Sunday 4 December 2022

विमर्श के विषय: छत्तीसगढ़ी भाषा मा "आने भाषा" के शब्द ल अपभ्रंश रूप म प्रयोग करना कतका न्याय संगत*

 विमर्श के विषय: छत्तीसगढ़ी भाषा मा "आने भाषा" के शब्द ल अपभ्रंश रूप म प्रयोग करना कतका न्याय संगत*



 छत्तीसगढी गद्य साहित्य ला अपभ्रंश लेखन ले बचाना जरूरी हे, तभे छत्तीसगढी भाषा आघू बढ़ पाही। 21वीं शताब्दी म नवा छत्तीसगढ राज बने के बाद *छत्तीसगढी के मानकीकरण* उपर बहुत बूता होय हे। कालि 28 नवंबर के ' *छत्तीसगढी का मानकीकरण : मार्गदर्शिका*' के प्रकाशन अउ विमोचन छत्तीसगढ राजभाषा आयोग द्वारा करे गइस हे। 150 पृष्ठ के पुस्तक के संपादन *डाॅ विनोद कुमार वर्मा* अउ *नरेन्द्र कौशिक 'अमसेनवी'* करे हँय। ये पुस्तक *22 जुलाई 2018* के दिन *छत्तीसगढ राजभाषा आयोग* द्वारा छत्तीसगढी के मानकीकरण बर आयोजित *प्रांतीय संगोष्ठी* में प्रदेश के विद्वान वक्ता मन के व्याख्यान के दू भाषा- *छत्तीसगढी* अउ *हिन्दी* म संकलन हे। ए संगोष्ठी के महत्व छत्तीसगढी भाषा बर बहुत जादा हे।  *एही संगोष्ठी म छत्तीसगढी भाषा बर देवनागरी लिपि के हिन्दी बर अंगीकृत 52 वर्ण ला स्वीकार करे के प्रस्ताव भाषाविद् डाॅ चित्तरंजन कर द्वारा रखे गइस अउ सर्वसम्मति ले पारित होइस।* 

       ये प्रांतीय संगोष्ठी म *सरला शर्मा, अरुण कुमार निगम, शकुन्तला शर्मा, डाॅ शैल चंद्रा,  डाॅ विनोद कुमार वर्मा, डाॅ चित्तरंजन कर, डाॅ विनय कुमार पाठक, डाॅ सोमनाथ यादव*  आदि विद्वान साहित्यकार मन के सारगर्भित व्याख्यान होइस। ए संगोष्ठी म लोकाक्षर परिवार के *चोवाराम बादल* अउ *वसन्ती वर्मा* ला ओमन के छत्तीसगढी साहित्य म योगदान बर सम्मानित किये गइस। 

      आदरणीय कोसरिया जी ले निवेदन हे कि छत्तीसगढ राजभाषा आयोग के लाइब्रेरी म जा के ए पुस्तक के अध्ययन कर लें। ओखर बहुत सारा भ्रम दूर हो जाही। 


 *छत्तीसगढी बर प्रयुक्त सही शब्द* 


    *सही*             *अपभ्रंश*


# विकास                बिकास 

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# शिक्षा                  सिछा

    

    कोनो भी भाषा बहती नदी के तरह होथे। आघू बढ़ जाही त नदी  के बहाव ला पीछे नि लाए जा सके। हमन के नावा पीढ़ी 21 वीं शताब्दी म पलत-बढ़त हें। ओमन जेन छत्तीसगढी ला समझहिं अउ मान्य करहीं,  वोही हमर मातृभाषा होही। अब हमन भाषा के दृष्टिकोण ले 20 वीं या 19 वीं शताब्दी म नि लौटे सकन। 

      सुधा वर्मा दीदी, रामनाथ साहू, पोखन लाल जायसवाल,  शोभामोहन श्रीवास्तव आदि विद्वान/ विदुषी साहित्यकार मन के विचार अउ सुझाव ला माने ल परही। 🙏🌹


            - विनोद कुमार वर्मा

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धनराज साहू: छत्तीसगढ़ी भाषा म बावन अक्षर ल बउरत हन , जब बउरते हन तो ओला ओकर मूल रूप म ही स्वीकारन , ओला जबरदस्ती छत्तीसगढ़ी के नाँव म तोड़ मरोड़ के लिखबो वहू सही नइये ,भलुक एकर ले हमर हिनता होही। 

  कोनो भी भाखा के महत्ता तभे हे जब ओकर बउरने वाला ल ओ भाखा आसानी ले समझ आये। शुरुच ले हमर पुरखा मन घलोक अपन रचना मन म आन-आन भाखा के प्रचलित शब्द मन ल बउरे हें। 

  ये बात बिल्कुल सही हे कि क्षेत्रीय , जातिगत , अउ अशिक्षा के सेतीन भी उच्चारण म गलती होवय ,अब ओ गलती ल यदि हम छत्तीसगढ़ी मान लेबो तो कइसे बनही। 

