Saturday 18 September 2021

पखरा ले उठे आगी : किशोर उपन्यास - श्री रामनाथ साहू

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            *पखरा ले उठे आगी( किशोर उपन्यास )*

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                                - रामनाथ साहू


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                          (1)

    

        

                     असल म ये  ढुलबांदर मन उपर कई दिन ले फुलझर के नजर गड़े रहिस । येहू मन ल धर- बांध के पोसवा बना डार थेन, तब येहू मन कमिलहा हो जाथिन ।अइसन वोहर बड़ गहराई ल गुने...!


                 अभी तक ल हमन अभी तक दु चार ठन छेरी मन ल भर पोसवा बनाय सके रहेन । हमर बाप -ददा मन तो पथरा के अलदा म घुसर के अपन जीवन ल पहा दिन,फेर अब हमन वो गुफा मन ल छोड़ के मैदान म आ गय रहेन ।शील रक्षा बर कुछु -कुछु ल  शरीर म लपेटत घलव रहेन। ये बुता बर कोई कोई रुख -राई मन के चौरस पाना मन बढ़िया बने ,त कभू कोई कोई रुख मन के छाल हर भी  जम जाय । कभु  मिरगा असन जीव मन के खाल ल छड़ा के घलव बउर लेवत रहें हमन । 


                  अतका दिन तक ल अपन -अपन हिसाब के नारी संगवारी मन करा मया- पिरीत बड़ौवत हमन परिवार असन जिनिस रच डारे रहेन । ये पाय के नारी मन के उपयोग बर बड़े छाल या खाल के जरूरत परे।फेर हमर घर के हर नावा चलागत चलाय रहिस हे,वोहर दु ठन छाल ल तरी उपर कर के पहिरे के  शुरू करे रहिस। अइसन पहिरे ले वोहर अउ जादा बढ़िया अउ सुंदर लागत रहिस अउ शील रक्षा हर घलव बढ़िया होवत रहिस ।


                 हमर घर के ल बलाय बर मंय मोर मुहु ल एक पईत 'रुनु ' पद हर निकले रहिस। वो दिन ले मंय वोला वइसनहेच रुनु कहके बलावंव । मोर देखा हिज़गा फुलझर अपन संगवारी ल झुनू कहके बलॉय ।


                 फेर एती तो झुनू हर दु के जगहा तीन टुकड़ा ल बउरे के शुरू कर देय रहिस।एकठन ल वोहर अपन मुड़ उप्पर म राखे के शुरू कर देय रहिस। झुनू ल अइसन करत देख के मोर आँखी हर भर गय,मुड़ ढकाय वोहर बड़ सुग्घर अउ सुशील लागत रहिस। वोला अइसन देखे के बाद वोकर बर मोर  मया हर पलपला गय अउ वोहर मोर अपन निज बहिनी कस लागिस।


                शुरू करे रहिस रुनु हर फेर झुनू के तीन टुकड़ा वाला पहनावा -तरी उपर अउ मुड़ म हर सब्बो नारी परानी मन बर आदर्श बन गय रहिस अउ वो सब मन अइसन तीन ठन वसन धारण करे के शुरू कर देय  रहिन । अब सब नारी मन के अधिक से अधिक शरीर मन हर ढँका के अद्भुत आकर्षण के रचना करत रहिन।शरीर ढकाय के एक ठन अउ फायदा होइस कि अब हमन के बीच म थोरकून शांति अउ व्यवस्था हर जगहा बनाइस।अब हमन पशु मन ले थोरकून अच्छा रहत हवन अइसन ,लागत रहय ।

                        

                       (2)


             फुलझर अबले घलव ढुलबांदर मन ल कूदातेच रहिस। वोला लागत रहिस कि येहू मन ल अपन तीर म राख के कुछु... कुछु  बउरबो ।येहू मन चौक चाकर म जबरजस हें। अतका दिन तक ल हमन गोठियाय बर भासा असन जिनिस बना डारे रहेन -

"कइसे फुलझर तँय, ये ढुलबांदर मन ल काबर देख मरत हस।" मैं पूछें ।

"शेरू भई, ये मन ले वो लकरी मन ल तिरवाबो ।"फुलझर कहिस ।

"ठीक भई, मंय तो ये लकरी ल पथरा म घस के चन्दा अस(गोल) कर डारे हंव।अउ चोंची पथरा म मंझ म कान असन (छेद) कर डारे हंव। अउ येमन ल  अइसन दुनों हाथ ल मिलाय(जोड़े)असन करहां कहत हंव ..."

"कइसन...?"


                मंय वोकर गोठ के कुछु भी ओझी नि देंय अउ अपन छितका कुरिया असन घर भीतर घुसर गंय। घर -भीतर ल जब  वापिस निकलें ,तब मोर हाथ म कच्चा माटी के बनाय ,गाड़ी असन जिनिस रहिस।

"का ये येहर...!"फुलझर के आँखी म अब्बड़ अकन अचरज के भाव हर दिखत रहिस।

"माटी के गाड़ी...!" मैं कहें।

"गाड़ी...!! ये नावा जिनिस का ये भई...?"

"हाँ...आज ल अइसन जिनिस ल हमन एई पद म जानबो ।" मैं कहें अउ फुलझर ल वो मोर मन के कल्पना ल ,जउन ल मंय मैं माटी म उतारें रहें,फुलझर ल पूरा समझाय।जब फुलझर समझिस तब तो वोकर आँखी म एकठन अद्भत चमक आ गय। मैं वोला पूरा के पूरा बुता ल समझाय,जउन हर मोर मन म रहिस। कइसे लकड़ी के चन्दा असन दुठन कुटीन ल जोड़ के गाड़ी बनाबो अउ वोमे आसानी ले समान लकरी फाटा डोहारबो ।


                   (3)


         कल्पना मोर रहिस फेर पुरुषार्थ हर फुलझर के...तीन चार दिन ल वोइच बुता म गड़े रहे के सेथी फुलझर हर लकड़ी के कुटी मन ल घस घस के चन्दा असन बना डारे रहिस ।येमन  ल देखत वोला कोन जानी  का सूझिस अउ वोकर मुँहू ले गोल... गोल पद हर सुनई परिस।महुँ ल ये पद हर बने लागिस।अब महुँ  गोल गोल कहे के शुरू कर देय रहंय । अइसन किलबोल गोल गोल गोल ल सुनिन तब रुनु अउ झुनू दुनों झन निकल आइन अउ वो दुनो झन हमन के मुँहू ल देखे लॉगिन ।अब वो दुनो झन घलव हाँसत हाँसत गोल गोल कहे के शुरू कर दिन। अब अइसन चन्दा असन दिखइया  जिनिस मन ल हमन गोल गोल कहन अउ हांसन ।

 

             फूलझर वो लकरी के गोल कुटी मन ल ,कोन जानि का सूझिस फेर चका... चका कहत भुइँया म ढुलाय लागिस ।वो गोल मन ल ढुलात अउ चका... चका सुनत महुँ ल बने लागिस ,ये पद हर। महुँ वोमन ल चका चका कहत ठीक वसनहेच ढुलाय लागें । अब तो ये गोल गोल ल देखन तब हमन चका... चका कहन।फेर रुनु झुनू अउ आन आन मन ये दुनों गोल मन ल चक्का कहे के शुरू कर देय रहीन।

         

             हमन के मंझ म एकझन जादा मुहँ ल अइंठ के गोठियाने वाला विपरु रहिस ।वोहर मोला ये गोल गोल  चका चका ल ढूलात देखिस तब शुरू हो गय जीभ ल अईंठ के  कहे बर... चकरा चकरा चक्रा चक्र ।

फेर तो  मंय जोर से कहें चका चका चक्का।

"चकरा चकरा चक्रा चक्र ..."

 "चका चका चक्का..."

 "चकरा चकरा चक्रा चक्र ..."

 "चका चका चक्का..."

  "चकरा ..."

 "अरे चुप...!"मंय कहेंव,"येला हमन बनाय हावन, अउ येला हमर मन लागही तइसन कहबो...चक्का बस...!"

            

           फेर तो वोती दुनों झन के बात हर बगर गय अउ जेकर मन लागे, तेहर येला चक्र कहे अउ  जउन ल सहज सरल कहे के मन लागे तउन हर बड़ मजा लेके चक्का कहे।

      

              फुलझर हर मोर माटी के कल्पना ल साकार कर देय रहिस।मंय मति म जउन गाड़ी असन जिनिस के नमूना बनाय रहें तुन ल वोहर लकड़ी मन ले बना के वो दुनो चका चका चक्का मन ल लगा देय रहिस।


                गाड़ी असन जिनिस बन गय रहिस,अउ तीर धकेल के देखेन।रुनु झुनू अउ सब  देखिन ।हमन दुनो झन  म एक झन गाड़ी ल तीरत रहेन तब एक झन ढकेलत रहेन। मैं हाथ ले  इशारा कर के रुनु अउ झुनू दूनों झन ल येकर उपर म चढ़े  बर कहेंव। रुनु तो डर के मारे किकियात पीछू कोती भाग गय फेर झुनू हर हिम्मत कर के आ चढ़िस। अब हमन दुनों झन खींच ढकेल के वो दुनिया के पहिली गाड़ी ल कुदायेंन। झुनू तो मारे आनन्द के किकिया उठिस-असल म हमन थोरकून ढालू  भुइँया ल पा गय रहेन।

         

           येती कोरी खईरखा मनखे ठुला गय रहीन। कनहु हमन के ये पिचकाट ल देख के मुँहू ऐंठत रहें त काकरो आँखी म सत्कार के भाव घलव रहे।

     

                फेर तो फिरती बेरा म चढउ परे के सेथी गाड़ी ल लानना मुश्किल लागिस ,तब तो झुनू हर तरी उतर के खुद फुलझर के संग ढकेले लागिस।मंय तो गाड़ी ल तिरतेच्च रहंय ।



(सरलग )


( 4 )


            मंय अपन घर कोती ल निकलें। घर का ये अलवा -जलवा लकरी अउ बांस मन ल खूंटिया के बछराज के डोर असन जिनिस म बांध के कइंचा माटी भर हर छबाय हे । ऊपर -लकरी के ऊपर म बहुत अकन छीन अउ ताल पान मन बढ़िया जमाय गय हे। येहर हमर घर ये -रुनु अउ मोर ।आन मन घलव मोर असन हे,फेर हमन के घर हर आन मन के घर ल बड़खा हे, चउक -चाकर म ।अउ रुनु हर येला तो छीन पान ले बने बहिरी असन जिनिस म बाहरतेच रइथे ।ये पाय के ये घर के चिलक आन मन ल थोरकून दूसर दिखबे करथे ।


                बाहिर मंय आंय अउ देखें कि फुलझर आगु अपन घर के  मुँहटा म खड़े हे।फेर वोकर चेहरा -मुंदरा थोरकून अच्छा नि दिखत ये।

" कइसे का होइस...!"मंय वोला ललकारत पूछें,"तोर सदा काल परसन रहइया मुख हर थोरकून कुम्हलाय कस काबर दिखत हे ,बाबू ?"

"......"

"कइसे का हो गिस..!!" अब तो मैं अकबका गय रहें।

"झुनू हर नि खाय ये..."

"झुनू हर नि खाय ये,फेर काबर ...!"महुँ घलव तड़प उठें,येला सुनके;आखिर झुनू हर मोर बहिनी घलव तो ये ।

"वोहर खाय बर नि पइस ।"फुलझर बड़ पीड़ा लेके कहिस।

"कइसे खाय बर नि पइस ?"

"नि पइस तब नि पइस...!खोझिस अउ खोझिस ,पूरा  जुवार भर खोझिस,फेर नि पइस अपन पेट भरे के लइक फल -फलहरी कांदा...कुसा ।"फुलझर के आँखी मन डबडबा गय रहीन ।

"अब अइसन म काम नि चले, जब भूख लागही,तब बाहिर निकल के खाय के तलाश करबो ।"मंय कहें।

"फेर आन मन तो अइसनहेच करथें ।चिरई- चिरगुन मन उड़िया के आथें अउ अपन पेट बर दाना पानी पा जाथें, बेंदरा मन फर ल पा जाथें...!अउ आन आन जनाउर मन ल भूख लागथे तब खाना खोज लेथें ।"

"येइ बात हर तो अब नि बने ।कुछु सोंचे बर लागही ..."मंय अपन फैसला देवत कहें ।

"असल बात ये हावे भइया...झुनू जउन बिही के डारा म चढ़के खवइया रहिस,वो में वोकर ल आघु ये ढुलबांदर मन चढ़ गिन अउ सब ला खा दिन।बोपरी झुनू रुक उपर ल खाली पेट उतरिस ।"फुलझर पूरा बात ल फरिया के बताइस ।


              झुनू हर आज खाय बर नई पाय ये।येला सुनके रुनु घलव कहिस- वो दिन तो महुँ घलव ,ठीक अइसन बिही पेड़ म चढ़ के सकें रहंय ,कि वोइच ढुलबान्दर मन आके सबो खाय के लाइक बिही मन ल अघवा के खा दिन अउ मोला दिनभर वसनहेच रहे बर पर गय ।

             

              हमन के छोड़ ये आन -आन जीव जनाउर  मन खाथें तब,वो मन खाथें कम,एती वोती नकसान जादा करथें । हमन खाथन तब रुख राई ले जतकी लागथे, वोतकिच उतारथन ।


           अब तक ये फर फूल मन के चिंहारी बर वोमन के नांव घलव धर डारे हन -केरा,जाम ,कोसम, छीता,पपीता,कलिंदर, बंउगला, खीरा,बड़खा कांदा , छोटे कांदा बिही अउ कतेक न कतेक।


                 हमन ल जतका लागे,वोतका सब हर हमर  तीर म मिल जाय,अउ हमन अपन पेट के चिंता नि करत रहेन  ।फेर थोर थोर आन आन कुछु होय के शुरू होवत रहिस।

"चला सब झन अभी मोर संग...!"मंय सबो झन ल कहें।सब झन के मतलब - फुलझर,रुनु ,झुनू अउ मंय ...रहिस ।

"कहाँ...!"फुलझर कहिस ।

"अरे चला न भई,जिहां मंय कहत हँव तिहां ।"मंय एक परकार ले ,हमर ये छोटकुन दल रहिस,तेकर मुखिया बरोबर रहंय । अउ वोमन मोर कुछु भी गोठ ल नि काटें ।

"ले चल ,तँय हर ही आगु हो ।"फुलझर कहिस ।


           असल म मंय जउन बिही के रुख मन म जाके,पेट भर बिही मन ल खाय हँव,वो जगहा म अउ खाये के लइक अउ बनेच फर मन बाँचे रहिन ।मंय एक पइत फिर वो जगहा म पहुंच के ये दुनो नोनी मन ल पेट भर बिही खवाय के इच्छा करत रहंय।


          हमन  वो जगहा म आयेन,तब हमर जात ल वो फरन ल पेट भर खा के फिरत हमरे जगहा के आन मनखे मन दिखिन ।मोर तो मुहँ हर सुक्खा हो गय ।


             वो करा के वो रुख मन म खाये के लइक एको ठन फर नि  बाँचे रहिस ।हमर ल आगु ये दल हर जाके वो फर मन ल खा डारे रहिस ।


            असल बात ये रहिस,वो जगहा म हम मनखे मन बनेच हो गय रहेन,तेकर सेथी तीर-तखार के खाय के जिनिस मन अब कम परत जात रहिन ।अब ये जगहा म मोर चेहरा हर थोरकून उतर गय।येला देखके फुलझर थोरकून मुचमुचाइस अउ इशारा म ही हमन ल अपन पाछु म आय बर कहिस।


                हमन बिना देरी करे वोकर पिछु म लग गयेन।थोरकून बनेच रेंगे के बाद वोहर हमन ल ये बनेच घनघोर रुख राईके मंझ म ल गुजरत एकठन ये तरिया असन जगहा म आ गय रहेन । हमन ल येती आके भटकत अपन पेट ल चालत बनेच दिन हो गय रहिस।फेर ये तरिया असन जगहा म आज तक ल येती नई आय रहेन। फेर येला फुलझर हर आत- जात देख डारे रहिस । ये जगहा म आके मोर आँखी हर बटरा गय।तरिया के तीर म मारे केरा के नावा डोंगरी जनम गय हे-अइसन लागत रहय। घेर के घेर उतरे केरा।पाके केरा कइनचा केरा...!भरमार केरा फर के ...!


             येला देखके रुनु अउ झुनू दुनों झन ल आँखी के इशारा म ही शुरू हो जाय बर कहेंव । वो दुनों झन भीड़ गइन, तब फुलझर अउ मंय ,हमन दुनों झन घलव शुरू हो गयेन ।पेट भर खाएंन मन भर  खाएंन वोतका बेरा हम सब झन केरा मन ल...!


          अब फुलझर एकठन बड़खा साही घेर ल  टोर के अपन खांद म धर लिस। वोला अइसन करत देखें ,तब मोर जीव हर धक्क ल करिस ।मोला लागिस जरूर कुछु गलत होवत हे,कुछु करे के नई लइक बुता ल फूलझर करत हे ।अरे पेट भर खाय हावन अब हमन ल ये केरा के घेर ल टोरे के का जरूरत हे। काल भूख लागही,तब  फेर आ जाबो अउ फेर खा लेबो ...

"कइसे फुलझर का करत हावस बाबू...!"मंय थोरकून रिसहा कहेंव ।

"येला पाछु खाबो ।"वो कहिस।

"फेर आज तक तो हमन ,अइसन खाये के जिनिस मन ल घर नि ले गये अन ।" मंय कहेंव ।

"...फेर अब ले जाबो ।"

"वो काबर...?"

"नि देखे अस अभी झुनू के चेहरा ल भुख म कइसे कुम्हला गय रहिस ।"फुलझर झरझरात कहिस।

      

             मंय कुछु नि कहें,फेर मोर आँखी म फुलझर के चेहरा म जउन चिलक दिखत रहिस उवत सुरुज कस  अंजोर वोहर अब अब वोतेक अंजोर अब नई दिखत रहिस । मोला लागिस कहूँ मेर कुछु करिया जिनिस जागे के शुरू जरूर होवत हे,जउन हर हमन ल ये आन -आन रचना मन ल अलग करत हे।

         

            मंय एती अइसन गुनते रहंय ।अउ वोती फुलझर ल वइसन करत देखिन,तब रुनु अउ झुनू  घलव अपन अपन बर ठीक वइसन एक एक घेर ल धर लिन। अब तो फुलझर मोर तीर म आइस ,अउ अपन खांद म धरे,वो घेर ल मोला धरा दिस धर तो थोरकून येला कहत । अब वो फेर चल दिस केरा कछार म अउ एक घेर अउ ले आनिस ।

"अब चलव, सब झन सोझ डहर म..."वो थोरकून रिसहा कहिस ।


        अब तो एती मोर पांव हर डगमगावत रहिस। खाँद म बोझा कम फेर मन म बोझा हर जादा रहिस ।


***

      

                      (5)


        वो केरा के घेर मन ल का घर  लानेंन,अब तो फुलझर हर उदिम ही कर देय रहिस । अइसन अइसन खाय के जिनिस मन ल लान के घर ल भरत  रहिस के बस काय देखबे । वोकर देखा देखी महुँ ल अइसन करे बर परत रहिस।एक प्रकार ले मंय वोकर पीछू म घिरलत रहंय ...मन नि रहे ,तब ले भी महुँ ल अइसन भोजन संकेले बर जाऐच्च बर लागे ; काबर कि रुनु के आगु म महुँ घलव हल्का होना नि चाहत रहंव । फेर ये बुता करे के बाद अइसन लागे कि कनहुँ चिखला म पांव मन सना गय हें । मोला लागे कि ये धरती हर सदाकाल अइसन फल फुल जरी कांदा सिंघाड़ा पोखरा मन ल भरे रहय, अउ जउन ल खाय केन लागही,वोहर वो फर -फूल के तीर म पहुँच जाय,अउ पेट भर के खा ले;फेर उजारे एको झन , बिना  काम के धरती के ये जिनिस मन ल संकेले झन ।फेर फुलझर कहाँ मानने वाला रहिस ।एक एइच गोठ म वोकर अउ मोर एक राय नि रहेन ।


         असल म वो केरा -कछार  के शोर पता पवई हर फुलझर के जी म थोरकून लोभ अउ लालच ल भर देय रहिस। वोहर आन -आन मन ल ये जगहा के ठउर ठिकाना बताय बर मना कर देय रहिस। हमन अपन आगी भर ल पथरा के कटोरा म भर के ये जगहा ल छोड़ के आन दूसर जगहा म जाना चाहत रहेन ।अउ हमन अइसन करन घलव एके जगहा म तो हमन कभु नि रहे अन।असल बात  रहिस-जइसे...जइसे खाना पीना के कमी परय त चाहे शरीर ल घाम जाड़ अउ पानी जनाय,तब हमन अपन जगहा ल बदल देवन ।


          फेर अब तो ए कोती बनेच घाम हर जनावत रहिस ।अइसन म ताल तलैया नरवा झोरखी म बनेच बेर ल बुड़े रहे ल बने लागथे ,एकरे बर ये जगहा ल छोड़े के मन करत रहिस। अब हमन ल कोई पानी के तीर वाला जगहा म जाय के जरूरत रहिस। हमन सँग म रथन तव ये बनाइला जानवर मन तीर म आय बर थोरकून डराथें,निही त जब तब वोमन हमर कोती पेल देंय ।


           मोर मन हर फुलझर के बुता ल देख के एकर बर थोरकून अउ दुख होवत रहिस कि  अउ आन -आन मन मोला अब्बड़ मानत रहीन ।अउ मंय एक प्रकार ले वो सब मन के मुखिया बरोबर हो गय रहंय ।येकर सेती,जब कभु कोनो आन मनखे हर खाय बर नि पाय रहे अउ येती फुलझर अउ हमर घर म अगला- उछला भरे रहय खाय के जिनिस मन  तब,मोला बड़ तकलीफ होय ।


अभी तक हमन एक जगहा थीर होके नि रहे अन अउ येती आन आन मन जउन खाय के जिनिस ल खाथीन तेमन ल हमन घर म भर मरे हावन।

"तँय अब ये जगहा ल  छोड़े बर कहत हस,तब ये घर ल कइसे करबो ।"फुलझर कहिस,फेर मंय जानत रहें,वो घर बर कम अउ इहाँ रखाय फर -फुल ,भोजन ल छोड़े नि सकत ये।

"अरे अइसन घर तो मैं दिन म भर म बना दिहां तोर बर ।"मंय कहें ।

" वो तो ठीक हे,फेर ये चक्का ल कइसे करबो ।"फुलझर कहिस ।

"चक्का ये अउ गाड़ी ये सब हर।" मंय फुलझर ल हाथ के इशारा म बतात कहें। असल म होय का रहिस हे वो दिन ,मंय अउ फुलझर हमर बनाय ये नावा जिनिस चक्का म बहुत अकन  सुक्खा लकरी मन ल जोर के

लानत रहें,तब फिर ढाल पाय के सेथी ये चक्का मन गड़... गड़ ...गड़... गड़ करत ढुलिन, तब मोर मुंह ल निकल गय-गाड़ा...!!

तब फुलझर घलव कहिस ...गाड़ा... गाड़ा !

अब चक्का अउ गाड़ा हर फरी हो गय रहिस ।वो दिन वो करा विपरु नि रहिस नही त वो कुछु अउ आन तान कहबे करथिस अपन मुँहू ल अइंठ के ।


          फुलझर के मन ये जगहा ल छोड़ के जाय के नई करत रहिस।महुँ हर गुनें- सिरतोन म कै पइत बदलबो अइसन रहन- वसन ल।

"तँय ठीक गुनत हस...!"फुलझर मोर मन के दशा ल जान के कहिस,"अइसन म ये ढुलबांदर अउ हमन म का के फरक रह जाही ।

"फुलझर...!" मंय कहेंव ।

"हाँ...!मंय ठीक कहत हंव। अब आगु नि जान ।अब एइच करा रइबो सब दिन ।"

"येमन का कहत हें ।"मंय रुनु अउ झुनू दुनों कोती ल देखत कहेंव ।

"वोइच मन ल पूछ के देख ले ।" फुलझर कहिस।

"कइसे झुनू ,कइसे का कहत हस नोनी "मोर पूछे ले झुनू रुनु कोती ल देखत हाँसीस ।

"बस अब आगु नि जान...!सब झन कहत हावन ।" झुनू के जगहा म रुनु जवाब दिस । 


               अब हमर ये छोटकुन दल म जादा झन के मन एइच जगहा म रुके के रहिस,तब महुँ ल घलव मन ल मढ़ाय बर परिस। अउ जब हमन रुक गयेंन तब अउ आन मन घलव आगु नि गिन । येहर हमर जान म पहिली पइत होत रहिस के जाड़ा अउ गरमी ल  एके जगहा काटे बर गुनत रहेन। 


           अब तो तय हो गय रहिस कि अब इहेंच रुके बर लागही ।एकर सेथी अब बने चेत करके अपन रहे के जगहा ल जतने बर लग गयेन । सबला पहिली बढ़िया अपन अपन घर के सब कोती ल खूँटा गड़िया गड़िया के अहाता बनाएन ।अइसन करेन तब हमर वो जगहा हर अउ सुंदर दिखे अउ लागे के शुरू हो गय रहिस । लकड़ी मन ल ही जोड़ के मुँहटा मन ल बन्द घलव करत रहेन,जब कभु बाहिर निकल आवन तब ।


        अब  हमन के बस एके ठन बुता रहिस...! हमन दिन भर खाय बर खाय के लइक जिनिस खोझन, मिल जाय तब पेट भर खावन अउ बांस बेंत असन जिनिस मन ले बने अपन टुकना मन म वोमन ल संकेल के लेवत आन। हमन के देखा -देखी सबो झन अईसनहेच करंय ।


       फुलझर ये बुता बर सबला आगु रहय। आज तो वोहर हमर दल ल बनेच भीतर ले आने रहिस डोंगरी भीतर म। ये जगहा कोती हमन ल देखत देखत अउ कई झन मन आ गइन ।अब फुलझर भेदभाव नि करय।ये बपुरा मन हमन ल आगु नि जात जानके सब के सब वोइच जगहा म रुक गय हें,तउन मन ये । तेकर सेथी ,जब येमन सँग म आना चाहथें,तब आ जाथें ।

"कहाँ ले जाबे फुलझर अभी अउ येती हमन ल...!"मंय थोरकून तडप के कहेंव।

" अभी थोरकून अउ चला ।" वो हुकुम दिस।

             आगु जावत हमन ये रुख मन के झुँझाट म आ गयेन । फेर इहाँ हर तो देखे के लइक रहिस।कहर महर करत जगहा।कइं पाका  फर मन ले लदकाय रुख। कनहुँ उवत सुरुज कस रंग वाला त कनहुँ बन्द कचरा असन रंग वाला । मंय तो शुरू हो गंय खाय बर अम अम अम...

"आमा...! मोर मुँह ल निकल गय ।अब तो सब येमन ल अइसन आम्मा...आमा कहे के शुरू कर दिन ।फेर कोन कोती ल विपरु आ गय । वोला देखके मंय एकठन आमा ल चुहकत कहेंव-आमा...

"आम्रा...!"

"अरे चुप...!फेर शुरू हो गय तँय हर।"

"आमा...।"ये पइत फुलझर कहिस,फेर विपरु ल तो अपन जीभ अइंठे के कलाकारी  करना ही रहिस ।वो फेर कहिस-आम्र...!

"आमा...!!"एके सँग कई झन कहेंन ।


***

                               


( 6  )


                    फुर्सत के बेरा म मोला कुछु- कुछु...आन... आन करे म बड़ आंनद आय ।रुनु हर घाम महीना के दुपहरी म कुंवर -कुंवर शिरीष फूल मन ले बने शय्या म आराम करत रहे, कभु - कभु मोला अगोरत जागत, त कभु  नींद के आनन्द लेवत ; वोतकी बेरा मोला गीला कइंचा माटी म खेले म बड़ आनन्द आय।अइसन करे ल मोर हाथ मोर अंगली मन बड़ सुख पाँय।फेर सच  कहँव तब , हाथ -अंगली मन ले जादा,मोर मन हर सुख पाय।अउ अउ मन ल जादा हिरदे भीतर हर सुख पाय...!


        मंय जउन जउन जिनिस मन ल देखे रहंव,वोई मन ल गीला माटी म बनांव ।कभु वनइला  जीव- जनाउर, त कभु  खाय पीये के जिनिस। ये सबला चिन्हत जरूर रहंय,फेर येमन के नांव तो अभी मंय नि जानत रहंय । तब ले भी मंय येमन ल अइसन माटी म रच के अब्बड़ सुख पाँवव। जहाँ भी मोला मोर पसन्द के माटी दिखे,वोला लोंदा बना के जरूर ले आनो । मोला अइसन करत देखें,तब मोर संगवारी मन कनखी करके हाँसे घलव ।फेर वोकर से  मोला कुछु फरक नि पड़े ।


            आज घर भीतर हर बनेच कुहकत रहिस,तेकर सेथी मंय खरे मंझनिया के बाहिर निकल आंय अकेला ही । अब अपन घर ल थोरकून धुरिहा जाके कइच्चा माटी  लान के बांस के भीरा तीर म बइठ  गंय । वो जगहा हर बने जुड़ रहिस,काबर के खुल्ला हवा चलत रहिस । तभे कोन जानी कोन कोती ल विपरु घलव आगे मोर तीर म अउ वोहू मोर सँग म बइठ के  माटी म खेले लागिस ,फेर मोर नजर वोकर बगल म 

चिपाय पान -पतई जइसन जिनिस म परिस।

मंय  इशारा म पूछें ...ये का ये ?

वो कहिस-अआ...!

मंय पूछें- का ?

"अआ...!"वो फेर कहिस,अउ वोला खोले लागिस ।ताल रुख के पान मन ल चीर के वोमन म पथरा के चोंची ले  चिन्हा बनाय रहे। फेर एके असन चिन्हा ल कै न कै पइत बनाय रहे ।अब तो दुनो झन मिलके हमन बहुत बढ़िया- बढ़िया जिनिस मन ला बनाए के शुरू कर देन। मोर तो येहर रोज के बुता रहिस तेकर सेथी मोर हाथ ले बढ़िया बढ़िया  जिनिस मन बनत रहीन । विपरु हर भी कुछु -कुछु बनात रहीस । अइसन करत- करत सांझ ढल गय, तब अमन एक दूसर ल देखके हाँसत वो जगहा ले चले गएन।  फेर मोला आज का सूझिस... छेवर म बाँचे सबो माटी ल मंय अपन मुड़ म  लदक के थपड़ देंय अउ निकाल के मढ़ा देंय ।


           असल में विपरु घलव मोरे कस गर्मी ले हलकान होके ये  कोती किंजरत आगय रहीस । फेर जाती बेरा वोहर अपन वो ताल पान के पट्टी मन ल जरूर धर के ले गय। एके झन का का आआ कहे के शुरू कर दे रहिस वोहर जाते जाते।


            आज खर मझनिया हर ढल गए रहीस तब ले भी आज कुहकत रहिस। अउ गर्मी   कम नि होत  रहिस। मार गर्मी के  घर म जरा भी  चैन नि पड़त रहिस ।काबर की हवा  हर घलव एकदम रुक गए रहीस । ऐसे लागत रहीस कि अब साँस पिंजरा में  नि घुसरत ये  असन । मार पसीना के पूरा शरीर हर नहा दारे रहे । फेर तभे अचानक बढ़ जोर ले गर्रा -धुंका  आय के शुरू हो गए ।रुख राई मन हवा के जोर ले एकदम  भुइयां ल छू डारहीं अइसन लागत रहे ।दु चार रुख मन  तो भुइयां म गीर घलव गय रहिन ।  सब कोती टूट-फूट छा गए ।हमर फूलझर मन के अउ आन आन मन के आ छानही जथर कथर हो गए ।


        इला देखकर विपरु हर कोन जानी काका एके झन बड़ बड़ बड़ बड़ करत रहे ।वोला अइसन करत देख के हमन ल लागत रहे कि येहर हवा  गर्रा धुंका ला मनाए के कोशिश करत हे । थोरकुन बेरा म जब गर्रा धुंका शांत हो गय ,तब वोला देख के विपरु के मुख म एक ठन रहस्य वाला मुस्कान खेले लागिस अउ वोहर विजेता असन छाती ल तानत  रेंगत रहिस ।

"देखे शेरू मोला, मोर कहना ल सब मानथें ।मंय  गर्रा...धुंका ल रुके बर कहेंव,तब वोहर रुक गिस ।" वो मोर आगु म आवत कहिस ।

"होही चल ठीक हे।अब जब गर्रा- धुंका आही तब तँय रोक देबे ।"मंय असकटावत कहेंव ।

"वो तो करबे करिहाँ, वोहर मोर बुता आय।" वो कहिस मुचमुचात  ।

"अच्छा विपरु,तँय ये बता..."

"पूछ ,का कहत हस तउन ल।"

"तँय गर्रा -धुंका ल रोके सकथस ...!"

"हाँ...।"

"तब तँय वोला बलाय घलव सकत होबे ।"मंय वोकर चेहरा ल भेदहा देखत कहेंव ।

       अब विपरु कुछु नि कहे सकिस, फेर वोकर चेहरा म चिंता अउ बेबसी के भाव दिखे के शुरू हो गय।जइसन ये बुता ल जानना जरूरी आय। आगी पानी गर्रा धुंका ये सब ल बस म करेच बर  लागही । 


         देखते देखत सांझ हो गय फिर सांझ ल रात । तब मैं का देखें -जउन बांस के भुटा करा  बइठ के  हमन कुछु कुछु माटी के बनाय रहेन अउ वोमन ल वोइच करा छोड़ के हमन आ गई रहेन,  वो भूटा म  आगी लग गय हे। जब-जब  भी गर्रा धुंका आय  हे तब  तब बाँस के भुटा म आगी जरूर लगे हे।  आज ये भुटा मन के बारी आ गय हे। येला देखके  मोला कोई तकलीफ नि  होइस । येहर तो हमार रोज के काम रहिस ।अउ आगी हर हमर घर ले भी बड़ धुरिहा म लगे रहे ।


           हम जैसे तैसे करके अपन अपन घर की छत पर ला फिर जुड़े रहेंन। अउ धाम महीना म त हम सब  झन बाहर में ही सुतथन । हां अहाता हर जरूर साबुत बाचे हैं ।  ओमें कछु टूट-फूट नई  होय ये। आज के झेल- झमेला में थके होय के कारण रात के बढ़िया नींद परिस । अउ चिरई चुरगुन के  चूँ चाँ... के संग में हमू मन उठ गएन । रोज कस परछर होके अ हमन फेर अगाहू  दिन मन बर खाए -पिए के जिनिस संकेले बर फिर निकले लागेन ।


          बेर के चढ़त ला एती -ओती भटकेन फेर जब बेर हर मुड़ ऊपर चढ़ गय ,तब हमन अउ सबो झन के वापसी होवत रहिस। हमन के सब के सब के मुंड़ उपर तरिया ला निकाले पोखरा मन रहीन। अइसन दो-चार दिन हमन क तरिया ला पोखरा मन  ल लान लान के ओ मन ला  घाम में सुखोवन  अउ बीज मन ल निकाल के राख  लेवन अउ   छाली ल फेंक दन ।


        चार-पांच दिन के बाद वो दिन फिर ठीक वइसनहेच जोरदार गर्रा -धुंका  आइस ।आज के गर्रा धुंका  के संगे -संग पानी के जोरदार बौछार भी पर गय। फिर आज येहर अच्छा होइस कि हमन के छानही नइ उजरिस ।ओमन सब साबूत रहिन । बहुत ही मजा के संग हमन बरसात ल देखत रहेन । एकदम सुक्खा के सुक्खा..! जब पानी रुकिस तब सब कोती बढ़िया ठंडा होगा रहे ।  आज तो घर भीतर म बढ़िया नींद परीस।


       आज हमन सब सुतेच रहेन  कि  विपरु के फिर बड़ बड़ बड़ बड़ करत आवाज सुनाई परीस। ओहर  कोई गीत असन गात रहिस- वोहर कहत रहे... सुंदर  नोनी असन बिहना आवत हे। तोरी चुन्दी लहरत हे अंजोर बन के ।मोला ये सुन के हाँसी भी लागिस । 


       तब हम सब उठ गएन। आज हमन फेर  परछर होके अगाहू दिन मन के खाए बर खोजे  निकल गएन। हमन ला अतका पता तो  रहिस  कि आने वाला समय म जब यह गर्मी हर जुड़ाही तब  बनेच लंबा दिन तक चलने वाला पानी गिरही ,तब हम अपन अपन  छया में बइठ के चुपचाप बढ़िया-बढ़िया खाय के मन ल खाबो । एकरे बर अभी हमन सबला सकेलत रहेन ।  


           मोला अब  विपरु के गीत सूरता आइस । तब मौला वो दिन वो अउ मैं दुनों झन बइठ के जउन माटी के कुछु -कुछु बनाय रहेन  अउ ओमन ला बांस के भुटा तरी छोड़ दे रहेन ,ओमन ला देखे के इच्छा जाग गए ।चल तो कैसे हें वोमन ल देख तो लँव। बाँस भुटा हर  तो वो दिन जल गए रहिस ।  माटी के जिनिस मन कइसन हें ...! 


