Tuesday 28 September 2021

पितर पाख मा विशेष... गजब प्रतिभा के धनी रीहीस हे श्रद्धेय नंद कुमार साहू जी हा






 

साहित्यिक तर्पन 

पितर पाख मा विशेष... 


गजब प्रतिभा के धनी रीहीस हे श्रद्धेय नंद कुमार साहू जी हा 


जनम - 26-08-1963


देहावसान - 19-04-2021


ये शरीर हा नश्वर हे. जउन ये दुनियां मा आहे वोहा एक दिन इहां ले जरूर जाही. लेकिन दुनियां ला छोड़ के जाय के बाद कोनो मनखे ला सुरता करथन ता वोकर पीछे  कारण उंकर सुग्घर कारज हा होथे. कम उम्र मा ये दुनियां ला छोड़ के अपन एक अलग छाप छोड़ीस अइसन प्रतिभा मा श्रद्धेय नंद कुमार साहू साकेत के नाम शामिल हावय. वोहा गजब प्रतिभा के धनी रीहीस हे.     

       जीवन परिचय 


   26अगस्त के श्रद्धेय नंद कुमार साहू साकेत के 58 वीं जयंती रीहीस हे. उंकर जनम राजनांदगॉव जिला के मोखला गाँव मा 26 अगस्त 1963 मा होय रीहीस हे. उंकर बाबू जी के नाँव कृश लाल साहू  अउ महतारी के सोहद्रा बाई साहू नाँव

 हे. वोकर पत्नी के नाँव लता बाई साहू, बेटा के नाँव हितेश कुमार साहू, अउ बेटी मन के नाँव केशर साहू अउ प्रेमा साहू हे. 


 ननपन ले गायन अउ वादन मा रुचि 


  पढ़ाई जीवन ले ही उंकर रुचि गायन, वादन मा रीहीस हे. स्कूल मा पढ़ाई करत करत गाँव मा अपन सँगवारी मन सँग मिल के 1980 मा मानस मंडली के गठन करीस हे. गाँव के नाचा मंडली मा घलो योगदान दीस हे. शुरु ले ही लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम के प्रति रुचि राहय. नाचा, रामायण के सँगे सँग 



जस गीत, फाग गीत मा गायन अउ हारमोनियम वादन करय. 


  आकाशवाणी मा गीत प्रसारित होइस 

 श्रद्धेय साकेत जी हा पढ़ाई जीवन ले गीत लिखे के शुरु कर दे रीहीस हे. वोहा लोक गीत, जस गीत अउ फाग गीत के अब्बड़ रचना करीस. 1990 -91मा उंकर गाये लोकगीत आकाशवाणी रायपुर ले प्रसारित होइस हे. माननीय दलेश्वर साहू जी  येकर अगुवाई करे रीहीस हे. 


  नौकरी मिले के बाद प्रतिभा हा अउ निखरीस 


मैट्रिक के परीक्षा पास होय के बाद शासकीय प्राथमिक शाला में शिक्षक बनगे. अब उंकर प्रतिभा के सोर अउ बगरत गीस. वोहा धामनसरा,  मुड़पार, सुरगी, बुचीभरदा जिहां नौकरी करीस पढ़ाई के सँगे सँग उहां अपन व्यहार ले सब झन ला गजब प्रभावित करीस. 


   उद्घोषक अउ निर्णायक के जिम्मेदारी निभाइस 


अब वोहा सबो प्रकार के मंच जइसे सांस्कृतिक प्रतियोगिता, मानस गान टीका स्पर्धा, रामधुनी स्पर्धा जसगीत प्रतियोगिता,फाग स्पर्धा मा उद्घोषक अउ निर्णायक के भूमिका निभात गीस. अपन गाँव मोखला के सँगे सँग अब दूरिहा- दूरिहा मा वोकर नाँव के सोर चले ला लागीस. स्कूली कार्यक्रम मा घलो अपन प्रतिभा ला दिखाइस. लइका मन ला सुग्घर ढंग ले सांस्कृतिक कार्यक्रम 

खातिर सहयोग करय. 


  लोक कला मंच द्वारा उंकर गीत के प्रस्तुति 


आडियो, वीडियो प्रारुप के माध्यम ले उंकर गीत के गजब धूम मचीस हे. फेसबुक, वहाट्सएप, यू ट्यूब मा खूब उंकर गाना चलीस. धरती के सिंगार भोथीपार कला अउ दौना सांस्कृतिक मंच दुर्ग के मंच ले उंकर गीत सरलग चलत गीस. कुछ गीत ला खुद गाइस अउ कुछ 

ला दूसर कलाकार मन आवाज दीस. 1 अप्रैल 2018 मा रवेली मा आयोजित मंदराजी महोत्सव समिति मा उंकर लोक गीत अउ जस भजन एल्बम के विमोचन लोक संगीत सम्राट  श्रद्धेय खुमान साव जी, स्वर कोकिला आदरणीया कविता वासनिक जी, वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय डॉ. पीसी लाल यादव जी, आदरणीय कुबेर सिंह साहू जी ,साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के अध्यक्ष अउ मंदराजी महोत्सव के मंच संचालक भाई लखन लाल साहू लहर जी के द्वारा करे गीस. 


साकेत साहित्य परिषद् ले अब्बड़ लगाव 


 जसगीत मा उंकर प्रेरणा स्रोत सुरगी निवासी श्री मनाजीत मटियारा जी अउ कविता के क्षेत्र मा  वोहा श्री लखन लाल साहू लहर जी अध्यक्ष, साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ला प्रेरणा स्रोत माने. 

 श्रद्धेय नंद कुमार जी हा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के गजब सक्रिय सदस्य अउ पदाधिकारी रीहीस हे. कवि गोष्ठी मा अपन नियमित उपस्थिति देय .साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव ले उंकर लगाव अत्तिक रीहीस कि अपन उपनाम " साकेत "रख लीस. 


कवि सम्मेलन मा सराहे गीस 


अब कवि सम्मेलन मा घलो भागीदारी होय लगीस. साकेत के सँगे सँग दूसर साहित्य साहित्य समिति मन के कार्यक्रम

मा उछाह पूर्वक भाग लेय. कोरबा, बेमेतरा मा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के भव्य मंच मा अपन काव्य प्रतिभा के दर्शन कराइस. 


कवि सम्मेलन मा स्व. लक्ष्मण मस्तुरिहा, स्व. विश्वंभर यादव मरहा अउ, जनाब मीर अली जी मीर जइसे बड़का कवि मन सँग कविता पाठ करीस हे. 


सम्मान -


 श्रद्धेय नंद कुमार जी  ला कई लोक कला मंच, रामायण मंडली, फाग मंडली, जस गीत मंडली,रामधुनी मंडली  अउ युवा संगठन हा निर्णायक अउ उद्घोषक के रुप मा सम्मानित करीन. 

 सम्मान के कड़ी मा 29 फरवरी 2012 मा रघुवीर रामायण समिति राजनांदगॉव द्वारा उद्घोषक के रुप मा विशेष सम्मान, 23 फरवरी 2014 मा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव द्वारा "साकेत साहित्य सम्मान",जिला साहू संघ राजनांदगॉव द्वारा  1 अप्रैल 2019 मा कर्मा जयंती मा "प्रतिभा सम्मान ", शिवनाथ साहित्य धारा डोंगरगॉव द्वारा 25 अगस्त 2019 मा " साहित्य सम्मान ",  पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया जिला राजनांदगॉव द्वारा 2021 मा " पुरवाही साहित्य सम्मान -2020 " सहित कतको सम्मान शामिल हवय. 


ये गीत अउ कविता के गजब सोर 


उंकर लिखे गीत /कविता जउन हा लोगन मन के जुबान मा छागे वोमा  "महतारी के लागा", " वो पानी मा का जादू हे "",तीजा पोरा, " "विधवा पेंशन ", "आँखी के पुतरी," "जिन्दगी एक क्रिकेट", "तिरंगा," " सरग ले सुग्घर गाँव "

शामिल हे.  पर्यावरण अउ कोरोना जागरुकता उपर सुग्घर रचना लिखे हे. 

 "वो पानी म का जादू हे "गीत म दारू पीये ले जउन नुकसान होथे वोकर सुग्घर ढंग ले वर्णन करे हे -


  कोन जनी वो पानी म का जादू हे ,

सबो मनखे ओकरेच काबू हे ।

मनखे वोला नइ पीयत हे, मनखे ला वो पीयत हे ।

भरे जवानी कुकुर गत होके, डोकरा बरोबर जीयत हे ।

पंडा - पुजारी घलो बिगड़गे, दिखत भर के साधु हे।

 कोन जनी वो पानी म का जादू हे।।


हमर छत्तीसगढ़ ल "धान के कटोरा" कहे जाथे.किसान ह भुइयाँ के भगवान कहलाथे. किसान के गुणगान करत "बेटा किसनहा " शीर्षक ले उंकर कविता के सुग्घर भाव हे -


छत्तीसगढ़ महतारी के बेटा, सिधवा किसनहा कहाये ।

धान के कटोरा ले छत्तीसगढ़ के, छत्तीस कोती छरियाये ।

बेरा कुबेरा तै नी चिनहे, संझा बिहने रात का दिन हे ।

माटी म माटी कस मिलके, जाँगर टोर कमाये ।।

हिन्दी कविता  " जिन्दगी एक क्रिकेट है " शीर्षक ले गजब सुग्घर 

चित्रण हे -

जिन्दगी एक क्रिकेट है ,

जिन्दगी एक क्रिकेट है .

सुख दुःख है दोनों गिल्ली ,

जिन्दगी और मौत के बीच है .

एक नाजुक पतली सी झिल्ली 

विकेट कीपर यमराज हरमद पीछे 

तैयार खड़ा लेने को विकेट है .

जिन्दगी एक क्रिकेट है 

जिन्दगी एक क्रिकेट है. 


  नौकरशाही अउ भ्रष्टाचार हमर समाज म अमरबेल जइसे फइले हे. "विधवा पेंसन " शीर्षक ले उंकर कविता के भाव ल गुनव -


  एक सुहागिन अउरत 

विधवा पेंसन के ,

फारम जमा करे बर दफतर म अइस ।

बाबू ल देख के मुसकुरइस 

नमस्ते कहिके ओकर हांत म 

धरइस 

वोला देखके बाबू के माथ चकरइस ।


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के संदेश ह हमर देश अउ समाज बर आजो प्रासंगिक हे. येला श्रद्धेय साकेत जी ह गजब सुग्घर ढंग ले लिखे हे -


बाढ़त हे भारत म दिनों दिन, भारी 

अतियाचार ।

गांधी फेर तें आजा एक बार, लेके अवतार ।

अहिंसा सत के बल म, अंगरेज ले  तैं ह भगाये ।

आतंकवादी उहँचे, रोज कतको खून बोहाये । 

जनता के इहाँ हाल बेहाल हे ।

मस्त हवे सरकार... गांधी फेर तें आजा एक बार ।।






 मिलनसार अउ मृदुभाषी रीहीस 


    श्रद्धेय नंद कुमार साहू हा गजब सुग्घर इन्सान रीहीस हे. वोहा अब्बड़ सरल, सहज ,मृदुभाषी अउ हंसमुख व्यक्तित्व के धनी रीहीस हे. वोहा बहुमुखी संपन्न कलाकार रीहीस हे. पर येकर बावजूद वोमा घमण्ड थोरको नइ रीहीस हे. एक डहर वोहा अपन ले वरिष्ठ मन के झुक के पैलगी अउ मान सम्मान ला कभू नइ भूलीस ता दूसर कोति अपन ले छोटे मन ला वोहा कभू छोटे नइ समझीस. वहू मन ला गजब स्नेह दीस. 


   सीखे मा गजब उछाह दीखाय 


58 साल के उम्र मा घलो वोकर मन मा सीखे के गजब उछाह रीहीस हे. 

  श्रद्धेय साकेत जी हा छंद के छ के संस्थापक आदरणीय अरूण कुमार निगम जी द्वारा स्थापित "छंद के छ " मा छंद सीखे बर 2021 मा तैयार हो गे रीहीस हे. पर दुर्भाग्य ये रीहीस कि वो सत्र के शुरु होय ले पहिली वोहा ये दुनियां ला छोड़ के चले गे. 

जब उंकर निधन के खबर चले ला लागीस ता आदरणीय गुरदेव निगम जी हा मोर करा फोन करके कीहीस कि "ओमप्रकाश कइसे खबर ला सेन्ड करे हस. बने पता कर लव भई. खबर ला डिलीट करव. "काबर कि  छंद सीखे बर जउन मन के मँय हा नाँव भेजे रेहेंव वोमा श्रद्धेय नंद कुमार साहू जी के सबले पहिली रीहीस हे. ता मेहा गुरुदेव जी ला बतायेंव कि "काश! ये खबर हा गलत होतीस गुरुदेव जी पर होनी के सामने हमन मजबूर हन. मेहा खुद उंकर घर गे रेहेंव. "


तब गुरुदेव जी हा मोला बताइस कि एक सप्ताह पहिली मोर ले बात करे रीहीस कि गुरुदेव जी महू हा छंद सीखना चाहत हवँ. मोला आप मन हा शिष्य के रुप मा स्वीकार कर लेहू. मोर बिनती हे गुरुदेव जी. तब गुरुदेव जी हा श्रद्धेय साकेत जी ला कीहीस कि -  ".नंद जी मँय हा आप ला का सिखाहूं . आप हा तो पहिली ले सुग्घर -सुग्घर रचना लिखत हवव .सबो डहर छाय हवव. " ता नंद कुमार साहू जी हा बोलिस कि " गुरुदेव जी छंद के छ अउ आपके मेहा गजब सोर सुने हवँ.  मँय हा आप मन ले छंद सीखना चाहत हवँ गुरुदेव जी. मोला निराश झन करहू. " 

श्रद्धेय नंद जी के सरल, सहज अउ सरस 

व्यवहार ले गुरुदेव जी हा गजब प्रभावित होइस. वोला अपन अगला सत्र मा छंद साधक के रुप मा शामिल कर लीन. पर ये छंद सत्र हा चालू होय ले पहिली  19 अप्रैल 2021 मा  58 वर्ष के कम उम्र मा ये दुनियां ला छोड़ के चल दीस. 

जब ये साल के छंद सत्र हा शुरु होइस ता गुरुदेव निगम जी हा मोर करा मेसेज करीस कि "- आज  नवा छंद सत्र शुरु होय के बेरा मा श्रद्धेय नंद कुमार साहू साकेत के गजब सुरता आथे. उंकर याद करके मोर आँखी हा डबडबागे. "

  सरल, सहज, सरस, मृदुभाषी, हंसमुख व्यक्तित्व ले भरपूर अउ गजब प्रतिभा के धनी , हमर साहित्यिक पुरखा श्रद्धेय नंद कुमार साहू जी साकेत ल पितर पाख म शत् शत् नमन हे .🙏🙏💐💐

                

 ओमप्रकाश साहू "अंकुर "

सुरगी, राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) 

 मो.  7974666840

छत्तीसगढ़ी के ठेठ देहाती कवि श्री कोदूराम दलित


 

(28 सितम्बर 54 वें पुण्य तिथि पर विशेष)

छत्तीसगढ़ी के ठेठ देहाती कवि श्री कोदूराम दलित

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अऊ उंकर सियानी गोठ .

