Sunday 4 December 2022

व्यंग्य - कुकुर कटायन

 व्यंग्य - कुकुर कटायन


राम रमायण तिहाँ कुकुर कटायन। जिहाँ शुभ काम के शुभारंभ होथे, उहाँ कुकुरमन के पहुँचना जरूरी होथे। कुकुर मन के अइसन शुभ पदार्पण ल देखके कभू-कभू सुग्घर भरम होय लगथे कि हमर बसेरा सरग म हे। 


कभू-कभार खोपड़ी म ये प्रष्न अभर-उभर जथे कि शुभ-अशुभ कोनो किसम के बूता होवय, इन्कर बिना असंभव हे का ? जइसे छट्ठी होवय कि मरनी, नाचा होवय कि रामलीला नेता मन के उद्घाटन करे बिना व्यर्थ, गारद अउ असंभव होथे। 


कोनो मेर दू चार झिन मिलके बने विचार-विमर्ष करत रहिबे। ओतके बेरा इन आके अलकरहा झगरा होवत विचार के बाँधा ल बाधा बन फोर-भंगला देथे। बने-बने सोचत-गुनत कलेचुप अपन रस्ता म जावत रहिबे। इन आगू म आके अपने -अपन भूँके लगथे। 


गाड़ी म रहिबे तभो दूरिहा के जावत ले भूँकत दऊड़ाथे। जानो-मानो अवइया-जवइया हँ सत्ता पार्टी के हरे अउ अपन हँ विपक्ष के कोनो कद्दावर खद्दरधारी। बिन मुद्दा के हुद्दा लगाए बर सरीदिन लुकपुकाए रहिथे। जतके भागबे उन ओतके भूँकथे-कुदाथे। कहूँ ‘चुप्प-बे’ कहिके दबकार देबे, ताहेन ‘सट्ट-ले’ चुप होके पूछी ल हलावत झटपट सुटुर-सुटुर रेंगे लगथे। 

अब ये भूँकना-डरवाना हँ दुनिया के रीत-चलागन होगे हावय । जे मनखे जतके डर्राथे दुनिया हँ वोला ओतके डरवाथे, भूँकथे, कुदाथे, हबकथे -चाबथे। 


छूटभइया पीलवा कुकुरमन के तो बाते झन पूछ ! रस्ते-रस्ता म लुहुर-तुकुर होवत रहिथे। तैं सोचते रहिबे वोहँ ओती जाही कहिके अउ वो जवान उदुप ले आके तोर गाड़ी म झपा जही। ताहेन उल्टा चिचियाके तोंही ल गारी-गुप्तार देना सुरू कर देही - ‘कमीना ! हरामजादा !!  कोन जनी अउ का का ?  देखके गाड़ी नइ चला सकस रे।’

लोगन मन गाड़ी वाले ल दोस देथे।


हमर डोकरी दाई कहय-‘कुकुर बिलई अउ छेरी-बछरू ले देख-बाँचके चलना चाही। मनखे ल उन्कर रस्ता नइ काटना चाही। कुकुरमन ल मनखे अउ मनखे के रस्ता दूनो ल काटे के जन्मसिध्द अधिकार होथे।’ 

सही बात ल कहय।


येमन लार बोहावत जीभ ल लमाके लपलपावत, टेड़गा पूछी ल सोझियाए हलावत आथे। जनम के सरू अउ भीखमँगा कस बोट-बोट देखत दुवारी म खड़ा हो जथे। वो बेरा इन ल देखके चुनाव के सुरता हँ मन म हलोर मारे लगथे। राजपथ के नेवरिया पथिक मन ल दुम हलाए के कला कुकुरमन ले सीखना चाही। 


इन्कर ऊपर कहुँ तरस खाके एक घँव बासी-रोटी देस, ताहेन येमन दुवारी ल छोडबे नइ करय। तैं काँही करले। जइसे फायदावाले पद ल पाके मनखे जात छोड़े के नाम नइ लेवय। 


