कहिनी
"अनजतनीन"
कोनो चीज ल जादा मया-दुलार नई करना चाही,नही ते जादा मया जी के जंजाल हो जाथे।रमेश ओकरे फल आज भोगत हे।रमेश के दू झन बेटा अऊ एक झन एकलवतिन बेटी रिहिस भाग म कमाए रिहिस बिचारा त नौकरी म लगे रिहिस तभे अपन परिवार ल सम्हाले रिहिस।लईका मन ल ननपन ले बड़ सेज -संवार के राखे रिहिस।उखर जम्मो जरुरत ल आगू ले आगू पूरा करे।बड़े बेटा राहुल ,ओकर बाद बेटी सोना ,अऊ छोटे बेटा लाला।पढ़ई म राहुल के कोनो मन नई राहय,फेर बाप के मन कहाँ मानही ,कतको चमकाए-धमकाए ओकर कान म जूँआ तक नई रेगय। बाप के मन ताय बने पढ़लिख जाही त अपन पांव म खड़ा हो जाही।
सोना एकझन एकलवतिन बेटी,दू झन भाई के एक झन बहिनी।दाई -ददा अऊ भाई मन के मया पलपलात राहय।सरकारी आदमी के काहां ठिकाना कभू इहां कभू उहां। गाव ,शहर भटकना जईसे इंखर भाग लिखाय रहिथे।फेर लईका मनके जिनगी ल संवारे बर शहर के कवाटर म रिहिस ।सोना,ननपन ले ओखरो पढ़ई-लखई म कोनो कमी नई करिस।कहिथे बेटी लक्ष्मी बरोबर होथे।ओसने सोना के आए ले परमोसन ऊपर परमोनसन होईस।सोना पढ़ई
म बड़ चन्ट रिहिस।अब तो वो ह बारहवी पास करके कालेज जाए लगिस।अब के लईका मन पहिली असन नई रहीगिस,बड़ उदूकबूचहा(चंचल)मन के होथे।अब के संगी संगवारी मन का टूरी का टूरा सब एकमई।पढ़ते-पढ़त हम उमर के आनजात टूरा संग मन हारगे।इकर पढ़ई संग मया घला बाढ़े लगीस।ण
ऐती रमेश बेटी के पढ़ई-लिखई म बड़ बड़ खुश राहय,अऊ रहि काबर नही भई बेटी घर के जम्मो काम- बूता म दाई के हाथ घला बंटाय।बोलचाल म घलो संसकारित राहय।बेटी ल दूसर के(पराया)धन कहिथे।उही धरम ल ददा निभाय बर नता गोता फरियाथे।फेर ननजतनीन अपन अंतस के गोठ ल मन म मोटरी कस बाँध लिस कोनो ल नई बताइस।सगा एक आवत आवत हे,एक एक जावत हे।कहूँ ठसा नई परत हे काबर ओकर मन म दूसर बर मया पलपलावत हे।कहीथे मया के आँखी म सब अँधियार होथे।ननपन के दाई-ददा के मया भाई के दुलार आज सब अबिरथ
फकीर साहू
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