Sunday 11 December 2022

नान्हें कहिनी पूस के जाड़

 नान्हें कहिनी

                पूस के जाड़

                सुकारो अऊ बुधिया  दुनों झन आज झुलझुलहा बेरा ले जंगल कोती लकड़ी काटे ल चल दिन। पूस के कड़कड़ाती जाड़ म कांपत-कांपत दुनो झन लकड़ी काटे फेर  उखर दांत कटकटावत  रहाय।

         सुकारो ह बुधिया ल कहिस-"दीदी ओ,अड़बड़ जाड़  लागत हे।कईसे करन?काली ले थोरकुन बेरा म आबो। मेंहा दु बछर होगे ।सोच थंव एक ठीन सूटर अऊ कम्बल लूहुँ कहिके फेर  पईसा के जुगाड़  नी होवय। जंगल हमर दाई-ददा आय।हाथ- गोंड भर लकड़ी धरे सकथन।अतके के हमन ल बन बिभाग ह छूट देहे हे। इही लकड़ी ल बेच के हमन अपन परवार ल पोसत हन। दिनभर म सौ -पचास कमा लेथन फेर अतेक मंहगाई म का होही?

         बुधिया कहिस -"सही कहत हस बहिनी, अतेक पूस के जाड़ म हमन के मरना हे। लकड़ी  जला के रतिहा बिताथन फेर कतेक लकड़ी जलाबोन ?लकड़ी बेचे ल लागथे। महुँ कमरा अऊ कम्बल लेहे बर पईसा सकेल थंव फेर जम्मो कुछु काहिं म खर्चा हो जथे ।का करबे चिरहा कथरी मन ल ओढ़ के  रहिथन। पूस के जाड़ म हाड़ -हाड़ मन जुड़ा जाथे। एसो तो जरूर  एक ठी कम्बल लूहुँ ।मोर भाई मोला चांदी के साटी  देहे ।उहि ल सेठ तीर गिरवी धरहूँ।"

        बुधिया के गोठ ल सुनके  सुकारो कहिस -"मोर तीर तो  चांदी के कोनो गहना नी ये।मेंहा का करहुं बहिनी?"

        अइसन कहत ओखर आँखिन डाहर ले आंसू  चुचवाये लागिस।

                डॉ.शैल चन्द्रा

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