      मैं अपन संगवारी मन ला जान देय अउ रास्ता बदल के मैं  चलत  चलत वो जगहा म  जाकर के देखें ।तब उहाँ वो  सब ल देख के मोर आँखी मन बटरा गय ।  हमन जईसन बनाए रहेन, ठीक वोमन वइसनहेच इहाँ  माढे हें । हाँ...!फेर वो मनके रंग परसा फूल असन जरूर हो गय हे।

" अरे ... रे ! काल रात पानी गिरीस हे तभो ले येमन जस के तस  हें, अउ जादा सुंदर दिखत हें ।  अउ येहर का ये  रात के गिरे पानी हर तरिया असन  एमें कइसे  भराय हे ।" मैं एकेझन  कहेंव वो मुड़ उपर छबाय माटी के खोल ल देखत। मंय वोला उठाके देखें- पानी हर तरी में एक बूंद नि आइस।  अब मोला पता चल गय रहिस - माटी हर आगी  म रही के अईसन हो गय हे ...!

    

          मंय तो वो माटी म भराय पानी ल वइसनहेच धरके रुनु ल बताय बर ले आनें।रुनु हर सब बात ल जानिस अउ येला देखिस तब वोकरो आंखी हर बटरा गय  अचम्भा के मारे !


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                  ( 7 )


            माटी  के वो  जिनिस  हर तो रूनु ल बड़ पसंद आईस ।  अब तो वोहर येला धर  के झरना कोती जाय और वापस फिरत बेरा में, येमे पानी ल भर  के लाने बर बिल्कुल नि भुलाय । वोला अइसन करत  देख मोर मन में ये बात आइस कि मैं  अउ अइसन आन आन जिनिस बना के लांनव । 


           अब तो मंय मोर मन के मुताबिक जिनिस मन ल बना के ठीक वइसन बरत आगी खोज के वोमे ये माटी के जिनिस मन ल डाल दंव ।  गर्मी के दिन  रहे के सेथी येती -ओती आगी मन तो सधारण म लगेच्च रहंय । आगी म ल निकले के बाद ये मन बहुत मजबूत बन जांय । अब तो हमर घर हर अइसन कै न कै रकम के जिनिस मन ले भर गय रहय । रुनु हर घलव येमन ल छुवत फूँकत ठीक से तीर म जमा के राखे के शुरू कर देय रहिस।अब तो हमर  घर हर अउ सुंदर दिखत रहय । रुनु हर तो बाहिर ल अब कुछु- कुछु फूल पान मन ल लांन के एक दु ठन वो माटी के जिनिस मन म राखे के शुरू कर देय रहिस ।


          वो दिन फुलझर हमर घर कोती आय रहिस ।बनेच्च बेर ल बइठे रहिस ,तहां ले फेर ले अब जावत हंव ...पानी पियास लागत हे,नरवा कोती जाहां...कहत  उठत रहिस ,तभे रुनु हर हाँसत हमर वो माटी के जिनिस म अभी अभी नरवा ल लाने पानी ल लेके धरा दिस । येला देख के फुलझर के आँखी बटरा  गय ।वोहर एक पइत अपन हाथ म धरे वो माटी के जिनिस ल देखे  जेमा अभी पानी हे, फेर एक पइत रुनु के मुहँ ल देखे ,फेर एक पइत मोर मुँहू ल देखे।

"पी ले भई, पानी च आय।"मैं वोला मनावत कहेंव।


               फेर फुलझर अब ले घलव वो पानी ल नि पिये रहिस , विसनहेच धरे रहिस । वोकर भरम ल जान के मंय रुनु कोती ल मुस्कुरात इशारा करें...। रुनु मोर इशारा ल समझ के एकठन आन विसनहेच जिनिस म भराय पानी ल लांन के मोला धरा दिस । मंय फुलझर के आंखी म झाँकत वो पानी ल  धीरे...धीरे पिये के शुरू कर देंय ।अउ आँखी म ही फुलझर ल ठीक विसनहेच पिये बर कहेंव ।


            अब फुलझर घलव डरे- बले  वो पानी ल पिये लागिस ।पानी ल पेट भर पीस।अब वोकर चेहरा हर शांत अउ खुश दिखत रहिस ।अब वोहर मुचमुचात मोर कोती ल देखिस। वोकर आँखी कहत रहय -ये काये भई...? मैं वोकर मतलब ल समझ गंय ।

"ले ,चल जाबो ।"मंय कहेंव ।

"कहाँ...?"वो कहिस ।

"चल तो मोर सँग म ,तब फेर पुछबे ।"मैं वोला दुलारत कहेंव ।

 

              फुलझर मोर ये दुलार ल घलव पोठ्ठ समझथे, तेकर सेथी मैं जउन भी कहथंव,तेला वोहर कभु नि काटे ।अब हमन दुनों झन वनइला रसदा के रुख -राई झाड़ ...झखाड़ मन ल टारत तिरियात आगु बढ़त रहेन। असल म काल मंय ,मोला जइसन भी सूझे हे, तइसन बनेच अकन माटी के वो जिनिस मन ल बनाके ये जगहा के बनेच बरत आगी म छोड़ आय रहेंव ।ये जगहा म हमन आ गये रहेन ।

"आ फुलझर, आ तो सही ।"मंय वोला भुलवारे बरोबर कहेंव ।

"चल न भाई शेरू ,कहाँ ले जाबे तिहाँ जाहाँ ...!"फुलझर कहिस।

"ले अब काहीं नि जाना ये ।"मंय वोला कहेंव ,तभो ले आगु जातेच रहें ।


            मंय आगु बढ़ें अउ राख के ढेरी के तरी म माढ़े,वो माटी के जिनिस मन ल निकालें ।कुछु टूट -फूट त कुछु साबुत निकलिन वो जिनिस मन ...

"चल धर, आज के हर तुँहर घर जाही  ये सब मन ।"मैं कहेंव।

"सिरतो...!"फुलझर एकदम चिरई मन कस चहकत कहिस ।

"हाँ,  अउ नहीं त का ...!"महुँ वोला अईसनहेच तुरत फुरन्त कहें ।


          हमन दुनो झन वोमन ला धर के आय बर लगेंन । फेर मंय फुलझर ल छेंक के नरवा के  पानी कोती ले आने ।अउ नरवा म आके मंय सबो जिनिस मन ल पानी म दाल देंय-

"ये...ये...!कइसन करत हावस...!!"फुलझर बल भर के चिल्लाइस । वोकर मन म डर रहिस के पानी म ये सब मन घूर जाहीं ।

"कुछु नि होय ,चल डाल तहुँ ...।"मंय कहेंव।तब फुलझर डरे -बले वो जिनिस मन ल पानी म डालिस ।


           अब इहाँ हमन के दुनों झन के गोठ हर सही निकलिस । कुछु मन घुर गिन अउ जउन मन नि घुरिन, तउन मन पानी म धोया के अउ रगबग ल सुंदर दिखत रहिन ।अउ मंय ठोंक बजाके अच्छा जिनिस ल झुनू ल उपहार म देना चाहत रहेंव।आखिर वोहर मोर बहिनी असन आय । येकर सेथी अब सबो अच्छा जिनिस मन ल धरके हमन दुनों झन सीधा झुनू अउ फुलझर के घर म पहुँच गयेन।


                  झुनू हर हमन ल ये जिनिस मन ल अइसन लानत देखिस तब अचम्भा म वोकर मुँहू फरा गय ।फेर मोर उपर  वोकर बड़ विश्वास रहिस।मंय जो कुछु भी वोला कहंव तेला वोहर कभु नि काटे... मना नि करे,भले ही मोर अपन संगवारी रुनु हर मना कर देय ।

"झुनू देख तो बहिनी,तोर बर हमन ये का- का  लाने हावन ।"मंय वोला अइसन अबक्क देखत,देखें तब वोला समारत कहेंव ।

"हाँ, भइया...! का ये ,ये सब मन।"वो पूछिस ।

          

             तभे फुलझर के हाथ म धराय वो माटी के जिनिस मन भड़...भांड़... भड़म करत गिर गइन, तब फुलझर के मुँह ल निकल गय- भाँड़ा...भाँड़ा समझे ।

फुलझर के ये नावा पद हर मोला घलव बने लागिस,तब महुँ घलव झुनू ल कहेंव हाँसत हाँसत...हाँ झुनू ,येमन भाँड़ा आँय ।

"भाँ...ड़ा ...भाँड़ा ।"झुनू कहिस।

"हाँ ,माटी के भाँड़ा...!"मंय गोठ ल पुरोवत कहेंव ।


          अब मंय फुलझर ल इशारा करें,अंखिया के तब वोहर आगु जा के झरना ल फूटत पीये के लइक पानी ल एकठन बड़खा भाँड़ा म झोंक के ले आनीस अउ झुनू ल धरा दिस।

"ले पी झुनू...!"फुलझर अपन संगवारी ल मनात कहिस,फेर झुनू हर डर के मारे नि पीस,अउ बक्क ल मोर मुँहू कोती ल देखिस।मंय वोला आँखी म ही इशारा करके पी लेय बर कहेंव। तब वोहर पी लिस पानी ल बिन प्यास के प्यास...।

    

        अब तो वोहर खुशी के मारे चिहुँक परे रहिस ।अउ दु ठन भाँड़ा मन ल धरके झरना कोती खुद चल दिस।अउ फिरिस तब वोकर दुनों भाँड़ा म झरना के पानी हर भराय रहिस । पानी लांन के वोहर अब हमन ल पीये बर धराइस।हमन अपन अपन भाँड़ा ल धर लेन। तभे मंय आगु बढ़के मोर हाथ के भाँड़ा के पानी ल एकठन अउ आन भाँड़ा म आधा कर के फुलझर ल दे देंय। अब हमन दुनों झन अपन अपन भाँड़ा के पानी ल पूरा पी देन । हमन ल अइसन पानी पियावत झुनू हर बढ़ खुश होइस।


         फुलझर चेतलगहा अउ अपन धुन के पक्का लइका ।अब वोहर मोर करा लें भाँड़ा बनाय के  ये रीत ल जान डारे रहिस। तब तो  थोरकुन दिन म वोमन के घर म हमर ल जादा भाँड़ा हो गय रहिन। धीरे धीरे सबो घर म अइसन अइसन नाना प्रकार के भाँड़ा म भर गिन।


           फुलझर तो आज माटी के बनाय फेर सुखाय भाँड़ा मन ल घर तीर म बढिया जमा के तीर म जउन भी पइस ,तउन लकरी घास पात मन ल लांन के वो सब मन ल तोप दिस।अउ आगु जाके बरत लकरी ल लांन के मोर अंग ल देखिस।मंय वोला आँखी म ही इशारा करें कि कर दे आगी ल एमें ।मंय वोकर ये नावा चलागत ल समझ गय रहेंव।भाँड़ा बनाय बर कहाँ ले बरत आगी खोजबो,तेकर ले खुद आगी बना ली ।


               एकठन हाथ के अंगुली मन अतका दिन म तीर म जाके देखेन तब हमन ल ये भाँड़ा मन आन आन दिखींन...परसा फूल के रंग वाला अउ मोर मुड़ के चुन्दी कस रंग वाला ।वो सब ल लेके नरवा तीर म जाके पानी म बोर के देखेन।येमन भी तो पहिली च कस रहिन। वो सब भाँड़ा मन ल लेके आवत रहेन, तब रुनु अउ झुनू अपन अपन मन के भाँड़ा मन ल छाँट के घर ले गिन । 


       आज फुलझर हर बइठे हे घर म अउ चक्का बनात रहिस हे। एक ठन चक्का ल भुइँया म मढ़ा के  घुमा घुमा के वोला पथरा के घसे के औजार म घसत रहिस।  वो बनात बनात चक्का ल किंजार देय ।मैं थोरकुन माटी म खेलत वोकर तीर म आके बइठे । मैं माटी ल चक्का ऊपर मढ़ा देंय,तभे फुलझर चक्का ल किंजार दिस। यें... यें... कहत मंय माटी ल धरे लागें,फेर मोर आँखी हर अचंभा म बटरा गय । माटी हर तो अब बड़ सुघ्घर चिक्कन दिखत रहिस,अउ येहर मोर बिना बनाय अपने आप नावा भाँड़ा असन बन गय रहिस। फुलझर घलव बने नजर गड़ाके येला देखिस। अब वोहर मोला फेर असन करे बर कहिस।


            ये पइत तो पहिली ले अउ सुंदर जिनिस बन गय रहिस। अब तो हमन एइच बुता कर देन।फुलझर भाँड़ा बनाय बर ये चक्का ल राख दिस। वो घुमाय तव मंय हर माटी ल दुलारंव ,अउ देखते देखत भाँड़ा मन बनत रहें।


       आज किंजरत विपरु येती आय रहिस।येमन ल देख के प्रश्न वाला नजर ले मोला देखिस...?

"भाँड़ा... भाँड़ा...!"मंय कहेंव।

"भाण्डा...भाण्डा..."वो कहिस।

"फिर शुरू हो गय तँय...भाँड़ा ।

"भाण्ड..."

"भाँड़ा...!!"मंय हाँसत जोरलगहा कहेंव।


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00             (8)


          अब हमन के घर म माटी ,लकरी अउ पथरा तीनों जिनिस के भाँड़ा मन रहिन। हाथ अउ गोड़ के अंगठी मन ल छू छू के अब हमन एक कोरी अतका ल गन डारत रहें । फुलझर के  चक्का ल देख के अउ आन आन मन ठीक अइसन माटी ल किंजार के  भाण्ड मन ल बनाय बर सीख गय रहिन ।

" फुलझर ,ये का ये...?"

"थरकुली ... थारी "

"अउ ये ...?"

"घट...घड़ा  ।"

             फुलझर हर अइसन अइसन सबो रकम के भाँड़ा मन के नांव बना देय रहिस,जउन मन ल सुन के हाँसत हाँसत मोर पेट हर फूल जाय- शषकुली, चषक अउ आन आन का न का । अब तो मंय फुलझर करा ल सीख के आके रुनु ल सीखावँव  ।


               अभी मंय कुछु नावा सिख के आय रहेंव।अउ सीखे बर रुनु ल खोजत रहेंव ।

"रुनु ...!!"मैं बने जोरलगहा हांक पारें ।मोला जवाब नि मिलिस। मंय वोला खोजत घर के पीछू कोती आ गंय ।मैं दुरिहा ल देखें- रुनु हर  पीछू कोती जउन पौधा मन जाग गय रहिन ,वोमन ल उखाड़ के जगहा ल सफ्फा कर देय रहिस ।असल म हमन अब खाय के फल फूल मन ल घर म संकेल के राखत रहेन, अउ जब भूख लागे, तब निकाल के खाते लेन ।वोई मन के बीज ले ये पौधा मन जग गय रहिन । अब तो बनेच हर  चिन्हारी घलव  मिल जात रहिस।

"रुनु...!"मंय कहेंब।

"हाँ,राहा ...!तुमन कुछु कुछु नावा करत रहिथा न ,तब महुँ घलव ये दे कुछु करहां कह के सोचत हंव ।"

"ओहो तँय का सोचत हस ।महुँ ल बता ना !" मंय चिहुँक उठे रहें। वोई दिन मोला पता चलत रहिस कि मनखे जात के आधा हिस्सा हर खाली पीछू म सँग देवइया भर नोहे।वोहर अपन मन ले भी बहुत कुछ कर सकत हे-

"कइसन का सोचे हस तँय ...?"

"पहिली खाय के मन लागे ..."

"भुखन लागे..."

"हाँ...वोई लागे, तब हमन बाहिर निकल के फर फूल अउ कांदा मन के तीर म जाके; सीधा हमन पेट भर खा लेवन..."

"हाँ...आँ...!"

"फेर बाद म हमन ये दे ये खाय के जिनिस मन ल संकेल के लांन के राख लेवत हन..."

"ये भी ठीक हे ।"

"फेर मंय गुनत हंव,ये रुख राई मन ल देखव,जो अपन मन के फरें हें ;अब हमर जउन मन लागही ,तउन फर ल हमन ल खाना हे तब..."

"तब का रुनु...!!"मंय तो अकबका गय रहेंव ,ये रुनु अब का कहने वाली हे ?

"तब ये छोटे छोटे रुख मन ल मंय अइसन  करके फिर भुइँया म कर देत हंव।"रुनु कहिस अउ अपन हाथ ले एक ठन लकड़ी लेके सीधा रेख खींचे असन कर दिस ।


        येला देख के मोर जी म थोरकुन डर समा गय।काहीँ रुनु हर कुछु गलती तो नि करत ये...!येकर हमन ल फल तो नइ मिल जाही । विपरु हर कहत रथे...कुछु गलती करे ले वन देवी रिसा जाही । विहना हर रिसा जाही... सँझा हर रिसा जाही । बादर हर रिसा जाही । सुरुज हर रिसा जाही।चंदा हर रिसा जाही। आगी हर रिसा जाही।पानी हर रिसा जाही । अउ का न का मन रिसा जाहीं तब...?


          मंय गुनतेच रहंय अउ रुनु हर घर के पीछू म कतेक न कतेक वो पौधा मन ल भुइँया म खोंस दिस । फेर एकघरी म वो पौधा मन ओरम गिन...

"ये देखा तो कइसन हो गय येमन ...!"रुनु हर कहिस,अउ रो डारिस । वोकर आँसू के बूंदी मन पौधा ऊपर म थीपत रहिन ।


        येला देख के मंय हाँस परें, फेर मोला एक ठन डहर दिख गिस ।मंय तुरन्त घर भीतर जाके, जउन भी भाँड़ा मन म रुनु हर पीये बर पानी राखे रहिस,तउन मन ल लांन के वो पौधा मन म वोकर आँसू कस छींचें ...फेर ये बुता म एकठन भाँड़ा के पानी हर भुइँया म गिर गिस ।अरे...! मंय कहेंव अउ आ गयेन ।


           थोरकुन बेरा म रुनु जाके देखिस,वो पौधा मन थोरकुन खड़ा हो गय रहिन।  फेर मंय जाके देखें-जउन करा पानी हर भुइँया म गिरे रहिस,तउन करा के पौधा मन पूरा खड़ा हो गय रहिन ।

      

          कुछु भी होय फिर वह जघा हर बड़ सुंदर दिखत रहीस । अब तो रूनु हर पानी भरे के भाड़ा मन म पानी लान - लान के वो पौधा वाले भुइयां म रितोय के ही बुता कर दे रहीस । मैं तो ये बात ल भुला भी गय रहें।  फिर तीन-चार दिन बाद मैं रुनू ला वोईच  बुता करत देखें ,तब मोर ध्यान ये कोती आइस । अब मैं देखें -वो पौधा मन पूरा के पूरा हरा भरा हो गए रहें । अइसन लागत रहें कि वोमन सब दिन असनहेच  रहीन ।

 

         मैं रुनू के बुता ला ज्यादा महतम नइ देय रहें । अपन खाए के  जिनिस  मन ल खोजे में  हमन कोई कमी नि करत रहेन । जब भी मौका मिले हमन  गहिल बन -डोंगरी में जाके अपन खाए के जिनिस  मन ल  पेट भर खावन भी अउ बटोर के लेत आन ।  कभु- कभु अइसन होय कि हाथ की उंगली  जतका दिन  भी खाय बर खोझे नि जावन , तब ले भी हमन ल हमर पहिली के बचा के रखे जिनिस मन पूर जांय ...।


               घाम हर बनेच पोठा गय रहय ।फेर आजकल   रूनु हर  बहुत-बहुत बेर ला  मोर से अलग रहे । आखिर ये जाथे त कहाँ जाथे।  आज तो मंय वोकर पीछा करत करत गंय । वोहर आगु म  जावत जावत नरवा के तीर म पहुंच गय । मैं तो ये देख के अचंभा म पर गंय ।  रुनु हर नरवा के खंड म बालू मन के चक्का असन बना के  बनाके वोमे पौधा खोंच के हरा भरा कर लेय रहीस ।

"वाह रुनु ,त तँय रोज ई कोती एकरे बर आवत रहय।"मंय वोला कहेंव।

वोहर मोला देखके  चुप रहे के इशारा करिस ।अउ वोहर अपन संग म लाने भाड़ा मन ल  धर के  भुइँया म बगरे  वो नार -विंयार असन जिनिस मन ल  उल्टा पलटा  के देखत वोकर आँखी म  चमक आ गय। फिर मोर तो आँखी हर बटरा गय... मैं का देखत हंव...! 


जउन जिनिस मन नरवा तीर के बालू माअपने आप जागे रहें । वो सब मन ला रुनु हर घर के पीछे कस सीधा सीधा खोच के राखे रहीस। वोमन  इहाँ फर अउ फूल  म लदका मरे  रहीन ।अइसन अइसन  फर मन ल फुलझर हर कलिंदर,बंउगला, ककड़ी- खीरा कहे। ये सब मन के तो  खेप लग गए  हे। 


       अब का देखे मंय- रुनु हर  एक ठन बड़खा साही कलिंदर ला लानीस  अउ मोर आघु म लान के ओकर उपर एक मुंटका मारीस। कलिंदर हर दो फ़ाली हो गए... एकदम लाल लाल । मैं देखें रुनु के आंखी म संतोष भर गए रहे । अब् वोहर  वोमे के एकठन फाली ल धर के  मोर तीर म आके मोर मुंह  ल देखत मोर मुंह म  लगा देय रहीस । मैं खाएं... बहुत मीठ रहिस वो कलिंदर हर।  येहर जादा मीठ काबर लागत रहय येला  मंय जान गय रहेंय ।  एमन रुनु के शरीर ले चूहे पसीना ले उपजे हें: अपने- आप बनईला नोहे ।


        अब तो मैं बाचे आधा  फाली ल रूनु  के मुंह में लगा देंय । वोहर पीछू घुंच गय  अउ अपना हाथ म वो फाली ल घर के नीचे होके पहली धरती कोती निचो दिस।जइसन धरती  ल वोकर जिनिस वोइच ल पहली देवत हे, फिर वोहर मुंह म लगाइस। 


         अब फिर  तो हमन घर फिरत बेरा म  ये कलिंदर बउंगला  खीरा ककरी मन ल अपन भाँड़ा म धरके घर वापस लौटे रहेन वो दिन ।


***



              


                   ( 9 )


          आज तो बनेच बिहना ले   फुलझर हमर मुहटा म आके बड़ जोर से हाँक पारत रहीस । वोकर बड़ जोर से हाँक परइ ल सुन के हमन दुनों झन झकनका के उठ बइठेन...का होगे कहत ! हमन घर ले बाहिर कोती निकल के देखेन । बाहिर म  फूलझर दुख और रिस म  थरथरात रहे ।

"कइसे का होगय ?" मंय वोला पूछें ।

" चल...चल तो देखबे ..."

"कैसे का हो गए, अरे भाई बोल न, का  हो गए तउन ल ।"

" घर में जतका भी  भाँड़ा रहिन ,तेमन अब नई ये।कोई ले गय कहु लागत हे ।" "फेर आन कनहुँ काबर ले जाहीं ...!"

"यह तो पता नइये फिर घर म एको भी भाड़ा नई  बाँचे ये ।"

" येहर तो बढ़ गजब हो गए.. !"

" चाहे कुछु भी कह ले ; फेर बात सच्ची ये ।चल देख ना..."

           अत का बेर ला झुनू भी वोकरा आ गय। रुनु  हर  आगु जाके वोकर हाथ ल  धर लिस । झुनू हर तो रोवत रहिस । अब हमन वोमन के संग म वोमन के  घर गएन । अउ उहाँ जाके देखेन त  उहां एक ठन भी भाड़ा नई बाँचे रहिस।  घर हर सुन्ना के सुन्ना लागत रहिस । पूरा खोखला के खोखला हो गय रहिस  हे । भाँड़ा मन ल  कावर ले गए हे...! 


            चाहे बात कुछ भी रहे,  फेर ले तो  गय जरूर हे । चल बात  खतम कर । अउ मिलकर के बना लेबो । बना तो लेबो, फिर बात वोई  नइ होइस । कोन लेगीस अउ काबर लेगीस तउन हर  ल

बड़े बात रहिस ।वोहू  हर रात के समय म जब हमन सुत भुलाय रहेन, तब...!अंत म हमन ल  हमर ये प्रश्न मन  के उत्तर बिल्कुल  नि  मिलत रहीस । फेर लागत रहिस हे कि जो कुछ भी होय हे, तउन हर अच्छा नई  होय ये।


         अब पूरब दिशा  म सूरज हर तो निकलिस फेर वोकर तीर  मा थोर थोर करिया दिखत बादर मन भी दिखत रहीन। एक पइत तो मोला अइसन लागत रहीस कि काहीं सूरज हर तो ये बादर मन म छुप तो नि जाही । अब जब सूरज छुप जाही ,तब अंधियार हो जाही, तब आगु जाय के रास्ता कइसे दिखही। यह सब बात ला मोर मन म गुनत  महुँ अबक्क खड़े रहंय ।


       अब तो रुनु हर एकठन बढ़िया च  बुता  ल करे रहिस ।वोहर हमर घर कोती जाके अउ वोकर से जतका धरत बनत रहे,ओतका  अच्छा-अच्छा  भाँड़ा  मन ल लांन के झुनू  के घर में कर दिस । साथ ही कल हमन जउन नरवा के तीर म जाके  कलिंदर, बउँगला, खीरा- ककड़ी लाने रहेन , वोमन के बनेच अकन ला लांन के  वोहर झुनू घर कर दिस ।   ए कलिंदर, बउँगला  मन ल  देखिस तब झुनू के आंखी म चमक आ गय । वह तो कई दिन पहली ला अइसन फल फूल मन ला खोजत रहिस फेर येमन ल  नई भेंट पाय रहिस । येती रुनु हर खुद मौला नई बताय रहीस,तब फिर  आने मन ल बताय के जगह नई रहिस । 


           अब हम दिन भर तैयारी  म लग गयेन ।साफ सुथरा परछर  होयेंन । फेर मन हर आनेच्च -आने लागत रहय । आज के घटना हर मोला थोरकुन  विधुन कर देय रहीस । येकर सेथी आज  मोला अपन घर -द्वार छोड़ के  गहिल बन -डोंगरी कोती जाय बर मन नइ करत रहे । मोला लागत रहे  कि जब मैं चल दिहां तब ... तब हमर घर के यह जो  दु चार भाड़ा है वोमन ल कोनो आन आके जरूर ले जाही ...!              आज दिनभर मोला बहुत खराब लागत रहीस। येहर पहली बार होय रहीस कि रात के समय  कनहुँ आन हर कनहुँ आन के घर में घुस के कोई चीज ल बिना पूछे उठाके ले गए हे । येहर मन मा चिंता ला भर देय रहीस कि अब का होही ..? अब का किया जाए ...? बिहना ल संझा फेर संझा ले रात हो गय ।परछर अगास म  तारा जोगनी मन बट बट ले उ गय रहिन फेर मन हर परछर नि हो पाय रहिस। आज की रात का  होही । 


      अइसन गुनत गुनत गुनाह मैं अपन डसना म परें रहंय । फेर कतका बेर मोर नींद  परिस , मोला खुद पता नई चलिस । बिहना के हवा हर मोला थोरकुन कुड़कुड़ाईस तब मौला पता चलिस कि बिहना होने वाला हे  । अउ

 बिहना हर घलव खसलत खसलत आगु म आकर के खड़ा भी हो गए हमर आगु म ।


          फिर हमर  घर ला थोरकुन धुरिहा म  जउन आन -आन  मनखे मन के घर बने रहे। वो तीर के एक ठन घर मा बनेच मनखे जुड़े रहें । घरवाला टहलू हर अब जोर जोर से बतात रहय कि  मैं  घलव उहाँ पहुँच गंय । तब वोहर मोर  हांथ ल धर के अपन घर भीतर ले जाके बताइस कि कइसन वोहर चार चिरौंजी और तेंदु  मन ला राखे रहीस तउन ला कनहुँ हर ले गए हे । जरूर ये बुता हर रात के बेरा  म होय हावे । अब तो मैं भक्क खा गंय । काल रात फुलझर के  भाँड़ा मन  ल ले गए  हे  और आज टहलू के चार चिरौंजी ल । कोन ये येहर ..!येहर कोन ये..?


        लगातार ये घटना घटे के सेथी मोला बहुत खराब लागत रहिस।  येकर सेथी मंय आज बुता काम म मन नि लगाय सकें अउ एती वोती किंजरत रहंय। अउ जब मोला अइसन लागे,तब मंय गहन डोंगरी कोती उतर जांव।


     जघा -जघा गिरे मउहा के ढेर लगे रहय। आगु पथरा मन ले बन गय एक ठन पानी भरे खँचवा म  बनेच अकन महुआ हर गिरे रहय ।पता नही कतका दिन के एमें अइसन गिरे, परें हें ये महुआ मन।वो खँचवा ले बड़ विचित्र कहर उठत रहिस। ये कहर हर मोर माथा म चढ़त रहिस ।अइसन लागत रहिस...अउ जादा बेर ल मंय वो कहर ल सूंघहा तब मंय खड़ा होय नि सकहां...गिर जाहाँ ।


       तभे एकठन हाथी हर आइस ।मंय तो लुका गंय ओधा म ।अउ  का देखें मंय...वो हाथी हर भर भर सोड़  वो कहरत पानी ल पीयत हे। पीयत हे फेर थोरकुन बेर म थोरकुन धुरिहा म जाके झुमरत बइठ गिर गिस हे ।


     येहर मोर बर नावा जिनिस रहिस ।मंय कुछु बात ल समझ पाथें ,वोकर पहिली मंय देखें हमर कोती के एकझन आन मनखे मंदरु हर एती वोती ल देखत ए कोती आइस हे।अउ वोहू हर वोई खँचवा  के वो क़हरत पानी ल एकठन भाँड़ा म धर के निकाल के पीयत हे। फेर थोरकुन बेर बाद म वोकरो हालत हाथी असन हो गय।फेर ओकर हाथ के भाँड़ा हर मोला चिन्हे चिन्हे कस लागिस  ।अरे येहर तो फुलझर घर रहिस...!मंय वो भाँड़ा ल चिन्ह डारें रहंय ।



***




                    ( 10 )



          हमन जब  घनघोर वन डोंगरी बीच म रहत रहेन, तब हमन बर आगी हर मितान घलो रहीस और शत्रु घलव ।  जतका डर हमन ल बनइला जनाउर पशु मन से लागे ,वोतकी डर हमन ला आगी के घलव लागे ।गरजना ,लहुकना, बरसात तो कभु कभार  होय फिर आगी के डर हर हमन ल सदाकाल सताय । एक तो ज्यादा आगी तीर म झन आय और दूसर जउन अभी हमारे पास म हे,वोहर बुझाय झन बस ।  आगी ल लेके  हमन के मन म एकठन बड़ डर रहीस। हां फेर  जब कभी हमर तिर के आगी हर बुता जाय तब हमन बारा भेवा करके वोला फिर से जगा लेत रहेन । कभु  पखरा  म पखरा ल कचारन  तब भी तीर के सुखा वन कचरा मन म आगी लग जाए ।नहीं त बांस ल बांस में रगड़ के आगी ल फेर  बला लेवन ।बोइर के सुखा लकड़ी मन म घलव  आगी के दरशन जल्दी हो जाय ,वोहर जल्दी जाग जाय ।अउ जब आगी हर जागे तब ये जगह  हर बड़  निक लागे, जाने माने वोहर हमन बर एकठन मनखे बराबर रहिस।वोकर रहे ले लागे कि हमार जीवन हर उजियार हो गय हे । 


           यह बनाईला जानवर मंन के रात के समय म हमर मन के घर में  घुसर अवइ हर बहुत ज्यादा हो गय रहीस ।  ते पाय के हम सब मनखे मन के जी म डर पेल देय  रहिस ।कभु- कभु तो बहुत गलती हो जात रहिस । अइसन हे जब बनइला जानवर मन के

 मन के उत्पात हर ज्यादा हो गए, तब हमन सब के सब फिर तय करेंन कि ये जगह ला छोड़ दिया जाय । फिर बनेच झन मन ये बात नइ आत रहय ।वोमन ये गोठ म  राजी नइ रहीन । यह जगह म हमन के मोह माया हर गड़ गय रहीस । कतका झन नावा पहुना मन  हमर घर मन म  आए रहीन ।वो सब मन के नाल पोटा  हर इहाँ गड़े रहीस। संग में हमर कतको झन मन  यह दुनिया ल छोड़ घलव देय रहिन। वो सब मन ल लो तो एईच तीर तखार म   हमन छोड़े रहेन । यह जगह ल छोड़ई हर अच्छा नि  लागत रहिस। फिर तो ये बनईला उत्पात हर बहुत ज्यादा हो गए रहिस । अब क्या किया जाए...? 


       अभी तक ला हमन पाय रहेन कि जब हमन ल अउ  आगु जाय के बात नइ ये । अब जब हमन के  इहाँ रहना तय हो गय रहीस । तब हम सब झन मिलकर के तय करेंन, कि घर के चारों खूंट म रात के आगी बारे जाय...!


      जानवर मनके अतेक  बुद्धि कहां रहथे । चारों खूंट  म बरत  आगी ल देखहीं तब वोमन के एती आय के हिम्मत नहीं हो पाय । थोड़ा बहुत गोठ बात के बाद सब के सब के बात बर तैयार हो गएन किआज के बाद घर के चारों खूंट म थोड़े थोड़े आगी जलाय जाय । ए बातके शुरू आज ले ही कर देबो । यह सब तो ठीक धोवत रहिस फेर जउन हर हमर बर चिंता के विषय बनत रहिस ,वोहर रहिस फिर  कभु कभु  का करो घर ले कुछु कुछु  चीज मन के गायब होने की शोर पता जरूर मिले ।


     अब हमन ल  एकर बर दुबारा बैठक करे बर लग गय । बैठकी म तय होइस कि हमारे बीच के दु आदमी ओसरी- पारी करके रात भर एती वोती किंजर के गांव के  रखवाली करहीं ।यह बात म हम सब झन राजी  हो गए रहेन।अउ ओसरी पारी ये बुता ल निबटावत घलव रहेन । 


          बहुत दिन के बाद रुनु हर  आज भीतर बनईला फर- फूल खाए के साध करीस ।अउ ये बात ल वोहर मोला कहिस । मैं फिर वोकर बात ल काबर काटथें । अपन अपन धरे के लाइक  बाँस बेत के बनाएं भाड़ा जउन मन ला अब हम अब टूकना चरिहा कहे के शुरू कर देय रहेन ।वोमन ल धर के घर ल बाहर निकले रहेन । 


      मोला रुनु असन एके टुकङा म कुछु जिनिस मन ल धर के आय जाय म मजा नि आय।अउ वो टुकना ल मुड़ उप्पर धरई हर तो मोला एको नि भाय; येकर सेथी मंय दु ठन टुकना मन ल डोर असन जिनिस म बांध के बने मोठहा बाँस म फँसो के अपन खांद म धरंव । एकर सेथी तीन ठन टुकना -एक रुनु के अउ दु मोर ,धरके हमन बनेचच गहिल वन- डोंगरी म उतर गय रहेन-

"अब आगु जवई हर ठीक नि ये...!"मंय कहें अउ खड़ा हो गंय, बड़खा सरई पेड़ के तरी म ।

"ओ काबर...?"