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डाँ. बलदेव

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       लइका पढ़ई के सुघ्घर करत हव॑व मैं काम   

       कोदूराम  दलित  हवयत्र मोर गंवइहा नाम 

       मोर गंवइहा नाम भुंलाहू , झन  गा भइय्या 

       जनहित खातिर गढ़े हवॅव मैं ए कुण्डलियां 

       सउक  महू ला घलो हवय कविता गढ़ई के    

       करथँव  काम  दुरूग मा मैं लइका पढ़ई के


 ए कुंडलियां हर दलित जी के व्यक्तित्व अऊ कृतित्व ल समझे के कुंजी आय । ए नानकन मुक्तक म बहुत अकन गूढ़ संकेत हे । भले ही उप्परे उप्पर एहर बड़ सरल रचना दिखत हे । सबले पहिली परिचय - लइका पढ़ई के काम वोहू म एक ठन बिसेषण लगा दिए गय हे सुग्घर अपन काम के अतेक गरब के वोकर फेर दुबारा कथन - करथँव काम दुरूग मा मैं लइका पढ़ई के। काम के बाद नाम- कोदूराम उपनाम दलित । ए ठेठ गॅवइहा नाम के परिचय देत बखत न संकोच के भाव अऊ न हीनता के बोध । अपन पाठक से जुड़े बर कवि के हिरदे म कतका कुलुक - भुलाहू झन गा भइय्या । बिना उद्देश्य के साहित्य लेखन अर्रा आय , कवि लेखन के प्रति बड़ सावचेत हे । उन जन हित खातिर कुण्डलिया गढ़थें । कविताई के अतेक सउक के एकर पीछू खवई , पिवई सुतई सब बिसुर जाथे , एला आसक्ति कहे जाय के अनुरक्ति ? अभिघा सक्ति अउ प्रसाद गुन के ताना - बाना म बुनाय काव्य भाषा । ठेठ छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रयोग के बात चले म दलित जी के संगे - संग उंकर जवरिहा अऊ आगू - पीछू के कवि पं . सुन्दरलाल शर्मा , पं . शुकलाल प्रसाद पांडेय , बिप्र जी , श्यामलाल चतुर्वेदी जइसन दो चार अऊ रचनाकर मन परथम पंक्ति म खड़े हो जाथें , फेर छत्तीसगढ़ी कुंडलिया के बात निकलथे त उंकर मुंहरन म अऊ कोनो देखाऊ नई दयं ।.... मूड़ म उज्जर गांधी टोपी खफाय , खादीच के दग उज्जर धोती कुरता म देंह तोपाय , जवाहिर बंडी अऊ सर्वोदयी चप्पल के अलग रौब .... .दुरिहा ले शास्त्री जी के भोरहा हो जाही । सुरता आवत हे सन् 1966 म भाठापारा म होय छत्तीसगढ़ी हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन के जिहां कवि सम्मेलन के मंच म उनला शास्त्री जी के नाम से ही पुकारे गय रहिस ... कद काठी ल देखके , ठेठ- मसखरी म , के श्रद्धा बस ... लेकिन श्रोतामन के ताली के गड़गड़ाहट के बीच उंकर मंच म जोरदार सुआगत हो रहिस । हिन्दी के सताधिक साहित्यकार मन के बीच दलित जी के बिल्कुल अलग धज हिन्दी छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन बर बड़ गरब के विषय आय ।


     कोदूराम जी दलित ल छत्तीसगढ़िया , उंकर बोली , उंकर रहन सहन खान - पान पहिनावा सब्बेच बर बड़ गरब रहिस । छत्तीसगढ़ी बोली के परसंग म उंकर सियानी गोठ हे " हमर छत्तीसगढ़ी बोली हर ब्रजभाषा साहीच सरल अऊ हाना मनन विसिष्ट अर्थ रखथें । " जे समय कोदूराम जी लिखे के सुरुवात करीन वोकर पहिलीच ले छत्तीसगढ़ी रचना के पेडगरी निकल चुके रहिस ... छत्तीसगढ़ी दानलीला , भूल - भुलैय्या / कामेडी आफ एरर्स के आधार म लिखे गये खंडकाव्य अऊ हीरू के कहिनी जइसन ऐतिहासिक महत्व के किताब मन छप गय रहिन , छत्तीसगढ़ी एक अइसन बोली आय जेकर भाषा के विकास अवस्था म ही बियाकरन लिखा गय रहिस । खड़ी बोली के छत्तीसगढ़ी खंभा मन के बाहिर घलोक म प्रतिष्ठा हो चुके रहिस ... सिक्षा अऊ राजनीति के कमान हमर इहां के धाकड़ नेता अऊ समाज सुधारक मन के हाथ म आ गय रहिस । पूर्ण स्वराज के मांग सुरु हो गय रहिस । गांधी जी भारत के राजनीतिक चेतना के प्रतीक बन चुके रहिन । हिन्दी म स्वच्छन्दवादी काव्य धारा के रोमानी स्वर के एही छत्तीसगढ़ म  छायावाद शीर्षक से नामकरन हो चुके रहिस । ए सबके वैचारिक जीवाणु मन दलित जी के दिलो - दिमाग म कुलबुलात रहिन होहय । सवाल रहिस अपन कसकत दुर्दम अनुभूति अऊ विचार ल उन कउन भाषा म व्यक्त करें । महतारी के गोरस जइसे मीठ , सबल अऊ सुपाच्य छत्तीसगढ़ी बोली के मरम ल उन समझिन अऊ वोहीच बोली म लिखे लगिन , एकर बाद भी राष्ट्रभाषा ल उन कभू अनदेखा नई करीन , उंकर विचार अनुकरणनीय हे ये हर राष्ट्र - भाषा ल अड़बड़ सहयोग दे सकत है । वो समय हिन्दी - भाषा भाषी क्षेत्र म आचार्य महावीर द्विवेदी के अउ मध्यप्रदेश म आचार्य भानु के अनुसासन रहिस । कोनो साहित्यकार मन ये आचार्य मन के अवहेलना नई कर सकत रहिन । हिन्दी म मुक्त- छन्द के अतिसय आग्रह के बाद भी छंद के आग्रह छत्तीसगढ़िया कवि मन म जउन देखाऊ देथे , वोहर पिंगलाचार्य भानु के प्रभाव आय ।


        कोदूराम जी दलित के रचना - विधान ल समझे बर ये प्रसंग म उंकर बिचार घलो ह सहायक हो सकत हे- " ये बोली मां खासकर के छन्द बद्धता के अभाव असन हाबय । इहां कवि मन ला चाही कि उन ये अभाव के पूर्ति करयं । स्थायी छन्द लिखे डहर जासती ध्यान देंवे । " ये बात ल दलित जी खुदे अपन लेखन म चरितार्थ करथें । 


             अपन बोली म लिखे के जोखिम उठाना हर कउनो अंचल विशेष के मुक्ति आंदोलन ले कम महत्व के नोहय , बल्कि वोहर तो ए दिसा म सुरूआत आय । छत्तीसगढ़ी बोली ल भाषा के दर्जा दिलाय म दलित जी के लेखन के अहम् भूमिका आय , राष्ट्रीय ऐतिहासिक संदर्भ म ए हिस्सा ल काट के देखना हर आधा - अधूरा दृष्टि आय ।


                   दलित जी छत्तीसगढ़ी के लोक जीवन अऊ संस्कृति के बड़ भारी पुजेरी ऑय । देखा दू डांड म उन इहां के सब्बोच महिमा के बखान कर डारे हैं-


     छत्तीसगढ़ पैदा करय , अब्बड़ चाऊर दार 

     हवय लोगमन इहां के सिधवा अउर उदार 


               एतकेच नहीं इहां के अनलेख बन संपदा , किसिम किसिम के रतन के खदान घलोक बर उनला बड़ अभिमान हे , लोहा जेहर कोनो भी राष्ट्र के रीढ़ के हड्डी होथे , इहेंच ढलथे इंहेच के लोग रोज आगी संग खेलथे लोहा ढलाई के दुख ला हंस हंस के झेलथें ।


    भेलाई अऊ कोरबा बर कोन छत्तीसगढ़िया ल गरब गुमान नई होही । दलित जी के भिलाई शीर्षक कविता ह राष्ट्रीय एकता के दृष्टि ले एक महत्वपूर्ण रचना आय । दलित जी के हिरदे म जांगर टोरइया कमिया किसान के प्रति बड़ मया - पीरा हे । उंकर श्रम के प्रति उनला बड़ घमंड हे । कमिया के तुलना सूरज से करके उन मेहनत के मान ल बहुत बढ़ा दे हावै -


      दिन भर करय काम कमिया टूटत ले कनिहा   

      सूरूज साही सूतयं रात भर , उठय बिहनिया '


                    पांव ' शीर्षक कविता म अकाट्य तर्क देके दलित जी एही निम्र वर्ग से आय कमिया मन के पूजा करे के सलाह देथें । दलित जी ला इहां के रोटी - पीठा , पहिनावा बर भी बड़ गुमान हैं । उंकर बिचार म छत्तीसगढ़ के बासी म गजब के गुन भराय हे , उंकर सीख धियान देहे लाइक हे-


         कठिया भर पसिया पियो 

        अऊ   सौ   बच्छर  जिओ


       छत्तीसगढ़िया मनखे खुदे बासी खाथे अऊ आन ल तात्तेतात भात खवाथे । उंकर पहुनाई अऊ सिघाई घलोक हर छत्तीसगढ़ के गरीबी के कारन अऊ जी के काल आय । बंचकमन के तिहार लहुटे हे , अत्तेक धन धान , दान - पुन के बाद भी छत्तीसगढ़िया धान के खाली कटोरा धरके भीख मांगे बर खड़े हे । अकाल अऊ सुरसा जइसे महंगाई एकरो ऊपर बंचकमन के चतुराई , हमन ल भिखारी अऊ ओमन ला मतवार बना देथे फूटहा लोटा म सोषक वर्ग के ऊपर तीखा व्यंग हे । फूटहा लोटा ए बंचक मन ले देखते देखत लखपतिया बना देथे अऊ उन हमला हमर जमीन से बेदखल घलोक कर देथें .... सोचथौं कभू दलित जी आज जिन्दा होतिन त ए अरबपति जउन मन अपन उद्योग - धंधा मढ़ाय बर हमर घर - खेत गावं के गांव ल गटागट लीलत हे , तेला देख के कइसन कविता लिखतीन ....। दलित जी हिरदे म भारी पीरा लेके ए धरती ले बिदा होइन होहयं । काबर उंकर एक पंक्ति म चेतावनी ले जादा तो पीरा हर ही झलक मारत हे ।-


     धरती ला हथियाव झन धरती सबके आय

     सिरजे हे भगवान सब्बों खातिर धरती ल


                  एकर बाद भी दलित जी के उदारता के कोई जवाब नहीं , उंकर म कहीं संकीर्ण क्षेत्रीयतावाद के बदबू नइये । दलित जी सही मायने म गांधीवादी विचारधारा के कवि आयं , भूदान आंदोलन से भी उन जुड़े रहिन । सत्य अहिंसा अऊ चरखा उंकर हिसाब म सुराज अऊ स्वावलम्बन के अइसन मियार आय जेमा हमर ए लोकतंत्र हर टिके हे । एकरे बल म गांधी जी ब्रिटिश हुकूमत के मुरवा मडोर के ओला बिदारे म सफल होथें । गांधी जी के बलिदान ले दलित जी अवाक हे , मुस्किल से एतकेच कहि सकथें -


     रहिस जरूरत  तोर  आज चिटिको नहि  अगोरे 

     अमर लोक जाके दुनिया ला दुख सागर मा बोरे


          देश जब सुतंत्र होइस त दलित जी मगन होके एक से बढ़ के एक जागरन गीत लिखिन । आजादी के सुवागत म उन मोटियारी नोनी मन ल ओरी ओरी दिया बारे बर कथे । काबर के एही हर उंकर बर सुरहुत्ती देवारी आय ।


      चारों मुड़ा गांव म , घर म , गली - खोर म उजाला खुसियाली ही खुसियाली , दिसा - द्वार हांसे - कुलके लगथे- नोनी के दाई जुगुर - जुगुर दिया बारत हे , सुत उठके बड़े बिहनिया भउजी तिरंगा झंडा फहरावत हे , गलीखोर बन्दनवार अऊ धजा ले सज गय हैं । भारत माँ के पूजा होवत हे , जन गन मन के फाग चलत हे । अरूणकुमार दूध पी के किलकारी मारत हे । मंजुलाकुमारी हांस - हांस के जय हिन्द करत हे । चारों तरफ मंगल वर्षा होवत हे । इहां अरुण कुमार अऊ मंजुलाकुमारी व्यक्ति के सिवाय भाव के भी बोध करावत हे । लोकतंत्र के तिहार शीर्षक रचना हमर इन्द्रिय मन ला जगाय बर काफी हे- बड़ लोभ - लोभावन दृश्य हे देखा -


     हमर सास हर ठेठरी खुरमी भजिया बरा पकावय        

     लमगोड़वा  भउजी  के भाई चोरा चोरा के खावय


                 वोती नाचा सुरू हो गय हे , घर अंगना म कहूं ल सल नई परत हे , भेद नई खुलही सोच समधिन छिनरिया वोही कोती सुटुर सुटुर रेंगत हे फेर भगवानी भांचा के कारन पोल - पट्टी खुल गइस -


    सुटुर सुटुर सटकिस समधिन हर देखे बर नाचा    

    रोवत ओकर पिछलग्गा भागिस भगवानी भांचा


     छत्तीसगढ़ के कई अंचल म कई जात म भांजा बर कन्यादान के रिवाज हे , एकरे बर समधिन के लइका बर इहां भांचा शब्द के प्रयोग होय हे , फेर सटकिस हर बिलमे के अर्थ - बोध कराथे रेंगे के नहीं । अनुप्रास के चक्कर म दलित जी घलोक चक्कर खा गय हें । सुनो जी मितान म डंडा गीत के धुन के सुन्दर प्रयोग होय हे-


      नारि नारि नाना हरि नाना गोसाई 

      आपस के झगरा होथे दुख - दाई 


     सुधार अऊ नव - निर्माण के गीत हर देसभक्ति के सच्चा परिचायक आय । दलित जी महान स्वप्र - द्रष्टा पं . नेहरू के सपना ल साकार होत देखिन अउ उमंग म वोकर फोटोग्राफी भी कर दीन-


         ये कतको बांध खना  डारिस 

         कतको ठन नहर बना डारिस 

         पड़ती  जमीन  ला  टोर  टोर 

         पानी  मा   करके     सराबोर 

         ये  गजब  अन्न  उपजाव त हे 

         भूखमरी  भगावत  जावत  हे 


         बांध खना डारिस के जगा बांध - बंधा डारिस करे म ए चरन हर निर्दोष हो जातिस । दलित जी भविष्य द्रष्टा कवि आय , उन कभू लिखे रहिन-


          एक दिन मनवा के लोहा ला 

          आजाद   कराही     गोवाला 


                     आगे चल के उंकर भविष्यबानी सच निकलीस । पंचायत के बारे म भी उंकर मन म सुखद कल्पना रहिस । सोंच म पड़ जाथों , पंचायत राज के वर्तमान अवस्था देख के उंकर आत्मा कइसे करत होहय .... पंचवर्षीय , अल्प बचत , परिवार नियोजन , सहकारिता , गोरक्षा , भूदान जइसन कल्याणकारी , योजना अऊ आंदोलन मन सब्द के दुनिया म बड़ नीरस विषय आय , लेकिन निषेध के जगा विधान पक्ष ल लेके दलित जी एक से बढ़ के एक सुग्घर अऊ सरस गीत लिखे हे , जेकर ले उंकर समसामयिक चेतना , समाजिक दायित्व अऊ रचना धर्मिता के प्रमान मिलथे । वस्तुवादी या उपयोगितावादी साहित्य हर प्रचार अऊ प्रसार के सुविधा के बिना भी एतेक लोकप्रिय हो सकत हे , ए बात के सबूत दलित जी के ए रचना मन हवय । उंकर कविता के विषय म तुलसीदास के ये पंक्ति हर चरितार्थ होथे- ' निरस विसद गुनमय फल जासू ' । दलित जी के रचना म जऊन ताप जऊन उष्मा हे वोकर भेद उंकर करनी अऊ कथनी के एका म छुपे हवय । उंकर ए आहवान हर हरेक जुग म नौजबान मन ल प्रेरना देत रही -


    मांगे  स्वदेस  श्रमदान  तोर  संपदा तोर विज्ञान तोर     

    जब तोर पसीना आ जाही ये पुण्यभूमि हरिया जाही 


                      दलित जी प्रगतिसील धारा के वाहक आय वैज्ञानिक प्रगति म उंकर आस्था हवय । उन अणु सूक्ष्म अऊ सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व ल दर्सन ले जोड़थे , जीवन ल सुन्दर बनाम बर विज्ञान के प्रयोग होना चाही । वोकर विनासक या निषेध पक्ष से उन ला सख्त नफरत हवय । दू डॉर एमेर देखे लाईक हे-


       बौराइन बमबाज मन बम ला करयं तैयार     

       बमबाजी कर निठुर मन करथें नर - संहार 


         उंकर प्रार्थना हे बम ला नष्ट करो हे 

         बम      लाई।    ए   बम     संकर । 


       विज्ञान के निषेध पक्ष ले आज समूचा वातावरन दूषित हो गय हे , एकर समन बर पेड़ लगाना ही सर्वोत्तम उपाय आय ।


      भाई अब सब ठउर मा अइसन पेड़ लगाव 

      खाये खातिर फल मिलय , सुरता बर छांव 


             दलित जी ए छांव अऊ फल के रक्षा घलोक बर सचेत हे ... उंकर हिसाब म पेड़ लोड़ी भी देथे जेकर ले दुष्टन मन के सुधार किए जा सकत हे । बेंदरा बिनास करवइया मन बर दलित जी जंग रथें , उनला सुरता भर आना चाहिए दुष्टन के कहां तक कहे जाय - बिहाव म कन्या के चुनाव तक उनला दुष्टन के बराबर ख्याल रहथे । सभ्य समाज म जिये बर , गुंडा मन ला ठीक करना भी जरूरी हे दलित जी के मांग हे -