कुकुर हँ बिना खाए दुवारी ले जाबे नई करय, त मनखे हँ बिना पाँच साल बिताए दुवारी म आबे नइ करय। इही सुभाव भर म मनखे अउ कुकुर मन के बीच थोरिक फरक पाए जाथे। ध्यान रहय अभीन जे मनखे के बात होवत हे वोहँ उँच कोटि के आईएसआई मार्का कोटधारी नीच प्रवृत्ति के मनखे के बारे म होवत हे। 


कहूँ खाए बर नइ दिए त इन बदला ले बर घलो नइ छोड़य। नवा-नवा चमकत गाड़ी ल लान के दुवारी म खड़ा कर दे। इन स्वागत-सत्कार खातिर पहिली पानी ओरसे बर तीन टाँग त तियार खड़े रहिथे।

 

इन मनखे जात के सहनसीलता के बड़का परीक्षक तको होथे। दुवारी म बइठे कुकुर ल दुए चार दिन झन धुत्कार। स्टाम्प ल लिखाके ले लौ। देख लेहू कहूँ के मरी के हाड़ा-माँस ल लानके बीच मुँहाटी म छोड़ दिही।


मनखे तो मनखे इन भगवानो ल नइ छोड़य। कोनो जगा सुघ्घर ले सुघ्घर मुरति के थापना कर दे। चाहे वोहँ शनिदेव के होवय चाहे गुस्सेलहा शंकर के। जल चढ़ाए बर इहीमन अगुवा रहिथे। भगवानो हँ खुष होके अवइया जनम म इन ल मनखे बना देथे। मनखे अउ कुकुर के सुभाव म एकरे सेती गजब समानता देखे बर मिलथे।


पहिली कुकुरमन गजब स्वामीभक्त अउ ईमानदार होवय। जेन हँ अब खर्रू होके लुप्त होए के कगार म खड़े हे। बाचे-खुचे स्वामीभक्त कुकुरमन के हाईब्रीड तियार हो गे हावय। वोमन ल बड़े-बड़े कोठी-बंगला म संरक्षित करके राखे के उदीम-उपाय होवत हे। बाढ़त बिरोधी ल छापा मारके डरवाए, चाबे, गिराए बर इन्कर उपयोग गजब सुग्घर, सुलभ अउ सहज रूप म करे जा सकथे। 


कुकुर दू किसम के होथे- पालतू अउ फालतू। येला हरू अउ गरू घला कहि सकथन। इन्कर रूप अउ गुन म गजब बिरोधाभास देखे बर मिलथे। बल्कि बिरोधाभास ल उल्टनहा सबद कहिबो तभो कोनो किसम के अतिबकर अउ लपरही-चटरही -टेचरही गोठ नई होही। 


पालतू कुकुर एकदम हरू होथे, फेर पद, पावर, खान-पान-मान सबो म गरू होथे। उही किसम फालतू कुकुर गरू होए बर होथे फेर बाकी पद, पावर, खान-पान-मान सबो म हरू होथे।

 

कुकुर कोनो किसम के होवय सबके अंतआर्त्मा बरोबर होथे : इरखाहा (ईर्ष्याहा), जीछुट्््््टा, चापलूस अउ भूँकर्रा। एक कुकुर दूसर कुकुर ल खावत कभू नइ देख सकय। चाहे वोहँ अपने सग भाई-बाप काबर न हो जय। सेम-टू-सेम मनखे तको एक मनखे ल बाढ़त नइ देख सकय।

 

जूठा पतरी ल फेंक दे। सबके सब किचकिचावत दऊड़ परथे। एक खावत रहिही त दूसर ओला गुर्रावत रहिथे। कभू-कभू झूमा-झटकी घलो होए लगथे। 


कोनो-कोनो कुकुर हँ बड़ सिधवा, डरपोकना अउ लो बीपी के बीमरहा किसम के होथे। जब वोला दूसर कुकुर मन हबके-चाबे बर घेरे-धरे-झपटे लगथे त वोहँ पूछी ल पीछु कोती छपटाके खुदो छपट जथे। मुड़ी ल थोरिक तिरछा करके जीभ ल ओरमा देथे। सबो दाँत ल दँतला कस ‘खबखब-ले’ निकाल लेथे। नागिन डॉन्स के स्टाइल म अपने जगा खड़े-खड़े तीन पइत अइँठ जथे। जना-मना बैरी कुकुर मन ल एको नई बँचाही।

