Saturday 14 September 2019



छत्तीसगढ़ मा छन्द के अलख जगैया - जनकवि कोदूराम "दलित"

पंडित सुंदरलाल शर्मा के बाद कोनो कवि हर छत्तीसगढ़ मा छन्द ला पुनर्स्थापित करिस हे त वो कवि कोदूराम "दलित" आय. दलित जी के जनम ग्राम टिकरी मा 05 मार्च 1910 के होइस. उनकर काव्य यात्रा सन् 1926 ले 1967 तक छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी मा बराबर अधिकार ले चलिस। 28 सितम्बर 1967 के दलित जी के निधन होइस। आज दलित जी के 51 वाँ पुण्यतिथि मा आवव उनकर छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी के छन्दबद्ध रचना ला छन्द विधान सहित जानीं।

दोहा छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 13 अउ 11 मात्रा मा यति होथे।

कोदूराम दलित जी के नीतिपरक दोहा देखव -

संगत सज्जन के करौ, सज्जन सूपा आय।
दाना दाना ला रखै, भूँसा देय उड़ाय।।

होही सब झन के भला, रहौ सबो झन एक।
झगड़ा-झाँसा छोड़ के, बनौ सबो झन नेक।।

दलित जी मूलतः हास्य व्यंग्य के कवि रहिन। उनकर दोहा मा समाज के आडम्बर ऊपर व्यंग्य देखव -

ढोंगी मन माला जपैं, लम्भा तिलक लगायँ।
हरिजन ला छीययँ नहीं, चिंगरी मछरी खायँ।।

बाहिर ले बेपारी मन आके सिधवा छत्तीसगढ़िया ऊपर राज करे लगिन। ये पीरा ला दलित जी व्यंग्य मा लिखिन हें -

फुटहा लोटा ला धरव, जावव दूसर गाँव।
बेपारी बनके उहाँ, सिप्पा अपन जमाँव।।

टिकरी गाँव के माटी मा जनमे कवि दलित के बचपना गाँवे मा बीतिस। गाँव मा हर चीज के अपन महत्व होथे। गोबर के सदुपयोग कइसे करे जाय, एला बतावत उनकर दोहा देखव -

गरुवा के गोबर बिनौ, घुरवा मा ले जाव।
खूब सड़ो के खेत बर, सुग्घर खाद बनाव।।

छत्तीसगढ़ धान के कटोरा आय। इहाँ के मनखे के मुख्य भोजन बासी आय। दलित जी भला बासी के गुनगान कइसे नइ करतिन -

बासी मा गुन गजब हे, येला सब मन खाव।
ठठिया भर पसिया पियव, तन ला पुष्ट बनाव।।

दलित जी किसान के बेटा रहिन। किसानी के अनुभव उनकर दोहा मा साफ दिखत हे -

बरखा कम या जासती, होवय जउने साल।
धान-पान होवय नहीं, पर जाथै अंकाल।।

जनकवि कोदूराम "दलित" आजादी के पहिली अउ बाद के भारत ला देखिन। वोमन हर नवा अविष्कार ला अपनाए के पक्षधर रहिन। ये प्रगतिशीलता कहे जाथे। कवि ला बदलाव के संग चलना पड़थे। देखव उनकर दोहा मा विज्ञान ला अपनाए बर कतिक सुग्घर संदेश हे -
आइस जुग विज्ञान के, सीख़ौ सब विज्ञान।
सुग्घर आविष्कार कर, करौ जगत कल्यान।।

सोरठा छन्द - ये दोहा के बिल्कुले उल्टा होथे। यहू दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों विषम चरण आपस मा तुकांत होथें अउ विषम चरण के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 11 अउ 13 मात्रा मा यति होथे।

बंदँव बारम्बार, विद्या देवी सरस्वती।
पूरन करहु हमार, ज्ञान यज्ञ मातेस्वरी।।

उल्लाला छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। विषम अउ सम चरण  या सम अउ सम चरण आपस मा तुकांत होथें अउ हर चरण दोहा के विषम चरण असन होथे। ये छन्द मा 13 अउ 13 मात्रा मा यति होथे -

खेलव मत कोन्हों जुआ, करव न धन बरबाद जी।
आय जुआ के खेलना, बहुत बड़े अपराध जी।।  

सरसी छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 16 अउ 11 मात्रा मा यति होथे।

