Saturday 31 December 2022

नवा साल मा का नवा

 नवा साल मा का नवा


                   मनखे मन कस समय के उमर एक साल अउ बाढ़गे, अब 2022 ले 2023 होगे। बीते समय सिरिफ सुरता बनगे ता नवा समय आस। सुरुज, चन्दा, धरती, आगास, पानी, पवन सब उही हे, नवा हे ता घर के खूंटी मा टँगाय कलेंडर, जेमा नवा बछर भर के दिन तिथि बार लिखाय हे। डिजिटल डिस्प्ले के जमाना मा कतको महल अटारी मा कलेंडर घलो नइ दिखे, ता कतको गरीब ठिहा जमाना ले नइ जाने। आजकल जुन्ना बछर ला बिदा देय के अउ नवा बछर के परघवनी करे के चलन हे, फेर उहू सही रद्दा मा कम दिखथे। आधा ले जादा तो मौज मस्ती के बहाना कस लगथे। दारू कुकरी मुर्गी खा पी के, डीजे मा नाचत गावत कतको मनखे मन घुमत फिरत होटल,ढाबा, नही ते घर,छत मा माते रहिथे। अब गांव लगत हे ना शहर सबे कोती अइसनेच कहर सुनाथे, भकर भिकिर डीजे के शोर अउ हाथ गोड़ कनिहा कूबड़ ला झटकारत नवा जमाना के अजीब डांस संगे संग केक के कटई, छितई अउ एक दूसर ऊपर चुपरई, जइसन अउ कतकोन चोचला हे, जेला का कहना । 

              भजन पूजन तो अन्ग्रेजी नवा साल संग मेल घलो नइ खाय, ना कोनो कोती देखे बर मिले। लइका सियान सब अंग्रेजी नवा साल के चोचला मा मगन अधरतिहा झूमरत रहिथे, अउ पहात बिहनिया खटिया मा अचेत, वाह रे नवा साल। फेर आसाढ़, सावन, भादो ल कोनो जादा जाने घलो तो नही, जनवरी फरवरी के ही बोलबाला हे। ता भले चैत मा नवा साल मनाय के कतको उदिम करन, नवा महीना के रूप मा जनवरी ही जीतथे, ओखरे संग ही आज के दिन तिथि चलथे। खैर समय चाहे उर्दू मा चले, हिंदी मा चले या फेर अंग्रेजी मा, समय तो समय ये, जे गतिमान हे। सूरुज, चन्दा, पानी पवन सब अपन विधान मा चलत हे, मनखे मन कतका समय मा चलथे, ते उंखरें मन ऊपर हें। समय मा सुते उठे के समय घलो अब सही नइ होवत हे। लाइट, लट्टू,लाइटर रात ल आँखी देखावत हे, ता बड़े बड़े बंगला सुरुज नारायण के घलो नइ सुनत हे। मनखे अपन सोहलियत बर हाना घलो गढ़ डरे हे, जब जागे तब सबेरा---- अउ जब सोय तब रात। ता ओखर बर का बाईस अउ का तेइस, हाँ फेर नाचे गाये खाय पीये के बहाना, नवा बछर जरूर बन जथे।आज मनखे ना समय मा हे, ना विधान मा, ना कोनो दायरा मा। मनखे बलवान हे , फेर समय ले जादा नही।

           वइसे तो नवा बछर मा कुछु नवा होना चाही, फेर कतका होथे, सबे देखत हन। जब मनुष नवा उमर के पड़ाव मा जाथे ता का करथे? ता नवा साल मा का करही? केक काटना, नाचना गाना, पार्टी सार्टी तो करते हे, बपुरा मन।वइसे तो कोनो नवा चीज घर आथे ता वो नवा कहलाथे, फेर कोनो जुन्ना चीज ला धो माँज के घलो नवा करे जा सकथे। कपड़ा,ओन्हा, घर, द्वार, चीज बस सब नवा बिसाय जा सकथे, फेर तन, ये तो उहीच रहिथे, अउ तन हे तभे तो चीज बस धन रतन। ता तन मन ला नवा रखे के उदिम मनखे ला सब दिन करना चाही। फेर नवा साल हे ता कुछ नवा, अपन जिनगी मा घलो करना चाही। जुन्ना लत, बैर, बुराई ला धो माँज के, सत, ज्ञान, गुण, नव आस विश्वास ला अपनाना चाही। तन अउ मन ला नवा करे के कसम नवा साल मा खाना चाही, तभे तो कुछु नवा होही।  जुन्ना समय के कोर कसर ला नवा बेरा के उगत सुरुज संग खाप खवात नवा करे के किरिया खाना चाही। जुन्ना समय अवइया समय ला कइसे जीना हे, तेखर बारे मा बताथे। माने जुन्ना समय सीख देथे अउ नवा समय नव आस। इही आशा अउ नव विश्वास के नाम आय नवा बछर। हम नवा जमाना के नवा चकाचौंध  तो अपनाथन, फेर जिनगी जीये के नेव ला भुला जाथन। हँसी खुसी, बोल बचन, आदत व्यवहार, दया मया, चैन सुकून, सेवा सत्कार आदि मा का नवा करथन। देश, राज, घर बार बर का नवा सोचथन, स्वार्थ ले इतर समाज बर, गिरे थके, हपटे मन बर का नवा करथन। नवा नवा जिनिस खाय पीये,नवा नवा जघा घूमे फिरे  अउ नाचे गाये भर ले नवा बछर नवा नइ होय।

               नवा बछर ला नवा करे बर नव निर्माण, नव संकल्प, नव आस जरूरी हे। खुद संग पार परिवार,साज- समाज अउ देश राज के संसो करना हमरे मनके ही जिम्मेदारी हे। जइसे  कोनो हार जीते बर सिखाथे वइसने जुन्ना साल के भूल चूक ला जाँचत परखत नवा साल मा वो उदिम ला पूरा करना चाही। कोन आफत हमला कतका तंग करिस, कोन चूक ले कइसे निपटना रिहिस ये सब जुन्ना बेरा बताथे, उही जुन्ना बेरा ला जीये जे बाद ही आथे नव आस के नवा बछर। ता आवन ये नवा बछर ला नवा बनावन अउ दया मया घोर के नवा आसा डोर बाँधके, भेदभाव, तोर मोर, इरखा, द्वेष ला जला, सबके हित मा काम करन, पेड़,प्रकृति, पवन,पानी, छीटे बड़े जीव जन्तु सब के भला सोचन, काबर कि ये दुनिया सब के आय, पोगरी हमरे मनके नही, बिन पेड़,पवन, पानी अउ जीव जंतु बिना अकेल्ला हमरो जिनगी नइहे। नवा बछर के बहुत बहुत बधाई-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Saturday 17 December 2022

जाड़ म गोरसी के सुरता--

 जाड़ म गोरसी के सुरता--


हमर गंवई गॉंव म जाड़ के दिन म माटी के गोरसी के अब्बड़ मान हे। ये ह आजकल के संझा कुन के संगवारी आय। लइका,सियान,जवान,माई-पीला सबो झन गोरसी के तीर म जुरियाय रथे। जड़कला म गोरसी म चुल्हा के अंगरा ल आन के सुपचाय रथे,अउ नान्हे-नान्हे झिटी, रहेर काडी, तीली काडी, संडेवा काडी ल बार के तापत बैठे रथे। घर के सबो झन रंग-रंग के गोठबात,हँसी-ठिठोली करत सियान मन नाती-नतनिन संग बइठ के कहानी-कथा,जनउला, चुटकुला सुनात रथे। लइका मन के संग जम्मो झन अब्बड़ मजा पावत रथे।


पहली ले जोरा--

सियान दाई मन जड़कला के पहिली गोरसी के जोरा करके रख डार रथे। जड़कला के आत ले गोरसी सुखाके तैयार हो जाथे। गोरसी ल माटी,पानी,परोसी मिला के सानथे। फेर जुन्ना हड़िया ल उलटा खपल के साने माटी ल थोप के बनाय जथे। उलटा थोपे ले गोरसी म गड्डा हो जथे। जेमे आगी-अंगरा ल डार के बार के तापे के काम देथे।


संझा के बेरा--

सांझ कुन जेवन चूरे के बाद चूल्हा के अंगरा ल डार के रहेर काडी, तीली काडी, संडेवा काडी, नान्हे-नान्हे झिटका ह बने बरत रथे अउ सुखा लकड़ी के ठुड्गा मन ल घलो धराय म रमच के बरथे, जेकर ले आगी अब्बड़ समे ले जलत रथे। आगी के रोस म तपैया मन घलो नंगत जान ले बैठ जथे।


सियान मन के मितान--

गोरसी सियान मन बर आजकल अब्बड़ काम के होथे। ओमन गोरसी बिना नई रहे सकय। बिहनिया, संझा, रतिया गोरसी ल धरके बैठे रथे। रतिया के जेवन ल घलो गोरसी के तीर म बैठ के खाथे। सियान मनके में जाड़ सहे के समता कम हो जाय रथे,तेकर सेती आगी अउ गोरसी ल छोड़बे नई करे। जड़कला म गोरसी सियान मन बर बड़ सहारा होथे।


लइका मन के काम के--

नान्हे लइका मन के घलो गोरसी अब्बड़ काम आथे। उँकर पेट सेके के काम इहि गोरसी म होथे।

लइका के जनम के संग उँकर पेट सेकना बड़ जरूरी होथे,काबर कि नान्हे लइका मन दूध ल पचोय नई पाय। गोरसी से आगी के आंच देके गरमी देय ले दूध पचथे, अउ उनकर स्वास्थय बने रहिथे। 


गोरसी भरना--

जेन सियान मन जादा ठंडा ल नई सहे पाय ओमन अपन खटिया के तरी गोरसी ल डार के सुतथे। जेकर ले खाले बले थोर-थोर आंच आवत रथे। सियान मन ल आंच आये ले जाड़ नई लगे अउ बने रुसुम-रुसुम लगत बने नींद भर सुतथे। येला गोरसी भरना घलो कहे जाथे। गोरसी सियान मन बर जड़कला म संगवारी सही काम आथे। ।


गाँव डहर जिनकर घर गोरसी नई होय ओमन अपन परोसी मन घर आगी तापे बर घलो आथे। काबर के सबो झन ल गोरसी बनाये ल नई आय। गांव म आगी तापत सुख-दुख, हंसी-मजाक, ठठा-दिल्लगी, नाती-बूढ़ा के गोठबात, सुनता के बात, मंगनी-बरनी, बर-बिहाव, मड़ई-मेला के गोठ गोरसी के तीर म चलत हे। गाँव के गोठबात, प्रेम-व्यवहार, सद्भाव अउ परोसी धरम ल गोरसी आज घलो निभावत हे।



                          हेमलाल सहारे

               मोहगांव(छुरिया)राजनांदगॉंव

कहानी-खेलौना ------------

 कहानी-खेलौना

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संझा के बेरा रामबती ह अपन मंदबुद्धि अउ दिव्यांग छोटे बेटा कुमार ल जेन ह न तो रेंगे सकय,न तो बोले सकय--- उपर ले बेचारा के लार बोहावत रहिथे ल परछी म बइठे खेलावत राहय ओतके बेर ओकर पति चपरासी हुलास ह घर आइस।अँगना म साइकिल ल खड़ाँग ले टेंकाइस तहाँ ले मनमाड़े गुसियावत कहिस---तोला घेरी पइत चेताये हँव न--ये तोर मंदबुद्धि बेटा ल मोर घर आये के बेरा कुरिया म धाँध के राखे कर।एला  देखते साठ मोर तन-बदन म भुर्री फूँका जथे। एखर मारे जीना हराम होगे हे फेर तोला कुछु समझ नइ आवय ।निच्चट घेक्खरहिन होगे हस---।

       ये दे फेर तोर किटिर-किटिर चालू होगे न। पता नहीं काबर ये ते,एला देखथस तहाँ ले तोर बइगुन उमड़ जथे। एखर जतन-पानी तो मैं हर करथँव न---तैं तो हिरक के नइ निहारस--- नइ सहे सकस त एला धरके कहूँ निकल जहूँ। बनी भूती करके पोंस लेहूँ मैं ह।अउ का कहे तोर बेटा----एहा तोर बेटा नोहय का? नइ सहे सकस त मुरकेट के मार डर एला--रामबती ह झुँझवावत कहिस।

     तहीं जहर देके मार डर।बियाये तो तैं हस न? तोर दाई ददा के खानदान म अइसने अउ कोनो रहिस होही ---हुलास ह बइहाये सहीं कहिस।

       दाई-ददा कोती दोष लगावत सुनके रामबती ह बिफरत कहिस--मोर कोंख ल दोष झन लगा अउ मोर दाई-ददा ल झन अमर। पढ़े-लिखे हस फेर बोले के तको सहुँर नइये। एखर ले बड़े दू झन अउ लइका हे तेन मन तो अइसना नइयें। ये हा तोर कोनो जनम के पाप के भुगतना आय।

   इँखर किल्लिर-कइया ल देख के बड़े बेटा महेश ह चुपकरावत बोलिस-- का बात हे बाबू?पहिली तो अइसन नइ गुसियावत रहे। आजकल बात-बात म चिड़चिड़ावत रहिथस।कुछु कारण हे का ?आफिस कोती कोनो परशानी हे का?

        आफिस कोती कुछु परशानी नइये--सरी परशानी घरे कोती ले हे। कोनो बइठया-उठइया आथे या कोनो सगा -सोदर आथे त ये मंदबुद्धि लइका के सेती मोर मन म हीन भावना आथे।कहूँ आये-जाये ल परथे तभो अच्छा नइ लागय।दूसर म ये साल दुलारी अउ तोर बिहाव तको खच्चित करना हे।दू साल होगे रिश्ता खोजत। ये मंदबुद्धि लइका के बारे म जान के सगा मन भिरक जथें तइसे लागथे--हुलास ह थोकुन शांत होवत कहिस।

     अच्छा त तनाव के ये कारण हे बाबू। तैं फिकर झन कर।अइसन बात होही त हमन शादीच नइ करन। मँझली बेटी दुलारी ह चाय-पानी देवत कहिस।

   नहीं बेटी !असो बिहाव तो माढ़बे करही। हुलास ह चाय पियत थिरबाँव होवत कहिस।

     बात आये-गये होगे।रतिहा बने जेवन-पानी होइस तहाँ ले सोवा परिस। बिहनिया हुलास ह रामबती ल कहिस-- चल तो आज सरकारी अस्पताल जाबो जिहाँ बच्चा मन के ,नवाँ बड़े डाक्टरिन आये हे सुने हँव। अतेक बइद-गुनिया,डाक्टर मन सो इलाज करवा के थक हारगेन त उहू ल एक पइत देखा देबो। हो सकथे वोकर हाथ म जस लिखाये होही अउ कुमार बेटा ह ठीक हो जही।

   हव ,ले का होही चल देबो। जम्मों पुराना एक्सरे अउ रिपोट मन झोला म भराये माढे़ हें। सबो ल चेत करके धर लेबे--रामबती कहिस।

       वोमन ठीक दस बजे अस्पताल पहुँच गेइन। डाक्टरिन ह आगे राहय। शुरुच म नंबर लगगे। डाक्टरिन ह कुमार के जाँच करके अउ पुराना एक्सरे, रिपोट संग दवई-पानी के पर्ची मन ल देख के पूछिस--इस बच्चे की डिलवरी कहाँ हुई थी?

    घरे म होये रहिस हे डाक्टरिन जी।गाँव के एक झन सियनहीन दाई ह बड़ मुश्किल म डिलवरी कराये रहिस--रामबती बताइस।

      हाँ--,यही तो बात है।उल्टी-सीधी डिलवरी के कारण बच्चे का पीटयूटरी पूरा डैमेज हो गया है।पैदाइशी में देरी के कारण इसको उस समय आक्सीजन भी ठीक से नहीं मिला जिसके कारण यह विकलांग हो गया। एक बात कहूँ, बुरा तो नहीं मानेंगे आप लोग-

        काबर बुरा मानबो मैडम जी।बोलव का बात ये ते--हुलास कहिस।

     इस बच्चे का शायद उस तरह का  इलाज नहीं हो सकता जैसा कि आप लोग सोच रहे हो।व्यर्थ  में भटकते और धन लुटाते रहोगे। अच्छा ये बताओ--इसकी उम्र कितनी है?

     सोला साल के होगे हे मैडम जी।

     ठीक है--मैं यह कहना चाह रही हूँ कि यह जब तक रहे ,प्रसन्नता पूर्वक इसकी सेवा कीजिए।

     का करबो मैडम जी, हमला अपन पाप के फल अउ करम दंड ल तो भोगेच ल परही--हुलास ह उदास होवत कहिस।

      अरे कोई पाप, कर्म दंड -वंड नहीं है।यह तो एक मेडिकल इशु है। आप लोगों को जानकारी नहीं है। प्रदेश में ऐसे बच्चों के लिए बाल कल्याण समिति और बहुत से सरकारी संस्थान है, वहाँ ले जाना चाहिए।फिर भी लगता है आप थोड़ा धार्मिक प्रवृत्ति के हो तो इतना तो मानते ही होगें कि दीन-दुखियों की सेवा करनी चाहिए। उससे पुण्य की प्राप्ति होती है-डाक्टरिन बोलिस।

    हाँ मैडम जी।ये तो सिरतो बात ये--हुलास हामी भरिस।

      तो फिर इस बच्चे की सेवा करो ।यह तो बहुत ही दीन-दुखी है।सेवा का अवसर सबको नहीं मिलता। आप लोगों को तो अपने घर में ही ,अपने ही बच्चे की सेवा का सौभाग्य मिल रहा है। एक बात और--देखो जैसे छोटे बच्चे  गुड्डा-गुड्डी या अन्य खिलौनों से खेलकर खुश होते हैं वैसे ही आप लोग इस  खिलौने से खेलकर आनंद लो।

      डाक्टरिन के बात ल सुनके रामबती अउ हुलास के आँखी छलछलागे। उँखर मन ल बहुत ढाँढ़स मिलिस। आज पहिली बार कुमार ल लेके मन ल शांति मिलिस।तहाँ ले वोमन हाँसी-खुशी डाक्टरिन मैडम ले छुट्टी माँग के अपन जिगर के टुकड़ा खेलौना संग खेलत घर आगें।


चोवाराम वर्मा"बादल"

कहानी--*सोनकुंवर*

 [12/17, 2:49 PM] Chandrahas Sahu धमतरी: कहानी--*सोनकुंवर*


  

                                    चन्द्रहास साहू

                               मो-812057887


सन्ना ना नन्ना हो नन्ना...ना नन्ना.... !