       खटला  खोजो  मोर  बर ददा बबा  सब झन

       खेखरी   सही   नहीं   बधनीन   सही    लाव

       जे गुण्डा के मुंह  मा  चप्पल  मारय   फट ला

       खोजा ददां - बबा तू मजा के अइसन खटला


                         छत्तीसगढ़ मूलतः कृषि प्रधान राज आय दलित जी वोकरे बर गाय ल लक्ष्मी मान के उंकर सेवा के सिक्षा देथे , वोकर से पिये बर दूध , खातू बर गोबर , नांगर - गाड़ी खीचे बर बइला मिलथे । गोबर जइसे तुच्छ जिनिस बर उंकर विज्ञानिक दृष्टि हवय । छेना थापे के जगा उन खातू बनाय ल जादा लाभकारी बताथों राख जइसे चीज उन उपयोग ल समझथें । एकर से उंकर गांधीवादी वृत्ति के पता लगथे । गांधी जी छोटे - छोटे बात पर भी ध्यान देवय । कोदूराम दलित जी मूलतः कृषि - संस्कृति अऊ प्रकृति के कल्यान रूप के सफल चितेरा आय । चद्रमास सीर्षक उंकर लम्बा रचना के एकठन छंद देखा -


       धाम  दिन   गइस , आइस  बरखा  के दिन

       सनन     सनन    चलै    पवन      लहरिया 

       छाये रथे अकास  म चारों खूट धुआं साही 

       बरसा   के   बाद   निच्चट    मिम्म  करिया 

       चमकय   बिजली    गरजे   घन  घेरी  बेरी 

       बरसे   मूसलाधार      पानी   छर    छरिया 

       भरगे खाई - खोंधरा कुंआ डोली डांगर ओ      

       टिपटिप        ले     भरगे     नदी  -  नरवा 


      युग्म सब्द के मोह म एमेर दलित जी खोंधरा अऊ डांगर घलोक म पानी भरो दे हावै अइसन प्रयोग से बचना चाहिए । चउमास दलित जी के प्रतिनिधि रचना आय एमा मत्तगयंद अऊ किरीट सवैया के प्रयोग होय हे । मरत हाथी के चाल अऊ परबत श्रेणी मन के ऊपर जइसे छाये बादर के सादृस्य विधान एमेर अनूठा हवय । एक जगह दलित जी संस्कृति के इतिवृत्तात्मक सैली म किसिम किसम के रुखराई , चार चिरौंजी , जरी - बूटी , जीव - जन्तु के बिस्तार ले गिन्ती कर डारे हे , एकर से कविता बड़ कमजोर अऊ नीरस हो गय हे , अइसन वर्णन पं . लोचन प्रसाद पांडेय के रचना म भी देखे बर मिलथे , एत्तेक सचेत कवि मन के अइसन कोरा वर्णन के पीछे का कारन हो सकत हे । संभवत : छत्तीसगढ़ के बन - बैभव संपदा अऊ खांटी शब्द मन के सरक्षण के चिंता एकर एक कारन हो सकत हे ।


                  कोदूराम दलित जी के गीत , ' हमर गांव पढ़के ' प्यारे लाल गुप्त के लिखे हमर कतका सुग्घर गांव , जइसे लक्ष्मी जी के पांव के सुरता आ जाना सुभाविक आय । मूल संवेदना एक होय के बाद भी दूनों रचना म सूक्ष्मता अऊ स्थूलता , संक्षिप्तता अऊ विस्तार के अंतर हवय । गुप्तजी के रचना म चिकनाई अपेक्षा कृत जादा हे धान कटाई , जोताई , जइसन मेहनत के काम म भी सुधराई खोज लेना दलित जी बर सहज आय । चन्देनी गीत म ए गीत के सैकड़ों बार मंचन हो चुके हे अऊर एकर , प्रसिद्धि गांव - गंवई तक पहुंच गय हे । ध्वनि , प्रकास अऊ रूप रंग के मन - भावन दृश्य वाला ए रचना म अर्थ व्यक्ति या डायरेक्टनेश के वर्णन चातुरी अद्भूत हे । 16 + 12 = 28 मात्रा के हरिगीतिका अऊ सार के छंद - विधान देखे लाइक हे-


   छन्नर  छन्नर  चूरी  बाजय  खन्नर  खन्नर   पइरी

   हांसत कुलकत  मटकत रेंगय  बेलबेलहीन टूरी

   काट काट  के धान  मढ़ावय ओरी  ओरी करपा 

   देखत मा बड़ नीक लागय सुंदर चरपा के चरपा     

   लकर - धकर बपुरी लइकोरी समधिन के घर जावय  

   चुकुर  चुकुर  नान्हें बाबू ला दूदू पिया के आवय 

   दिदी  लुवय  धान खबा  खब भाठों बांधय भारा 

  अऊ हाँ - झऊँहा बोहि बोहि के लेजय भउजी ब्यारा


         काम म हाथ बंटाय बर दीदी - भांठो लइकोरही समधिन घलोक आ गय हे । पूरा कुटुम काम - धाम म भिड़े हे । भरदराय काम म समूह के ताकत , सिंगार बीर अऊ वात्सल्य के तिरबेनी , द्विरूक्ति , अऊ सब्दमैत्री के सरल प्रवाह , बिल्कुल धमनी के हाट जइसन सब्द चयन । साफ - सुथरा अऊ मनमोहक ए रचना म अनुप्रास के लरी मन संगीत पैदा कर देथे । संस्कृत भाषा के भातृ सब्द हर कै सौ बरिस के जात्रा करिस होहय छत्तीसगढ़ी म तो परूष - ध्वनि के बाद भी कहत - सुनत म बड़ नीक लागथे ' भांटों ' जे कोण ले देखा ए हीरा के कटाव ह प्रकास के परावर्तन / अर्थ - बोध / के साथ चमक चमक उठथे । " भांटो " 


               आज के जटिल अनुभव , उग्रविचार जीवन के कटुता विसंगति अऊ दिसाहीनता के कारन कविता के परंपरागत ढांचा मन चरमरा के कुटकुट्टा हो गय हे अऊ पद्य के जगा गद्य हर ले ले हावै । तम्भो ले दलित जी के एन रचना मन हमला आस्वत करथे के आजो भी छंद के महत्ता हावै । एकर से रचना म स्थिरता , अऊ सम्प्रेषणीयता के गुन आपे आप आ जाथे । दलित जी अपन दीर्घ काव्ययात्रा मरोला , दोहा , उल्लाला , हरिगीतिका , चौपई पद्धति , मांत्रिक छंद , म जइसन सिद्धि मिले हे , वोहर आने जगा दुर्लभ आय । दलित जी के कुंडलिया मन नीति अऊ सिक्षा हवय , लेकिन हास्य व्यंग्य के पाग से बड़ चटकारे दार बन गय हे । दलित जी के कुंडलिया मन जीवन अऊ जगत , व्यक्ति अऊ समाज , दर्सन विज्ञान अऊ राजनीति सत्तालोलुपता अऊ मेहनत याने समग्र जन जीवन के दर्पन आय । दलित जी के हास्य - व्यंग्य मन काफी पैना हे , जेकर ऊपर चोट पड़थे वो तिलमिलाय के बाद भी खलखला के हांस डारथे , यही हर हास्य - व्यंग्य के आदर्स आय मापदण्ड आय ।


             हरही के संग कपिला के बिनास बहुत पुराना मुहावरा आय , लेकिन दलित जी के कलम म निथर के ओही धारदार हो गय हे । कुसंगति के परिनाम सुनो-


   बिगड़े कपिला गाय , खाय के सब के चीज बसला    

   जउने  पाय  ठठाय  अऊर   टोरय  नस   नस    ला 


           स्वार्थी अऊ अवसरवादी के पटन्तर एक ठन कुंडलिया म दलित जी टेटका से दे हावे देखा कतका सही दृष्टांत हावै -


      मूड़ी   हलावय  टेटका  अपन  टेटकी   संग 

      जइसन देखय समय ला तइसन बदलय रंग    

      तइसन  बदलय रंग बचाय  अपन  वो चोला

      लिलय गटागट जतका किरवा पाय सबो ला 

      भरय  पेट  जब पान - पतेरा मां छिप जावय

      ककरो  जावय  जीव  टेटका  मूड़ी  हलावय 


           राजनीति के क्षेत्र म दंवधतिया अऊ पन पेटया म जादा तपथें । सत्ताधारी के पांव चाट के उन समाज बर बड़ घातक बन जाथे , उन अपन औकात भुलाके सबे के मूड म चढ़े खोझ थे । अइसन मन - बढ़ा मन के तुलना दलित जी पतंग से करथे अऊ कड़क - बोली म चेतावनी देथे -


    गिर  जाबे  तें  धागा  कटही  तउने   पल     मा

    बचा नहीं सकिही उन उड़थस जिनकर बल मा


        अखबार लोकतंत्र के चउथा खंभा आय , लेकिन पीत - पत्रकारिता के बढ़त ल देख के उन कउवा जाथे । स्वास्थ बस पेपर ला झन पिस्तौल बनाओ , जइसन कथन हर समझइया मन बर भारी फटकार आय । पं . शुकलाल प्रसाद पांडेय जइसन दलित जी अपन पेसा ( मास्टरी ) के प्रति ईमानदार रहीन वो मन बच्चा मन के बड़ हितैषी आयं । एकरे बर भारी मात्रा म सरल पदावली म बाल - साहित्य के रचना करे हबय । माता - पिता गुरु पोथी के सेवा , सपूत अउ कपूत , कायर बीर , सिंह अऊर सियार जइसन परस्पर विरोधी गुण के पात्र ल आमने सामने रख के लइकन मन के चरित्र - निर्माण के दिसा म एक कवि मन बड़ योगदान करे हैं । कविता म कॉन्ट्रास्ट या विरोधाभास पैदा करना कवि के निजी विसेषता आय । खटारा साइकिल ऊपर ले हास्य पैदा करथे लेकिन भीतर - भीतरे अध्यात्म के दुनिया घलोक म ले जाथे । गृहस्थ जीवन के मन ल छू लेने वाला चित्र , निरमोही धनी के दर्सन , बिरहीन के बिनती दलित जी के भावुक हृदय के प्रतिबिम्ब आय । एमेर उंकर हृदय के विदग्धता के दरसन होथे ।


    कोदूराम जी दलित के कविता - संसार बड़ व्यापक हे , वोकर कई ठन विसेषता हवय । पहिली तो विषय के विविधता , दूसर चटकदार मुहावरा मनके प्रयोग तीसर हास्य - व्यंग्य के तेजधार चौथा छंद मन के कसाव , खासकर कुंडलिया के नाग - मोरी कसाय , आखर थोरे अरथ अति वाला ठेठ छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रयोग जेकर से उंकर कविता म बड़ कड़कपन आ गय हे । एकठन अऊ अउ अंतिम विसेषता के उंकर रचना म कोनो काल या स्थान विसेष के व्यामोह नइये , एकर बर हर समय उंकर प्रासंगिकता बने रहही ।


                     वोइसे तो समय के तेज बहाय म कोन कहां किनारे लग जाही , कोनो ला पता नइये । त फेर कोनो रचनाकार के कोनो रचना बर कोन्हो  किसिम के भविष्य बानी करना अर्रा आय । सार बात तो एतकेच आय के कोन रचनाकार हर अपन समय अऊ समाज के संग कतका दूरिहा तक चल सकिस , कतका मनला प्रभावित कर सकिस अऊ कतका उंकर से प्रभावित होइस । आज के जमाना मा राजनीति के आघू साहित्य के का बिसात वोकर आघू एहर दीन - हीन अऊ निरतेज हो गय हे । आज के दिसाहीन धुरीहीन समाज म जब बड़े - बड़े साहित्य मनीषी के अस्तित्व खतरा म पड़ गय हे त हम साधारन छत्तीसगढ़ी रचनाकार मन के का बिसात ? आज तो पूंजीपति अऊ सत्ताधारी मन के दलाल तथा कथित जनरलिस्ट मन के ही पूछ पुछारी हे , तभ्भो ले हमरो बीच कुछ अइसन ईमानदार , सुआभिमानी साहित्यकार मन यस : काय शरीर म जिंदा रथे जेमन बताथे के स्वस्थ समाज अऊ बेहतर दुनिया के निर्मान म आजो भी उंकर दरकार हे , अइसन साहित्यकार मन म एक नाम कोदूराम दलित जी के भी हवय । 


(लोकाक्षर जून -2000/ छत्तीसगढ़ सेवक 2000 के 2 अंकों में)साभार


प्रस्तुति:बसन्त राघव, रायगढ़, छत्तीसगढ़

मो.नं.8319939396

जनकवि श्रद्धेय कोदू राम दलित जी के 54 वीं पुण्यतिथि पर विशेष


 साहित्यिक तर्पन 

  

जनकवि श्रद्धेय कोदू राम दलित जी के 54 वीं पुण्यतिथि पर विशेष 




अत्याचार करइया मन ला खूब ललकारय दलित जी हा 




जब हमर देश हा अंग्रेज मन के गुलाम रिहिस ।वो समय हमर साहित्यकार मन हा लोगन मन मा जन जागृति फैलाय के गजब उदिम करय ।  हमर छत्तीसगढ़ मा हिन्दी साहित्यकार के संगे संग छत्तीसगढ़ी भाखा के साहित्यकार मन घलो अंग्रेज सरकार के अत्याचार ला अपन कलम मा पिरो के समाज ला रद्दा देखाय के काम करिस ।छत्तीसगढ़ी के अइसने साहित्यकार मन मा स्व. लोचन प्रसाद पांडेय, पं. सुन्दर लाल शर्मा, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, स्व. कुंजबिबारी चौबे ,प्यारे लाल गुप्त, अउ स्व. कोदूराम दलित के नाम अब्बड़ सम्मान के साथ लेय जाथे ।येमा विप्र जी अउ दलित जी  हा मंचीय कवि के रुप मा घलो गजब नाव कमाइस। छत्तीसगढ़ी मा सैकड़ो कुंडलिया लिखे के कारण वोला छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय कहे जाथे ।




जन कवि कोदू राम दलित के जनम बालोद जिले अर्जुन्दा ले लगे गांव टिकरी मा 5 मार्च 1910 मा एक साधारण किसान परिवार मा होय रिहिस ।पढ़ाई पूरा करे के बाद दलित जी हा प्राथमिक शाला दुर्ग मा गुरुजी बनिस । बचपन ले वोकर रुचि साहित्य डहर रिहिस हवय ।वोहा अपन परिचय ला सुघर ढंग ले अइसन देहे -




लइका पढ़ई के सुघर, करत हवंव मैं काम ।


कोदूराम दलित हवय मोर गंवइहा नाम ।।


मोर गंवइहा नाम, भुलाहू झन गा भइया ।


जनहित खातिर गढ़े हवंव मैं ये कुंडलियां ।।


शउक महूँ ला घलो हवय, कविता गढ़ई के ।


करथव काम दुरुग मा मैं लइका पढ़ई के ।।


        दलित जी सिरतोन मा हास्य 


व्यंग्य के जमगरहा कवि रिहिस हे । शोषण करइया मन के बखिया उधेड़ के रख देय ।दिखावा अउ अत्याचार करइया मन ला वोहा नीचे लिखाय कविता के माध्यम ले कइस अब्बड़ ललकारथे वोला देखव - 




   ढोंगी मन माला जपयँ, लमभा तिलक लगायँ 



हरिजन ला छूवय नहीं, चिंगरी मछरी खाय ।।


खटला खोजो मोर बर, ददा बबा सब जाव ।


खेखरी साहीं नहीं, बघनिन साहीं लाव ।।


बघनिन साहीं लाव, बिहाव मैं तब्भे करिहों ।


नई ते जोगी बनके तन मा राख चुपरिहौं ।।


जे गुण्डा के मुँह मा चप्पल मारै फट ला ।


खोजो ददा बबा तुम जा के अइसन खटला ।।




   ये कविता के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नारी मन के स्वभिमान ला सुग्घर ढंग ले बताय गेहे । संगे संग छत्तीसगढ़िया मन ला साव चेत करिस कि एकदम सिधवा बने ले घलो काम नइ चलय ।अत्याचार करइया मन बर डोमी सांप कस फुफकारे ला घलो पड़थे ।


 दलित जी के कविता मा गांव डहर के रहन सहन अउ खान पान के गजब सुग्घर बखान देखे ला मिलथे -




भाजी टोरे बर खेतखार औ बियारा जाये ,


नान नान टूरा टूरी मन धर धर के ।


केनी, मुसकेनी, गंडरु, चरोटा, पथरिया, 


मंछरिया भाजी लाय ओली ओली भर के । ।


मछरी मारे ला जायं ढीमर केंवटीन मन, 


तरिया औ नदिया मा फांदा धर धर के ।


खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी, धरे ,


ढूंटी मा भरत जायं साफ कर कर के । ।




   दलित जी हा 28 सितंबर 1967 मा अपन नश्वर शरीर ला  छोड़ के स्वर्गवासी होगे ।अइसन जन कवि ला आज  54 वीं पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन हे. विनम्र श्रद्धांजलि. 