दलित जी सन् 1931 मा दुरुग आइन अउ इहें बस गें। वोमन प्राथमिक शाला के गुरुजी रहिन। उनकर सरसी छन्द मा गुरुजी के पीरा घलो देखे बर मिलथे -

चिटिक प्राथमिक शिक्षक मन के, सुनलो भइया हाल।
महँगाई के मारे निच्चट , बने हवयँ कंगाल।।

गुरुजी मन के हाल बर सरकार ऊपर व्यंग्य देखव -

जउन देस मा गुरूजी मन ला, मिलथे कष्ट अपार।
कहै कबीरा तउन देस के , होथे बंठाढार।।

दलित जी अइसन गुरुजी मन ऊपर घलो व्यंग्य करिन जउन मन अपन दायित्व ला बने ढंग ले नइ निभावँय -

जउन गुरूजी मन लइका ला, अच्छा नहीं पढ़ायँ।
तउन गुरूजी अपन देस के, पक्का दुस्मन आयँ।।

रोला छन्द - चार पद, दू - दू पद मा तुकांत, 11 अउ 13 मात्रा मे यति या हर पद मा कुल 24 मात्रा।

दलित जी के ये रोला छन्द मा बात के महत्ता बताये गेहे -

जग के लोग तमाम, बात मा बस मा आवैं।
बाते मां  अड़हा - सुजान  मन चीन्हें जावैं।।
करो सम्हल के बात, बात मा झगरा बाढ़य।
बने-बुनाये काम,सबो ला  बात बिगाड़य।।

आज के जमाना मा बेटा-बहू मन अपन ददा दाई ला छोड़ के जावत हें। इही पीरा ला बतावत दलित जी के एक अउ रोला छन्द -

डउकी के बन जायँ, ददा - दाई नइ भावैं।
छोड़-छाँड़ के उन्हला, अलग पकावयँ-खावैं।।
धरम - करम सब भूल जायँ भकला मन भाई।
बनयँ ददा - दाई बर ये कपूत दुखदाई।।

छप्पय छन्द – एक रोला छन्द के बाद एक उल्लाला छन्द रखे ले छप्पय छन्द बनथे। ये छै पद के छन्द होथे।
गुरु के महत्ता बतावत दलित जी के छप्पय छन्द देखव -

गुरु हर आय महान, दान विद्या के देथे।
माता-पिता समान, शिष्य ला अपना लेथे।।
मानो गुरु के बात, भलाई गुरु हर करथे।
खूब सिखो के ज्ञान, बुराई गुरु हर हरथे।।
गुरु हरथे अज्ञान ला, गुरु करथे कल्यान जी।
गुरु के आदर नित करो,गुरु हर आय महान जी।।


चौपई छन्द - 15, 15 मात्रा वाले चार पद के छन्द चौपई छन्द कहे जाथे। चारों पद या दू-दू पद आपस मे तुकांत होथें।

धन धन रे न्यायी भगवान।कहाँ हवय जी आँखी कान।।
नइये ककरो सुरता-चेत।देव आस के भूत-परेत।।

एक्के भारत माँ के पूत।तब कइसे कुछ भइन अछूत।।
दिखगे समदरसीपन तोर।हवस निचट निरदई कठोर।।

तकली –

सूत कातबो भइया आव।अपन-अपन तकली ले लाव।।
बिल्कुल काम हे एकर दाम।पर आथय ये अड़बड़ काम।।

छोड़व आलस कातव सूत।भगिही बेकारी के भूत।।
घर में रहव कि बाहिर जाव।जिहाँ जाव तकली के जाव।।

उज्जर-उज्जर निकलय तार।जइसे रथय दूध के धार।।
भूलव मत बापू के बात।करव कताई तुम दिन-रात।।

चौपाई छन्द - ये 16, 16 मात्रा मे यति वाले चार पद के छन्द आय। एखर एक पद ला अर्द्धाली घलो कहे जाथे।
चौपाई बहुत लोकप्रिय छन्द आय। तुलसीदास के राम चरित मानस मा चौपाई के सब ले ज्यादा प्रयोग होय हे।
जनकवि कोदूराम "दलित" जी अपन कविता ला साकार घलो करत रहिन। उन प्राथमिक शाला के गुरुजी रहिन। अपन निजी प्रयास मा प्रौढ़ शिक्षा के अभियान चला के  आसपास के गाँव साँझ के जाके प्रौढ़ गाँव वाला मन ला पढ़ावत घलो रहिन। प्रौढ़ शिक्षा ऊपर उनकर एक चौपाई -