सतनाम के हो बाबा ! पूजा करौ मैं सतनाम के.... ।

सतनाम के हो बाबा  ! पूजा करौ मैं जैतखाम के ..।।

गवइया के गुरतुर आरो आइस अउ जयघोष

    "बाबा घासी दास की जय !''

मांदर मंजीरा तान दिस। झांझ- झुमका झंझनाये लागिस । अउ अब जम्मो पन्दरा झन जवनहा मन हलु -हलु हाथ गोड़ कनिहा ला हलाए लागिस। संघरा, सरलग, नवा उछाह अउ नवा जोश के संग नाचत हावय-पंथी नृत्य। जम्मो के बरन एक्के बरोबर। मुड़ी मा सादा सांफा, नरी मा कंठी माला, बाजू मा बाजूबंद, सादा धोती माड़ी तक । खुनूर- खुनूर करत घुंघरू दमकत माथ मा सादा के तिलक  गजब सुघ्घर दिखत हावय।

पंथी नाच ! नाच भर नोहे येहा साधना आय। भक्ति, आराधना समाज मा सदभाव राखे बर बबा के संदेश देये के माध्यम आवय। अउ बबा के चमत्कार ला बताये के साधन घला आय। जम्मो गाँव गमकत हावय सतनाम चौक मा आज । 

                       महुँ तो गेये हँव आज नरियर अउ फूल धरके । पंथी नाच हा अब अपन चरम मा हावय। मांदर के ताल ,झांझ के झंकार झुमका के झम्मक -झम्मक अउ छनन-छनन  करत गोड़ के घुंघरू। सुर मा गाना गावत गवइया, ताल मा ताल मिलावत अहा...अहा... बाबाजी अहा...अहा..। आरो हा नाच के सुघराई ला बढ़ा देथे।

"बाबा ! मोर गुरु बाबा ! मोर बनौती बना दे गुरुजी ।'' 

सी..सी.. सुसके लागिस । अउ  चिचियाके किहिस। 

"बाबा जी की जय !'' 

सादा लुगरा वाली मोटियारी भुंइया मा घोण्डे लागिस आगू-पाछू दुनो हाथ जोर के। देखइया मन अब मोटियारी के पूजा करिस। अउ चंदैनी गोंदा के माला पहिरा दिस। गवइया मन अब गुरु महिमा ला उच्चा सुर मा गाये लागिस। जम्मो कोई सतपुरुष समागे काहय। तब कोनो हा देवता चढ़े हे काहय। कतको झन बाबा आ गे हे सौहत किहिस । फेर मोर बर तो मनोरोगी रिहिस।  नर्स आवव न अब्बड़ पढ़नतिन। 

                   स्वास्थ्य जांच बर गांव ला किंजरत हावन आज। उही मोटियारी घर गेयेंव। सुकुरदुम हो गेंव। लोटा मा पानी लान के दिस गोड़ धोये बर। टुटहा खइरपा । ओदराहा  भसकहा कोठ अउ कोठ मा चिपके बाबा जी के फोटू ..। सुरुज नारायेन कस दमकत चेहरा। सिरतोन अब्बड़ सुघ्घर लागत हावय बाबा जी हा । दू कुरिया के घर। बारी मा छिछले तुमा कुम्हड़ा तोरई के नार, कोचई अउ सदा सोहगन के फूल- जम्मो ला देखे लागेंव।

                    " फुटहा करम के  फुटहा दोना, लाई गवागे चारो कोना । अइसना होगे हाबे बहिनी मोर जिनगी हा। जस मोर नाव तस मोर करम के डाड़ होगे हे। नाव दुखियारीन बाई अउ सिरतोन दुख मा चिभोर डारे हावय परमात्मा हा मोला। हमर ददा हा भलुक गरीब रिहिस फेर काखरो बईमानी नइ करिस,लबारी नइ मारिस। भलुक हमन ठगागेन।''

"का होगे बहिनी ?  बता।''

मेहां पुछेंव अउ दुखियारीन बताइस। 

"ओ दिन के गोठ आवय। जम्मो कोई बाबा जी के जयंती मनाये बर मगन रेहेंन। सरई रुख के एक्काइस हाथ के खम्बा ला अमरित कुंड के पानी ले नहवा-धोवा के सवांगा करत रेहेंन। भंडारी घर ले पालो ला परघाके जैतखाम कर लानेन अउ सात हाथ के पोठ बांस  मा बाँधेंन। 

"पालो का हरे दीदी !''

मेंहा मुचकावत पुछेंव

"सादा रंग के चौकोर कपड़ा आवय। जौन हा धजा बरोबर जैतखाम मा फहरावत रहिथे। मइनखे-मइनखे एक समान। कोनो बड़का नही कोनो छोटका नही। बबा महतारी जम्मो एक बरोबर। नारी के सम्मान समरसता सदभावना एकता भाईचारा  बाबा जी के सप्त सिद्धांत ला बगरावत कतका सुघ्घर दिखथे पालो हा.... ।''

दुखियारीन भाव विभोर होगे, बतावत हे।

            "फेर ...हमन कोनो बात ला मानत हावन का ? रोज अंगरी धर के रेंगाये बर आगू मा ठाड़े हावय बाबा जी हा । फेर हमर आँखी मा छल कपट के परदा बंधाये हावय। काला देखबो ?''

दुखियारीन के आँखी रगरगाये लागिस अब।

               "महुँ हा ओ मनमोहना ला देखत रेहेंव अउ ओहा मोला। टुकुर-टुकुर , बिन मिलखी मारे। पंथी नाच होवत रिहिस। आरती भजन होइस। सब मगन रिहिस अउ मेहां मगन रेहेंव ओखर गुरतुर गोठ मा।''

सुरता मा बुड़गे रिहिस दुखियारीन हा अब। 

"आज साँझकुंन ददा ला पठोहु तुंहर घर। तोला मोर बर मांग लिही । तेहां बलाबे न अपन घर ...?'' 

जवनहा  राजकुमार किहिस। मेहां मुच ले मुचका देव लजावत। नवा घर बर नेव कौड़ई होवय कि नवा योजना  बर - बिहाव। आज के दिन अब्बड़ फलदायी होथे। राजकुमार के ददा अउ सगा मन  घर आइस हमर अउ गोठ-बात घला करिस।

"तुमन अब्बड़ बड़का हावव अउ हमर बियारी ले दे के होथे।''

मोर ददा किहिस।

"उच्च नीच बड़का छोटका के गोठ नइ हे सगा ! जब मन मिल जाथे तब नत्ता जुरथे।'' 

ददा ला समझाये लागिस राजकुमार के ददा हा। मोर दाई हा घला मोर ददा ला समझाइस मोर बिचार पुछिस तब हाव किहिस। 

हमर दुनो के बिहाव होगे। करजा बोड़ी घला करिस फेर उछाह मा कमती नइ करिस।

                  गरीब के बेटी आवव कहिके आगू - आगू ले जम्मो जिम्मेदारी ला निभायेंव। सास ससुर देवर जेठ , जम्मो कोई ला दाई ददा अउ भाई भइया मानेंव। कतका ठोसरा मारिस मोला छोटे घर के बेटी आवय कहिके । खाये पीये बर, पहिरे ओढे बर, रांधे गढ़े बर। घर के गोठ ला बाहिर नइ लेगेंव भलुक अगरबत्ती बन के ममहायेंव। जतका जरत गेंव ओतकी ममहावत गेंव। दू बच्छर भर नइ बितन पाइस अउ ताना सुने लागेंव। कोनो बांझ काहय, कोनो ठगड़ी , कोनो निरबंसी। अब्बड़ सहेंव सहत भर ले अउ अब नइ सही सकेंव।

"तोर बेटा जोजवा हावय धुन मोर कोरा मा दुकाल परगे हावय। दूध के दूध अउ पानी के पानी हो जाही। तोर बेटा ला भेज डॉक्टर करा टेस्ट करवाबो दुनो कोई के।''

छे बच्छर ले ठोसरा सुनत रेहेंव। आज मुँहू उघारेंव सास करा।

"बंचक , घर के मरजाद ला अब गली खोर मा उछरत हावस। तुमन गरीब अउ छोटे घर के मन का जानहु कुल अउ कुल के मरजाद ला ?  तोर का करनी..? का चाल..? का पाप आय तेन ला तिही जान..कतका सतवंतिन बनत हस तेहां। कोनो पाप करे होबस तेखर डाड़ ला देवत हे भगवान हा। .....अउ तोर संग मा मोर बेटा झपावत हाबे।''

सास अब्बड़ बखानिस, मनगड़हन्त लांछन लगाइस । माइलोगिन के पीरा ला, माइलोगिन जान डारतिस ते कतका सुघ्घर होतिस। नारी परानी के रंदीयाये घांव ला अंगरी मा अउ कोचकथे अइसन माइलोगिन मन । तब बेटी दुख भोगही कि राज करही....? 

              जम्मो के ताना सुनत रेहेंव तब छइयां मिलत रिहिस रेहे बर। आज मुँहू उघार देंव छइयां सिरागे। सास तो आगू ले टुंग - टुंगाये रिहिस घर ले निकाले बर। ससुर अउ गोसइया आज चेचकार के निकाल दिस सिरतोन।

" निरबंसी के का बुता ये डेरउठी मा।'' 

नेवरनीन रेहेंव रौंद डारिस मोला।  अब जुन्ना होगेंव मेहां। ....अउ जुन्ना कुरता के का बुता ..? तिरिया का आय ? ओन्हा कुरता आवय ओ राजकुमार  बर। 

"मोर बाबा जी जानथे कतका लबारी के चद्दर ओढ़े हावस तेला। ओला झन ठग। आचरण मा ईमान राख समाज मा ओहदा पाये बर उपरछावा पुजारी बने हस तेहां । फेर सब देखत हावय मोर देवता हा..! देख बाबा जी ! मेहां मन बचन अउ करम ले कोनो पाप नइ करे हँव ते मोर कोरा मा फूल फूलो देबे । मोर जीवित बबा ! मोरो कोख ला हरियाबे । तहुँ सुन मोर पतिदेव रातकुन के सुरता ला अंतस मा बसा के जावत हँव।

                पथरा मा पानी ओगर जाही । अतका आस ले ओ घर ले निकलगेंव महुँ हा मायके के रद्दा।

दुखियारीन बतावत रिहिस। आनी-बानी के रंग रिहिस ओखर चेहरा मा।

                  रोजिना पूजा करव जैतखाम के अउ बाबा जी ला गोहरावंव। छातागढ़ पहार के औरा- धौरा के रुख मा आज घला जिंदा बिराजे हस। हवा मा कपड़ा टांग के सुखाये हस। पानी मा रेंगे हस। नांगर के पड़की ला बिन धरे खेत जोते हस। साँझकुंन आगी मा लेसाये भूंजाये फसल ला बिहनिया फेर लहलहाये हस। ..कोन नइ जाने तोर चमत्कार ला। महुँ ला बना सपूरन माइलोगिन । तेहां भैरा नइ हस। हिचक - हिचक के रोये लागेंव मेहां। 

आज एक बेरा बाबाजी ऊपर अउ आस्था बाढ़गे । अपन मयारुक बेटा- बेटी के गोहार ला अनसुना नइ करे। महीना बितन नइ पाइस अउ कोरा मा डुहरु धरे के अनभा होये लागिस।  बेरा पंगपंगाइस अउ डुहरू ले फूल फूलगे अपन बेरा मा। छाती मा गोरस के धार फुटिस। अउ लइका के केहेव - केहेव रोवई ...सुघ्घर। जैतखाम मा घीव के दीया बारके असीस लिस ददा हा आज।  

                       गाँव भर तिली लाडू बाटिस  ददा हा अउ गौटिया घला । 

आज राजकुमार आगे अपन अधिकार जताये बर। 

"मूल ला भलुक छोड़ देबे ब्याज ला भरोसी ले आनबे ।''

"अइसना तो केहे रिहिस सास हा । लइका ला लेगे बर आय हँव ..।''

गोसाइया राजकुमार मुचकावत किहिस।

"...अउ मोला ?''

" त तोला कइसे लेगहु ? आने मोटियारी ला चुरी पहिराके लाने हावव हप्ता दिन आगू ।''

राजकुमार फेर किहिस छाती फुलोवत।

"सोज्झे कह ना जुन्ना घिसाये पनही ला फेक के नवा पनही पहिर डारेंव। माइलोगिन ला पनही तो मानथस न ! मोला बांझ ठगड़ी कहिके निकाल देस । फेर बाबा जी ले बिनती करथो मोर सौत के कोरा झटकुन भर दे।''

"लइका ला दे । जादा भाषण झन झाड़ ..।'' 

गोसाइया फेर तनियाये लागिस।

मेहां मांग मा कुहकू भरे ला नइ छोड़व, चुरी बिछिया ला नइ उतारो मंगलसूत्र ला नइ हेरव तभो ले तेहां मोर बर मरगे हस अब। मोर बेटा ला छू के तो देख। मोर बाबा जी हा छाहत हाबे...। राजकुमार लइका ला धरे लागिस। ...हाथ गोड़ कांपगे । काया पछिना - पछिना होगे। गोसाइया राजकुमार झनझनागे फुलकाछ के थारी बरोबर । आगू कोती कतका उज्जर दिखथे फेर पाछु कोती ...करिया, बिरबिट करिया। जम्मो दंभ अउ गरब चूर - चूर होगे रिहिस राजकुमार के। 

                चार दिन के बेटी दू दिन के दमाद ओखर ले जादा कुकुर समान। बेरा बीतत गिस  दाई ददा घर, अउ अब भइया भौजी के राज हमागे रिहिस। सतनाम भवन के तीर के एक घर मा रेहेंव । निंदई-कोड़ई, रोपा - पानी, रेजा - मजदूरी जौन मिलथे सब कर लेथन । अउ अइसना लइका बाढ़त हे।.... अउ आज अतका बड़का होगे कि लइका बर संसो नइ हावय मोला।

                           आँसू मा फिले अपन जिनगी के किताब के जम्मो पन्ना ला मोर करा उलट-पुलट डारिस दुखियारीन हा। आँखी के समुन्दर ला पोछिस। महुँ हा  आँखी कोर के आँसू ला पोछेंव। 

खोर के कपाट बाजिस अउ साइकिल के आरो आइस । सांवर बरन, कोवर - कोवर हाथ गोड़, मुचकावत चेहरा.... सुघ्घर। हाथ मा झोला धरे । झोला मा मुर्रा मसाला अउ डिस्पोजल प्लेट। पठेरा मा मड़ाइस अउ आके टुप-टुप पांव परिस।

"का बुता करथस बेटा ? अभिन तो नानकुन हावस।''

"भूख तो छोटका अउ बड़का नइ चिन्हे नरस मैडम जी। जम्मो कोई के पेट लांघन मा बिलबिलाथे। मुर्रा भेल बेचथो। उही सुभीत्ता आवय बनाये बर अउ बेचे बर।''

लइका जम्मो  रेसिपी ला घला बताइस । मेहां लइका के मुँहू ला देखत रेहेंव। मेहनत के पइसा ला महतारी ला देवत अब्बड़ दमकत रिहिस।

"...अउ पढ़े बर ?''

"सातवी पढ़थो नरस मेडम। स्कूल ले छुट्टी होथे तब बेचथो मुर्रा भेल। छुट्टी के दिन दिनभर बेचथो । अभी जब ले दाई ला गिनहा लागत हाबे तब ले दु-तीन दिन नागा करथो स्कूल जाये बर। तभे तो दाई के ईलाज बर पइसा सकेलहु।''

लइका मुचकावत बताये लागिस।

"अब्बड़ सुघ्घर गोठियाथस का नाव हाबे तोर ?''

फेर पुछेव।

"सोनकुंवर नाव हाबे मोर। डॉक्टर बनहु अऊ दाई के ईलाज करहु। दाई के दु सौ ग्राम के दिल अब्बड़ दुख पीरा सहे हे। ओखरे सेती कुछु बीमारी होगे हे कहिथे। जम्मो ला बने करहु मेहां।''

सोनकुंवर किहिस।

"हाव बेटा ! बन जाबे।''

आसीस देयेंव अउ घर जाये बर उठगेंव। हाथ जोर के जोहार करेंव।

सिरतोन अब्बड़ दुखियारी हाबे बपरी दुखियारीन हा। कोनो मनोरोगी नइ हावय भलुक गुनवंती हाबे दुखियारीन हा। आस्था मा कोनो सवाल नही अउ विज्ञान मा कोनो उत्तर।सिरतोन नारी परानी गोड़ के पनही आय का..? मोरो गोसाइया महुँ ला छोड़ देहे। दहेज मांग के हलाकान करे अउ नइ दे सकेंव तब....।

रातभर नींद नइ आइस गुनत-गुनत। 

                     "सोनकुंवर अभी ले कतका कमाबे अभिन पढ़े के उम्मर हावय। पढ़। मोर घर आ। बदला मा अपन घर के अमरित कुंआ ले बाल्टी भर पानी ले आनबे। मोर घर के पानी मा सुवाद नइ हे।''

 सोनकुंवर ला अइसना केहेंव। लइका आये, आगे मोर तीर।  कभु चिला फरा खवावव तब कभु  इडली दोसा उपमा..। घर मा मेहां पढ़ावव अउ स्कूल मा...।

"स्कूल के फीस के संसो झन कर।  तोर लइका  होनहार हावय ।अब्बड़ उड़याही उप्पर अगास मा।'' 

"तही जान नरस दीदी ! अब तो कोन जन के दिन के संगवारी हावव मेहां ते।''

दुखियारीन किहिस ओखर तबियत बिगड़त रिहिस अब। ..... एक दिन दु बेरा हिचकिस अउ पंछी उड़ागे खोन्धरा छोड़ के। 

"दाई ! ''

 मोला पोटार के रो डारिस सोनकुंवर हा। ओला सम्हालेंव समझायेंव। 

             लइका सोनकुंवर अब होस्टल मा रही के पढ़त हावय। नव्वी, नव्वी ले दसवी,ग्यारहवी बारवी। पढ़ाई लिखाई तो फोकट मा होवत हावय फेर आने खरच बर पइसा पठो देथव। सरकार ला धन्यवाद घला देथव गरीब लइका ला पढ़े बर पंदोली देवत हावय तेखर सेती।