  हमन ल भाखा के बढ़वार खातिर उदार होएच परही। जेन ल तेन सही बोले अउ लिखे परही ,ओमा संकोच करे के जरूरते नइये।

  जहाँ तक हो सके जुन्ना शब्द मन ल भी अधिक से अधिक उपयोग म लावन , संग म नवा-नवा शब्द मन खातिर भी मेहनत करन , एमा मोला कोई बुराई नइ दिखय।

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 सूर्यकांत गुप्ता : तारीख: 01/12/2022

दिन: गुरुवार

*विमर्श के विषय: छत्तीसगढ़ी भाषा मा "आने भाषा" के शब्द ल अपभ्रंश रूप म प्रयोग करना कतका न्याय संगत*



                    ए बंदा (सूर्य कांत गुप्ता)भाषाविद् ए न कोई बहुत बड़े विद्वान। हमर छंदगुरु श्रद्धेय अरुण निगम जी मन पटल मा आज सुंदर विषय रखिन हें; "आने भाषा के शब्द ल अपभ्रंश रूप म प्रयोग करना कतका न्याय संगत"। बहुत बढ़िया विषय।


                     भाषा का ए। अपन विचार, अपन भाव ल व्यक्त करे के माध्यम। अउ एकर सबले बड़े विशेषता आय एकर पोठ व्याकरण होना। एकर बारे म पहिली ही बड़े बड़े विद्वान मन अपन विचार व्यक्त कर चुके हें।

अभी अभी हमर छंद परिवार के दीवाली मिलन समारोह होइस त ए बात ऊपर शिक्षाविद् अउ तीन चार भाषा के जानकार सम्माननीय डॉ. चितरंजन कर जी द्वारा  जोर दे गइस, अउ सही भी आय उंकर जोर देना, के कोनो भाषा के प्रवाह ल बनाए रखना हे त आन भाषा ल ओमा शामिल करे ल परही। आदरणीय डॉ. कर साहब मन इहू बात म जोर दइन के वो भाषा के व्याकरण सम्मत होना जरूरी हे।  हमर राजभाषा छत्तीसगढ़ी के व्याकरण तो पहिली ले बने हुए हे अउ वर्तमान म आदरणीय डॉ. विनोद वर्माजी के भी किताब निकल चुके हे।

अब बात  आथे आन भाषा के शब्द ल ओकर मूल रूप म राखन के अपभ्रंश ल उपयोग म लावन। मोर मत के अनुसार तो ओ शब्द ल मूल रूप म लाना ही उचित रइही ओकर अपभ्रंश बना के ओकर  मान गिराना ठीक नइ  रइही। कोई भी शब्द के अपभ्रंश

बोली म सुने बर मिलथे। बोली अउ भाषा म अंतर होथे। बोली मतलब ओ क्षेत्र के रहइया जउन शिक्षित नइए उंकर द्वारा उच्चारित शब्द।  भाव समझ मा आवत हे। वर्तमान म बहुतायत म देखे जा सकत हे के गाँव गाँव म शिक्षण संस्थान खुल गे हे। जउन भाषा प्रचलन म हवै ओकर उच्चारण म भी तकलीफ नइ होवत हे।  ए विषय ऊपर हमर विदुषी दीदी आदरणीया सरला शर्मा जी के भी विचार पढ़े ल मिलिस...अउ भी बड़े बड़े साहित्यविद् मन के विचार पढ़े ल मिलिस। जम्मो झन ल मोर सादर प्रणाम।

सूर्यकान्त गुप्ता

सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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 निगम जी: *छत्तीसगढ़ी भाषा मा आने भाषा के शब्द ला अपभ्रंश रूप मा प्रयोग करना कतका न्यायसंगत*

 

छत्तीसगढ़ी भाषा के "मूल शब्द" के न तो उच्चारण मा दोष देखे बर मिलथे अउ न लेखन मा कोनो दोष दिखथे। फेर आने भाषा के शब्द जब बउरे जाथे तब उन शब्द मन के छत्तीसगढ़ीकरण लोगन अपन-अपन तर्क, बुद्धि अउ ज्ञान के अनुसार करथें। आने भाषा के शब्द मन भाव ला ज्यादा स्पष्ट करे बर "अमानत" के रूप मा प्रयोग मा लाए जाथे। अमानत मा ख़यानात तो बने बात नोहय! 

