Sunday 29 September 2019

मंगनी म मांगे मया नइ मिलै - व्यंग्य - अरुण कुमार निगम

मंगनी म मांगे मया नइ मिलै रे मंगनी म……

दउँड़त-भागत बिसौहा पान ठेला म तमंचा मिलगे। ये चलाए वाला तमंचा नोहय, मोर सँगवारी के बढ़उवल नाम आय। असली नाम त बने असन हे, फेर में म का रखे हे ? मोर मितान तमंचा ह राजश्री के पाऊच फाँकत रहिस। मोला देख के कहिस - कहाँ उत्ताधुर्रा जावत रहे ? आ...पान खा ले। मँय कहेंव - तुहिच्च ल खोजत रहेंव। पदमश्री बर अप्लाई कर दे, ऑनलाइन फारम भरे के चालू होगे हे, इही बात ला बताए बर तोला खोजत रहेंव। तमंचा ठठा के हाँसिस अउ कहिस - पान सिगरेट नइ चले त कोनो बात नइये, पद्मश्री-वदमश्री के बात झन कर, सोझबाय राजश्री खा ले। मँय कहेंव - तमंचा भाई, तँय छत्तीसगढ़ के अतका बड़े साहित्यकार आस, कतको किताब छप गेहे, बड़े बड़े सम्मान पाए हस। तोला पद्मश्री बर फारम भरना चाही। तमंचा कहिस - मांग - तांग के मिलिस तेन कइसन सम्मान ? देख भाई ! महूँ जानत हँव, अभी सीजन चलत हे। जइसे पानी-बादर के आरो पाके मेचका अउ भिन्दोल मन बाहिर आ जाथें वइसने फेसबुक अउ वाट्सएप मा टरर-टरर चलत हे। बेंगुआ मन घलो राग अलापत हें। साल भर के सुते कुंभकरण मन मार कोट-टाई मार के अपन सम्मान वाले फोटू ल घेरीबेरी चेंपत हें। फेसबुक म मन नइ माड़िस त वाट्सएप ग्रूप, मैसेंजर अउ निजी इनबॉक्स तको ला नइ छोड़त हें। कोनो अध्यक्ष वाले त कोनो माई पहुना वाले नेवता पाती ला घलो चिपकावत हें, भले पर साल के काबर नइ रहय। अउ तँय पतियाबे नइ कि कोनो कोनो त दूसर माई पहुना के नाम ला कटवा के अपन नाम जोड़वावत हें। संगी तँय अड़हा गतर के ! पदमश्री पदमश्री देखत हस, इहाँ आयोग के जुगाड़ बर अपन अपन गोटी फिट करे के चक्कर मा अपन अपन उपलब्धि ला नरी म लटका के जुगाड़ खोजत हें। एखर ओखर संग फोटू खिंचवा के पेपर म तको छपवावत हें। अरे बइहा, फेसबुक के हाट-बजार मा घलो किंजरे कर। तँय मोर लँगोटिया मितान आस। तोर मया के कदर करथंव फेर भइया तँय सम्मान अउ पद-कुर्सी के चक्कर ला नइ जानस। आने काम करइया ला आने बात बर सम्मान मिल जाथे। हमर बातचीत ला बिसौहा सुनत रहिस अउ कहिस - साहेब ! राजश्री लेना हे त जतिक चाही ले लेवव। मँय दुहूँ, कहाँ पदमश्री के चक्कर म अरझत हव। अरे ! इहाँ मंगनी म मया नइ मिले। तमंचा ह राजश्री के पाँच पाऊच अउ लिस फेर हमन अपन अपन घर डहर रेंग देन।

अरुण कुमार निगम

15 comments:

  1. बहुत सुघ्घर सटिक व्यंग्य (गुरूजी)आपके सृजन ला सादर नमन् गुरू जी

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  2. सुग्घर व्यंग्य गुरुदेव। प्रणाम।।

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  3. उत्कृष्ट व्यंग गुरूदेव। प्रणाम।

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  4. दूनों झन भरौ अरुण जी! मिल जतिस तव मजा आ जातिस, हमूँ भरना चाहत हन, फेर हमला भरे बर नहीं आवय,तेकर सेती चुप चाप बैठे हन, का करबो?

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  5. बहुतेच सुग्घर रचना आदरणीय

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  6. वाह वाह सटीक व्यंग्य हे गुरुदेव।सादर नमन।

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  7. अब्बड़ सुग्घर व्यंग्य गुरुदेव सादर प्रणाम ।।

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  8. बहुतेच सुग्घर गद्य गुरुदेव,अनंत नमन👌👍💐💐💐

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  9. अति सुन्दर गुरुदेव जी सादर नमन

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  10. जबरदस्त व्यंग्य भैया के...एकदम सटीक
    सादर प्रणाम भैया...
    🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹

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  11. वाह लाजवाब व्यंग हे गुरुदेव सादर नमन।

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  12. एकदम जोरदारहा व्यंग हावय गुरुददा।

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  13. चाटुकारिता के इहाँ,चलत हवय अब राज।
    जे जितना ही कर सकै,मुड़ मा ओकर ताज।।

    करारा व्यंग्य गुरुदेव।

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  14. सुग्घर व्यंग्य, गुरुदेव ।सादर नमन ।

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