तारीख: 01/12/2022
दिन: गुरुवार
*विमर्श के विषय: छत्तीसगढ़ी भाषा मा "आने भाषा" के शब्द ल अपभ्रंश रूप म प्रयोग करना कतका न्याय संगत*
ए बंदा (सूर्य कांत गुप्ता)भाषाविद् ए न कोई बहुत बड़े विद्वान। हमर छंदगुरु श्रद्धेय अरुण निगम जी मन पटल मा आज सुंदर विषय रखिन हें; "आने भाषा के शब्द ल अपभ्रंश रूप म प्रयोग करना कतका न्याय संगत"। बहुत बढ़िया विषय।
भाषा का ए। अपन विचार, अपन भाव ल व्यक्त करे के माध्यम। अउ एकर सबले बड़े विशेषता आय एकर पोठ व्याकरण होना। एकर बारे म पहिली ही बड़े बड़े विद्वान मन अपन विचार व्यक्त कर चुके हें।
अभी अभी हमर छंद परिवार के दीवाली मिलन समारोह होइस त ए बात ऊपर शिक्षाविद् अउ तीन चार भाषा के जानकार सम्माननीय डॉ. चितरंजन कर जी द्वारा जोर दे गइस, अउ सही भी आय उंकर जोर देना, के कोनो भाषा के प्रवाह ल बनाए रखना हे त आन भाषा ल ओमा शामिल करे ल परही। आदरणीय डॉ. कर साहब मन इहू बात म जोर दइन के वो भाषा के व्याकरण सम्मत होना जरूरी हे। हमर राजभाषा छत्तीसगढ़ी के व्याकरण तो पहिली ले बने हुए हे अउ वर्तमान म आदरणीय डॉ. विनोद वर्माजी के भी किताब निकल चुके हे।
अब बात आथे आन भाषा के शब्द ल ओकर मूल रूप म राखन के अपभ्रंश ल उपयोग म लावन। मोर मत के अनुसार तो ओ शब्द ल मूल रूप म लाना ही उचित रइही ओकर अपभ्रंश बना के ओकर मान गिराना ठीक नइ रइही। कोई भी शब्द के अपभ्रंश
बोली म सुने बर मिलथे। बोली अउ भाषा म अंतर होथे। बोली मतलब ओ क्षेत्र के रहइया जउन शिक्षित नइए उंकर द्वारा उच्चारित शब्द। भाव समझ मा आवत हे। वर्तमान म बहुतायत म देखे जा सकत हे के गाँव गाँव म शिक्षण संस्थान खुल गे हे। जउन भाषा प्रचलन म हवै ओकर उच्चारण म भी तकलीफ नइ होवत हे। ए विषय ऊपर हमर विदुषी दीदी आदरणीया सरला शर्मा जी के भी विचार पढ़े ल मिलिस...अउ भी बड़े बड़े साहित्यविद् मन के विचार पढ़े ल मिलिस। जम्मो झन ल मोर सादर प्रणाम।
सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)
No comments:
Post a Comment