Friday 2 December 2022

छत्तीसगढ़ी भाषा म आने भाषा के शब्द ल अपभ्रंश रूप म प्रयोग करना कतका न्याय संगत हवय ?

 छत्तीसगढ़ी भाषा म आने भाषा के शब्द ल अपभ्रंश रूप म प्रयोग करना कतका न्याय संगत हवय ?

    *ये संबंध म आदरणीय निगम सर जी द्वारा प्रस्तुत आलेख खूब महत्वपूर्ण,संहराए लाईक अउ छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य,व्याकरण, के संबंध म जब भी चर्चा होही,उदाहरण देहे बर सहेज के राखे लाईक हवय*

     *छत्तीसगढ़ी भाषा म लिखे बर कतेक वर्णमाला होना चाही ?*

     *ये विषय के विमर्श म पिछले बार खूब विचार-मंथन होए रहिस, तेमा सर्वसम्मति से 52 वर्णमाला मान्य करे गए रहिस*

    *जब हमन छत्तीसगढ़ी भाखा बोलथन, तब हिन्दी भाषा के 52 वर्णमाला के उच्चारण खच्चित रूप से होबेच करथे | तव 52 वर्णमाला के उच्चारण ल लिखत बेरा कुछ वर्णमाला ल नइ लिखबो,तव बोलबो-गोठियाबो कईसे ? तब तो शब्द मन अधूरा हो जाही | 52 वर्णमाला से कुछ वर्णमाला ल काट देबो,तव छत्तीसगढ़ी भाषा के कई ठन महत्वपूर्ण शब्द मन कट जाही ! छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य ह विकलांग हो जाही! कनवा-खोरवा हो जाही ! तेकरे सेती मैं हाथ जोड़ के विनती करत हौं -"हिन्दी वर्णमाला म  बऊरे जाथे,तऊन सब 52 वर्णमाला के उपयोग लिखे-बोले बर खच्चित जरूरी हवय*

    *हां, एक बात बज्र गठिया के धरे लाईक हवय  - "हिन्दी के 52 वर्णमाला मन ल बऊरे के मतलब ये हरगिज नइ होय के छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी भाषा म अंतर होबेच नइ करय, हर हिन्दी शब्द ल जस के तस लिख दे ! तब तो खूब अलहन हो जाही ! "छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य काला कहिबो?*


     *सार बात तो विशेष रूप से खूब चेत करे बर परही के -हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी दुनो सहोदर बहिनी होय के बावजूद दुनो के रूप-रंग, चाल-ढाल,  व्याकरण के दृष्टि से लिंग,वचन,कारक रचना के दृष्टि से,स्वरूप,संस्कृति,रहन-सहन,खान-पान, अउ मूल तासीर के दृष्टि से खूब अंतर हवय*

    *हिन्दी भाषा बड़े बहिनी आय, छत्तीसगढ़ी भाषा सग्गे छोटे बहिनी आय*

     *हिन्दी भाषा म साहित्य लेखन-वाचन अउ छत्तीसगढ़ी भाषा म साहित्य लेखन-वाचन के समय-काल के दृष्टि से भी हिन्दी भाषा बड़े बहिनी आय, जबकि छत्तीसगढ़ी भाषा छोटे बहिनी आय*

     *पैदाईशी काल गणना म  हिन्दी बड़े बहिनी आय, छत्तीसगढ़ी छोटे बहिनी आय*

   * *प्रयोग कर्ता के क्षेत्रफल अउ जनसंख्या के अनुपात म घलो हिन्दी बड़े बहिनी आय | छत्तीसगढ़ी छोटे बहिनी आय*

    *सबसे खास बात ये हवय-छत्तीसगढ़ी संस्कृति भाषा ह हिन्दी के संगे-संग चलथे,तभो ले छत्तीसगढ़ी भाषा के मूल तासीर म अंतर होथे | जब हम ठेठ छत्तीसगढ़ी भाषा म लिखथन, तव एक्के नजर पड़ते ही ये बात स्पष्ट हो जाथे -एहा छत्तीसगढ़ी भाषा म लिखाय हवय*

    *ये साहित्य ह हिन्दी भाषा म लिखाय हवय*

     *जैसे कोनो दू झन जुड़वा बहिनी होथे | ऊंकर रूप-रंग, आकार, डील-डौल, कद-काठी, आंखी के बनावट, चुंदी के साईज, एक्के जैसे रेशमी-चमकीली या घुंघरालू चुंदी होय के बावजूद एक बहिनी ल अम्मठ (खट्टा) पसंद रहिथे,तव दूसर बहिनी ला मीठा पसंद रहिथे | एक बहिनी ल नमकीन पसंद रहिथे,तव दूसर बहिनी ल चुरपुर (चटपटा) पसंद रहिथे | एक बहिनी ल नीला,पीलाअउ हल्का रंग पसंद रहिथे,दूसर बहिनी ला काला,लाल,भड़कीला,गहरा रंग पसंद रहिथे | एक बहिनी वाचाल रहिथे, तव दूसर बहिनी मितभाषी होथे | एक बहिनी ला बाग-बगीचा,हाट-बाजार जाना पसंद रहिथे, तव दूसर बहिनी ला अपन घर -अंगना ही पसंद रहिथे*

     *ठीक अईसनेच हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी दुनो सहोदर बहिनी होय के बावजूद इंकर रूप-रंग,चाल-ढाल,स्वरूप व्याकरण के दृष्टि से, आकार-प्रकार म  बहुंतेच अंतर होथे*

