Sunday 29 September 2019

मंगनी म मांगे मया नइ मिलै - व्यंग्य - अरुण कुमार निगम

मंगनी म मांगे मया नइ मिलै रे मंगनी म……

दउँड़त-भागत बिसौहा पान ठेला म तमंचा मिलगे। ये चलाए वाला तमंचा नोहय, मोर सँगवारी के बढ़उवल नाम आय। असली नाम त बने असन हे, फेर में म का रखे हे ? मोर मितान तमंचा ह राजश्री के पाऊच फाँकत रहिस। मोला देख के कहिस - कहाँ उत्ताधुर्रा जावत रहे ? आ...पान खा ले। मँय कहेंव - तुहिच्च ल खोजत रहेंव। पदमश्री बर अप्लाई कर दे, ऑनलाइन फारम भरे के चालू होगे हे, इही बात ला बताए बर तोला खोजत रहेंव। तमंचा ठठा के हाँसिस अउ कहिस - पान सिगरेट नइ चले त कोनो बात नइये, पद्मश्री-वदमश्री के बात झन कर, सोझबाय राजश्री खा ले। मँय कहेंव - तमंचा भाई, तँय छत्तीसगढ़ के अतका बड़े साहित्यकार आस, कतको किताब छप गेहे, बड़े बड़े सम्मान पाए हस। तोला पद्मश्री बर फारम भरना चाही। तमंचा कहिस - मांग - तांग के मिलिस तेन कइसन सम्मान ? देख भाई ! महूँ जानत हँव, अभी सीजन चलत हे। जइसे पानी-बादर के आरो पाके मेचका अउ भिन्दोल मन बाहिर आ जाथें वइसने फेसबुक अउ वाट्सएप मा टरर-टरर चलत हे। बेंगुआ मन घलो राग अलापत हें। साल भर के सुते कुंभकरण मन मार कोट-टाई मार के अपन सम्मान वाले फोटू ल घेरीबेरी चेंपत हें। फेसबुक म मन नइ माड़िस त वाट्सएप ग्रूप, मैसेंजर अउ निजी इनबॉक्स तको ला नइ छोड़त हें। कोनो अध्यक्ष वाले त कोनो माई पहुना वाले नेवता पाती ला घलो चिपकावत हें, भले पर साल के काबर नइ रहय। अउ तँय पतियाबे नइ कि कोनो कोनो त दूसर माई पहुना के नाम ला कटवा के अपन नाम जोड़वावत हें। संगी तँय अड़हा गतर के ! पदमश्री पदमश्री देखत हस, इहाँ आयोग के जुगाड़ बर अपन अपन गोटी फिट करे के चक्कर मा अपन अपन उपलब्धि ला नरी म लटका के जुगाड़ खोजत हें। एखर ओखर संग फोटू खिंचवा के पेपर म तको छपवावत हें। अरे बइहा, फेसबुक के हाट-बजार मा घलो किंजरे कर। तँय मोर लँगोटिया मितान आस। तोर मया के कदर करथंव फेर भइया तँय सम्मान अउ पद-कुर्सी के चक्कर ला नइ जानस। आने काम करइया ला आने बात बर सम्मान मिल जाथे। हमर बातचीत ला बिसौहा सुनत रहिस अउ कहिस - साहेब ! राजश्री लेना हे त जतिक चाही ले लेवव। मँय दुहूँ, कहाँ पदमश्री के चक्कर म अरझत हव। अरे ! इहाँ मंगनी म मया नइ मिले। तमंचा ह राजश्री के पाँच पाऊच अउ लिस फेर हमन अपन अपन घर डहर रेंग देन।