"अब आगु जवई म खतरा हो सकत हे। थे ।"

"खतरा...! का के खतरा...?"

" काबर की दोपहरी होवत हे ।"

"तब फेर का ...!"

" वनईला जनाउर मन के नरवा खंड़ म उतर के येहर पानी पिये के बेरा आय ।"    

                तभो ले भी रुनु हर जिद करत  रहिस कि चला जाबो अउ भीतर कोती।

" चल देखे जॉही ...!"मंय कहें अउ कुछु गुनत रुनु के पीछे पीछे जरूर जावत रहें ।


          हमन चलत चलत बनेच धुरिहा आ गयेन । अब थोरकुन कठर्रा बन डोंगरी  बीच म ये चौरस असन जगह म हमन पहुँच गय रहेन ।फेर आगु म भुइँया म सादा सादा  बनेच अकन कुछु जिनिस मन बगरे रहंय ।हमन आगु म जाके वो जिनिस मन ल बनेच नजर भर के देखेन ...


        ये मन कुछु बनईला बीज असन जिनिस रहीन , जउन मन आगी म जर के अइसन सादा सादा  भद भद ले हो गय रहीन ।रुनु हर तो तरी झुक के वोमन ल हाथ म बटोरे बटोरे करिस ।

"अरे...!अरे...! रुनु , तँय ये काय करत हस !" मैं कहेंव ।

"ले जाबो ,येमन ल ...!"

"का करबे ले जाके ।"

" मुँहटा म अइसन बगराबो ,अच्छा दिखत हे। "

              अब तो रुनु हर दु चार दाना मन ल मुहँ म घलव देवत रहिस-

"रुनु...!!"मोर मुँहू ल बल भरके निकल गय ।कुछु अल्हन- होनी झन हो जाय ,ये डर म ।कोन जानी  येमन का ये न का।

"बढिया लागत हे...!" रुनु कहिस ।

"रुक रुक कुछु हो जाही तब...!"

"कुछु नि होय। तीर म बाँचे दे बीज मन तो आँय, जउन मन आगी म अइसन हो गय हें ।"

"तब ले भी झन खा ।का पता कइसन कुछु लागही  तब...!"

         

        फेर मंय देखें रुनु हर मोर गोठ ल नि मनवाय रहिस । वोहर मोला देखे एक पइत फेर वो बगरे सादा फूल असन जिनिस मन ल । अब तो वोहर बीन -बीन  के एक हथौरी  वो आगी ले उपजे फूल मन ल लांन के मोर मुहँ म भर दिस-

"ओहो ! बड़ गजब !!"मोर मुँह ल निकल गय ।सिरतोन म वोकर सुआद हर आज तक खाय गय जिनिस मन ले आन रहिस । येहर हमन बर नावा जिनिस रहिस । रुनु तो अब अउ वोमन ल बीन बीन के खावत रहिस ।

"रुनु ,अब बस कर...!!"अबले भी मंय ये नावा जिनिस ओ लेके परछर नि रहेंय । का पता का हो जाही...!

 

           रुनु हर तो अब वोमन ल अउ नइ खाइस, फेर वोमन ल बीनत बीनत अपन टुकना म धरत रहिस ।खैर ये नावा जिनिस हर घलव बड़ अच्छा लागत रहिस ।अउ अब बुद्धि ऊपर मोर अन्तस् हर जीत गय।महुँ ल लागीस येमन कुछु बिगाड़ करईया जिनिस नि होइन ।


           अब मोर मन करिस ,तीर म जउन बीज मन दिखत हे, ये आगी फूल के ,येमन ल ही आज धर के अउ भर के जाया जाय । मंय  वो कोती चल देंय अउ वो बीज मन ल झर्रा- झर्रा के अपन टुकना म भरे लागें । येला देखिस तब रुनु चिरई कस चहकत मोर तीर म आके अपन टुकना म वो बीज मन ल धरे के कोशिश करिस । देखते देखत हमन अपन अपन टुकना मन म वो बीज मन ल भर डारेंन। ये कोती तो ये पातर पातर बीज के तो भण्डार भरे रहिस । 


            अब हमन अपन अपन टुकना म फर फूल के जगहा आज पहिली बार ये नावा बीज मन ल भर के लानत रहेन ।टुकना हर बड़ गरू लागत रहिस, फेर मन हर तो आज कुलेल मारत रहिस ।

" ये काये येमन ...?"रुनु पूछिस ।

"येमन का यें ...?"मंय तीर के रुख राई कोती ल इशारा करत पूछें ।

"पान...!"

"रुख राई उपर पान तब येहर  धरती उपर के धान...!"

"धान...!!"

"हाँ...हाँ...धान। धान...!" मंय हाँसत कहेंय ।

"धान...!"

"धान...!!"


        घर आयेन अउ पेट भर पानी ल पियेंन,  अब तो अइसन लागत रहिस के पेट हर पूरा के पूरा भर गय।हमन ये फूल ल मन खाय रहेन ,तेकर सेथी अब अइसन लागत रहिस, अब मोला समझ आइस  ।



*** 

   



                   (11)


           अब तो रुनु ल ये नावा बीज मन बर एकठन  मया जग गय रहिस ।जब भी  वोहर मौका  पाय तब वोहर ए गहील बन डोंगरी कती उतर जाए अउ  जिहां -जिहां  भी ये बीज मन नजर आए । वोला संकेले के बुता जरूर करय । वह दिन  मैं खेल -खेलवारी म ये बीज मन बर कहें रहें-               

               पेड़ के    पान

               धरती के धान

 

       रुनु  हर  तो येमन ल संकेल- संकेल  के  घर में कई ठन भाड़ा मन में ये बीज अँ...ये धान मन ल  भरत रहिस ।  अउ जब भी मौका मिले  वोहर ये वन डोंगरी म अकेला उतर जाय।अउ ये आगी फूल अउ धान ल खोजे । आगी म तपे ल  धान मन आगी फूल बन जांय ।रुनु  ल ये आगी फूल हर बड़ पसन्द रहिस । वोहर खुद अपन कह लेय अउ मोर बर घलव धर के ले आने अउ मोला अब्बड़ मया करत खवावे । ये आगी फूल मन मोला घलव बढिया लागे। 



         फेर कुछु भी निकता ल मंय हमर सब मनखे मन ल जरूर बतावव ।फुलझर हर तो मोर छइहाँ ये अउ मंय खुद वोकर छइहाँ अँव । मैं जब जान डारें कि ये आगी फूल हर कुछु नुकसान नि करत ये खाय म ,तब मैं फुलझर ल बला ले लांन के वोला सफ्फा करे गय आगी फूल ल बताएंव -

"ये ...! ये का...?" वो कहिस ।

"आगी फूल...!"

"आगी फूल...?"

"हाँ,भई आगी फूल ,खा के देख ।" मंय कहेंव अउ वोकर मुख म एक मुठा ये जिनिस ल डाल देंय । फुलझर चबलाइस ...! 

फेर हाँसत कहिस-अउ दे ।

"नहीं येहर झुनू बर आय ।चल वोला खवाबो ।" मंय कहेंव ।


            अब फुलझर काबर मना करथिस । ये ला लेके हम तीनों-मैं, रुनु अउ फुलझर ,रुनु ल खोझत वोमन के घर गयेन । झुनू हर घर बाहिर भुइँया ल पथरा के एकठन औजार म छीलत रहिस । वोकर छोले ले जगहा हर बड़ सुंदर दिखत रहिस ।

  

             फुलझर आगु गिस अउ झुनू के मुख म ये आगी फूल ल एक मुठा भर दिस । झुनू तो अकबका गय ,वोकर भराय मुंह ले आ...! आ...आई ...लाई  निकल गय ।

"ये का कहे झुनू बने लागिस -लाई !"

"लाई...!"रुनु के आँखी म जोत उमग गय । अब तो वोहर मोर कोती ल देखत फेर कहिस- लाई ।

"लाई...!"महुँ कहेंव , अब तो आगी फूल हर झुनू के मुख ले लाई बन गय रहिस ।


           रुनु हर माटी के बनाय भाँड़ा मन म वो बीज कही के अब धान मन ल लांन लांन के राखत जात रहिस । आज वोहर अइसनहे एक ठन धान भराय भाँड़ा ल बाहिर म छोड़ डारिस,अउ येती बाहिर म बारे आगी हर वो कोती आ गय रहिस ।

 

             विहना के बेरा देखेन तब वो भाँड़ा हर पूरा के पूरा आगी फूल -लाई ले भरे रहिस ...एकदम झक्कास करत सादा । न बंद न कचरा...न धुर्रा न माटी। पूरा के पूरा साबुत साफ लाई । रुनु तो अब येला समझ गय रहिस । वोहर अब संझाती बेरा जब  रखवारी आगी बारे जाय।तब तीर म  जाके अइसन धान भरे भाँड़ा  ल छोड़ देय ,अउ विहना वोमे ल लाई निकल आय ।


            रुनु हर तो अब पूरा गांव कोती किंजर किंजर के सब झन ल ये बुता ल बताय ।अब तो वोमन दिन के बेरा म ही आगी सुलगा के भाँड़ा मन ल तीपो के लाई बनाय बर शुरू कर दी रहिन । रुनु ल तो रोज कोई न कोई महिला हर बलाक़े ले जाएच रहे ।अउ रुनु घलव बिना कुछु भेदभाव के सब्बो बुता ल सब झन ल सीखोवत रहे । अब ले भी डोंगरी भीतरी बनेच बीज धान मन मिल जात रहिन । खचवाँ- खचवाँ जगहा म अब ले भी धान के पातर -पातर पौधा मन ओरमे रहिन ।


         वो दिन रुनु नि रहिस तब मंय आगु म माढ़े वो बीज धान मन ल एक मुठा धर के खेलत रहें, तब देखें वो दाना मन कोई कोई अलग अलग दिखत रहिन ।अइसन की पइत करें तब सब धान मन अलग अलग हो गिन । वो सब मन ल बीन बीन के अलग कर लेंय । अइसन कई पइत करें ।एकर सेथी बनेच अकन बिना खोल के ये बीज हर मोर करा हो गय रहिस । मंय येला रुनु के नजर बचा के आन जगहा म राख देंय।


          रुनु पानी लानत रहिस अउ सबो भाँड़ा म वो भरत रहिस । वोला पता नि चलिस,तेकर सेथी वोहर येहू भाँड़ा म पानी भर दिस । मंय आके देखें ,तब थोरकुन दुख मनावत वोमे के पानी ल निकाल देंय ।तभो ले  वोमे बनेच पानी हर बाँचे रह गय रहिस । अब मंय वोला पानी भराय भाँड़ा मन के पाँत ले हटाके धान भराय भाँड़ा कोती राख देये रहें ।


           रुनु अइसन पानी भरत वो जगहा के कतको फल -फलहरी लेवत आय । आज तो वोहर बड़े बड़े फुंट लाने रहिस,नरवा कोती ले ।एके फुट ल फोरेन तब हमर पेट भर गय, अघाव बुता गय । तब वोहर दूसरइया फुंट ल धरके झुनू मन ल देय बर चल दिस । फेर झुनू हर घर म नि रहिस ।वोहर तो फुलझर के चक्का गाड़ी के फेर सवारी म लग गय रहिस ।


         वोला जात देखिस...! तब रुनु भी वोमन के संग म हो लिस । अब सब झन मिल के वो बीज धन के जगहा म आ गय रहिन, काबर कि मैं घलव वोमन के पीछू पीछू आ गय रहेन ।

"आ शेरू भई... तहुँ आ गय ।"फुलझर कहिस हाँसत हाँसत ।

"फेर एती तुमन कइसन ।" मैं कहेंव ।

"हमन ये सब ला चक्का गाड़ी म भर के ले जाबो...!"

"काबर...?"

"येती रोज कोन आय ।अउ येकर लाई हर बने लागत हे।"

"अउ आने मन...?"

"अरे अतका हे  जेकर जइसन मन लागही,तेहर तइसन ले जाही ।"

               फुलझर के ये गोठ ल सुनके मंय चुप रह गंय ।अउ महुँ लग गंय, वोमन के संग म ये सब मन ल जोर के ले जाय बर ।अभी हमन बीज धान के पूरा पौधा ल खीच पुदक के लानत रहेन ।


        ये सब करत बनेच सांझ हो गय। कुछु कर चाहे झन कर फेर रखवारी वाले आगी मन ल जियाय बर वोमे हमन बड़े बड़े लकड़ी के गोला  मन ल  जोर देन । मंय ये बुता म लगे रहें, फेर रुनु हर तो दु चार भाँड़ा मन ल लांन के आगी तीर म  मढ़ात रहिस । आज तो वोहर कै न कै ठन भाँड़ा मन ल मढ़ा देय रहिस ।


              रात हर पहाइस हर बार कस अउ चमकत दिन हो गय ।हमन परछर होके आज का करबो,तउन ल गुनेंन ।

तभे रुनु हर वो बगरे भाँड़ा मन ल लाई के आसरा म ले आनीस । फेर ये का...!!

"देखव तो कइसे हो गय हे, एमें के धान हर...!"रुनु हर तो लगभग चिल्लावत कहिस। मंय जाके देखें । अब मोला काल के बात सुरता आ गय ।कइसे बीज मन ले ये सादा सादा छडा के एकठन भाँड़ा म राखे रहें, तेमे ये रुनु हर पानी भर देय रहिस। अउ वोई ल आग्गी म मढ़ा दिस ।अउ...अउ...वोइच हर असन हो गय हे ।


      हमन दूनों के दूनों देखेन-भाँड़ा म भरे रहय पानी असन सादा सादा । अइसन जिनिस तो महतारी के सीना म ले निकलथे।अइसन जिनिस जनाउर मन के भी तरी कोती ल  निकलथे, जउन ल पिला मन पीथें । चल कुछु भी होही देखे जाही ...! मंय आंखी म ही येला दु बाँटा करे के इशारा करें ।


     रुनु हर वोकर दु बाँटा कर के राख दिस।पहिली मंय उठाँय, फेर मोर हाथ ल रोकत रुनु हर वोला पहिली पी दिस।

पाछु महुँ पी देंय।


मंय का देखें वोला पेट भर पीये के बाद रुनु के आँखी ले तरतर सात धार के आसुँ फुट परिस-

"रुनु...!"मंय कहेंव ।

"अतका दिन ल काबर लुकाय रहे मां ...!"रुनु कहिस,वो एकठन गिरे दाना ल मुड़ म  चढ़ावत ।

" कइसे का हो गय ...!"

"आज महतारी के सीना ल निकले जिनिस ल फेर भेंट डारे हंव अइसन लागत हे ।" रुनु कहिस ।

      

  अब तो वोकर चेहरा हर सुरुज कस दपदप करत रहिस ।


***


                    (12 )


           अब तो रुनु हर एईच बुता कर देय रहिस ।वोहर वो बीज धान मन ल पथरा मन के बीच म घस घस के वोमन के फोकला ल अलग कर लेय ।कतको ल फूंक के उडाय ,त कतको ल पहिरे के जउन जिनिस रहे तेमन ल हला के हवा बना के उडाय । फेर छेवर म रग रग ल सादा सादा चिरई मन के नख असन जिनिस बाँचे,तउन ल भाँड़ा म भरके पानी  ना देय, अउ आगी बना के राख देय । वोती आगी म भाँड़ा म  वोमन खुद बुद खुद बुद करें,तब रुनु हर लंबा सुआसा तीरे जाने माने वोहर  वो कहर ल ही पेट भर पी लेना चाहत हे । वोकर बाद  जब आगी  ल वोला उतार के ठंडा करे फेर ....!


      फेर , वोहर अपन मन ल साध के मोला अगोरे । वोहर मोला बड़ मया करथे,तेकरे सेथी वोला लागथे -अभी तक जतका जिनिस मन ल हमन चीन्हे सके हावन तउन मन म सबले निकता जिनिस येई ख़ुद बुद ख़ुद बुद करत जिनिस हर आय । जब येहर पेट भीतर म जाथे,तब महतारी के कोरा म जउन जिनिस ल हमन पीये रहथन बस वोकरेच सुरता आथे। येकर निकता जिनिस अउ कुछु होही,अइसन नइ लागे । येकरे बर वोहर पहिली येला मोला खवाथे तब फेर अपन खाथे ।


           वो दिन तो मोर गहा मोर हिरदे हर भर गय । मैं थोरकुन एती वोती करत विलम गंय रहें घर कोती आये बर। रुनु हर अइसन आगी ल भाँड़ा ल उतार के मोला अगोरत रहय ।फेर मंय नि आय पाँय रहेंव...!येती पेट हर रुनु ल व्याकुल करत रहिस होही,तभो ले वोहर मोला बिन खवाय नि खाय ।तेकर सेथी वोहर भाँड़ा के उपर ले जउन कहर -महर करत रहय, वोला वोहर फेर लंबा सुआसा लेके पेट म भरत रहय ।

फेर खाइस नही वोहर । मैं आँय तब मोला  खवाक़े वोहर फेर खाइस ।


         अब तो रुनु हर कईठन पिचकाट करे। वोहर कभु भाँड़ा  म पानी ल कम कर देय, अउ आगी म मढ़ा देय। अब तो वोहर घर भीतर म गीला माटी ले भाँड़ा माढे असन जगहा बना के वोइमे आगी बारय । फेर जब वोहर बन जाय।तब खाय के पहिली थोरकुन निकाल के व्व आगी ल पहिली खाय बर देय । अइसन करे ले वो जगहा हर अउ कहर -महर करे लागय । पानी कम करे ले बने जिनिस हर घलव बढिया लागे ।  रुनु हर ये बुता ल सब झन ल सीखो देय ।


          झुनू हर रुनु तीर बइठे रहिस।आज वोमन दुनों झन मिल के बनेच अकन बीज धान ल दर नीछ के बनेच अकन वो सादा जिनिस मन ल ढेर लगा देय रहिन ।झुनू हर तो मुठा- मुठा वो जिनिस मन ले खेलत रहिस । वो मुठा भर के उठा के उपर ले तरी गिरात रहिस कहत कहत...छुर छुर छुर छुर गिरत हे।

छुर छुर छुर छुर गिरत हे।

छुर छुर छुर छुर गिरत हे।

"का हर बहिनी...!"रुनु कहिस।

"छुर छुर छुर छुर -चाउर !"झुनू के मुहँ ले उतारा निकल गय ।

"का कहे -चाउर...! बने लागीस..चाउर ।" रुनु कह दिस । रुनु कह दिस तब सब कह दिन ।रुनु हर आखिर मुखिया बनत रहिस हमर । बड़ सुंदर वोकर रंग रूप वइसन सुंदर बिन कपट वाले वोकर व्यवहार अउ छेवर म मोर संगवारी ।अतका हर काफी रहिस वोकर मुखिया बने बर ।


             कहे रहिस झुनू हर फेर पक्का करे रहिस रुनु हर -येमन चाउर ये ।

चल कनहुँ कोती ल विपरु आ धमकही तब जीभ ऐंठ के कुछु आन आन कह दिही। वइसे चिन्हारी बर नांव धरई जरूरी होथे फेर ये बुता बर सब रुनु के मुख ल देखें ।

चाउर...! चाउर...! धान ले चाउर ! सब कोती बात बगर गय रहिस अब ।


                      *


          आज रुनु हर थोरकुन उदास दिखत रहिस ।मंय वोला पूछें तब वोहर बताइस कि आज थोरकुन जादा ये नावा जिनिस चाउर हर भाँड़ा म पर गय हे । अतका ल खाय हमन नि सकन ।

"बस अतकिच बात ...!"

"चल   बाँचही  तउन ल फुलझर मन  ल दे देबो ।"

"नही ,वोमन अपन बर बना डारे हें ।"

"तब फिर वो ला जादा दे देबे जउन ल रोज तँय दु मुठा देथस ।"

"कोंन ल...!"

"अउ कोन ल ?वोई भऊ भऊ  भु...!" अइसन मैं कहेंव, अउ खुदे कठ्ठल गंय हाँसत- हाँसत।

"वो तो सबो घर के ल खाथे किंजर- किंजर के !" रुनु कहिस ।

"तब फिर रहान दे ।काल खाबो ...!"मंय जइसन फैसला देवत कहेंव ।


             अब तो रुनु खाय के बाद जउन बाँचीस ,तउन ल एक दूसर भाँड़ा तोप के राख दिस । फेर आगु दिन वोला हमन खाय नि सकेन, वोहर आन तान कहरत रहिस । फेर वोला फेंकत रुनु के आंसू चुह गय दु बूंदी ...!


           आज फिर बाँच गय हे,तब मंय रुनु ल कहेंव कि वोहर ये में आज पानी  डाल देय। व्व वइसन करिस भी । अब रात पहाय के बाद विहना जलपान के बेरा वोला देखेन - अरे येमन तो एक एक दाना मन अउ फूल असन खिल गय रहिन । कहर हर भी जी ल ज़ुड़ाय असन कहरत रहे । रुनु मोर अंग ल देखिस ।मंय वोला आंखी के इशारा म मोला देय बर कहेंव ।

        

            वो आन भाँड़ा म निकाल के मोला दिस ।मैं हाथ धो के वोमे के एक मुठा भर ल मुँहू म नाय! अहा! अब तो मोर शरीर मन अउ आत्मा हर शांत हो गय रहिस ।आज महतारी के कोरा के जिनिस ल मंय फेर पा गय रहेंव । बाँचे ल रुनु कहिस बाँचे ले बने हे ये बासी ये ।

 मंय फुलझर के संग म बइठे रहें वो दिन । झुनू हर  अब भिड़ गय रहिस,संझाती के खाय पिये के जिनिस बर। हमन के गोठ बात  चलतेच रहिस ।हमर अउ का गोठ बात ...! बस वोइच गाड़ी पीढ़ा चक्का के गोठ बात । हमन के मंझ म फुलझर हर चक्का बनाय म बड़ हुशियार रहिस ।अपन बर खुद तीन ठन गाड़ी बना लेय रहिस । हमन बर दु ठन बना देय रहिस । 


                फुलझर हर तो लगभग सब्बो झन बर एक एक ठन गाड़ी बना देय रहिस। गाड़ी रहे के सेथी हमन ल गहिल वन डोंगरी ले कुछु कुछु जिनिस मन ल लाने बर बड़ सहूलियत होय । अब तो हमर घर तीर के बनेच रुख राई मन ल हमन काट डारे रहेन।हमन ल उवत सुरुज के अंजोर घलव चाहिये रहिस।फेर सबके घर के आगु पाछु म नावा नावा खाय के पौधा मन जरूर गझिन हो गय रहिन ।


              अतका बेर ल झुनु हर चाउर ल भाड़ा म चढ़ा के उतार घलव लेय रहिस ।

 "ये का ये झुनू ...!"मंय वोला चुलात कहेंव ।

"आ...! तिपत तात तात...भात !" वो कहिस। 

"वाह...!"मोर मुहँ ले तुरन्ते निकल गय, "क्या बात बहिनी , का बढ़िया कहे तँय ...तात तात भात ! तिपत तिपत  भात ।"

"भात...!"फुलझर कहिस।

" हाँ  भात भात...।" झुनू कहिस हाँसत हाँसत ।

" फुलझर ले अब तँय गोठ ल पुरोबे ..!" मंय कहेंव वोला ।

"का  ये, पहिली बता वोला...?"

"धरती ले उदगरत हे ..धान ।"

"हाँ...!"

"धान ले चाउर...!"

"अउ चाउर ले बनत हे भात...!"

"भात भात भात ।"

"भात ल काल बनही बासी ...!"

"अउ अउ आगी फूल लाई...?"फुलझर तो अइसन गोठ ल सुनके हाँस भरे रहिस ।

"हाँ ...!  भई वोई हर तो शुरू ये हमर ये अतेक निकता जिनिस ल पाय के।" मंय कहेंव अउ अब मोर घर कोती जाय बर उठ खड़ा होंय ।

"भई...या , आज मोर बनाय ये तात तात भात ल पहिली खा फेर जाबे ।" झुनू कहिस अउ आके मोर हाथ ल धर लिस ।अब  भला मंय वोकर गोठ ल कइसे काटथें । वोहर मोर बहिनी जो आय ।

          

            मंय वोकर मन ल राखे बर सिरतो रुक गंय।झुनू हर तो आज अउ आन आन पिचकाट कर राखे रहिस।वोहर दु चार ठन कांदा कुसा मन ल अब आगी बता के राखे अउ खाय लगे रहिस। वोई आगी म अभी आलू अउ आन कांदा मन ल भुजंत रहिस ।

सँग म वोहर लीमऊ ल घलव राखे रहिस ।


        वोहर फुलझर अउ मोला, दुनो झन ल खाय बर  आन आन भाँड़ा म देय रहिस ।मैं तुरन्त फुरन्त येकर बर करत रहेंव 

काबर कि वोती रुनु मोर डहर देखत होही ।तेकर बर मंय जल्दी -जल्दी खा के अपन घर जाना चाहत रहंय । अउ जल्दी जल्दी सबो जिनिस ल मंय खाँय घलव । रुनु हर घलव अब अइसन करत हे...  सँग म अउ कुछु खाय बर जरूर देथे ,फेर ये जिनिस म झुनू हर रुनु ले कतको आगु हे । देख न कै न कै ठन जिनिस मन ल देय हे खाय बर ।


             येती हमन खाय बर बइठे रहेन कि रुनु घलव पहुँच गय इहाँ । अउ मोला अइसन भोग लगावत देखिस तब वोहर येला देख के हाँस भरिस ओ हो ...कहत !

"रुनु आ ...!"फुलझर कहिस।वोहू हर वोला अपन बहिनी असन माने,"आ तहूँ भात खा ।"

"आँ...! का कहे भई...?"

"भात...!"

"भात...?"रुनु के तो मुहँ हर फरा गय रहय।ये नाव ल तो वोहर पहिली पइत सुनत हे ।अउ सुनथिस भी कइसन ...ये ला तो झुनु हर अभी अभी कहे हावे ।



***



                       (13 )


      सब कोती हर सिनिन  सिट करत रहिस । सब के सब नींद म माते रहिन । तभे मोर  मुँहटा म बड़ जोर  जोर से फुलझर के अवाज सुनई परिस । वोहर मोला नांव धरके हाँक पारत रहय- ये शेरू !...शेरू भई !

     

           नींद हर अतेक गहिल रहिस कि एक दु पइत वोकर आवाज ल सुने,तब ले भी मंय उठे म समरथ नि हो पाँय । रुनु हर तो उठ के बइठ गय रहिस अउ वोहर मोर हाथ ल तीरत रहिस उठे बर ...।

"अँ ...हं...का हो गिस ?" मंय सारचेत होत कहेंव ।

" वो दे  फुलझर भई असन लागत हे। हाँक पारत हे काबर ...?"वो कहिस ।


      अब तो मंय रटपटा के उठ बइठे रहंय अउ तुरतेच मुँहटा कोती आ गंय ।

मुँहटा म सिरतोन फुलझर ठाढे रहिस ।

"कइसे फुलझर , का हो गय ...!"मंय पूछें वोला ।

"चला तो देखिहा ,झुनू कइसे कइसे करत हे ।" वो सरपट कहिस ।

         

              अतका बेर ल रुनु घलव निकल आय रहिस कइसे का होगय कहत ...! मंय थोर थोर गोठ ल समझत रहें । आगी के अंजोर म मंय रुनु कोती ल देखें । वो  भी मोर कोती ल देखिस ।हमन आँखी च आँखी म गोठ बात कर डारेंन अउ तुरतेच एकराय हो गयेन कि का जिनिस ये तउन ल ।


          रुनु सरनटात कुदिस फुलझर घर कोती ।मंय आगी के अंजोर म ही फुलझर के मुँहू कोती ल देखें -का वोइच ये  या आन दूसर । फुलझर आँखी ल तरी कर लिस ।  मंय देखें वोकर मुख म  थोरकुन लाज असन जिनिस हर दिखत रहिस । 

" चल...!" मंय कहेंव फुलझर ल। वो अउ मंय हमन दुनों झन थोरकुन शांत हो गय रहेन काबर कि रुनु हर तो कुद के चल देय रहिस वोकर तीर म ।जउन होही तउन ल देखे जाही ।

           

            हमन धीरे धीरे अब इहाँ आ घलव गय रहेन ।मंय उप्पर अगास कोती ल देखें । तरी  घरों घर बरत रखवार आगी के अंजोर म घलव रात हर अभी बिरबिट करिया रहिस । फेर जउन सबला बड़का तारा जोगनी हर संझाती  बुड़ती म बुड़े रहिथे, वोहर फेर किंजर के ये उत्ती कोती आ जाय रहिथे ।वो तारा हर  फेर दिखे के शुरू हो गय रहिस । बग बग बटर बटर निहारत ये तारा हर हमन ल बड़ सुहाथे । वोला देखथन तब मन म नावा उछाह आ जाथे ये दुनिया म अउ जीये बर ।


       मंय फुलझर के घर म बरत रखवार आगी के  मद्धिम अंजोर  म देखें -फुलझर हर अब विधुन दिखत हे । वोकर चेहरा म पसीना थीपे के शुरू हो गय रहिस । मंय वोकर हाथ ल धर लेंय।अइसन करे ले वोला घलव बने लागिस , वोहु मोर हाथ ल धर लिस कसके ।तभो ले वोकर नजर घर कोती लगे रहय जिहाँ रुनु हर अघवा के चल देय हावे । मंय अब फुलझर के खांद म हाथ धरें अउ वोला थपथपाय जाने माने शांत रह कुछु नि होय कहत हंव मैँ ।


         तभे घर भीतर ल किल्ली- गोहार परे के अवाज सुनई परिस ।मंय फुलझर ल आगु पहुंच गंय मुँहटा म...

"कइसे रुनु...!"मंय बाहिर ले ही जोरलगहा कहेंव ।

"नहीं नहीं ...अभी कुछु नहीं ।" भीतर कोती ल रुनु के अवाज सुनई परिस । अब तो फुलझर ल जादा व्याकुल मंय हो गय रहेंव ।मंय तुरत उहाँ ले निकल।आँय । अब तो मोला घलव कुछु नि सूझत रहिस-का करी !कइसन होही अब ...!

"विपरु...! "मोर मुँहू ले निकल गय ,"रुक फुलझर तँय अइच जघा म ।मंय विपरु करा जात हंव । वोहर कुछु रस्ता बताही ।"


           मंय सरनटात विपरु के घर कोती पहुँच गंय । फेर मोला अब वोला सुतत ल उठाय बर नि लागीस।वोहर खुद उठके चुपचाप आँखी मूंदे  बाहिर अंगनईया के चरकोन पथरा म बइठे रहिस,अइसन लागत रहिस कि वोहर ये जगहा म नि ये । वोहर तो नहा डारे हे अइसन लागत रहय...चुन्दी मुड़ी हर गीला रहय । मंय वोला अइसन देखें तब  मोला लागीस कि येहर बहुत धुर चल देय हे।अउ जब फ़िरही तब हमन बर जरूर कुछु न कुछु जरूर लेके आही । वोला अइसन अतेक शांत बिन चित पोठ के देखे के बाद मोर मन म वोला जोर से चिचिया के जगाय के नि करत रहे,फेर मंय जउन जिनिस बर इहाँ आये हंव ,वोहर बिन बताय कइसे पूरा होही...?

"विपरु...!"मंय धीरन्त सुर म कहेंव । फेर विपरु हर नि सुनिस अइसन लागिस । मंय थोरकुन जोरलगहा हाँक पारें ।अब तो वोहर बक्क ल आँखी उघारिस अउ आगु म मोला देख के थोरकुन अकबकाइस !

"कइसे भई, कइसे...?"वो कहिस ।

"चल तो भईं हमर घर तीर...!"मंय वोला कहेंव अउ पूरा बात बतायें ।वो बपुरा तुरनतेच घर भीतर गिस अउ एक ठन भाँड़ा म कुछु कुछु जिनिस मन ल धर के आ गय ...चल कहत ।


      तुरतेच ताही हमन  आ गयेन ।फेर येती फुलझर हर अपन दुनों हाथ में ल झुलात तरी उपर करत मुड़ म छुवात रेंगत रहय अउ वोकर मुख ल का न का निकलत रहय-

कोई तो हावस जउन हर पार  लगाथस ।

कुकुर बिलई गाय गरू घलव होथें हरु गरू । सङ्ग म साक्षात खड़ा होथस ,तब होथें पार । आज येहू खड़े हे...! किंजरत हे छटपटात हे, कर दे येहू ल पार । वन म रहईया वन देवी  ! मैं तोला बलाओं तोला बलाओं ओ...! ओ मां ...!  हो जाही पार तब मंय तोला सात ठन  फूल चड़ाहाँ ! अउ नहीं त मोर अंगठा के रकत चड़ाहाँ !!


       फुलझर विधुन होके जउन ल कभु नइ देखे अन तउन ल पुकारत रहय । फेर घर भीतर ल  झुनू के किल्ली -गोहार हर फेर सुनई परिस । विपरु कूद के वो मुँहटा म पहुंच गय ।अउ अपन भाँड़ा ल का का बनईला पान- पतई निकालिस ।अउ वोला रिमंज के रस असन निकालिस  ,वो रस ल रुनु ल दे दिस अउ पियाय बर कहिस । रुनु हर मोर आँखी ले इशारा पइस अउ ठीक वसनहेच करिस ।  


        अतका करत धरत ल अउ आन -आन मनखे मन इहाँ ठुला गय रहिन । बस एकझन के इंतजार रहिस - वो रहिस उवत सुरुज के ।आखिर बोहु निकलिस वोकर महतारी के कोरा ले अउ येती एक पइत फेर झुनू के किल्ली गोहार हर बाढ़ गिस फेर वोहर अभोल हो गय ।


         फेर येती रुनु के हाथ म हम सब झन देखेन फुलझर कस एकठन नानकुन फुलझर हर अब अपन महतारी झुनू के  बलदा म रोय कस करिस हे ।

"झुनू के रोय के उपाय मोर करा रहिस।फेर अब येकर रोय के उपाय येकर महतारी कर भर हावे ...!" विपरु कहिस अउ तीर म फुले एकठन फूल ल लांन के लइका ल धराय कस करिस को जानी का का कहत ...!

 "ले जा बहिनी,येला अब येकर महतारी तीर म राख । कोन जानी कोन जघा ल एकर बर का आवत हे...!"विपरु कहिस सदाकाल कस अटपटहा गोठ ।

अउ रुनु लइका ल ले जा के महतारी झुनू के तीर म राख दिस।अब तक झुनू हर बने हो गय रहिस । वोहर लइका ल देख के थोरकुन लजाइस।फेर वसनहेच  लजात रुनु घलव बाहिर निकल आइस ।

"ले अब मैं जावत हंव ।"विपरु कहिस ।

"मैं तोला ले के आँय हंव ,तब तोला अमरा के घलव आहाँ ...!"मैं हाँसी करत कहेंव ।

"चल चल जरूर चल ...!"विपरु कहिस अउ अपन भाँड़ा ल धरे कस करिस ।मै आगु जा के वो भाँड़ा ल टप्प ल धर लेंय। ए बबा रे...! का न का भराय हे एमें !! 


         वो हँसीस अउ चले लागिस ।मैं वोकर हाथ ल धर के खींचत कहें-वोती आग्गी हे, पांव झन मढ़ा ।"

"अग्नि...!"

"आग्गी!"

"अग्नि ...!"

"आग्गी...!!"

"अग्नि... वन्हि !