सुनव सुनव सब बहिनी भाई।तुम्हरो बर अब खुलिस पढ़ाई।।
गपसप मा झन समय गँवावव।सुरता करके इसकुल आवव।।

दू दू अक्छर के सीखे मा।दू दू अक्छर के लीखे मा।।
मूरख हर पंडित हो जाथे।नाम कमाथे आदर पाथे।।

ए ओ सखाराम के सारी।हगरू टूरा के महतारी।।
मंगलू के मँझली भौजाई।भुरुवा मंडल के फुलदाई।।

हमर परोसिन पुनिया नोनी।पारबती मनटोरा सोनी।।
सुनव जँवारा सुनव करौंदा।तुलसीदल गंगाजल गोंदा।।

अब तो आइस नवा जमाना।हो गै तुम्हरे राज खजाना।।
आज घलो अनपढ़ रहि जाहू।तो कइसे तुम राज चलाहू।।
(पढ़इया प्रौढ़ मन खातिर- ज्ञान यज्ञ के अंश)

पद्धरि छन्द - ये 16, 16 मात्रा मा यति वाले दू पद के छ्न्द आय। एखर शुरुवात मा द्विकल (दू मात्रा वाले शब्द) अउ अंत मा जगण (लघु, गुरु, लघु मात्रा वाले शब्द) आथे। हर दू पद आपस मा तुकांत होथे।
दलित जी अपन जागरण गीत मा पद्धरि छन्द के बड़ सुग्घर प्रयोग करिन हें -

झन सुत सँगवारी जाग जाग। अब तोर देश के खुलिस भाग।।
अडबड दिन मा होइस बिहान।सुबरन बिखेर के उइस भान।।
घनघोर घुप्प अँधियार हटिस। ले दे के पापिन रात कटिस।।
वन उपवन माँ आइस बहार। चारों कोती छाइस बहार।।
कुहकय कोइलिया डार डार।नाचय मयूर पाँखी पसार।।

मनहरण घनाक्षरी - कई किसम के घनाक्षरी छन्द होथे जेमा मनहरण घनाक्षरी सब ले ज्यादा प्रसिद्ध छन्द आय। येहर वार्णिक छन्द आय। 16, 15 वर्ण मा यति देके चार डाँड़ आपस मा तुकांत रखे ले मनहरण घनाक्षरी लिखे जाथे। चारों डाँड़ आपस मा तुकांत रहिथे। घनाक्षरी छन्द ला कवित्त घलो कहे जाथे। जनकवि कोदूराम "दलित" जी के ये प्रिय छन्द रहिस। उनकर बहुत अकन रचना मन घनाक्षरी छन्द मा हें।

कविता मा गाँव के नान नान चीज ला प्रयोग मा लाना उनकर विशेषता रहिस। ये मनहरण घनाक्षरी मा देखव अइसन अइसन चीज के बरतन हे जउन मन समे के संगेसंग नँदा गिन। चीज के नँदाए के दूसर प्रभाव भाजहा ऊपर पड़थे। चीज के संगेसंग ओकर नाम अउ शब्द मन चलन ले बाहिर होवत जाथें अउ शब्दकोश कम होवत जाथे। तेपाय के असली साहित्यकार मन अइसन चीज के नाम के प्रयोग अपन साहित्य मा करके ओला चलन मा जिन्दा राखथें। ये घनाक्षरी दलित जी अइसने प्रयास आय -

सूपा ह पसीने-फुने, चलनी चालत जाय
बहाना मूसर ढेंकी, मन कूटें धान-ला।
हँसिया पउले साग, बेलना बेलय रोटी
बहारी बहारे जाँता पिसय पिसान-ला।
फुँकनी फुँकत जाय, चिमटा ह टारे आगी
बहू रोज राँधे-गढ़े, सबो पकवान-ला।
चूल्हा बटलोही डुवा तेलाई तावा-मनन
मिलके तयार करें, खाये के समान-ला।।

