान के रोपा लगाई,निंदाई करके जब भैंसा मुंधियार अपन-अपन घर पहुंचथें,तिहां हाथ-गोड़ धो के जऊन मुखिया घर भोजली बोए रहिथें,तिहां जा के "भोजली दाई" ल जल सींचथे फेर दीया-अगरबत्ती जलाथें,गुड़-घी के हूम देथें अउ खूब भक्ति भाव से भोजली के सेवा गीत गाथें,तेला भोजली गीत कहिथें* |
*भोजली गीत के कुछ लाईन प्रस्तुत करत हौं:-*
*पानी बिना मछरी, पवन बिना धाने -२*
*सेवा बिना भोजली के तरसैं पराने*
*आ हो ! देवी गंगा........*
*देवी गंगा -देवी गंगा लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा*
*हमरो भोजली दाई के भींजे आठो अंगा*
*आ हो $$$ देवी गंगा ........*
*माड़ी भर जोंधरी,पोरीस कुसियारे-पोरीस कुसियारे*
*, जल्दी -जल्दी बाढ़ौ भोजली, जाहौ ससुरारे*
*आ हो $$$देवी गंगा ........*
*लीपी पारेन -पोती पारेन, छोड़ी पारेन संगसा ओ छोड़ी पारेन संगसा*
*हमरो भोजली दाई ल चाबथे मंगसा !*
*आ हो $$$ देवी गंगा ........*
*आई गई पूरा,बोहाई गई कचरा-बोहाई गई कचरा*
*हमरो भोजली दाई के सोने-सोन के अंचरा*
*आ हो $$$ देवी गंगा .......*
*भोजली ल बोए के बाद खुला आंगन या सूर्य के प्रकाश म नइ राखैं,बल्कि कोठी-किरगा के तरी मुंधियार जघा म राखथें,जिहां सूरूज देवता के रोशनी झन मिले,तेकरे सेती भोजली ह एकदम पींयर-पींयर सोनहा कुंवर -कुंवर दिखथे | तऊने ल लोकगीत के माधुर्य भाव म "हमरो भोजली दाई के सोने-सोन के अंचरा कहिथैं*
*सावन महीना म गांव-गांव म मच्छर खूब बाढ़ जाथे, तऊने ल भगाए बर धूप अगरबत्ती जलाथें अउ लोकगीत म गाथें-हमरो भोजली दाई ल चाबथे मंगसा*
*जैसे चैत अउ कुवांर म जंवारा बो के नौ दिन-नौ रात तक सेवा करथें, तईहनेच भोजली दाई के नौ दिन-रात तक सेवा करके रक्षाबंधन के दिन राखी बांधथें | चऊमास महीना म भरपूर पानी बरसे जेमा सब किसान के खेत म भरपूर फसल होवय, अईसे मनोकामना करके रक्षाबंधन के बिहान दिन संझा बेरा गांव भर के भोजली ल कुंवारी कईना मन सुग्घर नवा लुगरी-पोलका पहिर के नदियां,नरवा या तालाब के एक घाट म बिसर्जन करे बर समूह गीत गावत जाथें :-*
*तिरी खेलेन-पासा खेलेन,खेली पारेन डंडा ओ खेली पारेन डंडा*
*अतेक सुग्घर भोजली ल कईसे करबोन ठंडा ?*
* *आ हो $$$ देवी गंगा.........*
*नवा रे हंसिया के जरहा हे बेंठे ओ जरहा हे बेंठे*
*जीयत -जागत रहिबो भोजली, होई जाबो भेंटे !*
*आ हो $$$ देवी गंगा ..........*
*जब नौ दिन-रात तक सेवा कर के भोजली दाई ल उखाड़ के तालाब-नदिया म ठंडा करथें,तब भोजली दाई के प्रति अतेक जादा अपनापन अउ श्रद्धा भक्ति बाढ़ जाए रहिथे, के जम्मो बेटी -बहिनी मन खूब बोमपार के रो डारथे !*
*हमर पुरखा सियान मन प्रकृति के गोद म पैदा होवत रहिन, जघा-जघा पेड़ -पौधा, तरिया, नरवा, डोंगरी -पहार होवत रहिस | वोही पेड़ -पौधा के फल,फूल,चिरौंजी, लासा आदि द्वारा गुजर -बसर करत रहिन, तेकरे सेती "प्रकृति के पूजा, अन्नपूर्णा दाई के पूजा अउ श्रद्धा भक्ति भाव अपन लईकन के मन मंदिर म जागृत करे बर अन्न के बीरवां ल "भोजली दाई" जंवारा दाई" के उपाधि देहे हवंय*