             अब तो मोरो ट्रान्सफर होगे हावय रायपुर। नवा जगा , नवा नत्ता- गोत्ता ,नवा  रस्दा सब नवा। शुरुआत मे हियाव करेंव। फेर तो अपन गिरहस्ती मा महुँ रमगेंव। अब  मोरो बिहाव होगे रिहिस। पर के लइका बर कतका मोहो राखबे। चिरई चारा चरे ला सीख जाही ! उड़ाये ला तो जानत हावय। इही गुनत सोनकुंवर ला बिसराये लागेंव हलु - हलु ।

                 आज जब ले सुने हावव तब ले मन मंजूर होगे हाबे। अब्बड़ सुने हँव ओखर नाव । बिदेस ले आवत हावय । राज के स्वास्थ्य मंत्री अगवानी करही। डॉ एस के मार्कण्डे आवत  हावय। विश्व प्रसिद्ध हार्ट स्पेशलिस्ट । "हार्ट प्रॉब्लमस, केअर, डायग्नोसिस एंड रिसेंटली इनोवेशन इंस्ट्रूमेंट्स ''  इही  टॉपिक मा डॉक्टर  साहब के उदबोधन रिहिस। पेपर मा छपाये फोटू ला देखेंव। चाकर छाती फड़कत भुजा गरब के अंजोर चेहरा मा , फोटू ला दुलार करेंव। सिरतोन सोनकुंवर बरोबर दिखत रिहिस। फेर ..मन के एक कोंटा ले आरो आइस। जेखर दाई ददा कोनो नइ हाबे अतका बिद्वान कइसे हो जाही..? अतका दिन ले कोनो सोर खबर नइ लेये हँव महुँ हा। हां... एक दू बेर पूछे रेहेंव तब रायपुर भोपाल अउ दिल्ली के मेडिकल कालेज मा पढ़त हँव केहे रिहिस  अउ अब........  बिदेस जाके ? कइसे अतका पढ़ लिही। कोनो हमसकल घला हो सकत हावय। ..आनी-बानी के बिचार आइस मोर मति मा।

                        महुँ जाहू मेडिकल कॉलेज दूध के दूध अउ पानी के पानी हो जाही । आटो करेंव अऊ रेंगे लागेंव  रायपुर के मेडिकल कॉलेज।

दिसम्बर के महिना सब अपन लछमी ला खेत ले कोठार , कोठार ले कोठी मा परघावत हावय।  बाबा घासीदास अउ प्रभु यीशु मसीह के जन्म के उछाह घला मनावत हाबे , ये दुनो पबित्तर दिन के महीना भर।

                 सभागार मा भाषण होइस बड़का शिक्षाविद वैज्ञानिक डॉक्टर  अउ बड़का वक्ता आये रिहिस। अउ भाषण देवत रिहिस । मोला तो गार्ड छेक दे रिहिस। अब्बड़ बिनती करेंव तब खुसरेंव। जम्मो कोई ला ऑटोग्राफ देवत रिहिस ओहा। अब मोला देखिस अउ प्रोटोकॉल ला टोर के आइस । सुघ्घर उही बरन । दमकत चेहरा अउ गमकत मन। मुचकावत आइस अउ टुप-टुप पांव परिस मोर जवनहा हा।

"दाई तोर बेटा सोनकुंवर। तोर परसादे अउ गुरु बाबा के आसीस ले मोर सपना पूरा होगे दाई ! ''

सोनकुंवर के होठ मुचकावत रिहिस अउ आँखी मा नूनछुर पानी तौरत रिहिस।

"अब सोनकुंवर नही बेटा ! डॉक्टर सोनकुंवर।''

आँखी ले अरपा पैरी के धार बोहाये लागिस मोर। पोटार लेंव मेंहा।

मोर बेटा ! मोर सोनकुंवर !

मोर दाई ! मोर महतारी !

"नानचुन नर्स के बेटा ! अतका बड़का डॉक्टर ?''

विभाग के जौन अधिकारी  हमन ला हिरक के नइ देखे वहु हा मोर तीर आके बधाई दिस। फोटो खिचवाइस। 

"मोर दाई अब्बड़ जतन करिस मोर। अब्बड़ मिहनत करके पढ़ाइस  एकरे असीस अउ प्रेरणा ले नेशनल स्कोलरशिप लेये के काबिल बने हँव। ...अउ आज...।''

जम्मो कोई ला बताइस डॉ सोनकुंवर हा। जम्मो कोई थपोली मारिस।

                    अब अपन घर के रस्दा मा जावत हावव सोनकुंवर के गाड़ी मा बइठ के ।  आज घला सतनाम चौक मा पंथी नाच होवत रिहिस । सोनकुंवर गाड़ी ला ठाड़े करवाइस । अब प्रोटोकॉल ला टोरत  मंच मा ठाड़े होइस अउ बाबा जी के गोड़ मा माथ नवाइस। राग अलापिस ।

सन्ना ना नन्ना हो नन्ना...ना नन्ना.... !

सतनाम के हो बाबा ! पूजा करौ मैं सतनाम के.... ।

सतनाम के हो बाबा  ! पूजा करौ मैं जैतखाम के ..।।

पंथीनृत्य ....मन अघागे। उछाह के समुन्दर लहरा मारे लागिस। महु जोर से जय बोलाएव।


"बोलो गुरु घासीदास बाबा की -  जय !''


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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

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समीक्षा--// पोखनलाल जायसवाल: छत्तीसगढ़ भुइयाँ, उत्सवधर्मी भुइयाँ आय। इहाँ आय दिन तरा-तरा के उत्सव मनथे। ए भुइयाँ साधु-संत के भुइयाँ आय। ए भुइयाँ ले आदिकवि वाल्मिकी के सुर मुखरित होय हे, त इही च भुइयाँ ले बाबा गुरु घासीदास जी के शोर (संदेश) *मनखे मनखे एक समान* सरी संसार म गुँजे हे। अउ आजो उँकर अनुयायी मन ए शोर ल सरलग बगरात हें। छत्तीसगढ़ के इही धरती म संत कबीर दास के बाणी लोक हित म लोकजीवन म महानदी के निर्मल धार सहीं बोहावत सदाकाल ले बहत हे। संत माता कर्मा के असीस ले फलत-फूलत हे। अइसन संत महात्मा के ए पुण्य धरा वंदनीय हे। ए धरती के बंदना संग इहाँ के लोकजीवन मिलके उत्सव मनावत रहिथें। ए उत्सव समाज ल एक सुतरी म जोर के रखथे। इही बहाना लोगन एकजुट होथें। हर उत्सव ह लोगन ल जुरियाय के मौका देथे। ए उत्सव के बहाना कतको झन पहिली बेर मिलथें, नावा परिचय होथे। नवा रिश्ता जोरे के अवसर पाथे। सतनामी बंधु मन सतनाम के अलख जगावत सादा झंडा के तरी आके समाज ल एकता के सीख देथें। सादा झंडा म बहुत अकन संदेश देथे। बाबा गुरु घासीदास जी के जयंती के महापरब गुरु बाबा के संदेश जन जन तिर पहुँचाय के परब आय। इही महापरब के सुग्घर जीवंत वर्णन के नेंवम खड़े नारी विमर्श अउ सपना पूरा करे के प्रेरणा देवइया कहानी आय सोनकुँवर।

       तब ले हमर समाज म नारी उत्थान के कतको क्रांति आइस फेर समाज म नारी के हाल कोन जनी काबर ते जस के तस नजर आथे। आजो नारी शायद अपन उत्थान बर ओतेक उदिम नइ करय अउ न सजग नजर आय। खुदे अपन नारी जात के संसो ल छोड़ नारी ऊपर लाँछन लगाथे। नारी के शोषण  अउ उँकर संग होवइया अत्याचार के मूल म कहूँ न कहूँ नारी च हे। शारीरिक शोषण के बात जरूर अलगे हो सकथे। नारी संबल बने के उदिम करथे फेर सजोर नइ हो पाय। अपन दम म जौन खड़ा होथें ओकरे टाँग खींचे धर लेथे।

      ए कहानी म घलव दुखियारिन अपन मयारू संग बिहा के ससुरार जाथे तो फेर सुख नइ पाय। अमीर गरीब के भेद ह ओला सम्मान नइ देवा सकय अउ दू बछर के बीतत ले दुख के गहिरा म गिर जथे। कलेचुप सहे के कोशिश करथे फेर मनखे कतेक अत्याचार ल सहि पाथे। एक दिन जुवाब तो दे हे ल परथे। नारी जात बर जुवाब देवई ह कोनो श्राप ले कमती नोहय। जुवाब देतेच साठ लाँछन लगना तय ए। जौन दुखियारिन संग होथे।

       दुखियारिन ह जम्मो दुख पीरा ल सहत हिम्मत जुटाथे अउ अपन पाँव म खड़े होय बर सोच लेथे अउ नारी ल पाँव के पनही समझइया समाज ल ठेंगा दिखाय के ठान लेथे। 

      नारी के ताकत होथे ओकर आस्था अउ विश्वास। अपन ईष्ट देव ल सुमिरत वो सबकुछ ओकरे ऊपर छोड़ देथे। उँकर इही आस्था अउ विश्वास पथरा म पानी ओगरा देथे। बंजर भुइयाँ ल हरिया देथे।

      ससुरार ले निकलत बेरा दुखियारिन के आत्मविश्वास अउ आस्था ल देखव- "तहूँ सुन मोर पतिदेव! रातकुन के सुरता ल अंतस म बसा के जावत हँव।"

    अइसन संवाद ले कहानीकार नारी जाति के सम्मान बचा के रखथे। जउन सराहे के लइक हे। नारी के पतिव्रत ल मान दे हे उदिम आय।

      बाबा गुरु घासीदास के असीस अउ कृपा प्रसाद ले सपूरन माईलोगन बने के ओकर मनोकामना पूरा होथे। ...वाह रे पुरुष प्रधान समाज! तैं तो महतारी के मया ल ममता ल ताक म रख लइका ऊपर हक जताय म माहिर हस। महतारी के ममता के के कुटका करे म तोला सुख मिलही, तहीं जान...। मूल ल भलुक छोड़ देबे,  व्याज ल भरोसी ले ले आनबे .... कतेक विडम्बना ए समाज के... दूसर मूल मिले पाछू छोड़ नइ देतिन ए ब्याज ल मूल बर।...हित कइसे सधाही... 

       दुखियारिन जिनगी के संघर्ष हार जथे।... सोनकुँवर बड़ भागमानी आय जउन ओला नर्स दाई के रूप म हियाव करइया मिल जथे अउ सरलग आगू बढ़त जाथे आँखीं म सँजोये सपना ल पूरा करे बर। 

      सपना पूरा करे पाछू अपन परम्परा संस्कृति ल बिसराय नइ हे। ओला ढकोसला अउ खर्चीला बता नजरअंदाज नइ करय, इही ह समाज बर संस्कारवान् अउ शिक्षित मनुख के पहिचान आय।  जेकर ले समाज के उत्थान तय हे। अइसन म नर्स दाई ल भला कइसे भुलातिस डॉ. एस. के. मार्कण्डेय... वो तो ओकर बर आजो उही नान्हे सोनकुँवर आय। सिरतोन तो लइका तो दाई ददा बर जिनगी भर लइका च तो रहिथे। 

       कोनो कोनो ल दू एक जघा कहानी म अतिश्योक्ति/अकल्पनीय लग सकथे।

जइसे कि दुखियारिन के राजकुमार ल कहना- "...मंगलसूत्र ल नइ हेरँव तभो ले तेंहा मोर बर मरगे हस अब।"


       "मोर बेटा ल छू के तो देख। ..."

शेरनी कस ओकर फटकार शोषण के विरुद्ध मुखर स्वर आय अउ आत्मविश्वास घलव। एक नारी अइसन कइसे कहे सकही, कहिके अकल्पनीय लागथे। फेर ए नारी सशक्तिकरण के आरो आय।

     दूसर कोति राजकुमार जब लइका ल धरे के उदिम करथे त ओकर हाथ गोड़ के कँपई, पछीना पछीना होना.... ए एक बारगी अतिश्योक्ति तो लगथे।फेर गुनान करन त पाथन मन म जब डर हमा जथे त कँपई स्वाभाविक ए। अंतस् म पाप रही त अंतर आत्मा काँपबे करही। राजकुमार के संग इही होथे। अइसन बारिक चित्रण कहानीकार के लेखन कौशल आय।

कहानी के संवाद अउ शैली गजब हे। हाना मुहावरा के प्रयोग सुघरई ल बढ़ात हे अउ पाठक ल जोरे रखे म सक्षम हे। आँचलिकता के पुट ले कहानी पाठक ल अपने तिर तखार के दर्शन करा देथे।

सुग्घर कहानी बर कहानीकार चंद्रहास साहू ल बधाई💐🌹

पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह, पलारी

जिला बलौदाबाजार

Thursday 15 December 2022

बिजली के सवारी (कहानी)

 बिजली के सवारी (कहानी)


   घोड़ा चघे के सउँख कोन ल नइ रहय? लइका मन ला नानेपन मा खियाले-खियाल के घोड़ा चघे बर मिले रहिथे। चाहे खेलौना के घोड़ा होय, चाहे अदमी बनय। लइकन मन ये बनउटी घोड़ा मा चघ के अतका मजा उड़ाथे के  झन पूछ! अब तो मोटर -गाड़ी के जमाना मा पहिली के घोड़ा मन नँदागे हे। कोनो-कोनो गोहड़वार राऊत मन मेर कभू-कभार घोड़ा देखे बर मिलथे। अइसन मा लइका मन ल कहूँ सिरतोन के घोड़ा के सवारी करे ल मिल जाय त खुशी के का ठिकाना होही!

        गाँव के मुड़वाचर मा सड़क के तीर स्कूल,  अउ ओकरे ले सँटे दइहान हावय। स्कूल के छुट्टी होगे रहय। पढ़इया लइकन मन छुट्टी पाछू सँझौती पहर एती-ओती दइहान, स्कूल के मैदान अउ कोनो मन सड़क तीर मा संगी के संगी  खेलत रहँय। तइसने राजा ह एकठी घोड़ा ल आवत देख डारिस। अउ देख के कहिथे, वोदे घोड़ा आवत हे का? तहाँ सँग मा खेलइया सँगी मन पुछिस, कहाँ? कहाँ? राजा ह अपन संगी मन ल घोड़ा ल देखाइस। तहाँ हाव ले! हाव ले! कहत सँगी मन कुलकत चिल्लाय लगिन, घोड़ा! घोड़ा! घोड़ा!

   चिल्लई ल सुन के सब्बो छोट-बड़ लइका मन सड़क तीर सकला गँय। लइकन के भीड़ ल देख  बब्बू मियाँ घलो पहुँचगे। ओती ले नानचुन घोड़ा सड़के-सड़क रेंगत गाँव डहर  खुडुक- कुड़क आवत रहय। घोड़ा बर लइका मन के उछाव ल देख के बब्बू मियाँ घोड़ा ल पकड़े के मन बनाइस। जइसे घोड़ा ह तीर मा आइस बब्बू मिया पुचकारिस, त घोड़ा ह चुपकन खड़ा होगे। तहाँ बब्बू मियाँ गेरवा म बाँध लिस। बाँधे के पाछू बब्बू मियाँ ह घोड़ा ल जाँचे-परखे लगिस। परखे मा पता चलिस के, वो घोड़ा ह असल मा बछेड़ी पिलवा हरय, अउ बड़ सिधवा। जउन हा गाँव मा रसदा भटक के आगिस होही। 

   लइका मन बर घोड़ा रहय चाहे घोड़ी, के बछेड़ी, ओखर ले उँनला का मतलब! उँकर बर तो सब घोड़ेच ए। सिधवा जान के लइका मन घोड़ा के तीरे-तीर मा लोरयँ। कउनो छुवै कउनो पुचकारै। मगन हो के अपने-अपन कुलकयँ। अउ ओकर नाँव धर दिंन बिजली!

बब्बू मियाँ ह हाव-भाव म लइकन के मन ल चरच लिस के इनमन घोड़ा चघे बर बियाकुल होवत हें। अउ पूछिस!  घोड़ा चघहू? सबो लइका मन तहां एक्के सँघरा हाव! हाव! कहिके थपोली बजावत उदके लगिन।

   बब्बू मियाँ ह सबले पहिली नान-नान लइकन नीनी, नैना, मोटू, लोरी, गोलू अउ अरसद ल, फेर हुसियार लइका मन ल ओसरीपारी "बिजली के सवारी" कराइस। बिजली घलो सीखे-पढ़े कस  टिंग-फूस नइ करिस। लइकन मन समझगिंन के बिजली कतका सिधवा हे,अउ अब हमन खुदे सवारी कर सकथँन।बिजली के सवारी करके लइका मन अतका खुशी मनावँय के झन पुछ! अब "बिजली के सवारी" करते-करत मुँधियार होगे। बब्बू मिया ह बिजली  ल अपन घर मेर अमली के रुखवा तरी बाँध धिस। तिहाँ सब लइका मन अपन-अपन घर चल देइन। 

       "बिजली के सवारी" मा लइकन मन के साध अभी पुरा नइ होय रहय भलुक अउ बाढ़गे। दूसरइया दिन बड़े-बिहनिया ले करन, पंडा, समीर, विकास, बंशी अउ राजा मन बिजली मेर आगे रहँय। पोंछँय, खजुवाय त बिजली ह अउ गत ल दे रहय। सबो झन बिजली के चारो-मूड़ा  देखत-ताकत घेरे खड़े रहँय।  बिजली के सुभाव ह पहिलीच ले निमगा सिधवा अउ मनखहिंन रहय। तेकर सेती झटकन लइकन मन सँग हिल-मिल गय। तिहाँ पंडा ह अमली जरवा म बँधाय डोरी ल छोरिस अउ चारा चराय बर बिजली ल लेगे लगिस। सँगे-सँग सबो लइका मन घलो पाछू-पाछू गइँन। चारा चराय के बाद सबो लइका मन पारी के पारी खूब  सवारी करिन। एती लइकन मन ल स्कूल जाए के बेरा घलो होवत रहय। सबो लइकन तरिया म नहाय बर गइन त बिजली ल घलो ले गयँ। सबले पहिली बिजली ल नहवाइन-धोइन अउ पार म खड़ा कर दिंन। फेर अपन मन नहाके बिजली के गेरवा मा लंभरी डोरी फॉसिन अउ काँदी चरे बर बाध के स्कूल जाए बर अपन-अपन घर गयँ। स्कूल मा खाना छुट्टी के बेरा एक पइत अउ लइका मन बिजली के हियाव अउ सवारी करिन। साँझ कन स्कूल के छुट्टी होइस त घर मा बस्ता ल झट ले रखिंन अउ तुरते बिजली मेर आइँन अउ सवारी करिन। लइकन मन ये उदिम नितदिन करे लगिंन। ए बीच मा लइकन मन दूसर खेल खेले बर निमगा भुलागे रहँय।

         लइका मन के अही बूता सरलग तीन दिन ले चलते रहय। जेमा बिजली के बरोब्बर धियान घलो रखे जावत रहिंन। चौथइया दिन घलो बिजली ल बढ़िया धो-नहवा के चारा चरे बर बाँध के स्कूल चल दिंन। जब छुट्टी होइस त रोज जइसे लइका मन दउड़े-दउड़े आईन, त बिजली अपन ठउर मा नइ रहय! एती-ओती तरिया कोती अउ गली-खोर सब डहर ल खोजिंन, फेर बिजली के कहूँ सोर नइ मिलिस। सब झन उदास होके बइठ गँय। आज कोनो ल खाय-पिये बर मन नइ लगिस। रात भर नींद नइ आइस अउ खटिया म छटपटा-छटपटा के रात ल काटिन।

      दूसर दिन राजा मन स्कूल ल नाँगा कर देइन। अपन सँगी मन सँग बिजली ल खोजे बर  निकल गँय। करन अउ पंडा बारी-कोला अउ नँदिया डहर ल खोजय, त समीर अउ विकास  खेत-खार बरछा डहर, अउ राजा, बंशी मन परोसी गाँव डहर सोर लगावँय। फेर बिजली कहाँ गइस, तेन सोर नइ लग पाइस। पढ़ई -लिखई मा कखरो मन नइ लगय। सब थक -हार के घर बइठ गँय। अइसे-तइसे महिनों बीत गे। धिरे-धिरे बिजली के सुरता लइकन के मन ले बिसरत रहय। 

     बिकट दिन बाद जब स्कूल के छुट्टी होइस अउ सब अपन-अपन घर जावत रहय। ओतके बेर राजा ह जोर से चिल्लाईस बिजली! 

