व्यंग्य लेख-आशा देशमुख
*गणेश के दुब्बर मुसवा*
ये दरी तो गणेश भगवान के मुसवा
बड़ दुबराय कस लागिस,तब एक भक्त पूछ घलो डारिस,कइसे महाराज
आपमन के सवारी हा अब्बड़ दुबरा गये हे ।
खाय पीये बर नइ देवव का?
तब भगवान कहिथे
काय करबे भगत राज
न तो आजकल कोठी हे ,न डोली हे
कहाँ जाय मोर मुसवा हा,
काला फोलय ,
सबो जिनिस ला,देश ला,संस्कार ला तो मनखे मन फ़ोल के खावत हे।
काय बाँचिस हे अब,
कहे बर मोला दस दिन बइठार देथे,
पूजा के नाम से कान फोड़त गाना बजाथें, एकोठन समझ नइ आवय,
मोर दाई ददा मन सँग मा बइठे रहिथें,
अउ मनखे मन या अइसे अइसे गीत मन ला गाथें कि काय बतावँव।
मोर मुड़ी हा लाज के मारे खाल्हे डहर जाथे।
कतको कहिथे मोला
में बुद्धि के दाता हँव,पर इंखर बुद्धि ला नइ बदल सकत हँव।
मोर ददा के गर के नाग हा घलो लुकावत रहिथे,
एक दिन पूछ पारेंव ,कइसे गा भाई तक्षक नाग
ते मनखे मन ला देख के लुकावत रहिथस ,का बात हे भाई,
तब वो बोलिस ,का बतावँव भैया गणेश,
एक युग रहिस ,जब मोर देखत ही मनखे अउ सबो जीव मन जर जावत रहिस,अब तो उंखरे तन मन मा मोर ले ज्यादा जहर भराय हे,तेकर सेती शरम मा लुका जाथंव।
मोला ये धरती के करलई अब्बड़ पीरा देथे जी भगत राज।
कुछ साल बाद ये भुइँया मा मोरो आना बंद हो जाही ,लगत हे।
न तो मुसवा के खाय बर कुछु बाँचत हे ,न रहे बर कुछु हावय।
कहाँ जाय काला खाय कस होगे हे भगतराज।
तेकर सेती मोर मुसवा हा अब्बड़ दुबरा गये हे।
आशा देशमुख
एनटीपीसी तेलगांना
सुघ्घर व्यंग्य
ReplyDeleteबढ़िया व्यंग्य दीदी
ReplyDeleteसमसामायिक व्यंग्य,, बहुत बढ़िया हवै
ReplyDeleteसादर आभार नमन गुरुदेव
ReplyDeleteमोर रचना ला स्थान दे बर
मजेदार व्यंग है दीदी।
ReplyDeleteबधाई हो
समसामयिक विषय पर सटीक प्रहार करती हुई रचना
ReplyDeleteबधाई हो
जोरदार व्यंग्य करे हव दीदी।सुघ्घर लेखन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दीदी जी । सादर नमन ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया व्यंग्य लेख दीदी जी
ReplyDeleteबधाई हो
महेन्द्र देवांगन माटी
वाह वाह आशा देशमुख बहन जी। चुटुक ले सुग्घर व्यंग।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteजोरदार सुग्घर व्यंग्य।
ReplyDeleteसुघ्घर व्यंग्य, बधाई हो
ReplyDeleteबढिया व्यंग्य लिखे हव। बधाई हो।
ReplyDeleteआप सबो भाई बहिनी मन के सादर आभार
ReplyDeleteसुग्घर दीदी ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर करारा व्यंग्य दीदी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर करारा व्यंग्य दीदी
ReplyDeleteवाह दीदी बहुते बढ़िया👌👍💐💐💐💐
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