"आग्गी...आगी  -चुपे चाप चल ।" मंय कहेंव,एती उवत सुरुज हर हमन दुनों झन के बहस ल देख के हाँसत रहिस ।


***



               ( 14 )


                          भालू हर तो अब गोंगनिया करत रहिस ।चार गोड़ हाथ म रेंगे एती वोती । फेर कभु कभु अब्बड़ रोय । अउ एती वोकर रोवइ ल सुने तब रुनु हर तो मुड़ा ऊँचा के भागे वोकर कोती । वोहर जाके भालू ल टप्प ल पा लेय । अउ भालू घलव अतेक दिन म  अपन हितु प्रीतू मन ल  चिन्ह डारेअपन हितु प्रीतू मन ल बनेच चिन्ह डारे रहिस । वोहर मोर करा घलव कूद के पवा जाय । 


          फेर मोर नजर ये पइत झुनू उपर परे तो मोर मन हर थोरकुन विधुन हो जाय। वोकर गत नमुना हर ये पइत आन आन दिखय । आन आन का वोकर देहें हर पहिली ल आधा नि दिखे ।कइसन होगय येला मोला गुनान पेल देय । फुलझर घलव एईच बात ल कहत रहिस वो दिन ।महुँ घलव बनेच गुनें तब ये बात थोर थोर समझ म आइस ।

"फुलझर हदर झन । लइका हर पीयत हे, तेकर सेथी महतारी हर थोरकुन  कमजोर हो गय हे।" मंय कहें रहें ।

"ठीक हे, भई ! फेर अइसन म कइसन काम चलही । " वो कहिस ।

"चल कुछु तो उपाय करबो ।" मंय कहेंव । 


             मंय कह देंय तब वो वोपरा थोरकुन  जुड़ा गय अउ शांत होके अपन घर कोती चल दिस  ।फेर एती मंय कह तो देंय रहें अब मंय का करथें । तभो ल कुछु करेच बर परिही ! मंय बइठे रहें ...बइठे रहें । तब मोला लागिस कि झुनू ल अब वोकर बने के होत ल का अइसन चुपचाप बईठन दी । वोला कुछु भी बाहिर के बुता काम ले पूरा आराम दे दी । हां ...! ये बात हर मोला जँच गिस ।


        मंय फुलझर ल बला के बात ल बतांय तब वो चुप पर गय । मोला लागिस कि वोला मोर गोठ हर नि जँचत ये । वो तो निचट चुप पर गय रहिस ।

"कइसे का होइस ।" मंय पूछेंव वोला ।

"कुछु तो नही ।"

"तब फिर अतेक काबर गुनत हस ।" मंय कहेंव ।

" का येहर बड़ बात आय । अरे मंय अकेला झुनू का तोर रुनु सबके पेट के पुरता ले आन हंव खाय के जिनिस मन ल ।" फुलझर कहिस ।

"तब का हो गय ।" 

"कुछु निही ...!झुनु हर पहिली कस दिखही कि नही ।" वो कहिस फेर वोकर गोठ मोला कनहुँ गहिल वन- डोंगरी कोती ल आवत हे अइसन लगत रहे ।

"पहिली च कस हो जाही भई । कुछु नि होय । फेर वोला पूरा आराम करन दी अतका झन हन तब तो ये बुता ल कर सकत हन ।


        फुलझर मोर मुँहू ल बकर बकर देखत भर रहिस वो दिन ।


                     *


         आज भालू हर फेर किल्ली पार के रोवत हे । फेर आज तो मंय खुद अगवा गंय रुनु ल । वोहू निकलिस फेर मंय आज आघु हो गय रहेंय । मंय झुनु  के मुहंटा म जाके वोला हाँक पारें -झुनू, लांन लइका ल मोला दे ।

            

             झुनू मोर गोठ ल सुनिस अउ भालू ल लेके बाहिर निकल आइस । वोहर वोला मोला बढाइस  ।मंय भालू ल अपन हाथ म लेंय । फेर ये का ...!लइका ल धरत मोर हाथ हर झुनू के देंहे ल थोरकुन छू पारिस । झुनू के देंहे हर तो आगी असन चट्ट करत रहिस ।

"काबर रोथे येहर ।"मंय पूँछेव ।

"येहर तो आज काल म अइसन जादा रोतेच हे, भईया ।" झुनू कहिस ।


         मंय भालू के शरीर ल समारत रहें। समारत...समारत गंय  तब पेट जगहा हर मोला जुच्छा लागीस ।  वोला देख के मंय झुनू कोती ल देंखे ! मोला अइसन देखत देखिस तब झुनू हर पल पल पल पल रोये लागिस । वोकर रोवई ल देखें तब मन्य सब कुछ समझ गंय - नारी परानी होय के सेथी कहे नि सकत ये । सीना म दूध नई ये । तभे लइका आकुल -व्याकुल रोवत हे भुखन म ।


                अब तो मोर आँखी के आगु म वोइच गाय  बछरू के दृश्य हर बार बार आय । चल तो देखे जाही, भालू हर फुलझर -झुनू के लइका आय त का वोहर मोर लइका नि होय का ? मंय बनेच हिम्मत करके वोला अपन सँग  वोइच वन -डोंगरी कोती ले आनें ।फेर मोर नजर हर तो कुछु आन खोजत रहे ...! थोरकून एती वोती किंजरे के बाद  मंय वो दिन के वो गोरस वाली गाय ल खोज डारे ।अब ले भी वोकर तरी विसनहेच थप...थीप  दिखत रहय । 


       मंय तीर म खड़े वोकर बछरू कोती ये लइका भालू ल कर देय।एक पइत तो गाय हर फों...करत डरवा घलव दिस ।फेर बनेच हिम्मत करके, काबर कि संग म मोर ,ये लइका हर रहिस , मंय वो बछरू अउ गाय ल छुए समारे  लग गयें ।मोर समारे हर गाय ल बने लागिस, वोहर तो वोकर घेंच ल दे दिस ले अउ समार कह के । मंय बनेच बेर ल वोला समारें अब तो गाय हर खुद मोर हाथ ल चाटें के शुरू कर देय रहिस ।फेर एती बछरू हर घलव गाय ल पीये के फिर शुरू कर दिस । बस एइच मौका ल मंय खोजत रहें । मैं अपन चारों कोती वन -डोंगरी ल देखें, धरती अगास कोती ल देखें ...!मोला लागत रहय कि अब मंय कुछु गलत करत हंव,तभो ल भालू के पेट ल देखत ये बुता ल करिच पारें- मंय भालू के मुहूं ल बछरू के संग म गाय के तरी म लगा देंय। भुखन मरत भालू घलव चालू हो गय । दूनों झन पेट भर पीइन ,तभो ले गाय के तरी ले वो थप... थीप हर बन्द नई होय रहिस ।


          अब तो कुलकत भालू ल लान के वोकर महतारी ल धरा देंय ।वोला अइसन कुलकत देख के झुनू के आँखी हर बटरा गय ।अब वोहर वोकर देहें ल समारत रहिस । 


     फुलझर खार डोंगरी कोती ल फिरिस तब लइका ल बने परछर खेलत देखिस तव वोकरो मन हर जुड़ा गय । वोहर झुनू कोती ल देखिस , तब झुनू हर फेर पल पल पल पल रोय लॉगिस । अब तो लइका ल लेके फुलझर मोर कोती आ गय ।मंय वोला पूरा बात आड़ी मुड़ा के जात ल बतांय । एल सुनिस तव फुलझर के आँखी म चमक आ गय ।

"चल भई, एक पइत अउ ! ये लइका ल एक पइत अउ पिया के लांन बो ।"फुलझर कहिस । मंय भला काबर इनकार करथें !

"चल...!" मंय  कहेंव ।फेर अतेक वेरा ल मंय हर तो आन दिन बर सोच डारे रहें । 


        असल म मैं एक दिन देखे रहें । गर्रा- धुंका म एक ठन बड़े सेरसवां  के रुख हर ढलगे रहिस । तब विहान दिन  गाय जात के कतेक न कतेक जनाऊर मन  भुइँया म चरइ ल छोड़ के वो रुख के पाना मन ल पेट भर खात रहिन । खईन खईन पेट भर खईन !पूरा रुख ल सफाचट कर दिन , तब ले भी वोकरा खड़े रहिन । येकर से मोला पता हो गय रहिस कि ये गाय -गरू मन ल भुइँया के बंद घास ले ये रुख के पाना हर जादा  पसन्द हे । बस...! बन गय बुता...!


            मंय आगु जाके बने एक अँकवार वो सेरसवां रुख के डारा मन ल  टोर के धर लेंय । अउ अब फुलझर ल बलांय ...ले चल  अब जाबो  कहत । वोहर अब भालू ल धर लिस अउ आ गय । हमन थोरकुन एती -वोती बनेच खोझेंन , तब फेर वो गाय हर भेंटाइस ।

"वो देख वोहर ये...!!"मंय गाय कोती कूदत कहेंव ।


        मंय अगवा के गंय अउ गाय के आघु म ये पान मन ल कर देंय । गाय हर तो कूद के आके ये पान मन म जटक गय । मंय वोला समारत बछरू लइका अदली बदली करत रहें । भालू एक पइत फेर पी लिस गाय के गोरस ल पेट भर ।


          अब आगु दिन मंय सुत के उठे तब देखें फुलझर घर आगु म वो गाय हर  ठाढे हे अउ वोकर आगु म सेरसवां पान के ढेरी लगे हावे । गाय हर वो पान मन ल खाय के शुरू कर देय रहिस,अउ येती फुलझर  काले असन बछरू पीला अदली बदली करत लइका ल गाय के गोरस ल पियात रहिस  ।


       येला देखें तब मोला बड़ नीक लागीस  ।


***



     

                      

                   (15 )


                अब तो हमन अपन बनेच गोठ मन ल सुरता राखत रहेन । वो गोठ मन ल सबल जादा , जेहर हम सब के काम के रहे । अउ ये गोठ ल हमन अपन लइका मन ल कै न कै पइत सुनाय के कोशिश करन ,जेकर ले वो लइका मन ये गोठ मन ल पूरा घोख लेंय अउ वोहु मन ये गोठ मन ल आपस म एक दूसर ल सुनाय । अइसन करे ले बनेच अकन गोठ हर हमन ल मुँहू जबानी याद हो गय रहय ।


        अब हमन जान डारे रहेन कि कब दिन हर छोटे होते अउ रात हर बड़े। ठीक येकर उलट कब दिन हर बड़े अउ रात हर छोटे । जब जाड़ लागे दिन छोटे अउ घाम झूरे तब दिन बड़े,फेर पानी महीना म समगम दूनों बराबर ।


             ठीक अइसन दिन अउ रात होवत देखत हमन ल पता रहय ,कब चंदा हर पूरा गोलवा हे, फेर धीरे- धीरे खियात -खियात एक दिन तो दिखबे नि करे, फेर धीरे धीरे तिल तिल बाढ़त फेर पूरा गोलवा हो जाथे ।येला हमन अब पाखा भिथिया मन म रेख खींच खींच के राखन अउ फुरसत के बेरा म वोमन ल समझे के कोशिश करन ।


            नारी -परानी मन के देंहे म घलव चंदा असन बदलाव आय ।अउ अइसन अइसन कइ ठन गोठ ...रहिस जउन मन ल अब हमन सीख समझ के राखत रहेन  अब । फेर जो सबला बड़खा सीख रहिस वोहर रहिस कि थोर थोर दिन के बाद म  घाम, पानी फेर जाड़ लागथे । ये बात ल तो हमन अब सिखत हन ,फेर ये रुख -राई मन तो बनेच  पहिली ल सीख डारें हें । तभे तो वोमन ठीक समय म अपन बुता ल कर डारथे । समय म पान झारथें,  समय म फेर नावा पान -फूल -फर सब आवत रथें ।


          अभी पुरा घाम महीना चढ़े हे । हमन वन डोंगरी जाके पानी महीना म नि मिलईया जिनिस चार- चिरोंजी,  सुक्खा बोइर ,अमली मन ल संकेले के बुता करत रहेन । फेर हमन  सबला जादा वो धान  भरत रहेन अपन अपन जघा म माटी के छोटे छोटे घर - कोठी बनाके  । जब ल हमन खाय म येकर स्वाद ल पाँय हन ,हमन ल अउ आन कुछु नइ सुहाय खाय के बेरा म । एके जिनिस हर कई रकम के बन जाथे खाय के बेर म ।अउ जब येला खाथन तब सब कुछ खाय के आनन्द हर मिल जाथे ।

"कइसे जोगनी ! का होगय नोनी ...? कइसे रोन -रोनहू हस ?अउ खाली टुकना धरे फिरत घलव हस ।"मंय पूछें जोगनी ल ,जउन हर खाली टुकना धर के फिरत रहिस सुटूर...सुटुर चुपे चाप  !

मोर गोठ ल सुनिस,तब वोहर खड़ा हो गय कहिस कुछु नही ।

"कइसे का हो गय...?" मंय अउ कुछु ऊँच नीच के डर म भर गंय ।

"आज... ! आज धान नइ पाँय भईया ।"

जोगनी कहिस,"जउन जगहा के  धान ल काल देख के आय रहें तउन ल कोन आने में ले आनिन ।" वो कहिस । फेर वोकर अइसन कहे म बड़ पीरा हर झलकत रहिस ।

"तँय देख के आय रहे ।"

"हँ... अँ...! अब वोकरा पैरा भर हर बाँचे हे । धान ल मिस छड़ा के, कोन जानी कोन मन ले आने हावें ।" जोगनी अब ले भी सम नइ होय रहिस ।


    अब मंय गुनें ...! आखिर आज जोगनी फिरिस हे खाली हाथ । काल ल तँय फिरबे अउ आगु दिन मंय ।अइसन करे ले काम नि चलय ।  फेर मोर नजर रुनु के कोला बारी अउ कलिंदर बारी कोती चल देय ,कइसन बढिया दिखते अउ जब मन लागही तब हमन ल येमन ल टोर के ले आनथन  अउ खा लेथन । का अब हमन ल ये धान ल घलव बारी बना के अइसन जगाना पढ़ही । 


       पानी गिरे के लक्छन दिखत रहिस।मंय घर भीतर जाके एक ठन टुकना म राखे धान मन ल ले आने अउ मोर घर के तीर के खाली भुइँया म मंय वो मन ल छींच देंय तभे मोर तीर म रुनु आ गय - ये ये कइसे करत हावा ।

"थोरकुन  मोला ये बुता ल करन दे,रुनु । " मंय कहेंव ।

"मंय समझ गंय तुँ का करत हावा तउन ल ...!"

"सिरतोन ...!"

"हाँ, अउ नही त का । तुँ  ये  धान मन ल  अइसन छींच के येमन के पौधा बनाना चाहत हव ।"

"हाँ...!ठीक समझे तैं । "मैं कहेंव  फेर मोर हाथ ल गिरे बीज मन सब कोती परत रहिन । 


          वो दिन तो के साल के बरखा के पहिली दिन रहिस । बढिया झमाझम पानी गिरीस ।  आगु दिन हमन सब के सब अवइया बरसात बर घर कुरिया मन ल जतने बर लग गयेन । हमन छिन रुख के पान मन ल लांन के छानही म अब लदकत रहेन । अइसन करे ले कतको बरसात होय  ले भी हमर घर म पानी तो पानी का  पानी के धींसा तक हर नि आय ।


       थोरकुन दिन म देखेन हमन  दुनों झन हमर घर तीर हर हरियर हरियर नावा नावा धान के पेड़ मन ले भर गय रहिस । दु चार जगहा हर खाली दिखय तब रुनु हर  वन डोंगरी ले जउन भी धन के विरवा मिल जाय ,तउन ल लांन के वोमे जगा देय ।


       आज तो रुनु हर कोन जानी को कोती ले बनेच बड़े ...बड़े  धान के ये विरवा मन ल ले आये हे । अउ वोहर वोमन ल आगु के खुला जगहा म जिहाँ थोरकुन पानी रहिस, तिहाँ ले जाके खोंच दिस ।


           देखतेच देखत पानी महीना परा गय ।अउ थोर थोर जाड़ लागे के शुरू हो गय रहिस फेर हमर घर तीर के धान के विरवा मन तो देखनी पर गय रहिस ।

विपरु हर अब तो ये कोती कै न कै पइत आय अउ वोहर आन मन ल लांन के भी बताय ।कतेक न कतेक का का गोठियाय ।फेर वोकर आँखी के खुशियाली हर देखे के लइक रहे । रुनु हर घलव अब एईच कोती माते रहय । फेर मंय अलग अलग जिनिस ल देखँव-

कनहुँ जगहा के धान बड़े  त कनहुँ जगहा के मन छोटे  दिखय । का कारण हे येमन के अइसन होय के ?


        मैं की दिन के घोखे ले के बात करा पहुँचे -जउन जगहा म रात आगी के राख मन रहिन,तउन जगहा के धान मन  बड़ सुंदर रहिन । अउ बाकी भुइँया मन के मन सधारण रहिन । फेर छेवर म रुनु हर  जउन विरवा मन ल आन जगहा ल लान के पानी म खोंचे रहिस,तउन मन के तो बातेच हर अलग रहिस । 

"देखा येमन ल कइसन दिखत हें ।"रुनु हाँसत कहिस ।

"बढिया दिखत हें तोरे असन ।"मंय कहेंव तब रुनु हर लजा गय ।  

"अब येमन ल अलग कर ली ।"रुनु कहिस  ।

"रुक जा अभी दु चार दिन अउ ...!" मंय कहेंव ।


         चार दिन के गय ल मैं खोझत खोझत जोगनी करा गंय ।

"हाँ...भईया !" वो मोला देख के खुश होवत कहिस । वोहर वोकर महतारी के संग म अपन घर तीर के भुइँया ल पथरा के आड़ हथियार म छोलत रहिस ।

" तँय वो दिन रोवत रहे न ।मोर देखे धान मन ल कोनो आन मन ले आइन झर्रा के कहत ।" मंय कहेंव।

"हाँ, भईया ! फेर वो दिन के बाद मंय हर अउ धान संकेले नइ गय अंव ।" वो कहिस ।

"त तँय अब चल ।मोर घर करा कतेक न कतेक धान बगर गय हे । वोमे के तँय तोर मन भर के ले लेबे ।" मंय हाँसत कहेंव ।

"मंय जाहां फेर  धान नइ लँव।वोहर तो रुनु भौजी के आय ।" वो कहिस ।

"फेर मंय तो कहत हंव ।"मंय कहेंव ।असल म बीज मन ल छिंचत मोर नैन के आगु म रोवत जोगनी के चेहरा हर झूलत रहिस, ये पाय के मंय समझें कि पहिली  वोइला दिये जाय ।


          जोगनी आइस अउ वोहर ये सब ला देख के मुचमुचइस -

" भईया ,तोर ये बुता ल मंय आत जात देख डारें रहें ।आगु म हम सब झन अइसन करबो । तब फिर हमन ल येती ओती  भटके बर नइ लागय धान अउ चाउर बर ।" 

" चाउर बर ...! तहुँ जान डारे जोगनी चाउर ल...!"रुनु हाँसत कहिस ।

"तुइन्च मन तो कहथा वो भौजी अइसन अइसन गोठ, फेर सब कोती आगी असन बगर जाथे ।"जोगनी घलव विसनहेच पोठ कहिस ।


  


***




पखरा ले उठे आगी -2

--------------



( 16 )


                हमर घर तीर म बगरे वो धान के तो देखनी पर गय रहिस । अब हमन तो बनेच अकन  मनखे हो गय रहेन ।अउ सबो मनखे मन आ के  वो धान बारी ल देखिन । येला देखके सबके आँखि मन  म रुनु बर  सत्कार के भाव उमगत रहिस ।


             हमन सब देखेन-जउन जगहा म राख अउ कचरा मन रहिन, ते करा के धान मन तो बहुतेच होय रहिन ...एकदम पोठ एकदम पोठ । छुए  म पोठ अउ देखे म सुंदर ! बाक़ी मन भी अच्छा रहिन ।फेर जउन मन कूड़ा करकट अउ राख म  उपजे रहिन,तेमन के बात अलग रहिस । संगे -संग रुनु हर जउन विरवा मन ल लान के खोंचे रहिस,वोमन घलव बड़ सुंदर दिखत रहिन ।

"आवा आवा सब झन ...!चला येला संकेले लागा।"मंय सबो देखईया मन ल कहें । येला सुनके सब देखईया मन भीड़ गइन वो सब धान के पाके विरवा मन ल खीचे बर ।


           सब ले आइन अउ हमर घर के आगु म वो मन ल राख दिन।

"चला चला येमन ल अउ  अलगी करी ।"मंय कहेंव अउ वो धान ढेरी उपर म चढ़ गंय । अब तो सब झन चढ़ गइन ।देखते देखत हमन ऊपर के फरफरात विरवा मन ल अलग कर देंन पर परफ़र फ़र पर -पैरा !

"पर परफ़र फ़र पर -पैरा ! "

"पर परफ़र फ़र पर -पैरा !"

"पर परफ़र फ़र पर -पैरा !"

"पर परफ़र फ़र पर -पैरा !"

"पैरा ...पैरा... पैरा...पैरा  !"

"पैरा ...पैरा... पैरा...पैरा  !"


                अब तो लइका- पिचका मन के मौज हो गय रहिस । वोमन पैरा...पैरा कहत एमे खेलत रहिन । जब हमन ये पैरा ल अलग करेन ,तब तरी म धान मन रहिन । बनेच अकन होय रहिस धान हर ....!


             रुनु हर मोर कोती ल देखिस ।मंय वोला देख के हाँस देंय। मोर मतलब रहिस कि तोला जइसन भी बने लागत होही तइसन कर  ! रुनु येला समझ के घर भीतर ल एकठन लकरी के बने  भाँड़ा ल ले आनिस अउ ...धरा जी सब लेवा ये धान ल कहिस ।जेकर से जइसन बनिस तेहर तइसन धरिस वो धान ल अउ जेकर से धरत नि बनिस तउन हर अपन जगहा म जाके वो धान ल धरे बर बाँस ले बने टुकनी ले आनीस । रुनु हर सबो झन ल अपन बनाय धान ल बाटिस,तभो ले भी हमर अपन बर बनेच बाँचे रहिस ।रुनु हर वो सब ल घर ले जाके राख दिस ।


              हमर जुन्ना देखे जगहा म तो ये धान के ढेर रहे । हमन ल वोमे ले अपन पेट के पुरता लाने म कोई तकलीफ नि रहिस । तभो ले रुनु अउ मंय ये खेलवारी करे रहेन । अब तो येला देख के हमन सब के सब अपन अपन तीर म अइसन नाना प्रकार के भेवा करत धान  ल जगान  अउ अपन अपन ल संकेल लेवन ।घर भीतर म माटी के बड़े -बड़े भाँड़ा बनाय रहेन,वोमन म वो धान मन ल धरन । अब सबो झन के घर म धान के बासा हो गय रहिस । सबो जिनिस ल निकता जिनिस रहिस येहर !


            फेर फुलझर हर अइसन अउ कुछु कुछु आन मन के खोझार म लगेच रहय । आज वोहर बढ़िया मुठा भर भर होवइया का फ़र ल लाने रहिस । सबो बीज मन एके ठन फ़र म जोड़ाय रहिन । येकर बीज ल निछ के फुलझर आगी ल दिस परथमहा । हमन का देखेन...! वो बीज हर तो कतेक न कतेक बड़े आगी फूल माने लई बन  गय रहिन । सब बीज मन जोड़ाय के सेथी फुलझर येला जोन्धरा कहिस । तब महुँ कहें -जोन्धरा !


           अब तो हमन अइसन जोन्धरा मन ल लान लान के समूचा भूंज भूंज के खावन । सब के सब एइच बुता म मात गंय रहिन ये पइत , नावा जिनिस जउन येहर रहिस तेकर सेथी ।

         

            अब तो रुनु हर ये जोन्धरा के बीज मन ल घलव घर तीर म बो देय रहिस ये बच्छर ...। देखते देखत येकर विरवा हर तो मोर ले भी ऊंच होवत रहिन अउ सब गईठ म फ़र मन उगलात रहिन । रुनु हर तो अब बड़ जानकर हो गय रहिस।वोहर कभु येला आगी म भूंज के देखे त कभु भाँड़ा म समूचा आगी म राँध के देखे ,फेर सब हर बड़ अच्छा लागय ।


                         *


                  फुलझर के उदिम के सेथी अब हमन कतेक  न कतेक रकम के खाय के जिनिस मन ल चिन्ह डारे रहेन । वोइच हर खुद येमन ल का न का कहे- कोदो, कुटकी, साँवा !ये सब मन म चाउर निकले अउ सब के अलग अलग सुआद रहय । सबके मिठास अलग रहे ।  


         अब हमन बनेच बुता मन ल सिख गय रहेन । अउ समय ल घलव सीखत रहेन ।बरसात के छेवर म हमन ल धान असन जिनिस मन मिलें,तब जड़कल्ला के छेवर म  चना मसरी असन जिनिस मन रहें ।अउ गर्मी हर भराय तब  नदिया -नरवा के कछार म कलिंदर, बंउगला ,खीरा ककरी मन के सम्मत रहे ।


         फेर आज तो फुलझर हर आनेच बुता करे रहिस। वोहर अपन पखरा के बने आड़ हथियार ल धरके घर के तीर के जउन वन- डोंगरी रहिस,तउन मन के रुख मन ल धड़ाधड़ काटत रहिस । अइसन काटत वोहर वो जगहा ल साफ चातर करत रहिस । सब रुख मन भुइँया म गिर के पटा गय रहिस। वो जगहा हर साफ चौरस दिखत रहिस ।


          कटे के  बनेच दिन के गय ल वो रुख- राई, रेवई मन  घाम म सूखा के सफ्फा सुखा हो गिन, तब फुलझर हर वोमे आगी धरा दिस ।पूरा सब जलके भसम हो गय...राख हो गय । वो राख मन ल बरोबर करके राखे रहिस । वोहर मोला घलव येकर बारे मे कछु नई बताइस । महुँ घलव नि समझ पाँय कि वोकर मन म का चलत हे ।


           फेर जब गरमी के छेवर म  अगास म करिया -करिया बादर मन उमड़त- घुमरत आइन, तब फुलझर हर बड़खा टुकना म भराय धान ल उहाँ ले जाके छींच दिस । मंय भर नि हांसे,फेर आनेच मन बने हाँसीन  वोकर बुता ल देख के । फेर थोरकून दिन के गय ल वो जगहा हर धान  के विरवा मन ले गझिन हो गय,तब तो सबके हाँसी हर बन्द हो गय ।


           पानी गिरीस बनेच गिरीस तब फुलझर वो जगहा म जा जा के वोमे पानी  ल  भर दे । तीर के बाँचे जगहा म कांसी बन्द हर भदभद ल सादा -सादा फूल गय अउ येती सबो धान के विरवा मन पोठ हो गिन ।सबके पेट हर चरचर ल भरे हे अइसन दिखत रहे । थोरकून दिन म तो पूरा वो जगहा हर पटा गय धान ले  । अब तो वोहर मोर करा आइस अउ कहिस अब आगु ल अइसन ही करना हे। पेट के चिंता म दिन रात बुड़े नि रहना ये । अपन पेट के पुरता अब हमन धान अउ आन आन जिनिस ल अइसन पैदा करबो । मंय वोकर गोठ ल बनेच  कान देके सुनत रहें फेर मोला लागे कहूँ हमन गलत तो नि करत अन । हमर छोड़ अउ आन चिरई -चुरगुन, वनईला जनाउर मन अपन पेट बर का अइसन पिचकाट करत हें ? नही न...! तब हमन अपन पेट बर जबतक वोहर मिल जात हे,तब तक फिकर करना हर का  उचित हे । काहीं कुछ गलत तो नि होवत ये ...?


          मंय अइसन गुनव अउ वोती फुलझर तो कतेक न कतेक जगहा के रुख मन ल काट के जला के अइसन जगहा बनाते रहिस । वोकर देखा -देखी हमर जगहा के अउ आन आन  मनखे मन बनेच अकन रुख राई मन ल काट जला के  अइसन जगहा ल बनात गिन अउ धानल उपजात गइन । फेर  एक बच्छर भरपूर उपजे के बाद वो जगहा म पहिली असन उपज नि होय ,येकर सेथी हर बच्छर बर नावा जगहा बनाय के नांव म हमन कतेक न कतेक वन -डोंगरी मन ल काट के फूंक डारेन ।अब तो बनेच धुरिहा हर सफ्फा हो गय । एक दु बच्छर  छोड़े के बाद वो जगहा म फेर रेवई वन मन भर जाँय ,तब वोमन ल फेर हमन वईसनहेच काट के फेर जलात राख बना लेन फेर बीज छीचन ।


      फुलझर तो ये बुता म हम सबके मुखिया रहिस ।



***



( 17 )


            फुलझर के चलागत म चले के सेथी अब हम सब मन के घर म अपन पेट के पुरता धान अउ दूसर अनाज मन जमा रहत रहिन । फेर येकर बर हमन ल वन -डोंगरी मन ल उजाड़ के अपन अपन बर भुइँया बनाना रहे ।अउ हमन अब अपन बर अपन सकत सिरे भुइँया मन ल पोगरिया के राखत घलव रहेन ।


          हमर भीर म हाथी असन मोठहा रहिस एकझन वोला हमन बल्लु कहन । बल्लु हर बनेच अकन भुइँया ल अपन ये कहे अउ कनहु आन ल वोमे रेंगन तक नि देय ।

वो बल्लु हर ये भुइँया मन ल खेत कहे ।

"खेत...!" बल्लु कहत रहे।

"क्षेत्र...!"विपरु कहे।

"खेत...!"

"क्षेत्र...क्षेत्र...!"

"खेत...!!"बल्लु कहिस अउ विपरु चुप हो गय ।

    

           ये बल्लु हर तो अपन बर बहुत खेत  बनाय अउ आन मन के ल घलव मोर ये कहत ले  लेय ।  वो दिन तो वोहर गज्जु करा हाथ धरिक -धरा तक म आ गय रहिस । गज्जु घलव बने पोठ हाथी असन वदन वाला रहिस । वो जगहा हर गज्जु के बनाय रहिस,फेर बल्लु के मन आ गय रहिस  तेकर सेती वोहर मोर ये कहत रहिस । गज्जु घलव नि मानिस तब आन मन वो दुनो झन ल धर के मोर करा लानिन । मोर ये सब संगवारी मन ल लागे कि ये सब जिनिस के असली मालिक मंय अंव ।


                  मंय जगह म गंय अउ बढ़िया देखे ताके बर अउ सँग म दु चार झन मनखे मन ल भी बलॉय रहें । सब देखेन तब पता चलिस कि गज्जु हर ये खेत  मन ल पहिली बनाय रहिस हे ,तब फिर वोकर ये ।सब कहिन तब मोला भी बल्लु ल कहना परिस कि वोहर ये जगहा ल हट जाय अउ एला गज्जु ल बोवन दे ।


                बल्लु गुर्री -गुर्री देखिस फेर सब के आगु म वोकर एक झन के का चलथिस !वोहर वोकरा ल विरनियात आगु बढ़ गय । वोला अइसन जात देख के मोर मन म बड़ दुख पहुंचिस !वो जुवार मंय जेवन नि करें ।

रुनु पूछे काबर नि खाय ?फेर मंय बताय नि सकें कि काबर नई खाँय तउन ल  ।


            मोला लागिस कि जउन भी कुछु होवत हे,तउन हर सही  नि ये । 


                        *


              वो दिन हमन वन -डोंगरी के गहिल म उतरे रहेन तब तो ये नावा जिनिस मन ल देख के दंग रह गयेन ।  ये का के विरिछा ये ...! सब कोती सादा सादा फूल के फूटे हे । अइसन लागत हे,आगी फूल लई हर इहाँ  भदभद ले छिंचाय हे । अइसन अइसन जिनिस हर तो आक फर ,सेमर फर  ल घलव निकलथे । 


          आज कुछु नि सूझिस तब हमन अपन अपन टुकना म येइच मन ल जोर लानेंन भरभर टुकना । छुए ल कतेक चिक्कन लागें एमन ! फेर निकाले के बखत ल देखत रहेन कि जब येमन कछु म अरझत हें,तब वोमन तिराय ले सादा सादा डोर असन  बन जात हें ।


                घर आएन तब तो रुनु हर बस एईच बुता कर दिस ।वोहर वोमन ल खींच खींच के वइसन डोर बनाय के बुता म लग गय ।  रुनु के बुता ल देखें तब मोला मेकरा मन के जाला बनइ के सुरता आ गय। कइसन मेकरा हर आढ़ा तिरछा कर कर के अपन जाला ल बनाथे । का वइसन करे ले ये सादा जिनिस ले मेकरा असन जाला बन जाही का ...? 


          अब तो मंय घलव शुरू हो गंय खेले बर वो सादा जिनिस मन ले ।अउ मैं वो मेकरा के जाला असन बनाय के कोशिश म लग गंय । अउ ले दे के हथौरी अतेक चउक चाकर के ठीक वइसन जाला बना के मंय रुनु के तीर म गंय अउ ये जाला ले वोकर मुहूं ल पोंछ देंय !

"ये...!ये का बना डारा तूँ !" रुनु कहिस अउ वो जाल ल मोर हाथ ले लेके खुद अपन मुहूं ल पोंछ के देखिस ।अब्बड़ चिक्कन अउ कुँवर ...!