 लइकन मन के कान ठढ़ियागे! तुरते भदभिद-भदभिद सड़क कोती दउड़िन। देखिन त बिजली ह ओही अमली तरी अपन माई तीर खड़े रहय, अउ ओही मेर एक झन डोकरा  गठरी-मोटरी मढ़ाय बीड़ी पीयत बब्बू मियाँ सन बइठे हे। ए देख लइका मन  ठोठकगे! ए घटना लइकन के अंतस ल झकझोर दिस। अउ सरी उछाव धरे के धरे रहिगे।

   लइका मन समझगे के बिजली ह अपन असली मालिक सँग हे। अउ बिजली ल अही ह आके लेगे रहिस होही। लइका मन के हिरदे सरल होथे। उँमन अपन आप ल रोके नइ सकिन। बिजली बर अंतस के बेदना ह अपने-अपन कंठ ले निकरे लगिस। बिजली ए, हमार बिजली! ए बिजली! 

    बंशी ह राउत डोकरा ल पूछय, हमर बिजली ह तोर ए ग! हाव ग मोर ए, डोकरा ह बोलिस। कहाँ लेगत हस ग बिजली ल , जंगल चढ़त हे जी! छोड़दे न ग! बिजली ल। काबर छोड़हूँ जी! ए किस के सवाल-जवाब लइकन अउ राउत डोकरा संग होवँय। लइकन मन केंदरा-केंदरा के बोलँय जेकर असर राउत डोकरा ल नइ होवय।

       बब्बू मियाँ ह राउत डोकरा ल बिजली अउ लइकन के जम्मो कथा ल सुना डारिस। राउत बिचारा का जानय? वो तो जंगल जावत रहिस अपन गोहड़ी जिघा। लंबा रद्दा के सेती चार पहर के रात ल बिताय बर बिलमे हे इँहा। 

अँधियार होते जात रहय। तभो ले लइका मन बिजली के तीर ल छोड़ जाय के नाव नइ लेत रहँय। 


    ये देख लइकन के भाव म  डोकरा बोहाय लगिस। अउ मन पसिजगे।  काबर नइ लइकन के मन ल राखँव! इँखर मन ल मार के जाय मा मोला का फायदा हो जही? ये सोंच के राउत डोकरा ह कहिस- तूमन कालि जुअर  ससन भर बिजली के सवारी करहू जी!

    राउत डोकरा के आश्वासन पा के सब लइकन मन खुशी-खुशी अपन-अपन घर चल दिंन। जइसे बिहान होइस लइका मन पहुंच गँय। पहिली कस बिजली ल चारा चराइन। चारा चरा के स्कूल के बेरा ले ओसरीपारी सवारी  करिंन। फेर अपन सँग मा बिजली ल नहवाइँन धोइन।

    आज बिजली हा लइकन के बिकट दुलार पाइस। काबर के एकर बाद साएद बिजली हा दुसरइया इमन ला नइ मिलय तेकर सेती!

   जब लइकन मन नहा-धो के आइन त राउत डोकरा  के घोड़ी ह सजगे रहय। सरी समान पीठ म लदागे रहय। जइसे लइका मन लाके बिजली ल गेरवा ले ढिलिन ओहा अपन माई मेर जाके ओध गय। अउ बिजली के जवई ले लइकन के मन छोट हो गय। 

    बिजली के आय ले राउत ह उचट के घोड़ी उपर बइठ के लगाम ल धरिस अउ हाँकिस। जइसे घोड़ी ह रेंगे ल धरिस, बिजली ह खदबिद-खदबिद अपन माई ले आगू भागिस अउ दूरिहा ले लहुट के लइकन मन तीर आगे। तइसने डोकरा ह कहिथे..लइकन हो! तूमन मन ल छोट झन करव। हमन जब-जब एती आबो-जाबो, तब-तब तूमन ल बिजली के सवारी करे बर मिले करही। ए सुन के लइकन के मन मा उछाव छागे। सबो झन अब बिजली ल गजब दुरिहा ले सँगे-सँग जा के बिदा करिन। अउ बिजली ह अपन माई के कभू आगू कभू पाछू होवत आँखी ले दूरिहागे।

  

      कहानीकार

    देवचरण 'धुरी'

   कबीरधाम छ.ग.।

   8817359157

साप्ताहिक बजार

 साप्ताहिक बजार 


          देशी पताल ले....देशी पताल .... 20 के ढाई किलो .... 20 के ढाई किलो ... अरे वाह रे पताल दिखे मा लाल-लाल। छाँट के लेहूँ जी...? छाँट के लेबे 15/- किलो परही... आँय ..?

          जब झोला ले के साप्ताहिक बजार म निकलबे तब अइसन विहंगम दृश्य देखते ही बनथे।सब्जी बेचने वाला मन के एक ले बढ़ के एक अंदाज । एक झन चिल्लात रहय- फोकट में आव... झोला भर के ले जाव। तिर म गेंव ता भाव बताय ल धर लिस। कहे लगिस आय के फोकट ये गुरुजी ख़रीदबे ता पइसा लगही ।

          गोभी लो भाय गोभी.... एक नम्बर का गोभी 20/- किलो ...।  जब कोनो ओकर डहर ध्यान नइ दिस तब ओ चिल्लाय लगिस - अरे ले जाव यार चोरी का माल 20 का डेढ़  20 का डेढ़...। महुँ सोच प परगेंव 5 मिनट 20 का डेढ़ कइसे होगे...??

           चना खाव बदन बनाव... अरे वाह रे गोल्लर चना... झन करबे मना.. हो जही तनानाना...। ये गोल्लर चना बेचने वाला के बदन संडउवा कांड़ी ले ओ पार। दुसर के बदन बनाय ल चले हे। जब एके प्रकार के साग भाजी ल दू झन आजु बाजू बेंचथे तब तो उँकर कम्पीटिशन देखे लइक लरहिथें। 

           मटर बीस...  मटर बीस...  मैं पूँछेव 20 रुपिया का..? किलो ? अरे नहीं गुरुजी 20 रु पाव। अइसन ट्रेजडी घलो कई दफा हो जथे। 

           करेला देशी... करेला देशी... अरे ले जा यार आज नइ कमाना हे..

          धनिया ...धनिया... देशी धनिया .. अरे वाह रे खुश्बू....मा कसम ....। धनिया के जूरी ल लहरात  चिल्लात रहय । मंय सुन परेव अजय भाय ... सोंच म पर गेंव ये आदमी मोर नाम कइसे जान डरिस ...? बाद म ध्यान दे के एक घँव अउ सुनेव तब पता चलिस वो चिल्लात रहय- आजा भाय ... ।

         टिक्कड़ खट्टम.... टिक्कड़ खट्टम...लेजा करेला हावय भक्कम.... । करेला देशी...करेला देशी.. गज्जब का । करेला देशी तो समझ म आगे फेर ये टिक्कड़ खट्टम....काला कहिथे अब तक समझ नइ पायेंव। 

           साप्ताहिक बजार के एक खास बात उँहा बेचने वाला मन सब जिनीस ल देशीच कहिथें। रहय भले नहीं । मँय अनुभव करेंव कि देशी कहे ले सब्जी के बेचाय गारंटी रहिथे। देशी सुन के हर मनखे एक नजर पलट के जरूर देखही।  

            नींबू 20 के चार .... एक झिन लइका ह कहि परिस वो मेर तो 20 के 6 देवत हे ... नींबू बेचइया वाले खखवागे, कहिस- वहीं जा के लेना .... तेरा भाँटों है फिरी में दे देगा ...। 

           एक झिन सियानिन ल तो मँय आज तक नइ समझ पायेंव। कभू भी ओकर करा सब्जी ले बर जाबे रेट ल बताबे नइ करय। ओकर एके जवाब रहिथे ले जा ना बेटा..। परवल का भाव ये दाई ? सियानिन - ले जा ना बेटा..। फेर रेट ल नइ बताय। कुछु कहिबे ता एके बात तोर करा जादा थोरे लेहूँ। 

            साप्ताहिक बजार के आनंद ही कुछु अउ होथे। किसिम-किसिम के साग-भाजी तो मिलथे ही,सस्ता घलो मिलथे अउ मनपसंद के घलो। सब्जी लेने वाला मन घलो किसिम किसिम के होथे। कुछ मन बिल्कुल 4 बजे पहुँच जाथे भीड़भाड़ ले बाँचे बर, ता कुछ मन 6 बजे धक्का खाये बर। अउ कुछ मन 7 बजे के बाद जाथे सस्ता खरीदे बर। साप्ताहिक बाजार म हरही गाय अउ गोल्लर मन के अपन अलगे वर्चस्व रहिथें। चिटिक असावधानी ले आफत घलो आ जथे। गाय अउ गोल्लर एक घव कहूँ पइध गे तब फेर वो कहाँ ले मानथे।

            ढिमरिन मुर्रा केवल साप्ताहिक बजार म ही मिलथे। वइसने ढिमरिन मन के बनाय मुर्रा लाडू, राईजीरा लाडू उँकर फोड़े चना के सुवाद ही कुछ अउ होथे। 


*अजय अमृतांशु*

भाटापारा

गाँव के सप्ताहिक बजार ------------------------------

 गाँव के सप्ताहिक बजार

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गाँव मा हप्ता के कोनो निश्चित दिन म ,निश्चित जगा मा हाट-बजार भराथे तेला सप्ताहिक बजार कहे जाथे।जेन दिन भराथे तेकर अनुसार एकर नाम होथे जइसे के इतवारी बजार,सोमवारी बजार---आदि।आजकल कई ठन बड़े-बड़े गाँव मन म सप्ताह म दू दिन बजार तको लगे ल धर लेहे जेमा प्रायः एक दिन ह इतवार होथे ताकि पढंता लइका-लोग अउ नौकरी पेशा मन तको बजार के आनंद उठा सकयँ।

    सप्ताहिक बजार म स्थानीय गाँव के मन अपन रोजमर्रा के समान तो बिसाबे करथें , तीर-तखार गाँव के मनखे मन  तको ताजा साग-भाजी अउ जरूरत के जिनीस खरीदे बर आथें। सप्ताहिक बजार म बनेच भींड़-भाँड़ होथे।

     सप्ताहिक बजार म ओरी के ओरी किसिम-किसिम के दुकान खुल्ला भुइयाँ म तिरपाल या फेर बोरा बिछा के लगाये जाथे जेमा दुकानदार ह अपन समान ल मढ़ाके बेंचथे। येला पसरा कहे जाथे। कहूँ-कहूँ ग्राम पंचायत मन पक्का चौंरा तको बनाये हें ।कोनो-कोनो बजार म बादर-पानी अउ घाम ले बाँचे बर  शेड वाला चौंरा तको बने हे।अँधियारी ले निपटे बर फ्लड लाइट के जोखा हे।ग्राम पंचायत ह अपन आय बर अइसन बजार मन के नीलामी करथे अउ जेन ह बोली लगाके खरीदे रइथे वो ठेकेदार ह बजार म समान बेंचइया मन ले निर्धारित शुल्क वसूलथे।कई पइत कोंचिया,कोचनिन मन के ठेकेदार ले इही वसूली के नाम म झिकझिक तको हो जथे।

     ये सप्ताहिक बजार मन दू समे म लगथे।कोनो-कोनो जगा बड़े मुँधरहा ले त कोनो-कोनो जगा संझा तीन-चार बजे ले ।एकर पाछू ये सोच हावय के लोगन बिहनिया ले बजार करके अपन काम-बूता म जा सकै या फेर संझा काम-बूता,खेत-खार ले आके बजार करैं। कोनो प्रकार ले अकाम झन होवय। ग्रामीण व्यापार के सुग्घर सिद्धांत हावय ये हा ।

       सप्ताहिक बजार म ग्रामीण मन के सीमित जरूरत के प्रायः जम्मों समान के दुकान लगे रइथे। ताजा-ताजा मौसमी साग-भाजी,किराना समान, उठवा(रेडीमेड) कपड़ा , लुगरा-पोलखा, बर्तन-भाँड़ा, खई- खजेना,चना-मूर्रा,मिठाई, मछरी-कुकरा-अंडा, फल-फलहरी,टिकली-फुँदरी,चूरी-चाकी,सोना-चाँदी,डालडा के गहना, लइका मन के खेलौना, जड़ी बूटी, माटी के बर्तन, झाड़ू ,खरहेरा, सूपा, टोपली बेलना-चौंकी,हँसिया -टँगली, आदि --कतका ल गिनाबे ।कई पइत तो सोचे नइ रइबे तइसनो समान बजार म बेंचाये बर आये रइथे। 

   गाँव के सप्ताहिक बजार के स्थानीय निवासी मन बर अबड़ेच महत्व हे। वोमन ल छोटे-छोटे चीज बर दूरिहा शहर जाये ल नइ परै जेकर ले समय अउ धन दूनों के बँचत होथे।जेन साग भाजी अउ समान शहर म मँहगी म मिलथे वो ह गाँव के हाट-बजार म दू पइसा सस्तीच मिलथे काबर के शहर के  दुकानदार ह परिवहन खर्चा के संगे संग दुकान किराया, बिजली बिल ,नौकर चाकर अउ अन्य टेक्स मन ल जोंड़ के समान बेंचथे जबकि गाँव के बजार म वो समस्या नइ राहय।

   गाँव के बजार म स्थानीय महिला यहाँ तक के बुजुर्ग महिला मन ल जे मन खेत खार म मजदूरी नइ कर सकयँ तेनो मन ल पसरा म साग भाजी ,चना-मुर्रा आदि बेंच के अपन आवश्यक खर्चा बर पइसा कमाये के अवसर मिलथे। गाँव म उपजे सब्जी के फसल ल मंडी लेगे के जरूरत नइ परय- इही सप्ताहिक बजार म खपत हो जथे अउ अच्छा रेट मिल जथे।उपभोक्ता ल घलो ताजा तरकारी मिल जथे।

    ये सप्ताहिक बजार मन बारों महिना गाँव के कतको मनखे ल जेमा नवयुवक मन तकों शामिल हे रोजगार उपलब्ध कराथे। कई झन एकदम कम लागत म बिजनेस शुरु करके जिनगी के नवा रस्ता गढ़ लेथें अउ अपन गरीबी ल दूर कर लेथे। रोजी मंजूरी बर घर दुवार छोंड़के परदेश म भटके ल नइ परय। हाट बजार म दुकान लगाये के अलावा अपन खेती बारी के काम अउ बखत परे म गाँवे मजदूरी करके आय प्राप्त करे जा सकथे।

       कुल मिलाके गाँव के सप्ताहिक बजार ह ग्रामीण अर्थव्यवस्था म सहायक होथे। एकर बढ़वार होना चाही।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़


🙏🙏🙏

लरबक्की बजार*


 *लरबक्की बजार*


कबीरधाम जिला, बोड़ला विकासखंड, मैकल परबत के गोदी मा, चरनतीरथ के तीर बसे लरबक्की गाँव मा आज बजार हे। जिहाँ के बजार ह निमगा बैगा आदिवासी मन ले भराथे। अउ रोजगरिहा मन दुरिहा-दुरिहा ले मैदान अउ शहर कोती के। 

       हमन दूनोंझन (डॉ. पीसी लाल अउ देवचरण 'धुरी') चरनतीरथ धाम देखे बर गे रहेंन। लहुटती बेरा म लरबक्की  बजार  चमाचम भराए रहय। बैगा आदिवासी मन आनीबानी के पहिनावा पहिरे अउ  सिंगार करे रहँय। जेकर ले अइसे लगय के उँकरे ले बजार ह सजे हे। उँकर "बैगानी भाखा के गुरतुर गोठ ह हमर मन ल मोहे लगिस।

      जिंहा आनीबानी के मिठई साग-भाजी अउ रंग-बिरंगी कपड़ा-लत्ता सँग किसम-किसम के उपयोगी जिनिस बेचत बैपारी मन अपन गिराहक मन ल बलाय-बलाय के बेंचत रहँय।

ये देख के हमूँ मन ल जंगल छेत्र के बजार घूमे के सउँख लगिस। 

        सबले पहिली हमन ल लरबक्की बजार के पान खाये बर मन करिस। अउ पान वाले ठिहा म जा के पान बनवा के खाएँन। अउ पाँच के जघा दस रूपिया लेइस। आगर भाव बर कहेन त दूरिहा ले आए हँव भइया! कम मा परता नइ परय कहि दिस। हमूँ मन पान वाले भइया ल दूसरइया कुछू नइ कहेंन, अउ मूँह ल रँगा के बजार घूमे लगेन।

   बजार घूमत-घूमत देखेंन के आधुनिक सुविधा के जम्मों जिनिस बजार म मिलत रहय।फरक अतके रहय के भाव म डेड़हा-दूना रहय।तभो ले जादा नइ त थोरके, अपन जरूरत के जिनिस मन ल बिसावँय। 

   लरबक्की बजार मा मनिहारी दुकान, ओनहा दुकान, भँदई / दुकान, भँड़वा दुकान, बिजली वाले जिनिस के दुकान से रहय। गल्ला दुकान मा कोदो, कुटकी, चाउँर, दार, महुआ ल बैपारी मन बेंचय-बिसाय।

     बजरहा खानपान म हरियर-हरियर  साग-भाजी के संग सुकसी मछरी, फारम वाले कुकरी अउ बरहा मास घलो बेवस्था म रहय।  लोगन  मन के मनपसंद सेवाद के नासता बर होटल के भजिया अउ ... मिठई ह रहय। 

      लरबक्की के सप्ताहिक बजार चारोमूड़ा ले जंगल-पहार के बीच म लगथे। इँहा जंगल छेत्र के आदिवासी लोगन मन के गरीबी अउ शोषन सँग खुशी घलो देखे बर मिलथे। कहूँ कोनो ल इँहा के बजार अउ जिनिस ह लुभवाही त आप मन के अगोरा म हे 'लरबक्की बजार।'


देवचरण 'धुरी'

कबीरधाम।

मंगल बजार* (लघुकथा )

 *मंगल बजार* (लघुकथा )


        संझौती के बेरा रहय, मंगल बजार सुग्घर लग के तियार रहिस। चारों कोती साग-भाजी बेचे के स्वर गूँजत रहिस। इही बजार के एक तिर मा एक झिन कोचनीन सेमी धरे बइठे रहिस। उम्मर लगभग 60 बछर होगे रहिस होही। देशी सेमी लव....देशी सेमी लव...। एक झिन माई लोगन तिर म जा के पूछिस का भाव ये दाई ? कोचनीन - पच्चीस रुपिया पाव ताय लेजा ना, मोर बारी के सेमी आय वो..  बजार के बिसाय नोहय आजेच टोर के लाय हँव। माई लोगन 1 पाव तउलाइस अउ दू सौ के नोट ल दिस। दू सौ के नोट ल देखिस त कोचनीन थोरिक गुसियागे..  तँय चिल्हर देबे त लेग नइ ते राहन दे बहिनी...

