*"बेरा-बेरा के बात"-- अबेवस्था के विरुद्ध शंखनाद आय*
छत्तीसगढ़ के संस्कृति अउ लोककला परम्परा के अध्येता डॉ. पीसी लाल यादव जी छत्तीसगढ़ के स्थापित सशक्त साहित्यकार आँय।जिंकर लेखनी हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दूनो भाषा म गद्य अउ पद्य दूनो विधा म समान अधिकार ले चलथे। डॉ. यादव जी शिशु अउ बाल गीत ले लइका मन के मन ल मोह लेथें। वोमन सबो किसम के रचना करे म सिद्धहस्त हें। उँकर पूरा जिनगी लइका मन तिर रहिके बीते हे। गुरुजी के नौकरी ले छुट्टी पाके (सेवानिवृत्त) आजो सरलग लिखई म भिंड़े हे। साँस्कृतिक संस्था के संचालन करत आप कतको लोककला अउ परम्परा ल नवा जिनगी दे हव। आप लोक संस्कृति के संवाहक के रूप म छत्तीसगढ़ी संस्कृति अउ परम्परा ल लिखित रूप म स्थापित करे म बड़़ भूमिका निभाय हव। आप छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान ल जगाय बर बाना धरे सरलग लिखत आवत हव।
आप के लेखन म शिल्प अउ भाव दूनो पक्ष म कोनो किसम के कमी नइ मिलै। आपके सधे लेखनी के कमाल आय के आपके गीत मन म ध्वन्यात्मकता अउ संगीतात्मकता के सुग्घर समन्वय देखे ल मिलथे। समीक्षित ए संग्रह "बेरा-बेरा के बात" म जतका रचना हें, ओ मन म गेयता हे। हर कविता ल गीत अउ ग़ज़ल नइ केहे जाय, काबर कि गीत अउ ग़ज़ल दूनो के अपन एक बनकट (बुनावट) होथे। फेर हर गीत अउ ग़ज़ल मन ल एक कविता माने जाथे। इही बात आय के आप ए संग्रह ल कविता संग्रह लिखे हव। एमा गीत के संग म ग़ज़ल घलव शामिल हे। ए अलग बात आय के अब छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल ल उर्दू ग़ज़ल के जइसे मीटर/पैमाना या बह्र म परखे जावत हे। आप रामेश्वर वैष्णव अउ मुकुंद कौशल मन के संग छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के बीड़ा ल उठा नवा पीढ़ी ल लिखे बर प्रेरणा बने हव। आप सब के छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल ल पढ़के नवा पीढ़ी मन घलव ग़ज़ल म हाथ आजमावत हें।
आप के ए संग्रह के रचना मन म हाना अउ मुहावरा मन दगदग ले नजर आथे। कतको जगा म आप नवा हाना गढ़े म सफल होय हव। प्रतीक योजना अउ बिम्ब आपके रचना के बड़ा खासियत आय। काव्य के तत्व रस, अलंकार तो आपके रचना म छत्तीसगढ़ के गँवई-गाँव म बिराजे देवी-देवता मन सहीं देखे मिलथे। रूपक अउ अनुप्रास अलंकार के भरपूर झलक मिलथे।
संत बाबा घासीदास जी के परम्परा ल आगू बढ़ावत मनखे मनखे एक समान के संदेश ल डॉ. यादव जी मन अइसन लिखें हें -
*मनखे तो मनखे आय, चाहे करिया होय के गोरिया।*
उहें कबीर दास जी जइसे समाज के ठेकेदार मन ल हड़काथे-
*मनखे-मनखे मभेद करके,*
*सब करत हें पोठ धंधा।*
*धरमी खोल धरम दुकान,*
*बटोरे धरम के नाँव चंदा।*
*रंग बिरंग लगाए झंडा, पंडा ओरपिट्टा बइठे ओरिया।*
एक ठन उदाहरण देखव जेमा प्रतीक अउ अलंकार दूनो सँघरा नजर आथे-
*चरू चुप्पे चाल चलिस, चरू ह होगे हंडा।*
*देवता ठाड़ लाँघन भूखे, मोटाय पुजेरी-पंडा।।*
पहली डाँड़ म अनुप्रास अलंकार हे, संगे संग दूनो डाँड़ म प्रतीक योजना लाजवाब हे। छत्तीसगढ़ ले बाहिर के मनखे इहाँ आके चाल चलथे अउ देखते-देखत हंडा वाला हो जथे। धनवान बन जथे। देवता सहीं इहाँ के किसान मजदूर लाँघन मरथे अउ पुजेरी पंडा बने बइठांगुर मन मोटावत हें।