दलित जी के सुपुत्र आदरणीय गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी हा अपन पिता जी के मार्ग ला सुग्घर ढंग ले अपना के साहित्य सेवा करत हवय । संगे संग" छंद के छंद "जइसे साहित्यिक आंदोलन के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नवा पीढ़ी के साहित्यकार मन ला 


छंद सिखा के सुग्घर ढंग ले छंदबद्ध रचना लिखे बर प्रेरित करत हवय । येहा एक साहित्यकार पुत्र द्वारा अपन पिता जी ला सही श्रद्धांजलि हरय ।




               ओमप्रकाश साहू" अंकुर "


   सुरगी  ,राजनांदगांव

Sunday 26 September 2021

रामनाथ साहू


 

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*(छत्तीसगढ़ी साहित्यिक पुरोधा म छत्तीसगढ़ी के दूसरा उपन्यासकार आदरणीय श्री शिवशंकर शुक्ल जी, जउन हर 'दियना के अंजोर ' अउ 'मोंगरा' छत्तीसगढ़ी उपन्यास लिखिन हें।वो आज हमर बीच स्वस्थ अउ सानन्द मौजूद हें । उंकर बर मंगल कामना करत, उंकर लिखे बाल कहानी संग्रह 'दमांद बाबू दुलरू' म संग्रहित एक ठन प्रमुख कहानी 'पइसा के रुख' हर अविकल प्रस्तुत हे । मोर पूरा प्रयास रहिस हे कि कनहुँ करा उँकर भाषा -शैली म छेड़ छाड़ झन होवे कहके, अउ एमे मंय सफल हंव, अइसन लागत हे।)*



              *पइसा के रूख*

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- *श्री शिवशंकर शुक्ल*


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           एक गांव में दूझिन भाई रहत रिहिन ।बड़े के नाम दुकालू अउ छोटे के नाम सुकालू रहिस। दुनों झिन के खटला मन मं आपुसे मं रोजेचझगरा होवै । रोज के किलकिल ले  दुनों भाई मन  अलगिया गिन ।


         सुकालू बहुत एक कोढ़िया रहिस।  कभु कोनों काम धंधा नई करत  रहिस । दिन रात सूतय अउ इती उती किंदरय । ओखर इहिच बूता रहय । अपन ददा के कमई ,जोन  ओला बटवारा मं मिले  रिहिस  उही ल उड़ावय ।


              थोर दिन मं ओह अपन ददा के कमई ल  फूंक  डारिस । फेर ओह भीख मांगेल धरिस।  गांव के मन ओला बाम्हन  घर जनम  धरे ले कुछु कांही दे देवंय । अइसने इनकर दिन बीते ।


          एक दिन सुकालू के टूरा हर अपन बड़ा के टूरा मेर एक ठिन कठवा के हाथी देखिस । ओहर दऊरत दऊरत अपन दाई आई मेंरन आइस अऊ रोवन लागिस । सुकालू के खटला  हा पूछिस , का होगे , काबर रोथस ?


           टुरा ह किहिस, दाई बड़ा ह  मेला ले भइया बर कठवा के हाथी लानिस हे, वइसने मंहू ला बिसा देना । सुकालू के खटला जोंन  ला तीन दिन ले अनाज के एक सीथा खाय ल नई मिले रहिस, खिसिया गे । कहिस कस रे करम छड़हा, तोर ददा के गुन मां पसिया नइ मिलय, तोला हाथी चाही । सुकालू के टुरा अऊ रोवन  लागिस । टुरा ल रोवत देख के वोह खिसियागे अऊ दुचार चटकन  टुरा ल झाड़ दिस।


              सुकालू  ह कुरिया मं एक मांचा ऊपर बइठे रिहिस। अपन जोड़ी के गोठ ह ओला बान उसन लागिस। ओह अपन मन मं गांठ बांधिस कि मेंह कुछ काही करबे करहूं । 


            दूसर दिन सुकालू कमई करे बर आन गांव जाय बर अपन घर ले निकरिस । गांव के मुहाटी मं एक लोहार के घर रहय । सुकालू ल गांव के बाहिर जावत देख के ओह किहिस, कस गा बाम्हन देवता, कहां जाथस?


       सुकालू ह किहिस, लुहार कका में ह दूसर गांव जावत हववं, कुछु काहीं बुता करहूं। अब कले चुप्पे नइ बइठवं ।

 

        लुहार हर किहिस-- गांव ले बाहिर काबर जा थस , मोर हिंया बूता कर ।  सुकालू किहिस -- लुहार कका तैं जउन बूता तियारबे में उहीकरहूँ ।


        ओ दिन बेरा के  बूड़त ले सुकालू ह लुहार हियां घन पीटिस-  संझा जाय के बेरा लूहार ह सुकालू ल दिन भर के मजूरी तीन पइसा दीस। सुकालू ह तीन पइसा  ल लेके चलिस अपन कुरिया कोती। सुकालू ल आज एइसे लगे जइसे ओला तीन पइसा नई, कहूं के राज मिलगे ।


           कुरिया के मुंहाटी ले सुकालू ह अपन  खटला ल हांक पारिस। सुकालू के खटला ह दिन भर ले अपन जोड़ी ल नई देखे रहय । सुकालू के हांक पारत वहू  दुवारी के अंगना मं आगे । सुकालू हर किहिस, ले ये दु  पइसा, मेंह आज  बूता करके लाने हवंव । अब में ह बइठ के नइ रहवं। जतेक बेर सुकालू हर पइसा ल देत रहिस,सुकालू के  खटला ह देखिस कि  सुकालू के हाथ ह लहू लूहान  होगे  हावय। कहिस,ये तोर हाथ  मं का होगे हे? सुकालू ह  किंहिस,आज दिन भर मेंह लुहार कका हिंया घन पीटे हंवव ओखरे ये।


 सुकालू के खटला पानी तिपोइस अऊ सुकालू ल नहाय के पथरा ऊपर बइठा के  ओखर हाथ ल सेके ल तीपे पानी भित्तरी  लाने बर गिस , ओतके बेर  सुकालू ह उसका बेर सुकालू ह एक पइसा जेन ला ओहर चोंगी -माखुर बर  लुकाय ले रहिस, तेन ल नहाय के पथरा के नीचू मं लुका दिस।


        हाथ ल सिंका के सुकालू ह बियारी करिस। खातेखात वोला  नींद मातिस वो ह सूतगे ।


      बिहानियां सुकालू के खटला ह उठिस । त काय देखथे कि नहाय के पथरा के तीर म पइसा के रूख  लगे हवय। पहिली तो वोला लगिस के मोला भोरहा होवत हावय । वो ह  पथरा मेरन  जा के देखथे त  सहीं मं उहां पइसा के रुख रहय। लकर धकर ओह पइसा ल चरिहा मं भर भर के सुते के कोठी में लेग लेग के कुरोय लगिस।  पइसा के झन- झन  सुन के  सुकालू के नींद ह टूटगे। वोह देखिस कि मोर जोड़ी ह चरिहा म पइसा भर भर के लान लान  के इहां कुरोयवत हे । वो ह पूछिस, कउन  मेर  ले तोला एतका धन दोगानी मिलगे? 


         वो ह कहिस-- उठ त देख पथरा मेरन कतेक बड़े पइसा के रुख लगे हे । सुकालू घलो देखिस त ओला अपन रात के पइसा के सुरता आइस, जेला वोह पथरा खाल्हे लुकादे रिहिस । आज वोला जनइस के अपन पसीना बोहाय पइसा मं कतेक बल होथे। वो ह  गांठ बांधिस के बिन बूता के मेंह बइठ के एक सीथा मुंख मं नई डारंव ।


             सुकालू घलो पइसा वाला बनगे। पइसा के रूख के सोर राजा लगिस। वोह खूभकन बनिहार लानिस अउ  सुकालू  के कुरिया म नींग गे। सुकालू, राजा ह हांक पारिस।  सुकालू ह अपन दुवारी म राजा ल देख के जान गे के येहर काबर आय हाबय । फेर राजा के आगु वोह काय । बनिहार मन कुदाली रापा ले के भिड़गे ,रुख उदारे बर फेर करतिस जेतक वो मन भुंया ल खनय ओतके रुख ह भुंइया मं हमात जाय।थोर दिन मं रुख हर धरती माता के कोख मं हमागे ।  राजा हर मन मार के रेंग दिस।


    सुकालू ल पइसा के रूख हर  चेत करा दिस के मिहनत के कमई हा कतेक बाढ़थे ।


*श्री शिवशंकर शुक्ल*

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 खाँटी  छत्तीसगढ़ी शब्द -

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खटला - औरत, सुवारी

हिंया -इहाँ , यहाँ

कुरोय लगीस -भरे लागिस,जमा करे लागिस

खाल्हे -तरी ,नीचे

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प्रस्तुतकर्ता -

*रामनाथ साहू*

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जाड़ के दिन /नान्हे कहिनी*


 

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           *जाड़ के दिन /नान्हे कहिनी*

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-रामनाथ साहू



         जाड़ के दिन आ गय रहय । अंगनु हर अपन करिया कमरा ल खोज के फेर झर्रात- पीटत हे । कंबल ल झर्रात वो गुनत हे । आज जइसन मौसम रथे, तइसन के लइक पिंधे -ओढ़े के कपड़ा -ओनहा परिवार के सबो  मनखे मन बर हांवे ।


       ददा हर सुरता करे...वोमन के परिया म अइसन जाड़ - जड़कल्ला मन   बिन ओनहा -कपड़ा के निकल घलव जाय । कमरा -कंबल बिसाय बर तो गुने बर लागे । दु चार टेपरी खेत रहिन । बरछा -बारी रहिन । वोमन ल जोगे जाय बर लागे ।


         फेर आज न ददा ये , न वोकर खेत  मन यें । हां ! सब मनखे मन बर कमरा- कंबल जरूर हे ।


*रामनाथ साहू*


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उज्जर ओनहा/नान्हे कहिनी* -रामनाथ साहू


 

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     *उज्जर ओनहा/नान्हे कहिनी*

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-रामनाथ साहू



         धरम  के अपन ये सरकारी ऑफिस म बड़ नाम हे । वो बड़े -बड़े कारज ल वोइच दे तुरत- ताही सलटिया डारथें । बड़े- बड़े लेनदेन डील करे म अब्बड़ हुशियार  हावें वो! येकरे बर कोनहु साहब आँय अलदी -बदली म उँकर पद अउ कद उपर म फरक नई परे  । उँकर वोइच मान- सम्मान...पूछ पुछारी सदाकाल बने रहिथे । 


            वो तो आजेच बने पोठ बुता करिन हें । वइसन इंकर बुता हर तब शुरू होथे, जब आने में के छेवर होत रहिथे । ये बनेच बेर म अपन घर कोती लहुटथें, फेर आज बनेच बुता हर जल्दी हो गय, तेकर सेथी घर कोती वो भी जल्दी लहुटत हावें ।


          वो तीर के शॉपिंग सेंटर ले जरूरत -बिन जरूरत के समान ल लाद भरे हावें । वो जे दिन बड़े बुता करे रथें, वो दिन ठीक अइसनहेच लेनदेन करथें । तभो ले जेब हर गरू रथे । उंकर रहन -बसन , ओनहा-कपड़ा सब एक नम्बर के रथे । पहिने के कपड़ा म नानकुन दाग ल  वो सहन नई कर पांय, वो पूरा उज्जर अउ जतन करे रहिथें । घर के सेवा जतन म फर्नीचर वाला, पेंटर जइसन मन भिड़ें च रहिथें । वो परछर गोठ करना पसंद करथें । अउ उंकर परछर गोठ के छेवर म रहिथे - तनखा के पईसा के लेनदेन करे, घर चलाय त काय सरकारी नौकरी करे ...! वो एईच मूलमन्त्र के साधक अउ उपासक दुनों आँय ।


        आज घर आइन , तब आज ये नावा आय फर्नीचर वाला टुरा के खाली टिफिन  डब्बा उपर इंकर नजर पर गय । वो छोकरा हर दस -बारह स्क्रू मन ल धर लेय रहिस एमा अपन घर ले जाहूँ कहके...


        धरम सब सह लिही, फेर चोरी नहीं -वो बिगड़ गिन ।"तँय काल ल बुता झन आबे !" वो फिर वो टुरा ल धमकात कहिन ।


साला ! नीच ! चोर जात ! ये सब साले मन अइसनहेच रहिथें । वो फिर बुदबुदाइन ।


         वो लड़का तरी मुड़ करके वो स्क्रू मन ल छोड़ के अपन टिफिन- डब्बा ल संकेलत रहिस ।



*रामनाथ साहू*


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संस्मरण आलेख)-मोहन कुमार निषाद


 

*मोर गद्य लेखन के सुरुवाती कहिनी - मोर प्रेरणाश्रोत गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी (संस्मरण आलेख)*


गद्य लेखन के क्षेत्र मा मँय बिल्कुल नवा लिखइया अँव , जहाँ तक गद्य विधा के लेखन ल मँय समझ पाये हँव । अपन छोटे मंदमति ले अपन अनुभव ला आप सबो तीर साझा करत हँव । गद्य लेखन ला हमन जतेक कठिन समझथन न ये वोतेक कठिन विधा नोहय , अउ जतेक सरल समझथन न वोतेक सरल विधा घलो नोहें । गद्य लेखन बर सबले पहिली अउ जउन जरूरी चीज होथें वो हे चिंतन । गद्य विषय म लिखें के पहिली हमला वो विषय वस्तु जेखर ऊपर हम लिखना चाहत हन वोकर बारे मा अपन जानकारी अउ अनुभव के हिसाब ले हमला बड़ चिंतन करे बर पड़थे । अउ अगर हमला वोकर बारे मा जादा जानकारी चाहिए होथे तब हमला वो विषय के बारे म अउ बढ़िया पढ़ के चिंतन करे बर लागथें , तब जाके वो विषय के ऊपर बने सोंच समझ के अउ बढ़िया लिखें जाथें । कहे के मतलब हे - गद्य मा घलो पद्य असन ही अपन मन के भाव ला ही लिखना रहिथें ।


 फरक बस अतके हे पद्य ला कविता रूप मा बराबर जमा के लिखे बर पड़थे , अउ गद्य ला विषय के ऊपर पूरा ध्यान ला केंद्रित करके अपन चिंतन के हिसाब ले अपन मन के भाव ला सरलग लिखत कलम के धार मा बहाना होथें ।  मँय कभू सोंचे नइ रहेंव कि मँय कभू गद्य लिख पाँहु या एक दिन गद्य म लिख हँव कहिके । जब साहित्य लाइन मा जुड़ेव तब पहिली अलवा जलवा अपन मन के भाव मन ला कविता के रूप मा उतार लेवत रहेंव । वो समे मोला गद्य के बारे म कोई जानकारी नइ रिहिस । फेर धीरे धीरे मोर भेंट मोर साहित्यिक गुरु प्रणम्य पूज्य गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी मन ले होइस । येला मँय अपन सौभाग्य मानथँव कि मोर सुरवाती दौर म ही मोर भेंट पूज्य गुरुदेव जी मन ले हो गीस , अउ जिंकर सानिध्य पाके ही मँय हा छंद जइसन अनमोल ज्ञान ला सिखत सिखत पूज्य गुरुदेव जी मन के छत्रछाया मा रहिके साहित्य के बारीकी मन ला धीरे - धीरे जानत अउ समझत गे हँव ।  


  