 

तइहा के जमाना मा स्कूल के कमी रहिस। बड़े-बड़े केंद्र मा बस स्कूल रहिन। शिक्षा के कमी के कारण बहुत बड़े जनसंख्या देवनागरी लिपि ला नइ जानत रहिन तेपायके जइसे सियान मन बोलँय, वइसे लइका मन बोलत रहँय। बोले मा कइसनो उच्चारण करके बोले जाय फेर लेखन मा देवनागरी लिपि के जम्मो 52 वर्ण के प्रयोग होना चाही। मौखिक मा "बोली" अउ लेखन मा "भाषा" अनुसार बोलना अउ लिखना चाही। शिक्षा के अभाव मा कई झन नुकसान ला "नुसकान" बोलथें। अब बोलत हे कहिके वोला सही शब्द नइ कहे जा सके। बबा सक्कर बोलत रहिस वोकर नाती शक्कर बोल लेथे। ये अंतर शिक्षा के कारण होथे। बबा अशिक्षित रहिस तो नाती हर शिक्षित होगे हवय। 

 

एक महत्वपूर्ण बात यहू हे कि वर्ण ले अक्षर बनथे अउ अक्षर ले शब्द बनथे। "शब्द" कभू निरर्थक नइ होवय। हर शब्द के अपन विशिष्ट अर्थ होथे। शुक्ला के अर्थ हे, सुकुल के कोनो अर्थ नइये। रामेश्वर के अर्थ हे, रमेसर के कोनो अर्थ नइये। लेखन मा हमेशा सार्थक शब्द होना चाही। कमल शब्द तीन अक्षर ले बने हे। क, म अउ ल। कमल के अर्थ हे। इही तीन अक्षर के शब्द आय - कलम, एखरो अर्थ हवय फेर मकल, लकम घलो इही तीन अक्षर ले बने हवँय  फेर इनकर अर्थ नइये। माने निरर्थक शब्द आँय। 

 

मोर मान्यता घलो हवय अउ निवेदन घलो हवय कि भाषा के साहित्य लेखन मा "निरर्थक शब्द" के प्रयोग नइ करना चाही। प्रकाश ला परकास, प्रयोग ला परयोग, परदेश ला परदेस, प्रकृति ला परकीरती जइसन तोड़ मरोड़ के नइ लिखना चाहिए। 

 

हमर सियान साहित्यकार मन स, श, ष, श्र जइसन अक्षर के प्रयोग बहुत पहिली ले करत हवँय। अनुकरण हमेशा अच्छा बात के होना चाही। अलग-अलग जमाना के साहित्यकार मन के कुछ अइसन अक्षर के प्रयोग के उदाहरण देखव जेन ला कुछ झन कहिथें कि छत्तीसगढ़ी मा केवल "स" अक्षर हे। श अउ ष नइये। 

 

*“क्ष”  के  प्रयोग -* 

 

*गाथा काल - (सन् 1000-1500 ई.)* 

 

बड़ सैइता धारी *लक्ष्मण* जती जोगी, बारा बरस जोग करेरे भाई


 ( *फुलबासन*) 

 

*आधुनिक काल (सन् 1900 ले 2018)* 

 

*यक्ष* एक हर अपन काम में, गलती कुछु कर डारिस ।

तब कुबेर हर शाप छोड़ अलका ले ओला निकारिस ।। 


( *मुकुटधर पांडे - मेघदूत छतीसगढ़ी अनुवाद*)

 

पिंगल शास्त्र न पढ़ेव कछु, *निरक्षर* अघधाम । 

अंध मंदमति मूढ़ हौं, जानत जानकि राम ।। 


( *नरसिंह दास – अपन परिचय*)

 

झाड़ें भाषण, *गो रक्षा* के नेता बन के ।

कभू बात पतियावव झन, इन अड़हा मन के।। 


( *कोदूराम “दलित”-  सियानी गोठ*)

 

जम्मो टूरा टूरी ल *अक्षर* पढ़न दे, जिनगी के कहानी नवा गढ़न दे।। 


( *चेतन भारती -   उन्नत के बीज*)

 

 “दलित” सहीं  *शिक्षक* मिल जातिन, जौन पढ़ातिन दिन अउ रात ।

  सब लइका मन मिल के गातिन, हो जातिस सुख के बरसात ।।


 ( *शकुंतला शर्मा - आल्हा छन्द*)

 

*शिक्षा* ले संस्कार जगय 

सुग्घर आचार व्यवहार पगय ।

रहन-सहन के बदले सलीका 

अउ दरिद्रता दूर भगय ।।


 ( *सपना निगम – विश्व  साक्षरता दिवस*)

 

ईश्वर के तो रूप अनेक। करैं काज उन जग बर नेक।।

पशु *पक्षी* नर वानर रूप। किसम किसम के तोर सरूप।।


 ( *सूर्यकांत गुप्ता - चौपई छन्द*)

 

*भिक्षा* दे दे द्वार खड़े हँव, कपटी ह गोहराय |

देखय साधू ला कुटिया मा ,सीता *भिक्षा* लाय ।। 


( *आशा देशमुख – सरसी छन्द*)

 

*“त्र” के प्रयोग -*

 

*भक्ति युग, मध्यकाल (सन् 1500 - 1900)* 

 

*जंत्र मंत्र* टोटका नहीं जानेव, नितदिन फिरत उदासी ।।


 ( *संत धरमदास*)

 

कहे नरसिंह *त्रिपुरारी* देखें स्वारी, धांवे भूले सब नहीं कोऊ बारे आगी चूलहा।


( *नरसिंह दास - कवित्त*) 


गंग के पानी म भंग घोटावत, बीष मिलाय पिये *त्रिपुरारी*।


 ( *नरसिंह दास – सवैया*) 