 

फेर हुँकय न भूँकय। छपटे, छपटाए, तिरछा ओरमाए, खबखब ले निकाले, रेचका कस एकंगु खड़े देखत भर रहिथे। जादा होथे त बिन धकियाए अपने-अपन उलन्ड-घोलन्ड जथे। ओतका बेरा वो कुकुर ल देखके अइसे लगथे जना-मना कोनो सभा के मनोनीत सदस्य हरे। 


कुछु करे धरे नइ सकिस त आखिर म जगा-जगा अपन नकामी ल दबाए-छुपाए-लुकाए बर बयानबीर बने घूमथे कि राजपाठ हँ मोला रास नइ आइस। येहँ मनखे अउ कुकुर दूनो के महानता अउ उदारता के महान लक्षण हरे जऊन अपन कमजोरी ल उघारके देखावत अपन गलती स्वीकार कर लेथे।

 

हपाटे-झपटे,खाए -दबाए अउ चाबे-चमकाए के मामला म येमन अपन-बीरान नइ चिन्हय। कुकुरमन के ये गुन हँ मनखे म डिक्टो-म-डिक्टो पाए जाथे। मनखेमन के ये आदत हँ प्रमाणित करथे के मनखे हँ मनखे जनम ले के पहिली कुकुर रिहिस होही।

 

कुकुर योनि ले मनखे योनि म तुरते-ताही आए रहिथे तेकर पाय के वोला नइ भूलाय राहय। ओकरे सेती जब मनखे-मनखे झगरा होथे त एक दूसर ल ‘तैं कुकुर-तैं कुकुर’ कहिके आषीर्वचन देथे। 


कभू-कभू सुअर घलो कहि देथे। कभू कोनो ल ‘उल्लू के पट््ठा’ तको काहत सुनथन। येकर मतलब मनखे हँ कुकुर जनम धरे के पहिली सुअर रिहिस होही। सुअर के अउ पहिली उल्लू रिहिन होही। तेकर सेती उल्लू के पट््ठा बहुतेच कम सुने बर मिलथे। काबर के वोहँ दूरिहा के बात होगे।


जइसे मनखेमन के पीछु जनम ले जुड़ाव हो जाय रहिथे। तइसे कुकुर मन के आगू जनम ले लगाव हो जाय रहिथे।

मनखे हँ सब जिनावर ले जादा सुख-सुविधा अउ एसो-अराम से रहिथे। येला देखके मृत्युलोक-सरगलोक सबो लोक के वासीमन मनखेच् जनम धरे के साध मरथे। 


मोला बड़ इच्छा होइस के मनखे-मनखे लड़थे त, ‘तैं कुकुर तैं कुकुर’ कहिथे। कुकुर-कुकुर लड़त होही त का काहत होही ? ये बात ल जाने खातिर मैं एक दिन घर ले मुँड़ म राख डारके निकल गेवँ। रेंगे-रेंगे मुन्सीपाल्टी के कचरा डब्बा तीर जाके खड़े-खड़े चुपचाप देखे लगेवँ । 


एक ठिन कुकुर हँ डब्बा म थोथना ल घुसेरे खवई म मगन राहय। जइसे आजकाल के मनखे मन बफर सिस्टम म थोथना ल हुबेस के उत्ता-धुर्रा बोजई म मगन रहिथे। ओतके बेरा दूसर कुकुर हँ मार किटकिटावत किचकिच-किचकिच दऊड़त आइस। 


पहिली कुकुर संभल गे। दूसर कुकुर आते साथ चमकाइस- ‘अरे सुरा ! येमा मोरो बाँटा हे।’ 

पहिली कुकुर सुरा के नाम सुनके सुरा ले अउ आगु वाले जनम म कूद दिस। 

कहिस-‘आना त रे उल्लू के पट्ठा ! तँहू खा ले। कोन मना करत हावय।’