*लेकिन आज दिनोदिन जंगल-झाड़ी कटते जावत हवय! तालाब,कुआं पाटते जावत हवंय! अनेक प्रकार के रासायनिक खाद ल जादा पैदावार के लालच म असीमित मात्रा में खेत म ढकेलते जावत हवंय,जेकर से भुईयां के उर्वरा शक्ति समाप्त होवत जाथे!*
*एही सब संदेश हमर लोकगीत अउ आस्था के बीरवां "भोजली दाई" के सेवा करे म निहित हवय*
*पारिवारिक -सामाजिक समरसता"*- *छत्तीसगढ़ म भोजली बिसर्जन करत बेरा कुछ भोजली के बीरवां ल अपन-अपन हितु-पिरीतू के कान म खोंच के "भोजली मितान" बदे के परंपरा हवय | एंकर द्वारा आज स्वार्थपरता, संकीर्ण मानसिकता अउ बिखरे हुए समाज ल एकता के सूत्र म बांधे रहिथे | स्वार्थपरता के कारण मित्रता के बहुंत अभाव बढ़ते जावत हवय, लेकिन जउन मनखे भोजली बिसर्जन के बेरा उपस्थित रहिथें,तऊन नोनी मन अपन पसंद के नोनी संग अउ बाबू मन अपन पसंद के बाबू संग "भोजली मितान" बदथें,तेन मित्रता ल जिंनगी भर "राम-सुग्रीव के मैत्री अउ कृष्ण-सुदामा के मैत्री जैसे निभाथें*
*निज दुख गिरि सम रज करि जाना*
*मित्रक दुख रज मेरू समाना*
*जे न मित्र दुख होहीं दुखारी*
*तिन्हहिं बिलोकत पातक भारी*
*मित्रता के एही मुख्य आधार अउ उद्देश्य होथे, लेकिन आज भागम भाग जिंदगी,भौतिक लालसा, बेरोजगारी, मंहगाई अतेक जादा बाढ़ते जावत हवय-के भाई-भाई के संबंध, बाप-बेटा के संबंध म दीवार खड़ा होवत जाथे ! अतेक बिखरे सामाजिक ताना-बाना म एक सच्चा मित्र के प्राप्ति बहुंत बड़े भाग्य से ही संभव हो सकथे, वो असंभव मित्रता के प्राप्ति "एही भोजली दाई" के अनुग्रह से ही संभव होथे*
*भोजली के दल जेमा सात प्रकार के अन्न के अंकुरन रहिथे, रोज धूप-दीप अगरबत्ती दीया जलाए से अउ सूर्य के प्रकाश ले छुपा के राखे ले "भोजली दाई" के दल ह शुगर,बी.पी. कोलेस्ट्रॉल अउ अनेक प्रकार के असाध्य बीमारी ले दूर करे बर अचूक औषधि के रूप म काम आथे*
*सावन महीना म मच्छर अउ कई प्रकार के कीटाणु ल मारे बर भोजली दाई के सेवा म रोज धूप, दीप अगरबत्ती जलाए ले अनेक प्रकार के कीटाणु समाप्त हो जाथे, हमर स्वास्थ्य बर लाभदायक होथे | भोजली गीत गाए ले अउ सुने ले मन-मस्तिष्क ल आनंद के प्राप्ति होथे | अईसे ढंग से "भोजली दाई के सेवा अउ लोकगीत ले हमर पारिवारिक,सामाजिक, धार्मिक, मनोवैज्ञानिक, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से खूब महत्वपूर्ण होथे*
*ए सब दृष्टिकोण से आज सख्त आवश्यकता हवय- अब गांव-गांव म नंदावत "भोजली दाई" के महत्व ल समझते हुए फिर से हर गांव-शहर म "भोजली बोए" बर श्रद्धा भक्ति अउ आस्था जगाना चाही*
दिनांक -३०.८.२०२२)
आपके अपनेच संगवारी
*गया प्रसाद साहू*
"रतनपुरिहा "
मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (,छ.ग.)
मो नं -९९२६९८४६०६
🙏☝️✍️❓✍️👏
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