Thursday 15 December 2022

गाँव के सप्ताहिक बजार ------------------------------

 गाँव के सप्ताहिक बजार

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गाँव मा हप्ता के कोनो निश्चित दिन म ,निश्चित जगा मा हाट-बजार भराथे तेला सप्ताहिक बजार कहे जाथे।जेन दिन भराथे तेकर अनुसार एकर नाम होथे जइसे के इतवारी बजार,सोमवारी बजार---आदि।आजकल कई ठन बड़े-बड़े गाँव मन म सप्ताह म दू दिन बजार तको लगे ल धर लेहे जेमा प्रायः एक दिन ह इतवार होथे ताकि पढंता लइका-लोग अउ नौकरी पेशा मन तको बजार के आनंद उठा सकयँ।

    सप्ताहिक बजार म स्थानीय गाँव के मन अपन रोजमर्रा के समान तो बिसाबे करथें , तीर-तखार गाँव के मनखे मन  तको ताजा साग-भाजी अउ जरूरत के जिनीस खरीदे बर आथें। सप्ताहिक बजार म बनेच भींड़-भाँड़ होथे।

     सप्ताहिक बजार म ओरी के ओरी किसिम-किसिम के दुकान खुल्ला भुइयाँ म तिरपाल या फेर बोरा बिछा के लगाये जाथे जेमा दुकानदार ह अपन समान ल मढ़ाके बेंचथे। येला पसरा कहे जाथे। कहूँ-कहूँ ग्राम पंचायत मन पक्का चौंरा तको बनाये हें ।कोनो-कोनो बजार म बादर-पानी अउ घाम ले बाँचे बर  शेड वाला चौंरा तको बने हे।अँधियारी ले निपटे बर फ्लड लाइट के जोखा हे।ग्राम पंचायत ह अपन आय बर अइसन बजार मन के नीलामी करथे अउ जेन ह बोली लगाके खरीदे रइथे वो ठेकेदार ह बजार म समान बेंचइया मन ले निर्धारित शुल्क वसूलथे।कई पइत कोंचिया,कोचनिन मन के ठेकेदार ले इही वसूली के नाम म झिकझिक तको हो जथे।

     ये सप्ताहिक बजार मन दू समे म लगथे।कोनो-कोनो जगा बड़े मुँधरहा ले त कोनो-कोनो जगा संझा तीन-चार बजे ले ।एकर पाछू ये सोच हावय के लोगन बिहनिया ले बजार करके अपन काम-बूता म जा सकै या फेर संझा काम-बूता,खेत-खार ले आके बजार करैं। कोनो प्रकार ले अकाम झन होवय। ग्रामीण व्यापार के सुग्घर सिद्धांत हावय ये हा ।

       सप्ताहिक बजार म ग्रामीण मन के सीमित जरूरत के प्रायः जम्मों समान के दुकान लगे रइथे। ताजा-ताजा मौसमी साग-भाजी,किराना समान, उठवा(रेडीमेड) कपड़ा , लुगरा-पोलखा, बर्तन-भाँड़ा, खई- खजेना,चना-मूर्रा,मिठाई, मछरी-कुकरा-अंडा, फल-फलहरी,टिकली-फुँदरी,चूरी-चाकी,सोना-चाँदी,डालडा के गहना, लइका मन के खेलौना, जड़ी बूटी, माटी के बर्तन, झाड़ू ,खरहेरा, सूपा, टोपली बेलना-चौंकी,हँसिया -टँगली, आदि --कतका ल गिनाबे ।कई पइत तो सोचे नइ रइबे तइसनो समान बजार म बेंचाये बर आये रइथे। 

   गाँव के सप्ताहिक बजार के स्थानीय निवासी मन बर अबड़ेच महत्व हे। वोमन ल छोटे-छोटे चीज बर दूरिहा शहर जाये ल नइ परै जेकर ले समय अउ धन दूनों के बँचत होथे।जेन साग भाजी अउ समान शहर म मँहगी म मिलथे वो ह गाँव के हाट-बजार म दू पइसा सस्तीच मिलथे काबर के शहर के  दुकानदार ह परिवहन खर्चा के संगे संग दुकान किराया, बिजली बिल ,नौकर चाकर अउ अन्य टेक्स मन ल जोंड़ के समान बेंचथे जबकि गाँव के बजार म वो समस्या नइ राहय।

   गाँव के बजार म स्थानीय महिला यहाँ तक के बुजुर्ग महिला मन ल जे मन खेत खार म मजदूरी नइ कर सकयँ तेनो मन ल पसरा म साग भाजी ,चना-मुर्रा आदि बेंच के अपन आवश्यक खर्चा बर पइसा कमाये के अवसर मिलथे। गाँव म उपजे सब्जी के फसल ल मंडी लेगे के जरूरत नइ परय- इही सप्ताहिक बजार म खपत हो जथे अउ अच्छा रेट मिल जथे।उपभोक्ता ल घलो ताजा तरकारी मिल जथे।

    ये सप्ताहिक बजार मन बारों महिना गाँव के कतको मनखे ल जेमा नवयुवक मन तकों शामिल हे रोजगार उपलब्ध कराथे। कई झन एकदम कम लागत म बिजनेस शुरु करके जिनगी के नवा रस्ता गढ़ लेथें अउ अपन गरीबी ल दूर कर लेथे। रोजी मंजूरी बर घर दुवार छोंड़के परदेश म भटके ल नइ परय। हाट बजार म दुकान लगाये के अलावा अपन खेती बारी के काम अउ बखत परे म गाँवे मजदूरी करके आय प्राप्त करे जा सकथे।

       कुल मिलाके गाँव के सप्ताहिक बजार ह ग्रामीण अर्थव्यवस्था म सहायक होथे। एकर बढ़वार होना चाही।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़


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