अरुण कुमार निगम

Tuesday 17 September 2019

आलेख - श्री पोखन लाल जायसवाल

लोक जीवन म पितर देवता के महत्तम

     छत्तीसगढ़ राज के चिन्हारी इहाँ के लोक संस्कृति, लोक संगीत,लोक मान्यता,परम्परा अउ रीत रिवाज ले हावय।लोक जीवन ह ए चिन्हारी मन ले आनंद के अनुभव करथे।दुख पीरा ल बिसराय म बड़ मददगार हे।छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया कहावत इहाँ के लोक जीवन के सरल सहज सुभाव ले जिए अउ सबो ला अपने माने,कोनो ल बिरान नइ जाने के फल आय।इही लोक जीवन म एक ठन पुरखौती रिवाज तइहा ले चले आत हे।जेन म पितर देवता मन ला मान दे जाथे। उनखर हमर ऊपर करे उपकार ला माने के परब होथे पितर पाख। जउन हा कुंवार महीना के अँधियारी पाख म एकम के दिन ले शुरू करे जाथे।अउ पंद्रह दिन ले सरलग माने जाथे ।एमा पितर देवता मन ला श्रद्धा भाव ले सुरता करत उनखर बताय बात सिखौना ला सुरता कर अपन जिनगी ला जिए के कोशिश भी करथन।
     पहिली दिन जेन ला पितर बइसकी कहे जाथे, अपन सबो पुरखा मन ल आहवान करे जाथे ,नेवता दे जाथे।घर के मुँहाटी मा चउक पूरके , फूल पान अउ लोटा मा पानी रख के स्वागत करे जाथे।लोक जीवन मा मान्यता हे कि हमर परलोकी ( स्वर्गवासी ) पुरखा मन जउन तिथि मा ए दुनिया ले जाय रहिथे , पितर पाख के उही तिथि अपन बाल बच्चा मन ला देखे अउ आशीर्वाद देहे बर आथे।चाहे जउन बात होय फेर एक ठन बड़का बात तो ए हावय कि इही बहाना हम अपन पुरखा मन के सुरता करथन।श्रद्धा भाव ले भर के उन ला शीष नवाथन ।उनखर उपकार ला मान , परोपकार करे के भाव अपन मन मा जगाथन।उनखर जिनगी जिए के अनुभव ला सुरता कर नवा रद्दा गढ़थन।नारी जाति के मान बढ़ाए जम्मो पुरखा माई मन ला एक दिन नवमी तिथि के पितर माने जाथे।कतको मन कहिथे पुरूष प्रधान समाज के व्यवस्था हरे।कुछ मन सोचथे महतारी तो सबो एक आय कोनो मा भेद नइ करे जा सकै।ते पाय के उन मन ला एक दिन पितर माने जाथे।श्रद्धा अउ समर्पण भाव ले नहा धो के अँजलि मा पानी भर पुरखा मन ला अर्पण करे जाथे।इही ह सराध के नाँव ले जाने जाथे।
      जिनगी मा हमर तीन ऋण / करजा माने गेहे, पितृ ऋण, देव ऋण अउ ऋषि ऋण।पितृ ऋण जेमा दाई ददा के हम ला जनम देहे, पालन पोषण करे,शिक्षा दीक्षा के बेवस्था करे अउ अपन मिहनत ले सिरजोय जमीन जायदाद देके बात आय।जेकर ले हम कभू उऋण नइ हो सकन।अइसन लोक जीवन मा मान्यता घलाव हे।ओकरे ले उऋण होय के आस्था अउ बिश्वास घला पितर परब हा आय।जउन मा तरिया मा स्नान करके तरोई पाना, कुश/दूबी ला हाथ मा ले उरिद दार , चाँउर, तिली,जवाँ ले रोज पुरखा मन ला सराध करे जाथे।जेखर ले पानी मा रहइया जीव जंतु अउ मछरी मन ला भोजन मिलथे। पुरखा मन ला सुरता कर पूजा करे के बाद घर मा बने रोटी पीठा ला छानही मा छीत कौआ ल भोग कराय जाथे।मान्यता हावय कि कौआ के भोग करे ले पुरखा मन तर जाथे।एकर दूसर पक्ष ए भी हे कि पुरखौती मा मिले जिनीस ल बाँट के खाय मा मन के शाँति घलाव हे।पारा परोस के हितवा मन ल भी भोजन कराय जाथे।कतको मन अपन माई पितर के दिन दान घला करथे।ए परम्परा के पाछू के पवित्र भावना भी हे कि हम साल के साल अपन पुरखा के सुरता कर प्रकृति के संग जुड़े राहन।जीव जंतु के संरक्षण करन।नदिया तरिया ला बचा के राखन।उन ला सुरता कर उनखर आशीष लेत राहन।
       आज के पीढ़ी के सोचे के तरीका बदले हे,कतको के मानना हे मरे के बाद कोनो जीव लहुट के नइ आवय,फेर ढकोसला काबर?आत्मा अजर अमर हे,तन माटी मा मिलगे हे। आत्मा नवा तन मा समा गे हे।
    कतको कहिथे जियत भर दाई ददा ला बूढ़त काल मा खाय पीये बर नइ पूछे , रहि रहि के सताए,ठठाए अउ मरे के बाद अइसन दिखावा काबर?
     पहिली वाला मन बर मोर कहिना हे कि शायद इही सोच के पुरखा तरिया मा चाँउर दार तिली देवय ।छानही मा भात साग संग रोटी पीठा छीत कौआ चाँटी मन ला खवाये के सोचे रहिन होही।का जानी का जनम ले होही।
       आज के हमर सोच अउ हमर दो तीन पहिली के पीढ़ी के अपन दाइ ददा के प्रति के सोच जाने के कोशिश करन।ओखर बाद तइहा के भी सोचन हो सकथे आज हम ला अपने ऊपर लाज आही।खुद शर्मिंदा हो बो। अउ यहू सोंचन कि बूढ़त काल मा दाई ददा के सेवा करत राहय ए भावना ले एकर शुरुआत होय होही।आज हम अपन दाई ददा के संग जइसन करबो, हमर लइका हमरो संग वइसने करही।यहू बात के सुरता राखन।
     आज हम जेन महापुरुष मन के जयंती अउ पुण्य तिथि मनाथन अउ उनखर बताय सतमार्ग मा चले के संकल्प लेथन।वहू एक तरह के पितर परब ले प्रभावित हे कहे जा सकत हे।जउन मा पूरा समाज श्रद्धा ले उनखर मार्ग के अनुसरण करथे।
       हम चाहे जेन मानन हम ला तय करना हे।फेर दूसर के श्रद्धा, मान्यता रीत - रिवाज अउआस्था ला चोट झन करन। उनखर बिश्वास के हाँसी झन झन उड़ावन।सम्मान करन ,तभे सम्मान पाबो।इही मोर मानना हे।

पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह पोस्ट कुसमी तहसील पलारी जि. बलौदाबाजार
छत्तीसगढ़

Monday 16 September 2019

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य - आशा देशमुख

पितर नेवता

आवव पितर हो आज तुंहर बर बरा सोंहारी तसमई बने हे ,का होइस पहिली तुमन ला खाय बर नइ मिलिस त आज खा लेवव ।जीयत के दुःख ला भुला जावव वो समे के बात अलगे रिहिस दाई ददा हो ,जवानी म तुंहर बहु के मूड़  तुमन ला देखत पिरावय अउ तियासी बासी अउ चार दिन के भरे पानी ला देवय पर अब बने होंगे हे,तुंहर बर फुलकसिया थारी लोटा अउ पीढ़ा मा रोजे आरुग पानी मढ़ाथे ।
अउ बोली भाखा हा घलो बने होगे हे ,डोकरी डोकरा ले अब सियान सियानिन कहे लग गेहे ।
अब गारी नइ देवय गा इँहा तो पंडित ल बुलाके भागवत भी करात हावन ।
अब्बड़ अकन दान पुन बर जिनिस बिसाय हावन।
पहिली के बात ला भुला जावव दाई ददा हो,
भले तुमन एक एक चीज बर तरसे हव पर आज वो चीज मन ला पूजा मा चढ़ावत हावन।
तुमन जीयत रहेव त तुमन ल देखइया आवय पहुना मन हा तुमन ला बीमार हे कहिके तब उचाट लागे ग ,पर अब हमन हा पहुना नेवते हावन तुंहर पितर मान बर ।अउ तुंहर चिरहा दसना ल फेंक के तुहंर बर फूल के बिछौना बनाय हावन ।
                   आ जावव दाई ददा हो ,मोर लइका हा ये पितर मान ला देख देख के खुश होवत हे । मोर ददा बढ़िया हे कहिके ।
आ जावव ।