 

*आधुनिक युग (सन् 1900 से आज)*

 

विश्व-शांति अब लाव , सबो के भला विचारो ।

*अस्त्र शस्त्र*,बम वम  सब ला सागर मा डारो ।।

 

पाई पाई जोर के, बनँय धनी कंजूस ।

चिरहा फटहा *वस्त्र* नित, पहिरँय मक्खीचूस ।।

 

रहव एक खातिर सबो, अउ सब खातिर एक।

*मूलमंत्र* सहकार के, आय यही हर नेक।।


 ( *कोदूराम “दलित”- सियानी गोठ*)

 

बी ए पास करे खातिर हम, मर मर हाड़ा टोरेन।

बने नौकरी पाबो ना कहिके, *सत्रह* बछर अगोरेन ।।


 ( *विमल कुमार पाठक - रे भैया हम खेती करबो*)

 

अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,

भूत  प्रेत  साथ  मा  जी ,निकले  बरात  हे।

बइला  सवारी  करे,डमरू  *त्रिशूल* धरे,

जटा जूट चंदा गंगा,सबला  लुभात हे ।। 


( *जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" -घनाक्षरी छन्द*)

 

साफ सफाई स्वस्थ रहे के *यंत्र*।

स्वच्छ रहे के आदत,होथे *मंत्र*।।


 ( *सुखदेव सिंह अहिलेश्वर – बरवै छन्द*)

 

*“ज्ञ” के  प्रयोग -*

 

*गाथा काल - (सन् 1000-1500 ई.)* 

 

सासे के बोलेव सास डोकरिया,कि सुनव सासे बिनती हमार

मोला *आज्ञा* देते सास, कि जातेव सगरी नहाय

घर हिन कुंवना कि, घर हीन बावलि

कि घर हीन करो असनांद, अहिमन झन जा सगरी नहाय ला ।। 

( *अहिमन गाथा*)

 

*भक्ति युग, मध्यकाल (सन् 1500 - 1900)* 

 (1)

सन्तगुरु हमरे *ज्ञान* जौहरी,, रतन पदारथ जोर देव हो।

धरमदास के अरज गोंसाई,, जीवन के बांधे डोर छोर देव हो।।

(2)

*ज्ञान* दुलीचा झारि दसाबो, नाम के तकिया अधर लगावो ।।

धरमदास विनवै कर जोरी, गगन मंदिर मा पिया दुलरावौ ।।


 ( *संत धरमदास*)

 

*आधुनिक युग (सन् 1900 से आज)*

 

गुरु हरथे *अज्ञान* ला, गुरु करथे कल्यान ।

गुरु के आदर नित करो,गुरु हर आय महान ।।

ऋषि मन के *विज्ञान* , सबो ला सुखी बनाइस ।

सीखो सब  विज्ञान,   येकरे जुग अब आइस ।। 

 

( *कोदूराम “दलित”- सियानी गोठ*)

 

बनके  लछमी भरही घर जी बन शारद देहँय गा सब *ज्ञान*।

इँदिरा प्रतिभा सुषमा जइसे करही उँन कारज पाहँय मान ।।


 ( *मनीराम।साहू "मितान" - अरविंद सवैया*)

 

**श्र” के प्रयोग -*

 

*आधुनिक युग (सन् 1900 से आज)*

 

मेकल *श्रेणी*  बनिस सिंघासन

भगिस सोन तब मस्ती मा।। 


( *प्यारेलाल गुप्त - छत्तीसगढ़ बर जीबो मरबो*)

 

जहाँ योगेश्वर कृष्ण चंद्र अउ जहाँ पार्थ गांडिवधारी।

उहाँ *विजय श्री* अउ विभूति सब अचल नीति हे सुभकारी।।


 ( *कपिल नाथ कश्यप -श्रीमद भगवत गीता*)

 

*श्रृंगी* भृंगी बाजत हावय, नाचे मरी समान।

ब्रह्मा जी हा बिनय सुनाइस, मौका ला शुभ जान।। 


( *चोवाराम “बादल” - शिव जी के लीला*)

 

गौरी सुत गणराज प्रभु, हे गजबदन गणेश ।

*श्रद्धा* अउ विश्वास के, लाये भेंट रमेश ।। 


( *रमेश कुमार सिंह चौहान - सुमरनी*)

 

आवव पेंड़ लगाइन,समय निकाल।

धरती ला सुघराइन, *श्रम* ला डाल।। 


( *दिलीप कुमार वर्मा – बरवै छन्द*)

 

*“श और ष” का प्रयोग -*

 

*(भक्ति युग, मध्यकाल) (सन् 1500 - 1900)* 


मैं तो तेरे भजन भरोसो *अविनाशी* 


( *संत धरमदास*)

 

*आधुनिक युग (सन् 1900 से आज)*

 

(1)

 

