Thursday 9 September 2021

हरिशंकर गजानंद देवांगन

 थुके थुक म बरा चुरत हे -

हरिशंकर गजानंद देवांगन

          बहुत सदी पहिली के बात आय । गाँव के मनखे मन , बहुत सुखी अऊ खुशहाल जिनगानी बितावत रिहीन हे । गाँव म जम्मो मनखे एके बरोबर .. न कन्हो छोटे न बड़े .. । हरेक मनखे के कदर एके समान रिहीस । दिन भर खेत म हटर हटर कमातिन तहन .. साँझकुन लिम चौंरा तिर राम बाँड़ा म सकलाके ... रमायन पोथी नाटक लीला नाचा गम्मत म ज्ञान अऊ मनोरंजन तलाश डरय । गाँव के लइका के शिक्षा इही म निपट जाय । एक दिन बाहिर के कुछ सभ्य मनखे मन अपन जगा बनावत उही गाँव म उदुपले अमर गिन । ओमन देखिन के बिगन कोई नियंत्रण के गाँव हा शांत प्रगतिशील अऊ सुखी हे .. । ओमन अइसन जगा म अपन जगा बनाये के अऊ जड़ जमाये के सोंचिन । अपन जड़ रोपे बर अपन आप ला गाँव के मनखे के हितवा अऊ मितवा साबित करना जरूरी रिहिस । ओमन हा गाँव के मनखे मन के बइसका सकेलिन । गाँव म अभू तक केवल चौपाल लगत रिहिस ... पहिली बेर बइसका के नाव सुने रहय गाँव के मन .. । ओमन बइसका का होथे ... तेला जाने बर सकलागे । 

          बइसका हा घला राम रमायन नाटक लीला नाच गम्मत कस मनोरंजन के साधन होही .. गाँव के मनखे मन इही सोंच सकलाये रिहीन । मनोरंजन तो होइस .. फेर गाँव के मनखे के निही बल्कि बाहिर ले आये सभ्य मनखे के होइस । ओमन गाँव के मनखे ला किहीन .. गाँव म न सड़क हे .. न बिजली .. न स्कूल .. न पानी .. । पैडगरी रद्दा म रेंगथव .. गोड़ म भदई फूट जथे .. रात हा बिरबिट करिया हे .. काकरो थोथना हा दिखय निही .. अशिक्षित लइका मन पिछवाये हे .. पानी बर तरिया नदिया के कतेक भरोसा ... । गाँव के मनखे मन किहीन – हमर गोड़ के भदई आज तक हमन ला नइ पिरइस । रात के अंधियारी म .. हमन मन के अंजोर के सहारा एक दूसर ला चिन्ह डरथन । गाँव के हरेक लइका अक्षर भलुक नइ समझ सकय फेर मनखे ला जरूर समझथे ... माने हरेक गुन म अव्वल हे .. अऊ रिहीस बात तरिया नदिया के ... ओकर ले जादा भरोसा हमन ला भगवान उपर हे .. ओहा अतेक बरसा देथे के बछर भर एके ठन कुँवा हा गाँव भर के मनखे ला पानी पिया डरथे । बइसका सकलइया मन केहे लगिन – गाँव म सड़क बन जहि ते तुँहर गोड़ म भदई नइ फुटही .. बिजली लग जहि त रथिया के जगजग अंजोर हा दिन ला घला फेल कर दिही ... गाँव म स्कूल खुल जहि त लइका मन अऊ हुशियार हो जहि .. नदिया ला बांध के बछर भर न केवल तुँहर घर बउरे बर बल्कि खेत खार म घला पलोये बर पुर जहि ... बछर दू बछर म अकाल मकाल ला झेलत अऊ कतक पीरा सहिहू .. ? पूरा गाँव हा उन्नत हो जहि । गाँव के मन किथे – ओ तो ठीक हे .. फेर उन्नति हा हमन ला खँचका म झन चिभोरे ..। बरगलइया मन किथे – तूमन देखव तो .. तुँहर गाँव ला हमन सरग बना देबो ... । सरग के नाव सुन गाँव के सिधवा मनखे के मन म लोभ हमागे .. बिगन मरे सरग नइ दिखय तेला सबो झन जानत रिहिन फेर जियत जियत सरग के सपना पहिली बेर दिखे लगिस । ओमन पचारे लगिस – येकर बर हमन ला का करे बर लागही .. ? सभ्य मनखे मन बताये लगिन – तूमन ला करना कुछ नइहे .. केवल मुखिया चुनना हे । गाँव के मन फेर पूछिन – मुखिया कोन बनही ? सभ्य मनखे मन केहे लगिन – ओकर बर तूमन ला संसो करे के कोई आवस्यकता नइहे । हम अगुवा बनबो अऊ गाँव ला उन्नत बनाबो । 