जब अपन देश ऊपर कोनो दुश्मन देश हमला कर देथे तब कवि के कलम दुश्मन ला ललकारथे। सन् 1962 मा चीन हर हर देश ऊपर हमला करे रहिस। दलित जी के कलम के ललकार देखव -

चीनी आक्रमण के विरुद्ध (घनाक्षरी)

अरे बेसरम चीन, समझे रहेन तोला
परोसी के नता-मा, अपन बँद-भाई रे।
का जानी कि कपटी-कुटाली तैं ह एक दिन
डस देबे हम्मन ला, डोमी साँप साहीं रे ।
बघवा के संग जूझे, लगे कोल्हिया निपोर
दीखत हवे कि तोर आइगे हे आई रे।
लड़ाई लड़े के रोग, डाँटे हवै बहुँते तो
रहि ले-ले तोर हम, करबो दवाई रे ।।

अइसने सन् 1965 मा पाकिस्तान संग जुद्ध होइस।
वो बेरा मा कवि अपन देश के नौजवान मन मा अपन कविता के माध्यम ले जोश भरथें। दलित जी के आव्हान ला देखव ये घनाक्षरी मा -

चलो जी चलो जी मोर, भारत के वीर चलो
फन्दी पाकिस्तानी ला, हँकालो मार-मार के।
कच्छ के मेड़ों के सबो, चिखलही भुइयाँ ला
पाट डारो उन्हला, जीयत डार-डार के।
सम्हालो बन्दूक बम , तोप तलवार अब
आये है समय मातृ-भूमि के उद्धार के।
धन देके जन देके, लहू अउ सोन देके
करो खूब मदद अपन सरकार के।।

गाँव मे पले-बढ़े के कारण दलित जी अपन रचना मन मा गाँव के दृश्य ला सजीव कर देवत रहिन। उनकर चउमास नाम के कविता घनाक्षरी छन्द मा रचे गेहे। उहाँ के दू दृश्य मा छत्तीसगढ़ के गाँव के सजीव बरनन देखव -

बाढिन गजब माँछी बत्तर-कीरा "ओ" फांफा,
झिंगरुवा, किरवा, गेंगरुवा, अँसोढिया ।
पानी-मां मउज करें-मेचका भिंदोल घोंघी,
केंकरा केंछुवा जोंक मछरी अउ ढोंड़िया ।।
अँधियारी रतिहा मा अड़बड़ निकलयं,
बड़ बिखहर बिच्छी सांप-चरगोरिया ।
कनखजूरा-पताड़ा सतबूंदिया औ" गोेहे,
मुंह लेड़ी धूर नाँग, कँरायत कौड़िया ।।

भाजी टोरे बर खेत-खार "औ" बियारा जाये,
नान-नान टूरा-टूरी मन घर-घर के ।
केनी, मुसकेनी, गुंड़रु, चरोटा, पथरिया,
मंछरिया भाजी लायं ओली भर भर के ।
मछरी मारे ला जायं ढीमर-केंवट मन,
तरिया "औ" नदिया मां फाँदा धर-धर के ।
खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी धरे,
ढूँटी-मा भरत जाँए साफ कर-कर के ।।

जनकवि कोदूराम "दलित" के विषय वस्तु अपरम्पार रहिस। उनकर एक प्रसिद्ध रचना "तुलसी के मया मोह राई छाईं उड़गे" मा गोस्वामी तुलसी दास के जनम ले लेके राम चरित मानस गढ़े तक के कहिनी घनाक्षरी छन्द मा रचे गेहे। वो रचना के एक दृश्य देखव कि छत्तीसगढ़ के परिवेश कइसे समाए हे -

एक दिन आगे तुलसी के सग सारा टूरा,
ठेठरी अउ खुरमी ला गठरी मा धर के।
पहुँचिस बपुरा ह हँफरत-हँफरत,
मँझनी-मँझनिया रेंगत थक मर के।
खाइस पीइस लाल गोंदली के संग भाजी,
फेर ओह कहिस गजब पाँव पर के।
रतनू दीदी ला पठो देते मोर संग भाँटो,
थोरिक हे काम ये दे तीजा-पोरा भर के।।