*जगदीश्वर* के पाँव मा, आपन मूड़ नवाय

सिरी *कृष्ण* भगवान के, कहि हौं चरित सुनाय।।

पँड़री पँड़री देह के, रूपस सबे अघात

*श्याम* मिले के *खुशी* में, फसफसात हे जात।।

 

(2)

 

रौताइन सब सुनत रिसाइन।

कब ले *श्याम* साव बन आइन।।

साँप घलाय सबो *पोषे* हौ।

सबो जगत आज मोर देहौ।।


 ( *पं. सुंदरलाल शर्मा - दान लीला*)

 

(1)

अणु ला नान्हें मत समझ, अणु ला तुच्छ न जान।

अणु मा *शक्ति*  अघात हे , अणु मन आयँ महान।।

(2)

बंधन –मां जतका हवयँ, सबला मुक्त कराव।

*पंचशील* ला मान के , *विश्व-शांति* अब लाव।।

(3)

बासी मा गुन हे गजब, एला सब झन खाव।

ठठिया भर पसिया पियौ, तन ला *पुष्ट* बनाव।।

(4)

*नष्ट* करो झन राख-ला, राख काम के आय।

परय खेत-मा राख हर , गजब अन्न उपजाय।। 


( *कोदूराम “दलित” - सियानी गोठ*)

 

*दशरथ* बोलिस छोटी रानी, का दुख मा तंय करे गोहार ।

जौन माँगबे सब कुछ देहूँ, राजपाट मैं करंव निसार ।।


 ( *वसंती वर्मा – आल्हा छन्द*)

 

*शंभु* के बरात देखि जियरा डरावत।

डाकिनी *पिशाच* गीत लुलु लुलु गावत।। 


( *नरसिंह दास - कवित्त*)

 

साँप के सूत मा बिच्छु गुँथाइ, लगाइके झूल जटा अहिरे।

हाथ म पाँव म साँप के *भूषण, भूषण* साँप *शरीरहि*  रे।।


( *नरसिंह दास – सवैया*)

 

मंदिर कोती गै पुजेरी चला घंटी *शंख* ला हेरी।।

राजा *हरिश्चन्द्र* बड़ दानी। भरिन डोम के घर पानी।।

धरे रहिगै *धनुष* बान समय होथे बड़ बलवान।। 


( *द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र - बुड़ती बेरा*)

 

हमरे कमई में बसे हे *शहर*

हमरे भरोसा चलत हे पुतलीघर ।। 


( *कुंजबिहारी चौबे - बियासी के नागर*) 

 

सदा काल ले *दुष्ट* समय बर, जिनगी सहज सवारी बनगे।

ये दुनिया मा *महापुरुष* मन, कतको आथें कतको जाथें।। 


( *नारायण लाल परमार - हमर जिनगी*)

 

आँसों होरी मा सबो,धरव शांति के *भेष*।

मेल जोल जब बाढही,मिट जाही सब *द्वेष*।। 


( *अजय अमृतांशु - दोहा छन्द*) 

 

*शंकर* तांडव झुमरत नाचे,धरती दाई देख !

पटक-पटक के गोड़ दबाथे,छाती अपन सरेख !! 


( *असकरन दास जोगी - सरसी छन्द*)

 

माघी पुन्नी मा चलव, दामाखेड़ा धाम।

*दरशन* ले साहेब के, बनथे बिगड़े काम।। 


( *कन्हैया साहू "अमित" - दोहा छन्द*)

 

महँगा हवय *कीटनाशक* हा, गोबर खातू डारौ |

छोड़व रासायनिक खाद ला, करजा अपन उतारव ||


 ( *ज्ञानुदास मानिकपुरी*)


मोर विचार मा छत्तीसगढ़ी मा आने भाषा के शब्द के अपभ्रंश रूप के प्रयोग नइ करना चाही।


*अरुणकुमार निगम*

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+: *विचारोत्तेजक ज्ञानवर्धक आलेख* ........आदरणीय अरुण निगम जी द्वारा पुराना अउ नवा कवि मन के रचना के उद्धरण शोधपरक संकलन हे। छत्तीसगढ राजभाषा आयोग द्वारा 22 जुलाई 2022 के बिलासपुर म आयोजित प्रांतीय संगोष्ठी म ए आलेख के अधिकांश भाग के पठन आदरणीय निगम जी अपन व्याख्यान म करे रिहिन। जेन हर छत्तीसगढ राजभाषा आयोग द्वारा प्रकाशित अउ सद्यः विमोचित  ( 28 नवंबर 2022) पुस्तक *छत्तीसगढी का मानकीकरण : मार्गदर्शिका* ( संपादक- डाॅ विनोद कुमार वर्मा ) म संकलित हे। एही संगोष्ठी म *देवनागरी लिपि के हिन्दी बर अंगीकृत 52 वर्ण के छत्तीसगढी लेखन म स्वीकार्यता के प्रस्ताव सर्वसम्मति ले पारित होय रहिस।* अधिकृत रूप ले ये तिथि  ( 22 जुलाई 2022 ) ल छत्तीसगढ़ी भाषा के बदलाव के बिन्दु माने जा सकत हे। हालाकि एखर पहिली से ही अनेक प्रबुद्ध छत्तीसगढी साहित्यकार मन देवनागरी लिपि के 52 वर्ण के प्रयोग अपन लेखन म करत रिहिन। *छन्द के छ* म शामिल सबो कवि/लेखक मन 2016-17 से ही 52 वर्ण के प्रयोग अपन लेखन  म करत रिहिन मगर पुराना विचारधारा ( 39 वर्ण के समर्थक ) के लोगन मन एखर पुरजोर विरोध घलो करत रिहिन। *वास्तव म छत्तीसगढी लेखन म 52 वर्ण के प्रयोग के  कारण ही छत्तीसगढी अपभ्रंश लेखन ले मुक्ति के मार्ग प्रशस्त होइस*। छत्तीसगढी भाषा के मानकीकरण अउ संरक्षण-संवर्धन  बर एखरे सबले जादा जरूरत रहिस। सादर......🙏🌹


