पितर नेवता
आवव पितर हो आज तुंहर बर बरा सोंहारी तसमई बने हे ,का होइस पहिली तुमन ला खाय बर नइ मिलिस त आज खा लेवव ।जीयत के दुःख ला भुला जावव वो समे के बात अलगे रिहिस दाई ददा हो ,जवानी म तुंहर बहु के मूड़ तुमन ला देखत पिरावय अउ तियासी बासी अउ चार दिन के भरे पानी ला देवय पर अब बने होंगे हे,तुंहर बर फुलकसिया थारी लोटा अउ पीढ़ा मा रोजे आरुग पानी मढ़ाथे ।
अउ बोली भाखा हा घलो बने होगे हे ,डोकरी डोकरा ले अब सियान सियानिन कहे लग गेहे ।
अब गारी नइ देवय गा इँहा तो पंडित ल बुलाके भागवत भी करात हावन ।
अब्बड़ अकन दान पुन बर जिनिस बिसाय हावन।
पहिली के बात ला भुला जावव दाई ददा हो,
भले तुमन एक एक चीज बर तरसे हव पर आज वो चीज मन ला पूजा मा चढ़ावत हावन।
तुमन जीयत रहेव त तुमन ल देखइया आवय पहुना मन हा तुमन ला बीमार हे कहिके तब उचाट लागे ग ,पर अब हमन हा पहुना नेवते हावन तुंहर पितर मान बर ।अउ तुंहर चिरहा दसना ल फेंक के तुहंर बर फूल के बिछौना बनाय हावन ।
आ जावव दाई ददा हो ,मोर लइका हा ये पितर मान ला देख देख के खुश होवत हे । मोर ददा बढ़िया हे कहिके ।
आ जावव ।
आशा देशमुख
एनटीपीसी रामगुंडम
तेलंगाना
आवव पितर हो आज तुंहर बर बरा सोंहारी तसमई बने हे ,का होइस पहिली तुमन ला खाय बर नइ मिलिस त आज खा लेवव ।जीयत के दुःख ला भुला जावव वो समे के बात अलगे रिहिस दाई ददा हो ,जवानी म तुंहर बहु के मूड़ तुमन ला देखत पिरावय अउ तियासी बासी अउ चार दिन के भरे पानी ला देवय पर अब बने होंगे हे,तुंहर बर फुलकसिया थारी लोटा अउ पीढ़ा मा रोजे आरुग पानी मढ़ाथे ।
अउ बोली भाखा हा घलो बने होगे हे ,डोकरी डोकरा ले अब सियान सियानिन कहे लग गेहे ।
अब गारी नइ देवय गा इँहा तो पंडित ल बुलाके भागवत भी करात हावन ।
अब्बड़ अकन दान पुन बर जिनिस बिसाय हावन।
पहिली के बात ला भुला जावव दाई ददा हो,
भले तुमन एक एक चीज बर तरसे हव पर आज वो चीज मन ला पूजा मा चढ़ावत हावन।
तुमन जीयत रहेव त तुमन ल देखइया आवय पहुना मन हा तुमन ला बीमार हे कहिके तब उचाट लागे ग ,पर अब हमन हा पहुना नेवते हावन तुंहर पितर मान बर ।अउ तुंहर चिरहा दसना ल फेंक के तुहंर बर फूल के बिछौना बनाय हावन ।
आ जावव दाई ददा हो ,मोर लइका हा ये पितर मान ला देख देख के खुश होवत हे । मोर ददा बढ़िया हे कहिके ।
आ जावव ।
आशा देशमुख
एनटीपीसी रामगुंडम
तेलंगाना
सादर आभार गुरुदेव
ReplyDeleteवाह वाह सुग्घर व्यंग्य।
ReplyDeleteबढ़िया व्यंग्य बहिनी
ReplyDeleteवाहहहह!दीदी।व्यंग्य के माध्यम ले कतेक सुग्घर संदेश दे डारेव।आँखी उघार के पढ़न देखन अउ समझन भाई हो अउ जीते जीयत पुरखा के सेवा सत्कार ल करन...
ReplyDeleteवाह! दीदी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर व्यंग्य हे।
अउ हमर धर्मभीरुता के ऊपर आपके लेखनी हा जोरदार प्रहार करे हे। काश जम्मे झिन ये बात ल समझ पातिन अउ जियत दाई दादा के देख रख करे बर धियान देतिन।
वाह वाह ।बहुत ही शानदार ।हार्दिक बधाई ।
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