आशा देशमुख
एनटीपीसी रामगुंडम
तेलंगाना


Saturday 14 September 2019



छत्तीसगढ़ मा छन्द के अलख जगैया - जनकवि कोदूराम "दलित"

पंडित सुंदरलाल शर्मा के बाद कोनो कवि हर छत्तीसगढ़ मा छन्द ला पुनर्स्थापित करिस हे त वो कवि कोदूराम "दलित" आय. दलित जी के जनम ग्राम टिकरी मा 05 मार्च 1910 के होइस. उनकर काव्य यात्रा सन् 1926 ले 1967 तक छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी मा बराबर अधिकार ले चलिस। 28 सितम्बर 1967 के दलित जी के निधन होइस। आज दलित जी के 51 वाँ पुण्यतिथि मा आवव उनकर छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी के छन्दबद्ध रचना ला छन्द विधान सहित जानीं।

दोहा छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 13 अउ 11 मात्रा मा यति होथे।

कोदूराम दलित जी के नीतिपरक दोहा देखव -

संगत सज्जन के करौ, सज्जन सूपा आय।
दाना दाना ला रखै, भूँसा देय उड़ाय।।

होही सब झन के भला, रहौ सबो झन एक।
झगड़ा-झाँसा छोड़ के, बनौ सबो झन नेक।।

दलित जी मूलतः हास्य व्यंग्य के कवि रहिन। उनकर दोहा मा समाज के आडम्बर ऊपर व्यंग्य देखव -

ढोंगी मन माला जपैं, लम्भा तिलक लगायँ।
हरिजन ला छीययँ नहीं, चिंगरी मछरी खायँ।।

बाहिर ले बेपारी मन आके सिधवा छत्तीसगढ़िया ऊपर राज करे लगिन। ये पीरा ला दलित जी व्यंग्य मा लिखिन हें -

फुटहा लोटा ला धरव, जावव दूसर गाँव।
बेपारी बनके उहाँ, सिप्पा अपन जमाँव।।

टिकरी गाँव के माटी मा जनमे कवि दलित के बचपना गाँवे मा बीतिस। गाँव मा हर चीज के अपन महत्व होथे। गोबर के सदुपयोग कइसे करे जाय, एला बतावत उनकर दोहा देखव -

गरुवा के गोबर बिनौ, घुरवा मा ले जाव।
खूब सड़ो के खेत बर, सुग्घर खाद बनाव।।

छत्तीसगढ़ धान के कटोरा आय। इहाँ के मनखे के मुख्य भोजन बासी आय। दलित जी भला बासी के गुनगान कइसे नइ करतिन -

बासी मा गुन गजब हे, येला सब मन खाव।
ठठिया भर पसिया पियव, तन ला पुष्ट बनाव।।

दलित जी किसान के बेटा रहिन। किसानी के अनुभव उनकर दोहा मा साफ दिखत हे -

बरखा कम या जासती, होवय जउने साल।
धान-पान होवय नहीं, पर जाथै अंकाल।।

जनकवि कोदूराम "दलित" आजादी के पहिली अउ बाद के भारत ला देखिन। वोमन हर नवा अविष्कार ला अपनाए के पक्षधर रहिन। ये प्रगतिशीलता कहे जाथे। कवि ला बदलाव के संग चलना पड़थे। देखव उनकर दोहा मा विज्ञान ला अपनाए बर कतिक सुग्घर संदेश हे -
आइस जुग विज्ञान के, सीख़ौ सब विज्ञान।
सुग्घर आविष्कार कर, करौ जगत कल्यान।।

सोरठा छन्द - ये दोहा के बिल्कुले उल्टा होथे। यहू दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों विषम चरण आपस मा तुकांत होथें अउ विषम चरण के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 11 अउ 13 मात्रा मा यति होथे।

बंदँव बारम्बार, विद्या देवी सरस्वती।
पूरन करहु हमार, ज्ञान यज्ञ मातेस्वरी।।

उल्लाला छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। विषम अउ सम चरण  या सम अउ सम चरण आपस मा तुकांत होथें अउ हर चरण दोहा के विषम चरण असन होथे। ये छन्द मा 13 अउ 13 मात्रा मा यति होथे -

खेलव मत कोन्हों जुआ, करव न धन बरबाद जी।
आय जुआ के खेलना, बहुत बड़े अपराध जी।।  

सरसी छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 16 अउ 11 मात्रा मा यति होथे।

दलित जी सन् 1931 मा दुरुग आइन अउ इहें बस गें। वोमन प्राथमिक शाला के गुरुजी रहिन। उनकर सरसी छन्द मा गुरुजी के पीरा घलो देखे बर मिलथे -

चिटिक प्राथमिक शिक्षक मन के, सुनलो भइया हाल।
महँगाई के मारे निच्चट , बने हवयँ कंगाल।।

गुरुजी मन के हाल बर सरकार ऊपर व्यंग्य देखव -

जउन देस मा गुरूजी मन ला, मिलथे कष्ट अपार।
कहै कबीरा तउन देस के , होथे बंठाढार।।

दलित जी अइसन गुरुजी मन ऊपर घलो व्यंग्य करिन जउन मन अपन दायित्व ला बने ढंग ले नइ निभावँय -

जउन गुरूजी मन लइका ला, अच्छा नहीं पढ़ायँ।
तउन गुरूजी अपन देस के, पक्का दुस्मन आयँ।।

रोला छन्द - चार पद, दू - दू पद मा तुकांत, 11 अउ 13 मात्रा मे यति या हर पद मा कुल 24 मात्रा।

दलित जी के ये रोला छन्द मा बात के महत्ता बताये गेहे -

जग के लोग तमाम, बात मा बस मा आवैं।
बाते मां  अड़हा - सुजान  मन चीन्हें जावैं।।
करो सम्हल के बात, बात मा झगरा बाढ़य।
बने-बुनाये काम,सबो ला  बात बिगाड़य।।

आज के जमाना मा बेटा-बहू मन अपन ददा दाई ला छोड़ के जावत हें। इही पीरा ला बतावत दलित जी के एक अउ रोला छन्द -