           दूसर दिन .. मुखिया के पद पाये बर .. सभ्य मनखे मन के बीच के मतभेद उभरके आगे । अब उँकर दू दल बनगे । गाँव के मनला समझ नइ अइस के अब मुखिया कोन होही । गाँव म चुनाव के तैयारी होगिस । जेहा जादा वोट पाही तेहा मुखिया बनही । बेलेट बाक्स तैयार होगे । अब दुनों पक्ष हा गँवइहा मनखे ला अपन अपन कोति रिझाये बर बरगलाये लगिस । गाँव के मनखे मन इँकर बात म आगे । गाँव दु पार्टी होगे । मुखिया पद बर हाँव देवइया मन तै करिन के पाँच बछर बर मुखिया के चुनाव होही । पाँच बछर नहाकगे । गाँव म खबडब सड़क बनिस .. खँचका जादा रिहीस .. समतल कम .. । बिजली लगिस – लट्टू नइ बरिस ...। परछी म नाव के स्कूल खुलिस ... गुरूजी के पता निहि ... डिपरा म सुक्खा कुँवा जगा जगा बनिस । पाँच बछर म गाँव के मनखे ला समझ नइ अइस । फेर उही मन मुखिया चुन के आगे । सड़क के समतल हा खनाके .. खँचका ला भर दिस अऊ अपन नवा खँचका बन गिस । लट्टू लगिस .. करेंट गायब .. । गुरूजी अइस .. बपरा हा केवल सरकारी लिखा पढ़ी म व्यस्त अऊ पस्त .. । कुँवा मन आधा पटागे अऊ घुरवा बनगे । गाँव के मनखे मन सोंचय .. अइसना सरग होथे .. । गाँव अब तक दू पार्टी जरूर रिहिस फेर झगरा झंझट नइ रिहिस ... धीरे धीरे मतभेद संग मनभेद हा घरों घर जगा बनाये बर धर लिस । गाँव म स्कूल ले जादा रौनक नावा नावा खुले सरकारी भट्ठी म रिहिस । धीरे धीरे गाँव के लइका मन भट्ठी तिर भजिया अऊ चखना बेंचे के रोजगार पागे । कुछ मन बोतल सकेले के व्यापार म लग गिन । अब स्कूल के आवस्यकता नइ रहिगे । 