दूसरा कुकुर अपन जगा म खड़े-खड़े खुरच-खुरचके कचरा ल खदर-बदर गदर-फदर खदबदाए-गदफदाए लगिस। सोचिस होही अँटियावत-सनियावत देखके डर्राही ते डर्रई जही। 


कुछु उदबत्ती नइ जलिस, त कहिस - ‘घूँच अब। अपन बाँटा ल तैं खा-चाँट डरेस। अतका ल मैं अकेल्ला बोजहूँ।’ 

पहिली कुकुर तको मनखे बरोबर जिद्दी निकलिस, कहिस -‘हाँ ! ठेंगवा ल खाबे।’

सुनके दूसर कुकुर भड़क गे-‘जादा मत लगा। नइ तो मोर मइंता भड़कही त एकात गफ्फा लगा देहूँ।’

 

पहिली कुकुर घला थोरिक पहुँच, पावर अउ पइसावाला रिहिसे। कान ल टेंड़के चारो गोड़ ल अँड़िया के खड़ा हो गे- ‘लेत मार ! लेत मार ‼ लेन मार रे !!! कतका दमवाले हस देख लेथवँ।’ 


पहिली कुकुर के बेद्दम दम ल देखके दूसरइया कुकुर थोरिक सोंच म पर गे। लाली रिहिसे ते चेहरा के रंग हँ पींवरागे। तभो ले एक घँव अउ काँख के जोर से भूँकिस-‘तैं कहाँ घूँचबे रे घेक्खर ! अप्पत मनखे हो गे हावस।’


मनखे नाम सुनके पहिली कुकुर बमक गे-‘तैं मनखे, तोर ददा मनखे, तोर पूरा खानदान मनखे रे नीच !’

दूसर जुवाब दिस-‘नीच कहि लेस ते कहि लेस रे कमीना ! ‘नीच मनखे’ काबर कहेस रे ! ओतका म दूनो पाल्टी के एकक दूदी झन सगा-सहोदर, भाई-बंधु अउ चेला-चपाटी मन आ गे रहय। 

उन खड़े-खड़े देखत-ताकत-परखत राहय कि कोन जादा पोठलगहा हावय ? वोकरे कोती ले कूद-फाँद, भूँक-चाब अउ लड़-झगर के गदर मताए जाही।

 

पहिली कुकुर ल भरम होगे के मोर संगवारी जादा आए हावय। वोहँ गरजिस- ‘कहिबोच्च। एक घँव नहीं दस घँव कहिबो। तैं खातस त हम तो कुछु नइ काहन। हमार जूठा अउ बाँटा पतरी म तैं काबर झपटस रे अनदेखना ! कायर ‼ जेन पहिली आइस तेन पहिली पाइस रे हरामजादा ‼ 


अइसे तइसे उन्कर झगरा बाढ़ गे। तैं चोर, तैं मंदहा, तैं गँजहा, तैं भाई, तैं तहसील-कलेक्टर के बाबू, तैं अधिकारी, तैं दलाल करत-करत एक झिन के मुँह ले -‘तैं नेता’ निकल गे। नेता के नाम सुनिस ताहेन एक कुकुर के पारा असमान चढ़ गे। वोहँ आव देखिस न ताव अउ ‘तैं नेता-तैं मंतरी’ काहत झपट्टा मारके कूद परिस। 


दूनो कुकुर गुथ्थम-गुथ्था हो गे। सकेलाए कुकुरमन अपन-अपन सकऊ कुकुरमन ऊपर कूदके हला-हलाके हबके-चाबे लगिन। वो जगा पूरा गदफद मात गे।


एक्का दुक्का डरपोकना कुकुरमन दुरिहा ले खड़े-खड़े मोरे कस झगरा के मजा ले लगिन। मोला अइसे लगे लगिस मानो मैंहँ कोनो मंत्रिमंडल के कार्यवाही देखत खड़े हाववँ।

 

घर म आके देखथवँ त टीबी म उन्कर सीधा प्रसारण होवत राहय।


धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

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