डउकी के बन जायँ, ददा - दाई नइ भावैं।
छोड़-छाँड़ के उन्हला, अलग पकावयँ-खावैं।।
धरम - करम सब भूल जायँ भकला मन भाई।
बनयँ ददा - दाई बर ये कपूत दुखदाई।।

छप्पय छन्द – एक रोला छन्द के बाद एक उल्लाला छन्द रखे ले छप्पय छन्द बनथे। ये छै पद के छन्द होथे।
गुरु के महत्ता बतावत दलित जी के छप्पय छन्द देखव -

गुरु हर आय महान, दान विद्या के देथे।
माता-पिता समान, शिष्य ला अपना लेथे।।
मानो गुरु के बात, भलाई गुरु हर करथे।
खूब सिखो के ज्ञान, बुराई गुरु हर हरथे।।
गुरु हरथे अज्ञान ला, गुरु करथे कल्यान जी।
गुरु के आदर नित करो,गुरु हर आय महान जी।।


चौपई छन्द - 15, 15 मात्रा वाले चार पद के छन्द चौपई छन्द कहे जाथे। चारों पद या दू-दू पद आपस मे तुकांत होथें।

धन धन रे न्यायी भगवान।कहाँ हवय जी आँखी कान।।
नइये ककरो सुरता-चेत।देव आस के भूत-परेत।।

एक्के भारत माँ के पूत।तब कइसे कुछ भइन अछूत।।
दिखगे समदरसीपन तोर।हवस निचट निरदई कठोर।।

तकली –

सूत कातबो भइया आव।अपन-अपन तकली ले लाव।।
बिल्कुल काम हे एकर दाम।पर आथय ये अड़बड़ काम।।

छोड़व आलस कातव सूत।भगिही बेकारी के भूत।।
घर में रहव कि बाहिर जाव।जिहाँ जाव तकली के जाव।।

उज्जर-उज्जर निकलय तार।जइसे रथय दूध के धार।।
भूलव मत बापू के बात।करव कताई तुम दिन-रात।।

चौपाई छन्द - ये 16, 16 मात्रा मे यति वाले चार पद के छन्द आय। एखर एक पद ला अर्द्धाली घलो कहे जाथे।
चौपाई बहुत लोकप्रिय छन्द आय। तुलसीदास के राम चरित मानस मा चौपाई के सब ले ज्यादा प्रयोग होय हे।
जनकवि कोदूराम "दलित" जी अपन कविता ला साकार घलो करत रहिन। उन प्राथमिक शाला के गुरुजी रहिन। अपन निजी प्रयास मा प्रौढ़ शिक्षा के अभियान चला के  आसपास के गाँव साँझ के जाके प्रौढ़ गाँव वाला मन ला पढ़ावत घलो रहिन। प्रौढ़ शिक्षा ऊपर उनकर एक चौपाई -

सुनव सुनव सब बहिनी भाई।तुम्हरो बर अब खुलिस पढ़ाई।।
गपसप मा झन समय गँवावव।सुरता करके इसकुल आवव।।

दू दू अक्छर के सीखे मा।दू दू अक्छर के लीखे मा।।
मूरख हर पंडित हो जाथे।नाम कमाथे आदर पाथे।।

ए ओ सखाराम के सारी।हगरू टूरा के महतारी।।
मंगलू के मँझली भौजाई।भुरुवा मंडल के फुलदाई।।

हमर परोसिन पुनिया नोनी।पारबती मनटोरा सोनी।।
सुनव जँवारा सुनव करौंदा।तुलसीदल गंगाजल गोंदा।।

अब तो आइस नवा जमाना।हो गै तुम्हरे राज खजाना।।
आज घलो अनपढ़ रहि जाहू।तो कइसे तुम राज चलाहू।।
(पढ़इया प्रौढ़ मन खातिर- ज्ञान यज्ञ के अंश)

पद्धरि छन्द - ये 16, 16 मात्रा मा यति वाले दू पद के छ्न्द आय। एखर शुरुवात मा द्विकल (दू मात्रा वाले शब्द) अउ अंत मा जगण (लघु, गुरु, लघु मात्रा वाले शब्द) आथे। हर दू पद आपस मा तुकांत होथे।
दलित जी अपन जागरण गीत मा पद्धरि छन्द के बड़ सुग्घर प्रयोग करिन हें -

झन सुत सँगवारी जाग जाग। अब तोर देश के खुलिस भाग।।
अडबड दिन मा होइस बिहान।सुबरन बिखेर के उइस भान।।
घनघोर घुप्प अँधियार हटिस। ले दे के पापिन रात कटिस।।
वन उपवन माँ आइस बहार। चारों कोती छाइस बहार।।
कुहकय कोइलिया डार डार।नाचय मयूर पाँखी पसार।।

मनहरण घनाक्षरी - कई किसम के घनाक्षरी छन्द होथे जेमा मनहरण घनाक्षरी सब ले ज्यादा प्रसिद्ध छन्द आय। येहर वार्णिक छन्द आय। 16, 15 वर्ण मा यति देके चार डाँड़ आपस मा तुकांत रखे ले मनहरण घनाक्षरी लिखे जाथे। चारों डाँड़ आपस मा तुकांत रहिथे। घनाक्षरी छन्द ला कवित्त घलो कहे जाथे। जनकवि कोदूराम "दलित" जी के ये प्रिय छन्द रहिस। उनकर बहुत अकन रचना मन घनाक्षरी छन्द मा हें।

कविता मा गाँव के नान नान चीज ला प्रयोग मा लाना उनकर विशेषता रहिस। ये मनहरण घनाक्षरी मा देखव अइसन अइसन चीज के बरतन हे जउन मन समे के संगेसंग नँदा गिन। चीज के नँदाए के दूसर प्रभाव भाजहा ऊपर पड़थे। चीज के संगेसंग ओकर नाम अउ शब्द मन चलन ले बाहिर होवत जाथें अउ शब्दकोश कम होवत जाथे। तेपाय के असली साहित्यकार मन अइसन चीज के नाम के प्रयोग अपन साहित्य मा करके ओला चलन मा जिन्दा राखथें। ये घनाक्षरी दलित जी अइसने प्रयास आय -

