Thursday 15 December 2022

बिजली के सवारी (कहानी)

 बिजली के सवारी (कहानी)


   घोड़ा चघे के सउँख कोन ल नइ रहय? लइका मन ला नानेपन मा खियाले-खियाल के घोड़ा चघे बर मिले रहिथे। चाहे खेलौना के घोड़ा होय, चाहे अदमी बनय। लइकन मन ये बनउटी घोड़ा मा चघ के अतका मजा उड़ाथे के  झन पूछ! अब तो मोटर -गाड़ी के जमाना मा पहिली के घोड़ा मन नँदागे हे। कोनो-कोनो गोहड़वार राऊत मन मेर कभू-कभार घोड़ा देखे बर मिलथे। अइसन मा लइका मन ल कहूँ सिरतोन के घोड़ा के सवारी करे ल मिल जाय त खुशी के का ठिकाना होही!

        गाँव के मुड़वाचर मा सड़क के तीर स्कूल,  अउ ओकरे ले सँटे दइहान हावय। स्कूल के छुट्टी होगे रहय। पढ़इया लइकन मन छुट्टी पाछू सँझौती पहर एती-ओती दइहान, स्कूल के मैदान अउ कोनो मन सड़क तीर मा संगी के संगी  खेलत रहँय। तइसने राजा ह एकठी घोड़ा ल आवत देख डारिस। अउ देख के कहिथे, वोदे घोड़ा आवत हे का? तहाँ सँग मा खेलइया सँगी मन पुछिस, कहाँ? कहाँ? राजा ह अपन संगी मन ल घोड़ा ल देखाइस। तहाँ हाव ले! हाव ले! कहत सँगी मन कुलकत चिल्लाय लगिन, घोड़ा! घोड़ा! घोड़ा!

   चिल्लई ल सुन के सब्बो छोट-बड़ लइका मन सड़क तीर सकला गँय। लइकन के भीड़ ल देख  बब्बू मियाँ घलो पहुँचगे। ओती ले नानचुन घोड़ा सड़के-सड़क रेंगत गाँव डहर  खुडुक- कुड़क आवत रहय। घोड़ा बर लइका मन के उछाव ल देख के बब्बू मियाँ घोड़ा ल पकड़े के मन बनाइस। जइसे घोड़ा ह तीर मा आइस बब्बू मिया पुचकारिस, त घोड़ा ह चुपकन खड़ा होगे। तहाँ बब्बू मियाँ गेरवा म बाँध लिस। बाँधे के पाछू बब्बू मियाँ ह घोड़ा ल जाँचे-परखे लगिस। परखे मा पता चलिस के, वो घोड़ा ह असल मा बछेड़ी पिलवा हरय, अउ बड़ सिधवा। जउन हा गाँव मा रसदा भटक के आगिस होही। 

   लइका मन बर घोड़ा रहय चाहे घोड़ी, के बछेड़ी, ओखर ले उँनला का मतलब! उँकर बर तो सब घोड़ेच ए। सिधवा जान के लइका मन घोड़ा के तीरे-तीर मा लोरयँ। कउनो छुवै कउनो पुचकारै। मगन हो के अपने-अपन कुलकयँ। अउ ओकर नाँव धर दिंन बिजली!

बब्बू मियाँ ह हाव-भाव म लइकन के मन ल चरच लिस के इनमन घोड़ा चघे बर बियाकुल होवत हें। अउ पूछिस!  घोड़ा चघहू? सबो लइका मन तहां एक्के सँघरा हाव! हाव! कहिके थपोली बजावत उदके लगिन।

   बब्बू मियाँ ह सबले पहिली नान-नान लइकन नीनी, नैना, मोटू, लोरी, गोलू अउ अरसद ल, फेर हुसियार लइका मन ल ओसरीपारी "बिजली के सवारी" कराइस। बिजली घलो सीखे-पढ़े कस  टिंग-फूस नइ करिस। लइकन मन समझगिंन के बिजली कतका सिधवा हे,अउ अब हमन खुदे सवारी कर सकथँन।बिजली के सवारी करके लइका मन अतका खुशी मनावँय के झन पुछ! अब "बिजली के सवारी" करते-करत मुँधियार होगे। बब्बू मिया ह बिजली  ल अपन घर मेर अमली के रुखवा तरी बाँध धिस। तिहाँ सब लइका मन अपन-अपन घर चल देइन। 