बिम्ब म डॉ. यादव जी के मारक क्षमता ल देखव-
*संझा बिहनिया टेकत मंदिर-मंदिर में माथ।*
*दाई-ददा आश्रम परे सास-ससुर हे साथ।*
मानवीय मूल्य के गिरावट ल लेके डॉ. यादव जी के पीरा ल देखव-
*मान गउन होगे हरू, मनखे-मनखे बर गरू।*
*मनखेपन नंदागे कहाँ, बोली-बोले बिकलम करू।*
*कहाँ ले झपागे जिंग म घिरना के किरवा?*
कतकोन जगह समासिक शब्द मन के प्रयोग ह रचना मन के सुघराई ल बढ़ा देहे।
छल-कपट, नारी-परानी, धरम-करम, हित-मीत, अँवरी-भँवरी, लहू-पछीना, डारा-पाना....अउ कतको शब्द मिलही।
ए संग्रह के तुकांत अउ शब्द संयोजन ल देख के कहि सकत हँव कि छत्तीसगढ़ी शब्द भंडार ऊप्पर अँगरी उठइया मन ए संग्रह ल कहूँ पढ़ लिही त उँकर चेत हजा जही। उँकर जम्मो भ्रम ह टूट जही। छत्तीसगढ़ी के शब्द भंडार अतेक विपुल हे। छत्तीसगढ़ी ल कमती आँके बर भुला जही। तुकांत शब्द के कुछ बानगी देखव---अलकरहा, हरहा, बरहा, धरहा, गरहा, थरहा, परहा, जरहा, मरहा, सरहा, तरहा, दरहा, लरहा।
बिया के, पिया के, जिया के, खिया के, दिया के, सिया के ,....जइसन कतको सजोर तुकांत संग्रह म नजर आथे।
अवसरवादी मन ल चेचकारत लिखथें-
*अघुवा बने के दम नहीं त,कखरो बने चम्मच झारा।*
*कोनो सरपंच के भाँचा, कोनो बनगे पंच के सारा।*
*काँख-काँख के पेलत हें, लद्दी म सटके चक्का।*
एक रचनाकार रचनाकार होय के पहिली मनखे आय अउ समाज ले ओकर जुड़ाव रहिथे। इही जुड़ाव ओला समाज हित बर सोचे मजबूर करथे। सामाजिक सरोकार ल पूरा कर सचेतक के रूप में समाज ल दरपन दिखाय म रचनाकार कभू पीछू नइ राहँय। डॉ. यादव जी मन घलव अपन ए दायित्व के निर्वाह करे हें।
संग्रह के शीर्षक रचना म श्रमशील करमइता के महिमा मंडन करत लिखें हें-
*कोनो काँही करे हिन्ता करमइता नइ करे चिंता।*
*उदीम-उजोग करइया ह, लाखों म एक नाव गइन्ता।*
ग़ज़ल मन म बड़ मरम के बात पढ़े बर मिलथे। जउन ग़ज़ल के सब ले बड़े खासियत माने जाथे।
*अपन अपन ढपली अउ अपन हे राग,*
*गली गली गाल बजावत हे मनखे।*
*अपन दुख ले कहाँ, दुखी हवै कोनो,*
*पर के सुख देख गुंगवावत हे मनखे।*
सरल अउ सहज शब्द म छत्तीसगढ़ी अस्मिता, तीज परब, किसान के पीरा, सर्वहारा वर्ग के संसो, शोषित मन के दुखड़ा के संग जागरण के गीत ए संग्रह म सिलहोय गे हे। शोषक अउ शोषित दूनो ल पटंतर दे म कोनो कमी नइ करे हे। शोषित ल शोषण के विरुद्घ खड़े होय बर पटंतर हे, व्यंग्य हे।
ए संग्रह सामाजिक अउ राजनीतिक घालमेल अउ अबेवस्था के विरुद्ध शंखनाद आय। स्वाभिमान अउ जागरण के प्रतिनिधि संग्रह आय। मानवीय मूल्य ल सहेजे के कोशिश म लिखे गे अइसन सुग्घर संग्रह बर डॉ. पीसी लाल यादव जी हार्दिक शुभकामना अउ बधाई।
संग्रह : बेरा-बेरा के बात
रचनाकार: डॉ. पीसी लाल यादव
प्रकाशक : वैभव प्रकाशन रायपुर छग.
पृष्ठ सं. - 88
मूल्य : 100/-
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह पलारी
जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.
9977252202
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