सूपा ह पसीने-फुने, चलनी चालत जाय
बहाना मूसर ढेंकी, मन कूटें धान-ला।
हँसिया पउले साग, बेलना बेलय रोटी
बहारी बहारे जाँता पिसय पिसान-ला।
फुँकनी फुँकत जाय, चिमटा ह टारे आगी
बहू रोज राँधे-गढ़े, सबो पकवान-ला।
चूल्हा बटलोही डुवा तेलाई तावा-मनन
मिलके तयार करें, खाये के समान-ला।।

जब अपन देश ऊपर कोनो दुश्मन देश हमला कर देथे तब कवि के कलम दुश्मन ला ललकारथे। सन् 1962 मा चीन हर हर देश ऊपर हमला करे रहिस। दलित जी के कलम के ललकार देखव -

चीनी आक्रमण के विरुद्ध (घनाक्षरी)

अरे बेसरम चीन, समझे रहेन तोला
परोसी के नता-मा, अपन बँद-भाई रे।
का जानी कि कपटी-कुटाली तैं ह एक दिन
डस देबे हम्मन ला, डोमी साँप साहीं रे ।
बघवा के संग जूझे, लगे कोल्हिया निपोर
दीखत हवे कि तोर आइगे हे आई रे।
लड़ाई लड़े के रोग, डाँटे हवै बहुँते तो
रहि ले-ले तोर हम, करबो दवाई रे ।।

अइसने सन् 1965 मा पाकिस्तान संग जुद्ध होइस।
वो बेरा मा कवि अपन देश के नौजवान मन मा अपन कविता के माध्यम ले जोश भरथें। दलित जी के आव्हान ला देखव ये घनाक्षरी मा -

चलो जी चलो जी मोर, भारत के वीर चलो
फन्दी पाकिस्तानी ला, हँकालो मार-मार के।
कच्छ के मेड़ों के सबो, चिखलही भुइयाँ ला
पाट डारो उन्हला, जीयत डार-डार के।
सम्हालो बन्दूक बम , तोप तलवार अब
आये है समय मातृ-भूमि के उद्धार के।
धन देके जन देके, लहू अउ सोन देके
करो खूब मदद अपन सरकार के।।

गाँव मे पले-बढ़े के कारण दलित जी अपन रचना मन मा गाँव के दृश्य ला सजीव कर देवत रहिन। उनकर चउमास नाम के कविता घनाक्षरी छन्द मा रचे गेहे। उहाँ के दू दृश्य मा छत्तीसगढ़ के गाँव के सजीव बरनन देखव -

बाढिन गजब माँछी बत्तर-कीरा "ओ" फांफा,
झिंगरुवा, किरवा, गेंगरुवा, अँसोढिया ।
पानी-मां मउज करें-मेचका भिंदोल घोंघी,
केंकरा केंछुवा जोंक मछरी अउ ढोंड़िया ।।
अँधियारी रतिहा मा अड़बड़ निकलयं,
बड़ बिखहर बिच्छी सांप-चरगोरिया ।
कनखजूरा-पताड़ा सतबूंदिया औ" गोेहे,
मुंह लेड़ी धूर नाँग, कँरायत कौड़िया ।।

भाजी टोरे बर खेत-खार "औ" बियारा जाये,
नान-नान टूरा-टूरी मन घर-घर के ।
केनी, मुसकेनी, गुंड़रु, चरोटा, पथरिया,
मंछरिया भाजी लायं ओली भर भर के ।
मछरी मारे ला जायं ढीमर-केंवट मन,
तरिया "औ" नदिया मां फाँदा धर-धर के ।
खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी धरे,
ढूँटी-मा भरत जाँए साफ कर-कर के ।।

जनकवि कोदूराम "दलित" के विषय वस्तु अपरम्पार रहिस। उनकर एक प्रसिद्ध रचना "तुलसी के मया मोह राई छाईं उड़गे" मा गोस्वामी तुलसी दास के जनम ले लेके राम चरित मानस गढ़े तक के कहिनी घनाक्षरी छन्द मा रचे गेहे। वो रचना के एक दृश्य देखव कि छत्तीसगढ़ के परिवेश कइसे समाए हे -

एक दिन आगे तुलसी के सग सारा टूरा,
ठेठरी अउ खुरमी ला गठरी मा धर के।
पहुँचिस बपुरा ह हँफरत-हँफरत,
मँझनी-मँझनिया रेंगत थक मर के।
खाइस पीइस लाल गोंदली के संग भाजी,
फेर ओह कहिस गजब पाँव पर के।
रतनू दीदी ला पठो देते मोर संग भाँटो,
थोरिक हे काम ये दे तीजा-पोरा भर के।।

कोदूराम "दलित" जी  आठ सौ ले ज्यादा कविता लिखिन हें फेर अपन जीवन काल मा एके किताब छपवा पाइन - "सियानी गोठ"। ये किताब कुण्डलिया छन्द के संग्रह हे। कवि गिरिधर कविराय, कुण्डलिया छन्द के जनक कहे जाथें। उनकर परम्परा ला दलित जी, छत्तीसगढ़ मा पुनर्स्थापित करिन हें। साहित्य जगत मा कोदूराम "दलित" जी ला छत्तीसगढ़ के गिरिधर कविराय घलो कहे जाथे। गिरिधर कविराय के जम्मो कुण्डलिया छन्द नीतिपरक हें फेर दलित जी के कुण्डलिया छन्द मा विविधता देखे बर मिलथे। नीतिपरक के अलावा उनकर कुण्डलिया छन्द मा  विकास खातिर जरूरी विज्ञान, बिजली, सिनेमा, अणु, राकेट, होटल-बासा जइसन विषय हें ।

आजादी के तुरत बाद एक नवा समाज गढ़े बर शासकीय योजना के प्रचार-प्रसार जइसे पंचशील, सहकारिता, परिवार नियोजन, अल्प बचत योजना, पाँच साला योजना, वृक्षारोपण, पंचायती राज, पोथी, पेपर जइसे सामयिक विषय घलो हे। टेटका, फुटहा लोटा, सिनेमा, ढोंगी मा व्यंग्य हे त खतरा साइकिल, कायर, खटला कुण्डलिया छन्द मा हास्य घलो हे। आवव कोदूराम "दलित" जी के कुण्डलिया छन्द के अलग-अलग रंग देखव -