            अब तो रुनु घलव भीड़ गय अइसन करे बर अउ वोहर खुद बेरा के बूड़त ल भिडिस तब वोहर मोर ले बड़े चउक चाकर के ठीक वइसन जिनिस बना डारिस अउ वोहर वोला लान के मोर मुहूं ल पोंछ दिस  अउ वोला मोला धरा दिस...धरा येहर तुँहर बर ये कहत । अब तो मंय अपन ल वोला दे देंय अउ वोकर ल मंय ले लेंय ।


              आगु दिन विहना पहाईस  अउ  भालू हर कूदत हमर कोती आइस ,तब हमन दूनों के दूनों अपन अपन वो जिनिस ल वो लइका ल धरा देंन । वो लइका वोला धर के अपन घर ले गय । तुरतेच फुलझर हर वो लईका ल वो जिनिस मन ल फेंके बर कह दिस । लईका बोपरा वोमन ल आगु म फेंक दिस । अब मंय जाके वोमन ल उठा लेंय ।

"कइसे का ये येमन ...? " फुलझर अबक्क होवत कहिस ।

"अबक्क झन हो , येमन ल रुनु अउ मंय मिल के काल दिन भर म  बनाय हावन तब बने हावे ...!" मंय कहे अउ वोकर हाथ ल धरके येती भीतर कोती ले आनें ।


             घर भीतर म माढ़े वो सादा जिनिस ल देखिस तब येहर कुछु खाय के ये समझ के फुलझर वोला एक गप्पा मुहँ म भरिस तब फेर बाहिर निकल के उगलिस । अब मंय वोला पूरा बात आदि ले लेके अंत तक ल बतांय । फेर ये सब सुनके फुलझर के आँखी म चमक आ गय । अब वोहर हमर घर म माढ़े  वो सादा जिनिस मन ल धर के ले आनिस ।


             संझा के होवत ल मंय जब पूरा गॉंव कोती ल किंजर के आंय, तब वोहर मोला बने एक हाथ  लंबा  मुँहू पोंछे के जिनिस धरा दिस । 


         फेर मंय भरभर आँखी देखें !वोहर नावा तरीका ले येला बनाय रहिस जइसन वोहर  बांस सींक मन ले टुकनी बनाथे,ठीक वइसन डोर मन ल तरी ऊपर कर के येला बनाय रहिस ।येहर तो बड़ सुंदर दिखत रहिस ।


             ऊपर अगास म रगबग चँदा हर दिखत रहय ।अउ तरी म फुलझर के हाथ म  अब ले भी वो सादा जिनिस मन दिखत रहें ।

"आज पुन्नी ये...!"मंय कहें ।

"पुन्नी...पुन्नी...येहू हर पुन्नी ये ।" फुलझर झरझरात कहिस ।

"वाह फुलझर येहू हर पुन्नी ये ।"

"पुन्नी... पुन्नी ... पोनी ।"फुलझर कहिस ।


          अब तो हमन वन डोंगरी ले वो  पोनी मन ल बनेच अकन संकेल के लाने के  बुता च कर देय रहेन । अउ हमन येकर ले डोर बना के वइसन हाथ दु हाथ के ओनहा बनाय के शुरू कर डारे रहेन । 


           झुनू हर तो नावा जिनिस मन ल बउरे बर आगु रहे। वोहर अब तो चमड़ा अउ पेड़ छाल के जगहा म ये पोनी के बने जिनिस ल पहिरे के शुरू कर देय रहिस । झुनू ल देखिस तब रुनु अउ  वो दुनो के देखा म अउ आन कतेक न कतेक झन मन पोनी ल लान के एईच बुता कर डारे रहिन ।


             असल बात ये रहिस कि अब हमन अपन अपन बनाय खेत म  धान अउ आन आन कुछु कुछु जिनिस मन ल उपजार लेत रहेन,तेकर सेथी अब पेट के चिंता हमन ल बिल्कुल भी नि रहत रहिस । तेकर सेथी अब खाली बेरा म हमन  पहने ,ओढ़े -डसाय के उपाय म लगे रहन । अब तो हमन म ये पोनी मन ले ओनहा बनाय के होड़ लग गय रहे । अउ अइसन बुता म फुलझर छोड़ अउ कनहु आन आगु नि होय सकें ये आज तक ले । अभी तक ल हमन मेकरा के देखा -देखी डोर मन ले ओनहा बनात रहेन । फेर सबला बढ़िया ओनहा  टुकनी मन कस डोर ल ऊपर नीचे करे ले बनय ।


               आज तो फुलझर मोला बल के अपन घर ले गिस । वोहर लकरी के डंडी मन ल घस छोल के का का   बनाय रहिस हे ।मोर तो एको समझ नि आइस ।फेर मोर आगु म ही  पोनी के डोर मन ल येमन म फँसो के तीरत गिस तब ओनहा कस जिनिस मन बने के शुरू हो गय । ये सब देख के मोर तो आँखी बटरा गय ।


***



( 18 )


                अब हमन के जीवन म रेशा अउ डोर  हर  बड़ महत्तम पा गय रहिस । जउन  जउन जिनिस मन म हमन ल ये रेशा मन दिखें,तउन मन ल हमन चुन चुन के राखत जावन । पोनी के संगे सँग हमन तो अब वन डोंगरी ले सन ,पटवा ,बछराज जइसन कतको जिनिस विरवा मन ल चिन्ह डारे रहेन,जेमन म रेशा निकलें । फेर ये सब मन  ले ऊंच अउ बढ़िया रहिस वोइच पोनी हर ।


              हमर गांव बस्ती के वो मुड़ा म रहईया  बुनला हर लकरी के दु ठन खाप ल बीच म बांध के उपर म डंडी फंसा के सन पटवा के रेशा मन ल एमे धरा के किंजारे,तब हाथ के बरे डोर ल अउ ज्यादा बढ़िया डोर बने अउ जल्दी बने ।वोहर देखते देखत कतको सन पटवा ल डोर बना के सहेज लेय।अउ ये डोर मन ल बाँस के काड़ी मन ले जइसन टुकना चटाई बनथे तइसन फ़ांस परो के मोठहा- मोठहा ओनहा बना लेय । फेर ये सन पटवा के बने ओनहा मन पानी ले बने ओनहा असन सुभीता वाला नि रहें  । हमन पोनी के खोझार म जादा रहन । काबर के पोनी ले बने ओनहा मन ज्यादा कुंवर अउ सुंदर रहें । येकर ले बने ओनहा म घाम जाड़ हर घलव बनेच कम हो जाय ।


         बुनला घर तीर के लइका मन खेल- खेलवारी म घलव अइसन छोट छोट चकरी मन ले डोर बनात रहिन । वोमन बर वोहर खेल खेलवारी रहिस फेर अइसन करे ले डोर मन बरोबर बनत जात रहिन । पेट के चिंता तो अब कम रहिस,फेर अब तन ल ढांके के चिंता ल ये बुता करके , बुताय के कोशिश करत रहेन । 


             फेर ये पोनी ल जउन ल अब वोकर लस पस ल देखत कतको झन कपस...कपसा कहें, हमन ल पुर नि आत रहिस तेकर सेथी एकरो बीज ल हमन ल  तीर के बारी म बोय बर लाग जात रहिस ।अब हमन अपन जरूरत के पुरता पोनी अउ कपसा ल  खेत बनाके उपजाय के शुरू कर देय रहेन । ये पइत तो हमर घर कतेक न कतेक पोनी कपसा हर भर गय रहय । अतका पोनी ल हमन का करथेंन ...? जब ये बात के पता घुघरू ल लगिस तब वोहर बने एक टुकना धान ल धरके आगय अउ वो धान ल अंगना म मढ़ा के मोला हाँक पारिस- शेरू भई!  रुनु भौजी ! 

"कोन ..?" कहत मंय आंय ।

"तोर करा पोनी जादा हे अउ मोर करा कमती हे ।"

"तब फिर भई घुघरू...?"

"तँय मोर ये धान ल ले ले अउ वोकर बदला म मोला पोनी दे दे ।"

"तँय पोनी ल अइसनहे ले जा ,धान ल काबर लाने हावस ।"

"नहीं नहीं...! देबे तब ये धान के बदला म दे,नही त मंय जावत हंव ।" घुघरू कहिस अउ अपन टुकना ल धरे कस करिस ।

"रा...रा  रुक ठहर। मंय तोला देवत हंव पोनी ।" मंय कहेंव अउ घर भीतर ल जाके बनेच अकन पोनी मंय वोला दे देंय ।


               येती घुघरू वो पोनी ल धर के जावत रहिस,तब बनेच झन वोला पूछिन तब  वोहर सब गोठ ल  परछर फोरिया के बताइस   तब तो फेर हमर घर म बनेच झन आ गिन वईसनहेच धान ल धर धर के पोनी बलदाय बर ।महुँ घलव मना नि करें अउ  वो सब मन ल बनेच बनेच पोनी देवत गंय । तभो ले हमर घर बनेच पोनी बांच गय रहे ।फेर येती धान के ढेर लग गय रहे। 


                अब हमन के बीच म अइसन चलागत चल गय। कोई ल कुछु आन चीज के जरूरत परय तब हमन अपन कुछु आन समान के बलदा म अउ कुछु  आन आन मन ल दे लेवन । कइसनो कर के अब जिनगी ल समोखे के उपाय करें बर लग गय रहेन हमन । फेर अइसन जिनिस मन के अदला -बदली ले हमर जीवन म थोरकून खुशियाली घलव आ गय रहिस ।


               हम सब के घर में म अब तो हमी मन कस दस बीस गाय ,छेरी -भेड़ी , कुकरी  मन रहय सँग म । अदला बदली के खेल म येहू मन काम आंय । गाय हर तो सब ल बड़े जिनिस रहिस अदला बदला लेन देंन बर ।


                        *


               बुनला हर तो  भारी हुशियार हो गय रहिस ओनहा बनाय बर ।अब तो वोहर पोनी के डोर मन ल की ठन रंग मन म बोर के रंग वाला ओनहा बनाय । पोई भाजी के फ़र मन ले बढ़िया ललहू खोखमा फूल असन रंग बनाय । सेमी पान मन ले हरियर रंग अउ परसा फूल मन ले परसाहु लाल रंग बनाय । कभू कभु गेरू मन ले घलव वोहरओनहा मन ल रंग देय ।ओनहा बनाय म हुशियार होय के सेथी दिन भर मनखे मन ले घेराय रहे वोहर ।


              वो दिन वोहर रुनु अउ मोर बर ओनहा बना के लानिस अउ कहिस कि येकर बलदा म वोहर कुछु नि लेय । वो कहत रहिस ...शेरू भई ! तोर हिम्मत अउ बुद्धि के चलत हमन इहाँ सुभीता म हावन ,तेकरे बर मोर छोटकुन भेंट ये । अब मंय का कहिथें ! मंय वोला देख के हाँसत राख लेंय वो ओनहा मन ल । पोई बीज ले रँगाय ललहू ओनहा रुनु बर अउ परसा फूल ले रँगाय परसाहू ललहू ओनहा मोर बर ।


                  विपरु हर तो सादा ओनहा ल ही मन करे ।अउ हम सब ल वोकर ओनहा जादा सफ्फा रहे । मंय वोला पूंछे तब वोहर बताइस कि वोहर तो रोज वन डोंगरी कोती जाके सादा राख खोज के लान थे अउ नरवा म अपन ओनहा ल ई राख के संग म भिजो के छोड़ देथे अउ फेर धो लेथे। देखते देखत बगुला पाँख असन सादा ओनहा निकल आथे ।


              ओकर ये बात हर मोला बड़ बढ़िया लागिस अउ वोकर सँग म महुँ घलव जाके अइसन राख ल  खोझ लानें । अबगा चिक्कन पुल पुल करत राख ! अब आज तो मोरो ओनहा हर वोकरे असन उजरा गय रहिस ।


                          *


       मंय धुरिहा ले बइठ के सुनत रहें। गुनला हर झरना के खण्ड़ म बइठे रहिस अउ झरना के पानी बूंदी मन जइसन छर छऱ छऱ फर फर फर...करत रहें, तइसन वोहर लकरी म लकरी ल पीटे अउ वईसनहेच कुछु कुछु  कहे,फेर वोकर ये कहई हर अतेक सुहान लागत रहे कि अउ सुने के मन करत रहिस ।

मंय धीरे धीरे वोकर तीर म पहुंच गंय - कइसे गुनला ,काय करत हावस ?

"...गावत हंव !" वो रुकिस अउ कहिस ।

" का...?"

"गीत...!"

"ये गीत का...!"

"बस एई जउन ल तँय पूछे ।"

"चल ,फेर शुरू कर...!" मंय वोला कहेंव ।

           मंय कहेंव अउ वो फिर शुरू कर दिस अपन गीत ल...हाँ फेर वो लकड़ी मन  ल फेर टकरात रहिस -ठक ठक ठक ढक ढक ढक ! अब तो महुँ घलव शुरू कर देय रहें वोकर संग म वइसन करे बर । अब जब एक के जगहा म दु झन अइसन करत रहेन तब तो अउ बढ़िया लागत रहिस ।


          अब तो जब भी हमन फुरसत म रहन   मंय अउ गुनला  ये झरना खण्ड़ म आ जावन अउ बनेच बेर ल लकड़ी कुटी मन ल पीटत पूरा गला खोल के गीत गावन ।ठीक वइसन जइसन झरना के पानी के बूंदी मन हमन ल रास्ता देखांय ...!


                  धीरे -धीरे  ये जिनिस ल कई झन देखिन अउ जउन मन ल येहर सुहाइस तउन मन हमन के संग म बइठ के ठीक वइसन करे लागें । अब तो बनेच झन हो गयेन तब तो हमन के ये संगत हर कभु कभु तो दुपहरी ले शुरू होके अंधियार के होवत ल चले । जब हमन अइसन करन तब लागे कि धरती ल उदगर के गीत के फूल हर उपर अगास कोती चढ़त जावत हे । 


           अब तो हमन जब बनेच झन ठुला जान ,तब हमन ल झरना खण्ड़ जाय बर नि लागे , कोई भी फुरसत जगहा म बइठ के हमन शुरू कर देवन अइसन गाय अउ बजाय के ।


           अब तो हमन  रात के बइठ के अइसन गाय बजाय के शुरू कर देय रहेन ।



***



( 19 )


        आज तो रुनु हर नदिया तीर ल बनेच अकन सुंदर- सुंदर  सादा सुंतई अउ शंख -घोंघी मन ल लान के छेद के पोनी ले बने डोर म  भरत जात रहिस । अउ  जब ये जिनिस हर बनेच लंबा हो गय । तब वोहर अपन गला म  बांध लिस । 


           मंय देखें अइसन करे ले वोकर सुंदरई हर कतेक न कतेक बाढ़ गिस हे । अब तो वोहर अइसन अइसन कै न कै ठन बनाके  सबो ल शरीर म समो लेय रहिस । गला , बहाँ, गोड़ सब हर रगबग ल उबक गय रहिस । अइसन पिन्धे ले ओहर आन जगहा ल आय मनखे लागत रहिस । अब तो वोहर घर के पाछु , जउन ल हमन अब 'कोला ' कहन,उहां  भदके लाल मन्दार के फूल मन के अइसन डोर म माला बनाके  एला अपन  चुन्दी म बांध लिस ।


                 अइसन कर के निकलिस तब वोकर देखनी पर गय । झुनू हर अब भालू ल बढ़ो डारे रहिस । वोहर खुद बाटी -भंवरा खेले के शुरू कर डारे रहिस । झुनू हर एक पइत कहिस -दीदी , मोला येला दे ।

येला सुन के रुनु हाँसिस अउ अपन गर ल निकाल के तुरतेच झुनू ल पिंधा दिस । फेर झुनू के नजर वोकर हाथ बहां म परत रहे । रुनु येला लख के अपन बहां अउ गोड़ म जउन ये गुरिया मन रहिन ,तउन मन ल निकाल के झुनू ल पिंधा दिस । फेर झुनू नहीं कह के नि कहिस ।


           अब तो  आगु दिन फेर जुवार भर  लाग गय रुनु ल  अपन बर  बनाय बर अइसन गुरिया मन ल फेर । वो बनाइस अबके पइत वोहर भालू बर घलव कुछु कुछु अइसन पिन्धे के बना देय रहिस ।


         अउ येती रुनु अउ झुनू दुनों झन जउन जिनिस ल  शुरू कर दिन , वोहर तो बरत आगी असन बगर जाथे । बाकी बुता बर जोगनी रहिस । देखते देखत सबो नारी - परानी मन के देहें हर अइसन अइसन जिनिस मन ले भर गय । फेर सबले बढ़िया रहिस लोटना के वो काला-काला बूंदी वाला लाल गूंज ल छेद के बनाय गय माला । अब तो सबो कोती  अइसन माला मुंदरी के भरमार हो गय रहिस ।  


             बुनला के रंग विरंगी ओनहा अउ ये सुतई गुरिया के  पिंधना ! सबो कोती हर अब सुहान लागे । कनहुँ कनहुँ बाबु लइका मन घलव ये गुरिया मन के शउक करें अउ वोहू मन घलव अइसन अइसन जिनिस मन ल अपन शरीर म चढ़ा लेंय ।फेर कोई बाबू पिला ल अइसन करत देखे तब तो फुलझर कठ्ठल जाय । महुँ ल घलव हांसे के मन लागे फेर मंय वोला समोख लेंव । मैं मन के बात मन  म ही राख लेंव ।


                हमन के जोड़ साज हर लकड़ी के बजाय के जिनिस ,जउन ल हमन अब बाजा कहन ,वोमन ल बजात गावत रहेन एकदम मगन होके । हमन के अइसन बुता हर फुर्सत के बेरा म बरोबर चले । अब तो जब हमन बइठ के  गावन तब देखईया- सुनइया  मन हमर तीर म आके बइठ जाँय। वोमे के भी कतको झन हमर सँग म मिंझर के हमन ल गझिन घलव बनात रहिन । सब आइन फेर फुलझर हर ये बुता म मोर संग नि देत रहिस । ये बुता म हमर मुखिया रहिस विपरु । वो हर घलव बढ़िया बढ़िया गाय ।  


                       *


                    वो दिन तो अगास ल करिया- करिया बाद मन तोप देय रहिन । जेती ल देखथे तेती करिया घोर करिया बादर मन छाय रहिन । बादर हर गरजे लहुके के शुरू कर डारे रहिस ।बूंदी गिरे के शुरू हो गय रहिस । कोन जानी कोन कोती ल बड़खा मंजूर हमन के बीच म आ गय । पीछू पीछू मंजूरी घलव आ गय । बादर गरजिस  तब मंजूर हर अपन पाँख ल बगरा के झाल बना लिस अउ एक एक  दु पांव उसालत नाचे के शुरू कर दिस । एल देखिस तब धुरिहा म खड़े जोगनी घलव अइसन करे के शुरू कर दिस ।फेर जोगनी ल देखिस तब झुनू कूद परिस वोकर सँग म।

जोगनी झुनू तब ये अउ आन मई लोग लइका पिछकामन घलव कूद परिन उहाँ।देखते देखत आधा गांव के मन समा गइन वो जगहा म ।


            अब तो हमू मन अपन लकरी के बाजा मन ल निकालत उहाँ कूद परेंन । देखते देखत बाजा रुंझी घिडक गय ।अउ ऊपर ल बरसा के  बूंदी मन घलव जोर पकड़ लेय रहिन । हमर नाचा ल देख के मंजूर मन घलव रुक गइन फेर हमन नि रूकेंन ।जभे पानी  बरसात हर रुकिस तब जाके हमन घलव रूकेंन अउ आगु जाके  नरवा म फेर परछर होके लहुटे रहेन । आज के आनन्द हर हमन ल मगन कर देय रहिस । मंजूर के संग मंजुरनी पुरुष के संग नारी । मंजूर के नाच मंजुरनी बर तब पुरुष के नाच नारी बर... नारी के नाच पुरुष बर ।


                       ये नाच ले हमन के शरीर ,मन अउ जीवरा भीतर म आंनद हर भर गय रहिस । हमन ल एक संग एक मय होए के एकठन नावा तरीका मिल गय रहिस । अब हमन नाच नाचे बर मंजूर मंजुरनी अउ बादल बरसात के अगोरा नि करन । चन्दा हर अगास म फुलझर के गाड़ी के चका चका चक्का अउ विपरु के चक्र असन गोल हो जाय तब कनहुँ एक संगवारी ,जउन हर अपन जेवन पानी ले फरी हो के ये कोती आ जाय अपन  बाजा ल लेके तउन हर अपन पेड़ के खोल ले बने पोल वाला बाजा ढोल ल एक दु थाप मारे तब येला सुनके कोरी खईरखा मनखे ठुला जात रहेन ।तब फेर चन्दा के ठीक आधा अगास के आत ल जरूर नाचन । अइसन नाचत उछाह मंगल मनात जावत रहेन हमन ।



                        *


                          


"शेरू भई, शेरू ....!" बेर बुडती बेर म बदलू हमर घर आय रहिस ।

"कइसे का हो गय...!" मंय  निकलें ।

"हमर घर के नोनी पोई घर नि आय ये।" बदलू गुंगवात कहिस ।

"ये...!कहाँ चल दिस ...?"मंय कहेंव," कनहु कुछु जानत हें का ...?"

"हाँ...!"

"का बात ये तउन ल बता ।"

"पोई हर फुतका सँग म किंजरत रहिस हे कहत हें ।" बदलू कहिस । वोकर अइसन कहे ल महुँ ल ध्यान आइस । पिछु के दु चार नाच म पोई हर फुतका सँग म जटकेच रहिस हे । काहीं...

"कइसे करहां मंय ...?" बदलू कहिस।

"चल तो फुतका घर जाबो !"मंय कहेंव ।

"चल...!" वोहू कहिस। 


              अब हमन दुनों के दुनों फुतका घर पहुंच गयेन । उहाँ जाके देखेन पोई हर नावा ओनहा पहिन के खड़े हे ।

"पोई...!"पोई ल देख के बदलू के गुस्सा हर भड़क गय ।

"पोई चल...!"बदलू बड़ गुस्सा म कहिस ।

"मंय अब नि जांव ददा ...!"पोई  वोतकिच पोठ अवाज म बोलिस , "मंय अब येकर संग म  रहिहां ।"


            मंय बदलू के हाथ ल धर के तीरत वापिस लानें अउ कहें -बेटी सज्ञान हो गय हे,बदलू भई ।अब छोड़ वोला। अब वोहर अपन मन के कर डारे हे ।

"अइसन कइसन छोड़ देंव वोला...!"

"छोड़ इहेंच तो रहही तोर आगु म ।"

"येहर तोर नाचा के असर आय ...!"

"हाँ...!फेर तब का हो गिस । बड़े बाढ़े लइका ल छोड़ देथें ।"

"कहत तो तंय ठीक हस,शेरू भई ।"

"ठीक कहत हंव न...!"

"हाँ, ठीक कहत हस ।"बदलू कहिस फेर वोतकी बेर हमन देखेन फुतका हर एकठन गाय अउ एकठन कुकरा ल धर के आइस हे अउ बदलू के आगु म छोड़ दिस हे ;वोहर भुइँया म दण्डाशरन पर गिस हे । मंय आगु जाके वोला उठाय ।

"जा अब घर जा फेर...समझत हस न ?"मंय कहेंव वोला ।

"हाँ...!"वो कहिस अउ अपन कनिहा म खोंचाय चोंची हथियार ल मोला दे दिस अउ तरी मुड़ी कर के घुठवा म बइठ गय ।

"अब उठ ...!अभी नही ...!"मंय कहेंव ।

"अभी नहीं त  कभु  नीही ।" वो फिर कहिस ।

"अब जा ...!"मंय वोला समोखत कहेंव । 


           फुतका हर  अब चल दिस ।बदलू अब ले भी चुप बइठे रहिस । मंय वोला देखेंय...वोकर चेहरा म अब ले भी पीरा के भाव हर भरे रहिस । 

"बदलू चल, ये गाय अउ कुकरा ल धर ।तोला ये दुनों ल घर ले जाय पर परिही ।" मंय वोहू समोखत कहेंव ।

"हाँ...!वो तो लागही शेरू भई ।"बदलु कुकरा ल गोदी म उठात कहिस ।


             अब अउ अइसन कनहु ल दुख झन परे कहके हमन दु -चार झन गुनेंन अउ सज्ञान होवत नोनी बाबू -मन ल  घर म नई राख के बीच बस्ती म बने घर म जाय बर कह  देवन ।उहाँ वोमन आपन रात  अपन अपन हिसाब ले गीत कथा कहत  नाच नाचत गुजारें ।अउ मया के बंधना म बंधा के निकलें।फेर अउ वापिस फिरे के डहर खतम हो जाय वोमन बर ।


            छेवर म बाबू पिला हर नोनी पिला में ददा करा जाके गाय ,कुकरा अउ कुछु- कुछु आन आन दे के दण्डाशरन परे।


           येकर शुरू तो फुतका हर बहुत पहिली के कर देय रहिस ।




***


( 20 )


           ये जगहा म हमन रहत रहेन ।फेर अब हमन ल अब पता चलत रहिस कि हमी  मन कस कतेक न कतेक मनखे अउ आन आन जगहा म रहत हें । तब ये धरती हर  कतेक बड़े हे ! का एके कोती रेंगत रेंगत जाबो तब  एकर खंड़ म जाके तरी सोहा म गिर जाबो, जइसन पहाड़ के  छत म जाके खसले ले होथे ; जिहां जाय के बाद वो गिरने वाला हर कहाँ जाही ? 


               अब तो हमन  हमर जगहा ल छोड़ के आन आन जगहा जरूरत परे तब आय जाय के शुरू डारे रहेन । वो कोती के मनखे मन घलव हमर कोती आंय । धीरे धीरे हमन के मन अउ हिरदे म दया -मया हर बाढ़त जात रहिस । पहिली पहिली दूसर जगहा के मनखे मन ल देखेन तब हमन आपन अपन बान- चिंयार ल तान देवन अउ थोरकून म जान लेय अउ देय के बेरा आ जाय ।फेर अब हमन एक दूसर के सेवा सत्कार करे के शुरू कर डारे रहेन ।


            फुलझर तो जब भी आन कोती जाय तब कुछु नावा सिख के आय । अउ वोकरो करा बड़ मनखे आंय कुछु कुछु सीखे बर ।ठीक अइसन विपरु करा घलव बड़ मनखे मन के आना -जाना रहिस, वोहर तो अब हमर ये तीर के सब ला जादा जानकार रहिस । फेर जउन कनहु मन भी बाहर आंय जाँय तुन हर मोर करा आके पहिली जाय आय के हुकुम लेंय । फेर एकर ले एक ठन जिनिस होवत रहिस , अब नारी मन जादा बेर ल घर भीतर म ही रहें । फेर रुनु हर सबके सूख दुख म आगु रहे जाय बर।


            फुलझर अपन गाड़ी ल नावा नावा कुछु कुछु करतेच रहे । फेर वोकर नजर ढुलबान्दर मन ऊपर बरोबर रहय , वोमन के पिचकाट ल देखे तब वोहर बड़ खुश होय । वोला लागे येमन वोकर गाड़ी ल तिरथिन अउ वो बइठे रहतिस तब बड़ मजा आथिस । अइसन गुन के वोहर दु तीन ठन बड़का- बड़का  ढुलबान्दर मन ल कुदा के धर दारिस अउ वोमन ल लान के गाड़ी के आगु म बांध दिस अउ छोड़ दिस ।वोहू मन ल कौतुक आ गय रहय । वोमन आगु गइन गाड़ी हर ढुल गय फुलझर तो हो हो  करत हाँसत रहिस तभे एकठन ढुलबान्दर हर आगु भागिस अउ दूसर हर पाछू कोती । अइसन म फुलझर सुद्धा गाड़ी हर पलट गय।


           लदकाय फुलझर ल बड़ मुश्किल म निकाले रहंय मंय वो दिन, वोहू हर  गज्जु के ताकत ले । फुलझर ल चोट आ गय रहिस । वोती वो ढुलबान्दर मन  खे खे करत अपन म मगन रहिन । फुलझर उठ के दु ठन छोटे छोटे ढेला धर के जमा दिस वो ढुलबान्दर मन ल । फुलझर के  निशाना अचूक ...! वो ढुलबान्दर मन मूड सहलात भाग पराईन वो जगहा ले ।

" येमन काम नि आंय, भई !"फुलझर कहिस।

"हाँ...! वो तो दिखत हे ।" मंय वोकर चोट ल  जतनत कहें।

"अब ये ढुलबान्दर मन ल छोड़ के कुछु आन मन ल देखे बर लागही ।" वो कहिस ।

               मंय तो ओकर उछाह ल देखके कउआ जांव कभु कभु । अभी ये ढुलबान्दर

मन के किरपा ले माड़ी -कोहनी  छोलाय हे तउन हर येला नजर नि परत ये । अब अउ कोन आन जनाउर ल पिचकाट करही येहर ! 

फेर फुलझर मने मन खोझत हे अपन आगु म कुछु जिनिस ल अइसन लागत रहिस ।


         फुलझर हर ये बखत उदिम ही कर डारे रहिस। ढुलबान्दर मन काम नि आइन तब एक पइत वोहर भालू (जनाउर) मन तक ल गुन डारे रहिस गाड़ी ल तिरवाय बर ,फेर बनेच दिन पहिली के एकठन भालू के संग होय हाथापाई अउ कोकमिक- कोकमा ल सुरता करत वोला भालु मन ल छोड़े बर लागिस ।एक पइत तो वोहर हाथी के पीठ ऊपर चढ़ के बनेच बेर ल किंजरत रहिस ।अउ जब हाथी हर कुछु नि करिस तब तो जब भी मन लागे वोहर हाथी मन के पीठ म जरूर चढ़ जाय । फेर हाथी ले गाड़ी तीरई कुछु  बात नि जमिस ।

"अरे ये गाय के बछरू हर तो बड़े हो गय हे। एक ठन अउ खोज अइसन अउ ये मन ल बउर के देख ।" मंय कहेंव ।

" हाँ...ये बात तो है ।"वो कहिस। मोर गोठ हर वोकर मन म पर गय । अउ सिरतोन म कत्थु आन जगहा ल बने एकठन वईसनहेच बड़े  बछरू खोज के  ले लानिस अउ वो दुनो बछवा मन ल  चका गाड़ी म बांध दिस ।


           मंय तो देखतेच रह गंय...! वो दुनो बछवा मन फूल के माफिक ये चका गाडी ल  खींच के ले गइन । फुलझर तो गाड़ी ऊपर म बइठे रहे । वोकर चेहरा म एकठन  जीतईया के भाव हर रहिस । फुलझर बनेच बेर ल गाड़ी म रहिस,तब फिर वोकर घर वाला बछवा हर वोमन ल घर कोती वापिस ले लानिस । 


         अब तो फुलझर अपन ये गाड़ी अउ बैला बछवा मन संग तीर तीर के गांव कोती जाय । वोकर गाड़ी ल देखिन तब वोपरा बइला अउ बछवा मन के जउँहर हो गय  ।

सब के सब वोमन ल धर धर के बांधत रहिन । गोरस के नांव म तो गाय मन पहिली ले बंधा गय रहिन ।अब बइला अउ बछरू मन के बारी आ गय रहिस । फेर हमन अब अपन सुआरथ बर ये गऊ अउ वोकर वंश ल नि छोड़त रहेन ।


                 देखते देखत हमर मनखे मन करा ये बछवा बइला गाड़ी मन के भरमार हो गय । अब हमन वोमे बइठ के कहीं जाना आना कर लेवन । हाँ...अब मनखे मन ये गांव ले वो गांव भी जाँय ये गाड़ी मन ल बउरत । कोई कोई तो धान के बलदा म कुछु कुछु आन जिनिस मन ल भी लेंन -देन कर लेंय अउ वोई गाड़ी म जोर के लाने ले जाँय ।


                         *


                 आज  तो जेती सुनथे वोती वोइच गोठ । तीर के गांव म ,कोन जानी कहाँ ल आवत -आवत अइसन जिनिस आ गय हे,जेकर सुवाद हर पसीना कस  आँसू असन लागथे, फेर वोकर सुवाद म पेट भर भात ल कि बासी ल खा लेबे ।एक चिमटी म पेट भर भात- बासी  खा लेबे । राख असन जिनिस आय। कोन कहथे ये जिनिस हर भुइँया भीतर ल निकलथे जइसन लाल गेरू सादा छुही निकलथे । कनहु कहें येहर पहार ल फोरे ल निकलत हे। अउ कनहु मनखे  मन  वोला निकाल के लानत हें । येला ओमन नून कहत हें । वोमन के जगहा म नून जादा हे, चाउर कम हे, तेकरे बर वोहू मन गाड़ी म जोर के येती लानत हें ,  अउ येकर बलदा म  वोमन धान अउ चाउर ले जात हें येती ल ।


            फुलझर येला सुनिस तब ये नावा जिनिस के खोझार म निकल गय । ये गाँव वो गाँव करत पाँचवा गांव म भेटिस ,ये जिनिस ल अउ थोरकून अलदी बलदी कर के येला लानिस  अउ पहिली धर के मोर करा आइस । मंय अउ रुनु येला थोरकून जीभ म चीख के देखेन-बस्स... पसीना वाला देहें ल चाँट डारेन असन लागिस! भात बासी के संग खा के देखेन सिरतोन बहुत बढ़िया लागिस ।

"फुलझर...!"मंय कहेंव ।

"हां...!" वो घलव ओझी दिस ।

"तँय थोरकून येला ले जा अउ विपरु ल घलव चिखवा के आ ।हमन वोकर ल जादा नि जानन । अउ वोहर हमर सुख दुख के सच्चा संगवारी आय।" मंय कहेंव।

"तँय ठीक कहत हस ।मंय तुरतेच ताही वोकर करा लेके जावत हंव ।" फुलझर कहिस अउ थोरकून ये  नावा नून ल  सरई पान के बने पतरी म धर के देखाय अउ चिखाय बर ले गय  । मोर मन नि माढीस तब महुँ वोकर पिछु चल देंय ।


                 विपरु सदाकाल कस आँखी मुंद  के कोंन जानी का ल देखत रहय , फेर वोकर चेहरा हर दप दप बरत रहय । वोला अइसन देखे म ही सुख लागत रहय ।

" विपरु ...!" फुलझर कहिस ।

"अतका धीरे ल येहर नि सुनें , फुलझर !" मंय कहेंव । मोला वोकर ये अगम गाँवतरी के बारे मे थोरकून पता रहिस ।

"विपरु ...!!"मंय जोरलगहा हाँक पारें ।

"अं हं..!" विपरु कहिस आँखी खोलत। हमन दूनों झन ल एके सँग देखके वोहर थोरकून अचम्भो होइस,फेर हाँसत उठ बईठिस ।

           

              फुलझर पूरा बात ल  बताइस ,तब विपरु घलव मुँह म डालिस नून ल.... गजब ! फेर  अवइया काल म ये जिनिस हर हमर शरीर ल  बनाही अउ विगाड़ही दुनों बुता करही । हमर शरीर के संग हमर मन ल घलव डोलाही येहर । येहर हमर देंह म रिस पित्त लोभ लालच बढ़ोही, फेर दया मया  घलव भरही, देखबे  न ये सब जिनिस हर होके रहही ।

"अउ का का होही, विपरु ...?"फुलझर हाँसत पूछिस वोकर अतेक लंबा गोठ ल सुनके ।

"येहर नारी मन के रूप ल बढ़ोही ...गवइया मन के गला ल मीठ करही । तोर साही  बाहुबली ल अउ समरथ बनाही ..."

"बस बस बस...!"फुलझर कहिस हांसते-हाँसत ....


***



( 21 )


           आज तो विचित्तर घटना घटत रहिस ।सुत विहना ले जोड़ी- जांवर बने बमलू अउ  भुरभुसी हमर घर कोती आके बड़ किलबोल करत रहिन । का हो गय कहत मंय निकलेंव तब तो भुरभुसी हर गला फाड़ के रोइस ।

"का हो गय बमलू ...!"मंय थोरकून असकटावत कहेंव ।

"एईच हर बताही ...!"बमलू कहिस ।

"कइसे का हो गय भुरभुसी ?"

"एइच ल पूछ...!" रोवते रोवत भुरभुसी कहिस ।

                 अब तो मंय पूरा असकटा गय रहें। ठीक हे तुमन के मुखिया आंव मंय फेर तुमन अबेर- संकेर नि गुनिहा अउ अइसन उत्पात करिहा तब थोरहे बनही ।

"अरे बमलू , बता का बात ये ,तउन ल।" मंय शेरू सिरतोन शेर असन दहाड़त कहेंव । मोर ये दहाड़ असन अवाज ल सुनिस तव पहिली तो भुरभुसी के रोवई हर बन्द हो गय ,फेर बाद म बमलू के मुख हर उघरिस-शेरू भई...!

"हाँ, बता का बात ये तउन ल ...?"

"येहर घर ल मोला निकालत हे । घर ल तो मंय हर बनायेव हंव न।" बमलू कहिस ।

"हां, निकाल हाँ घर ले येला । घर हर मोर ये ।"भुरभुसी कहिस तड़ाक ले ।


           अब मंय समझ गय रहेंव कि येमन के मंझ म तिरा -घिंचा होय हे अउ येमन मोर करा फैसला कराय आंय हें । अतका बेर ल तो रुनु घलव तीर म आ गय रहिस । अब मोर जी म डर पेल दिस...!काहीं बमलू के संग आय आगी हर मोरो घर झन पेल देय अइसन गुनत ...

"चल बमलू भई, ये का बात आय तउन ल सब झन के मंझ म मंझनिया गुन बो  गॉंव बीच म । अभी तो तुमन जावा ।" मंय वोमन ल टरकावत कहेंव । वोमन तो जाय कस नि करत रहिन , तभे मोर करा फुलझर आ गय अउ कहिस -चल मुखिया ,तोला मंय एकठन नावा जिनिस बताहाँ ।


         मंय फुलझर के पिचकाट ल सबले जादा जांनथव । वोकर नारी परानी के हक्क के जिनिस अतका ल छोड़ के बाकी वोकर सब हर मोर ये अउ मोर हर वोकर ये । येला मंय जानथंव, वो जानथे, रुनु -झुनू जानथें,अउ सब जानथें ।

"देखा बमलू ,तुमन अभी जावा नही त सब झन मिलजुर के फुलझर के बुता ल देखे चली !" मंय बमलू ल टरकावत कहेंव ।


           फेर येती बमलू भुरभुसी कोती ल देखिस जाने माने वोला पूछत हे कि का हमू मन चली एमन के संग ...?अउ भुरभुसी हाँस परिस अउ कहिस -चला अब हमु मन  चली देखे बर ।

"चला चला सब झन चला ।गांव भर के मन चला।"फुलझर कहिस । 


                     येला सुनके रुनु घलव हमर संग म आ गिस ।झुनू हर अइसन ल देखत देखत थक गय रहिस ।तेकर सेथी वोहर हमर संग नि आइस । अब हमन बनेच झन हो गय रहेन । 


            फुलझर हर अब गाड़ा वाले बछवा बइला मन ल निकाल के ले लानिस अउ गाँव बाहिर खेत कोती ले के जाय लागिस ।हमन घलव वोकर पीछू पीछू जाय लगेन । बीच रसदा म विपरु एकेझन  कुछु कुछु गाय असन करत ठाढे दिखिस तब मंय वोला हाँक पारें- विपरु ...!