            - विनोद कुमार वर्मा

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 गयाप्रसाद साहू जी: छत्तीसगढ़ी भाषा म आने भाषा के शब्द ल अपभ्रंश रूप म प्रयोग करना कतका न्याय संगत हवय ?

    *ये संबंध म आदरणीय निगम सर जी द्वारा प्रस्तुत आलेख खूब महत्वपूर्ण,संहराए लाईक अउ छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य,व्याकरण, के संबंध म जब भी चर्चा होही,उदाहरण देहे बर सहेज के राखे लाईक हवय*

     *छत्तीसगढ़ी भाषा म लिखे बर कतेक वर्णमाला होना चाही ?*

     *ये विषय के विमर्श म पिछले बार खूब विचार-मंथन होए रहिस, तेमा सर्वसम्मति से 52 वर्णमाला मान्य करे गए रहिस*

    *जब हमन छत्तीसगढ़ी भाखा बोलथन, तब हिन्दी भाषा के 52 वर्णमाला के उच्चारण खच्चित रूप से होबेच करथे | तव 52 वर्णमाला के उच्चारण ल लिखत बेरा कुछ वर्णमाला ल नइ लिखबो,तव बोलबो-गोठियाबो कईसे ? तब तो शब्द मन अधूरा हो जाही | 52 वर्णमाला से कुछ वर्णमाला ल काट देबो,तव छत्तीसगढ़ी भाषा के कई ठन महत्वपूर्ण शब्द मन कट जाही ! छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य ह विकलांग हो जाही! कनवा-खोरवा हो जाही ! तेकरे सेती मैं हाथ जोड़ के विनती करत हौं -"हिन्दी वर्णमाला म  बऊरे जाथे,तऊन सब 52 वर्णमाला के उपयोग लिखे-बोले बर खच्चित जरूरी हवय*

    *हां, एक बात बज्र गठिया के धरे लाईक हवय  - "हिन्दी के 52 वर्णमाला मन ल बऊरे के मतलब ये हरगिज नइ होय के छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी भाषा म अंतर होबेच नइ करय, हर हिन्दी शब्द ल जस के तस लिख दे ! तब तो खूब अलहन हो जाही ! "छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य काला कहिबो?*


     *सार बात तो विशेष रूप से खूब चेत करे बर परही के -हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी दुनो सहोदर बहिनी होय के बावजूद दुनो के रूप-रंग, चाल-ढाल,  व्याकरण के दृष्टि से लिंग,वचन,कारक रचना के दृष्टि से,स्वरूप,संस्कृति,रहन-सहन,खान-पान, अउ मूल तासीर के दृष्टि से खूब अंतर हवय*

    *हिन्दी भाषा बड़े बहिनी आय, छत्तीसगढ़ी भाषा सग्गे छोटे बहिनी आय*

     *हिन्दी भाषा म साहित्य लेखन-वाचन अउ छत्तीसगढ़ी भाषा म साहित्य लेखन-वाचन के समय-काल के दृष्टि से भी हिन्दी भाषा बड़े बहिनी आय, जबकि छत्तीसगढ़ी भाषा छोटे बहिनी आय*

     *पैदाईशी काल गणना म  हिन्दी बड़े बहिनी आय, छत्तीसगढ़ी छोटे बहिनी आय*

   * *प्रयोग कर्ता के क्षेत्रफल अउ जनसंख्या के अनुपात म घलो हिन्दी बड़े बहिनी आय | छत्तीसगढ़ी छोटे बहिनी आय*

    *सबसे खास बात ये हवय-छत्तीसगढ़ी संस्कृति भाषा ह हिन्दी के संगे-संग चलथे,तभो ले छत्तीसगढ़ी भाषा के मूल तासीर म अंतर होथे | जब हम ठेठ छत्तीसगढ़ी भाषा म लिखथन, तव एक्के नजर पड़ते ही ये बात स्पष्ट हो जाथे -एहा छत्तीसगढ़ी भाषा म लिखाय हवय*

