Wednesday 31 August 2022

सुवा नृत्य तिरिया जनम झन दे, ना रे सुवना

 सुवा नृत्य

तिरिया जनम झन दे, ना रे सुवना

सुवा नृत्य छŸाीसगढ़ के लोकप्रिय नृत्य हरे। भारतीय साहित्य म जऊन जघा कोइली (कोयल) ल मिले हे उही जघा लोक जीवन (छत्तीसगढ़ी) म सुवा (मिट्ठू, तोता सुग्गा) ल मिले हे। आदिकाल ले सुवा ल संदेश वाहक के रुप म जाने जाथे। सुवा ले जुड़े ‘सुवा नृत्य’ ह छत्तीसगढ़ के आदिवासी मन के धार्मिक मान्यता अऊबिसवास ले जुड़े हे। गोड़ मन शंकर (गौरी) अऊ पार्वती (गौरी) के बिहाव ले ‘गौरा पर्व’ के रुप म मनाथे। धनतेरस के दिन ले सुवा नृत्य के शुरुआत होथे। इही रात ले गोड़िन मन गौरागुड़ी म फूल कुचरथे अऊ दिन म घरो-घर जोहारे बर जाथे। गपौरा-गौरी के बिहाव के आयौजन खातिर धन राशि सकेले के उद्देश्य ले माईलोगन मन के सुवा नृत्य के शुरुआत होइस होही। शंकर अऊपार्वती के प्रतीक स्वरुप टूकनी (कड़रा जात के मन बनाथे) म धन ऊपर दू ठन सुवा ल बइठार के धान के बाली ले इखर सोभा ला बढ़ाथे। टूकनी बोहइया नोनी ल सुग्गी कहिथन। सुग्गी ह माटी के सुवा बना के काड़ी म ओखर पेट ल गोभ के घाम म सुखो देथे। सुखाए के बाद चोंच ल चूरी (लाल) रंग म अऊ बाकी ल टेहर्रा (हरा) रंग म रंगा के जुग जोड़ी ल टूकनी म बइठार देथे।


    माईलोगन मन सुवा नाचे बर सिंगार कर के निकल थे। इखर कान म खोंचाए दावना ह आदिवासी लोक संस्कृति के परिचय कराथे। कलई म ऐंठी, हररैया, बांह म पहूंची, गला म सुर्रा, रुपिया, सूता, हाथ के अंगरी म मूंदरी, कान म खिनवा, झूमका, नाक म फूली, नथनी, मूड़ी म किलीप, पीन, कनिहा म-करधन, गोड़ म लच्छा, सांटी, पायल, टोड़ा अऊ पांव के अंगरी म बिछिया ले तन ह भरे रहिथे। पांव के माहूर हथेरी के मेंहदी अऊमाथे के टिकुली ह तो नारी के सौंदर्य ल निखार देथे। सुवा नृत्य करइया दल ठाकुर जोहारे ल आए हन कहि के घर म प्रवेश करथे। सुवा गीद म नारी जीवन ले जुड़े वेदना, अनुराग, अन्तव्र्यथा गीद, पौराणिक अऊ धार्मिक विकास ले जुड़े गीद क संगे संग स्वतंत्र कथा शैली म सुवा गीद के समागम रहिथे जऊन ह असीस गीद ले सिराथे। टूकनी ल बीच म मड़ा के गोल घूम के थपरी (ताली) पीटत सुवा नाचथे। एक झन ह सुवा गीद ला गावत आगु तीन बढ़थे तेन ल बाकी मन दुहराथे। सुवा नृत्य के शुरुआत देवी देवता के संगे संग भूईया, अकास, भवाानी अऊ मरता-पिता के वेदना ले प्रारंभ होथे-

     सुमिरौ मय सकल जहान सिया रामे हो सुवा 

     अइसे सुनो हो सराइयो सुवा 

     हथवाा म सुमिरौ मय धरती चरनिया

     उपरै सुमिरौ भगवान

     पुरब ले सुमिरौ मैं उगत सुरुजिया

     पश्चिम सुमिरौ सुविहान 

     उत्तर म सुमिरौ मैं सरसती मइया

     कंठे म गौरी गनेस।

पहिलीच गवन म मोला डेहरी म बइठार के जोड़ी बेपार करे बर परदेश चले हे। नारी के पीरा ल नारिच ह जानथे तभे तो छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य गम्मत म लोटिहारिन 8जनाना9 ह गाथे-जोड़ी बिना जग लागे सून्ना य नइ भावय मोला सोना चांदी महल अटारी। जिनगी के अधार पति हरे। जोड़ी बिना तो जग ह अंधियार लागबेच करही।

घर दुआर तोर बहुरिया, डेहरी म पांव झन देहा कहि के सावस ह डेहरी के ओपार पांव रखे बर मनाही कर देथे। अब तो माईलोगन बर पिंजरा म धंधाए सुवा ह दुख-सुख के संगवारी रहि जथे। टपट कुरु टपट कुरु कहि दे रे मिट्ठू, राम-राम काह रे मिट्ठू , साग आवत हे पानी दे दे वो दीदी.... सुवा ल पढ़ावत-पढ़ावत मन के पीरा ल सुवा करा गोठिया के दुख के भारी पांव ल हरु कर लेथे। नारी ह गरुवा ताय। जि5ंहे बांध देबे उंहे बंधा जथे। पति के विरजह म जरत नारी जिनगी ले तंग आ के चंदा सुरुज ले बिनती करथे कि मोला सब योनी म जनम देबे फेर नारी जनम झन देबे-