नीतिपरक कुण्डलिया - राख

नष्ट करो झन राख –ला, राख काम के आय।
परय खेत-मां राख हर , गजब अन्न उपजाय।।
गजब  अन्न उपजाय, राख मां  फूँको-झारो।
राखे-मां  कपड़ा – बरतन  उज्जर कर डारो।।
राख  चुपरथे  तन –मां, साधु,संत, जोगी मन।
राख  दवाई आय, राख –ला नष्ट करो झन।।

सम सामयिक  - पेपर

पेपर मन –मां रोज तुम, समाचार छपवाव।
पत्रकार संसार ला, मारग सुघर दिखाव।।
मारग सुघर दिखाव, अउर जन-प्रिय हो जाओ।
स्वारथ - बर पेपर-ला, झन पिस्तौल बनाओ।।
पेपर मन से जागृति आ जावय जन-जन मा।
सुग्घर समाचार छपना चाही पेपर-मा।।

सरकारी योजना -

पँचसाला योजना -

पँचसाला हर योजना, होइन सफल हमार।
बाँध कारखाना सड़क, बनवाइस सरकार।।
बनवाइस सरकार, दिहिन सहयोग सजाबो झन।
अस्पताल बिजली घर इसकुल घलो गइन बन।।
देख हमार प्रगति अचरज, होइस दुनिया ला।
होइन सफल हमार, योजना मन पँचसाला।।

जन जागरण - अल्प बचत योजना

अल्प बचत के योजना, रुपया जमा कराव।
सौ के बारे साल मा, पौने दू सौ पाव।।
पौने दू सौ पाव, आयकर पड़ै न देना।
अपन बाल बच्चा के सेर बचा तुम लेना।।
दिही काम के बेरा मा, ठउँका  आफत के।
बनिस योजना तुम्हरे खातिर अल्प बचत के।।

आधुनिक विचार - विज्ञान

आइस जुग विज्ञान के , सीखो  सब विज्ञान।
सुग्घर आविस्कार कर ,  करो जगत कल्यान।।
करो जगत कल्यान, असीस सबो झिन के लो।
तुम्हू जियो अउ दूसर मन ला घलो जियन दो।।
ऋषि मन के विज्ञान , सबो ला सुखी बनाइस।
सीखो सब  विज्ञान,  येकरे जुग अब आइस।।

व्यंग्य -  टेटका -

मुड़ी हलावय टेटका, अपन टेटकी संग।
जइसन देखय समय ला, तइसन बदलिन रंग।।
तइसन बदलिन रंग, बचाय अपन वो चोला।
लिलय  गटागट जतका, किरवा पाय सबोला।।
भरय पेट तब पान-पतेरा-मां छिप जावय।
ककरो जावय जीव, टेटका मुड़ी हलावय।।

हास्य -  खटारा साइकिल
अरे खटारा साइकिल, निच्चट गए बुढ़ाय।
बेचे बर ले जाव तो, कोन्हों नहीं बिसाय।।
कोन्हों नहीं बिसाय, खियागें सब पुरजा मन।
सुधरइया मन घलो हार खागें सब्बो झन।।
लगिस जंग अउ उड़िस रंग, सिकुड़िस तन सारा।
पुरगे मूँड़ा तोर, साइकिल अरे खटारा।।

अउ आखिर मा दलित जी के ये कुण्डलिया छन्द, हिन्दी भाषा मा -
नाम -

रह जाना है नाम ही, इस दुनिया में यार।
अतः सभी का कर भला, है इसमें ही सार।।
है इसमें ही सार, यार तू तज के स्वारथ।
अमर रहेगा नाम, किया कर नित परमारथ।।
काया रूपी महल, एक दिन ढह जाना है।
किन्तु सुनाम सदा दुनिया में रह जाना है।।

छत्तीसगढ़ के जनकवि कोदूराम "दलित" जी अपन पहिली कुण्डलिया छन्द संग्रह "सियानी गोठ" (प्रकाशन वर्ष - 1967)मा अपन भूमिका मा लिखे रहिन- "ये बोली (छत्तीसगढ़ी) मा खास करके छन्द बद्ध कविता के अभाव असन हवय, इहाँ के कवि-मन ला चाही कि उन ये अभाव के पूर्ति करें।स्थायी छन्द लिखे डहर जासती ध्यान देवें।ये बोली पूर्वी हिन्दी कहे जाथे। येहर राष्ट्र-भाषा हिन्दी ला अड़बड़ सहयोग दे सकथे। यही सोच के महूँ हर ये बोली मा रचना करे लगे हँव"। उंकर निधन 28 सितम्बर 1967 मा होइस, उंकर बाद छत्तीसगढ़ी मा छन्दबद्ध रचना लिखना लगभग बंद होगे। सन् 2015 के दलित जी के बेटा अरुण कुमार निगम हर छत्तीसगढ़ी मा विधान सहित 50 किसम के छन्द के एक संग्रह "छन्द के छ" प्रकाशित करवा के दलित जी के सपना ला पूरा करिन। उन मन आजकाल छन्द के छ नाम के ऑनलाइन कक्षा मा छत्तीसगढ़ के नवा कवि मन ला छन्द के ज्ञान देवत हें जेमा करीब 40 नवा कवि मन छत्तीसगढ़ी भाषा मा कई किसम के छन्द लिखत हें अउ अपन भाषा ला पोठ करत हें। इन नवा कवि मन के छन्द इंटरनेट मा छन्द खजाना नाम के ब्लॉग मा संकलित होवत हें जेला दुनिया के बीसों देश मा रसिक मन पढ़त हें।

आलेख - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़

Friday 13 September 2019

आलेख - श्री चोवाराम "बादल"



"सम्मान के बोजहा"

सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलख कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु,जसु अपजसु विधि हाथ।।
         रामचरित मानस के ए दोहा हा बहुत बड़े जीवन दर्शन ए, अचूक राम बाण मन्त्र आय।एखर सीधा सीधा अर्थ तो इही हे कि--राजा दशरथ के मरे अउ क्रियाकर्म होये के बाद ,आगू काय करना हे तेला सोंचे बर सभा सकलइच तब रोवत गावत ,बहुतेच दुखी अउ उदास-निराश भरत जी ला अबड़ेच दुखी मन  ले गुरु वशिष्ठ जी हा समझावत कहिन--बेटा भरत ! दुखी झन हो।अपन ला दोषी झन मान।  नफा-नुकसान ,जीना-मरना,मान-अपमान उपर मनखे के जोर नइ चलय। समय बलवान होथे। ए सब के देवइया,रचइया भगवान होथे।
            फेर ए दोहा के  अतके अर्थ बस नइये ,एमा गूढ़ भावार्थ समाये हे। ए काहत हे कि-मनखे के जिनगी मा सुख-दुख ,लाभ-हानि, जस-अपजस  के आना -जाना,धूप-छाँव कस लगे रथे। ए हा जम्मों घोर दुख मा परे, बिपति के फांदा मा फँसे मन ला ढाढ़स बँधावत ,धीर रखे के सीख देवत काहत हे - समय गुजरही तहाँ ले सब ठीक हो जही। दुख के दिन बीत जही। जेन भगवान अपन बिधान के चलती दुख देहे ,उही हा सुख घलो देही।कहे गे हे-घुरूवा के दिन घलो बहुरथे।
     कतका बड़े गुनान बात भरे हे एमा। सच मा जे मनखे हा दुख मा धीर नइ धरय  वो हा टूटे माला सहीं बिखर जथे, छरिया जथे। कतको झन तो भगवान के दे वरदान ए मानुस तन ला बुजदिल बनके, आत्महत्या करके नष्ट तको कर देथें जबकि ओला मन ला सम्हाल के दुख ला सहना चाही।
      ओइसने मान-अपमान के बात घलो हे। ए मृत्यु लोक मा भला अइसे कोन हे जेला कभू मान नइ मिले होही या अपमान के अनुभव नइ करे होही? सब ला मान ,अपमान मिलत रइथे।इहाँ तक बड़े- बड़े सन्त-ज्ञानी, साधु-महात्मा, अवतार ,भगवान तको मन के जीवन मा  उज्जर सम्मान के संग अपमान के करिया केंरवछ  लगे दिखते। चंदा मा दाग हे त सुरुज ला घलो गरहन घेर लेथे, सूतक लग जथे। जेन आदमी अपमान ला हाँस के नइ टाल सकय ,धीर नइ धर सकय,वो हा बहुत अकन मानसिक बीमारी के चपेट मा आ जथे। ओला इरखा, बैर, अवसाद, चिड़चिड़ापन, मनखे मन के बीच बइठइ ले डर , ककरो संग नइ गोठियाना, चुगरी-चारी करना,घर खुसरा बन जाना-----आदि अनेक प्रकार के बीमारी धरे के पूरा सम्भावना रइथे। अपमान के बीमारी ले बाँचे के सुग्घर उपाय तो इही हे कि हमला हमेशा धियान देना चाही कि अपमान होय के मौकैच झन आवय। फेर ए हा कोनो न कोनो रूप मा आ जथे। जब आ जथे त झेल लेना चाही।अउ समझ लेना चाही कि ए दुनिया मा भूँकइया कुकुर मन के कमी नइये। कुत्ता भूँके हजार, हाथी चले बाजार। बादर मा थूकइया ऊपर ओकरे थूंक हा गिर जथे। अपमान होगे, अपमान होगे कहिके मूड धरे सोंचत नइ बइठ के ,अपन अच्छा काम ला करते रहना चाही।
             अपमान ले जादा खतरनाक सम्मान हा होथे। एखर मतलब ए नइये कि ककरो सम्मान नइ होना चाही, ककरो सम्मान नइ करना चाही या कोनो ला सम्मान नइ मिलना चाही। सब होना चाही। सम्मान भला कोन ला अच्छा नइ लागय? हम दूसर ला सम्मान देबो त हमू ला मान मिलही।ताली दूनों हाथ ले बाजथे। संसार मा अच्छा मनखे के , प्रतिभा के, गुन के सम्मान नइ होही त अच्छा काम करे के, अपन कर्तब्य ला डँट के निभाये बर पंदोली, प्रेरणा कइसे मिलही?
    सँगवारी हो! मैं तो ए कहना चाहत हँव कि जब-जब हमला कोनो सम्मान मिलय तब-तब भारी सावधान रहना चाही। सम्मान के संग फूल के कुप्पा होये के बीमारी धरे के चौउदा आना सम्भावना रहिथे। कहूँ ए रोग संचरगे त फूटत देरी नइ लागय। सम्मान के खातू-माटी अउ वाह-वाह के पलोये पानी मा हिरदे भीतर घमंड के विष बेल जामे अउ घपटे के पूरा खतरा रहिथे। ए कहूँ जाम गे त दुर्गति होना तय हे।  सम्मान के संग एक ठन भयानक ' कलकलहा ' रोग घलो कई झन ला धरे दिखथे। ए रोग मा 'सम्मान के भूख' बाढ़ जथे।पेट भरबे नइ करय। ए रोगी हा जेती पाथे तेती मुँह मारते रथे। ओला छिन भर चैन नइ राहय। ए ला कहूँ सम्मान नइ मिलय त छीना झपटी अउ लड़ाई झगरा मा तको उतर आथे। एकर हालत सीलनिधि राजा के स्वयम्बर मा एती-वोती कूदत नारद मुनि कस हो जथे। सम्मान हा अइसे विटामिन ए जेला जादा खाये 'उल्टा अंधरौटी 'रोग धर लेथे । ए बेचारा बिमरहा ला दुनिया मा खुद ले श्रेष्ठ अउ कोनो दिखबे नइ करय। जेन मेर रइही, ऊँट असन घेंच ला टाँगेच रहिथे। हाँ एक बात अउ हे जेन मनखे ला सम्मान नइ पचय ओला 'लपलपहा अउ चपचपहा ' रोग संघरा धर लेथे। लपलपहा रोग के चिनहा अइसे हे कि हर जगा लपर लपर अबड़े गोठियाते रहना, कोनो दूसर के नइ सुनना अउ अपन श्री मुख से मैं, मैं, मैं---नरियाते रहना। चपचपहा रोग मा रोगी हा चिपकू हो जथे।ओ कहूँ सुन डरिच कि फलाना जगा ढेकाना आयोजन होवत हे जेमा देकर- ओकर सम्मान करे जाही त आप दू सौ परसेंट सहीं मानव ओहा आयोजक करा जाके चिपकबे करही अउ कइसनो करके अपन सम्मान के जुगाड़ मढ़ा के रइही।ए रोगी बड़ा टेलेंटेड जुगाड़ू होथे।
              सँगवारी हो सम्मान पाना सहज हो सकथे फेर वो सम्मान ला बनाये रखना बहुतेच कठिन बूता आय। सम्मान ला बहुत सहजभाव अउ बिना अहंकार के स्वीकारना चाही, बिना मतलब के सम्मान के पीछू नइ परना चाही। विधि के लिखना मा सम्मान मिलना लिखाये हे त मिल के रही। विधाता घलो हा मनखे के जइसने करम होही ओइसने भाग ला लिखत होही।
    सम्मान हा अपन संग बहुत अकन बन्धन घलो संग मा धरके आथे। खासकर कोनो ला ओकर नैतिक पक्ष ला, इंसानियत ला देख के, उत्तम कला ला देख के, उत्तम साहित्य सृजन ला देख के, देशभक्ति ला देख के सम्मान मिले हे त ओला अउ जादा सम्हल के जिंदगी बिताये ला परथे। ए हा खांड़ा के धार मा चलना आय। उज्जर कुरता मा छोटकुन करिया दाग हा घलो टकटक ले दिखे ला धर लेथे।ए जमाना मा शायद कोनो आन मा दाग खोजइया मन जादा हे, भले खुद वो चिखला मा रात-दिन सनाये रइही।
     सँगवारी हो! सम्मान ला यदि सहज भाव ले नइ ले जाय तब एहा भार स्वरूप हो जथे। गँजा -गँजा के घातेच गरू बोजहा हो जथे जेमा लदका के जिनगी के सुख-शांति हा मर जथे।