     *हिन्दी उ छत्तीसगढ़ी के वर्णमाला अउ लिपि एक्के हवय, सोच के छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य म हिन्दी भाषा के जम्मो शब्द ल जस के तस लिख देहे ले वोहा छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य म हरगिज मान्य नइ होही, बल्कि वर्णशंकर स्वरूप माने जाही! तब लिखैया साहित्यकार ल दुख लागही, ओकर सब  मेहनत ह "आधा तीतर-आधा बटेर सहीं अउ गुड़-गोबर हो जाही!*

     *छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य म साहित्य सिरजन करे बर छत्तीसगढ़ी ठेठ बोल-चाल के शब्द मन ल खूब पूछताज करके, दादी-नानी, बड़े ददा-बड़े दाई, कका-काकी के बोलचाल के शब्द मन ल खोजबीन करके वो शब्द मन के शोधपरक उपयोग करना जरूरी हवय, तभे हमर छत्तीसगढ़ भाषा-साहित्य ह अपन नवा वजूद बनाके देश-दुनिया म मान-सम्मान पाही*

     *एक महत्वपूर्ण प्रश्न हवय-"छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य म आने भाषा के शब्द मन ल अपभ्रंश के रूप म कतेक बऊरे जाना चाही ?*

     *ये महत्वपूर्ण सवाल के उत्तर मोर मति अनुसार -छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य म आने भाषा के शब्द ल तभे उपयोग करे जाय,जब वो शब्द ह हमर छत्तीसगढ़ के रीति-रिवाज,खान-पान, रूप-रंग, रहन-सहन म तालमेल बना सकै | अईसे हरगिज नइ होना चाही-हिन्दी के 52 वर्णमाला मन ल छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य बर स्वीकार करे जा चुके हवय, तव हर हिन्दी शब्द ला छत्तीसगढ़ी साहित्यिक म जबरन ठूंस-ठूंस के भर देही, तब वो साहित्य ल पढ़े म छत्तीसगढ़ी भाषा-बोली के नामोनिषान नइ रहिही ! तब ओ लेख-कविता ला छत्तीसगढ़ी के दर्जा कईसे देबो ? काबर देबो ? जउन रचना म छत्तीसगढ़ी भाखा-बोली के तासीर नइ मिलही, तेला छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य हरगिज मान्य नइ होही*

     *छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य म हिन्दी के अलावा अंग्रेजी,उर्दू, संस्कृत,अरबी,फारसी,असमिया,अवधी,बुंदेलखंडी,भोजपुरी जम्मो भाषा के शब्द ल जस के तस लिखे जाय, जऊन बोलचाल म अईसे लगथे के एतो छत्तीसगढ़ी भाषा आय, लेकिन आने भाषा के अपभ्रंश शब्द मन ल छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य म समाहित करे के एक मतलब नइ होना चाही के छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य बर ओ शब्द मन नुकसान पहुंचाही !*

      * *हम छत्तीसगढ़िया भाई-बहिनी मन बंगाली,बिहारी,मद्रासी,ओड़ीया, तेलगू, मराठी मनखे आथें, "तव एक लोटा पानी अउ चार पहर रात बीताए बर खली-खोर के आंट म रहे बर दे देथन | एकर मतलब ए हरगिज नही होना चाही के जऊन बाहरी मनखे ल अलकर-सांकर म चार पहर रात बीताए बर गली-खोर के आंट ल दे देथन, तऊने मनखे धीरे-धीरे चापलूसी करके हुसियारी पूर्वक हमर घर म कब्जा करके हमी ल हमर घर से बाहिर निकाल देही !!*

     *ठीक अईसनेच हमर छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य म घलो आने भाषा के अपभ्रंश शब्द मन ल खूब सोच-विचार के शोध करके ओही शब्द मन ल शामिल करे जाय,जऊन हमर छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ल विटामिन प्रोटीन सहीं फायदा पहुंचाही, आगे चल के छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ला नुकसान झन पहुंचाही,वईसने शब्द ल शामिल करे जाय-जऊन छत्तीसगढ़ी दूध सहीं भाषा म मिस्री बन के घुलमिल जाय*

    *हमर छत्तीसगढ़ी लोक कला,लोक गीत, लोक गाथा, लोक नृत्य मन देस-विदेश म खूब मान-सम्मान पावत हवय, काबर के लोककला संस्कृति के प्रस्तुति ह देस-दुनिया म वाचिक परंपरा के द्वारा दुनिया के लोगन ल प्रभावित करथे*

    *लेकिन हमर छत्तीसगढ़ साहित्य ह, छत्तीसगढ़ी लोक कला जईसे सम्मान अभी तक प्राप्त नइ कर पाए हवय! एकर सब ले बड़े कारन हवय -" छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ह लिखित रूप म अपन मौलिक स्वरूप म नइ दिखत हवय ! छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ह अपन मौलिक अस्तित्व के रूप म खास पहचान नइ बनाए हवय !*

     *तेकरे सेती छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ल देस-दुनिया म अलग मान-सम्मान पाए बर ठेठ छत्तीसगढ़ी शब्द द्वारा ही साहित्य सिरजन करना खच्चित जरूरी हवय |*

     *छत्तीसगढ़ राज्य स्थापित होए के बाद ये 22 बच्छर म छत्तीसगढ़ी साहित्य के जम्मो विधा म खूब साहित्य सिरजन होवत हवय, तव मोला पक्का विश्वास हवय- अब छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ह घलो छत्तीसगढ़ी लोककला संस्कृति सहीं जल्दी मान-सम्मान पाही | तभे छत्तीसगढ़ी भाषा ल भारतीय संविधान के आठवींअनुसूची म जघा अपने-आप पा जाही*


   *जै छत्तीसगढ़*

    *जै छत्तीसगढ़ी*


दिनांक-02.12.2022


आपके अपनेच संगवारी

*गया प्रसाद साहू*

    "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)

पिन कोड -495113

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