       "बिजली के सवारी" मा लइकन मन के साध अभी पुरा नइ होय रहय भलुक अउ बाढ़गे। दूसरइया दिन बड़े-बिहनिया ले करन, पंडा, समीर, विकास, बंशी अउ राजा मन बिजली मेर आगे रहँय। पोंछँय, खजुवाय त बिजली ह अउ गत ल दे रहय। सबो झन बिजली के चारो-मूड़ा  देखत-ताकत घेरे खड़े रहँय।  बिजली के सुभाव ह पहिलीच ले निमगा सिधवा अउ मनखहिंन रहय। तेकर सेती झटकन लइकन मन सँग हिल-मिल गय। तिहाँ पंडा ह अमली जरवा म बँधाय डोरी ल छोरिस अउ चारा चराय बर बिजली ल लेगे लगिस। सँगे-सँग सबो लइका मन घलो पाछू-पाछू गइँन। चारा चराय के बाद सबो लइका मन पारी के पारी खूब  सवारी करिन। एती लइकन मन ल स्कूल जाए के बेरा घलो होवत रहय। सबो लइकन तरिया म नहाय बर गइन त बिजली ल घलो ले गयँ। सबले पहिली बिजली ल नहवाइन-धोइन अउ पार म खड़ा कर दिंन। फेर अपन मन नहाके बिजली के गेरवा मा लंभरी डोरी फॉसिन अउ काँदी चरे बर बाध के स्कूल जाए बर अपन-अपन घर गयँ। स्कूल मा खाना छुट्टी के बेरा एक पइत अउ लइका मन बिजली के हियाव अउ सवारी करिन। साँझ कन स्कूल के छुट्टी होइस त घर मा बस्ता ल झट ले रखिंन अउ तुरते बिजली मेर आइँन अउ सवारी करिन। लइकन मन ये उदिम नितदिन करे लगिंन। ए बीच मा लइकन मन दूसर खेल खेले बर निमगा भुलागे रहँय।

         लइका मन के अही बूता सरलग तीन दिन ले चलते रहय। जेमा बिजली के बरोब्बर धियान घलो रखे जावत रहिंन। चौथइया दिन घलो बिजली ल बढ़िया धो-नहवा के चारा चरे बर बाँध के स्कूल चल दिंन। जब छुट्टी होइस त रोज जइसे लइका मन दउड़े-दउड़े आईन, त बिजली अपन ठउर मा नइ रहय! एती-ओती तरिया कोती अउ गली-खोर सब डहर ल खोजिंन, फेर बिजली के कहूँ सोर नइ मिलिस। सब झन उदास होके बइठ गँय। आज कोनो ल खाय-पिये बर मन नइ लगिस। रात भर नींद नइ आइस अउ खटिया म छटपटा-छटपटा के रात ल काटिन।

      दूसर दिन राजा मन स्कूल ल नाँगा कर देइन। अपन सँगी मन सँग बिजली ल खोजे बर  निकल गँय। करन अउ पंडा बारी-कोला अउ नँदिया डहर ल खोजय, त समीर अउ विकास  खेत-खार बरछा डहर, अउ राजा, बंशी मन परोसी गाँव डहर सोर लगावँय। फेर बिजली कहाँ गइस, तेन सोर नइ लग पाइस। पढ़ई -लिखई मा कखरो मन नइ लगय। सब थक -हार के घर बइठ गँय। अइसे-तइसे महिनों बीत गे। धिरे-धिरे बिजली के सुरता लइकन के मन ले बिसरत रहय। 

     बिकट दिन बाद जब स्कूल के छुट्टी होइस अउ सब अपन-अपन घर जावत रहय। ओतके बेर राजा ह जोर से चिल्लाईस बिजली! 