      चोवा राम 'बादल '
           छंद साधक
       हथबन्द (छ ग)

Monday 9 September 2019

आलेख - श्री महेंद्र देवांगन "माटी"

पानी के बचत करव

पानी हा जिनगी के अधार हरे। बिना पानी के कोनो जीव जन्तु अउ पेड़ पौधा नइ रहि सके। पानी हे त सब हे, अउ पानी नइहे त कुछु नइहे। ये संसार ह बिन पानी के नइ चल सकय।
पानी बिना जग अंधियार हे ।
एकरे पाय रहिम कवि जी कहे हे ----
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये ना उबरे, मोती मानुष चून।।

आज के जमाना में सबले जादा महत्व होगे हे पानी के बचत करना । पहिली के जमाना में पानी के जादा किल्लत नइ रिहिसे। नदियाँ, तरिया अऊ कुँवा मन में लबालब पानी भराय राहे। जम्मो मनखे मन तरिया, नदियां में जाये अऊ कूद-कूद के, दफोड़ - दफोड़ के डूबक - डूबक के नहा के आये।लइका मन ह घंटा भर ले तँउरत राहे अउ पानी भीतरी छू छुवऊला तक खेले।
एकर ले शरीर ल फायदा तक होवय ।
एक तो शरीर के ब्यायाम हो जाये अऊ दूसर जेला  पानी में तंउरे बर आ जाथे ओहा पानी में कभू नइ बूड़े।

आज तरिया नदियाँ में नहाय बर छूट गेहे तेकरे सेती आदमी मन तँउरे ल नइ सीखे हे। अउ ओकरे सेती कतको आदमी मन पानी में बूड़ के मर जाथे।
नल के नवहइया मन कहां ले तँउरे ल सीखही ? अउ कभू कभार सँऊख से टोटा भर पानी में चल देथे त उबुक  चुबुक हो जाथे।

आज पानी ह दिनो दिन अटात जावत हे जे नदियाँ, तरिया, कुँवा, बावली मन लबालब भराय राहय आज सुखावत जात हे।
गांव मन मे हेण्डपम्प लगे हे ओला टेड़त-टेड़त थक जबे त एक मग्गा पानी निकलथे।
नल में बिहनिया ले संझा तक लाइन लगे रहिथे। पानी के नाम से रोज लडई झगरा होवत हे।

ये सब ह हमरे गलती के कारण हरे। गांव गाँव अउ खेत - खार सब जगा आदमी मन  बोर खोदा डरे हे। धरती दाई के छाती ल जगा जगा छेदा कर डरे हे। पेड़ पौधा  ल रात दिन काटत जात हे। बड़े बड़े कारखाना लगा के पर्यावरण  ल प्रदूषित  करत जात हे। एकरे सब परिनाम आय,पानी ह दिनो दिन कम होवत जात हे।

हमर देश ल नदियाँ के देश कहे जाथे।इंहा गंगा, जमुना, कृष्णा, कावेरी, शिवनाथ, महानदी जइसे कतको बड़े बड़े नदियाँ हे। फेर बड़े दुख के बात हरे के अइसन बड़े बड़े नदियाँ के राहत ले बोतल में पानी ल खरीद के पीये बर परत हे। कोनो ह सोचे नइ रिहिसे के हमरो देश में पानी ल खरीद के पीये बर परही। फेर आज का से का नइ होगे।

आज हमला पानी के बचत करना बहुत जरूरी होगे हे। नही ते आने वाला समय ह अउ भयंकर हो जाही। गांव शहर में देखे बर मिलथे के कतको नल में टोटी नइ राहय।  पानी  ह भक्कम बोहात रहिथे।
त जनता मन ला भी चाहिए कि टोटी लगा के पानी के बरबादी ल रोके ।

जतके पानी के बचत करबो ओतके हमला फायदा हेअऊ आने वाला पीढ़ी ह सुख से रइही ।
ओकरे पाय कहे हे---- जल ही जीवन हे।
पानी जिनगी के अधार ए।
पानी बिना जग अंधियार हे ।

लेखक
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया  (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
मो.- 8602407353