Sunday 11 December 2022

चिरई बर धान के झूल---


 चिरई बर धान के झूल---


हमर छत्तीसगढ़ म किसिम-किसिम के चिन्हारी, परंपरा, नेंग, रीति-रिवाज हवय जेहा कोनों न कोनों डहन ले प्रकृति ले जुड़े अउ परोपकार के भावना ले भरे होथे। ये परोपकार के भाव धरती के सबो परानी मन बर होथे। ये बुता ल खुशी-खुशी ले घलो करे जाथे। जेकर ले मन म बड़ा आंनद आथे। ये साल मेहा अपन स्कूल म घलो चिरई मन बर झूल ल खीला म अरो के रखें हों।


किसानी के बुता म जब धान के सोनहा बाली ल झुलत रथे त गजब मनभावन लगथे। किसान के मन ह कुलकत अपन जांगर के कमई के फल ल देख आगास म उड़त कई ठन सपना संजोवत रथे। 


धान बाली के आये के बाद करगा ल निकालत अउ धान के लुवई के बेरा म बासी-पेज खाय के समे हमर दाई-माई मन सुरतावत बढ़िया बुता घलो करथे। धान के बाली ले झूल बनाये के बुता। जेला सबो झन ल बनाये बर नई आये। कोई-कोई मन ल ही बनाये बर आथे। झूल के बनई घलो एक कला हरे। जे बने के बाद बढ़िया चापे-चाप मुड़ी कोरे गांथे सही दिखत रथे।


धान के झूल ल बनाये के बाद घर के परवा-छानी के खाल्हे म रख देथे। चिरई मन आके ओला खाथे अउ अपन पेट भरथे। देवारी तिहार के दिन घलो झूल ल घर म रखे जाथे जेला शुभ माने जाथे अउ बढ़िया घलो दिखत रथे। चिरई मन झूमे रथे अउ बाली के दाना मन ल खोल-खोल के मजा करत खावत रथे।


धान के झूल जीव-जंतु मन बर दान अउ किसान मन के परोपकार के भावना ल घलो बताथे। किसान अपन संग सबो जीव मनके संसो करथे। किसान के उपजाये फसल ह सबो जीव के बांटा लगे रहिथे। ओमन कोनो डहन ले अपन हिस्सा ल ले डारथे। प्रकृति सबो जीवधारी मन बर भोजन के बेवस्था करथे। प्रकृति अउ जीव-जंतु मन ले जुड़ाव आदमी के जनम ले बने रथे, जेहर कभू नई दुरिहाये।


          हेमलाल सहारे

मोहगांव(छुरिया)राजनांदगाँव


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