छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक वैभव-सुआ गीत-शोभामोहन श्रीवास्तव
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छत्तीसगढ़ में लोकगीत के विराट अउ वैभवशाली परंपरा है जेमा सुआ गीत एक प्रसिद्ध लोकगीत विधा हे । ये हर छत्तीसगढ़ के आदिवासी गोंड़ जात के नारी मन के द्वारा विकसित प्रमुख नृत्य -गीत आय, जेन ला समूह मा नाचे अउ गाये जाथे। परम पबरित कार्तिक महिना भगवान राम के बनवास काट के अवध बहुरे अउ गौरी गौरा के बिहाव के मंगलबेरा मा देवारी तिहार के दस दिन पहिली ले गौरी गौरा जगावत तक ये गीत ला गाये के जुन्ना परंपरा हे। ‘गौरी गौरा’ परब हर छत्तीसगढ़ के आदिवासी गोंड़ मन के एक प्रमुख तिहार आय जेन ला छत्तीसगढ़ के सबो क्षेत्र में धूमधाम ले मनाये जाथे, सुआ गीत अउ गौरी गौरा गीत ला छत्तीसगढ़ के सबो नारी परानी मन आत्मसात करके सालपुट गाथें। सुआ गीत अउ गौरी गौरा के पूजा एक दूसर ले संबंधित हे। जेन हर असल मा गौरी (माता पार्वती) अउ गौरा ( शिवजी) के बिहाव के उत्सव आय। सुआ गीत गाके जेन अन धन सकलाथे तेकरे ले गौरी गौरा जगाय के तैयारी करे जाथे तेन हर सुआ गीत अउ गौरी गौरा के घनिष्टता के पोठ सत परमान आय। नारी प्रधान गीत होय के सेती येमा कालांतर मा नारी मन अपन मन के दुख सुख ला घलो सुआ गीत संग संघेरत गिन। तेकरे आधार लेवत छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति सुआ गीत ला मात्र नारी के व्यथा कथा के गीत के रूप मा परिभाषित करे के डउल के गिस, हमर मूल आराध्य ला भुला के येला मात्र नारी के दुख सुख के गीत के रूप मा निरूपित करना उचित नहीं हे, लोकसंस्कृति अउ लोकपरंपरा ला मूलरूप में ईश्वर के गुणगान हे स्तुति हे।सुवागीत परमात्मा अउ जीव के अंतरंगता के गीत आय ये गीत मा एक गवैया अउ बाकी राग झोंकैया होथे नारी परानी मन नरगर ले सँभर पकर के दल के दल बिहिनिया कार्तिक नहाथें अउ तरिया नदिया के पार मा बने भोलेनाथ के पूजा पाठ करके जलदेवती मा दीया ढ़िलथें अउ घर बूता रँधना पसना करके जइसे ही बेरा हर कलथथे तहाँ अपन अपन संगी गिंया संग माटी के चुकचुक ले रंगे सुआ ला टुकनी मा मड़ा के दीया बार के झोफ्फा के झोफ्फा निकलथें अपन संग ओमन नान नान दू दू ठन रेंदाय लकड़ी के गुटका ला धरे रहिथे जेला चटका/चुटका कहे जाथे। गोल घेरा बना के एक पग आगू बढ़ा के एक पग पाँव घुँच के एक पग डेरी हाथ अउ एक पग जेवनी हाथ डहर घुँच के थपोड़ी पीट पीट के अउ चुटका/चटका बजा बजा के गोला बना के एकभाँवर नाचथें। जेकर डेहरी मा चढ़थें तेन घर हर गझिन होके गजगजाय लगथे, हाँसत गावत घर मा अमाथें अउ अन धन जन अउ सुख शांति के असीद देवत जाथें ।
लाली गुलाली छींचत आयेंन ओ छींचत आयेन।
तोर घर के मुहाटी ला पूछत आयेन।।
तरी नारी नाना मोर नाना रे नाना रे सुवना
तरी नारी नाना रे ना ।
जेकर अर्थ हे तरी नारी ना ना मोर ना न रे ना ना रे। मतलब नारी हर समाज मा खाल्हे दर्जा के नोहय पार्वती हर बज्र बैरागी ला अपन तपबल ले बिहाव करे बर खंधो डरिस। उही पार्वती हमर इष्ट देबी आय हमू मन अपन तप अउ साधन ले परमदेव अउ परमगति ला पाबो, भोले बाबा ला मनाबो अइसन महत् भाव समाहित हे।
*मूल गौरी गौरा के भक्ति सुआगीत*
ठाढ़ धोवा चाँउर चढ़ा के बेलपतिया
चढ़ा के बेलपतिया रे सुआ हो।
चलौ गड़ी गौरा ला मनाय, ना रे सुआ हो
तरी नारी नाना मोर नाना नाना रे सुआ हो..................
तरी नारी ना ना रे ना.....................
तरी नारी ना ना मोर नाना रे नाना रे सुआ हो ।
देबी परबतिया के दुल्हा औघड़ भोला,
हमरो पुरोही सब आस, ना रे सुआ हो।
तरी नारी नाना मोर नाना नाना रे सुआ हो..................
तरी नारी ना ना रे ना.....................
*नारी विरह रूप* मा प्रचलित सुआगीत
१/
पईयाँ मैं लागँव चन्दा सुरुज के,
रे सुअना तिरिया जनम झनि देय।
तिरिया जनम मोर गऊ के बराबर,
रे सुअना ! जहँ पठौए तहँ जाए।
२/
सास मोर मारय-ननद गारी देवय,
रे सुअना! के राजा मोर गये हें बिदेस!
लहुरा देवर मोरे जनम के बैरी,
रे सुअना! ले जाबे तिरिया संदेस।
३/
ऊँच मनसरुवा के करिया रे अखियाँ रे सुअना!
चुहत हय मेछन के रेख।
कोदई साँवर रंग सुग्घर सुहावन रे सुवना।
वीर बरोबर हे भेख।
४/
बन रोजगारी मोर पिया परदेसिया रे सुवना,
गये हावै पइसा कमाय।
हालचाल लेई के तुरत चले अइबे, रे सुअना!
झिन कोनो राखै बिलमाय।
मोती के झालर डैना गुँथवइहौं,रे सुअना!
लादे तैं पिया के सन्देस।
सोने के थारी मा जेवन जेवइहौं, रे सुअना!
पइयाँ टेके सेहूँ हमेस।
*असीद*
लोहा के ड़ंडा ला घुना खाथे रे नारे सुवना
कि हम बहिनी देवन असीद।
गउवा ना गउवा तोर कोठा भरे रे ना रे सुवना
कि हम बहिनी देवन असीद।
बेटवा व बिटिया ले घर भरै रे ना रे सुवना
कि हम बहिनी देवन असीद।
शोभामोहन श्रीवास्तव
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