हमर गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी मन के व्यक्तित्व उनकर सोंच अउ उनकर साहित्यिक विचारधारा संग उनकर बताय मार्गदर्शन ले मँय सुरू से ही बहुत प्रभावित रहे हँव अउ आज ले घलो हवँव । पूज्य गुरुदेव जी मन के छवि हा जतेक साफ हें ओइसने हे उनकर हृदय हा घलो फरी पानी असन स्वच्छ अउ निर्मल हावय । जिंखर अन्तस् म कोन्हों छोटे बड़े कलमकार कवि साहित्यकार  साधक जइसन कोन्हों भेद भाव नइये । प्रणम्य गुरुदेव जी मन सबो साधक मन ला एक बरोबर ही मानीन हे अउ मानथे । उनकर मेर कोई नवा जुन्ना सीनियर जूनियर साधक कवि साहित्यकार नाम के कोई जिनिस नइये । पहिली मँय संकोच म सोंचव कि गुरुदेव जी मन ले कइसे बात करँव कहिके अउ डर घलो लागय , मँय कहाँ अभी के लइका अउ गुरुदेव जी मन अपन उमर अउ अनुभव ले बड़का गुणी  साहित्यकार आय कहिके । मन तो बड़ होवय कि गुरुदेव जी मन ले आशीर्वाद लेय के अउ उनकर ले मार्गदर्शन लेय के , फेर हिम्मत नइ होवत राहय उनला फोन करे के ।


एक दिन हिम्मत करके गुरुदेव जी मन ला फोन लगाय हँव गुरुदेव जी मन के आशीर्वाद संग गुरुदेव जी मन ले बहुत अकन साहित्यिक चर्चा होइस , जेमा गुरुदेव जी मन ले बहुत कुछ जाने के संगे संग सीखे बर मिलिस अउ आघू का करना चाहिए वोकर बारे मा गुरुदेव जी मन ले मार्गदर्शन मिलिस । गुरुदेव जी मन चर्चा मा बताइन कि हमर छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य मा गद्य लिखइया मन के बहुते कमी हे , हमला गद्य लेखन म भी अपन कलम चलाना चाही । तब गुरुदेव जी मन के देय मार्गदर्शन के हिसाब ले उनकर प्रेरणा ले , उनकर ले सिखत सिखत अउ उनकर लेख - आलेख मन ला पढ़त पढ़त गद्य लिखें के प्रेरणा लेवत गुरुदेव जी मन ले प्रेरित होके ही महूँ हा गद्य लिखें के सुरू करे हँव । बीच बीच मा मोला गुरुदेव जी मन के आशीर्वाद के रूप म सलाह सुझाव मिलते रहिस अउ अभी ले आज ले घलो मिलत आवत हें । 


आज "छंद के छ" परिवार हमर छत्तीसगढ़ संग हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य मा एक ठन क्रान्ति बनगे हावय जेखर संस्थापक हें हमर परम् पूज्य गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी मन । जउन "छंद के छ" परिवार हा हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ अउ समृद्ध करे खातिर सरलग वोकर उत्थान के उदीम मा लगे हावयँ ।

 आज ये बतावत हुये बड़ खुशी होथें कि हम वो छंद परिवार के हिस्सा आन , अउ गुरुदेव श्री अरुण निगम जी के शिष्य । हम सबो ला चाही कि साहित्य मा जउन गद्य लेखन रूपी यज्ञ चलत हें वोमा अपन गद्य लेखन म सृजन करके सहयोग रूपी आहुति दीन । हम सब लिखत सकत हन , कोशिश करे मा कुछू नइ जाय , अउ प्रयास करें लेही सफलता हाथ आथे । अलवा जलवा सुरवाती गद्य लिखें मा कोई बुराई नइये , हम सब ला गद्य लिखे के प्रयास करत लिखते रचना चाही ।   


                  *मयारू मोहन कुमार निषाद*

                   *गाँव - लमती , भाटापारा ,*

                 *जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)*

साहित्यिक तर्पन पितर पाख म विशेष ... माटी के रचनाकार : श्रद्धेय महेन्द्र देवांगन "माटी "



 

साहित्यिक तर्पन 

पितर पाख म विशेष ...


माटी के रचनाकार : श्रद्धेय महेन्द्र देवांगन "माटी "


अभी पितर पाख चलत हे त पुरखा साहित्यकार मन के सुरता घलो जरुरी हे. इही कड़ी मा  आज कम उम्र म ही अपन लेखन एक अलग छाप छोड़इया श्रद्धेय महेन्द्र कुमार देवांगन माटी ल नमन करत हवँ. 


 जब 16 अगस्त 2020 मा फेसबुक अउ व्हाट्सएप मा एक शोक समाचार चले ला लगीस कि जाने माने कवि, गीतकार, छंद साधक अउ शिक्षक श्री महेन्द्र कुमार  माटी हा हमर बीच मा अब नइ हे ता कोनो ला बिश्वास नइ होत रीहीस हे. पर धीरे धीरे श्रद्धांजलि के पोस्ट के संख्या हा बाढ़त जात रीहिस हे.  विधि के विधान के सामने हम सब मन नतमस्तक हो गेन. कोनो ला एको कनक विश्वास नइ होय कि माटी जी हा अचानक ये दुनियां ला छोड़ दीस काबर कि वोहा 15 अगस्त 2020 मा अपन स्कूल शासकीय प्राथमिक शाला डोमसरा विकासखंड़ पंडरिया(कवर्धा) मा सुग्घर ढंग ले ध्वजारोहण करे रीहीस हे. येला फेसबुक मा घलो पोस्ट करे रीहीन हे. 

ये वो समय रीहीस जब माटी जी के प्रतिभा हा पूरा ऊफान मा रीहीस हे. वोहा छत्तीसगढ़ी के सँगे सँग हिन्दी मा घलो बरोबर ढंग ले लिखत रीहीस हे. उँकर रचना अउ लेख हा कतको अकन पत्र पत्रिका मा प्रकाशित होत रीहीस हे. शोसल मीडिया मा खूब 

छाय राहय. कवि सम्मेलन मा घलो गजब चलत रीहीस हे. 

     परम पूज्य गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी द्वारा स्थापित" छंद के छ " मा वोहा सत्र - 6 के साधक रीहीस हे. जब छंद साधक के रुप मा जुड़िस ता वोकर प्रतिभा मा अउ निखार आय लगगे. छंद के छ ले जुड़े के प्रभाव वोकर लेखन मा स्पष्ट झलकत रीहीस हे. वोहा अब्बड़ सुग्घर ढंग ले छंदबद्ध रचना शोसल मीडिया मा पोस्ट करे अउ कतको साहित्यिक पत्रिका मन मा प्रकाशित होय.


   जीवन परिचय -


   महेन्द्र कुमार देवांगन माटी के जनम  6 अप्रैल 1969 मा गरियाबंद जिला के बोरसी गाँव मा साधारण किसान परिवार होय रीहीस हे. वोकर पिता जी के नाँव थानू राम देवांगन अउ महतारी के नाँव नित कुंव देवांगन  हे.  आप मन के पिता जी हा कपड़ा बेचे के घलो काम करय. प्राथमिक शाला मा पढ़ई के समय ले वोकर रुचि गीत अउ कविता प्रस्तुत करे मा राहय. वोहा कम उम्र मा रचना लिखे के चालू कर दे रीहीस हे. उंकर शिक्षा के बात करन ता हिन्दी साहित्य अउ संस्कृत साहित्य मा एमए, अउ बीटीआई करे रीहीस हे.  


    नौकरी 


2008 मा उंकर नियुक्ति शिक्षा कर्मी वर्ग - तीन मा कवर्धा जिला के पंडरिया विकासखंड के शासकीय प्राथमिक शाला डोमसरा मा होइस . 1 जुलाई 2018 मा वोहा शिक्षा विभाग मा सहायक शिक्षक (एल. बी.) मा संविलियन होय रीहीस हे. देहावसान तक वोहा डोमसरा स्कूल मा ही सेवा देत रीहीस हे. श्रद्धेय माटी जी के जीवन सँगिनी के नाँव मंजू देवांगन हे.  वोकर  एक बेटा अउ एक बेटी हवय. वोकर बेटा के नाँव श्री शुभम देवांगन हे जउन हा माटी जी के देहावसान के बाद कवर्धा जिला मा अनुकम्पा नियुक्ति करत हवय.बेटी  प्रिया देवांगन हा कॉलेज के पढ़ई कर डरे हे. प्रियू बिटिया हा "छंद के 


छ" मा सत्र -13 के साधिका हवय. सुग्घर ढंग ले माटी जी के साहित्य विरासत ला आगू बढ़ावत हे.


साहित्य समिति मन ले संबद्ध 


माटी जी हा त्रिवेणी संगम साहित्य समिति राजिम, भोरमदेव साहित्य सृजन मंच कवर्धा, छंद के छ परिवार छत्तीसगढ़, आरुग चौरा परिवार छत्तीसगढ़, "कलम के सुगंध "छंद शाला ,कला परम्परा भिलाई, छत्तीसगढ़ कलमकार मंच भिलाई के सक्रिय 

सदस्य रीहीस हे. 

  

प्रकाशित किताब 


माटी जी जमगरहा रचनाकार रीहीस. लगातार साधनारत रहीके लिखत राहय. उंकर प्रकाशित किताब मा काव्य संग्रह "माटी के काया" 2015 मा प्रकाशित होय रीहीस हे." पुरखा के इज्जत" अउ "तीज - तिहार  अउ परंपरा " घलो छपीस हे.


   साहित्य सम्मान 


माटी जी हा लेखन मा अब्बड़ सक्रिय राहय. वोकर साहित्य साधना ला देखत कतको साहित्य समिति अउ संगठन मन सम्मानित करीस हे. जेमा  24 सितंबर 1994 मा संगम साहित्य समिति नवापारा राजिम ,साहित्य बुलेटिन नई कलम द्वारा राज्य स्तरीय प्रतिभा सम्मान (14 सितंबर 2014), भारतीय दलित साहित्य अकादमी धमतरी द्वारा महर्षि बाल्मीकि सम्मान (8 अक्टूबर 2014), छत्तीसगढ़ क्रान्ति सेना द्वारा सम्मान,  2015 मा छत्तीसगढ़ के पागा सम्मान, कलम साहित्य सम्मान नवागढ़ 2015, सिरजन लोक कला एवं साहित्य संस्था द्वारा बेमेतरा में सम्मान 2015,  छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना द्वारा  1 नवंबर 2016 मा "जबर गोहार " सम्मान रायपुर मा,  21 दिसंबर 2016 मा पंडित सुन्दर लाल शर्मा साहित्य उत्सव समिति द्वारा सम्मानित, सगुन चिरइया सुरतांजलि साहित्य सम्मान (13 अक्टूबर 2017), छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा 21 जनवरी 2016 मा बेमेतरा मा प्रशस्ति पत्र से सम्मानित, छत्तीसगढ़ कलमकार मंच सम्मान 2018, राज रचना कला एवं साहित्य समिति द्वारा 16 मई 2016 मा सम्मानित, छंद के छ परिवार द्वारा  13 मई 2018 मा सिमगा मा सम्मान, मधु शाला साहित्य परिवार द्वारा साहित्य रचना सम्मान 2018,  2018 मा ही कृति कला एवं साहित्य परिषद् सीपत (बिलासपुर) द्वारा "कृति सारस्वत सम्मान, प्रजातंत्र का स्तंभ गौरव सम्मान हरियाणा (10 जनवरी 2019), राज पब्लिकेशन दुर्ग द्वारा साहित्य वीर अलंकार सम्मान, अउ जनवरी 2020 मा पुष्प गंधा प्रकाशन कवर्धा द्वारा नारायण लाल परमार सम्मान शामिल हे.


सरल अउ हंसमुख व्यक्तित्व के धनी 


 श्द्धेय स्व. माटी जी हा गजब सरल, सरस अउ हंसमुख व्यक्तित्व के धनी रीहीस हे. छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के वार्षिक समारोह मा बिलासपुर, कोरबा, राजिम अउ बेमेतरा मा भेंट होय के सँगे सँग छत्तीसगढ़ कलमकार मंच भिलाई अउ भोरमदेव साहित्य सृजन मंच कवर्धा के स्थापना दिवस समारोह मा माटी जा सँग भेंट होय रीहीस हे. वोहा अब्बड़ मिलनसार रीहीस हे. जून 2019 मा आयोजित भोरमदेव सृजन साहित्य मंच कवर्धा के स्थापना दिवस समारोह मा उंकर से मोर आखिरी बार भेंट होय रीहीस हे. लोक संगीत सम्राट स्व. खुमान लाल साव जी ला समर्पित ये कार्यक्रम मा मँय हा पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया के मोर सक्रिय सँगवारी अमृत दास साहू के सँग गे रहेंव. इहां समिति डहर ले जउन सँगवारी मन हमर स्वागत द्वार मा सम्मान करीन हे वोमा राम कुमार साहू, ईश्वर साहू आरुग, घनश्याम कुर्रे, मिनेश कुमार साहू जी के संग श्रद्धेय माटी जी हा घलो शामिल रीहीस हे. इही हा माटी जी सँग आखिरी भेंट रीहीस हे. वोकर बाद मँय हा दो तीन बार माटी जी सँग फोन मा बातचीत करे रहेंव. जब 16 अगस्त 2020 मा माटी जी के गुजर जाये के दु:खद खबर फेसबुक अउ व्हाट्सएप मा पढ़े ला मिलीस ता एको कनक बिश्वास नइ होइस कि माटी जी हा हमर बीच अब नइ हे. पर का करबे होनी ला कोन टारे हे  . वोकर निधन के खबर ला पढ़के आँखी हा डबडबागे.वोकर ले जउन भेंट होय रीहीस वो सब दिन अउ जगह हा आँखी के सामने दिखे ला लागिस .स्व. 

 माटी जी ला पितर पाख म शत् शत् नमन हे. 


        ओमप्रकाश साहू" अंकुर "


   ( छंद साधक, सत्र - 12 ,छंद के छ )


   सुरगी, राजनांदगॉव

Thursday 23 September 2021

साहित्यिक तर्पन... डॉ नरेश कुमार वर्मा


 







साहित्यिक तर्पन... डॉ नरेश कुमार वर्मा


जनम - 13 अगस्त 1959  


 देहावसान - 27 अप्रैल 2021


छत्तीसगढ़ महतारी बर अपार श्रद्धा रखइया साहित्यकार - नरेश वर्मा 


हमन महान व्यक्ति के जीवनी पढ़थन ता पता चलथे कि वोहर अपन जीवन मा कत्तिक संघर्ष करके आगू बढ़ीस हे. कम सुविधा के बावजूद जब कोनो मनखे हा अपन जीवन मा कुछ करे बर ठान लेथे अउ जब अपन मंजिल ल प्राप्त करथे ता अइसन मनखे हा दूसर मन बर प्रेरणास्रोत बन जाथे. गरीबी ला झेलके आगू बढ़इया मा एक नाँव हवय श्रद्धेय स्वर्गीय डॉ. नरेश कुमार वर्मा जी. स्वर्गीय वर्मा जी गरीब परिवार मा जनम लेके बावजूद प्रोफेसर बनीस अउ अपन कर्म के माध्यम ले दूसर मन बर एक उदाहरण बनके सामने आइस. 

  नरेश कुमार वर्मा के जनम 13 अगस्त 1959 मा बलौदाबाजार जिला मा भाटापारा ले 12 किलोमीटर दूरिहा फरहदा गाँव मा छोटे किसान परिवार मा होय रीहीस. वोकर पिता जी के नाँव उदय राम वर्मा अउ माता जी के नाँव पुनौतिन वर्मा रीहीस हे. वोमन तीन भाई अउ तीन बहन रीहिस हे. तीन भाई मा वोहा सबले बड़े रीहीस हे.

 

    पढ़ाई -लिखाई 


माता -पिता के अनपढ़ अउ आर्थिक समस्या के बावजूद अपन मन ला पढ़ई डहर खूब लगाय राहय. गाँव मा प्राथमिक शिक्षा पूरा करे के बाद मीडिल स्कूल के पढ़ाई जरोद अउ हायर सेकण्डरी के पढाई भाटापारा मा करीस. महासमुंद ले बीटीआई अउ बीए व हिन्दी अउ भूगोल मा एमए बलौदाबाजार ले करीस. राजनांदगॉव के दिग्विजय कॉलेज मा सहायक प्राध्यापक पद मा रहत वोहा हिन्दी मा पीएचडी करीन. 

   1975 मा वोहा बीटीआई महासमुंद ले अध्यापक प्रशिक्षण बर प्रवेश परीक्षा 75 प्रतिशत अंक के साथ उत्तीर्ण की. 


प्राथमिक शाला के शिक्षक ले प्रोफेसर तक के सफर 



 1979 मा शासकीय प्राथमिक शाला वटगन (रायपुर) मा शिक्षक बनके गीस. येखर बाद विश्वविद्यालय के सबो परीक्षा मन ला स्वाधायी छात्र के रुप मा दिलइस अउ उच्च अंक के साथ उत्तीर्ण होत गीस. 