    *ये साहित्य ह हिन्दी भाषा म लिखाय हवय*

     *जैसे कोनो दू झन जुड़वा बहिनी होथे | ऊंकर रूप-रंग, आकार, डील-डौल, कद-काठी, आंखी के बनावट, चुंदी के साईज, एक्के जैसे रेशमी-चमकीली या घुंघरालू चुंदी होय के बावजूद एक बहिनी ल अम्मठ (खट्टा) पसंद रहिथे,तव दूसर बहिनी ला मीठा पसंद रहिथे | एक बहिनी ल नमकीन पसंद रहिथे,तव दूसर बहिनी ल चुरपुर (चटपटा) पसंद रहिथे | एक बहिनी ल नीला,पीलाअउ हल्का रंग पसंद रहिथे,दूसर बहिनी ला काला,लाल,भड़कीला,गहरा रंग पसंद रहिथे | एक बहिनी वाचाल रहिथे, तव दूसर बहिनी मितभाषी होथे | एक बहिनी ला बाग-बगीचा,हाट-बाजार जाना पसंद रहिथे, तव दूसर बहिनी ला अपन घर -अंगना ही पसंद रहिथे*

     *ठीक अईसनेच हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी दुनो सहोदर बहिनी होय के बावजूद इंकर रूप-रंग,चाल-ढाल,स्वरूप व्याकरण के दृष्टि से, आकार-प्रकार म  बहुंतेच अंतर होथे*

     *हिन्दी उ छत्तीसगढ़ी के वर्णमाला अउ लिपि एक्के हवय, सोच के छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य म हिन्दी भाषा के जम्मो शब्द ल जस के तस लिख देहे ले वोहा छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य म हरगिज मान्य नइ होही, बल्कि वर्णशंकर स्वरूप माने जाही! तब लिखैया साहित्यकार ल दुख लागही, ओकर सब  मेहनत ह "आधा तीतर-आधा बटेर सहीं अउ गुड़-गोबर हो जाही!*

     *छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य म साहित्य सिरजन करे बर छत्तीसगढ़ी ठेठ बोल-चाल के शब्द मन ल खूब पूछताज करके, दादी-नानी, बड़े ददा-बड़े दाई, कका-काकी के बोलचाल के शब्द मन ल खोजबीन करके वो शब्द मन के शोधपरक उपयोग करना जरूरी हवय, तभे हमर छत्तीसगढ़ भाषा-साहित्य ह अपन नवा वजूद बनाके देश-दुनिया म मान-सम्मान पाही*

     *एक महत्वपूर्ण प्रश्न हवय-"छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य म आने भाषा के शब्द मन ल अपभ्रंश के रूप म कतेक बऊरे जाना चाही ?*

     *ये महत्वपूर्ण सवाल के उत्तर मोर मति अनुसार -छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य म आने भाषा के शब्द ल तभे उपयोग करे जाय,जब वो शब्द ह हमर छत्तीसगढ़ के रीति-रिवाज,खान-पान, रूप-रंग, रहन-सहन म तालमेल बना सकै | अईसे हरगिज नइ होना चाही-हिन्दी के 52 वर्णमाला मन ल छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य बर स्वीकार करे जा चुके हवय, तव हर हिन्दी शब्द ला छत्तीसगढ़ी साहित्यिक म जबरन ठूंस-ठूंस के भर देही, तब वो साहित्य ल पढ़े म छत्तीसगढ़ी भाषा-बोली के नामोनिषान नइ रहिही ! तब ओ लेख-कविता ला छत्तीसगढ़ी के दर्जा कईसे देबो ? काबर देबो ? जउन रचना म छत्तीसगढ़ी भाखा-बोली के तासीर नइ मिलही, तेला छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य हरगिज मान्य नइ होही*

     *छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य म हिन्दी के अलावा अंग्रेजी,उर्दू, संस्कृत,अरबी,फारसी,असमिया,अवधी,बुंदेलखंडी,भोजपुरी जम्मो भाषा के शब्द ल जस के तस लिखे जाय, जऊन बोलचाल म अईसे लगथे के एतो छत्तीसगढ़ी भाषा आय, लेकिन आने भाषा के अपभ्रंश शब्द मन ल छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य म समाहित करे के एक मतलब नइ होना चाही के छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य बर ओ शब्द मन नुकसान पहुंचाही !*

      * *हम छत्तीसगढ़िया भाई-बहिनी मन बंगाली,बिहारी,मद्रासी,ओड़ीया, तेलगू, मराठी मनखे आथें, "तव एक लोटा पानी अउ चार पहर रात बीताए बर खली-खोर के आंट म रहे बर दे देथन | एकर मतलब ए हरगिज नही होना चाही के जऊन बाहरी मनखे ल अलकर-सांकर म चार पहर रात बीताए बर गली-खोर के आंट ल दे देथन, तऊने मनखे धीरे-धीरे चापलूसी करके हुसियारी पूर्वक हमर घर म कब्जा करके हमी ल हमर घर से बाहिर निकाल देही !!*

