छत्तीसगढ़ के लोकगीत
लोकगीत माने कि लोक के गीत ,जन के गीत।लोक हर अपन सबे तरह के भाव अऊ उछाह ला कभू गा के अऊ कभू नाच के परकट करथे । लोकगीत मन ला कोन हा सिरजिस होही कोनो नई जाने फेर लोक में एक पीढ़ी ले दुसर पीढ़ी मा जावत रहीथे।
लोकगीत ह कत्का होही येकर गनती नई करे जा सके फेर कोई_ कोई गीत के नाव लिए जा सकत हे।
कोनो_ कोनो ला नाच _नाच के गाए
जाथे त कोनो गीत ला खेलत _खेलत गाथें ।
कोई _कोई लोकगीत मां बाजा नई राहय , जयसे कि सुआगीत, ये गीत ला माईलोगन मन अपन हाथ के थपड़ी पीट_ पीट के
गाथे ।डंडा गीत मां बाबू जात मन डंडा बजा बजा के मुंहु ले कुहकी पार के गाथे ।
खेलगीत मन मा घलो कोई बाजा नई बाजय फेर लईका मन बिधुन हो जथे _
_ घोर घोर रानी इत्ता इत्ता पानी......
_अटकन मटकन दही चटाका, लहुआ लाटा बन में काटा.....
_अररा गोटा पर्रा गोटा एक धनी दे अईसन चलाकी भौजी फुगड़ी खेलन दे... फुगड़ी फू फू जी फुगड़ी फू......
जस गीत , सेवागीत,भोजली गीत जयसे
गीत मां नाच नई होवय, बैठे_ बैठे गाए जाथे । एमा नाच नई होवे ,जेकर मां देवता चढ़ते ओकर झुमई ला नाच नई कहे जाय। ईही तरह के गऊरा गीत होथे जेमा कभू _कभू बाजा बाजथे ता कभू_ कभू नई, फेर गीत के लय ऐसेना हे कि कई झन सुनईया मन ला डढरिया चढ जाथे _
_जोहर जोहर मोर ठाकुर देवता सेवर लागव तोर
_एक पतरी रैनी भैनी राय रतन वो दुर्गा देवी
गऊरा गीत में दफड़ा बाजा बाजथे ताहा देवता घलो चढ़ जाथे जेनला डढरिया कहे
जाथे । डढरिया मन ला गांव के राऊत ईहां लेग के दही खवाये जाथे ।
करमां , शैला,पंथी गीत जईसे गीत मन
मांदर के थाप मां गाए जाथे ,फाग गीत नंगारा के धुन मां।
बिहाव गीत,सोहर गीत जईसे संस्कार गीत होथे । बिहाव गीत , देवतला, चूलमाटी ले सुरु
होके बिहाव के जम्मों नेग के संग_ संग बेटी के बिदा तक चलत रहिथे ।
बरात परघौनी में दूल्हा _दुल्हीन दोनो डाहा के मन भढऊनी गा _गा के बिधुन हो
जथे। हमर गांव मे दू_ चार नोनी मन तो ऐसन गविया रिहिन हे कि बरतिया मन ला रोआ
डारे ।एक ले बढ़ के एक भड़ऊनी _
_नरवा तीर के पटवा भाजी ऊलूहा _ऊलूहा दिखथे रे ।
आए हे बरतिया टूरा बुडवा बुडवा दिखथे रे ।
सुरहोती में गऊरा गीत हे त देवारी अऊ
देवउठनी मां राऊत नाच हे । राऊत मन गाय_गरुवा ल सुहई बांधे बर आथे त दोहा पारथे ईकर अलगे धुन रहिथे _
अ रे रे रे से सुरु होथे । मड़ई मेला मे अपन
साज सिंगार के संग राउत मन दोहा पारथे ।
बांस गीत ,देवार गीत के अपन अलगे
महत्तम हे।
गीत , नाचा( नृत्य) अऊ बाजा (वाद्य) के संगत ला संगीत कहे जाथे । शास्त्रीय कलाकार मन सात सुर में संगीत के धुन गाथे
फेर लोकगीत ल कभू कभू लोककलाकार मन चारे स्वर मा घलो गा लेथे ।
लोकगीत के गजब महत्तम हे इनकर ले तैहा जमाना के लोक के भाव ,समाज अऊ ससकिरिती के रुप ला समझे मां सहारा मिलथे । आजकाल लोक गीत ह नंदाथे अइ सन गीत मन ला जतन करके राखे ल परही
डॉ. बी.नंदा जागृत
No comments:
Post a Comment