Thursday 15 December 2022

व्यंग "बोझा"

 व्यंग "बोझा"

बबा हर नाती संग गोठियावत राहय बेटा हमर समे अइसे राहय, वइसे राहय  हम फलाना ढेकाना। वइसने में पठेरा म माढ़े राहय फूल कांच के पीतल के गिलास ह कथे हव तैं हर सही काहत हस  बाबा। एक समे राहय जब हमरे मन के राज राहय। घर् म घर के 'कैटेगरी' के पता तो हमरे मन ले चले। सगा सोदर आतिस त खाना-पीना म हमारे मन के रोल राहय।  पहली तो तहुमन ठसठस ले राहव  बबा, बिहिनिया ले चटनी संग अंगाकर, बोरे बासी जमावव अब तो कतनों पेप्सोडेंट, कोलगेट घीसत हे तभो ले कहूं अंगारक मिलगे त संभल संभल के खाथे । बासी घलो बिचारा मन उदासी होगे। धीरे-धीरे वहू मन नंदावत हवे ।अब तो वहू ह परदरसनी  म दिखथे। पहली लइका मन ल चम्मच म दवाई बुटइई दलिया ल खवावन।अब तो हमर छत्तीसगढ़ म कतको नमूना सियान घलो हावे ,जेन मन चम्मच म बासी खाथे? खैर छत्तीसगढ़ म डोंगिया मन के कमी थोड़ीना हे। तेखरे  सेती तो सब कहिथे छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया।

                    वतका म बाजू म राहय  डिस्पोजल ह झल्लागे बहुत हो गे तोर समे के संग संग सब बदलना चाहि ‌तुहर समे म जनसंख्या घला कतका राहय? अब तो प्रिंटिंग प्रेस बन गेहे धकाधक छपत हे। काहत हे ऊपर वाले के देन आए ।यहू ऊपर वाला सब ला देथे त काम बुता ल काबर नई दे ‌,हो सकत हे ये हर  ऊकर डिपार्ट में नई आवत होही। अब तो नवा नवा फइसन हो गेहे ये भाई पहिली के मन एक ठन कपहा हाफ पैंठ म मेरिट तक पढ़ लिख डरे अब तो नाक नई पोछन सकत हे  तहु मन ल जिंस प्लाजो होना।

                          आज हमर का सम्मान हे तेला हमन जानथन कतको बड़े भंडारा, बर बिहाव ,छठी बरही, मरनी हरनी, म हमर  बिगर पता नइ हिलय।

           फूल कांच के गिलास भन्नागे  कहिथे जादा सेखी झनमार एक समे राहय  बेटा ,पानी के दिन मा पानी जाड़ के दिन म जाड़, गर्मी के दिन में गर्मी, तुहरे आए ले बेटा ठिकाना नई पड़त हे। चुनाव कस् बारो महीना पानी गिरत हे। ,नेता मन जईसे गरिबी ला दूरिहा करत करत देश ला गरिबहा बना डारिस। फोकट म ये,फोकट म वो , जाने-माने अपन बाप घर के ल देही। वइसने तहू मन सहूलियत के नाव म दाग (कलंक) हव। हमन ल मांज दिही त चक ले ऊज्जर हो जथन । फेर तुमन जुठलंगरा ताव ऐती ओती  परे रहिथव। देखथस  नहीं बेटा  तुमन ल जुगाड़ वाले मन कईसे खींसा म मुरकेट के धरे  रहिथे जईसे नेता मन फोकट के ( घोषणा) झुनझुना बजा के वोट अपन खीसा म (जेब) ?तुमन रक्तबीज ले कोनो कम थोड़ी ना हो धरती बर तको  बोझा अऊ जला देबे त अगास बर तको "बोझा "।

            फकीर प्रसाद साहू 

                "फक्कड़" 

                    सुरगी

१३-११-२०२२

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