  कॉलेज के प्रोफेसर बनना अपन जीवन के लक्ष्य बनाय रीहीस अउ येला वोहा गजब संघर्ष करके प्राप्त करीन. आर्थिक समस्या ले जूझत अपन रास्त बनइस. जब हिन्दी के सामान्य वर्ग ले  आठ पद बर अखिल भारतीय विज्ञापन आधार मा वोकर नियुक्ति होइस ता अपन लक्ष्य ला प्राप्त करके अपन जीवन के सबले बड़े खुशी प्राप्त करीस. 

   1986 मा ऊंकर नियुक्ति शासकीय माखन लाल चतुर्वेदी महाविद्यालय बाबई (होशंगाबाद)मा हिन्दी के सहायक 

प्राध्यापक पद मा होइस. 1987 मा वोहा दिग्विजय कॉलेज राजनांदगॉव मा स्थानांतरित होके आइस. इहां वोहा जुलाई 2008 तक रीहीन. 21 वर्ष तक ये कॉलेज म टिके रीहीस यहू हा गजब बड़े उपलब्धि रीहीस. 2006 मा वोहा सहायक प्राध्यापक ले प्राध्यापक (हिन्दी) बनगे.  21 वर्ष मा वोहा अपन एक अलग छाप छोड़िस. वोहा महाविद्यालय के शैक्षणिक गतिविधि के सँगे सँग साहित्यिक, सांस्कृतिक अउ राष्ट्रीय सेवा योजना के गतिविधि के जिम्मेदारी ला बने ढंग ले निभाइन. 


    पीएचडी के उपाधि 


  वर्मा जी हा 1992 मा विद्वान  डॉ. गणेश खरे जी (राजनांदगॉव) के प्रेरणा ले डॉ. गीता पाठक के मार्गदर्शन मा " साठोत्तरी हिन्दी कविता में राष्ट्रीय -सामाजिक चेतना "विषय मा पीएचडी के उपाधि प्राप्त करीस.


स्थानांतरण पर हाईकोर्ट ले स्टे लाइस 


छत्तीसगढ़िया व्यक्तित्व के धनी जत्तिक सरल, सहज अउ सरस रीहीस वतकी दृढ़ता के घलो प्रतीक रीहीस. जब साभिमान ला ठेस पहुंचे के नौबत आय ता करिया डोमी कस फूंफकार के अपन मान -मर्यादा के रक्षा करे. 

2007 मा वर्मा जी के स्थानांतरण दिग्विजय कॉलेज राजनांदगॉव ले कवर्धा के नया कॉलेज मा सहायक प्राध्यापक मा करे गीस जबकि वोहा 2006 मा प्राध्यापक बन गे रीहीस. कवर्धा कालेज में हिन्दी में प्राध्यापक के पद नइ रीहीस हे. इहां वर्मा जी हा अपन हक बर लड़ाई करत हाई कोर्ट ले स्टे ला लीस अउ ये प्रकार ले ऊंकर स्थानांतरण रुकगे. वर्मा जी हा शासकीय दिग्विजय स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष रीहीन. 


स्वेच्छा स्थानांतरण मा भाटापारा गीस

   21 साल तक दिग्विजय कॉलेज मा सेवा देय के बाद जुलाई 2008 मा अपन स्थानांतरण अपन जनम भूमि फरहदा के तीर भाटापारा कॉलेज मा करा लीन.  जुलाई 2008 मा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव द्वारा दिग्विजय कॉलेज के नवीन सभागार मा विदायी समारोह के आयोजन करे गीस जेमा जेमा जिला भर के तीन दर्जन साहित्यकार मन अपन उपस्थिति देके वर्मा जी के प्रति अपन मया ला उड़ेलिन. उंकर विदायी बेला मा सबके आँखी हा डबडबागे. ये प्रकार ले वर्मा जी हा अपन दृढ़ता अउ दूरदर्शिता ले शासकीय गजानन स्नातकोत्तर महाविद्यालय भाटापारा मा आके सेवा करे लागीस. इहां वोहा हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे के सँगे सँग 

2017 मा प्रभारी प्राचार्य घलो रीहीन. कॉलेज मा राष्ट्रीय स्तर के सेमीनार करइस .अपन दूरदर्शिता ले प्रभारी प्राचार्य रहत भाटापारा कॉलेज के नेक का मूल्यांकन कराय मा सफल होइस. ये प्रकार ले  भाटापारा कॉलेज ला नेक से मान्यता प्राप्त कॉलेज के श्रेणी मा आगे. 


विश्वविद्यालय के हिन्दी अध्ययन मंडल के अध्यक्ष बनीस 


श्रद्धेय वर्मा जी के योग्यता अउ विद्वता ला देख के  नवंबर 2020 मा पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर मा हिन्दी अध्ययन मंडल के अध्यक्ष बनाय गे रीहीस. येकर सदस्य पहलीच ले रीहीस हे. 


     साहित्य सेवा 


वर्मा जी हा 1975 ले कविता लिखे के शुरु करीस. महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी मा समान रुप ले लिखे हवय. रायपुर के कतको अखबार मा ऊंकर रचना छपिस. छत्तीसगढ़ महतारी के प्रति गजब प्रेम रखइया वर्मा जी हा 1979 मा अलग राज खातिर अपन लहू मा चिट्ठी लिखके छत्तीसगढ़ राज्य के समरथन करीन. 

वर्मा जी के आलेख, शोध पत्र, संस्मरण, समीक्षा, कविता हा कतको राष्ट्रीय अउ स्थानीय पत्र -पत्रिका मा प्रकाशित होत रीहीस हे. उंकर प्रकाशित पुस्तक मा "साठोत्तरी हिन्दी कविता में राष्ट्रीय -सामाजिक चेतना (शोध ग्रन्थ) 1999, "समकालीन हिन्दी कविता और राष्ट्रीय परिदृश्य "

(शोध पत्रिका संपादित) 2000, छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह "माटी महतारी 2001 , पुरातत्व अउ संस्कृति मंत्रालय छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग अउ जिला प्रशासन राजनांदगॉव के सहयोग ले 2002 मा "छत्तीसगढ़ की अभिव्यक्ति, इतिहास एवं स्वतंत्रता", 2003 मा "छत्तीसगढ़ की जनभाषा और कथा कंथली " के संपादन,साकेत छत्तीसा भाग -1 (2003),साकेत छत्तीसा भाग -2 (2004),साकेत छत्तीसा -3(2005) के संपादन करीन. समकालीन हिन्दी कविता पर विश्व विद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली के सहयोग ले 2000 मा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के आयोजन के दायित्व ला गजब सुग्घर ले निभाइस. लखनउ अउ रायबरेली के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन मा भागीदारी करीस. 


   साहित्य सम्मान 


डॉ. वर्मा जी ला साहित्य सेवा खातिर कतको संगठन हा सम्मानित करीस. मध्यांचल कल्याण समिति उत्तरप्रदेश अउ महिला प्रगति संस्थान रायबरेली द्वारा " साहित्य शिरोमणि सम्मान "(1998),साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव द्वारा " साकेत साहित्य सम्मान "(2002),छत्तीसगढ़ी राजभाषा अउ आदिवासी संस्कृति संस्थान रायपुर द्वारा  "छत्तीसगढ़ी रत्न सम्मान "(26 नवंबर 2007 ) आदर्श युवा संगठन मुड़पार 

(सुरगी)  द्वारा "साहित्य सम्मान "के सँगे सँग कतको संगठन मा सम्मानित करीस. 


नवा प्रतिभा मन ला पलोंदी देवइया साहित्यकार 


वर्मा जी हा नवा लिखइया रचनाकार मन ला गजब पलोन्दी देय के काम करीस. दिग्विजय कॉलेज मा सेवा 

काल के समय साहित्य अउ भाषण कला मा रुचि रखइया छात्र मन ला आगू बढ़े बर मार्गदर्शन करय. राष्ट्रीय सेवा योजना के अधिकारी के रुप मा युवा वर्ग ला रचनात्मक अउ समाज सेवा के कार्य करे बर प्रोत्साहित करीस अउ साहित्य डहर जाय बर रास्ता घलो बतइस. महाविद्यालय मा आयोजित परिचर्चा, भाषण अउ वाद विवाद स्पर्धा, सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता मा विद्यार्थी मन ला भाग लेय बर अब्बड़ प्रोत्साहित करे.  1997 मा आजादी के स्वर्ण जयंती के सुग्घर बेला मा दिग्विजय कॉलेज मा स्वतंत्रता सग्राम पर परिचर्चा आयोजित करे गे रीहीस वोमा मुख्य अतिथि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्रद्धेय कन्हैया लाल अग्रवाल माई पहुना रीहिस. येमा प्रोफेसर मन के सँग महू ला अउ वक्ता सरोज कुमार मेश्राम ला विचार रखे बर बुलाय गे रीहिस. येमा वर्मा जी के ही हाथ रीहिस हे. मेहा उँहा काव्य पाठ घलो करे रेहेंव. कार्यक्रम के संचालन जाने माने वक्ता डॉ. चन्द्रकुमार जैन हा करत रीहिस हे. साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के प्रमुख सलाहकार के पद के दायित्व ला सुग्घर ढंग ले निभावत 

येमा जुड़े जम्मो साहित्यकार मन ला अब्बड़ मया दीस. रचना लिखे बर गजब प्रोत्साहित करीस अउ अपन अमूल्य मार्गदर्शन ले नवा रास्ता दिखाइस. साकेत छत्तीसा भाग -1,2, 3(2003,2004,2005) के माध्यम ले नवा रचनाकार मन ला पलोंदी दीस. कार्यक्रम बर आर्थिक सहयोग करके साहित्यकार मन ला संबल प्रदान करय. वर्मा जी हा कॉलेज के प्रोफेसर होय के बावजूद ग्रामीण साहित्यकार मन सँग बहुत सरल,सहज अउ सरस ढंग ले पेश 

आय. कोनो सुझाव ला सुग्घर विनम्र ढंग ले बताय. गुनिक विद्यार्थी मन ला आर्थिक सहयोग घलो करय. 


हमर राजनांदगॉव जिला मा साहित्य के क्षेत्र मा आदरणीय वर्मा जी अउ आदरणीय कुबेर सिंह साहू जी के जोड़ी गजब सुग्घर ढंग ले चलीस. दूनों के जोड़ी हा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ला एक नवा ऊंचाई दीस.

दूनों के सुग्घर प्रयास ले हमर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनॉदगॉव के वार्षिक सम्मान समारोह मा अंतरराष्ट्रीय पंथी नर्तक स्व. देवदास बंजारे जी, संत कवि पवन दीवान जी, तत्कालीन उपनेता प्रतिपक्ष अउ वर्तमान मुख्यमंत्री माननीय भपेश बघेल जी, प्रसिद्ध साहित्यकार,डॉ. परदेशी राम वर्मा जी, प्रख्यात भाषाविद् अउ छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पाठक जी, डॉ. विमल कुमार पाठक जी जइसे साहित्यकार मन हा पहुंच के क्षेत्र के साहित्यकार मन के मान बढ़इस. 







  कतको संगठन मा दायित्व ला निभाइस 


वर्मा जी हा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के प्रमुख सलाहकार, छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य परिषद् के कार्यक्रम मंत्री, छत्तीसगढ़ी साहित्य परिषद् राजनांदगॉव के जिला संयोजक, राष्ट्र भाषा प्रचार समिति उपाध्यक्ष, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर मा हिन्दी अध्ययन मंडल के अध्यक्ष रहे के सँगे सँग मनवा कुर्मी क्षेत्रीय समाज राजनांदगॉव के अध्यक्ष अउ सर्व कुर्मी समाज के उपाध्यक्ष के दायित्व ला बखूबी निभाइस.


घर परिवार के जिम्मेदारी ला गजब सुग्घर निभाइस 


वर्मा जी हा छोटे किसान परिवार ले रीहीस. अब्बड़ संघर्ष करके आगू बढ़े रीहीस हे. तीन भाई मा सबसे बड़े रीहीस हे. वर्मा जी हा बड़का भाई के फर्ज ला सुग्घर ढंग ले निभाइस. जब वोहा राजनांदगॉव मा पदस्थ रीहीस ता अपन छोटे भाई अउ छोटे बहिनी ला अपन तीर रखके बने पढ़इस -लिखइस .छोटे भाई हा जब दूसर करा काम मा जाय ता अपन गाँव फरहदा मा रोड जगह मा जमीन खरीद के दुकान खोले मा सहयोग करीन अउ आत्म निर्भर बने के प्रेरणा दीस. जब भाटापारा कॉलेज मा स्थानांतरण होके गीस तब हर सप्ताह माता -पिता के दर्शन करे बार अपन गाँव फरहदा 

जरुर जाय. अपन घर परिवार के प्रति वर्मा जी के मन मा अगाध प्रेम राहय.  22 फरवरी 2017 के उंकर माताजी के निधन होइस. 


2018 मा विधानसभा चुनाव के समय अति व्यस्तता मा वर्मा जी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ीस. 17 नवंबर 2018 मा बीमार पड़गे. रायपुर के मित्तल हास्पिटल मा 17 नवंबर 2018 से 1 जनवरी 2019 तक ईलाज चलीस. इही समय मेहा हमर पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया जिला राजनॉदगॉव के अध्यक्ष भाई शिव प्रसाद लहरे के संग वर्मा जी ला देखे बर हास्पिटल पहुंचेन. वर्मा जी हा हमर दूनो सँग 

सुग्घर गोठ -बात करीस. वर्मा जी हमर सँग अउ बहुत कुछ बात करना चाहत रीहीस हे पर स्वास्थ्य ला देखत उंकर पुत्र मयंक वर्मा हा जादा बात करे ले रोकीस अउ कीहिस कि ले पापा जब पूरा ठीक हो जाहू ता बहुत अकन बात कर लेहू ता इही जगह वर्मा जी हा कीहीस मेहा ठीक हवँ मयंक. मोला बात करन दे. कई चीज हा कई घांव बतात ले छूट जाथे. वर्मा जी हा इहां अपन कवर्धा स्थानांतरण के बात करत छत्तीसगढ़िया अस्मिता के चर्चा करत रीहीस हे. थोरकुन बात सुने के बाद महू हा केहेंव कि ले सर जी जब आप हा पूरा ठीक हो जाहू ता बहुत सारा बात करबो. अभी आप मन आराम करव. हमन गुरुदेव जी के आशीर्वाद लेके हास्पिटल ले बिदा लेन. 

 ये बीच मा वर्मा जी के स्वास्थ्य हा पूर्णत : ठीक नइ हो पाइस. 20,21,22 अप्रैल 2019 तक मित्तल हास्पिटल मा फेर ईलाज बर भर्ती होइस. 7 जून 2019 के फिर से स्ट्रोक मा अटैक आगे. निमोनिया घलो होगे. ये बीच मा वर्मा जी ला कोनो चीज ला गुटके मा परेशानी होय लागीस. 

12 जुलाई से 12 अगस्त 2019 तक अमलेश्वर मा ईलाज चलीस. 

 13 अगस्त 2019 मा अपन जनम दिन मा कॉलेज ज्वाइन करीस. अक्टूबर 2019 मा बेल्लोर (तमिलनाडु) जांच हेतु ले जाय गीस. उँहा के डॉक्टर मन हा कीहिस कि वर्मा जी आप बने हवव.

  27 मार्च 2021 मा वर्मा जी के पिता जी गुजर गे. वोकर ठीक एक महीना बाद  27 अप्रैल 2021 मा वर्मा जी हा घलो ये दुनियां ला छोड़ दीस. लॉकडाउन के समय कुछ नकारात्मक खबर हा घलो वर्मा जी ला तोड़े के काम करीन . ये बीच मा अपनों अउ 

अपन जान- पहचान के गुजरे ले वोला धक्का लागत गीस. काबर कि पहिली ले वोकर स्वास्थ्य हा पूरा ठीक नइ रीहीस हे. 

वर्मा जी हा अपन यश रुपी शरीर ले हमर बीच जीवित हवय. वर्मा जी पत्नी के नाँव श्रीमती मीना वर्मा, बेटा मयंक वर्मा अउ बेटी भुप्रिया वर्मा हे. श्रद्धेय वर्मा जी हा सरल, मृदुभाषी अउ उदार मनखे रीहीस हे.वोहा भाषाविद्, कुशल संपादक, बड़का विद्वान, दूरदर्शी,स्पष्ट वक्ता अउ छत्तीसगढ़िया व्यक्तित्व के धनी रीहीस हे. महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी के बारे मा उंकर कहना राहय कि " छत्तीसगढ़ी मा भाषा के सबो गुन हे. एक दिन वोला भाषा के दर्जा मिलके रहिही. "छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान खातिर लड़इया स्व. वर्मा जी ला पितर पाख म शत् शत् नमन है. 


