Monday 15 August 2022

बियंग- बाढ़ ले आये बढ़वार

 बियंग-   बाढ़ ले आये बढ़वार


असाड़ बुलक गे। सावनो निकलइया हे। लपरहा बादर हँ चुनावी डंगचगहा मन कस घूम -घूमके भासन दे - देके रहि गे। बिजली घलो दू  - चार घँव मटमटाइस। 

नवा बइला के नवा सींग चल रे बइला टिंगे- टिंग। 


किसान मुँहू फारे उप्पर डाहर ल देखत बोमियावत रहिगे - गिर भगवान गिर। उप्पर वाले भगवान हँ भुईंया के भगवान ल फेर एक घँव बेवकूफ बना दिस। बेवकूफ का बनाए बर लगही किसाने खुद बेवकूफ हे। तोर केहे भर म सब हो जही ? 

टीटही के गोड़ टाँगे ले सरग नइ टँगा जय। 


भिंदोल के बोमियाए ले बदरा बरस गे तब तो कर डरिस भगवान हँ भगवानी अउ सरकार हँ दुकानी। सरकार हँ बोर कोड़वाए के मसीन निकाल दे हे। मरहा - खुरहा किसान के नान - मुन, डोली - डांगर, खेत -खार ल खनके नाहर बना दे हे त तुम उप्पर वाले ल काबर सिमरौ - सोरियावौ। बोर नई कोड़वाए सकव ? माने तुम उप्पर वाले ल सुमर के खालहे वाले जीयत - जागत भारी भरकम शक्ति के खुल्लम-खुल्ला बिजती करत हौ। 


सरकारी रिन लेए बर  थोक बहुत कमीसन के जुगाड़ करलौ। रोकड़ा खरचौ , फोकट झन खुरचौ। तुँहर बोमियाए ले कुछु नई होवय। चुचुवावत -चिचियावत रहव। आजकल खुरचन के भरोसा बड़े -बड़े पहाड़ ल बिन खुरचे पार करे जा सकथे, खेत के मेड़ का चीज ये।

सरकारी तुर्रमखान मन जब देखिस, पानी नई गिरत हे। चारो मुड़ा ल सुख्खा घोसित कर दिन। चारा के बाढ़ ल आवत देख ललचाहा बाबू करमचारी मन के बसियाए-फुसियाए मुँहु पनिया गे। उन दुनियाभर के मगजमारी म लगगे। नवा - नवा योजना कागज म दउँड़े लगिस। 


झिल्ली म तोपाए - ढँकाए छानही वाले सरकारी आफिस। एक टाँग टूटे रेचेक -रेचेक बाजत खुरसी। ओ रेचका - खोरवा खुरसी म ईंटा टेकाए बइठे डेढ़ ले दू हुसियार बाबू। जनम के बीमरहा-केचकेचहा खेर -खेर करत पंखा के हावा लेवत योजना तैयार करथे। जेकर फायदा आम जनता अउ सरकार ल होवय चाहे झन होवय बाबू अउ ठेकादार ल बजुर होथे। 


ओइसने म बादर ल लहरावत देखके बाबू करमचारी मन के थोथना ओथर-ओरम गे। उन्कर मन म सरकारी खजाना के नई बरसे ले अपन थइली म परत अकाल के डर समा गे। घूस कहव के चढ़ावा मानौ, बाबू मन नरियर के तरी -तरी सौ -सौ के पाती दबाइन। मिलावटी तेल के दीया म घींव के बूड़े बाती जलाइन अउ भगवान के चरणार्थी-षरणार्थी होगे। 


घोड़ी के लात ल घोड़वे साहय। बरोबर के ल बरोबरे वाले सुनथे - देखथे-मानथे।


उही समे रदरद-रदरद अतका पानी गिरथे के नदियाँ, नरवा, डबरा, ढोड़गा सबो कोती पानी-च -पानी हो गे। बाबू करमचारी - सकलकरमी खुस होके तरी -तरी खिस -खिस दाँत -निपोरत हाँसे -खाँसे लगिन। 

काँही होवय भइया । इन्करे बने हे गा। सुक्खा परे म गुलाब जामुन, तरी -तरी होगे त रसगुल्ला।


 किसान फेर चुचुवाए लगिन। किसान पानी नई गिरय त टेटकके मर जथे अउ बरसथे त सबे बोहा जथे। 

माने टेटकना-अटकना, चुहना-बोहाना, खुरचना -मरना किसाने के भाग म होथे। 

किसान तरूवा धरके बइठ गे- बस कर भगवान ! 