              

                  वोहर आज एके पइत म सुन लिस अउ तीर म आ गय । वो पूछिस -कहाँ ?

"खेत...।"

"क्षेत्र...!" वो कहिस । अब तो मंय हाँस के रह गंय  अउ वोकर हाथ ल धर के तीरत ले आने हमर संग म । अतका  बेरा ल फुलझर हर खेत पहुँच के दुनो बछवा ल लकरी के बने औजार म गाड़ी असन बाँध देय रहिस।अउ अब वोहर बछवा मन ल ललकारिस तब बछवा मन रेंगे लॉगिन । बछवा मन के संग म बंधाय वो लकरी कुटी ले  भुइँया हर खनात जात रहिस ।

"वाह फुलझर , वाह...!"मोर मुँहू ले निकलीच गय । अउ आन मन घलव खुशीयाली जाहिर करिन । देखते देखत फुलझर हर आधा खेत ल खन डारिस बछवा मन ल येती- वोती कुदा -कुदा के ।

"झुनू हर कतेक न कतेक दिन म सकथिस ये आधा खेत ल अइसन खने बर ।तउन ल तें एक्के घरी म खन देय ।" मंय कहेंव । 

"हाँ...!अतकी झन झुनू के बुता ल ये दु झन बछवा मन कर दिन हें ।"फुलझर अपन दूनों हाथ के अंगठी मन ल बतावत कहिस ।

"फुलझर बस...दस दस दस।"विपरु कहिस फुलझर ल सिखोवत ।


           वोटकी बेरा गज्जु आ गय अउ हमन सब ल अइसन देखत देखिस तब कहिस-इहाँ का होत...?

"जोत ..." फुलझर कहिस ।

"अं...! का...? "

"जोत...!" फुलझर फेर कहिस।

"खेत जोत होत..."

             अब तो हमन सब के सब खलखला के हाँस परे रहेन । अब मंय वो लकरी कुटी मन ल देख के प्रश्न करत नजर ले फुलझर कोती ल देखें फेर पूछें - अउ ये का ये फुलझर ?


             अब तो फुलझर एक घरी ल गुनिस अउ तहां ले अपन भुजा मन ल बतात  कहिस - देख ,ये मोर जांगर ये ।

" हाँ...!"

"तब येहर मोर नांगर ये।"फुलझर हाँसत कहिस ।

"बहुत बढ़िया जेकर जांगर तेकर नांगर ...!"अब तो मोला कहे बर पर गय ।

"हमू मन अइसनहेच बनाबो न ," भुरभुसी  बमलू के हाथ ल धरके तीरत कहिस ।

"हाँ, बनाय बर लागहीच ।"बमलू कहिस ।


        अब तो मंय वो दुनों कोती ल देख के भेदहा  मुचमुचाय ...अरे बमलू ल भुरभुसी

हर घर ल बाहिर निकालत हे अउ अब वोला फुलझर असन नांगर बनाय बर कहत हे ।वाह भई वाह...!



                      *


           खर मंझनिया के  बेरा म  गांव बीच म हमन ठुला गय रहेन ।अभी हमन ल बमलु अउ भुरभुसी के गोठ बात ल सुनना रहिस ।  जब बनेच झन जुर गयेन फेर अउ आन -आन मनखे मन आतेच रहिन । तभे एक झन लइका हर बड़े जानिक भूंजाय चिरई ल खावत ये बीच जगहा म आ गय -

"ये...! येला कहाँ पाय बेटा ।"मंय वोकर कोती जा के पूंछें ।

" आज डोंगरी भीतर गंय रहें मुखिया , तब उहें बुताय आग्गी तीर म ये रहिस हे। मोला भूख लागत रहिस तब मंय येला धर के ले आने  खाय बर ।" वो लइका सरपट अउ परछर कहिस ।

"ठीक हे बेटा,फेर अब येला झन खा ।" अबके पइत विपरु कहिस मोर जगहा म ।

"फेर काबर...!" वो लइका पूछिस ।

"बेटा, खाय बर येकर छोड़ कतको जिनिस परे हे,वोला खई न जी ।" विपरु कहिस।

"फेर तो भूंजाय चिरई भूंजाय मछरी हर बड़ मिठाथे ।" वो लइका तो जाने माने  बहाँजोरी म उतर गय हे अइसन लागत रहय ।

"मंय तो केंकरा -घोंघी सब ल भूंज के खाथों।" वो लइका फेर कहिस ।

"फेर कइंचा माँस ल झन खाबे ।येला हमर पुरखा मन खइंन तब खइंन । अब हमन ल खाय बर चाउर भात बासी हे, अतेक फ़र फरहरी हे, कांदा-कुसा हे।पीये बर दूध हे,तब फेर हमन ल ये माँस -मछरी ल खाए के काम नोहय ।"विपरु हर वोला अबड़ अकन समझावत कहिस अउ अब वो हम सब के आगु म खड़ा हो गिस अउ कहिस - जइसन कांटा गड़बे तब खुद हमन ल पीरा होथे,तइसन जब आन जनाउर मन ल मारबे तब वोहू मन ल अइसन पीरा होथे ,तब वोमन छटपटाथें ।

"हाँ, ये बात तो आय ।"बनेच झन कहिन ।

"तब फेर बतावा का हमन ल आन जनाउर मन ल अइसन मारना चाही ।"

"नहीं...!" दु चार झन मन कहिन ।

"तब  फेर भूख लागही तब खाबो का ला ?"

"अरे पहिली तो गनें हंव सबला ।"

" फेर माँस हर मिठाथे घलव...!"कनहु एकझन आन कहिस। अब तो वोपरा विपरु चुप पर गय ।

             तभो ले वोहर फेर कहिस -कोई झन मारव आन आन जीव  मन ल । भात खाओ बासी खाओ फेर माँस झन खाव ।"

"ले बइठ विपरु !"मंय वोला शांत करावत कहें ।


         अब गज्जु उठिस अउ मोला कहिस-कइसे मुखिया ,हमन ल तँय काबर बलॉय हावस जी ।

येला सुनके मंय सिरतोन अकबका गंय कि मंय एमन ल काबर बलाय हंव ।मोला सुरता नि आत रहिस । तभे मंय सुरता करें...भुरभुसी अउ बमलु के गोठ ।अउ मंय आँखी निटोर के देखें कि कहाँ बइठे हें वोमन। फेर मोर आँखी म वोमन तो नि दिखिन


         येती फेर हम सब झन देखेन वोमन अपन टुकना टुकनी मन ल धर के गहिल वन- डोंगरी कोती जावत हें । मंय तो अपन मुड़ ल धर लेंय अब ।


***



(22)


                        अब हमन करा खाय बर थोर मोर हो गय रहिस । अपन बुध्दि अकिल करके हमन खाय के जिनिस ल फेर नावा पाय के समे तक ल बचा के राखन । कोई कोई तो अउ आगु तक ल खाँय, जुन्ना अनाज मन ल । राखे के लइक जिनिस मन ल घाम म सुखो के... पूरा पटपट ले  सुखो के रख दन । भाजी पाला आमा अमली मन बढ़िया रह जाँय बनेच दिन ल खाय के लइक । कनहुँ कनहुँ मन तो मछी-कोतरी मन ल अइसन घाम म सुखो के चाहे पहिली आगी बता के फेर घाम म सुखो के वोला राख लेंय ।अउ अइसन भाजी पाला मन ल सुसका कहन फेर मछी -कोतरी के सुक्खा ल सुसकी कहन ।


            हमर बीच के बलवान बल्लु हर तो जब्बड़ 'ढोरहा 'रहिस । ढोरहा माने बिना मांस,  बिना मछी -कोतरी के वोकर कँवरा अलगबे नि करे। वोहर जे दिन ताजा माँस, मछी- कोतरी नि पाय, ते दिन कम से कम चार ठन सुसकी ल आगी -अंगरा म ना देय अउ वोकरे कहर म पेट भर खाना ल  खा डारे । हमन वोला अइसन करत देख हासन घलव ।फेर वोला येकर से कुछु फरक नि परे ।


           अगम बुद्धि करे ले खाय बर थोरकून हमर  फिकर हर कम हो गय रहिस । अब अइसन करके हमन शरीर के जतन बर ओनहा बना लेत रहेन । जुन्ना ओनहा ल जतन के सांट के अउ खील के  सुते बर डसना -मुड़सरिया बना लन ।अब तो हमन सन पटवा के डोर बना के  चार खुरा वाला खटिया घलव बना लेवत रहेन । तभो ले भुइँया म सुते ल जादा आनन्द रहिस ।फेर रात- विकाल के अहिरू -विच्छू के डर तो लागबे करय ।


           खाय -पहिरे ले उबर के हमन अब रहे बर बने अउ बड़े घर बनाय के शुरू कर देय रहेन । बरसाती पानी हर घर भीतर पेल देय अउ बनेच दिन के आवत ल सीढ़ आय रहे  , तेकर सेथी अब हमन जउन पहिली बुता करे रहेन वोहर रहिस -अब हमन घर ल थोरकून ऊंच जगहा म बनात रहेन । अइसन करे ले बरसात के दिन म घलव  हमर ये जगह हर बनेच सुक्खा रहे अउ सीढ़ घलव नि आय ।


                  अब तो हमन जीभ के सुआरथ बर गुरतुर , अम्मट,नूनछुर ,झार , करू अउ कस्सा असन जिनिस मन ल चिन्हत घलव रहेन । नून- मिरचा  खाय के सेथी अब हमन के देंहे म रिस- पित्त मन बासा करत रहिन । अउ अब बिन काम के काम बिन बात के बात  हमन म झगड़ा घलव हो जाय । वो तो मंय रहें कि अपन जउन कोरी- खईरखा मनखे संगवारी रहिन , तेमन ल सोझ डहर म चलाय के बुता ल जीमन्तर ले करंव ।


                 तबले भी कभु कभु हमन के बीच म बड़ मनमुटाव आ जाय । एक दु झन मन मोर गोठ ल नि माने कस करें ।अइसन नारी मन घलव रुनु ल बोलवाही मारें कि- का जिनिस के तँय हमर मुखियाइन अस ;तउन ल तँय बता ।


              मंय अपन आप ल कतको भी निकता मानत रहें, तब ले भी मोर मन म कपट रहिस कि येमन सदाकाल मोला अइसन  मुखिया मानतेच रहंय । येमन कभु भी मोर ले धुरिहा झन जाँय...!येकर बर मंय बहुत गुनें ।तब मोला नजर आइस उपाय ...!


            असल म हमन ये नावा वन -डोंगरी ल उजार के लेश भूंज के नावा खेत में ल बनाय रहेन । नावा राख  भुइँया म बगबग ल धान पान मन बगरे रहिन । धान हर पाक के तियार रहिस । अब हमन थोर बहुत अगास म उवत तारा नछत्तर मन ल घलव समझत बुझत रहेन ।ये तारा जोगनी मन घलव बरसा- जाड़ -घाम असन बलदत  रथें । अतकी दिन रात बाद ये नावा तारा मन दिखथें, येला हमन जाने लाग गए रहेन । विपरु हर हर बखत कुछु नावा जिनिस मन ल समझतेच रहय ।


           फेर  आज गम्भीरा हर कूदत हँफरत आके जउन सम्बाद ल मोर कान म फुसुर फ़िया करके बताइस हे,वोतका बेर ल मोर तत हर बिछा गय रहिस । का करों कइसे करंव कुछु गुनें  नि सकत रहें  । फेर मोला लागिस अब कुछु नि करबो तब ये नावा भुइँया हाथ ल जाही  उपजारे फसल हर जाही , तव फेर हमर लइका -पिचका मन फेर भुखन मरहीं । आज येला सह लेबो , तब काल ले फेर हमन ल कनहुँ आन हर कुदाहीं ।कतका हमन कुदबो भागबो अउ आन हर कतका कुदाही । येकर बर हमन ल गुलियाय बर लागही । अउ गुलियाय बर बड़खा खूँटा चाहिए...


                 मंय सब झन ल बलवा के कहें-

"चला अब बतावा...!"

"का...?"

"ये चन्दा अउ सुरुज ल कोन हर बनाय हावा जी ?"

"..."सब एक दूसरे के मुहूं ल देखत रहिन ।

"माटी ल...?"

"..."

"आगी ल पानी ल रुख- राई ल कोन बनाय हावा तउन हर आगु आवा ।"

 "..." सब अकबका गय रहिन अउ मंय घलव एईच ल चाहत घलव रहेन।

"तब सुना ,मंय बतात हंव ।ये सब मन ल ईश्वर हर बनाय हे । वोहर हमन ल नि दिखे,फेर हमन ल वोहर देखत हे। वोहर अंधियार म घलव देख डारथे ।"

"हाँ...!हाँ...!"समलाती अवाज अइस ।

"तब सुना ,वोई ईश्वर हर मोला सपना म वोकर सब जिनिस मन ल रखवारी करे बर कहे हे अउ मोला भूपति बनाय हे । अब मंय भूपति अंव ।मंय राजा अंव। जब तुमन ईश्वर के सब जिनिस मन ल खईहा- पिहा , तब वोकर बलदा म मोर हुकुम माने बर लागही। मोर आगु म मुड़ी नवाय बर लागही । अउ अपन कमई के थोरकून अंश ल मोला साल- कर के रूप म चढ़ाय बर लागही ।तुमन अइसन नि करिहा ,तब बिजली बन के वो ईश्वर के गुस्सा हर तुमन ऊपर गिरही ।

"नहीं...!!"बनेच झन कहिन,"  शेरू, तँय हमर राजा !वो ईश्वर हर जइसन कहे हे, तइसनेच करबो ।वोहर हमर उप्पर गुस्सा झन करिही भर बस्स ।"

"हाँ, तुमन तुँहर बुता करिहा फेर महुँ ल तो मोर बुता करे बर परिही ।"मंय कहेंव।

"तँय का बुता करबे राजा ।"

"मंय तुमन के रईक्षा करहां । मोरे असन अउ आन आन जगहा म राजा हें,तेकर मनखे मन हमर कोती आके हमर चीज बसूत बर्तन भाँड़ा गाय गरु ल चोरा के लूट के लीहिं,तब हमन ल जुर के वोमन के मुकाबला करे बर लागही ।"

"हमन वो सब करबो जउन ल तँय भर कहबे ।"

"तब सुनव , अइसन बझे के  मउका कभु भी आ सकत हे । मंय सुने हंव ..."

"राजा, तँय का सुने हस ।" जुरे मनखे मन कहिन ।वोमन के चेहरा म डर हर तो रगबग ल दिखत रहय ।

"हमन जउन नावा भुइँया बनाय हन ।वोहर तो ए बच्छर धान- पान ल उच्छर देय हे । वोई भुइँया ल हमन ले लुटे के खातिर तीर के मोरे असन राजा हर  मन बना डारे हे । वोमन कभु भी हमन के ऊपर म चढ़ के ये हमर जमीन ल लूट सकत हें।"

"अउ हमन अइसन कभु नि  होवन  दन ।"फुलझर तो रिस म तमतमा उठे रहिस ।

"हाँ...! हाँ...!वो भुइँया ल हमन  सिरझाय हन। बनाय हन ।आन कनहुँ कइसे ले लीही ।" कै न कै झन उठ खड़ा होइन ।

"तब फिर तियार रहव । अपन अपन आड़- हथियार ल टें के तियार राखो ।" मंय राजा वोमन ल हुकुम देंय ।

अब  मंय फुलझर कोती देखत कहेंव -फुलझर , ये लड़े -भीड़े के गोठ तोर जिम्मे ।"

"हाँ, मंय तियार हंव । फेर मोला येकर बर कई न कई ठन चक्का गाड़ी बनवाय बर लागही ।"

"तँय जइसन कहिबे, तइसन करबो ।गाड़ी बनाबो अउ बनवाबो।फेर एकर बर धन लागही ।जावा अउ अपन अपन घर ले अनाज लाना कर के रूप म  ।"  मंय हुकुम देंय ।


          देखते -देखत मोर घर म धान के पहार लग गय । तुरतेच ताही तो एकर जरूरत नि रहिस , फेर हुकुम के असर देखे बर मंय येला कहे रहें । मोर गोठ हर खड़ा हो गय रहिस ,फेर अब सब झन के रक्षा ,सब  के फसल के रक्षा अउ येकर ल बढ़के ये खेत डोली अउ माटी के रक्षा करे के जिम्मेदारी आ गय रहिस ।


         फेर अगास म तउरत सुरुज ल जोहरत मंय मोर बुता ल करे बर परन कर डारें रहेन ।


***


( 23 )


                        मोर गोठ हर सच होवत रहिस । फेर अब हमन सार चेत रहत रहेन । हमर भीर के कई  झन मनखे मन ल वो कोती भेज- भेज के राखे रहेन , जउन मन वो कोती के हाल -चाल ल बताय के बुता करंय । ये मनखे मन  के हिरदे म पहिली राजा भक्ति अउ राज भक्ति के भाव ल जगाय बर वोमन ल विपरु हर  कै न कै दिन ल अपन संग म राख के सीखोय पढोय । बस वोइच पवित्तर गोठ कि... ये धरती हर हमर महतारी आय ! काबर...? जइसन लइका हर महतारी के सीना के क्षीर ल वोकर कोरा म रहत ल पीथे , ठीक वइसन धरती महतारी के सीना ल निकलइया क्षीर हर धान के बाल मन म आके भरथे, जउन ल हमन खा के अपन पेट ल भरथन । तभे तो धरती हर हमर महतारी ये । अउ हमर महतारी के रक्षा करना हर हमर बुता ये ।


         येहर हमर धरम आय । ये धरम काय ये... ?जउन हर हमन ल धर के राखथे,गिरन नि देय;वोहर धरम आय । धरम हर हमन ल धर के राखथे अउ हमन ल वो धरम ल धर के राखे के काम आय । हमन धरम  ल धर के राखी अउ धरम हर हमन ल धर के राखही ...! विपरु हर ये गोठ ल बने बने किस्सा कहानी के संग जोड़ के कहे । छेवर म वोकर गोठ रहे... सब ल जिये के हक्क हे चाहे वो चांटी मनसा चिरई -चुरगुन काबर झन रहे । ये धरती के रक्षा करना राजा के  बुता आय ,फेर तुम सब मन राजा के आँखी कान अव । जावा...देखा हमर ये धरती के लिए कोन हर गलत सोचत हे,तउन ल जावा...सुनव-सूंघव -चीखव -छुवव...हमर धरती के लिए कोन हर गलत सोंचत हे तउन ल चिन्हव अउ तुरतेच मोला अउ राजा शेरू ल बतावव ।


             वो  हमर मनखे मन पूरा ईमानदारी के साथ हमन के संग देत रहिन । ठीक अइसन अब हमन गांव के रखवार राखे रहेन ,वोमन ऊंच ऊंच पेड़ म चढ़ के धुरिहा धुरिहा ले निगरानी करत रहिन । वो सब मन करा ढोल बाजा रखवाय रहेन । जउन ल अपन मतलब के अनुसार बजा के हमन शोर -सन्देशा ल बगरा लेवन । कुछु भी थोर मोर ऊंच नीच दिखे तब हमर ये रखवार संगवारी मन के ढोल हर बाज उठे अउ हमन सार चेत हो जावत रहेन ।


         वो दिन बुडती डगर कोती ल ढोल बाजे के  तिरकिट ता... तिरकिट ता...अवाज आइस । येहर तो आन जिनिस बर अवाज  बने रहिस । येहर खतरा के अवाज रहिस । बुडती ल अवाज शुरू होइस ,तब सब कोती येहर घूमर गय । ढोल मन बाजतेच रहिन । 


             जउन जिनिस हर सुनिइ परे रहिस।वोहर सच रहिस । तीर के वो मनखे मन फ़ांफ़ा फिलगा मन असन हमर कोती आवत रहिन ।हमन कुल जतेक मनखे हावन तेकर ल कतको जादा मनखे बाबू लइका मन आवत रहिन ।फेर सबके हाथ म बांन -चिंयार, गुटा-गोफना,लाठी डंडा बड़े बड़े पखरा सबो जिनिस रहिस ।


               येती हमर मनखे मन ढोल बजातेच रहिन । ठीक येमन असन तैयारी करके हमरो मनखे मन घलव निकल आइन । जतेक मनखे हमर जगहा ल घेर डारे रहिन तेकर आधा रहिन हमर मनखे मन ।

"भागो रे भागो रे इंहा ले। ये जगहा ल हमन लेबो।तुमन के खेत ल हमन लेबो ।" वो आय  मनखे मन के मुखिया हर कहत रहिस कूद कूद के ।


          हमन कुछु नि कहेन ।


"तब तुमन अइसन म नि माना ...!"वो मुखिया असन मनखे जोर से नरियाइस-शुरू ...!इको ! इको...!!


           अब येला सुनके वो आय मनखे मन हमर घर छांनहीं ऊपर म पथरा फेंके के शुरू कर दिन । अब तो फुलझर मोर हाथ ल झर्रा के अपन  चका गाड़ी म बइला फांद के निकल परिस अउ सीधा वो मुखिया बने मनखे करा पहुंच गय ।अउ  बघवा चितवा असन फुरती बतात वो मनखे ल अलगा के ले लानिस अउ हमर घर भीतरी म लान के बांध दिस ।

  

            वोला अइसन बंधात देखिन, तब हमर मनखे मन म हिम्मत आ गय । अब तो हमन सब के सब वइसनहेच भिड़ गय रहेन। थोरकून बेर म हमर चितवा -बघवा लड़ाई हर वो अवइया मन ल भागे बर मजबूर कर दिस ।येती फुलझर वो बंधाय मनखे ऊपर शुरू हो गय रहिस । फुलझर हर तो रिस म भर गय रहिस ।


        मंय कूदत गंय अउ फुलझर के हाथ- बहां ल धर के वोला रोकें । वो मनखे मोला भर नजर देखिस । मंय कूदत गंय अउ भाँड़ा म भराय पानी  लान के वोला  पिंयाय । वो पेट भर पानी ल पीस। अब वो शांत दिखत रहिस । अब फुलझर फिर हाथ अलगात रहिस । मंय फेर जाके य

टप्प ले वोकर हाथ ल धर लेंय- अति के जवाब अति ...! नही...!!मंय कहेंव ।फेर फुलझर मोर गोठ ल मानत हे कहु नि लागत रहे ।

"फुलझर ,मोर  सेनापति मंय तोर राजा बोलत हंव । अब बस्स कर ।"मंय वोला डपटत कहेंव ।

"तब येला कइसन करबो । "वो पूछिस ।

"कुछु नि करन । येला छोड़ दे ।"

"नही येला नई छोड़न । येहर हमर इलाका ल लेय आय हे। येहर हमर घर ल लुटे आय हे। येहर हमर भुइँया ल लुटे आय हे । येला मार देना उचित हे।"

"नहीं...!!"वो नरियाइस ।

"चुप !चुप!कोई नि मारें तोला ।"मंय वोला चुप करात कहें ।

"येहर हमर बर बैरी ये । अउ बैरी ल मार देना ही उचित हे ।"

"नहीं...!!"वो मनखे नरियाइस ।

"अरे चुप !! कोई तोला नि मारे । दुश्मन ल मारना हर तो उचित आय , फेर तँय हमर दुश्मन नि होवस न ।"

"ये तँय का कह देय राजा । येला कतका मुश्किल म मंय पकड़े हंव ।"फुलझर अब ले भी नि जुड़ाय रहिस ।

"फुलझर ,येकर साही ल धरना पकड़ना तोर बर खेलवारी ये ।"मंय कहें तब फुलझर हर थोरकून जुड़ाइस ।

              

           अब मंय वो बंधाय मनखे के तीर म जाके वोला कहें- सुन जउन गलती तुमन आज करे हावा ,वइसन गलती फेर झन करिहा । तुमन सब झन ल  सईंते बर हमर सेनापति हर अकेल्ला ताक़तवाला हे । आज वोहर तोला जीवनदान देवत हे । तँय गलती कर बे तब तँय कनहु करा लुकाय  रईबे । तोला घाघर कस छबक डारही हमर सेनापति हर ।


           अब तो वो मनखे के आँखी म डर हर कतेक न कतेक गहिल दिखत रहय । वोला सात- धार के पसीना फुटत रहे । मंय खुद फुलझर के ये बिजली असन फुर्ती ल देख के अचम्भो म पर गय रहें।  मानत हंव वोहर बड़ हुशियार ये, फेर सीधा सेनापति ल धर के ले आनही अइसन मंय नई गुनें रहेंव ।


             हमन वो मनखे ल ले जा के सिवाना बहिर छोड़ आएन । छोडेंन तब फेर वोहर पिछु लहुट के नि देखिस । फेर मंय फुलझर कोती ल देखें ...वोकर मन अब ले भी परछर नि लागत रहिस ।

"फुलझर...!"मंय कहेंव।

"हाँ...!"वो छोटकुन ओझी दिस ।

"आज हमन कम मनखे हावन,फेर हमन अतेक मजबूत हवन कि तोर रहत ल अउ आन कनहुँ ये कोती ल देखे के हिम्मत नि करें । हमन एक एक मन  ओमन के कतेक न कतेक अन ।" मोर गोठ ले फुलझर के मन हर थोरकून जुड़ाइस ।


      आज खुद मंय अपन सब संगवारी मन के बुता  काम ल देख के गदगद हो गय रहें । जउन ल जइसन करना रहिस तउन हर ठीक वइसन ही करिस । सब के असर होइस अउ वो मनखे ल हमन छोड़ देन । वोहर आन सब ल ये बात ल बताही ।अउ फेर आन कनहु हमर कोती ल आंख उठा के देखे नि सकें ।


                  येती हमन अइसन गुनतेच रहेन।वोती रुनु ,झुनू अउ आन कतको मई लोग मन हमर लड़ईया मन ल खोझ -खोझ के वोमन के जतन करत रहें । जउन मन ल जादा चोट आय रहिस,तउन मन ल वेदु हर अपन घर म बनाय मउहा के पानी ल देवत जात रहिस । वोमन  के जान बचाय बर येहर जरूरी हो गय रहिस ।


      वोमन के सेनापति ल फुलझर धर डारे रहिस, तब तो वोमन हिम्मत हार के भागत रहिन , तब हमर ये चोखट मनखे मन वोमन ल बड़ धुर ल कुदाय रहिन । हमर बल हमर मन हर रहिस । हमन आन के ल कभु लुटे के बारे म सोंचे भी नि सकन, येहर हमर बल आय ।


***



(24 )


        हमन बने मंजा के जीयत -खात रहेन । अब हमन ल पेट के चिंता हर जादा नि सताय । पींधे -ओढ़े बर छाल खाल के संग पोनी ले बने  ओनहा मन रहिन । सन ,पटवा के रेशा के संग अउ आन- आन जिनिस मन ले ओनहा घलव बनात रहेन । अब हमन के रहे के जगहा हर घलव बने परछर रहे । मोर  हुशियारी ले तीर के आन मनखे मन हमर जगहा आके कोई गड़बड़ झाला करे के हिम्मत नि करें । सब कोती मोर नांव हर बगर गय रहे । येला देख के फुलझर बड़ खुश होय । वो अउ मंय हमन के शरीर अलग रहिस फेर जी हर एक रहिस ।


              अभी भूरी हर कूदत -कूदत आय रहिस । वोकर सियान हर घर के छानही के जतन करे बर एती -वोती रुख-राई मन ले डाँकत -उदकत छानही म चढ़त रहिस , तभे वोहर चूक गिस अउ भुइँया म आ गिरीस ...! वोहर हमन  ल  बलाय रहिस देखे बर। मंय गयें अउ जाके देंखें ... बनेच पाय रहिस अउ वोहर तो गिरत बेर रुक -राई मन ल धरत -धरत बनेच रोखाय -कोकमाय घलव हे । मंय गुनान म पर गंय !बनेच जिनिस मन ल  हमन बना डारे हावन, फेर ये का ! छानही तो हर बखत चढ़े  बर लागही । तब  का करे जाय ? येकर बर तो कुछु गुनेच बर लागही ।


         आज फुलझर हर फुरसत दिखत रहिस । मंय अपन मन के बात ल वोला बताँय कि कइसन ये बुता हर बनही । छाँनही- परवा तो चढ़ेच बर लागथे  चाहे वोहर छानही -परवा ल जतने के बुता रहय  कि छानही ऊपर म फरे-फुले नार- विंयार मन ले फ़र -फूल टोरई-सँकेलई रहे । एकर सेथी कुछु सोच मोर भई फुलझर कुछु कर मोर भई फुलझर... मंय वोकर तीर म जाके अपन बात ल बतायेव ।


         फुलझर बड़ वेर ल गुनिस...बड़ वेर गुनिस।तहाँ ले वो जगहा ल सरनटात निकल आइस । मंय तो अभिले वोइच करा बइठे रह गय रहें । वोकर चेतलग बुद्धि म बात हर घुसर गय अइसन लागत रहिस । मंय बड़ बेर ल वइसनहेच बइठे -बइठे अगोरत रहें । भालू हर तो अब बनेच बड़े हो गय रहिस । गाय के गोरस ल पीयत पीयत बाढ़े रहिस तेकर सेथी हाड़ा-गोड़ा मन पोठ रईबे करिन वोकर । वोहर मोला फुरसत बइठे पाए तब मोर एक भांवर किंजरत चक्कर लगात बड़ जोर -जोर से गाना ल गाय , जउन ल वोहर सुने रहे ।


                फुलझर आइस फेर वोकर हाथ म लंबा -लंबा नार रहिस ये नावा पउधा के ।  वोहर आइस अउ एक ठन नार ल खींच के लंबा करिस ।वोमे के पान मन टोर दिस डेटा ल रहन दिस । अब वो नमूना ल मोला बताइस-अइसन अगर हमन बाँस लकरी ल जोर के बनाबो, तब येमन म पांव मढात कतको उप्पर जा सकत हन ।


               थोर -थोर बात मोरो समझ म आवत रहिस ।देखते -देखत फुलझर एक ठन बाँस म अइसन नार-डेटा वाला रचना बना डारिस अउ ऊपर चढ़े के कोशिश करिस । फेर एमे सहुलियत नि दिखिस तब वोहर दुनो पांव बर  दु ठन बाँस बनाइस अउ चढ़िस फेर चढ़े के बेरा म ये मन अलग -अलग  भागिन ।


           अब तो फुलझर हर दुनों बाँस मन ल जोर दिस अउ चढ़ के देखिस । मोर आँखी बटरा गय फुलझर हर बेंदरा मन कस कतेक न कतेक ऊपर चढ़ गय अउ वइसनहेच उतर गय । अब वोकर चेहरा म एक पइत फेर विजेता के भाव दमकत रहिस । अब हमन दो दूनों जोराय बाँस ल धर के  भूरी के घर कोती चल देन। हमन खोज निकाले ये नावा जिनिस ल सब झन ल बताय के बुता म आज लग गय रहेन । 


             भूरी हर हमन ल अइसन जिनिस ल धरे -धरे किंजरत देखिस तब खलखला के हाँस भरिस । फेर हमन तो वोकरेच घर जावत रहेन । हमन अब वोकर अंगना म पहुंच गय रहेन । वोकर ददा हर अबले भी कुहरत रहिस पीरा के मारे । वेदु अउ विपरु दुनों के दुनों घलव उहाँ बइठे रहिन । हमन ल अइसन खटपट करत देखिन तब एक पइत फेर वोमन हांसिन । फेर वोमन जानथें...जउन बतां फुलझर भिड़े रइथे वोहर बड़ निकता बुता रथे , कुछु नावा बुता रथे ,अउ हमन के जीवन ल निकता बनाय के बुता रथे । ये आसरा हर बरोबर वोमन के नजर म दिखत रहे । 


                  अब तो फुलझर वो बाँस मन ल भूरी मन के छानही के तीर म ले जाके मढा दिस अउ वोमे चढ़त वोमन के छानही म चढ़ गिस । उहाँ ले उतर गिस । फेर चढ़ गय अउ फेर उतर गय । वोहर अइसन कई पइत कर के बता दिस ।

सब के सब वोकर ये बुता ल बढ़िया नज़र ले देखत रहेन ।


               फुलझर हर वो बाँस के बने जिनिस ल भूरी ल दे दिस अउ कहिस-अब तुमन एमे अइसन चढ़िहा- उतरिहा । तोर सियान अब एमे चढ़ही छानही ,रुख- राई म चढ़ के बेंदरा -ढुलबांदर मन असन झन कूद दिही ।  


           फुलझर अइसन कहिस अउ हाँस भरिस ।


                              *


                    अब तो हमन म एक ठन अउ नावा चलागत चलत रहिस । जिनगी जिये बर... टुरा पीला मन के संगवारी बनाय बर अपन जगहा ल छोड़ के आन -आन जगहा म जाय के शुरू कर देय रहेन । एकर ले हमर मन हर जादा परछर लागे । कुछु भी हो जाय हमन कूकरी- कुकुर मन ल दूसर तो रईबे करेन , अपन महतारी अपन महतारी असन मनखे, अपन बहिनी अपन बहिनी असन नारी मन ल चिन्हतेच रहेन ; ये पाय के अब हमन जोड़ी -जांवर बनाय के बुता ल अपन जगहा ल छोड़ के आन- आन  जगहा म करे के कोशिश करन । अइसन करे ले मन हर खुल्ला हो जाय , मन म मतंगी  छा जाय । हमर गांव के नर- नारी मन ल तो देखबे करत हावन , फेर कनहु आन गांव के मनखे मन ल देखन तब वोकर से दु पद गोठियाय के लोभ लागे । नारी- परानी मन ल देख के तो मन हर गदगद हो जाय ,वोमन ल ओझियाय म बड़ लाज घलव लागे ।


           फेर ये बुता करे बर हमन विपरु ल भेजथन। वोहर अपन दवा -माटी के खोझार म इहाँ -उहाँ किंजरतेच रइथे । अउ वोला आन गांव  म घलव , जब मनखे मन ल बने नि लागे, तब वोला जतने बर धुरिहा -धुरिहा के मनखे मन आके ले घलव जाथें;ये पाय के वोकर बड़ पुछारी हे हमर गांव ले बाहिर म । 


                   अउ इहाँ हमर गांव भर हर वोकर घर ये । सब के सब वोकर गोठ ल मानथें,अउ वोला जोहारथें । वोला खवाय बर वोला नावा ओनहा बर  जोजियाथें फेर वोकर मन हर सदाकाल निरमल ।उवत पुन्नी के चंदा कस  जुड़ अंजोर सदाकाल वोकर मुख म दिखतेच रइथे । चन्दा सुरुज अपन रसदा ल भटक जाहीं फेर विपरु अपन डहर ल नि भटके । ये विपरु आन- आन गांव जाथे, तब वोहर वो कोती के बाढ़त सज्ञान होवत लइका मन ल देखे रइथे, फेर मउका आथे तब वोहर वोमन ल बता देथे अउ खुद सँग म जाके कुछु -कुछु भेवा कर के वोमन के हाथ -बहां ल धरा देथे ।

"विपरु...! " मंय वोला पूछेंव वो दिन, जब वोहर बदरा के जोड़ी -जांवर बनाय बर तीर के गांव के मनखे मन ल बलवाय रहिस ।अउ वोमन के आगु म जोड़ी मढ़ाय के नांव म कुछु कुछु भेवा करत रहिस । वोहर सरई रुख के लासा ल आगी म ना देय रहिस, ये जगहा हर कहर -महर ले भर के गमगमात रहिस । वोहर भुइँया म  धान ल बीछ के  वोमे कुछु -कुछु रेखा खींच देय रहिस । अउ सब झन ल पान -फूल देके अइसन कुछु- कुछु करवात रहिस , तब मोला थोरकून  हाँसी लगिस अउ मंय वोला   देखत रह गय  रहें ।


               सुन्ना जगहा म वोला पूछें- तँय अइसन का रंग ...रंग के करथस, विपरु ।

"हाँ, शेरू ! अइसन करे ले मनखे मन ल लागथे कि कुछु बने जिनिस होइस हे ।मनखे मन के जोड़ी -जांवर बनई  हर खेलवारी बुता नोहय । एक पइत बन गय तो बन गय । येहर छोड़े -उझारे के जिनिस नि होय । अइसन करे ले मनखे मन थोरकून डराहीं अउ बने चलहीं । "


                  मोला लागिस विपरु हर बड़ गहिल गोठ गोठियाइस हे । महुँ ल वोकर गोठ हर बड़ बढ़िया लागिस वो दिन ...!