        ओमप्रकाश साहू "अंकुर "

       सुरगी, राजनांदगॉव 

       मो.  7974666840

Tuesday 21 September 2021

छत्तीसगढ़ी ला पोठ करे बर समाचार पत्र के भूमिका का होना चाही*

 *छत्तीसगढ़ी ला पोठ करे बर समाचार पत्र के भूमिका का होना चाही* 


अभी आप अउ हम सब देखत आवत हन हमर छत्तीसगढ़ी भाखा अउ साहित्य हा कतेक पोठ अउ समृद्ध हे । हमर छत्तीसगढ़ी भाखा मा पहिली भी कतकोन कालजयी रचना लिखें गेय हवय अउ आज घलो लिखें जावत हावय । हमर छत्तीसगढ़ी भाखा देश विदेश अउ परदेश मा कोन्हों पहिचान के मोहताज नइये । हम सब झन जानत हावन कि कोन्हों भी भाखा के विकास म उँहा के साहित्य के कतका कन योगदान होथें । काबर कोन्हों भी भाखा ला आम बोलचाल म बउरे अउ लिखें मा बहुत फरक पड़थे । ओइसने हमर छत्तीसगढ़ी भाखा हा हें , जउन ला खुदे हमर अपन प्रदेश भर म सबो अंचल मन के हिसाब ले कई अलग - अलग बोली बनाके बोले जाथें ।  


अब हम गोठ करथन हमर छत्तीसगढ़ी ल पोठ करे बर समाचार पत्र मन के भूमिका का होना चाही ..................

आज हमर मन के बीच म आनी बानी के समाचार पत्र मन सब हावय जउन ला हमन रोजे देखत अउ पढ़त रहिथँन । वो अखबार मन पूरा हिंदी भाषा म ही होथें , आज हमर अपन प्रदेश के लोकल कोन्हों कोन्हों अखबार म अउ देश के एकात दू ठन अइसे नामी गिनामी समाचार पत्र हावय जउन मन सप्ताह म अउ महीना मा समाचार पत्र के एक ठन अंक ला छत्तीसगढ़ी बर राखें हावय । जउन अंक म उन मन छत्तीसगढ़ी भाखा के समाचार मन ला प्रकाशित करथें । दुःख के बात ये ह लागथे कि आज सबो परदेश मन के अपन अपन बोली भाखा मा प्रकाशित होवइया कई ठन समाचार पत्र हावय , अउ उँहा उंकर भाखा के समाचार पत्र सरलग प्रकाशित घलो होवत रहिथें । फेर येला हम अपन प्रदेश के पिछड़ा पन कहिन कि दुर्भाग्य कहिन की आज हमर अपन प्रदेश मा प्रदेश के अपन बोली भाखा के कोन्हों समाचार पत्र नइये । ये बात ला हम अइसने नइ कहि सकन काबर येखर बहुत अकन कारन हो सकत हे ।


बाकी कोनो भी भाखा होय चाहें साहित्य होय प्रकाशन ले बहुत पोठ अउ समृद्ध होथें ये मोर अपन निजी विचार आय । येखर बारे म अउ हमर सुजान बुधियार साहित्यकार मन ही बने ढंग ले बता पाही । हमर छत्तीसगढ़ी भाखा ला पोठ करे बर हमर अपन इहाँ के छत्तीसगढ़ी भाखा मा घलो रोज के (दैनिक) समाचार पत्र अउ पत्रिका प्रकाशित होना चाही । हमर इहाँ ले प्रकाशित होवइया देश के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्र पत्रिका मन मा घलाव रोज के (दैनिक) कम से कम एक अंक हमर छत्तीसगढ़ी समाचार पत्र बर आरक्षित होना चाही । तब जाके हमर अपन इँहा के मनखे मन ला हमर मातृभाषा हिंदी के संगे संग अपन महतारी भाखा मा सुग्घर समाचार पत्र पढ़े बर मिलही । तब जाके हम कहि सकथन कि हमर छत्तीसगढ़ी ल पोठ अउ समृद्ध करे मा समाचार पत्र वाले मन के भूमिका घलो बड़का हावय कहिके । 


आज अइसे नइये की हमर इहाँ ले प्रकाशित होवइया लोकल दैनिक समाचार पत्र मन के कमी हें । आज जिला - जिला म अलग अलग कइ ठन नाव ले समाचार पत्र मन के प्रकाशन होवत हावय , पूरा प्रदेश भर मा । फेर वोमन में अपन खुद के महतारी भाखा के नामो निशान नइ राहय , जउन बड़ दुःख के संग विचार करे के लइक बात आय । हम ये नइ काहँन कि हिंदी भाषा ले हमला कोनो द्वेष हें , हमर देश के हम सबो के मातृभाषा ये हमला वोकर ले आपार मया हे । ओइसने हमला अपन महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी ले घलो अन्तस् ले मया करना चाही , वोकरो समृद्धि के बारें मा हमला अउ समाचार पत्र वाले मन ला सोंचना चाहीं । छत्तीसगढ़ी ला पोठ करके आघू बढ़ाय खातिर छत्तीसगढ़ी मा समाचार पत्र पत्रिका प्रकाशन करे के संगे संग देश के प्रतिष्टित समाचार पत्र पत्रिका मन मा घलो सरलग छत्तीसगढ़ी भाखा ला स्थान दिलाना चाही , तब जाके समाचार पत्र के भूमिका छत्तीसगढ़ी भाखा के उत्थान बर कुछ समझ मा आहीं । 



              *मयारू मोहन कुमार निषाद* 

               *छंद साधक सत्र कक्षा - 4*

              *गाँव - लमती , भाटापारा ,*

सुरता-मुकुटधर पांडे ******

 सुरता-मुकुटधर पांडे 

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  पितर पाख सुरु होगिस त लोकाक्षर के एडमिन अरुण निगम जी ल  धन्यवाद तो देहे च बर परही के उन सुरता करवा दिहिन के पुरखा साहित्यकार मन ल आखर के अरघ देना चाही । 

     मुकुटधर पांडे के जनम 30 सितंबर 1895 ईस्वी , बालपुर जिला बिलासपुर मं होए रहिस । उन हिन्दी के जाने माने साहित्यकार आंय , छायावाद के जनक माने जाथें । छत्तीसगढ़ी भाषा मं उन कालिदास के संस्कृत कृति " मेघदूत " के छत्तीसगढ़ी भाषा मं अनुवाद करे हंवय फेर उन लिखे हें के एहर मेघदूत के छायानुवाद आय । 

 समय सुजोग आइस त भारत सरकार उनला पद्मश्री सम्मान दिहिस । रविशंकर विश्व विद्यालय रायपुर उनला डी . लिट् . के मानद उपाधि देहे रहिस । तपस्वी साहित्य साधक मुकुटधर पांडे 6नवम्बर 1968 के दिन धराधाम ल छोड़े रहिन । 

 उंकरे अनुदित रचना मेघदूत के चार आखर संग उनला आखर के अरघ देवत हंव ...। 

   " उत्तरमेघ " 

    बिजली इहां उहां हे सुंदर चंचल जुबती नारी , 

   इंद्रधनुष हे इहां बने हे चित्र उहां मनोहारी , 

   गर्जन हे गम्भीर इहां तो उहां मृदंग सुनाथे , 

   इहां भरे जल उहां झकाझक मणिमय भूमि सुहाथे , 

  तैं अकास मं उहां सरग ला चूमत शिखर बिराजे , 

  तोर बराबर महल उहां के हैं अनुपम छबि छाजे । 1 । 

     सरला शर्मा 

      दुर्ग

छत्तीसगढ़ी ला पोठ करे बर समाचार पत्र के भूमिका का होना चाही*

 *विषय - छत्तीसगढ़ी ला पोठ करे बर समाचार पत्र के भूमिका का होना चाही*



          *मुँह ले हम कोनो बोली भाँखा ल कतको कहि सुन डरन, फेर जब तक वोला कलम शब्द नइ देय, तब  तक वो बोली- भाँखा साहित्य के रूप नइ ले सके।* छत्तीसगढ़ी भाँखा के बारे म अपन विचार रखे के पहली कहूँ कि-जब हिंदी साहित्य के आधुनिक काल चालू होइस, अउ  अपन जुबान म बसे भाषा ल कलमकार मन पोथी म उतारिन ताहन का कहना , हिंदी के बढ़वार सतत होते गिस, अउ आज देखते हन हिंदी खूब फलत फूलत हे। हिंदी खड़ी बोली जब कागज म उतरिस त, वोला पढ़े बर कतको झन मन हिंदी सीखिन। उदाहरण बर सुरता आवत हे, देवकीनंदन खत्री के उपन्यास *चन्द्रकान्ता(1888),*  ये अतिक प्रसिद्ध अउ नामी होइस कि जउन मन हिंदी नइ जानत रिहिस तहू मन, वोला पढ़े बर हिंदी भाषा ल सीखे के उदिम करिन। भारतेंदु, राजा लक्ष्मण सिंह, जगन्नाथदास रत्नाकर,श्रीधर पाठक, राधाचरण गोस्वामी,बद्री नारायण चौधरी प्रेमधन, बालकृष्ण भट्ट, बालमुकुंदगुप्त,प्रतापनारायण, ठाकुर जगमोहन सिंह, राधाकृष्ण दास,लाला भगवान दींन, प्रेमचंद-------जइसन कतको अउ मूर्धन्य साहित्यकार मन  हिंदी भाषा म खड़ी बोली ल स्थापित करे बर जी जान लगाके भाषा के सेवा करिन। ये सब साहित्यकार मन साहित्य के संगे संग हिंदी भाषा ल  सब तीरन पहुचाये खातिर पत्र पत्रिका घलो निकालिन, जेखर ले भाषा के बढ़वार दुगुना होय लगिस।  छत्तीसगढ़ी भाषा म घलो साहित्य के संगे संग पत्र पत्रिका बरोबर देखे बर मिलथे, हमर पुरखा साहित्यकार-भाषाविद  मन साहित्य रचे के संगे संग छत्तीसगढ़ी भाषा ल सब तीर सहज पहुँचाये बर पत्र पत्रिका के सहारा लिन, जेमा खबर, कहिनी, लेख, कविता अउ ज्ञान विज्ञान के बात समाहित रहय। अंचल के समाचार अउ कवि लेखक मनके विचार लेख, कविता ल जन जन तक पहुँचाये बर कतको हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के अखबार निकलिस, जेखर ले हमर छत्तीसगढ़ी भाँखा के विकास होइस अउ आजो घलो पत्र पत्रिका, साहित्य, रेडियो, टीवी, सम्मेलन आदि के माध्यम ले सतत होवत हे। 

              छत्तीसगढ़ म पत्र पत्रिका के जनक के रूप म माधवराव सप्रे जी ल जाने जाथे, जे वामनराव लाखे अउ रामराव चिंचोलकर के सहयोग ले सन 1900 म, गौरेला पेंड्रा ले *छत्तीसगढ़ मित्र* नामक मासिक पत्रिका निकालिन। 1955 म मुक्तिबोध जी के सम्पादन म रायपुर ले *छत्तीसगढ़ी* नामक मासिक पत्रिका निकलिस। रायपुर ले ही श्री सुशील वर्मा जी के सम्पादन म *मयारू माटी* अउ श्री रंजन लाल पाठक के सम्पादन म *छत्तीसगढ़ सहयोग* नामक पत्रिका जन जन तक पहुँचिस।  डाँ विनय कुमार पाठक जी के सम्पादन म बिलासपुर ले *भोजली, धान के कटोरा, चिंगारी के फूल* अउ सन 1998 म श्री नन्दकिशोर तिवारी जी के सम्पादन म *लोकाक्षर* जइसे लोकप्रिय समाचार पत्रिका हिंदी के संगे संग छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर समर्पित रिहिस।  सुधा वर्मा जी के सम्पादन म *मड़ई*,  शकुंतला तरार जी के सम्पादन म *नारी सम्बल*, दुर्गाप्रसाद पारकर जी के संपादन म  *लोकमंजरी*, जयंत साहू जी के सम्पादन म  *अंजोर,* विश्वनाथ वैशम्पायन जी के सम्पादन म  *विचार समाचार*, तुकाराम कंसारी जी के सम्पादन म  *राजिम टाइम्स* जइसे अनेक मासिक, त्रैमासिक अउ साप्ताहिक समाचार पत्र पत्रिका लोकप्रिय होइस। श्याम वर्मा जी के संयोजन म  *मोर भुइयां* जइसे रेडियों पत्रिका घलो छत्तीसगढ़ी भाषा ल पोठ करे बर सतत लगे हे। साहित्यिक पत्रिका साहित्य बर समर्पित होथे, तभो आज सोसल मीडिया अउ रंग रंग के आधुनिक चीज आय ले माँग कमती होय हे।

                 समाचार पत्र मन म घलो छत्तीसगढ़ी भाषा म एक साप्ताहिक कालम आथे। दैनिक भास्कर म सूर्यकांत चतुर्वेदी जी के सम्पादन म *संगवारी*, पत्रिका म गुलाल वर्मा जी के सम्पादन म  *पहट*, हरिभूमि म डाँ हिमांशू द्विवेदी जी अउ डाँ दीनदयाल साहू जी के सम्पादन म *चौपाल*, नवभारत म डाँ पालेश्वर शर्मा जी के सम्पादन म *गुड़ी के गोठ*, अमृतसन्देश म तुकाराम कंसारी जी के सम्पादन म  *अपन डेरा*, देशबन्धु म परमानंद वर्मा जी के सम्पादन म  *डहर चलती बेरा बेरा के बात*,  *चैनल इंडिया*  म डाँ स्वराज करुण जी के सम्पादन म साहित्य विशेष अंक पढ़े सीखे बर मिलथे। एखर आलावा *आरुग चौरा, लोकसदन, कान्यकुब्ज, महाकौशल, लोक वाणी, बस्तरिया* जइसे अउ कतको नवा जुन्ना आंचलिक पत्र पत्रिका निकलिस अउ कुछ निकलते हे, जे छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर प्रत्यक्ष अउ अपत्यक्ष रूप ले समर्पित हे। साहित्य के  धार जन जन तक इही सब पत्र पत्रिका के माध्यम ले पहुँचथे, जेखर ले भाषा बोली के संगे सँग मनखे अउ देश राज के घलो विकास होथे। 

            हमर महतारी भाँखा छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर हमर पुरखा मन खूब महिनत करिन, अब हमर बारी हे। आज  के समय म नवा नवा  साहित्य तो छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर जरूरी हे ही, संगे संग पत्र पत्रिका के घलो अहम भूमिका हे। समाचार पत्र मन म ज्यादातर देखे बर मिलथे कि साहित्य विशेष पृष्ठ भर छत्तीसगढ़ी भाषा म होथे, बाकि पेज नही। संगे संग आज के समय अनुसार मानक छत्तीसगढ़ी रूप के घलो अभाव दिखथे। विकृत अउ अपभ्रंश शब्द के मोह अभो नजर आथे। छत्तीसगढ़ी भाषा सिरिफ  गीत कविता परोसे ले समृद्ध नइ होय, चिंतन, मनन,खेल कूद अउ ज्ञान विज्ञान के समायोजन घलो जरूरी हे। साहित्य म सबे विधा के संगे संग साहित्य के स्तर ऊपर सम्पादक मंडल अउ साहित्यकार दुनो ल धियान देना पड़ही। आज ई पत्रिका के समय हे, जेला सालों साल सहजे जा सकत हे, जे सोसल मीडिया म लगातार छाये रहिथे, अइसन म छत्तीसगढ़ी म समाचार ल बढ़ाये अउ सिरजाय के जरूरत हे। *वइसे तो हिंदी ल हर छत्तीसगढिया पढ़ के समझ जाथन, तभो जब अपन महतारी भाषा के बात आथे त, निरवा छत्तीसगढ़ी म  समाचार के आवश्यकता मससूस होथे।* यदि छत्तीसगढ़ी म समाचार सिरजाये जाही त छत्तीसगढ़ी भाषा के जानकार मनके माँग बढ़ही, अउ जब मनखे के माँग बढ़ही त, भाषा के घलो बढ़वार होही। *समर्पण कहिके कतको चिल्ला डरन, एक-दू-तीन- चार समर्पित आदमी जरूर मिल जही, जे छत्तीसगढ़ी बर निःस्वार्थ लगे हे, फेर जब तक छत्तीसगढ़ी रोजगार म नइ जुड़ही लोगन के रुझान बढ़ नइ सके।*  *अंग्रेजी म अवसर हे, रोजगार हे ,तेखर सेती ओखर बोलइयाँ, जनइयाँ बढ़ते जावत हे।* अपन राज म छत्तीसगढ़ी के महत्ता ल बढ़ाके महतारी भाषा के मान अउ माँग बढ़ाये जा सकत हे। आज के युग म संचार क्रांति अउ ज्ञान विज्ञान के बढ़वार के सेती, मनखें मन बहुभाषी होवत हे, अइसन म छत्तीसगढ़ के रोजगार, पत्र पत्रिका, पढ़ई लिखई छत्तीसगढ़ी म होय। *अपन राज म छत्तीसगढ़ी, भारत भ्रमण बर हिंदी अउ विश्व के बात करन त अंग्रेजी ये त्रिफार्मूला म चिंतन करना पड़ही।*