कोदूराम "दलित" जी  आठ सौ ले ज्यादा कविता लिखिन हें फेर अपन जीवन काल मा एके किताब छपवा पाइन - "सियानी गोठ"। ये किताब कुण्डलिया छन्द के संग्रह हे। कवि गिरिधर कविराय, कुण्डलिया छन्द के जनक कहे जाथें। उनकर परम्परा ला दलित जी, छत्तीसगढ़ मा पुनर्स्थापित करिन हें। साहित्य जगत मा कोदूराम "दलित" जी ला छत्तीसगढ़ के गिरिधर कविराय घलो कहे जाथे। गिरिधर कविराय के जम्मो कुण्डलिया छन्द नीतिपरक हें फेर दलित जी के कुण्डलिया छन्द मा विविधता देखे बर मिलथे। नीतिपरक के अलावा उनकर कुण्डलिया छन्द मा  विकास खातिर जरूरी विज्ञान, बिजली, सिनेमा, अणु, राकेट, होटल-बासा जइसन विषय हें ।

आजादी के तुरत बाद एक नवा समाज गढ़े बर शासकीय योजना के प्रचार-प्रसार जइसे पंचशील, सहकारिता, परिवार नियोजन, अल्प बचत योजना, पाँच साला योजना, वृक्षारोपण, पंचायती राज, पोथी, पेपर जइसे सामयिक विषय घलो हे। टेटका, फुटहा लोटा, सिनेमा, ढोंगी मा व्यंग्य हे त खतरा साइकिल, कायर, खटला कुण्डलिया छन्द मा हास्य घलो हे। आवव कोदूराम "दलित" जी के कुण्डलिया छन्द के अलग-अलग रंग देखव -

नीतिपरक कुण्डलिया - राख

नष्ट करो झन राख –ला, राख काम के आय।
परय खेत-मां राख हर , गजब अन्न उपजाय।।
गजब  अन्न उपजाय, राख मां  फूँको-झारो।
राखे-मां  कपड़ा – बरतन  उज्जर कर डारो।।
राख  चुपरथे  तन –मां, साधु,संत, जोगी मन।
राख  दवाई आय, राख –ला नष्ट करो झन।।

सम सामयिक  - पेपर

पेपर मन –मां रोज तुम, समाचार छपवाव।
पत्रकार संसार ला, मारग सुघर दिखाव।।
मारग सुघर दिखाव, अउर जन-प्रिय हो जाओ।
स्वारथ - बर पेपर-ला, झन पिस्तौल बनाओ।।
पेपर मन से जागृति आ जावय जन-जन मा।
सुग्घर समाचार छपना चाही पेपर-मा।।

सरकारी योजना -

पँचसाला योजना -

पँचसाला हर योजना, होइन सफल हमार।
बाँध कारखाना सड़क, बनवाइस सरकार।।
बनवाइस सरकार, दिहिन सहयोग सजाबो झन।
अस्पताल बिजली घर इसकुल घलो गइन बन।।
देख हमार प्रगति अचरज, होइस दुनिया ला।
होइन सफल हमार, योजना मन पँचसाला।।

जन जागरण - अल्प बचत योजना

अल्प बचत के योजना, रुपया जमा कराव।
सौ के बारे साल मा, पौने दू सौ पाव।।
पौने दू सौ पाव, आयकर पड़ै न देना।
अपन बाल बच्चा के सेर बचा तुम लेना।।
दिही काम के बेरा मा, ठउँका  आफत के।
बनिस योजना तुम्हरे खातिर अल्प बचत के।।

आधुनिक विचार - विज्ञान

आइस जुग विज्ञान के , सीखो  सब विज्ञान।
सुग्घर आविस्कार कर ,  करो जगत कल्यान।।
करो जगत कल्यान, असीस सबो झिन के लो।
तुम्हू जियो अउ दूसर मन ला घलो जियन दो।।
ऋषि मन के विज्ञान , सबो ला सुखी बनाइस।
सीखो सब  विज्ञान,  येकरे जुग अब आइस।।

व्यंग्य -  टेटका -

मुड़ी हलावय टेटका, अपन टेटकी संग।
जइसन देखय समय ला, तइसन बदलिन रंग।।
तइसन बदलिन रंग, बचाय अपन वो चोला।
लिलय  गटागट जतका, किरवा पाय सबोला।।
भरय पेट तब पान-पतेरा-मां छिप जावय।
ककरो जावय जीव, टेटका मुड़ी हलावय।।