                           ***

(25)


          झमाझम पानी गिरे तब हमन के एती- वोती आना -जाना कम हो जाय ,काबर के जउन ऊंच जगहा म हमन अब रहत रहेन , तेकर चारो कोती नदिया- नरवा , वन -झोरखी मन के भरमार  रहिन । वोइच -वोइच नरवा मन किंजरत कभु -कभु हमन के जगहा ल घेरे रहेन । ये नरवा -नाला मन हमर महतारी असन रहिन ,बिना येमन के हमन के जिये के गोठ हर अबिरथा रहिस । पीये बर पानी नहाए बर पानी सबो जिनिस बर पानी , बिन पानी कइसन जीवन ।


                   फेर अइसन झमाझम पानी गिरे अउ कई -कई दिन तक चलईया झख्खर करे ,तब मन हर अब्बड़ असकटाये घलव । अब तो हमन के जान - चिन्हारी , मीत-मितानी घलव आन- आन जगहा ले चलत रहिस । अइसन बाढ़े- पोढ़े नरवा मन ल देखन ,तब वो पार आय-जाय के बस एके तरीका रहिस ; मछरी-कोतरी असन तउर के जवई ! फेर ये बुता ल कुछु बनेच अटकहा पर जाय, तभे हमन करन । नारी -परानी मन तो ये बुता ल बिल्कुल भी नि भाँय । एक तो ओनहा  मन गीला हो जाँय,ऊपर ले गहिल नरवा - नदिया ल पार करई हर सब के लिए सधारण नि रहे ;येकर बर मजबूत बहाँ-भुजा के जरूरत रहे , जउन हर सबका नि रहय । ये नरवा-झोरखी मन हमर महतारी असन रहिन तो जरूर फेर येमन ल पार करई हर हमर बर बड़ -बुता हो गय रहिस ।


           बदलू के टुरा दुलरु हर वो दिन भरे पूरा म पेल देय रहिस, अउ उबुक-चुबुक होवत रहिस । वो तो अच्छा रहिस कि गज्जु के नजर पर गय अउ वोहर वोला तीर निकालिस, फेर अतका बेर म वोहर पानी पी डारे रहिस -

"कइसे काबर कूदे रहय तँय ये भरे पूरा म ? "गज्जु वोकर पेट ल मसकत पूछिस । फेर कइसनो पूछे ले वोहर अउ आन कुछु नि बताइस ।फेर दु दिन  बाद गम मिलिस के वोहर नदी के वो खंड़ वाला गांव , जउन ल अब हमन आमापाली कहन, उहें के एक झन नोनी पिला ल अपन बर मनवा डारे हे ।इन्हें वोकर आना -जाना होवत हे बड़ दिन ले । नदी म कम पानी रहे त येहर तउर के पार कर लेय, फेर चढ़े पूरा म बोजा मरत रहिस ।

       


               अउ जब अइसन अड़चन छेंका आ ठाढ़ होथे,तब वोला  टारे के जतन करे बर लागथे । अउ फुलझर रहे हमर अइसन बाहिर के जिनिस के रचईया -गढ़ईया । ये पइत वोहर जब -जब पूरा आथे तब -तब ,नदिया खंड़ म बइठ के कोन जानी का -का गुनत रहिथे ;फेर आगु पानी म बोहात जम्मो जिनिस मन ल देखतेच रहिथे ।


          अउ वोहर तो आज मोला घलव खींच के अपन सँग म ले आने रहिस । मै घलव वोकर सँग म बइठ के देखत रहें वो नदिया म बाढ़त पूरा ल ।  अगास हर घनघोर करिया बादर ले पटा के गुंगवावत रहे , अइसन लागत रहे कि ये करिया बादर हर एके पइत भुइँया म आ उतरहीं तब परलय हो जाही । अइसन बादर-पानी हर तो हमन बर सहज रहिस,हमन बर खेलवारी रहिस ।


            फुलझर चुप बइठे रहिस।वोकर सँग महुँ वईसनहेच चुप बइठे रहें ।एक पइत उठे कस करें,तब वोहर मोर हाथ ल खोभिया के धर दिस अउ फेर बइठार दिस ।

"फुलझर मैं राजा मंय मुखिया ...!" मंय हाँसत कहें ।

"अरे बइठ भी ! तोला राजा कोन बनाइस ; आखिर मंय न ? " 

"फेर तँय काबर मोला बनाय ...?"

"तोर बुद्धि जादा हे हम सब झन ल ,तेकर बर ।"

"अउ तोर का जादा हे ...! "

"बल...!" फुलझर तुरतेच कह उठिस । मंय येकर वो उत्तर ल सुनें तब सिरतो वोला बड़ गहिल नजर ले देखें । सिरतोन म फुलझर हर बड़ ताक़तवाला हे ।अउ कई झन हें - गजरु, बल्लु उवा उवा मन ,फेर फुलझर के पूरा जीवन हर हमन के बढ़वार पर चढ़ गय रहिस । कतेक न कतेक नावा -नावा जिनिस मन ल बना- बना के वोहर हमन ल देय रहिस ।फेर आज के वोकर बुता हर मोला समझ नि आत रहिस , अइसन बाढ़त नदिया -नरवा तीर म बइठ के वोहर का देखत हे; का खोझत हे...

"वो देख वो देख...!"फुलझर जोर से किल्लाईस ।

"का...!"मोर मुँहू फरा गय । अभी मोर आगु म कुछु खचित -खास नि दिखत रहिस ।

"वो देख... वोती देख !!" फुलझर तो अब उठके नदिया म बोहात पानी के सँग तरी कोती भागे के शुरू कर डारे रहिस ।

"अरे कुछु बताबे तब तो जानहां, का ये तउन ल !" मंय थोरकून जंगात कहें ।

"नदी के ये खंड़ ल वो खंड़ जाय के जिनिस बिना भीजे ...।"

"वो कइसन...!"

"वो देख कै न कै ठन रुख मन उखड़ के एके सँग बोहात जात हें अउ वो रुख के उप्पर म दु -तीन बेंदरा मन दिखत हें।अगर हमन अइसन करबो अउ  वोई बेंदरा मन कस रुख ऊपर बइठ जाबो तब ये पार ले वो पार पहुँच जाबो ।"

"हाँ...!तँय ठीक कहत हस ,फेर अभी बोपरा बेंदरा मन ...! "

"अरे कुछु नि होय ओमन ल ,ये रुख मन कोई जगहा तिरिया जाहीं अउ बेंदरा मन भुइँया म आ  जाहीं ।"

"हाँ, वो हो सकत हे ।"

"हो सकत हे, नीही , अइसन हो के रही ।" फुलझर अब झरझरात कहिस । 


                 वोइच बेरा म हमन एकठन अउ जिनिस ल देखेन । पूरा म बोहात रकम -रकम के जिनिस मन म एकठन जुन्ना पेड़ हर घलव बोहात अइस। न डारा न पाना  बस सुक्खा रुख...! वो रुख हर खोखरा रहिस,अउ बने मजा के पानी ऊपर म तउरत रहिस,फेर वो खोखरा म एकठन कोलिहा हर हावे अइसन दिखत रहिस । हावे का... वोमें रईबे करिस कोलिहा हर ; अभी वो खोखरा लकरी हर तीर म आ गय रहिस ।

"फुलझर...फुलझर ! वोती देख कोलिहा बोपरा !"मंय जोर से कहें ।

"तँय भर कोलिहा देख ! मंय तो अउ आन जिनिस ल देख डारें न ! "

"का अउ कुछु हे ?"

"हमन लकरी ल अइसन खोखरो बनाके वोमे चढ़ जाबो जइसन ये कोलिह चढे हावे; तब ले भी हमन ये नदिया ल पार कर सकत हन सुक्खा के सुक्खा ! "

"वोपरा कोलिहा...! फुलझर कुछु कर ! नही त येहर मर जाही अइसन बोहात -बोहात ; बेंदरा मन आन रहिन । " मंय किल्ला के कहें ।


             अब तो फुलझर ल मोर हुकुम ल मानना च रहिस । वोहर एती -वोती देखिस अउ  तीर म परे बड़खा बाँस ल धर दारिस अउ वोला धरके आगु नदिया म उतर गय । भीजत -बूड़त वो बाँस  के सहारा ले बाढ़े पूरा ले वो खोखरो होय रुख ल झोंकिस अउ तिरियात -तिरियात तीर म ले लानिस । तीर म अइस तब वो कोलिहा हर छलांग लगा के भुइँया म आगय, फेर तुरतेच भागिस नही, जाने -माने पूछत रहिस - तुमन मोर जान बचाय हावा,तब अब मोला बतावा कि जांव के नि जांव ।


     फुलझर वोला थोरकून खेदे कस करके जाय बर कह दिस हाँसत -हाँसत !

" ओहो, शेरू आतो देखबे ! "फुलझर कहिस तब मंय वोकर तीर म गंय। वो खोखरो रुख भीतर ल देखें तब मोरो आँखी बटरा गय ! भीतर म बनेच बड़े करिया नांग साँप हर फेटारी मार के चुप -चाप परे रहिस । महुँ वोला नजर भर देखे ।

"ले चल अब धुरिहा भाग ! "फुलझर कहिस तब मंय धुरिहा म भाग आंय । अब वोहर खुद बनेच धुरिहा जाके वोइच  बाँस म वो सांप ल चुलाइस । वो भी धीरे से चेत म आके बाहिर निकल आइस अउ वन -डोंगरी कोती सरक गय । 

 "चल अब घर चली ...! जउन ल तलाशत रहेन वोहर मिल गय ।" फुलझर कहिस ।

"का तलाशत रहेन।"

"नदिया के वो पार जाय के तरीका फेर सुक्खा के सुक्खा ...!"

"फेर का मिल गय ।"

"एई रुख मन के झुंझाट अउ ये खोखला रुख । अइसन कईठन रुख ल आपस म सांट के बांध देबो अउ वोकर ऊपर म बइठ के वो पार ।अउ चाहे  सुक्खा रुख ल खोल -खोल के अइसन खोखला बना लेबो अउ वोमे बइठ के वो  पार !" फुलझर कहिस तब मंय वोकर मुँहू ल देखें । करिया बादर के बीच म वोमे अंजोर दिखत रहे ।


                           *


        अब येती फुलझर चार दिन के भीतर म ही एकठन सुक्खा लकरी ल अपन आड़-हथियार म छेद -वेध के एकठन खोखरा बना डारिस । अब वोहर मोला  बलाइस । मै वोकर तीर म पहुँचे ।

"काय ये फुलझर...?"मैं वोला पूछेंव ।

"ये देख एला ...! "वो कहिस ।

"का ये येहर  !"

"वो दिन के  वो कोलिहा वाला खोखरा रुख के !"

"कोलिहा वाला के सांप वाला ।" मंय कहेंव ।

"दुनों वाला ...!" वो कहिस ," मंय ठीक वईसनहेच बना देय हंव ।

"ठीक हे ।" मंय ओझी देंय ।

"चल येला नदिया म चलाबो ।" वो कहिस ।

"चल...! "मंय कहेंव,फेर वोतकी बेर रुनु आ गय । वोहू देखिस अउ बुझिस गोठ ल , " भई पहिली मंय चढहाँ एमा ।"

         

                  एला सुनके फुलझर मोर कोती ल देखिस । मंय मुचमुचा के वोला हुकुम दे देंय । नि बनही त फुलझर के ये खोखरो लकरी बुड जाही तब रुनु के का होही ? रुनु ल का होही ! रुनु हर तो अगास के परेवा ये त जल भर सलांगी मछरिया ये । अइसन नदिया के तउरई हर तो वोकर रोज के बुता आय । आज बात हे -सुक्खा ओनहा के संग नदी ल ये पार ले वो पार,पार करना ।


               हमन तीनों झन जोड़िया के वो खोखरो लकड़ी ल नदी म लानेन ।

"चल चढ़ जा बहिनी,फुलझर के चका चका चक्का गाड़ी म पहिली चढ़े रहे तँय ।आज वोकर ये डगमग डगमग डगमग करत डोंगा म चढ़ जा ।  " फुलझर के तो गहा हर भर गय रहिस ।

"का कहे भई ...डग..."

"डगमग डगमग डोंगा ...! "

"डोंगा...?"

"हाँ...आँ ! " फुलझर  हाँसत कहिस  अउ रुनु के संग बाँस धरके वोहू खुद चढ़ गय वो 'डोंगा ' म  । 


            मंय तो वोमन ल अइसन जावत देखत रहें । सिरतोन वोमन पानी के उपरे-ऊपर जात रहिन । वोमन वो पार पहुँच घलव गइन अउ वो पार उतर के रुनु हर वो खंड़ म फुले काँसी के फूल ल एक मुठा धर लिस अउ वापिस आ गय फेर डोंगा म । देखते -देखत डोंगा ये पार आ गय । सिरतोन वो दुनों के ओनहा म एको बूंदी पानी नि लगे रहिस ।

"अब बदलू के टुरा दुलरु ल वो पार जाय बर बुड़े- कठे बर नि लागे ।" मंय कहें वो डोंगा ल देखत।


***




                     ( 26 )


               बने मंजा के हमन कमात-खात जात रहेन ।  रोज सुरुज ल उवत देखन फेर मंझनिया वोला खर होत भी देखन , तहाँ ले संझाती बेरा वोला बूड़त देखन । ठीक अइसन बीज ले सूली फेर रुख , रुख ले फेर फूल -फ़र तहाँ ले रुख मन ल संकेलात देखन । पानी के बूंदी गिरे तहाँ ले बोहात जाके अगम कोती चल देय, फेर अगाहु बरसा म वो बूंदी मन फेर आ जाँय । ये सब जिनिस मन ल हमन बड़ गहिल बुद्धि ले देखे के कोशिश करन । फेर मोला जउन जिनिस हर मोला छू जाय ,वोहर रहिस ; सुरुज रोज जन्मथे ,रोज बाढ़थे अउ रोज ... फेर वोइच सुरुज हर थोरकुन बेर बाद फेर नावा जनम ले लेथे । ये हर कै पइत जनमही अउ के पइत...तेकर गनती नि ये । का हमु मन के जनम अउ... हर ठीक अइसन जिनिस नई होइस । हाँ... ! हाँ...! हमू मन के जीवन हर ठीक अइसनहेच आय ।


                    विपरु अउ मैं तो ये गोठ म मातेच रहन । हमन के पूरा अउ पक्का विश्वास हो गय रहिस कि बीज ले पौधा असन ,पानी के बूंदी असन ,उवत अउ बूड़त सुरुज असन हमू मन के जीवन हर आय । हमर बीच ले जेमन चल चल दिन हें,वोमन फिर...फिर के आवत हें । अउ हमू मन बूड़त सुरुज के अंजोर कस बुडबो अउ आगु दिन फेर आ जाबो । जरूर... जरूर  आबो ! ये विश्वास हर हमन म बड़ गहिल ले अपन जगहा बना लेय रहिस । अभी तक फूल हर फर होय अउ पाक के भुइँया म गिरे ।फेर अब  कभु -कभु विचित्तर होत रहिस ! कभु -कभु कोई फूल हर फ़र धरे के पहिली ही चाहे फ़र हर पाके के पहिली भुइँया म गिर जात रहिन । अउ जब अइसन होय तब हम सब झन ल बड़ दुख लागे । कुछु भी करके पूरा उमर भर सब जी -खा लेंय,अइसन हम सब झन ल लागे । हमन के नियम, छांदन- बाँधन हर बड़ तगड़ा रहिस, तेन पाय के कनहु मनखे हर गलत करे के पहिली बनेच गुन लेय । फुलझर के निगरानी म कनहुँ आन गलत -सलत होबे नि करे ।


           फेर  आज अउ अभी जउन होवत हे ,तेहर तो मोला विधुन कर देवत हे । घर बाहिर चौरा में माढ़े कै न कै ठन फूल मन बतात रहिन कि अतकी फुल मन  बिन समय के समय हमन के बीच ल झर गय हें । अतकी हमर मनखे मन अब हमर बीच म नई ये । राजा -मुखिया होय के नांव म अपन मनखे मन के हिसाब रखई हर मोर बुता घलव रहिस । थोरेच दिन म अतेक फूल मन झर गंय । 


            होइस का हे ।दूनों कोती ल चलत हे मनखे मन के शरीर हर अउ सुक्खा होत होत नारी हर जुड़ा जावत रहिस । ये ला हमन धुंकी-रई कहत रहेन । कइसनो उपाय कर देखिस विपरु फेर जउन मनखे  एक पइत एमे आ गय , वो फिर नि बाँचीस । बनेच घर उजर गय रहिस । फुलझर तो  बईहा भुतहा हो गय हे ...! ये का होवत हे! अब कइसे करबो तब बाँचबो ।


               दु-चार झन जउन बाँचे हावन वोमन बइठ गुनत रहेन । मंदरु हर तो अपन मउहा पानी म लहरत कहिस  कि रात के वोहर खेखल्ली के खेलखेलात अवाज सुनिस , कुकुर मन के भुंकई सुनिस ,  अउ कोलिहा के नरियाय के संगे -संग एकझन नारी के रोवे अउ हांसे के समलाती अवाज सुने हे । वो नारी हर रोवत -रोवत कहत रहिस कि वोहर सब झन ल खा दिही । एको झन ल नि बचाय । एको झन ल नि बचाय ...! सबो झन ल खा दिही ।

"बस एइच हर रई-धुंकी ये । येहर औरत रूप म आवत हे ।" संग म बइठे एकझन हमर मनखे हर कहिस ।

" अरे रोको वोला ...!"

"रोकव...रोकव ! नही त सब झन ल अइसन मार डारिहि ।"

"फेर कोन रोकहि वोला ?"

"अउ कइसन रोकहि वोला...! "

"हाँ, हाँ...! "

"हाँ, कोन रोकहि ,कोन ...!"

"कोन...कोन ?"

 "... "

"  शेरू ,तँय हमर मुखिया अस । हमर राजा अस । बता कोन रोकहि तउन ल ।"

         

                अतेक दिन म आज पहिली बार मंय चुप हो गय रहें । मंय कुछु नि कहे संकय बस वोमन के मुँहू ल देखत भर रहि गंय । नि सकत रहिस , तब ले भी विपरु ल मंय बलांय ।

"कइसे विपरु , कुछु कर कुछु बता । तँय बनेच जानथस...तँय सब ला जानथस । " मंय तुरतेच कह उठें ।

                

                    विपरु एक घरी ल चुप रहिस । वोहर अपन आँखी मन  ल मुंदे रहिस। थोरकुन वेर बाद वोहर अपन आँखी ल खोलिस - हमर हवा -पानी हर खराब हो गय हे ।  वोला साफ -परछर करे बर लागही ।

"वो कइसन होही ।"

"बनेच बुता करे बर लागही ।"

"वो का ...?"

"पहिली तो छेंवई ,जउन मन ल हो गय हे, वोमन के तोरा -तबेला तो करेच ल परिही;फेर सार -चेत होके । वोमे के छीटा -बूंदा हमर तीर म झन आय । ये जिनिस ल पहिली घोख लो ।"

"अउ अउ ...?"

"आवव मोर सँग म ...!" विपरु कहिस, मंय तो वो फूल मन ल देख- देख के अतेक असक हो गय रहें कि वोकर गोठ के अनुसार करे म ही भलाई नजर आवत रहिस ।


           विपरु हमन ल बीच बस्ती म ले चलिस अउ हुकुम दिस -आगी तियार करव । अब मोर हुकुम ले वो करा बड़े -बड़े गोला मन ल जला देन आगी ल तियार करे बर । विपरु अपन घर कोती ल बनेच तनतनात मोटरा ल लेके आइस । आके अपन वो मोटरा ल छोरिस तब देखेन ; वोहर तो सरई के सुक्खा लासा रहिस ।


               अब विपरु कोन जानी का... का कहिस अउ एक मुठा वो लासा ल वो आगी म ना दिस । फेर तो कई मुठा ल ना दिस । देखते -देखत वो जगहा हर कहर -महर ले भर गय । वोहर वईसनहेच वो का...का बुदबुदात रहिस अउ वो मुठा- मुठा लासा ल आगी म फ़ेंकतेच रहिस । ये कहर अउ आगी के अंजोर ले हमन के बुझात मन म एकठन नावा आशा के संचार होइस । 


           आज रात हमन  जगहा -जगहा बनेच आगी बारेंन अउ वोई आगी म सब घर ल संकेले वईसनहेच साल पेड़ के लासा अउ खहरत सुक्खा फूल मन ल लान के वो आगी म ना देन । पूरा गांव हर कहर- महर करत धुंआ म भर गय । अउ आगी के आंच हर घलव बने सुहात रहिस ।

"ये तो हो गय बईहरके बुता ! अब काल पानी- कांजी ल ध्यान देबो । फेर जउन मुख्य बात हे, वोहर परछर अलग बाँच के रहे ये । सब साना-घांटा झन होय ।ये जिनिस ल जीमन्तर ले पूरा करे बर हे ।" विपरु कहिस ।

"तोला ये सब गोठ ल कोन कथे ,विपरु! " मंय हाँसत कहें ,फेर वोकर गोठ म मोला जिये के सब रस हर भराय लागत रहे । अब कतको भी बुता करबो ! परे-लरे मन के सेवा करबो फेर ये गोठ ल ध्यान म राख के करबो ।


               विपरु कुछु नि कहिस, बस हाँस के रह गय ।

          


                             *


         आगु दिन विपरु सब घर के गाय- बइला मन के गोबर अउ गउ मूत्र म मंगा के सब जगहा ल  लीपवाईस अउ नि बनिस ते कोती ल  छींचवाइस । 

"सफ्फा रबे त रई -धुंकी के डर नि रहे ।" विपरु सब झन ल कहत रहिस । वोहर अब हम सब झन ल पीये के पानी के जगह म ले गिस । हमन सब अपन- अपन भाँड़ा मन ल धरे रहेन ।

"चलव पानी भरो पीये बर फेर ओनहा म छान के ही भरा ।" वो कहिस अउ पानी भरे भाँड़ा मन ल भुइँया म मढ़वा दिस ।


           अब विपरु अपन थौली म ले कुछु जिनिस निकालिस अउ वो सब भरे भाँड़ा मन म थोर -थोर वोला मिलाइस - येहर 'कया ' ये । येला नाय ले पानी के माटी -गोटी तरी म बइठ जाही , तब घर म ये पानी ल निथार लेबो ।अउ वोई ल पिबो -खाबो !


                हमन सब के सब चुपे चाप वोकर गोठ ल सुनत रहेन अउ वो जइसन कहत रहिस तइसन करत रहेन ।  फेर हम सब के मन म जिये बर नावा विश्वास हर फेर उलहो गय रहिस । जउन मन चल दिन तब चल दिन ; फेर जउन बाँचे हें ओमन के रक्षा करना हमर सबले बड़खा बुता हे अभी ।



                           *


"ये धरती हर हमर ले बड़े ये ! येला महत्तम दी !"विपरु कहिस अउ भुइँया ल छुवत अपन मुड़ ऊपर ल छुइस ।

"तँय  अब का करत हस ,विपरु ! "मंय वोकर ये बुता ल समझ  नि पात  रहें ।

"अइसन करइ माने अपन ल बड़े मनई !  " वो कहिस अउ अब सब जुरे मनखे मन कोती देखत कहिस -"कोन कोन शेरू ल अपन ल बड़खा अउ बने मानथा जी ! " 

             

                   एल सुनिन तब सब के सब अपन दुनों हाथ ल उठा के मैं ...मैं  के अवाज करे लॉगिन । 

"तब चलव , जइसन मैं ये भुइँया के करे हंव ,तइसन तुमन सब के सब शेरू के पांव ल छुवत करो । " वो बड़ जोरदार ले कहिस । येला सुनके सब के सब मोर पांव ल छुए बर तुरत कूद दिन ।

"अब कोन- कोन मोला बड़े मानथा जी...!" शेरू हाँसत कहिस, फेर मंय तो वोकर बात ल समझ गय रहें । सबला पहिली मंय दुनों हाथ खडा करें अउ कूदत जाके वोकर पांव ल छू के माथा ल छुएं । फेर तो सब लग गिन ,वोइच बुता म ।

"देखव ,येहर सिखवना रहिस ।आजल येला हमन  पाँ परई कहबो ।अपन ले बड़े के पांव परबो ।" विपरु कहिस तब हम सब बड़ जोर से -हाँ  कहेन।

"चलव अब असली पांव परना हे, जउन हर हम सबला बड़े आय ! " विपरु कहिस ।

"हाँ...! "हम सब कहेन ।

"पहिली ये धरती के पाँ परी, येहर हमर महतारी ये। वो कहिस अउ भुइँया ल छू के मूड़ ल छुइस ।

"हाँ...!!" हम सब कहेन अउ वईसनहेच करेन ।

"ए अगास ...!"

"हाँ...!" हम सब अपन तरुआ ल छुवत पाँ परत गयेन ।

"ये पवन ...!"

"हाँ !"

"ये पानी ...?"

"हाँ...हाँ !"

"ये आगी ...!"

"हाँ...!"

"ये रुख -राई...!"

"हाँ...!"

"ये दिन...!"

"हाँ ...हाँ !"

"ये रात...!"

"हाँ...!"

"ये बिहना...!"

"हाँ...!"

"ये संझा...! "

"हाँ...!"

"ये अगास में रहईया लहुकत विजुरी !"

"हाँ...!हाँ...!!सब बड़े  यें ! सबके पाँ परत हन । सब हमन ल तुइच मन कस रक्षा करें ।" सब के सब एके सँग कहिन ।

"हाँ, येमन के नांव म वोइच सरई लासा ल  आगी म देबो । आगी हर वोला ले जाके सब झन ल दिही ।" वो कहिस । 


        अब के बार हमन अपन अपन मुड़ ल डोलात भर रहेन हाँ कहत ...



***


( 27 )


       अतका दिन ला हम के जीवन हर  जनाउर  मनके जीवन ल थोर -मोर बनेच हो गय रहिस । बड़े बड़े बात ल तो नई  जानत रहेन , फेर महतारी -बेटी के चिन्हारी साफ हो गय रहिस अउ  आन कोन्हों ल कांटा गड़त देखन ,तब हमरो हिरदे म  वोतकीच पीरा होय । धीरे -धीरे हमन अपन आप के बनाय छांदन -बाँधन म बंधा जावन, बड़ मजा ले; अउ जउन मन ये छांदन -बांधन ले भागे के कोशिश करंय, वोमन ल खुद हमन छोड़ दन -सब बंद ! आगी- पानी, आना- जाना , उठना-बैठना सब बंद । अइसन करे ले मनखे हर सुधर जाय, अउ माफी मांगत फिर अपन ल मिंझरे बर बड़ लाला-गोलई करे । तब फिर वोला सँग म लेवन...


             अब हमन अपन निज मनखे मन के चिन्हारी करे बर एक ठन अउ उपाय करत रहेन। एक -एक ठन विरिछ चाहे एक -एक ठन जनाउर मन ल हमन अपन ' चिन्हारी' मानेन । घर के जउन , सबला बड़खा मनखे रहिस,वोहर अपन पसन्द के जिनिस ल छांट के बाकी मनखे मन ल बताय के अब ये रुख हर कि वोमन के चिन्हारी आय । ये गोठ हर बनेच बगर गय तब हमन एला अब 'गोत '  कहत रहेन । हमन के चिन्हारी -गोत हर तो नाना प्रकार के रहय जइसन - सरई , तेंदू, चार, महुआ,साजा, धंवरा,बोइर । वहीँचे बाघ, भालू,चितवा, भैंसा घलव रहे हमर गोत मन ।


                फेर एती विपरु हर अपनेच असन कई न कई झन आन मनखे मन ल तियार कर दारिस , अपन के बुता ल बगराय बर । ये मनखे मन के शरीर म न रिस रहे , न पित्त रहे , न लोभ न हिरखा न अउ कुछु आन। येमन सिरिफ अपन जीवन ल आन मन के सेवा म लगाय रहिन । विपरु हर कनहुँ नारी परानी ल अगोट के अपन जीवन साथी नि बनाय रहिस । वोकर अपन पान- फूल नार -विंयार नि रहिन, फेर बनेच झन अइसन वोकर हुकुम म अपन जान ल घलव दे देवईया लइका -जवान रहिन । विपरु हर घरी आंनद मगन रहे ; काकरो सेवा -जतन के बुता बर वो आगु रहय । बस ,एईच हर वोकर जादू -मन्तर  रहिस ।

  

             अब हमन  के बीच म अइसन भी होवत रहिस के  पूरा में पूरा परिवार हर ये जगहा ल छोड़ के आन जगहा म चल देंय । वोमन ल अइसन करत देखन तब बड़ दुख घलव लागे, फेर फैसला तो वोमन के अपन रहे , हमन का कर सकत रहेन । जब भी कोई जाने -चिन्हे परिवार हर जाय लागे ,तब वोहर कई कई दिन ल चर्चा के गोठ रहे । फेर कोई कोई नावा परिवार मन घलव इहाँ अइसन आ के बसे घलव । हमन वोमन ल घलव मिलाय के कोशिश करन ।


                          *


        एक दिन फुलझर ल सुटुर -सुटुर चुपेचाप आगु रेंगत जात देखें ,तब मोर माथा ठनकिस ।

" कइसे कहाँ जात हस, फुलझर?" मैं वोला थोरकुन जोरलगहा कहेंव । वो कहिस तो कुछु नीही फेर ठाढ़ जरूर हो गय ।

"कइसे कहाँ जात हस अइसन सुटुर -सुटुर !कइसे तन -मन तो ठीक हें ? "

"हाँ...!" वो बस अटकिच भर कहिस ।

"कहाँ जात हस...!"

"मैं वो पहर उपर जावत हंव ।"

"फेर काबर ...? अउ तोर हाथ म ये ठेसे -कुचे के आड़ हथियार मन घलव हें । "

"तहूँ सँग म चल , देखबे तब ।" वो कहिस, अउ मैं सिरतोन म वोकर सँग म हो गंय ।


              आज हमन बनेच अध्धर ऊपर चढ़ेंन, अउ जात-जात एक ठन बड़खा पखरा के अलदा -गुफा म हमायेन । गुफा हर अंधियार तो रईबे करिस, फेर एक घरी म नजर हर फरिया गय । अब तो हमन सब कुछ परछर -परछर पांच-परगट देख सकत रहेन  । फुलझर आगु बढ़के  भिथिया तीर म जा के ठाढ़ हो गय  अउ इशारा म भिथि कोती ल बताइस । मैं आँखी बटेर के देखें ! भिथि म तो जनाउर अउ रुख -राई मन आ ठाढ़ हो गंय हें, अइसन दिखत रहय । वो पथरा के अलदा भर भर ल फुलझर हर अइसन रोख रोख के का न का बना के भर देय रहिस ।

"जब मोर मन हर परछर नई लागय , तब मैं इहाँ आके अइसन बनाथों , तब मोर मुड़ हर हरु , बने मंजा  के हल्का लागथे ।

"बढ़िया , बहुत बढ़िया !" मैं कहें ।

"ठीक हे,एमन ! "

"ठीक का बहुत बढ़िया ! फेर एकठन बात हे फुलझर ?"

"वो का ये ?"

" तँय अतेक कुछु रच डारे अउ मंय गम नि पाँय । मोला काबर नि बलाय ।"

"अब तो बला के लाने हंव न । ये जगहा अउ ये बनौरी मन पोगरी मोर रहिस । इहाँ तक अंग-संग जोड़ी -जांवर झुनू तक हर नि जानत ये येमन के बारे म ।

" हाँ...!"

"फेर तँय मन संग मीत अस ,तेकर  पाय के तँय ये सब ला देख डारे ; जेकर ले तोला  कुछु फायदा नि होय ।" फुलझर कहिस । मंय वोकर आँखी मन ल अंधियार म घलव देखे के कोशिश करत रहेन । वोमन तो अंधियार म घलव जोगनी असन बरत रहिन ।

"फुलझर,  मोर भाई ...! " मंय अतकिच भर कहे सकेंय । मोर गहा हर भर गय रहिस ।

"हाँ, का कहे ! "

" जब तँय अइसन सिरझथस तब तोर मुड़ हर हल्का लागथे,तब का मंय अइसन करहां, तब मोरो मन हर हलका नि होही ।"

"जरूर होही ...! "

"तँय जिये के एकठन नावा रसदा , नावा चलागत ल चला देय हस ।  ये नाव म तँय मोर ल बड़े अउ मंय तोर जोहार करत हंव ।"

"ले भई गे राहन दे , तोर जोहार ल , आ अउ मोर संग म ये खंड़ीया...आधा -अधूरा मन ल पूरा करे लाग ।" फुलझर कहिस अउ महुँ भिड़ गंय वोमन ल अइसन बनाय बर । अब तो हमन मगन हो गय रहेन अइसन कुछु जिनिस मन ल बनाय बर । फुलझर हर तो आज  सीढ़ी निसेनी असन मनखे बनात रहिस । हमर ये बुता हर बड़ बेर ल चलिस । अउ सुरुज हर खसले लागिस, तब वो जगहा म अंधियार हो गय, तब हमन उहाँ ल निकलेंन ।


        अब हमर तन हर भले ही थक गय रहिस,फेर अइसन लागत रहिस किमन के सब बोझा हर उतर गय हे ! वोहर हरु हो गय हे !

"फुलझर ...! " मैं वोला  ओझियांय ।

"हाँ, शेरू! काय ये !"

"हमर गाँव हमर घर ...! "

"हम सब एक होंन न ...? "

"हाँ...! "

"तब फेर कोई निकता जिनिस , जउन मिल जाथे वोला मिल बाँट के खाय के जिनिस आय न ! "

"बरोबर बिल्कुल बरोबर...! "

"फेर तँय जउन ये निकता जिनिस ल भेंट पारें हावस,वोला पोगरी एके झन चिखत हस अउ आनन्द मगन हस ।"

"कहाँ पोगरी ...! मैं तोला बतांय न ! "

"जब मोला बताय,तइसन सबला बता अउ सीखो  ! काल के दिन हमन रईबो नई रईबो फेर हमर हाथ के बनाय ये जिनिस मन सब दिन रहीं !" मैं बड़ जोरदार ढंग ले फुलझर ल मनाय अउ वोहर अब सदाकाल कस कठ्ठल गय हाँसते- हाँसत !