        माई लोगन कहिथे - लेना तोर करा चिल्हर नइ हे त का होइस लहुटती म ले लेबे। लहुटती के बात सुन के कोचनीन दाई बिफरगे... मँय नइ करँव बिसवास, चिल्हर हवय त लेग नइ ता राहन दे।

        माई लोगन - तोर पचीस रुपिया ला खा के नइ भाग जाँव ... अउ खा लेहूँ त बड़े आदमी नइ बन जाँव । 

        कोचनीन - अभीच्चे आय रहिन दू झन भडूवा मन बोहनी के बेरा 1-1 पाव सेमी लिस अउ मोला पाँच सौ के नोट देखात रहिन। वापसी म ले लेबे कहिके गे हवय, एक घण्टा ले ऊपर होगे हे नइ आय हे.. अउ अब काय आही...? वो तो बजार करके निकल गे होही ।

        कोचनीन के गोठ ल सुन के बाकी खड़े मनखे मन आवाक रहिगे ...। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा

फुलझर बर लइका देखई*

 


*जय- जोहार...भेट पैलगी के बाद मंय  वोला कहेंय- सगा महराज, हमन एक लोटा पानी मांगत हन जी!*


           

                    

           *फुलझर बर लइका देखई*

          

    *(नरेटर शैली म  एकठन हास्य कथा)*





                         फुलझर बर लइका देखे जाय बर हे।वोहर खुद उतियाइल नरवा बने हे।मोर बर लइका देखे मंय खुदेच जाहाँ -कहत हे।



"हरे टुरा - बाणा! तोर घर म तोर ददा- कका सिरा गंय हे का जी,कनहुँच सियान नइये का , कहहीं तव कइसे करबे।" महतारी  वोला छेंकत कहिस।वो चाहत रहिस, पहिली लइका ल येकर ददा हर देख लेतिस,तव फेर मउका देख के येहू लुकलुकिहा छोकरा घलव देख लेतीस ।



           फेर येती तो पाँव हर अलगेच हे ,तव का करबे...?



        वोकर  ददा मोला संग कर दिस।फुलझर  ल तो  साक्षात वरदान मिल गय। मंय वोकर जिगरी दोस्त । मोर संग जाय, के नाव म ही वोला सब मंगल- सुमंगल लगिस।



             ओनहा - कपड़ा काँचेन नरवा म बइठ के। पथरा के मोंगरी म बइठ के गोठियात,जो कपड़ा काचेंन ..जो कपड़ा काचेंन कि कपड़ा मन खुद आधाजियाँ हो गिन ।



         बिहान दिन सँकेरहा ,एक- एक बटकी बासी खाके निकलेंन ।आज के ये बासी ल फुलझर घर , खाय के सेथी, मंय दिन भर बर, वोमन  के मेलहा भूतिहार बन गय रहंय।अब मोर कारज (डयूटी) रहिस,वोकर हेल्परी करे के।एक परकार ले,विहाय के बेरा म ढेड़हा,जइसन बुता। 



          दुनों झन के  झक्क सादा मसरइज धोती,कुर्ता अउ पागा ।फुलझर चुपे चाप अपन बाप के नजर बचात ,फुलतोड़ा सेंट के फोही मोर कोती बढ़ा दिस। महुँ वोला गमकत.. सूंघत  डेरी कान म खोंस  लेंय ।अउ हाथ ल कपड़ा म पोंछ लेंय। फुलझर अपन रेडियो म कपड़ा के स्पेशल खोल बनवाय हे ।वोहर रेडियो ल अपन डेरी खांद म ओरमा लिस।अउ वोकर कान ल  ऐंठ दिस- मोर झूल तरी नैना ,इंजन  गाड़ी चालू हो गय।



"चल भइ, एक -एक खिली बिरा- पान  खा ली।" फुलझर कहिस।


"चल...!"मंय भला काबर  मना करतेंव।



         पान खाएँन। चुना चुचरेंन ।फेर खुद फुलझर के कत्था हर ,वोकरेच ओनहा म चु गय ।फेर येला वो खुद देख नइ पइस।  चल बन  गय ,देख नइ पाइस त ...! नही त जंउहर हो जाय रथिस ।घर फिरे बर लग जाय रथिस।



     डहर भर मंय, वो हुँकारु देत  देत थक गय रहंय।कस के दु घण्टा सायकल आटेंन, तव पसीना अउ फुलतोड़ा के मिंझरा गंध लेके सारसकेला पहुंच गयेंन । चतरू गबेल के नाम पूछत.. पूछत वो सगा घर ल खोजेन।चार-पांच झन ल पूछे बर लग गय। फेर मोर पूछई ल लेके फुलझर एक पइत नराज असन हो गय.. भई ,तँय तो अइसन पूछत हावस,जाने माने वोहर तोर संग  -जहूँरिया ये।अरे ,वोहर मोर होवइया ससुर ये।


     


      ले ले भई! अब आदर के साथ पूछींहा।मंय कहें ..बिहना  के एक बटकी बासी के तकाजा  जो रहिस ।



"कोन  ...कोन  हावा घर म जी," मंय दुआरी म झाँकत पूछें।



         हं ..काये बबा - कहत एक झन सोंगर- मोंगर नोनी पिला हर निकल आइस।


"तुँहर घर बर -बिहाव करे के लइक नोनी पिला हे का, नोनी..?"मंय  पूछेंय ।


"मइच हर तो हंव..!"वो नोनी कहिस,तब फुलझर हर झकनका के गिरे कस हो जात रहिस ।


"घर म अउ कोंन कोंन हें...?"


" ददा अउ दई , दुनों झन हें।ददा हर बासी खावत हे।" वो नोनी कहिस।


"हमन  सगा अन । लइका देखे बर आवत हन,देखन दिहा तब घर -भीतर जाबो।"मंय कहें।


"देखन काबर नइ दिहीं ,बबा। घरो के मन कहत रहिन, सगा- पहुंना आबेच नइ करत यें कह के।"


"तब समझ ले हमन आ गयेन!"मंय वीर बहादुर असन कहें। तब वो नोनी का समझिस...गुनिस अउ घर  कोती भाग पराइस।



           लम्बा ढकार लेवत...फुलझर के(होवइया)ससुर हर निकलिस।



        जय- जोहार...भेट पैलगी के बाद मंय  वोला कहेंय- सगा महराज, हमन एक लोटा पानी मांगत हन जी।



         वो तुरतेच घर कोती आवाज दिस- बेटी, एक लोटा पानी ले आन तो ...!



      अब घर कोती ल थोरकुन जंगाय असन अवाज अइस- कब चढ़ही येकर बुद्धि हर..।



        वो नोनी फिर निकल आइस- ददा ,तोला थोरकुन दई हर बलात हे ..कहत।



                  फुलझर के होवइया ससुर घर कोती चल दिस।फेर तुरतेच निकल आइस-चला ...चला..आवा ...आवा घर कोती कहत।



"सगा महराज, हमन नन्दौरकला के अन।तुँहर घर एक लोटा पानी मांगत हन जी।"



"बेटी,एक लोटा पानी ले आन तो ओ।"वो फिर घर भीतर कोती ल अवाज दिस।फेर अब ये पइत, वो नोनी हर बड़े -बड़े  पीतल के गिलास मन म  घोराय गुड़ पानी  लान के धरा दिस। फुलझर के तो हाथ हर कांपत रहिस।लीमऊ सुवाद वाला गुड़ -पानी..!अहा..हा...!!पांचो प्राण हर हरिया गय।


    


       अब थोरकुन येला चीख लव-छोटे छोटे गिलास मन म दही -शक्कर..!


"सगा महराज मन -कोन कोंन अव,तुमन दुलरु के। कका उवा होइहा कस लागत हे।"


"खुद येहर दुलरु ये।" मंय कहें।


"अउ येहर मोर कका..!"फुलझर कहिस।



       चलव.. चलव..ठीक हे।फेर तुमन अब बताव,तीपत  दार -भात खईहा के...


हमन ये प्रस्ताव ल बड़ गम्भीरता ले लेन।फुसुर फिया..!बन जाही।कुछु नइ होय।


"बन जाही, कुछु भी चलही।"मंय थोरकुन शहरी अंदाज म बोलेंय।



    अब तो दुनो झन पीढ़ा म बइठ गयेन।आगु म कांस के बटकी म ताजा बासी।तीर म गोंदली नून अउ मिरचा।


नुनचर्रा अलग। पटउहा घर म गोठ बात करत बितायेंन।



          फुलझर तो जुन्ना असन लागत रहय।वोकर नींद पर गय।फेर वो नोनी ,हर ओढ़हर करके एक- दु पइत येती आके झलक मार डारिस।फुलझर के भकर- भोला रूप के जादू चढ़ गय हे अइसन लागत रहय।



                 बेरा जुड़ाय के बाद,हमर पसन्द के एक पइत फेर दही -शक्कर खा के विदा मांगेन। वोतकी बेरा मंय फुलझर के होवइया सास ल देखे पांय।


नोनी च असन सुंदर- बांदर।



"भई, पूरा के पूरा प्लान हर चौपट हो गय।"फुलझर झरझरात कहिस।


"का हो गय...?"


",न तँय तरुवा ल देखे न मंय तर पांव ल।दई हर कहे रहिस...न...ऊँच तरुवा अउ खड़उ गोड़ी झन रहय।"


"चल सोझ चल। सब ल मंय देख डारें हंव।सब हर सरोत्तर हे।"मंय कहेंव।


फिर हमन चुप हो गयेन।



          एक घरी के गय ल फुलझर फेर कहिस- नोनी ल तो ओझिया नई पायेंन। कनहुँ  कोंदी भैंरी होही तव..!


  


      अब मंय  वोला का कहिथें। मंय ए पइत  चुपेच रँहय।फेर मोर आँखी मन ल देख के फूलझर सुकुरदुम हो गय रहिस।



*रामनाथ साहू*



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व्यंग "बोझा"

 व्यंग "बोझा"

बबा हर नाती संग गोठियावत राहय बेटा हमर समे अइसे राहय, वइसे राहय  हम फलाना ढेकाना। वइसने में पठेरा म माढ़े राहय फूल कांच के पीतल के गिलास ह कथे हव तैं हर सही काहत हस  बाबा। एक समे राहय जब हमरे मन के राज राहय। घर् म घर के 'कैटेगरी' के पता तो हमरे मन ले चले। सगा सोदर आतिस त खाना-पीना म हमारे मन के रोल राहय।  पहली तो तहुमन ठसठस ले राहव  बबा, बिहिनिया ले चटनी संग अंगाकर, बोरे बासी जमावव अब तो कतनों पेप्सोडेंट, कोलगेट घीसत हे तभो ले कहूं अंगारक मिलगे त संभल संभल के खाथे । बासी घलो बिचारा मन उदासी होगे। धीरे-धीरे वहू मन नंदावत हवे ।अब तो वहू ह परदरसनी  म दिखथे। पहली लइका मन ल चम्मच म दवाई बुटइई दलिया ल खवावन।अब तो हमर छत्तीसगढ़ म कतको नमूना सियान घलो हावे ,जेन मन चम्मच म बासी खाथे? खैर छत्तीसगढ़ म डोंगिया मन के कमी थोड़ीना हे। तेखरे  सेती तो सब कहिथे छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया।

                    वतका म बाजू म राहय  डिस्पोजल ह झल्लागे बहुत हो गे तोर समे के संग संग सब बदलना चाहि ‌तुहर समे म जनसंख्या घला कतका राहय? अब तो प्रिंटिंग प्रेस बन गेहे धकाधक छपत हे। काहत हे ऊपर वाले के देन आए ।यहू ऊपर वाला सब ला देथे त काम बुता ल काबर नई दे ‌,हो सकत हे ये हर  ऊकर डिपार्ट में नई आवत होही। अब तो नवा नवा फइसन हो गेहे ये भाई पहिली के मन एक ठन कपहा हाफ पैंठ म मेरिट तक पढ़ लिख डरे अब तो नाक नई पोछन सकत हे  तहु मन ल जिंस प्लाजो होना।

                          आज हमर का सम्मान हे तेला हमन जानथन कतको बड़े भंडारा, बर बिहाव ,छठी बरही, मरनी हरनी, म हमर  बिगर पता नइ हिलय।

           फूल कांच के गिलास भन्नागे  कहिथे जादा सेखी झनमार एक समे राहय  बेटा ,पानी के दिन मा पानी जाड़ के दिन म जाड़, गर्मी के दिन में गर्मी, तुहरे आए ले बेटा ठिकाना नई पड़त हे। चुनाव कस् बारो महीना पानी गिरत हे। ,नेता मन जईसे गरिबी ला दूरिहा करत करत देश ला गरिबहा बना डारिस। फोकट म ये,फोकट म वो , जाने-माने अपन बाप घर के ल देही। वइसने तहू मन सहूलियत के नाव म दाग (कलंक) हव। हमन ल मांज दिही त चक ले ऊज्जर हो जथन । फेर तुमन जुठलंगरा ताव ऐती ओती  परे रहिथव। देखथस  नहीं बेटा  तुमन ल जुगाड़ वाले मन कईसे खींसा म मुरकेट के धरे  रहिथे जईसे नेता मन फोकट के ( घोषणा) झुनझुना बजा के वोट अपन खीसा म (जेब) ?तुमन रक्तबीज ले कोनो कम थोड़ी ना हो धरती बर तको  बोझा अऊ जला देबे त अगास बर तको "बोझा "।

            फकीर प्रसाद साहू 

                "फक्कड़" 

                    सुरगी

१३-११-२०२२

व्यंग्य-‘चलव, हड़ताल करथन’

 व्यंग्य-‘चलव, हड़ताल करथन’

मन मारके आफिस गे रहेवँ। जइसे कुर्सी म मोर जन्मसिद्ध अधिकार हवय वोइसने तन-बदन म आज ऊँघासी अउ उबासी के राज हावय। अइसे तो मोर मनहूस थोथना, रेगड़ा-मरहा-बीमरहा तन अउ बैलगाड़ी जस धीरलगहा काम-बूता के सेति जनता मोला ‘मुर्दा मानुस’ के पागा पहिरा दे हवय। आज मन तको मर गे हवय, कारण बिहनिया-बिहनिया गृहलक्ष्मी थैली म धावा बोल दिस। गृहलक्ष्मी तो अइसे होथे कि कपड़ा धोते-धोवत थैली ल तको फटाफट बहार-बटोर के सफाचट कर देथे। गृहलक्ष्मी मनके इही स्वभाव ल देखके स्वच्छता अभियान जनम ले हवय। देश दुनिया के विकास म देवियन के साथ।  सबो के साथ, सबो के विकास- इति सिद्धम।

ऊँघावत तन-मन म अचानक चहा-पानी के चुलुक सुलग आइस। मैं सुरता के हत्थे मत्था के खुदाई करे लगेवँ। अभीन अइसन कोन से फाइल हे, जेकर  झारे-रपोटे, सुँघियाए-चाँटे ले तरसत थैली ऊपर कृपा बरसाए जा सकय अउ चहा-पानी के सुलगत-धधकत आगी ल बुझाए जा सकय। तभेच दुवार के फइरका खड़खड़ाइस अउ ‘अउ निर्मल’ के दनदनावत पोंगा आवाज अन्दर धमक आइस। आवाज के धमक ले मोर आँखी म चमक झलक आइस। मैं चहा-पानी के चाह ल भीतर तक चुहकत-चुचरत चहक उठेवँ। 

थोथना ल उठाएवँ, देखेवँ -आगू म कर्मचारी संघ के भूँईफोर अध्यक्ष अपन तुच्छ विराट स्वरूप म अवतरित हे। मैं बोकबाय, मुँहफराय, अकबकाय देखते रहिगेवँ। दसों-बीसां फोन के तको उत्तर नइ देके अपन व्यस्तता, महानता अउ गुणवत्ता के परिचय देवइया महान नीयतखोर, जलनखोर अउ हरामखोर ढोंगी व्यक्तित्व के धनी आज अचानक निर्धन-कुंदरा म। मैं बइठे बर कहितेच रेहेवँ, वो थकहा, जाँगरचोट्टा अउ कोढ़िया कुर्सी खींचके पसरत अपन बड़प्पन, ढीठपन अउ जिद्दी आदरणीय होए के परिचय दे दिस।

कुर्सी म धँसत-उन्ढत-घोन्डत कहिस - ‘अऊ का हाल-चाल हे गा ?’