 लइकन मन के कान ठढ़ियागे! तुरते भदभिद-भदभिद सड़क कोती दउड़िन। देखिन त बिजली ह ओही अमली तरी अपन माई तीर खड़े रहय, अउ ओही मेर एक झन डोकरा  गठरी-मोटरी मढ़ाय बीड़ी पीयत बब्बू मियाँ सन बइठे हे। ए देख लइका मन  ठोठकगे! ए घटना लइकन के अंतस ल झकझोर दिस। अउ सरी उछाव धरे के धरे रहिगे।

   लइका मन समझगे के बिजली ह अपन असली मालिक सँग हे। अउ बिजली ल अही ह आके लेगे रहिस होही। लइका मन के हिरदे सरल होथे। उँमन अपन आप ल रोके नइ सकिन। बिजली बर अंतस के बेदना ह अपने-अपन कंठ ले निकरे लगिस। बिजली ए, हमार बिजली! ए बिजली! 

    बंशी ह राउत डोकरा ल पूछय, हमर बिजली ह तोर ए ग! हाव ग मोर ए, डोकरा ह बोलिस। कहाँ लेगत हस ग बिजली ल , जंगल चढ़त हे जी! छोड़दे न ग! बिजली ल। काबर छोड़हूँ जी! ए किस के सवाल-जवाब लइकन अउ राउत डोकरा संग होवँय। लइकन मन केंदरा-केंदरा के बोलँय जेकर असर राउत डोकरा ल नइ होवय।

       बब्बू मियाँ ह राउत डोकरा ल बिजली अउ लइकन के जम्मो कथा ल सुना डारिस। राउत बिचारा का जानय? वो तो जंगल जावत रहिस अपन गोहड़ी जिघा। लंबा रद्दा के सेती चार पहर के रात ल बिताय बर बिलमे हे इँहा। 

अँधियार होते जात रहय। तभो ले लइका मन बिजली के तीर ल छोड़ जाय के नाव नइ लेत रहँय। 


    ये देख लइकन के भाव म  डोकरा बोहाय लगिस। अउ मन पसिजगे।  काबर नइ लइकन के मन ल राखँव! इँखर मन ल मार के जाय मा मोला का फायदा हो जही? ये सोंच के राउत डोकरा ह कहिस- तूमन कालि जुअर  ससन भर बिजली के सवारी करहू जी!

    राउत डोकरा के आश्वासन पा के सब लइकन मन खुशी-खुशी अपन-अपन घर चल दिंन। जइसे बिहान होइस लइका मन पहुंच गँय। पहिली कस बिजली ल चारा चराइन। चारा चरा के स्कूल के बेरा ले ओसरीपारी सवारी  करिंन। फेर अपन सँग मा बिजली ल नहवाइँन धोइन।

    आज बिजली हा लइकन के बिकट दुलार पाइस। काबर के एकर बाद साएद बिजली हा दुसरइया इमन ला नइ मिलय तेकर सेती!

   जब लइकन मन नहा-धो के आइन त राउत डोकरा  के घोड़ी ह सजगे रहय। सरी समान पीठ म लदागे रहय। जइसे लइका मन लाके बिजली ल गेरवा ले ढिलिन ओहा अपन माई मेर जाके ओध गय। अउ बिजली के जवई ले लइकन के मन छोट हो गय। 

    बिजली के आय ले राउत ह उचट के घोड़ी उपर बइठ के लगाम ल धरिस अउ हाँकिस। जइसे घोड़ी ह रेंगे ल धरिस, बिजली ह खदबिद-खदबिद अपन माई ले आगू भागिस अउ दूरिहा ले लहुट के लइकन मन तीर आगे। तइसने डोकरा ह कहिथे..लइकन हो! तूमन मन ल छोट झन करव। हमन जब-जब एती आबो-जाबो, तब-तब तूमन ल बिजली के सवारी करे बर मिले करही। ए सुन के लइकन के मन मा उछाव छागे। सबो झन अब बिजली ल गजब दुरिहा ले सँगे-सँग जा के बिदा करिन। अउ बिजली ह अपन माई के कभू आगू कभू पाछू होवत आँखी ले दूरिहागे।

  

      कहानीकार

    देवचरण 'धुरी'

   कबीरधाम छ.ग.।

   8817359157

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