हास्य -  खटारा साइकिल
अरे खटारा साइकिल, निच्चट गए बुढ़ाय।
बेचे बर ले जाव तो, कोन्हों नहीं बिसाय।।
कोन्हों नहीं बिसाय, खियागें सब पुरजा मन।
सुधरइया मन घलो हार खागें सब्बो झन।।
लगिस जंग अउ उड़िस रंग, सिकुड़िस तन सारा।
पुरगे मूँड़ा तोर, साइकिल अरे खटारा।।

अउ आखिर मा दलित जी के ये कुण्डलिया छन्द, हिन्दी भाषा मा -
नाम -

रह जाना है नाम ही, इस दुनिया में यार।
अतः सभी का कर भला, है इसमें ही सार।।
है इसमें ही सार, यार तू तज के स्वारथ।
अमर रहेगा नाम, किया कर नित परमारथ।।
काया रूपी महल, एक दिन ढह जाना है।
किन्तु सुनाम सदा दुनिया में रह जाना है।।

छत्तीसगढ़ के जनकवि कोदूराम "दलित" जी अपन पहिली कुण्डलिया छन्द संग्रह "सियानी गोठ" (प्रकाशन वर्ष - 1967)मा अपन भूमिका मा लिखे रहिन- "ये बोली (छत्तीसगढ़ी) मा खास करके छन्द बद्ध कविता के अभाव असन हवय, इहाँ के कवि-मन ला चाही कि उन ये अभाव के पूर्ति करें।स्थायी छन्द लिखे डहर जासती ध्यान देवें।ये बोली पूर्वी हिन्दी कहे जाथे। येहर राष्ट्र-भाषा हिन्दी ला अड़बड़ सहयोग दे सकथे। यही सोच के महूँ हर ये बोली मा रचना करे लगे हँव"। उंकर निधन 28 सितम्बर 1967 मा होइस, उंकर बाद छत्तीसगढ़ी मा छन्दबद्ध रचना लिखना लगभग बंद होगे। सन् 2015 के दलित जी के बेटा अरुण कुमार निगम हर छत्तीसगढ़ी मा विधान सहित 50 किसम के छन्द के एक संग्रह "छन्द के छ" प्रकाशित करवा के दलित जी के सपना ला पूरा करिन। उन मन आजकाल छन्द के छ नाम के ऑनलाइन कक्षा मा छत्तीसगढ़ के नवा कवि मन ला छन्द के ज्ञान देवत हें जेमा करीब 40 नवा कवि मन छत्तीसगढ़ी भाषा मा कई किसम के छन्द लिखत हें अउ अपन भाषा ला पोठ करत हें। इन नवा कवि मन के छन्द इंटरनेट मा छन्द खजाना नाम के ब्लॉग मा संकलित होवत हें जेला दुनिया के बीसों देश मा रसिक मन पढ़त हें।

आलेख - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़

14 comments:

  1. पुरखा के सुरता ल शानदार सिरझाय ह गुरुदेव🙏🙏🙏🙏🙏

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  2. पुरखा जनकवि ला कोटिक प्रणाम।

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  3. अनमोल धरोहर 👌💐💐💐

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  4. हमर पुरखा ला शत शत नमन

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  5. बबा के सुरता करत ओला सादर प्रणाम नमन

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  6. जनकवि दलित जी ला शत शत नमन ।

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  7. अब्बड़ सुग्घर संस्मरण आलेख गुरुदेव जी सादर शत् शत् नमन पूज्य दलित जी मन ला 🙏🙏

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  8. बहुत सुंदर रचना गुरुदेव जी के

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  9. बहुत सुंदर रचना गुरुदेव जी के

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  10. गजब सुघ्घर रचना हे गुरूजी दलित जी ला प्रणाम

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  11. गजब सुघ्घर रचना हे गुरूजी दलित जी ला प्रणाम

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  12. महान साहित्यकार ल प्रणाम

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  13. हमर पुरखा साहित्यकार ला शत् शत् नमन

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  14. पुरखा के साहित साधना सदादिन नवा पीढ़ी ला नवा डगर दिखाही, कोटि कोटि नमन हे

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