‘चाल अपन जा नइ सकय अउ हाल बताए नइ जा सकय ?’

‘काबर, अइसन का होगे ?’

‘इही हाल मौका-बेमौका बहाल होके बेहाल कर देथे, भइया ...।’

‘बहाल होना तो हरेक कर्मचारी के जन्मसिद्ध अधिकार ये महोदय, येकर ले हमन ल विधाता हँ तको नइ रोक सकय, ये भ्रष्ट, जुटहा, लालची अउ चप्पलसेवक चाटुकार अफसर अउ खद्दरधारी फोकला बयानबीर बेन्दर मन काय कर सकही, हूँ ....फेर तैं, आदमी बड़ दिलचस्प हस यार’ कहत वो अपन बत्तीसी उघारिस।

ओकर जुवाब म हमु अपन बत्तीसी उघार के साबूत सबूत दे देन कि अच्छा बच्चा बरोबर बिहनिया-बिहनिया दाँत-मुँह म झाड़ू-पोछा करथन। दाँत तो जिद्दी बाल (बालक अउ केस दूनों) मन बरोबर अपन सफेदी म कायम हवय। हमी हँ सफेद बाल म मेहंदी अउ दाँत म ‘जुँबा केसरी’ के सुग्घर सुनहरा रंग चढ़ाके ऊँचे लोग ऊँची पसंद के विज्ञापन करे म जुटाही मार लेथन। 

तभे, मोर खलपट्टा दिमाग म ये बात आइस कि अभीन तो दूरिहा-दूरिहा तक संगठन चुनाव के मानसून नजर नइ आवत हे, न कोनो चक्रवाती तूफान तियार हे, जइसे कि चोर-चोर मौसेरा भाई बरोबर कोनो भ्रस्ट कर्मचारी भाई के रिस्वत लेवत रंगे हाथों पकड़े जाना, कोनो संगी के नियमितता ल अनियमितता बताके सस्पेंड करना आदि-इत्यादि-अनादि। फेर ये बरसाती मेचका-सम अतेक उछलम, कूदनम अउ टर्रम-टर्र कोन बात म ?

खैर, बात कुछु रहय, फेर बात हे बज्जुर। मोर मन म सैर करत डोकरी घटना रेंगते-रेंगत अचानक पल्ला (सरपट) दौड़े लगीस। 

पीछू दफे, मैं उल्टी-दस्त ले पस्त होए के बहाना बनाके चुस्त-दुरूस्त घर म अस्त-व्यस्त-मस्त परे रहेवँ। मोर अनुपस्थिति म परिस्थिति अइसे भारी परिस कि सबो वस्तुस्थिति दस्त कर डारिस अउ मोर विरोध म उल्टी करत सोकॉज नोटिस जारी हो गे। 

वोकर निदान खातिर कई पइत फोन लगाएवँ। आखिर म मोला ये महानुभव होइस कि ये महानुभाव बड़ व्यस्त मनखे हरे। समस्या छोटे होवय के बड़े, आदमी के सकपकाना-अकबकाना स्वाभाविक हे। मैं तुरत-फुरत ले-देके मामला सुलटा लेवँ। 

बिहान भर वो मोर ले मिले बर खुदे आ धमकिस अउ आते ही धमकावत बंदा चंदा माँगे लगीस। 

‘मैं कहेवँ का के चंदा ?’

मंद-मंद मुस्कावत बंदा अब चंदा के धंधा होवत लंद-फंद म आ गे। अपन निर्लज्जता अउ हरामखोरी ल हमाम साबुन म धोवत कहे लगिस - ‘भाई मेरे ! तोर वाले वो मामला ल तो सुलटाए बर परही न।’

मैं कहेवँ - ‘मामला ल तो मैं सुलटा लेवँ,’ त वो झेंप गे, सोचिस -‘स्साले मोरो ले जादा पावरफुल हे’। गुसिया-फुसियागे। पद के रौब झाड़त कहिस -‘यार ! सबे मामला ल खुदे रफा-दफा कर डारहू, त संगठन का करही ? बाद म अनते-तनते हो जाथे, ताहेन हमन ल बदनाम करथौं। संगठनवाले सहयोग नइ करय। खाली-पीली फोकट म चंदा बस माँगथे, आदि-अनादि -इत्यादि।’

मैं कुछु बोल नइ पाएवँ, वो बकते रिहिस -‘हमू मन ल तो कुछ पता चलना चाही। का चलत हे, का अटकत हे, कोन सटकत हे। कम से कम तुम्हार समस्या के बहाना साहब मन ले हमू मन ल मिले-मुलाए के मौका मिल जथे। जान-पहिचान बढ़थे।’

थोरिक रूकके फेर बखानिस - ’कुछु तो अनुभव मिलतिस जोन भविष्य के आड़ा-तिरछा बेरा म काम आतिस। सब गँवा दिएव। तुम छोटे कर्मचारी मन संग न, इही रोना हे, सब खदर-बदर करके रख देथव।’ अउ मुँह फुलाके बइठ गे।

मैं कहेवँ -‘चल, जोन बीत गे वो बात गय। कहव का लेहू आप ?’

 वो पासा ल अपन कोति पलटे देख कहिस -‘आपके सोकॉज नोटिस ले मैं ये नोटिस करेवँ कि भविष्य के सुरक्षा बर संगठन के रोंठ अउ पोठ होना आवश्यक हे। एकर खातिर आप लोगन के सहयोग अपेक्षित हे।’

‘मैं का कर सकथौं, बतावव ?’- मैं अपन सरीफी झाड़ेवँ।

‘आज के जमाना म अइसन कोन जिनिस हे, जेमा सबले जादा शक्ति निहित हे।’

‘संगठन में’ - मैं सट-जुवाबी के फोरन देवत अपन सठ दिमाग के हुसियारी बघारेवँ।

वो अव्वल दर्जा के फाइन-फिनिस दर्जी निकलिस। पहिलीच ले धरहा कैंची धरे बइठे रिहिस। मोर गोठ ल चर्र-ले चीरत-काटत कहिस -‘इहीच मेरन मार खा जाथन हमन। संगठन तभे मजबूत अउ शक्तिशाली होथे, जब आँट के गाँठ म भरपूर साँठ (माल) होवय।’

अतका कहि वोहँ टेबुल म थोरिक झुकिस अउ मोर आँखी म आँखी डार मोला मोहावत कहिस -’ साँठदार आँट के संग-संग साँठ-गाँठ भी बेहद जरूरी है, समझे का ?’

मैं अपन आड़े मुँह ल फारके अड़ाए खड़े-खड़े ओकर थोथना निहारे लगेवँ। वो बकते बखानत रिहिस -‘संगठन के मजबूती अउ उत्तम व्यवस्था बर कुछु व्यवस्था हो जाए बस। ओकर ले उपराहा आप जऊन लेना-देना चाहत हौ, वो आपके मर्जी। हमार इहाँ दान के बछिया के दाँत नइ गिने जाय।’

‘भैया ! अभीन तो मोर इहाँ सुक्खा-सकराएत हे। चारो मुड़ा अकाल परे हे, बाद म ..... ’ कहत मैं अपन दीनता ल उघार के देखाए लगेवँ, त वो झट उठके खड़े होगे अउ अपन अनुभव के लट्ठ पटकत रट-फट जऊन मन म आइस बके लगिस  -‘देखो जी, ये मगरमच्छ के आँसू मोला झन देखा, मोला सब पता हे, आफिस के कते-कते कोन्टा मं कहाँ-कहाँ कतका धन गड़े रहिथे।’

मैं आफिस के ओन्टा-कोन्टा, अगल-बगल ल झाँके-ताके-तलाशे लगेवँ अउ मने मन बके-बखाने लगेवँ- ‘स्साले ! बड़ कुकुर किसम के घ्राणशकित लेके धरती म अवतरे हे। अतेक जल्दी फाइल मन ल तको सूँघ डरिस।’ वो आगू बोलिस -‘मोला कुछ नइ सुनना-देखना। अभीन चंदा चाही, त चाही बस।’

जब मैं ‘अभीन’ के नाम म मुड़ पटक देवँ त वो नाराज होके पैर पटकत रेंग दिस।

वोकर ये रौद्र रूप देखके मैं सोच म पर गेवँ -‘अच्छा ! त, बंदा चंदे-च के नाम म चुनावी लंद-फंद म परे रहिथे। ये तो साफ-साफ, सोज्झ-सोज्झ, फरी-फरा फुलत-फरत फुरमानुक धंधा हरे, बाप रे !’

तब के बिछड़े हँ आज वो फेर इहाँ आके मिले। मैं सोचते रहि गेवँ - अब मोर खैर नहीं। बंदा, चंदा लेके ही लहुटही। तभे वो अपन औकात ऊपर सवार होगे अउ दाँत निपोरत कहिस -‘चलव, हड़ताल करथन।’

मैं कहेवँ -‘का बात के हड़ताल ?’

‘पहुँचे हुए बेवकूफ हस तैं। बात कुछ रहय चाहे झन रहय। सामने चुनाव अवइया हे। सरकार ल कुर्सी म बइठे रहिना हे, त ओला हमर बात मानेच बर परही। लहुटे के नाम बर उन अइसन लेटके समय व्यतीत नइ करे सकय। चारपाई ऊपर चौपाया मन बरोबर लेटे-उन्डे-घोन्डे रहे के दिन अब फिर गे।‘

मैं वोला ओकर दूरदर्शिता के दाद देवइय-च रेहेवँ कि वो अपन मन के उभरत माता (चेचक) के दाग देखाए लगिस, बोलिस -

’सत्ता पक्ष के सफलता, वाहवाही अउ दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की ल देखके विपक्ष ल साँप सूँघ गे हवय। सत्ता म आते ही ये मन कइसे अपन वेतन, मानदेय, भत्ता सब एके झटका म बढ़ा लिन, जेकर ले मुँह ताकत धकेले-धकियाए, हुद्दा खाए मुद्दाविहीन विपक्ष ल जरे म नून परे के एक ठो अउ सुनहरा अवसर मिल गे हवय। उन्कर छाती म एके संघरा अटखेलिया करत दोहरा-तीहरा साँप लोटत हावय।’

‘जब ले कुर्सी ले धकियाए गे हवय, उन विक्षिप्त, बीमरहा अउ पंगुरहा हो गे हवय। वोमन कल बेकल होके अपन चंगु-मंगु सहित मोर तीरन आए रिहिन। कहत रिहिन -देखव ! गरीबन के पइसा ले चौपाई म पसरे ये नकटा, जीछुट्टा अउ मीठलबरा हरामखोर चौपाया मन कइसे ऐश करत हावय। इही मन कभू हमन ल पानी पी-पीके बकय अउ आज इही मन हमार ले जादा होगे हे। हम सीधवा का भएन, दुनिया मसगीद्दा होगे। तुमन आफिस म बेवकूफ, गँवार अउ बइहा-भूतहा लोगन के बीच दिन भर खँटथौ। तुँहरो तो कुछु भला होना चाही,  अकेल्ला मुसुर-मुसुर खवई बने नइ होवय। मिल-बाँटके खाए म भलई होथे।’

‘इही बात म विपक्ष साँठगाँठ के आसरा ल गठियाए हमार कोति मुँह बाए खड़े हवय। उन्कर  उत्कट-मरकट इच्छा हे कि क्र्रमविनिमेय अउ योगसाहचर्य नियम के अनुसार हम एक दूसर के संबल बनन। सहयोग बर वोमन तो मरे-च जावत हे। हमरे कोति ले आस्वासन बाकी हे। उन अभीन तक हमरे आसरा म जीयत हावयं।’

‘हमन ल मिलइया लालीपाप अउ आश्वासन-भासन के रासन ले उन्कर पेट पीराए-कीराए लगे हावे। उन अतेक दुखी, हतास अउ उदास हवय कि आत्महत्या करे पर उतारू होगे हवय। अइसन मौका म हम चौका-छक्का नइ लगा पाएन त धिक्कार हे हमर मक्कारी, भ्रष्टाचारी अउ रिश्वतखोरी के योग्यता, साहस अउ भावना ल। दर-दर भटकत उन बेकदरा मन के कदर अभीन नइ करबोन त कभू न कभू हमरो हाल उन्करे मन कस हो सकत हे जब उन कुर्सी म लहुट परही। अभीन ऑफिस म बइठे मिश्रीयुक्त मक्खन लूटत हावन वो बात अलग हे। फेर कभू उन्करो आयोडीन युक्त नमक खाए हवन। एक लोभचाहक, लाभदर्शक अउ सच्चा लोकसेवक ल ये बात कभू नइ  भूलना चाही कि हमर ये पद के मद तभे तक जिंदा हे जब तक उन्कर पाद अउ दाद जिंदा हे, नहीं तो ये करमछड़हा नौकरी तको बंचक छोकरी कस गर के फंदा ले कम नइहे।’

मैं बकासुर-बरोबर बयाए ओकर थोथना ल देखते रहेवँ अउ वो सरलग बकर-बकर करते रिहिस -‘पुरजोर शक्ति-प्रदर्शन निजोर लोकतंत्र ल सजोर करे के अनिवार्य, अकाट्य अउ अपरिहार्य मंत्र-तंत्र-यंत्र हरे। एक ताल ठोंके ले विपक्ष के ताली तो बरसना ही बरसना हे। सत्ता के गारी-बखाना अउ संगठन के बात छोड़, कम से कम मोर पहिचान तो ऊपर तक बनबे करही। चलव ! इही बहाना कुछ माँग रखके हड़ताल कर देथन। लोहा गरम हे। भागत भूत के लंगोटी सही। कुछ नहीं ले अच्छा ‘कुछ’ तो मिलबे करही।’


संगठन म शक्ति निहित होथे। शक्ति म हित तको समाहित होथे। 

सो निज हित अउ निहित शक्ति ल सुँघियावत -भाँपत महूँ ओकर  हाँ म हाँ मिला देवँ। 


धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

Sunday 11 December 2022

चिरई बर धान के झूल---


 चिरई बर धान के झूल---


हमर छत्तीसगढ़ म किसिम-किसिम के चिन्हारी, परंपरा, नेंग, रीति-रिवाज हवय जेहा कोनों न कोनों डहन ले प्रकृति ले जुड़े अउ परोपकार के भावना ले भरे होथे। ये परोपकार के भाव धरती के सबो परानी मन बर होथे। ये बुता ल खुशी-खुशी ले घलो करे जाथे। जेकर ले मन म बड़ा आंनद आथे। ये साल मेहा अपन स्कूल म घलो चिरई मन बर झूल ल खीला म अरो के रखें हों।


किसानी के बुता म जब धान के सोनहा बाली ल झुलत रथे त गजब मनभावन लगथे। किसान के मन ह कुलकत अपन जांगर के कमई के फल ल देख आगास म उड़त कई ठन सपना संजोवत रथे। 


धान बाली के आये के बाद करगा ल निकालत अउ धान के लुवई के बेरा म बासी-पेज खाय के समे हमर दाई-माई मन सुरतावत बढ़िया बुता घलो करथे। धान के बाली ले झूल बनाये के बुता। जेला सबो झन ल बनाये बर नई आये। कोई-कोई मन ल ही बनाये बर आथे। झूल के बनई घलो एक कला हरे। जे बने के बाद बढ़िया चापे-चाप मुड़ी कोरे गांथे सही दिखत रथे।


धान के झूल ल बनाये के बाद घर के परवा-छानी के खाल्हे म रख देथे। चिरई मन आके ओला खाथे अउ अपन पेट भरथे। देवारी तिहार के दिन घलो झूल ल घर म रखे जाथे जेला शुभ माने जाथे अउ बढ़िया घलो दिखत रथे। चिरई मन झूमे रथे अउ बाली के दाना मन ल खोल-खोल के मजा करत खावत रथे।


धान के झूल जीव-जंतु मन बर दान अउ किसान मन के परोपकार के भावना ल घलो बताथे। किसान अपन संग सबो जीव मनके संसो करथे। किसान के उपजाये फसल ह सबो जीव के बांटा लगे रहिथे। ओमन कोनो डहन ले अपन हिस्सा ल ले डारथे। प्रकृति सबो जीवधारी मन बर भोजन के बेवस्था करथे। प्रकृति अउ जीव-जंतु मन ले जुड़ाव आदमी के जनम ले बने रथे, जेहर कभू नई दुरिहाये।


          हेमलाल सहारे

मोहगांव(छुरिया)राजनांदगाँव


चिरई चुगनी चन्द्रहास साहू

 



चिरई चुगनी

                  

                             चन्द्रहास साहू 


                        Mo 8120578897


"मेंहा किरिया खाके कहत हँव दाई ! बिहाव करहू ते ओखरेच संग। मेहा जावत हव ओखर संग मिले बर।''

मोटियारी सुमन किहिस। आँखी के समुन्दर जलरंग -जलरंग करत रिहिस ओखर । जानकी तो ठाड़ सुखागे। हुंके न भूंके। आँखी के आंसू घला अटागे रिहिस। झिमझिमासी लागिस। मुँहू चपियागे। दुवारी के बरदखिया खटिया मा हमागे अब । खटिया के तरी मा माड़े फुलकाछ के लोटा के पानी ला सपर-सपर पी डारिस। उदुप ले उठिस अऊ नानकुन झोला ला धरिस। अपन बेटी सुमन के हाथ ला धर के रेलवाही कोती चल दिस। टिकट कटा के रेलगाड़ी में बइठगे दुनो महतारी बेटी। गाड़ी दउड़े लागिस अपन गति मा अऊ जानकी के मन घला। भलुक मुक्का हावय तभो ले मन गोठियावत हावय। सुरता करत हावय अपन ननपन ला।

                 चौक के महाबीर ला पैलगी करथे। दूध पियावत गाय ला जोहार करथे। शीतला तरिया के पार ला चढ़के पिपराही खार मा जाथे, तब मन मोहा जाथे जानकी के। बम्बूर के पिवरी फूल मुड़ी मा गिरे तब अइसे लागथे जइसे प्रकृति हा स्वागत करत हावय। चिरई चिरगुन के चिव- चिव स्वागत गीत गाथे।  जानकी के मन गमके लागथे । बइला के घाँघरा अऊ टेक्टर के गरजना- सब सुहाथे।  खेत के नानकुन बखरी मा झूलत तोरई तुमा कुम्हड़ा  के लोई ला कुंदरा मा पीठइया चढ़ाथे। भाटा ला झेंझरी मा टोर के धर लेथे। दाई हा जिमीकांदा खनत हावय झौउहा भर । ददा हा मुँही फोर के ये डोहरी ले ओ डोहरी पानी पलोवत हावय।  नान - नान बिता भर के लाल अऊ पालक भाजी फूलगोभी .…..। सेमी के नार मा फरे पोक्खा- पोक्खा सेमी , सादा फूल, फूल मा उड़ावत- बइठत रंग - बिरंगा  तितली  अऊ तितली के पांख......सुघ्घर । अइसे लागथे जइसे सब ला काबा भर पोटार लेवव। 

"बेटी ! ये जतका खेत दिखत हावय ते हमर आय। चालीस एकड़।''

ददा हा जानकी ला खेत देखावत रिहिस। जानकी बेरा-बेरा मा आथे खेत देखे बर। पाछू दरी पोरा मान के चीला चढ़ाये बर आये रिहिस।

"ददा माईलोगिन मन जब अम्मल मा रहिथे तब सात किसम के कलेवा ले सधौरी खाथे। अन्न्पूरना  के बरन धान जब गभोट होथे तब चाउर गहु के गुड़हा चीला खवाके इही मंगलकामना करथे- दाई तोर कोरा भरे राहय, तोर कोरा ले पोठ धान मिलही जौन हा हमर कोठी ला भरही अऊ गरीबी नइ आवन देवय।दाई अन्नपूरना हा सबके पालक आवय फेर आज किसान हा पालक बनके अपन बेटी ला सधौरी खवाथे ।''

"हाव सिरतोन काहत हस बेटी !''