प्इंया मय लागत हंव चंदा सुरुज के सुवना

तिरिया जनम झनि दे रे सुवना 

तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर रे सुवना

जंह पठावय तहं जाय रे सुवना

 अगंठिन मोरा-मोरी घर लिपवाय रे सुवना मोर ननदी के मन नइ आय रे सुवना

पहिली गवन के डेहरी बइठारय रे सुवना

छोड़ी चलय बनजर रे सुवना

सुवा गीद तो करुण रस म गिदगिद ले फिंजे हे। तय तो अघात सुन्दर दिखत हस सुवा। तोर  चोंच ह पक्का कुंदरा कस सुरुक लाल हे। तोर आंखी ह मसूर दार कस ललहूँ हे। अऊ तोर पांख ह तो जोंधरा (भूट्टा) के पाना कस हरियर हे। सुवा के बड़ई करके जोड़ी करा अपन संदेश पहुँचाए बर बिनती करथे-

  चेंच तोर हवय लाली कुंदरु अस रे सुवना

  टांखी दिखय मसुरी के दार 

  जोंधरी के पान सहि डेना सँवारय रे सुवना 

  सुन लेबे बिनती हमार 

  सास मोर मारय, ननद गारी देवय रे सुवना

  राजा मोर गइन बिदेस

  लहुरा देवर मोर जनम के बइरी रे सुवना 

  लेई जाबे तिरिया संदेश......

सुवा नृत्य दल ल घर मालकिन मन धान, रुपिया, तेल, फरा आदि जेखर जतना बन जथे ओतने उपहार ल सूपा म लान के देथें तहान सुवा नचइया मन घर वाले मन ल सुवा गीद के माध्यम ले एदइसन असीस देथे--

  तरि नरि नाहा नरि नहा नरि नाना रे सुवना 

  तरि नरि नहा नरि नाना

  जइसे के माता लिहे दिहे आना रे सुवना

  तइसे तंय लइ ले असीस

  धने दोगाली तोर घर भरही रे सुवना

  जीबे जुग लाख बरीस.......

  सुरहोती (लक्ष्मी पूजा) के रात ठाकुर (गोड़) मन, सुवा नचइया मन ल उपहार म जउन रुपिया, तेल फूल ल गौरी-गौरा के बिहाव म उपयोग करथे। फरा घलो मिले रथे। तेला गौरी-गौरा बनइया अऊबजनइया मन एदे गीद ल गा के लूट के खाथे-

  झूपे ते झूपे

  फरा ल लूटे 

  ठही गांव के टूरा मन 

  फरा ल लूटे

राऊत नृत्य ह निमगा पुरुष मन के हरे उही किसम ले सुवा नृत्य ह सिरीफ माईलोगन मन के हरे। राऊत मन कस सुवा नचइया मन घलो जेठऊनी तक ठाकुर (मालिक) मन घर जोहारथे। सुवा नाचे बर दूसर गांव चलो जाथे। जऊन भी उपहार मिलथे वोला आपस म बरोबर-बरोबर बांट लेथे। जेठउनी (देव उठनी) के बिहान दिन सुवा ल ठण्डा कर देथे। सुवा नृत्य ह भले समाप्त हो जथे फेर गीद बखत-बखत म फूटत रहिथे। महतारी ह सुवा गीद गावत लइका ल भुलवारथे। पेट सेंके के बखत, निंदई कोड़ई करत, धान लुवत सुवा गीद सुने बर मिलथे। छत्तीसगढ़ म सुवा (पड़की) नृत्य सरीख पोवा नाचथे। माईलोगन मन हरेली के दिन चूकिया म रोटी भर के पेड़ म पटकथे। गोबर के फोदा उपर तरोई के फूल ल खोच के मड़ा देथे। फोदा ल बीच म राख के गोल घुम-घुम के थपरी बजावत नाचथे तेन ला पोवा कहिथन।सुवा नृत्य ह नारी जीवन के दरसन कराथे। जबकि पोवा ह माईलोगन मन के इमनोरंजन करथे। आज जोड़ी ह संग म रहितीस ते जीनगी ल हांसत कुलकत पहा लेतेन। फेर भगवान ह तो मोर गोसईया ल नंगा लीस। मोर जीनगी बेअधार होगे। का करबे कोन जनम के पाप ल भोगत हंव ते मोर हाथ के सुवना (जोड़ी) ह उड़ागे। गम्मत म जनाना ह आत्मा ल सुवा अऊ तन ल पिंजरा माने हे....

     उड़ी जाही दीदी ओ

     एक दिन पिंजरा के सुवना उड़ी जाहि ना......


दुर्गा प्रसाद पारकर

आशीष नगर, प्लाट-3,सड़क-11 पश्चिम, रिसाली भिलाई, दुर्ग, (छ.ग) 

7999516642,9827470653

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