बाबू करमचारी मन हुमन -हवन करवाए लगिन-बाढ़ आना चाही भगवान। 


बरोबर के ल बरोबरे वाले सुनथे - देखथे अउ करथे - निभाथे। बाढ़ आ गे। जगहा- जगहा भरका फूटे लगिस। घर-दुवार धसके-ओदरे लगिस। कतको मरे बरोबर जीयत -जागत मनखे मन मलमा म दब -दबके मर गे। आसरा के मोटरा ल धरे  -पोटारे कतको मनखेमन धारे -धार बोहाए लगिन। 


सरकार देखिन के बाबू करमचारी मन के आसरा के बाँध म सपना के पानी हँ टोम -टोम ले भर गे हे । सरकारो हँ भ्रस्टाचार म भरे-बँधाए खजाना के बाँध के गेट ल खोल दिस। बाँध के गेट खुलिस के दू -चार मनखे फेर बोहा गे। 


बन्ने होइस। बन्ने होइस। ओमन अभीन जीयत रहितीन त सरकार के आघू म अड़िया -थेभके खडा़ हो जातिन- राहत रासि दे ! क्षतिपूरति कर !! अब उन्कर राहत रासि अउ क्षतिपूरति के पइसा म बाबू करमचारीमन ल राहत मिलही। उनमन इन्करे पइसा म कलम के नांगर जोंतही। नवा फसल उगाही। हुकड़ -हुकड़के खाही। उँसर -पुँसर के खाही अउ हुँकड़ -हुँकड के दौरा करही। 


सकलकरमी-करमचारी मन जम्मो गरीबी रेखावाले रूनियाए चाउँर के बोरा ल खाली कर दिन । खजाना के पइसा ल बोरा म भर -भरके एती -उती मोटर -कार दऊँड़ाए लगिन। दू कोस के जगहा म बाढ़ के सेती घूम-फिरके चार कोस जाये बर परथे कहि-कहिके कार म दू के जगहा दस लीटर पिटरोल भरवइन। 

राहत सिविर म डोकरी -ढाकरी मन के जुन्नाहा झेंझरा लूगरा के पाल तानिन। मँगनी-जचनी अउ जनसहयोग के लुगरा म मोटहा कपडा़ (कनात) के जगहा पिलास्टिक पाल के बिल बनवाईन। 


मलमा म दबे -मरे मनखेमन ल निकाले बर पारा -परोस के मनखेमन के सहयोग ले गइस। ओमन मजुरी के जगहा पेपर म अपन गाँव के, घर के नाँव छपे -देखे के आसरा भर पाइन। 


सहींच् होगे गा ! पेपर म गाँवे भर के नाव रिहिसे। ताहेन जम्मो जघा साहेब बाबू करमचारी मन के फोटू देखे बर मिलिस। बडे़ -बडे़ टेंड़ाए मेछा के बीच बटरेंगवा-बटरेंगवा आँखी वाले। 


राहत सिविर मन म जा -जाके साहेब बाबू मन नड्डा, मुरकू अउ मिच्चर बाँटके तार दिन। ओकर जगहा पौस्टिक अहार, खाना के पाकिट, सेव, केरा के बिल बनाके अपनमन परिवार सहित पगुरावत तर गे। 


जगा -जगा बाढ़ सहयता दल बन गे। जेमन सरकार अउ समाज दूनो जघा ले चंदा के रपोटिन अउ चाँदी बना लिन। ओकरे भरोसा बाघ गुर्रावत अपन छितका - छेपका कुरिया ल सोन कस लंका गढ़ - मढ़ डारिन। 


राजा सरकार हवई जहाज म चढके उपर ले उढावत बाढ़ ल देखे बर आइन। वो अनभो ले लगिन के बोहावत मनखे कइसे दिखथे। मरत मनखे के आसरा उन्कर आँखी म कतेक पन चमकथे। उड़त -उड़त सरकार के नजर पेड़ म चघे मनखे के ऊपर जा परिस। डोर ल ओरमा दिस - धरबे त धर, नहि ते धारे धार जा। मर -जी तोर मरजी।

 

मनखे डोर ल धर के ऊपर चढ़ गे अउ बाँच गे। ओला देखे - देखाए बर राजा सरकार हँ बंगला म ले गे। अपन खुरसी म बइठ, ओला बाजू म खडा़ करके फोटु खिंचवइन। 

पीछु जुवार बाबू करमचारी -सकलकर्मी घला पारी -पारी ले ओ मुरझुठहा मनखे संग फोटु खिंचवइन। उन सब फोटू के खिंचवावत भर ले चाइना मॉडल म देखउटी मुस्कावय। 


मने -मन गारी देवय - जी के तैं हँ अपन नाम के राहत रासि ल कटवा दिये रे चंडाल ! माने हमरो थैली ल काट दिए। 

मरहा मनखे सरकार, साहेब, बाबू, करमचारी सबो के बीच घेराए कुकुर कस उन्कर गिध - दृष्टि ल पढ़ डारिस। ओ हँ थोथना ओरमाए अइसे खडे़ हावय जइसे बडे़ घर के बने -बने पहिरे ओढ़े उतलइन, उजबक अउ अवारा लइकामन के बीच चोरी करत पकडाए नंगरा घर के लइका ठाढ़ नंगरा खडे़ हे। 


अब देखहु आफिस के दुवारी मन म नवा -नवा गाड़ी के फूल, चदैंनी -गोंदा कस रिगबिग ले फूल जाही। शहर - नगर म साहेब बाबू मन के बंगला हँ गोल्लर कस हुँकड़त अँड़ियाए -अँटियाए लगही। कुल मिलाके बाढ़ ले आए बढवार - पइदावार अब दिखे लगही, चक्क - चकाचक।


मैं तो बिनती बिनोथौं- देष के बढ़वार खातिर अइसन बाढ़ के आना नंगत जरूरी हे।


धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

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