ददा हुकारु दिस। सोनहा धान के बाली ला सिल्होए लागिस दुनो कोई । पोठ- पोठ लम्बा बाली नगरी दुबराज सफरी सरोना अऊ हाइब्रिड धान के । ये जम्मो धान के बाली के सुघ्घर झालर बनाथे जानकी हा । ओखर डोकरी दाई सीखोये हावय न । आड़ी - चौड़ी धान के बाली ला खोंच-खोंच के अइसे बनाथे कि दाना मन बाहिर कोती अऊ ढेठा भीतरी कोती। दाना ओरमत रहिथे। सुघ्घर दिखथे अब्बड़ सुघ्घर। गोल चकोर ईटा आकार के सुघ्घर झालर। झालर सेला धान के झूमर चिरई चुगनी रिकम-रिकम के नाव हाबे ऐखर । लछमी दाई के बरन घला आय येहाँ।  चिरई मन बइठथे अऊ दाना ला फोल - फोल के खाथे। चिरई के चिव- चिव, कुटूर- कुटूर ,गुटूर - गुटूर अब्बड़ सुघ्घर लागथे। मन मोहा जाथे। गौरइया सलहई पड़की परेवा मिठ्ठू मैना के संग परदेसी चिरई मन घला आ जाथे दाना चुगे बर .....!  चिरई दाना ला चुग के अपन वंश बढ़ाथे। धान के बाली अपन अस्तित्व ला मेटा देथे  चिरई मन बर।  तभे तो चिरई चुगनी कहिथे येला। ...अऊ बाचल पैरा ला गाय खाथे तब वहु अघा जाथे। जानकी अऊ ओखर  दाई हा बना डारे रिहिस सुघ्घर धान बाली के झालर ...चिरई चुगनी ।

"कतका सुघ्घर हावय ददा ! हमर छत्तीसगढ़ के परम्परा संस्कृति हा ..! अब्बड़ गुरतुर ।''

जानकी  किहिस अपन बनाये चिरई चुगनी ला देखावत । दाई ददा घला अब्बड़ उछाह हावय।

"कुंदरा के मियार मा.., मंझोत के डंगनी मा.. जाम के रुख मा.. कोन जगा बांधो चिरई चुगनी ला ..? नही .. । बोर के पाइप  मा मोर चिरई चुगनी ला बाँधहु।  ददा !  चिरई मन आही दाना ला खाही अऊ पानी घला पिही कतका सुघ्घर लागही चिंव - चिंव करत चिरई हा।'' 

 जानकी  किहिस अऊ अपन मुँहू ला बजाए लागिस चिंव- चिंव ।

"हव बेटी बांध दे ।''

ददा किहिस अऊ  पंदोली दिस। 

"कतका सुघ्घर हावय ददा हमर बोर के पानी हा । मोर संगवारी घर के बोर फेल होइस अऊ हार्ट अटैक मा ओखर बाबू ....!''

"कलेचुप रहा बेटा अइन्ते- तइन्ते के गोठ झन गोठिया  बेटी !''

ददा बरजिस। 

"हमर किसमत मे कहा गंगा माई हावय बेटी ! ओ तो तोर पूजा करे के जगा मा बोर करवाय हव तब निकलिस भक्कम पानी । हमर पूजा करे वाला भुईयां के पानी अटागे रिहिस धुन हमरे हाथ छुतियाहा रिहिस ते ? येहा पांचवी बेरा आय । पाछू दरी के चारो  बोर हा तो सुक्खा होगे। बोर पानी के लालच मा अब्बड़ करजा होगे हावय ओ ! कोन जन कइसे छूटाही ते  ? पांच एकड़ खेत बेचे ला लाग जाही अइसे लागथे।''

 ददा संसो करे लागिस।

                      जानकी तो फुरफन्दी रिहिस । ये घर ले ओ घर, ये पारा ले ओ पारा किंजरे । फेर जिनगी मा गरेरा कइसे समागे आरो नइ पाइस। ददा के टट्टागाड़ी मा बइठ के आइस जवनहा  परदेसी ओखर दाई अऊ ददा हुकुमचंद हा। ओखर राज मा दंगा फसाद होगे तेखर सेती पलायन करके आये हावय। सब सुघ्घर होही अऊ लहुट जाही...। अइसना किरिया खाये रिहिस । फेर नइ लहुटिस ।          

                      भलुक सड़क तीर ला पोगरा डारे हावय। बेसरम काड़ी झिपारी छा डारिस । बंदन पोताये पथरा माड़ गे अब। बंदन पोताये पथरा माड़  जाथे तब आस्था बिसवास  बाढ़ जाथे । 

 पार्षद पंच सरपंच कोनो नइ बरजिस । भलुक महाशिवरात्रि आथे तब दूध पीयाथे । नवराति दसेरा देवारी मा खीर पुड़ी .. । ईद , क्रिसमस मा कोल्ड्रिंक अऊ शरबत बाटथे। जम्मो धरम बर आस्था हावय तब का के डर...? कोन डरवाही ....? कोन भगाही...?

                        पथरा हा भगवान आय कि नही परमात्मा जाने फेर भीड़ हा तो भगवान आय जुझारू कर्मठ नेता माटीपुत्र मन बर। सुकालू करा राशनकार्ड नइ हावय। अऊ बुधारू करा मतदाता परिचय । फेर ये परदेसिया मन कर सब हावय अब । समारू के परछी भसके चार बच्छर होगे। आधार कार्ड के बिना कोनो योजना के लाभ नइ मिले अऊ...! 

               झिल्ली झिपारी वाला चार कुरिया हा अब संगमरमर लगगे तरी-तरी । चकाचक मन्दिर अऊ मन्दिर प्रांगण होगे। मंत्री जी उदघाटन करे हावय न।  

                     " जतका चर ले ..चर । जतका चुहक ले...चुहक। येहा तो छत्तीसगढ़ माने सी. जी. आवय। सी. माने चारा अऊ जी  माने गाह आय.. चारागाह । जतका चर ले...।''

बाप  हुकुमचंद अऊ बेटा परदेसी खिलखिलाए लागिस गोठिया के। 

                      जानकी अऊ परदेसी हम उम्मर तो आय अऊ कब दुनो के अंतस मा मया के गोरसी रगरागये लागिस पार नइ पाइस। हुकुमचंद तो एखरे ताक मा रिहिस। बिलई ताके मुसवा।

"ददा परदेसी संग बिहाव करहु ।''

 अब्बड़ बरजिस फेर जानकी के अर्दली पन मा नवगे ददा हा । दू संस्कृति दू रस्म रिवाज ले बिहाव होगे। फेर गाँव समाज के ठेकेदार हा जानकी के ददा ला छोड़ दिही का...? आनी बानी के हियाव - नियाव होये लागिस । बइठ - बइठका होये लागिस। कतक ला सहही माटी के चोला हा । एक दिन सिरागे ददा हा ।

    

                    परदेसी के साध पूरा होगे । चालीस एकड़ खेत जानकी के नाव ले कब परदेसी के नाव मा चढ़िस  पार नइ पाइस।

मीठ लबरा के बरन अब दिखे लागिस । ताना अपमान रोज के गोठ होगे अब ।  अऊ बेटी के जनम आइस तब ...? सात जनम ले संग निभाहु, मया के किरिया खवइया ला जानकी अऊ ओखर बेटी सुमन बस्साये लागिस। निकाल दिस घर ले। कोन जन कुलदीपक, डेहरी के अंजोर करइया टूरा के जनम आतिस तब डिंगयहा के घर कतका महर -महर ममहातिस ते ....?

                  मामी-ममा मरजाद ला राख लिस जानकी के। नही ते का होतिस ते .... ? भगवान श्री राम के जानकी कस यहु जानकी होगे दुखियारी....।  गोसाइया ले वियोगी । अब तो हुकुम चन्द हा सेठ हुकुमचंद होगे हे । धनबल बाहुबल सब ओखर । अइसन ससुर अइसन गोसाइया संग कइसे  लड़ो ... जानकी गोहार पार के रो डारथे।

               परदेसिया मन हमर  छत्तीसगढ़ मा उत्ती बुड़ती रकसहु भंडार जम्मो कोती के देश राज ले आये हावय कमाये खाये बर । कोन राज के नइ आय हावय  इहा ....? सब लोटा धर के आइस अऊ अतका जैजात सकेल डारिस।  बड़का होटल, फेक्ट्री, बड़का बिल्डिंग, दुकान, शॉपिंग मॉल, पेट्रोल पम्प, बड़का गाड़ी,अऊ बड़का कालेज...सब  जिनिस तो हावय ओखर मन करा । .....अऊ हमर मन करा का हावय....? हमर करा हावय सुघ्घर नारा  - "छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया'' के।

जानकी गुनत -गुनत मुचकाये लागिस करू ..करेला अऊ लीम ले जादा करू मुचकासी ।

हा ! सब ले बढ़िया तो हावन हमन । लांघन ला जेवन करवाथन, पियासे ला पानी पियाना अऊ रहे बर छइयां देना। इही तो हमर सुघरई आवय फेर ....?  कड़ी मिहनत सरलग बुता अऊ टाइम मैनजमेंट ले अतका पोठ होवत होही परदेसिया मन कि ..... ? फेर छत्तीसगढ़िया मन घलो सिधवा हावय भोकवा नही..। अपन अधिकार ला लेये ला परही। 

जानकी गुनत- गुनत थाना कछेरी  चल दिस।  ससुर अऊ गोसाइया ले अधिकार पाये बर। बिसवास अतका रिहिस कि पथरा मा पानी ओगर जाही तब न्याय कइसे नइ मिलही..?

                     ददा के पनही बेटा के गोड़ मा आथे तब बेटा बड़का हो जाथे। पिकी फूटत दाड़ी मेंछा ला रोखा के लजाथे तब ..सिरतोन बेटा बड़का हो जाथे। अऊ बेटी ... ओ तो ननपन ले बड़का हो जाथे..। ठूबुक - ठूबुक रेंगत- रेंगत बहराये परछी ला अऊ बहारथे। धोवाये बरतन ला, अऊ मांजथे । रोटी बनावत पिसान ले सनाय ओन्हा अऊ कोवर- कोवर हाथ अंगरी ला मटकावत कहिथे

" दाई मेंहा रोटी बनाहु तेन अब्बड़ मिठाही । खाबे । मेंहा बड़े होहु तब तोला नइ कमाये ला लागे ।'' 

थके जानकी के माथ मा कोवर - कोवर हाथ ले मालिस करथे नानचुन  सुमन हा गोठियावत - गोठियावत तब जानकी के मन अघा जाथे । दू टीपका  आँसू गिर जाथे।


"दाई  अमर गेन रायपुर के रेलवे स्टेशन ला उतरबोन चल।'' 

सुमन के दुसरिया आरो कान मा गिस तब सुरता ले उबरिस जानकी हा। जिनगी के किताब के जम्मो पन्ना ला उलट - पुलट डारिस जानकी हा आज । आँखी के कोर के ऑंसू ला पोछिस अऊ उतरके बड़का होटल कोती चल दिस दुनो कोई।

सुमन के मन मंजूर बनके नाचत हावय। सपना के राज कुमार ले मिलही आज । बिदेशी ले मिलही आज। बिदेशी राम इही तो नाव हावय फेसबुकिया राजकुमार के। बच्छर भर के फोन फ़ेसबुक वाट्सअप के मया । ओमे तो गजब सुघ्घर दिखथे सिरतोन मा कतेक सुघ्घर लागत होही ....?  सुमन गमकत हावय। मने-मन गुनत हाबे।

"बस आतेच हव।''

  फोन म किहिस बिदेशी हा अऊ कटगे। कब आही ते ...?-आधा घंटा ...एक ..डेढ़  अगोरा करत हावय   होटल मा बइठ के। सुमन हा बिदेशीराम के।

" मेंहा अब्बड़ सीखोये हँव बेटी पैडगरी के कांटा खूंटी होवय कि जिनगी के बिच्छल सावचेती होके रेंगबे। बर बिहाव ठठ्ठा - दिल्लगी नोहे बेटी ! मया के विरोध नइ करो बेटी फेर टूरा ला अपन अनभव ले जाचहु अऊ मोर मन आही तब गोठ बात बनही । जादा झन सपना देख। जादा झन गुन ...।  दू घन्टा होगे कब आही ते पूछ फोन लगा के ।''

जानकी फेर बरजिस सुमन ला।

"नइ लगत हावय दाई फोन.....। स्वीच ऑफ आवत हावय... बैटरी लो होगिस होही दाई ..।'' सुमन  आस के संग किहिस।

"ओहा नइ आय बहिनी ! ओहा तो अपन राज भाग गे । तेहा अकेल्ला आतेस तब होटल के कुरिया मा लेगतिस। अऊ ...?  अऊ दाई संग आवत देख के पल्ला भाग गे।''

 रिसेप्शनिस्ट बताइस सुमन ला । सुमन अकचकागे...।

"सिरतोन काहत हस बहिनी ?''

"हाव ''

" ओहा हमर होटल मा आते रहिथे । जानथो मेंहा ओला। अऊ...ओहा कोनो जवनहा नोहे । पचपन साठ बच्छर के डोकरा आवय ... डोकरा। फेसबुक वॉट्सअप मा आने जवनहा के फोटो ला स्टेटस मा डाल के....!

झटकुन मोबाइल निकाल के फेस बुक के चैटिंग देखिस सुमन हा।

 "गुड बाय'' 

 "ब्रेकअप ''

 करिया आखर ला देखत - देखत रो डारिस। भरम टुटगे रिहिस अब सुमन के। दाई जानकी के नरी मा झूलगे अब। 

                       ससन भर देखिस होटल ला । आदिवासी नृत्य मांदर खुमरी पंथी पंडवानी के पोस्टर ....छत्तीसगढ़ी संस्कृति के छप्पा ... जम्मो दिखावटी लागत रिहिस। 

छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़िया अऊ छत्तीसगढ़ी कोनो चिरई चुगनी नोहे ..। कोनो परदेसी चिरई आही अऊ चुग के चल दिही ...। कोनो जयचन्द ला आवन नइ देवन ये भुइयाँ मा...। संकल्प लिन दुनो कोई।

       मेन गेट मा झूलत सुन्ना झालर चिरई चुगनी ला देखिस ससन भर दुनो कोई । अऊ अपन घर चल दिस गुनत- गुनत । 

चिव- चिव, कुटूर- कुटूर ,गुटूर - गुटूर कान बाजत हे नवा उछाह के संग  जानकी अऊ सुमन के अब। मन गमकत हावय ।


चन्द्रहास साहू

द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब के पास

श्रध्दा नगर धमतरी छत्तीसगढ़

493773

मो. 8120578897

परम्परा के ताना अउ आधुनिकता के बाना म बीने गय एकठन नान्हे मया -पिरीत के कहिनी (प्रेम कथा)* -

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*परम्परा के ताना अउ आधुनिकता के बाना म बीने गय एकठन नान्हे मया -पिरीत के कहिनी (प्रेम कथा)*  -



            🌈🌈 *मोहरी* 🌈🌈



-रामनाथ साहू


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               मोहरी बाजत हे।


           बाजा - रुंजी मन म , ये मोहरी के बड़ महत्तम हे। येहर हमर छत्तीसगढ़ीया -शहनाई आय। अइसनहेच मिलता- जुलता बड़े आकार के बाजा ल हमर  दक्षिण भारतीय भई मन - नाद स्वरम  घलव कहिथें ...रत्नाकर मोहरी के धुन ल सुनत मने मन गुनत हे।  वोहर अभी अपन थोरकुन धुरिहा के रिश्तेदारी म बरात आये हे।अउ अभी वोकर  करा कुछु खचित काम घलव नइ ये। पूरा फुरसत ले , वोहर ये बिहोतरा- बाजा के आनन्द उठात हे ।  



        अपन मुड़ म परे कारज म तो मनखे ल मुड़ खुजियाय के फुरसत नइ मिलय। अउ निकट -सम्बन्धी  मन के  कारज ल तो कूद के उठाय बर लागथे ।तब अइसन बाजा -रुंजी सुने के अवसर कहाँ मिल पाथे।


        मोहरी के सुर कान म मिश्री ल घोलत हे ।


 "हाय.. रत्नाकर..! कइसन हावस बाबू अउ इहाँ तंय कइसन..? "आवाज हर जाने -चीन्हे कस लागिस, रत्नाकर ल।वोहर  वो    कोती ल  देखिस।  अब तो वोकर क्लासमेट श्रुति,वोकर तीर म आ के खड़ा हो गय रहिस ।


"कोन श्रुति...!! तंय इहाँ कइसन...?"