                  ज्यादातर देखे बर मिलथे, पत्र पत्रिका म कोनो साहित्यकार के लेख, कविता छ्पथे त वो पेज ओखरे बर महत्व के होथे, बाकी मन पढ़े घलो नही, यहू चिंतनीय हे। साहित्य म सा-हित के क्षमता होय, सबके मन ल लुभाय, सबके ज्ञान बढ़ाये, ये दिशा म चितंन अउ काम करना पड़ही। छत्तीसगढ़ी म छपत समाचार पत्र पत्रिका मन ल सरकारो ल बढ़ावा देना चाहिये। जइसे हिंदी अन्ग्रेजी म शब्द शुद्धता अउ एकरूपता दिखथे, वइसने छत्तीसगढ़ी म घलो जरूरी हे। मानकता भाषा के विकास बर आवश्यक हे। पत्र पत्रिका मनके लोकप्रियता बने रहय ये दिशा म प्रयास जरूरी हे। कतको पत्रिका पूरा के पूरा छत्तीसगढ़ी भाषा म घलो निकलथे, फेर आज ओखर माँग नइ हो पावत हे, सम्पादक मंडल खर्चा ल वहन नइ कर पावत हे। अइसन म समर्पण के दिन तक रही? आखिर म एके रद्दा बचथे-कलेचुप बैठ जाना। माँग के हिसाब ले उपज काम आथे, माँगे नइ रही त उपज ल का करबों, अउ कहूँ छत्तीसगढ़ म  ही छत्तीसगढ़ी के माँग नइ रही त, भला अउ कहाँ रही। छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर वइसे तो मनखें संग पत्र पत्रिका ल घलो निःस्वार्थ काम करना चाही, फेर आज के समय म बिना कुछ अर्जन के सम्भव नइ हे। नाना प्रकार के संचार क्रांति के चलते प्रतियोगिता  के दौर आगे हे, अइसन म कोन पत्र पत्रिका रही कोन नइ रही, यहू कह पाना मुश्किल हे। कतको इही सब के कारण बन्द होगे, कतको ले देके छपत घलो हे। एक जमाना रिहिस जब पत्र पत्रिका पढ़े बर दुकान या ठेला म अपन बारी जोहे बर पड़त रिहिस, इही क्रांति पैदा करत रिहिस, फेर आज नवा जमाना म, पत्र पत्रिका खुदे अधर म हे। तभो स्थापित अउ जम्मो पत्र पत्रिका ल छत्तीसगढ़ी भाषा के बढ़वार बर छपे साहित्य अउ कोनो ज्ञान विज्ञान के बात के स्तर, शुद्धता अउ मॉनकता ऊपर धियान देना चाही। *साहित्यकार ले बढ़के सम्पादक होथे।* साहित्यकार लिख दिस अउ सम्पादक जस के तस छाप दिस यहू सबे लेख, कविता म नइ होना चाही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी ल पोठ करे बर समाचार पत्र के भूमिका का होना चाही?*

 *छत्तीसगढ़ी ल पोठ करे बर समाचार पत्र के भूमिका का होना चाही?* 

      पोखन लाल जायसवाल


         आज सरी दुनिया मोबाइल अउ कम्प्यूटर ल धरे सोशल मीडिया के मया म फँसे हावय, सोशल मीडिया के दिवाना हे। कोनो किसम के घटना दुर्घटना जंगल म लगे आगी सहीं तुरते फइल जथे। कभू कभू तो कई ठन समाचार मन ऊपर विश्वास घलव नइ होवय। फेर भोरहा घलव हो जथे। एक समे रहिस जब समाचार रेडियो टीवी अउ समाचार पेपर ले मिलय। फेर कोन जनी दुनिया विज्ञान के आगू अउ कतेक सिमटही ते? चाहे कुछु होवय समाचार पत्र (पेपर) के महत्तम न घटे हे न घटय। काबर कि होत बिहनिया चाहा के चुस्की के संग समाचार पत्र पढ़े के मजा आनंद अलगेच हे। तभे तो सबो ल घर म अवइया पेपर के अगोरा रहिथे। गँवई-गाँव मन म आजो कतकोन दूकान, पान-ठेला अउ होटल म बिहनिया ले पेपर पढ़इया मन के भीड़ देखे ल मिलथे। पेपर के पन्ना मन ल अलग अलग ओसरी-पारी पढ़त रहिथे। कतको झन यहू ताकत रहिथे के कब मढ़ाही त कब झप ले उठा के पढ़हूँ। 

       समाचार पत्र मन म छत्तीसगढ़ी म पढ़े के समाग्री देखब म कम मिलथे। आज टीवी अउ रेडियो म छत्तीसगढ़ी के कार्यक्रम मन के संख्या पहिली ले कुछ बाढ़े हे फेर समाचार पत्र म अइसन नइ होय हे। यहू ह सोचे के बात आय।

         अपन छत्तीसगढ़ राज के स्कूली पाठ्यक्रम म अपन छत्तीसगढ़ी भाखा म कोनो किताब पढ़े ल नइ मिलय, यहू ह हम छत्तीसगढ़िया मन के संग छलावा आय। जब सरकार ह खुद नइ सोचत हे कि छत्तीसगढ़ी के विकास होय छत्तीसगढ़ी पोठ होवय त समाचार पत्र वाला मन ले आशा करई ह जादती हो जही सहीं लागथे। काबर कि सबो ल अपन कमई के चिंता रहिथे। आज लीक के हट के जोखिम उठाय के कोनो हिम्मत नइ करत हे। तरह-तरह के नवा-नवा समाचार पत्र मन के छपना ह साबित करथे के समाचार पत्र के दिन  फिरे नइ हे। फेर नवा नवा समाचार पत्र म घलव छत्तीसगढ़ी ल वइसन जगहा नइ मिलत हे, जे ओला मिलना चाही।

      प्रदेश के आने आने जिला / क्षेत्र मन ले छपइया सबो समाचार पत्र जतका अँग्रेजी छाप लेथें, ओतका छत्तीसगढ़ी ल नइ छापँय। 

        तइहा के बात अलग रहिस, अब जब चुनाव प्रचार छत्तीसगढ़ी म खूब होथे अउ पसंद करे जाथे त का छत्तीसगढ़ी म लिखाय समाचार ल लोगन पसंद नइ करहीं? खच्चित करहीं। आज तो समाचार पत्र म छत्तीसगढ़ी ल साहित्यिक पेज भर म जगहा मिलत हे। जेकर पढ़इया सिरिफ साहित्य म रुचि रखइया पाठक मन ह हवय। कहूँ छत्तीसगढ़ी म समाचार छापे के शुरुआत करहीं त निश्चित करके समाचार पढ़इया के संख्या बाढ़ही। अउ छत्तीसगढ़ी सरलग बउरे जाही। समाचार पत्र के मालिक अउ संपादक मन ल जरूर विचार करना चाही के छत्तीसगढ़ म छपइया पत्र म कम से कम प्रदेश अउ क्षेत्र ले जुरे समाचार ल छत्तीसगढ़ी म छापँय। अइसन करके क्षेत्र के मनखे ले जुरे के उदिम करँय अउ छत्तीसगढ़ भुइँया म रहिके छत्तीसगढ़ी ल पोठ करे म सेवा देवँय। 

      साहित्यिक पत्रिका समाचार पत्र के श्रेणी ले अलगे होथे। एकर ले पत्रिका जेन भाषा के होथे, वो भाषा सरलग पोठ होथे। एमा मोर मन म कोनो प्रकार के भरम नइ हे। साहित्यकार अपन रचना मन के माध्यम ले भाषा के शब्दकोश ल बचाय म बड़ भूमिका निभाथे। इही ढंग ले समाचार पत्र के संपादक समाचार मन के संपादन करत छत्तीसगढ़ी भाषा ल पोठ करे म योगदान दे सकत हें। उन मन हर दिन छत्तीसगढ़ी भाषा बर पेज चुनँय अउ इहाँ के संस्कार, रहन-सहन अउ परंपरा ले जुरे गोठ बात घलव ल जगहा देवँय, तभे छत्तीसगढ़ के नून के करजा चुका पाहीं।

    पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी जिला बलौदाबाजार

छत्तीसगढ़ी ल पोठ करे बर* *समाचार पत्र के का भूमिका होना चाही*


*छत्तीसगढ़ी ल पोठ करे बर* *समाचार पत्र के का भूमिका होना चाही* 


छत्तीसगढ़ के  सबो समाचारपत्र - पत्रिका मन के छत्तीसगढ़ी भाषा बर वर्तमान सोच लइका भुलियारे असन हे|

कोन्हों के प्रयास हर पूर्ण समर्पण के ओर नइ हे| परिवर्तन प्रकृति के मूल नियम हे| अउ *ए दिशा म आगर ल कोन कहय छपछप प्रयास तको नइ होय हे|* 

  जब तक कोनो बोली भाषा ल राजकीय  संरक्षण नइ मिलही वोखर विकास नइ हो सकय|

समाचार पत्र मन प्रमुख सचेतक माने जाथे| और समस्या के निवारक मन के ध्यान खिचइया और मनखे समाज ल रददा देखइया , पाहरा देवइया आए | *कतकोन अखबार मन और उंकर समाचार मन घलो छपे के पहिलीच बिक जाथे* | 

थोकन पाछू इतिहास डहर नँजर किंदराय म पता चलथे के  आजादी के समर म एक शब्द अंग्रेजी सरकार के विरोध म लिखदे जावय तव पुरा देश म क्रांति के लहर दौड़ जाय| कतकोन क्रांतिकारी पैदा हो जावँय| अँगरेज मन रातों रात छापा मार के प्रेस ल सीलबंद कर देवँय | तव एखर प्रभाव सभो क्षेत्र म होवय | केसरी म छपे, लिखे लेख के कारन  पं. माधव राव सप्रे जी ल जेल जायबर परगे | पंडित सुंदर लाल शर्मा जी जेल पत्रिका  हस्तलिखित श्री कृष्ण स्थली नाव के माध्यम ले आंदोलन अउ  क्रांति के संदेश आम जन तक पहुँचाइन| पं माखन लाल चदतुर्वेदी जी के पुष्प के अभिलाषा जब छपीस तव 

जघह  - जगह जुलुस और मार्च निकाल के सुराज बर आंदोलन करिन| चतुर्वेदी जी ल जेल म बंद कर दे गइस|अभो दैनिक समस्या के अंबार हे,भरमार हे| फेर छत्तीसगढ़ी म छपे समाचार ल आइकान , सेलीब्रिटी अउ माडल के जरुरत नइ हे | 

        एखर बर इहाँ के पुरखा और लोक नायक मन के इतिहास और गौरव गाथा मन काफी हे| जरुरत हे तव ईमानदारी के संग छत्तीसगढ़ी भाषा ल स्थान देना हवे|

छत्तीसगढ़ म जन्मे अउ पढ़ेबले पत्रकारिता के बारे म जनारो होए, जरुरत हावय ए क्रम म चंदुलाल चंद्राकर जी के पत्राकारिता के बारे म जानन,परम श्रदधेय  चंदुलाल चंद्राकर जी दूसरइया विश्वयुद्ध के समय ले पत्रकारिता के शुरुआत करिन| युद्ध के बीच म घुस जावँय, अपन जीव ल जोखिम म डार के समाचार कवर करँय| लगभग सबो देश के यात्रा करत उन सुग्घर रपट देवँय| उमन अपन अंचल के घलो घातेच मया करँय| गाँव के समस्या अउ माँग ल प्रमुखता ले उजागर करँय| सन1945 ले 1980तक पत्रकारिता के रणभूमि म खूब लहू बहाइन| सरलग नौ ओलंपिक खेल अउ तीन  एशियाई खेल महाकुंभ के रिपोर्टिग करिन|उन दैनिक हिंदुस्तान के संपादक रहिन| देश के बहुत अकन समाचार पत्र - पत्रिका  मन बर आलेख लिखँय|अइसन उदिम करे ले कोनो भाषा हर जनमन तक  कइसे  नइ पहुँचही | के उंखर आवाज नइ बनही| काबर भाषा के विकास नइ होही|

        अइसन समर्पित अउ जुझारु रिपोर्टर छत्तीसगढ़ी समाचार पत्र मन  खातिर घलो होना चाही| जउन हर बस्तर के बीहड़ अबूझमाड़ ले घलो समाचार ला सकँय , ज्वलंत मुद्दा ल छत्तीसगढ़ी म लिख सकँय छाप सकँय| समाचार पत्रिका के भी पन्ना मन आने समाचार पत्र पत्रिका मन कस  गुढ़ मेटर के संग आकर्षक रहँय| शीर्षक रंगीन रहँय| छत्तीसगढ़ी लोकोक्ति, मुहावरा ले संत-महापुरुष मन के वाणी ले सुसज्जित रहय| 

    *संपादक मंडल म छत्तीसगढ़िया परम्परा, संस्कृति , अस्मिता के बुधियार विज्ञ ,विभूति, साहित्यकार मन रहँय|उंकर सम्पादन ले निखरे भाव - विचार* *हर जनमानस तक जावय* | *छत्तीसगढ़िया गद्यागत्मक शैली के संग सबो किसम के समाचार देश -विदेश, अपन राज अउ क्षेत्र - परिक्षेत्र विशेष के संकलन राहय| लोक* *संस्कृति, लोक साहित्य, लोक कला के संग बाल गीत कविता कहानी ले सजे रहय|* 

फिल्म जगत छालीवुड, बालीवुड के थोकन चटक मसाला भी रहय | पढ़इयामन बर छत्तीसगढ़ी म  नायक - नायिका मन के कहनी भी रहय| 

 *अभी समाचार पत्र मन के रुख ल देखबे तव अइसे लगथे जना- मना छत्तीसगढ़ी भाषा बर उपकार करत हें| कोने भी पत्रिका मन सरलग एक सप्ताह ,एक दू पन्ना घलो नइ छापँय| विशेषांक छापथें| सबो पत्रिका के संपादक मन ले अनुरोध हे कम से कम दू पृष्ठ रोज छापँय|  सप्ताह में तीन दिन  छत्तीसगढ़ी विशेषांक छापँय| हो सके तव विशुद्ध छत्तीसगढ़ी दैनिक छपय|* 

            फेर ए समाचार पत्र-पत्रिका मन के संपादक मन के घलो खियाल राखे ल परही| छपाई खाना बड़ माहँगी अउ जोगसन के जिनीस होथे|

   " *सब जाने हीरे - हीरा अपन होय जनाथे दुख पीरा* "


फेर इहू बात के धियान होय के समाचार का जिनिस हर बनय, परमुख शीर्षक ,कउन पन्ना म छपे कतका अंक प्रकाशन म आवय|

परदेश म बगराय के जिम्मे दारी हर सुनिश्चित रहय| छत्तीसगढ़ी रिपोर्टर हर ब्लाक जिला म होय| पाठक मन तक छत्तीसगढ़ी समाचार पत्र - पत्रिका मन सही समय अउ सही स्थान म पहुँचय| स्कूल - कालेज के विद्यार्थी मन ल पुस्तकालय म सरलता अउ सहजता ले उपलब्ध होवय| ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगरनिगम  और  जिला पंचायत मन के काम- काज के जानकारी,विज्ञापन ,के कारज बर 

छत्तीसगढ़ी भाखा म लिखाय मेटर, हर समाचार पत्रिका मनबर उपयोगी हो सकत हे | ए सब सरकारी कार्यालय मन ल अनिवार्य कर दे जावय के छत्तीसगढ़ी पत्रिका जरुर मँगावँय, समय  निकाल पढँय और व्यवहार करँय| काबर के सबो संस्था के हितग्राही और ग्राहक छत्तीसगढ़िया हावें| मूल भावना ल प्रोत्साहन मिलही तव सब किसानन मन घलो अपन खातू - माटी,खेती -किसानी के सरकारी योजना के बात ,जानकारी और समस्या ल खोज के पढ़ सकत हें| कहे के मतलब हे सबो किसम के आर्थिक और रोजगार मूलक तथ्य मन ल शामील करे ले छत्तीसगढ़ी भाखा के बढ़वार बर समाचार पत्र मनके महती भूमिका हो सकत हे|


 अश्वनी कोसरे कवर्धा कबीरधाम