जाड़ म गोरसी के सुरता--
हमर गंवई गॉंव म जाड़ के दिन म माटी के गोरसी के अब्बड़ मान हे। ये ह आजकल के संझा कुन के संगवारी आय। लइका,सियान,जवान,माई-पीला सबो झन गोरसी के तीर म जुरियाय रथे। जड़कला म गोरसी म चुल्हा के अंगरा ल आन के सुपचाय रथे,अउ नान्हे-नान्हे झिटी, रहेर काडी, तीली काडी, संडेवा काडी ल बार के तापत बैठे रथे। घर के सबो झन रंग-रंग के गोठबात,हँसी-ठिठोली करत सियान मन नाती-नतनिन संग बइठ के कहानी-कथा,जनउला, चुटकुला सुनात रथे। लइका मन के संग जम्मो झन अब्बड़ मजा पावत रथे।
पहली ले जोरा--
सियान दाई मन जड़कला के पहिली गोरसी के जोरा करके रख डार रथे। जड़कला के आत ले गोरसी सुखाके तैयार हो जाथे। गोरसी ल माटी,पानी,परोसी मिला के सानथे। फेर जुन्ना हड़िया ल उलटा खपल के साने माटी ल थोप के बनाय जथे। उलटा थोपे ले गोरसी म गड्डा हो जथे। जेमे आगी-अंगरा ल डार के बार के तापे के काम देथे।
संझा के बेरा--
सांझ कुन जेवन चूरे के बाद चूल्हा के अंगरा ल डार के रहेर काडी, तीली काडी, संडेवा काडी, नान्हे-नान्हे झिटका ह बने बरत रथे अउ सुखा लकड़ी के ठुड्गा मन ल घलो धराय म रमच के बरथे, जेकर ले आगी अब्बड़ समे ले जलत रथे। आगी के रोस म तपैया मन घलो नंगत जान ले बैठ जथे।
सियान मन के मितान--
गोरसी सियान मन बर आजकल अब्बड़ काम के होथे। ओमन गोरसी बिना नई रहे सकय। बिहनिया, संझा, रतिया गोरसी ल धरके बैठे रथे। रतिया के जेवन ल घलो गोरसी के तीर म बैठ के खाथे। सियान मनके में जाड़ सहे के समता कम हो जाय रथे,तेकर सेती आगी अउ गोरसी ल छोड़बे नई करे। जड़कला म गोरसी सियान मन बर बड़ सहारा होथे।
लइका मन के काम के--
नान्हे लइका मन के घलो गोरसी अब्बड़ काम आथे। उँकर पेट सेके के काम इहि गोरसी म होथे।
लइका के जनम के संग उँकर पेट सेकना बड़ जरूरी होथे,काबर कि नान्हे लइका मन दूध ल पचोय नई पाय। गोरसी से आगी के आंच देके गरमी देय ले दूध पचथे, अउ उनकर स्वास्थय बने रहिथे।
गोरसी भरना--
जेन सियान मन जादा ठंडा ल नई सहे पाय ओमन अपन खटिया के तरी गोरसी ल डार के सुतथे। जेकर ले खाले बले थोर-थोर आंच आवत रथे। सियान मन ल आंच आये ले जाड़ नई लगे अउ बने रुसुम-रुसुम लगत बने नींद भर सुतथे। येला गोरसी भरना घलो कहे जाथे। गोरसी सियान मन बर जड़कला म संगवारी सही काम आथे। ।
गाँव डहर जिनकर घर गोरसी नई होय ओमन अपन परोसी मन घर आगी तापे बर घलो आथे। काबर के सबो झन ल गोरसी बनाये ल नई आय। गांव म आगी तापत सुख-दुख, हंसी-मजाक, ठठा-दिल्लगी, नाती-बूढ़ा के गोठबात, सुनता के बात, मंगनी-बरनी, बर-बिहाव, मड़ई-मेला के गोठ गोरसी के तीर म चलत हे। गाँव के गोठबात, प्रेम-व्यवहार, सद्भाव अउ परोसी धरम ल गोरसी आज घलो निभावत हे।
हेमलाल सहारे
मोहगांव(छुरिया)राजनांदगॉंव
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