"येहर मोर गांव...मोर  छईंहा- भुइंया।"


श्रुति झरझरात कहिस,"अउ तंय बारात आय हस ।"


"वाह...!तँय कइसे जान डारे कि मंय बारात आँय हंव।" रत्नाकर घलव श्रुति ल अइसन अचानक आगु म पा के आनन्द -विभोर हो गय रहे।


"तँय अतेक फुरसत लेके ये दे मोहरी ल सुनत हावस अउ बरतिया मन के संग म मिंझरे हावस न।अउ येकर ल बड़खा बात...तँय इहाँ मोर गांव शायद पहिली बार आय हावस।"श्रुति पूरा विस्तार ल बता दिस।



        अउ वो मुचमुचात खड़े रहिस । अब  रत्नाकर विपत्तिया गय,अब श्रुति करा गोठियाव कि मोहरी ल सुनों। वोहर दुनों च छोड़ना नइ चाहत  रहिस ।



          श्रुति  अउ रत्नाकर कक्षा -संगवारी ये। वोमन के स्नातकोत्तर कक्षा म मनखे के कमी नइ ये।श्रुति करा  रत्नाकर के विशेष परच..उठना- बैठना नइ रहिस।हाँ... फेर एके जात -बिरादरी के होय के सेथी, वोकर उपर नजर हर परिच  जाय ।वोकरे कस अउ चार -पांच लड़की मन वोकर  ये कक्षा म हांवे वोइच जाति- बिरादरी के।वो सब  मन उपर जाने -अनजाने नजर परिच जाय ।



             मोहरी बाजत हे...!



"चल मोर घर...!"


"अभी नहीं...!"


"अभी नहीं त, तँय अउ कब आबे?"


"पता नइये।वो दे ध्यान लगा के सुन! मोहरी हर बाजत हे अउ का का कहत हे।"


"वो तो बहुत कुछ कहत हे। सुने सकबे तव सुन...!"श्रुति हर अब रत्नाकर कोती ल देखे नइ सकत रहिस।


"चल मोर घर...!" वो थोरकुन हड़बड़ी म कहिस।


"अभी पहिली... उहाँ,  जिहाँ जाना हे ।"


"वोकर बाद...?"


"मोर तो दुबारा इहाँ आये के मन करत हे।वो दे सुन मोहरी काय कहत हे।"


"तईंच सुन...!"श्रुति कहिस,फेर भागे नइ सकिस ।


"चल मोर घर...!"वो  आन कोती ल देखत फेर कहिस।जइसन ले जा के ही मानही अपन घर।


"पक्का बलावत हस कि कचिया।" रत्नाकर तो जइसन मोहरी के बोल म बोलत हे।


"अगर मंय कचिया कह हां तब...?"


"मंय तुरन्त चल दिहां।" रत्नाकार ल खुद अचम्भा होवत रहिस कि वोकर मुहँ ल  का... का ... ये ...आन...तान...निकलत हे।अउ ये मोहरी तो बाजतेच हे।


""अउ मंय पक्का कह हां तब...?"श्रुति खुदे कहत हे


"तब  तो   पाछु आहाँ  तोर घर...फेर अइसन मोहरी जरूर बाजही ...!रत्नाकर के मुँह ले तुरते निकल गय ,"अब बोल का कहत हस...तँय...!"



       श्रुति अब ले घलो भागे नइ सकिस।मोहरी हर बाजतेच रहिस।अब  तो दुनों झन वोला सुनत रहिन।


"का कहत हस...अब बोल।"रत्नाकर बड़ बेर बाद म पूछिस।


"  अब मोला नही ये मोहरी ले ...पूछ।"श्रुति अब भी रत्नाकर के तीर ल भागे बर समरथ नइ होय पाये रहिस। 



         हाँ..मोहरी हर अब ले भी बाजतेच रहिस।अउ येती बरात के पइरघनी,घलव हो गय रहिस। फेर ये बात ल, ये दुनों अभी भी  पता नई पाय रहिन।



*रामनाथ साहू*



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नान्हें कहिनी पूस के जाड़

 नान्हें कहिनी

                पूस के जाड़

                सुकारो अऊ बुधिया  दुनों झन आज झुलझुलहा बेरा ले जंगल कोती लकड़ी काटे ल चल दिन। पूस के कड़कड़ाती जाड़ म कांपत-कांपत दुनो झन लकड़ी काटे फेर  उखर दांत कटकटावत  रहाय।

         सुकारो ह बुधिया ल कहिस-"दीदी ओ,अड़बड़ जाड़  लागत हे।कईसे करन?काली ले थोरकुन बेरा म आबो। मेंहा दु बछर होगे ।सोच थंव एक ठीन सूटर अऊ कम्बल लूहुँ कहिके फेर  पईसा के जुगाड़  नी होवय। जंगल हमर दाई-ददा आय।हाथ- गोंड भर लकड़ी धरे सकथन।अतके के हमन ल बन बिभाग ह छूट देहे हे। इही लकड़ी ल बेच के हमन अपन परवार ल पोसत हन। दिनभर म सौ -पचास कमा लेथन फेर अतेक मंहगाई म का होही?

         बुधिया कहिस -"सही कहत हस बहिनी, अतेक पूस के जाड़ म हमन के मरना हे। लकड़ी  जला के रतिहा बिताथन फेर कतेक लकड़ी जलाबोन ?लकड़ी बेचे ल लागथे। महुँ कमरा अऊ कम्बल लेहे बर पईसा सकेल थंव फेर जम्मो कुछु काहिं म खर्चा हो जथे ।का करबे चिरहा कथरी मन ल ओढ़ के  रहिथन। पूस के जाड़ म हाड़ -हाड़ मन जुड़ा जाथे। एसो तो जरूर  एक ठी कम्बल लूहुँ ।मोर भाई मोला चांदी के साटी  देहे ।उहि ल सेठ तीर गिरवी धरहूँ।"

        बुधिया के गोठ ल सुनके  सुकारो कहिस -"मोर तीर तो  चांदी के कोनो गहना नी ये।मेंहा का करहुं बहिनी?"

        अइसन कहत ओखर आँखिन डाहर ले आंसू  चुचवाये लागिस।

                डॉ.शैल चन्द्रा

दिसंबर// वो ऐतिहासिक बेरा के सुरता...


 9 दिसंबर//

वो ऐतिहासिक बेरा के सुरता... 

    छत्तीसगढ़ी साहित्य के इतिहास म 9 दिसंबर 1987 के दिन ल सदा दिन सुरता राखे जाही, जे दिन छत्तीसगढ़ी के पहला मासिक पत्रिका 'मयारु  माटी' के विमोचन रायपुर के आजाद चौक तीर तात्यापारा के कुर्मी बोर्डिंग के सभा भवन म जम्मो छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन के उपस्थिति म संपन्न होए रिहिसे.


    ए विमोचन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि 'चंदैनी गोंदा' के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी रहिन हें. अध्यक्षता दैनिक नवभारत के संपादक कुमार साहू जी करे रिहिन हें. संग म 'सोनहा बिहान' के सर्जक दाऊ महासिंह चंद्राकर जी विशेष अतिथि के रूप म पधारे रिहिन हें. ए बेरा म छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य के जम्मो मयारुक मन उहाँ बनेच जुरियाए रिहिन.


चित्र 1- 'मयारु माटी' के विमोचन के बेरा. डेरी डहर ले- सुशील वर्मा (भोले), पंचराम सोनी, टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा, विमोचन करत दाऊ रामचंद्र देशमुख जी अउ नवभारत के संपादक रहे कुमार साहू जी.


चित्र 2- डेरी डहर ले- कुमार साहू जी के स्वागत होवत, स्वागत करत मयारु माटी के संपादक सुशील वर्मा 'भोले', अउ बीच म कुर्सी म बइठे दिखत हें- सोनहा बिहान के सर्जक दाऊ महासिंह चंद्राकर जी.


चित्र 3- विमोचन के बेरा म उपस्थित छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन म. डेरी डहर ले-  जागेश्वर प्रसाद जी, डॉ. देवेश दत्त मिश्र जी, डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र जी, डॉ. शालिक राम अग्रवाल 'शलभ' जी, डॉ. व्यास नारायण दुबे जी, जगदीश बन गोस्वामी जी

उंकर पाछू म डॉ. भारत भूषण बघेल जी, डॉ. राजेन्द्र सोनी जी रामचंद्र वर्मा जी संग डॉ. सुखदेव राम साहू 'सरस' अउ जम्मो छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन.

सोनाखान के सोन : शहीद वीर नारायण सिंह :-


 

• सोनाखान के सोन : शहीद वीर नारायण सिंह :-


शहीद वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ के पहिली शहीद आय। 10 दिसंबर सन् 1857 में अत्याचारी अंग्रेज मन वीर नारायण सिंह ल फांसी दे दे रिहिन। ओखर अपराध अतके रिहिस के सन् 1856 के भयंकर दुकाल के समे वो ह अपन जमीन्दारी के भूख से तड़फत जनता बर एक झन बेपारी के अनाज गोदाम के तारा टोर के उहाँ भराय अनाज ल जनता म बाँट दे रिहिस। अतके नहीं ये बात के जानकारी लगिहांत वो समे के रयपुर के डिप्टी कमिश्नर ल घलो पठो दे रिहिस के ये काम वोला भूख म तड़फत उनता के भूख मिटाय खातिर करना परिस। फेर अंगरेज कमिश्नर ल ओखर मानवता अउ इमानदारी नइ भाइस। वोला तो वो जमाखोर बैपारी के सिकायत म नारायण सिंह ऊपर कार्रवाही करना पसंद आइस। अउ इही बात म डिप्टी कमिश्नर ह वीर नारायण सिंह बर गिरफ्तारी वारंट निकाल दिस। वो अत्याचारी डिप्टी कमिश्नर के नांव एलियट (चार्ल्स इलियट) रिहिस। तेखरे पाय के कतको झिन जुन्ना छत्तीसगढ़िया मनखे के एलियट नांव पलो सुने म मिल जाथे। खैर हमला नामकरन म धियान नई दे के शहीद वीर नारायण सिंह के किस्सा कोती धियान देना है।


शहीद वीर नारायण सिंह के जनम सोनाखान के जमीन्दार रामराय बिंझवार राजपूत के घर सन् 1795 ई. के कोनो तारीख म होय रिहिस। तारीख के पक्का जानकारी नई मिलय। अपन बाप के इंतकाल के बाद 35 बछर के उमर म नारायण सिंह सोनाखान के जमीन्दार बनिस। उन बड़ धारमिक, गियानी, मिलनसार अउ परोपकारी परवृत्ति के रहिन। एखरे संगे संग उंखर म धीरज, साहस अउ प्रजापालक के गुन घलो लबालब भरे रिहिस। वो सिरतोन सोनाखान के सोन रिहिस। वो ह निच्चट सादा जीवन बिताय। वो ह महल अटारी म नहीं भलुक माटी अउ बाँस के बने कच्चा मकान में राहय अउ अपन परजा के तकलीफ ल दूर करे म हरदम तियार राहय । सोनाखान के राजा सागर, रानी सागर अउ नंद सागर तलाब आजो ओखर जन कल्यानकारी सोंच के गवाही देथे।


नारायण सिंह अपन जमीन्दारी ल वह सुघर ढंग ले चलाय के बेवस्था करे राहय इही बीच सन् 1954 ई. म अंगरेज मन नागपुर के संगे संग छत्तीसगढ़ ल घलो अंगरेजी राज में मिला लिन अउ लगान लेना सुरु कर दिन। लगान ल वो समै टकोली काहय। ये टकोली के नारायण सिंह जबर विरोध करिस। इही पाय के रइपुर के डिप्टी कमिश्नर इलियट ह रानायण सिंह से चिढ़े राहय अउ वोला डांड़े के मउका खोजत राहय।


सन् 1856 के अंकाल में इलियट ल से मउका घला मिलगे । वो बछर छतीसगढ़ म सुक्खा दुकाल परगे। लोगन दाना दाना बर मोहताज हो गे। एक गांव के माखन नाँव के बेपारी ह अपन गोदाम में अनाज जमा करके राखे राहय। ये बात नारायण सिंह ल सहन नइ होइस। बेपारी जात, सोझयाय त मानतिस नहीं। आपद धरम निभाय बर नारायण सिंह वो गोदाम के तारा टोर के अनाज ल जनता में बँटया दिस। लगिहांत ये यात के जानकारी डिप्टी कमिश्नर इलियट कर घलो पठो दिस। अउ बैपारी ल सही स म भरती देय के वादा घलो करिसि, फेर बैपारी ल संतोष नइ होइस । एती इलियट ल तो मउका के तलास रिहिस काबर के नारायण सिंह के राजनैतिक चेतना, जागरुकता आ अंगरेजी सत्ता के विरोध ह अंगरेज अधिकारी मन पर चुनौती बन गे रिहिस। माखन बनिया के सिकायत ह बहाना बन गे। वीर नारायण सिंह बर गिरफ्तारी वारंट निकाल दे गिस। 24 अक्टूबर 1856 के दिन संबलपुर म वीर नारायण सिंह ल गिरफ्तार करके रइपुर के जेल में धांध दे गिस। ओखर ऊपर चोरी अउ डकैती के मुकदमा चलाय गिस असहाय जनता के दुख तकलीफ से उनला कोनो मतलब नइ रिहिस।


फेर वाह रे वीर नारायण सिंह, 28 अगस्त 1857 के वीर नारायण सिंह जेल से भागे म सफल होगे। सन् अट्ठारा सौ सन्तायने म देस म कांति के ज्वाला भड़क गे रिहिस। जेखर आंच छत्तीसगढ़ म घलो पहुंचिस । छत्तीसगढ़ के जनता मन एक सुर म जेल में बंद वीर नारायण सिंह ल अपन नेता चुन लिन। वियाकुल सोनाखान के जनता अपन नेता ल छोड़ाय वर छटपटात राहय। वो सबै संबलपुर म सुरेन्द्र साथ नांव के एक झिन क्रांतिकारी नेता रिहिस जउन हाले म हजारी बाग जेल से भागे म सफल होय रिहिस सोनाखान के जनता मन ओखरे मदद ले के बीर नारायण सिंह ल रइपुर जेल से भागे के उपाय करिन। जेल म सुरंग बनाके बीर नारायण सिंह भाग गे वीर नारयण सिंह के जेल ले भागे से अंगरेज अधिकारी मन के होस गायब हो गे इन्क्वायरी सुरु कर दे गिस अड बोला दुबारा पकड़े बर सेना के सहायता लेय गिस। यो जमाना म वीर नारायण सिंहल पकड़वाय वर 1000 रु. इनाम के घोसना करे गे रिहिस, जउन आज के लाखों रुपिया के बरोबर होथे। एती नारायण सिंह ल पकड़े बर लेफ्टीनेन्ट स्मिथ अउ लेफ्टीनेन्ट नेपीयर ल कमान संउप दे गिस।


नारायण सिंह जेल से भागे के बाद चुपचाप बइठे के बजाय अंगरेजी सत्ता से सोझ मुकाबला करे के अयलान कर दिस। सोनाखान के आदिवासी अपन नेता के वापसी से खुस हो गे राहय। 500 बंदुकधारी सेना खड़ा करे म नारायण सिंह ल कांही दिक्कत नइ आइस। फेर वो समै के अऊ बाकी दोगला जमीन्दार मन अंगरेज मन के साथ दीन।


देवरी के जमीन्दार अउ नारायण सिंह के बीच तो खानदानी दुस्मनी रिहिस। उँखरे मदद अउ रद्दा देखाय से 26 नवंबर 1857 के स्मिथ अपन सेना संग नारायण सिंह के इलाका म पहुंचे म सफल हो गे । उहां वोला मालूम परिस के नारायण सिंह अपन संग 500 सैनिक जोर डारे हे अउ वोहा अंगरेज सेना संग जोरदार मुकाबला करे पर तइयार बइठे हें। तभे एक झिन घरभेदिया ह स्मिथ ल बताइस के नारायण सिंह सोनाखान के नाकाबंदी म लगे हे फेर वो काम पूरा न होय हे अउ सोनाखान म खुसरे जा सकथे। देवरी अउ सिवरीनरायेन के जमीन्दार मन गद्दार निकलिन उँखरे सहायता ले स्मिथ 1 दिसंबर 1857 के सोनाखान बय धावा बोल दिस। नारायण सिंह घलो तइयार रिहिस। ओखर सैनिक मन स्मिथ के सेना उपर बंदूक से हमला कर दिन। एखर बावजूद स्मिथ अपन सेना सहित सोनाखान पहुंचे म सफल हो गे ।


सोनाखान गांव ल नारायण सिंह खाली करवा दे रिहिस। बगियाय स्मिथ ह खाली गांव में आगी लगवा दिस। सरी गांव भंगर-भंगर जर के राख हो गे नारायण सिंह अइसन तबाही हो जही कहि के नइ सोंचे रिहिस। एती स्मिथ ल अऊ उपहारा सेना मिल गे। ओखर मदद ले स्मिथ वो पहाड़ी ल घेर लिस जिहां नारायण सिंह अपन साथी संग मौजूद राहय। दुनो डाहर ले मुकाबला होय लगिस स्मिथ के सेना जादा रिहिस, धीरे-धीरे नारायण सिंह कमजोर पड़त गिस आखिर म गद्दार मन के मदद ले नारायण सिंह के आंदोलन ल मटियामेट कर दे गिस। 2 दिसंबर के बीर नारायण सिंह गिरफ्तार हो गे। 5 दिसंबर के वोला रइपुर के डिप्टी कमिश्नर इलियट के हवाले कर दे गिस। वीर नारायण सिंह ऊपर देसद्रोह के मुकदमा चलाके फांसी के सजा सुना दे गिस। 10 दिसंबर 1857 के बिहन्चे फांसी के सजा तामील कर दे गिस। बीर नारायण सिंह देस के आजादी खातिर शहीद हो गे। बताय जाथे के जेन जघा बीर नारायण सिंह ल फांसी दे गिस तेन उही जया आय जेला आज हम रइपुर के जय स्तंभ चौक के नांव ले जानथन।


इहां सुरता करे जा सकथे सन् 1857 में भारत के आजादी खातिर पहिली स्वतंत्रता संग्राम लड़े गे रिहिस। इही लड़ई ल बीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ में लड़े रिहिस। छत्तीसगढ़ म सबले पहिली आजादी के अलख जगइया अउ कोनो नोहे इही वीर नारायण सिंह आय इहां यहू धियान देव के बात हे के छत्तीसगढ़ के ये पहिली शहीद एक आदिवासी बीर रिहिस। धन्न हे शहीद वीर नारायण सिंह, तोर जीवन धन्य है।


जब तक सुरुज नारायण के ताव रही, बीर नारायण तोर नांव रही, बीर नारायण तोर नांव रही।


   -दिनेश चौहान, छत्तीसगढ़ी ठीहा, 

    आदर्श कालोनी, नवापारा (राजिम)



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