Wednesday 31 August 2022

छत्तीसगढ़ के लोकगाथा-सरला शर्मा

 छत्तीसगढ़ के लोकगाथा-सरला शर्मा

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      लोक के पहिली अर्थ संसार त दूसर अर्थ लोग जेला जन या मनसे भी कहिथन होथे । ए लोक मं लोग , जन , मनसे अपन मन के भाव ल गा के त कहि के व्यक्त करत आवत हे । तइहा दिन मं जब लिपि के , भाषा के विकास नइ होए रहिस तभो तो मनसे रोवत , गावत रहिन इही हर वाचिक परम्परा के साहित्य के नांव से जाने जाथे । लोकगाथा इही वाचिक परम्परा ले शुरु होए रहिस । लोक कथा अउ लोक गाथा मं फ़र्क होथे , कथा माने तो कहानी होथे त एहर तो कोनो मनसे के जीवन के एक अंश होइस वो अंश जेमा मनसे ल सुख -दुख  जौन मिलिस तेकर कथा के वर्णन । कथा के ही बड़े रुप होथे गाथा ...काबर के कोनो मनसे के जिनगी भर के लेखा जोखा कहानी के स्वरुप मं कहे जाथे थोरकुन ध्यान देइ के कविता कोनो एक विषय वस्तु के ऊपर होथे फेर महाकाव्य तो जनम भर के लेखा जोखा होथे । 

     लोक गाथा के अंग्रेजी समानार्थी शब्द हे Ballad जेमा सीधा , सरल , सहज , गेय छंद मं कोनो मनसे के जीवन चरित के वर्णन मिलथे । हमर छत्तीसगढ़ के लोकगाथा मन मं भी इही सब विशेषता पाए जाथे । लोक गाथा के मोटामूटी दू ठन रुप मिलथे , पहिली पौराणिक / ऐतिहासिक दूसर लोक मानस मं प्रतिष्ठित मनसे के कथा । 

लोकगाथा के रचनात्मक दृष्टि से भी दू रुप पाए जाथे पहिली मं कथानक छोटे रहिथे फेर गेयात्मकता बहुते रथे त लोक रंजन के दृष्टि से एकर महत्व जादा एकर बर हो जाथे के सुनइया मन के मनोरंजन जादा होथे , लोकगाथा के प्रस्तुति मं एक झन मुख्य वाचक रहिथे त मंडली के सहयोगी मन के संग , वाद्य यंत्र बजइया मन भी उपस्थित रहिथें । दूसर तरह के लोक गाथा मं कथानक बड़े होथे गेयता प्रधान होथे त बीच बीच मं लौकिक प्रसंग जोड़ देहे के सुविधा घलाय रहिथे । वाद्य यंत्र एक से जादा होथे । गुफा मानव जब ले समूह मं रहे के शुरु करिस होही तब ले लोक गाथा के शुरुआत होइस होही निश्चित दिन , तारीख जाने के कोनो उपाय तो है नहीं काबर के पहिली च कहे जा चुके हे के लिखित इतिहास तो है नहीं तभो ए तो सोलहों आना सच आय के लोकगाथा मं मानव समाज के आदिम इतिहास , संस्कृति , कल्पना , गेयता सबो हर बड़ सरसता से वर्णित हे । लोकगाथा के दूसर विशेषता के कोनो तरह के परिचय या भूमिका नइ रहय । तीसर खूबी के आंचलिकता या क्षेत्रीयता उपर जोर देहे के कारण  लोकगाथा के कथानक मं घटा बढ़ी हो जाथे । 

   छत्तीसगढ़ी साहित्य मं सन् 1100 ले 1500 तक ल गाथा काल कहे जाथे । जेमा मध्य युगीन समाज , संस्कृति , तत्कालीन इतिहास के दर्शन मिलथे । मूल भाव " सर्वे सुखिनः भवन्तु " माने तो सबके कल्याण होवय इही होइस न ? 

1890 मं हीरा लाल काव्योपाध्याय लोरिक चंदा के कथानक अनुरूप " चंदा के कहिनी " प्रस्तुत कर रहिन जेला शिष्ट साहित्य के परम्परा मं गिने जाथे । थोरकुन अउ ध्यान दिहिन त 1946 मं बेरियर एल्विन अंग्रेजी अनुवाद ल Folk Songs of chhattisagarh . मं उद्धृत करे हें । 

   सबल सिंह चौहान लिखित " पंडवानी " महाभारत ऊपर आधारित लोकगाथा आय ...सुरता करव न हमर तीजन बाई इही पंडवानी के चलते देश विदेश मं प्रसिद्ध हे ।  

      थोरकुन ध्यान एहू डहर दिहिन के छत्तीसगढ़ मं आने जघा ले आए लोकगाथा मन ल घलाय उचित मान सनमान मिले हे ...। 

लोरिक चंदा च ल देखिन न जेला चंदैनी गायन घलाय तो कहे जाथे फेर इही कथानक हर क्षेत्र के अनुसार थोर बहुत बदलाव के संग उत्तर प्रदेश , भोजपुरी , मैथिली मं बिहार , बंगाली मं बंगाल मं भी प्रस्तुत होथे । 

      दुख ए बात के हे कि प्रिंट मीडिया के दौर चलिस त वाचिक परम्परा के लोकगाथा मन ल मनसे तिरियाये लग गिन । पहिली तो संस्कृत फेर हिंदी ल प्राथमिकता मिलत चलिस एहू हर छत्तीसगढ़ी लोकगाथा मन के नंदाए के जब्बर कारण बन गिस । एक तरह से गांव ले सहर के रस्ता धर लेवइया मनसे मन , त गांव के सुन्ना परत गुड़ी मन भी छत्तीसगढ़ी लोकगाथा के जन अवहेलना के कारण आय । पहिली बात के लोकगाथा हर इतिहास तो नोहय , दूसर बात के व्यक्ति प्रधान नहीं व्यक्तित्व प्रधान आय तीसर जरुरी बात के प्रस्तुत करइया मन के वर्णन मं कुछ जुन्ना छूटत गिस त कुछ नवा जुरत गिस एहू हर पढ़े लिखे सहरी बाबू मन ल लोकगाथा ले थोरकुन दुरिहाये के काम करिस । तभो ए लेख ल लिखत खानी मन मं नवा सोच , नवा आशा जागिस हे कि अब के पीढ़ी अपन साहित्यिक , सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरूक होवत हे ...लोकगाथा फेर सुने , पढ़े बर मिले लग गए हे । 

छत्तीसगढ़ के अलग , अलग लोकगाथा मन ऊपर फेर कोनो दिन चर्चा करबो । 

    सरला शर्मा 

     दुर्ग

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