     *ठीक अईसनेच हमर छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य म घलो आने भाषा के अपभ्रंश शब्द मन ल खूब सोच-विचार के शोध करके ओही शब्द मन ल शामिल करे जाय,जऊन हमर छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ल विटामिन प्रोटीन सहीं फायदा पहुंचाही, आगे चल के छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ला नुकसान झन पहुंचाही,वईसने शब्द ल शामिल करे जाय-जऊन छत्तीसगढ़ी दूध सहीं भाषा म मिस्री बन के घुलमिल जाय*

    *हमर छत्तीसगढ़ी लोक कला,लोक गीत, लोक गाथा, लोक नृत्य मन देस-विदेश म खूब मान-सम्मान पावत हवय, काबर के लोककला संस्कृति के प्रस्तुति ह देस-दुनिया म वाचिक परंपरा के द्वारा दुनिया के लोगन ल प्रभावित करथे*

    *लेकिन हमर छत्तीसगढ़ साहित्य ह, छत्तीसगढ़ी लोक कला जईसे सम्मान अभी तक प्राप्त नइ कर पाए हवय! एकर सब ले बड़े कारन हवय -" छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ह लिखित रूप म अपन मौलिक स्वरूप म नइ दिखत हवय ! छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ह अपन मौलिक अस्तित्व के रूप म खास पहचान नइ बनाए हवय !*

     *तेकरे सेती छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ल देस-दुनिया म अलग मान-सम्मान पाए बर ठेठ छत्तीसगढ़ी शब्द द्वारा ही साहित्य सिरजन करना खच्चित जरूरी हवय |*

     *छत्तीसगढ़ राज्य स्थापित होए के बाद ये 22 बच्छर म छत्तीसगढ़ी साहित्य के जम्मो विधा म खूब साहित्य सिरजन होवत हवय, तव मोला पक्का विश्वास हवय- अब छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ह घलो छत्तीसगढ़ी लोककला संस्कृति सहीं जल्दी मान-सम्मान पाही | तभे छत्तीसगढ़ी भाषा ल भारतीय संविधान के आठवींअनुसूची म जघा अपने-आप पा जाही*


   *जै छत्तीसगढ़*

    *जै छत्तीसगढ़ी*


दिनांक-02.12.2022


आपके अपनेच संगवारी

*गया प्रसाद साहू*

    "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)

पिन कोड -495113

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अनुज : *छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देव नागरी लिपि* 


मोर बिचार ले छत्तीसगढ़ी भाखा हा सत्तर प्रतिशत अपन आप मा पूर्ण हे अउ तीस प्रतिशत आने भाखा के भरोसा रथे।

*जइसे-* १. मैं किरिया खावत हँव तोर ले अबड़ मया हे।

         २. मैं स्कूल जावत हँव।

         ३. पर्यटन स्थल ला साफ रखव। 


   छत्तीसगढ़ी भाखा के लिपि देव नागरी ये तेखर सेती छत्तीसगढ़ी भाखा हा ज्यादातर हिन्दी भाषा मा निर्भर हे। लेकिन आजकल सोशल मिडिया, समाचार-पत्र अउ टीवी मा हिन्दी शब्द ला छत्तीसगढ़ी के संग तोड़-मड़ोर के प्रस्तुत करत हें।  बोल-चाल के भाखा अलग होथे अउ साहित्यिक भाखा अलग होथे अगर हम सब ला सम्मेटा लिख देबो ता छत्तीसगढ़ी भाखा के मानकीकरण कइसे हो पाही। पहिली जमाना मा कम पढ़े लिखे के कारण हिन्दी शब्द मन ला अपभ्रंश मा प्रयोग करँय लेकिन आज सबो शिक्षित हें। कोई भी भाखा के शब्द ला तोड़ मड़ोर के लिखे मा वो शब्द के अर्थ बदल अउ आत्मा खतम हो जथे।

*जइसे श्रम-सरम, प्रशासन-परसासन, प्रकृति-परकिरिति, क्रिया-किरिया* 

लेकिन हिन्दी के अइसे कई ठन शब्द जेन छत्तीसगढ़ी मा अपभ्रंश होगे हे लेकिन वोकर अर्थ बरकरार हे। अइसन शब्द ला प्रयोग कर सकथन।

*जइसे कैसे-कइसे, जैसे-जइसे, कारण-कारन, विचार-बिचार,  शर्म-सरम, वर्णन-बरनन* 

संज्ञावाचक शब्द ला जस के तस लिखना चाही

*संतोष ला संतोष ही लिखव न कि संतोस*


मोर बिचार ले छत्तीसगढ़ी भाखा मा हिन्दी के ५२ वर्ण के प्रयोग करना चाही अउ छत्तीसगढ़ी शब्द के रहत ले हिन्दी शब्द के जादा नइ करना चाही। जब हमन जादा से जादा छत्तीसगढ़ी शब्द के प्रयोग करबोन तभे नँदावत छत्तीसगढ़ी शब्द बाचही। 


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

7999521614

7354390486

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