"चल तँय कहत हस, तब काल पहिली विपरु ल लानबो तहाँ ले बाकी आन मन ल । अउ सब झन मिल के सब जगहा ल भर देबो अइसन अइसन जिनिस मन ल बना के ।" फुलझर हाँसतेच कहिस ।



                        *


           अब तो थोरकुन दिन म हमन जिहाँ पायेन तिंहा अइसन अइसन जिनिस बना के छोड़त गयेन - फेर ये आशा म कि हमन के नि  रहे के बाद के समे म आने आने मन येमन ल देखहीं अउ हमन के सुरता करिहीं ।




(क्रमशः )



*रामनाथ साहू*

( 28 )


             हमन धीरे धीरे चलत बनेच धुरिहा रेंग आये रहेन । पहिली हमन फल -फूल अउ कनहुँ जेमन ल रुचे तउन मन कच्चा -भूंजाय माँस खाँय। फेर कइसन भी अउ कतको माँस  मिले , तब ले भी वोमन फल -फूल बर ललाय । हमन बनेच झन तो माँस नि खान,फेर हमन ल अपन पेट बर फर-फूल , कांदा -कुशा मिलिच जात रहिस । फेर लइका मन गाय- छेरी मन  के गोरस ल पीये बर सिख गिन । अउ तब हमन भेटे रहेन -ये धरती के असल खजाना ल...ये धरती महतारी के सीना ले निकलईया दूध के सुखाय रूप ल अन्न के रूप म ।  अन्न - धान ल गेहूं ल रक्सी ल कोदो ल अउ अइसन कतको जिनिस मन ल हमन संकेलन । तहाँ ले फिर अपन खुद उपजाएन ।


              अब अन्न उपजारे बर भुइँया चाही, वो भुइँया ल हमन खेत कहन डोली कहन । हमर गुनी मनखे विपरू तो खेत ल क्षेत्र कहे । पहिली हमन पेड़ मन ल रुख -राई मन ल काट -सुखो के आगी फूंक देवन अउ राख ऊपर म बीज ल छींच देवन ।  आगु साल बर नावा राख बर नावा भुइँया नावा रुख ...! अब ये बुता ल छोड़ हमन अपन अपन बर बनाय खेत मन म ध्यान देवत रहेन । अब हमन अपन -अपन खेत मन म पानी माढ़े के महत्तम ल समझ गय रहेन । ये पाय के अब हमन अपन खेत ल बनेच गहिला बनात रहेन अउ खेत के तीरे -तीर मेड़ बनात रहेन । अब मेड़ मन म अपने -आप जागे रुख -राई मन घपट जाँय ।


       जउन कोती जउन रुख मन जादा रहें,तउन कोती ल चिन्हारी पारे बर वोई जिनिस के नांव म चिह्नन  जइसन जाम खार म जाम के रुख मन के भरमार ! ठीक अइसन आमाखार म आमारुख मन के अउ परसा खार म परसा रुख मन के खेप  ।

 

               ठीक आइसनहेच रहिस अब हमन के गांव मन के नांव धरई बस विरिछ मन के नांव म गांव में के नांव -आमापाली, अमलीपाली , कोसमनारा, महुआपाली ,सरईडीपा,कटँगपाली  उवा उवा । चिरई -जनाउर मन के नांव म कौआताल, सुआताल, सुआडेरा, भालुनारा, हथनेवरा जउन पहिली पहिलात काकरो मुँहू ले निकल गय, वो नांव धरा गय । येकर ले बढ़के जउन जगहा म मनखे मन रहे बसे के शुरू करें वो जगहा ल नावापारा...नावागांव कहें ले घलव नि चुकें ।  


          अउ आज ये कदली कछार कोती जवइया डहर कोती  मैं अउ फुलझर दुनो आएंन  तब  हमन एकठन विचित्तर जिनिस देखेन -एक झन लइका असन दिखत मनखे हर भुइँया भीतर म अपन मुड़ी ल गड़िया देय हे !! मोर तो मुँहू हर फरा गय ! ये का होवत...हे ।

"ये हर मुड़गड़वा ये । "फुलझर कहिस ।

"ये हर काय ये , फुलझर ! "

" अइसन कर के कुछु कुछु अलकर करके बताथे येहर ।"

"फेर काबर ...!"

"अपन चिन्हारी बताय बर...देखो मैं अइसन कर सकत हंव  कहत ।"

"वाह ! येहर तो बड़ अच्छा बुता आय । अइसन म नि देखईया हर एकर कोती देखही ;अउ येकर मन के  साध पूरा होही ।" मंय कहेंव ।

"अरे ! येहर तो कुछु नि होय । येहर तो अउ आन -आन बुता करथे; देखबे तब देखतेच रहि जाथे अउ तोर मुहँ हर फरा जाही ।"

 " अउ का बुता...! "

" येहर बड़े -बड़े चोखर्रा  बंबरी के कांटा मन ल ले आनथे, अउ  वोमन के ऊपर म खुला पीठ सुत जाथे ।" फुलझर कहिस, जाने माने वोहर वोकर  मुख्तियार बन गय हे ।

" बंबरी कांटा उपर म सुतना ...!! " मोर मुँहू ले तुरते निकल गय ।

" अरे वोहर कुछु नि होइस । येहर तो डोर ऊपर म रेंग घलव लेथे ।"

"वह कइसन ...? "

" दु खम्भा बीच बंधाय तनतन डोर म  येहर एक ठन बाँस ल धर के रेंग लेथे । "

"वोहर बड़ डर के बुता आय । गिरही नही येहर ।"

"वोहर नई गिरे , तब तो बात खड़ा होवत हे ।" फुलझर तो पूरा के पूरा वोकरेच आदमी बन गय हे, अइसन लागत रहिस । 


          अतका बेर म वो मुड़गड़वा छोकरा हर अपन मुड़ ल निकाल के हमन ल देखे के शुरू कर देय रहिस ।

"अरे बाबु मुड़गड़वा ! ये तोर आगु म जउन ठाढे हावे वोहर 'कदम्बनार ' के राजा आय । जोहार कर पहिली वोला ।" फुलझर गरजत अवाज म कहिस, तब मंय तो हाँस भरे रहें ।

   

              वो बपुरा लइका सिरतोन म आगु आ के हाथ जोर मुड़ नवा के कदम्बनार के राजा के जोहार करिस । अउ आगु म हाथ जोर के  खड़ा हो गय ।

"तँय ये करा अइसन का करत हस जी  ।" मंय वोला पूछेंव ।

"मंय अइसन -अइसन अचम्भो बताथों,वोकरे सीखे के बुता ल करत रहें ।"

"फेर ,काबर...?"

"अइसन नि करहाँ,तब वो सब ल भुला  नि जाहाँ ।" वो कहिस । 


         अब तो येला सुनके मोर गहा हर भर गय ।सोझेच के ये बोपरा के बुता ल हमन बिगाड़ेंन , अइसन गुनत । फेर येहर हमर अपन बीच के मनखे आय ;येकर जानकारी रखे के हमू मन ल जरूरत हे । चल कुछु गलत नि करे अन ।

"तँय अउ का का जाँनथस जी...?"फुलझर पूछिस वोला ।

"चला ,आवा मोर संग...!"वो कहिस ।

"फेर कहाँ...?"

"ये दे ,तीर के तरिया तीर ।"वो कहिस अउ हमन जइसन कुछु मंतरा म  बंधा गय हन, तइसन वोकर पाछु -पाछु चले लागेंन -वो आगु अउ हमन वोकर पाछु ।


            तीर के तरिया तीर के पार म 'बर-रुख' के भरमार रहिस । बर के बर्रों मन ओरमत रहें, बनेच बर्रों मन तो भुइँया म घुसर के नावा रुख असन बन गय रहें । वो लइका हमन ल देख के मुचमुचाइस अउ कूदत जाके एकठन बर के थोरकुन मजबूत बर्रों ल धर लिस अउ तहाँ ले शुरू हो गय ...साँय...साँय...! देखे के लइक रहिस वोकर झूलई हर ! एक बर्रों ल छोड़के दूसर ल धर लेवइ ,अउ दूसर ल छोड़ के तीसर ल धर लेवइ हर; देखे के लइक जिनिस रहिस,वोतका बेर । 

"बस...बस ...बाबू बस !" मैं कहेंव काबर के , वोकर अइसन  वेंदरा मन ल ओ पार पिचकाट ल देखके  मोर मन म एकठन डर पेल देय रहिस , काँहि कुछु अलहन झन हो जाय गुनत । मोर हुकुम ल सुनके वोहर सिरतोन म रुक गय । अब वोहर हमन के तीर म आके ठाढ़ हो गय रहिस!

"बस बाबू बस कर ...!तोर म बहुत गुन हे, हमन जान डारेंन !" मंय कहेंव । सिरतोन म हमन भक्क खा गय रहेन , वोकर खेल ल देख के । भुइँया म मुड़ गड़िया देना...वेंदरा मन ल ओ पार रुख के डारा मन ले उछल -कूद करइ अउ का न का !

'फेर तँय अइसन बुता काबर करत हावस, जउन म जी म डर हे ।" मंय पूछेंव ।

"काँही डर नई ये , मोला बिलकुल डर नि लागे ।"

"ठीक हे तोला डर नि लागे, तब का होइस देखईया मन ल तो डर लागत हावे । फेर तँय काबर करथस अइसन बुता मन ल ?" मंय फेर कहेंव ।

"मोला बढिया लागथे,अइसन करे म । अउ आन मन लघव बढ़िया लागथे ।" वो कहिस ।

" अच्छा, अब तँय ये बता,तोरे असन अउ आन मन का -का करथें ।" ये पइत फुलझर पूछिस।

"हँ...अँ...मोर एक झन संगी हर तो बइला-वेंदरा-भालू मन ल सीखो के अइसन-अइसन खेल देखाथे कि बस्स...! "

"येकर ले वोला का मिलथे ?"

"वोहर मोर असन नोहे, अइसन दिखाथे अउ धान-पान ले लेथे ।"

"हाँ, वोहर ठीक करत हे । तँहू अइसन कर न ।"

"महुँ अइसन सोंचत हंव ।" वो कहिस ।

"सोंच सोंच अइसन तहुँ सोंच , एईच हर ठीक आय । " फुलझर कहिस, अउ वो लइका ल समारत हमन आगु बढ़ गएन ।


           अब हमन खाली हाथ काबर फिरबो कहेंन अउ तीर के गझिन होवत ये गांव के समलाती वन-डोंगरी म घुसर गयेंन अउ ये दिन हर तो आय   तेंदू -चार के ,तेकर सेथी तेंदू रुख करा जाके वोमें के तेंदू ले चली कहत लग गयेन...तेंदू संकेले बर। फेर तेंदू के जात-जन्मन सराप-गति आय । बढ़िया तेंदू पाए बर रुख ल ढुसे बर लागथे । तेंदू के रुख ल ढुसई माने बड़े -बड़े पखरा ल लेके पेड़ म कचारना ! अइसन करे ले एकदम बढ़िया तियार तेंदू हर ही गिरही ;अउ आन -तान ल टोरबे तब कसाइन स्वाद के मारे खाय नि सकस ।


अउ फुलझर तो अइसन -अइसन  बुता बर तो अब्बड़ हुशियार रहिस ।


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(क्रमशः )



*रामनाथ साहू*




(29)


                        अब तो हमन अपन -अपन के कोला -बारी के बुता म माते रहन । नाना परकार के बारी-बिरता उपजान । बरसाती दिन म कोला-बारी म उंडले पाका फूंट मनके के का कहना ! दिखे ल सुंदर-बांदर फेर खाय ल गस्स ! तभो ले ये फूंट मन ल हमन अपन कोला-बारी म जरूर-जरूर जगावन । तरोई-डोड़का के नार ले तो हमन के छांनही म लदका जाँय ।


           ठीक अइसन जड़कल्ला म सेमी के नार मन गछे रहंय ।  नार के पोर मन ले नावा झींकी निकल के फिर वोमन के अचरा-पचरा !

ठीक अइसन जिनिस हमन के लाग -मानी मन के होवत जात रहिस । अब हमन अपन हितु-प्रीतू मन ल बनेच धुरिहा ल सुरता राखत रहेन । बेटा... तँहले फेर वोकर परानी , दई-ददा बर पत्तो-बहुरिया । बहु के दई-ददा ...समधी-समधिन ! बेटी-दमाद , नाती-नतनिन, काकी -कका , बई-बबा...जइसन सेमी के नार ; ठीक वइसन हमर रिश्ता के जाल । अउ हमन जइसन के तइसन सबके मान-गोन करे के शुरुआत कर देय रहेन ।


            अब हमन ल ये बाढ़े नाता-गोता म धुरिहा -धुरिहा के जगहा मन ल जाय बर लागे । हमर अपन बीच के बड़का बलखरहा -पोठ मनखे बल्लू , वोकर नोनी फुलटोरी के घर बनेच धुर के गांव 'गोंदाफूल ' ! दूनों फूल के संजोग रहिन । वो नोनी के कोरा म  दउ- पिला अवतरे हे ; फुलटोरी के बाबू होय हे । ओकर सुख -सनात के दिन वोहर पूरा गांव भर के मनखे मन ल अपन सँग म ले जाना चाहत रहिस ।


                   बल्लू हर सबले पहिली मोर करा आये रहिस । वोहर आते -साथ पूछिस- शेरू,तँय हमर राजा अस न ?

"हाँ...!"मंय  परगट म कहेंव अउ मन म गुनें ...मंय काबर अपन जगहा ल छोड़हाँ,वोहु ल ये बल्लु के आगु म ।

"तब फेर,सुन...दु दिन के गय ले । नोनी के घर जाबो ; वोकर घर म सुख-सनात होवत हे ।"

"का होवत हे ।" 

"समझ के सेमी के नार ले एक ठन अउ झींकी निकल आइस हे । दउ- पिला होय हे,उहाँ ।"

"जाहाँ भाई जरूर जाहां ...!" मंय कहेंव । 

"जाहाँ नहीं , जाबो कह ; सब झन ल जाय बर लागही, हमर ये दूसर मुखिया -फुलझर ल कह , वोकर जम्मो चका-गाड़ी मन जाहीं ।" बल्लु बल देके कहत रहिस ।


                वोकर ये गोठ सुनके मंय मन म हाँसे अउ परगट म कहेंव- फुलटोरी हर तोरेच नोनी नि होइस ;पूरा गांव भर के नोनी आय;हमन जरूर -जरूर जाबो । सब  चका- गाड़ी मन जाहीं ...सब मनखे जाहीं । 


                   मंय मुखिया होय के अपन रुआब ल बनात कहेंव । 

"ठीक हे, तब मंय जाके फुलझर ल घलव सुना देवत हंव अपन मुख ले ।"बल्लु कहिस ।

"ठीक हे । ठीक हे,फेर पहिली येला सुना ।"मंय तीर म आवत रुनु ल बतावत कहेंव ।

" जोहार ! ", बल्लू रुनु ल कहिस," दु दिन के बाद म मोर नोनी के घर सबला जाय बर लागही ,  नावा दउ -पिला पहुना आय हे ।"

"ये जाबो , जब ये तियार हांवे, तब तो फिर जाना ही हे । लेवा , मंय हर सब गोठ ल सुन डारें हंव ।" रुनु कहिस ।


                अब तो तय हो गय रहिस कि' गोंदा-फूल' जाना हे । अब मंय बल्लू ल कहेंव -  नोनी के गांव  नँदिया के खंड़ । तब हमर सब  चका गाड़ी के संग डोंगा -रपटा मन घलव जाहीं । फेर तँय वो कोती के बात ल जान ।"

" ये पूरा हमर गांव हर  ही नहीं, अइसन -अइसन कई ठन गांव में घलव चल दिहीं, तब ले भी पानी-पसिया पुर जाही । "

"बहुत बढ़िया ...!कै ठन गांव के मन नहीं , फेर हमर ये गांव हर पूरा जाही ।" मंय कहेंव, जइसन येहर हमर फैसला रहिस ।


                अब तो बल्लू खुश होवत फुलझर के ठउर कोती चल दिस । वोला वो कोती जावत देख के मंय खुश होवत रहें । बल्लू करा बल के कमी नई ये ।अपन बल भरोसा वोहर तीन परोसा खावत हावे । अउ अपन नोनी के घर अपन एईच बल ल बताय के कोशिश करत हावे ।


                 गांव जाय के तियारी अउ जोश हर बने लागत रहिस । चल कतको हमर उम्मर बाढ़ गय हे, तब ले भी नावा जगहा देखे के उछाह हर जोर मारतेच रहिस ।   अब तो जाना हे माने जाना हे ...!


                           *


                हमन के दल -बल हर ठीक दिन निकलिस । जतकी झन बाबू पिला मन रहिन, वोतकी झन नोनी ।  सबो के सब चका -गाड़ी म रहेन । विपरु के गाड़ी सबले आगु रहिस ;वोहर तो ये नावा जगहा कोती ल देखत रंग -रंग के गीत असन गावत रहिस। वो गाये अउ वोकर चेला मन वोला झोंकें । अइसन करत ...गावत- बजावत हमन के ये दल हर अगास के सुरुज ले टक्कर लेवत चलत रहिस । दिन के आधा बरोबर सुरुज हर जइसन हम सब के मूड़ उप्पर चढ़ के ठाढ़ हो गय ; ठीक वईसनहेच हमन 'गोंदा-फूल' गांव पहुँच गयेन । 


                हमन के संगे -संग फुलझर के डोंगा रपटा - भेरा वाले मन घलव आ गिन । फुलझर हर खुद डोंगा -दल म जाय के मन करे रहिस।अउ वोहर मोला गाड़ी दल ल सौंपे रहिस ।

गोंदा -फूल के बाहिर म हम सब पहिली ठुलायेंन । वोतका बेर ल  उहाँ के हमर दुलरू के सियान - विरिछ हर अपन मनखे मन ल लेके बड़ किलबोल करत आ गय । हमू मन घलव सार -चेत होके भेंट-पल्लगी करे लागेंन । 'विरिछ' हर तो सिरतोन विरिछ कस लागत रहे , ऊँच -पुर अउ चकरेठा ...! 

"चलव सब झन , हमन लेय बर आये हवन ।" बल्लू के जोड़ीदार विरिछ कहिस । बल्लू मोर मुँहू कोती ल देखिस । 

"चलव ...!" मैं सब झन ल कहेंव । जइसन सब झन ल एइच बात के इंतजार रहिस । सब के सब जाय बर तियार हो गयेन ।


           सब के जथा-जोग मान-गोन करके कलेवा -भोजन परोसिन हमन ल । हमू मन ल बनेच भुखन लागत रहिस ; नावा दऊ ल पावत-खेलावत हमन ओसरी-पारी जेवन करेन ।

"बढ़िया ...!बहुत -बढ़िया !" मंय अपन मुखिया रूप ल बगरावत बल्लू अउ विरिछ -दुनो समधी मन ल कहें । उत्तर देय के जघा म उहाँ दुनो हाथ हर जुड़े रहिस ।


                 वो दुनों हाथ ल जोरे-जोरे कहिस -जउन पहुना मन ल थिराये बर हे, तउन मन भीतर चलव । अउ जउन मन ल हमर ये जगहा , ठउर -ठिकाना मन ल देखे बर हे; तउन मन मोर संग आवव । येला सुनके फुलझर तो चमक उठिस । कोई नावा जगहा ल कुछु नावा लेके नि जाही तब काय के फुलझर ! जब ले वोहर इहाँ आये हे , तब ल वोकर नजर येती ल ओती कुछु नावा जिनिस के खोझार म किंजरत हावे । अउ जब फुलझर जाही, तब तो मोला सँग देय बर बरोबर जाय बर लागथे, तब अब काबर नि लागही । 


                 हमन बनेच झन मनखे घर गुसांन - विरिछ के संग म जाय बर तियार हो गयेन । हमन वोकर संगे -संग चलत रहेन बनेच झन बाबू पिला मन । फेर रेंगत -रेंगत फुलझर पथरा असन जिनिस म जाके हपट गय । ओह ! कहत वोहर कोंघर के वो पथरा ल उठा लिस। ये बबा रे! अतेक गरु कइसन हे ये पथरा हर !!

"ये पथरा मन तो माटी के चूरे ले बने हे , अउ येमन अइसनहेच गरु रथें ।"विरिछ कहिस ।

"माटी के चूरे ले बने हें, वो कइसन !"फुलझर तो ये गोठ ल सुनके अपन हपटे के पिरा ल भुला गय रहिस ।

"हाँ, डोंगरी -वन म तो आगी धरई हर तो सधारण बात आय । कोई कोई किसिम के ललहू माटी हर आगी म चुरथे , तब अइसन पथरा के रूप म ढीढ़हा बंधा जाथे । बनेच गरु रथे येमन !" विरिछ बताइस ।

"..." फुलझर तो मुँहु फार के सुनत रहिस ।

"ये पखरा मन के बड़े -बड़े गुन हे ।" विरिछ कहिस ।

"वो का ये बतावा ?" ये पइत मंय पूछें रहेंव ।

"कतेक न कतेक गुन हें- सधारण पखरा ल कतको के जादा गरु  हें येमन। येमन ल घसे ले एमन चिलक उठथें, पीटे ल बड़ मीठ टन्न ले बाजथें ।"

"तब तो फेर येमन पथरा नई होइन । न घसे ल पथरा मन चिलकें न पीटे ल पथरा मन बाजें । जरूर येमन आने कुछु जिनिस आंय ये धरती के ।" मंय कहेंव ।

"अउ सुना तो भई, येला अउ बने जोर लगहा पिटीहा  तब येमन लकड़ी अउ आन पथरा ढेला असन कुटी- कुटी...पांकु फुतका नई होंय, जतकी पिटिहा वोतकी पातर पातर होवत जाथें ।" विरिछ कहिंन।

"ये तो अउ नावा गोठ आ गय ।"फुलझर कहिस,"अउ बतावा...?"

" तीपत  छोटे कुटी ल बने तीरे ले येहर लाम जाथे ।"

"सब बढ़िया ...!"फुलझर कहिस ।

"नहीं, सबेच हर बढ़िया नई ये ! आगी -बुगी के तीर म रहही,तब तो अंगरा बन जाथे तिपत- तिपत ! येहर बड़ जल्दी तिपथे ।" विरिछ कहिस अउ खुदे हाँसिस ,"तुमन ल येती किंजारे लाने रहेंव अउ ये पथरा म भुलवार देंय ।"

"येहर पथरा नोहे ...!" फुलझर कहिस ।

"तब काय ये...?"विरिछ कहिस ।

"कुछु भी रहय , फेर येहर पथरा नि होइस ।"फुलझर के आँखी म चिलक आ गय रहिस ।

"येहर तो बने कुछु काम म आ जाही ।"मंय कहेंव ,तब विरिछ अपन हाथ म  धरे  हथियार ल बताइस -यह दे अइसन तो कुछु -कुछु बनाथन येकर ले ।


          बनेच किंजरेंन खायेंन अउ फिरती बखत फुलझर हर एकठन साबुत चका गाड़ी म वो पथरा मन ल भर के ले लानिस !


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(30)  


            फुलझर तो वो गोंदाफुल  गांव के पखरा मन ल  देखत थकबे नि करे ।  वोहर वोमन ल कै न कै पइत अलगा - अलगा के देखथे , अउ वोमन के गरु ल देख के मुग्ध हो जावत हे ।

"शेरू...!"वो मोला सुनावत कहत रहिस ।

"हाँ !" मैं वोला ओझी देंय ।

"येमन पथरा नि होइन ।"

"अरे बबा,रस्ता म परे हाँवे, तब ढेला कहले कि पखरा ; वोमे का के फरक हे ।"

"न येहर तोर ढेला ये न पखरा आय ।"

"वो काबर ...?"

"ढेला तो माटी के होथे अउ वोहर पानी म पुलुल ले घुर जाथे , ये मन ला  मंय पानी म बोर के देख डारे हंव ;येमन के कुछु बिगाड़  नई होय ।"

"जब येहर ढेला नि होइस,तब समझ ले येहर पखरा आय ।" मंय थोरकुन असकटावत कहेंव  ।

"नही... येमन पखरा घलव नि होइन ।"

" अरे, भई गे न...! हमर ये जगहा म अइसन जिनिस नई ये, फेर आन जगहा म हावे; येकर से पता चलत हावे कि अउ आन -आन जगहा म आन- आन रकम के जिनिस होही ।"

"तोर गोठ सच आय ।" फुलझर कहिस ।


                         *


         ये लाने पखरा ढेला के उप्पर फुलझर के चिभिक गढ़ गय रहे । वोमन ल लेके वोहर नाना प्रकार के पिचकाट म लगे रहय  । कभु वोमन ल बनेच बेर ल पानी म बोर के देखे, त कभु बनेच बेर ल वोमन ल पीटे । थोरकुन पीटे ले कुछु नि होय फेर बनेच बेर ल पीटे ले वोमन चेपटा हो जाँय ।  हाँ, फेर पीटे बर बनेच मजबूत गंउहारी चाहे चकमक पथरा के जरूरत परत रहिस ।


              सरई लकरी के गरूवापन...! वोकर जरे ले परे दगदग... दगदग करत ढारा ! आज तो फुलझर हर वो गरु पखरा मन ल एईच आगी म फेंक दिस हे ।  येहू मन सरई रुख 9 ढारा परहीं का...? थोरकुन बेर बाद वोहर किल्लावत मोला हाँक पारिस । मंय तीर म आंय ।

"देख तो ये पखरा मन कइसन रिस म तमतमाय मुख के रंग  असन चिलकत हें ।" वो कहिस ।

"हाँ, वो तो दिखत हे ।"

"येकर सेथी येकर नांव -तमतमा आय ।"

"चल ठीक तँय अउ तोर तमतमा !"

"हाँ...! ठीक !"

"फेर तमतमा झन कह खाली तमा कह!"

"चल ठीक हे ये तमतमात जिनिस हर तमा आय ।"

"तमा तमा...तामा !"मंय कहेंव । हमन अइसन कहत घर आ गयेन, बनेच रात हो गय रहिस तेकर सेथी ।


           बिहना पहाईस, तब फुलझर वो जगहा ल जाके देखिस । फेर अब तो वोहर बड़ उदास हो गय रहिस । रात के वो लकलकात तमा- तामा के ढेला हर वो जगहा म नि रहिस ।

"शेरू भाई...!" वोहर वो जगहा ले हाँक पारिस, तब मंय ...का हो गय कहत वो जगहा म पहुँच गंय ।

"शेरू , तामा ल कनहुँ ले गिन रात के ।" वो कहिस ।

"तँय सेनापति अस जी, अउ तोर जिनिस ल कनहुँ आन ले जाय सकहीं , अइसन होएच नई सकय ।" मैं वोकर खांद ल छुवत कहेंव ।

"हाँ...ये बात तो है । तब फेर कहाँ गिस वो तामा के ढेला हर ।"  वो कहिस ।


          अब मैं सिरतोन गुनान म पर गंय । मैं बनेच नजर करके राख कोती ल देखें अउ खोजें , तब मोला राख तरी म कुछु कड़ा जिनिस हावे ,अइसन लागिस । मैं राख ल झर्रा के देखें, तब मोर नजर हर पातर बगरे वो जिनिस म पर गय ।

" येती आ , तोर तामा हर येकरा आ गय हे ।" मंय कहेंव फुलझर ले ।


    फुलझर तीर म आके राख मन ल झर्रा के देखिस । सिरतोन तामा के ढेला हर पसर के अब थारी असन चाकर हो गय रहिस । फुलझर तो खुशी के मारे उदक बईठिइस, जब खंचवा म भरे गोल तामा ल पईस ।

"शेरू ...कुछु समझ म आइस । "फुलझर हाँसत कहत रहिस ।

"वो का...!" मंय वोला पूंछेंव ।

"तामा के ढेला हर आगी म टघल  के बोहाइस हे अउ जइसन पईस हे, तइसन बन गिस हे ,जुड़ा के...!" वोइच कहिस ।

"हो सकत हे ...।"

"हो सकत हे नहीं , होइस हे अइसन ।अब आगु देखबे ...!"वो कहिस ।



              संझाती बेरा फुलझर सरई के लकरी मन ल जोर के फेर फुंक दिस चकमक पखरा मन ल टकरावत । जब बड़े- बड़े ढारा मन पर गिन तब फुलझर हर वो थारी असन चाकर तामा ल लान के वो मा कर दिस । एकर पहिली वोहर भुइँया म गोल खंचवा खन देय रहिस । 


             आगु दिन हम सब झन ल जोर के फुलझर राख ल टार के बताइस । सिरतोन म भुइँया के खँचवा असन वो तामा हर  हो गय रहिस ।

"येहर कभु नि सिराय, बस आगी म पिघला के येला कुछु भी बना लो ।"फुलझर हाँसत सब झन ल बताइस ।  येती हम सब के आँखी हर बटरा गय रहिस ।


                          *


                रात तो होबेच करथे दिन के छेवर होय के बाद म । रात हर घलव दु किसिम के होथे-अंजोरी रात अउ अंधियारी रात । अंजोरी रात म चन्दा के अंजोर हर बनेच उजियार कर देय रथे ; फेर अंधियारी रात म तो कभु हाथ पसारे हाथ नि दिखय । अइसन म ये अंधियारी हर बड़ दुखदाई लागथे । अइसन म घरो-घर बरत रखवार-आगी के बल- भरोसा रहिस । नही त डोंगरी म धरे दांवा के अंजोर हर थोर- मोर उजियार कर देय । अंधियार म रेंगे -बुले  ल बड़े -बड़े अलहन हो जाय -साँप , अहिरू -विच्छू मन तो सधारण रहिन ।


          भालू असन लइका मन देखे रहिन कि जाड़ा अउ वइसन दिखाइया पेड़ अउ वो मन के बीज मन बड़ बेर ल अंजोर देवत बरथें । अब हमन अइसन जिनिस मन ल बटोर के राखन अउ जब जरूरत पर जाय तब रखवार -आगी म येमन ल धरा के अंजोर बना लेन ।


           अब हमन तो अपन -अपन खेत में म रंग -रंग के जिनिस मन ल उपजात रहेन । येकर छोड़ आज घलव हमन वन-डोंगरी म गिरे -बगरे जिनिस मन ल संकेले के बुता करत रहेन । नान -नान दाना के तिल ...! संकेल के लानत रहें मंय । हमर बीच के महाबलवान तो आय बल्लू , वोहर मोर तीर म आइस अउ वो संकेलाय तिल ल... का ये येहर कहत एक मुठा धर के जोर से दबा दिस । वोकर मसके ले ये तिल के भीतर के पानी असन जिनिस हर पचपचात थप थप चूहे लागिस मोर ओनहा म । एक परकार ले वो मोर ओनहा हर पानी म भीजे असन  भिज गय ।

"ले ले बल्लू,तोर बल ल राहन दे; तोर बल ल सबो झन जानथें ।" मंय कहेंव हाँसते -हाँसत । फेर बल्लू नई मानिस अउ सबो तिल मन ल मसक -मसक के वो जिनिस के बूंदी झरोतेच रहिस । 

"जानथस का ये , ये जिनिस हर ।" बल्लू कहिस हाँसत ।

"नहीं तो ...!" मंय कहेंव , अउ सिरतोन म आज अउ अभी पहिली बार ये जिनिस ल देखत रहेंव ।

"येहर तिल ल निकलत हावे, तेकर सेथी येहर 'तेल' आय । ये जिनिस के नांव -तेल आय ।"

बल्लू कहिस ।

"बढ़िया कहे बल से बलवान बल्लू , तब तिल ले पसीजे येहर तेल । वइसन तँय येकर  निकालने वाला मनखे अस -तँय कछु भी कबे, तउन ल हम मानबो ।" मंय बल्लू के बलवान काया अउ मुख ल देखत कहेंव ।

" का बलवान बलवान लगाय रथस मुखिया । का तँय मोर ल कम हावस । मोर ल कम रथे तब  का मंय तोला मुखिया मानथें । " बल्लू घलव हाँसत कहिस ।

"चल तँय ठीक कहत हस कि गलत , तउन ल राहन दे , फेर मोर तिल के तोर तेल के कहर हर गजब के हे;चांट के खा दों , अइसन लागत हे । अइसन महमहात हावे ।" मंय कहें ,तउन ल बल्लू सुनिस -निसुनिस ,फेर वो कहिस -मुखिया ! तँय मोर ल अउ जादा बलवान हस । चल मोरे कस मुठा धर अउ निचो ये तिल मन ल ...!


               येला सुनें त रा... तो , महुँ सकथों कि नहीं कहत ठीक वइसन करे लागें तिल मन ल मुठिया के ...थप थप... चार  बूंदी चू गय मोरो निचोय ले ।

"देखे , मंय कहत रहें न ...!"बल्लू खुश होवत कहिस । फेर वो जगहा हर कहर -महर ले भर गय रहिस , मोर ओनहा हर गीला हो गय रहिस  तिल के 'तेल ' ले ।


                मंय घर कोती आंय, तब वो ओनहा ल छोर के तीर म मढा देंय । तीर म रखवार- आगी बरत रहिस । मंय थोरकुन आने चेत करें अउ आन जगहा चल देंय । फेर वो धुरिहा ल मोला हमर घर हर बड़ अंजोर दिखिस !मंय कूदत आंय , तब का देखथों ...! मोर वो ओनहा हर  बड़ अंजोर देवत बरत हे । येला कइसे आगी धर डारिस अउ येहर कइसे बनेच बेर ल  बरत हे ...!  रुनु हर तो भाँड़ा म पानी धर के कूदे रहिस । मंय वोला मना कर देंय।

"रुनु, ओनहा हर तो जर गय फेर एक ठन अउ आन  बड़खा जिनिस ल भेंट डारेंन हमन ...!" मंय लइका मन असन किलकत कहेंव ।

"वो का ...!" रुनु कहिस ।

"काल देखबे...।" मंय कहेंव ; अउ मोला लागत रहिस कि सिरतोन म मंय दुनिया के सबले बड़खा जिनिस  ल भेंट डारें हंव, अपन बस म कर डारे हंव । मोर वो जुन्ना ओनहा हर तो अभी ले घलव अंजोर देवत वइसनहेच बरत रहिस  अभी ले ।


             आगु दिन मंय दिन भर म बनेच अकन तिल मन ल संकेले अउ वोमन ल निचो के  तेल निकालत एकठन भाँड़ा म राखत गंय ।  तिल मन ल  पखरा म कुच -कुच के निचोंय, तब जादा तेल निकलिस ।


         संझाती बेरा अंधियार होइस ,तब मंय  हमर बनेच झन मनखे मन ल हमर घर बलाय रहें  - फुलझर, झुनू, बल्लू ,गज्जू सब आ गय रहिन । बस विपरु के अगोरा रहिस । वो तो अपन गीत मन ल गावत आइस ।


         मंय ओनहा बनाय के नावा पोनी ल उल्टा -सीधा ऐंठ के अंगली असन मोठ जिनिस बना के एकठन दूसर भाँड़ा म वो तिल के तेल ल कर देंय, अउ काल  के मोर भीजे  ओनहा असन वो पोनी ल भिजो देंय । सब के सब अबक्क होके मोला देखत रहिन ! 


               अब मंय आगु बढ़के बरत  रखवार-आगी  तीर जाके वो पोनी ल आगी के लाप म छुआ देंय । अब तो धीरे -धीरे आगी हर वो भाँड़ा म आ गय रहिस; वो भाँड़ा ल धरके येती -ओती किंजरें लागें । मोर संग म अंजोर हर घलव  किंजरिस । 

"रुनु , तोला काल कहे रहें न । बस, वोहर एईच जिनिस आय ! ये अंजोर हर अब हमर अपन ये । येला हमन उदगार सकत हन ।" 


                       मंय सबो झन ल अइसन अंजोर बनाय के गोठ ल बताँय। विपरु कहिस- अंजोर... अंजोर होथे । आज हमन अंधियार के संग लड़ाई ल जीत डारे हावन । आज हमर जिनगी के बहुत बड़े दिन आय । हे आगी, पानी ,बिजली ,हवा, धरती, रुख -राई, फल -फूल के बनाने वाला !  तोर जोहार हे ! तँय हमन ल  अंधियार ले ये अँजोर कोती ले चल !


           वो अंजोर के  भाँड़ा म पोनी अउ तेल मन अब ले भी बरतेच रहिन अउ चारों कोती हर अंजोर रहिस ...।

     

 लेखक -


रामनाथ साहू

देवरघटा डभरा

जिला -जांजगीर चाम्पा ( छ.ग.)

पिन -495688


संपर्क-9977362668

rnsahu2005@gmail.com


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