           अइसने करत करत पचास बछर नहाकगे । मनभेद हा खुलके सामने आ चुके रिहिस । गाँव म चौपाल पूरी तरह से बंद हो चुके रिहिस । अब केवल बइसका होय अऊ इही म गाँव के मनखे मन अपन मनोरंजन करय । गाँव के माहौल अशांत होगे । ओला सुधारे बर थाना खुलगे । थाना हा मरइया पिटइया मनके पिकनिक सेंटर बनगे । दई बहिनी के इज्जत आबरू लूटे के सुरक्षित जगा पाके गाँव के कुछ मन अपन आप ला धन्य अनुभौ करे लगिन । अइसन करत करत गाँव के बहुत मनखे मन सभ्य हो चुके रिहिन । असभ्य मन बर न्याय पंचायत करे बर कछेरी खोले गिस । कछेरी म जावत जावत कतको अइसने सभ्यता सीख गिन । पचास बछर तक जेमन मुखिया नइ बन पाये के मलाल धरे अगोरत रिहिन तेमन ... कतको बछर ले मुखियई के विकेंद्रीकरण के माँग करिन । गाँव के पारा पारा ला अलग कर दिन । एक बोली हा दूसर बोली ले अलगियागे । अब दुनों पारा म अलग अलग मुखिया बन गिस । पारा के मुखिया मन गाँव के मुखिया के आदेश निर्देश म अपन अपन पारा म खँचका के रेम लगा दिन । अब ओ पार नहाके बर सड़क निही बल्कि डोंगा के आवसकता महसूस होय लगिस । सरकारी डोंगा के पेंदा म अतेक छेदा रिहिस के कन्हो चाह के भी ओमा बइठके ओ पार नहाक नइ सकय । एक दिन पारा के मनखे मन भड़क गिन । अभू वहू मन सभ्यता सीख चुके रिहिन । ओमन हा दूसर जगा के सभ्य मनखे के हुकूमत म बगावत करत अपन हुकूमत लाने के मुहिम चला दिन । 

            मुखिया बने के चस्का हा .. मंद मउहा बिड़ी माखुर के चस्का ले बड़के होथे । मुखिया होय के स्वाद ला जे एक बेर चख डरे हे तेला दूसर बेर कइसनो करके मुखियई करे बर रोका छेंका बहुत मुश्किल होथे । अब चिक्कन सड़क ... स्कूल ... बिजली .. पानी के समस्या बहुत गौंण हो चुके रिहीस । हवाई जहाज म अब सबो के सपना उड़िहाये बर धर लिस । बिजली के जरूरत नइ रहि गिस .. अब घरों घर करेंट मरइया पैदा हो चुके रिहीस । प्यास बुझाये बर हरेक पारा म कतको असन भट्ठी खुल चुके रिहीस । अब समस्या केवल सुशासन के रिहीस । बिगन काम करे खाये के रिहीस । करजा लेके आराम करे के रिहीस । गाँव के मुखिया बने बर एक झन हा .. सुशासन के नाव लेके पद पागिस ... घरों घर शौचालय के नाव म गंदगी पसरगे । पक्की घर के नाव म अपन पद ला कुछ बछर बर पक्का कर डरिस । पारा म मुखिया बने बर घमासान रहय । इहाँ मुखियई करे बर मुफ्त म चउँर .. करजा माफी के आस्वासन काम आगिस । मुफ्त के चउँर तो पहिली भी मिलत रिहिस ... फेर जेन मोबाइल ले चऊँर के दाना मन झरझर झरझर गिरय तिही मोबाइल के बटन मन अपने अपन झरझर झरझर गिर गिस ... बटन का गिरिस ... उही मन गिर गिन । खैर .... गाँव वाले मनला का करना हे ओमन ला केवल सरग से मतलब ... । करजा माफी होगे ... मुफ्त म चऊँर दार घर पहुँच सेवा बरोबर आये लगिस । अब गाँव म कन्हो ला काम बुता के आवस्यकता नइ रिहीस । कुछ महिना म ... पारा के मुखिया हा फोकट म खवावत खवावत खख्खू होगे । खींसा चिरागे .. । अब ओकर तिर अतके बाँचिस जतका म .. अपन आप ला मुखिया बनइया .. दूसर पारा म रहवइया गाँव के बड़े मनखे के लुकाये धामा असन पेट ला भर सकय अऊ बाँचे खोंचे म अपन परिवार के भरण पोषण कर सकय । 

          फोकट म खाये मारे टकराहा पारा के अकर्मण्य मनखे मन .. धान के कटोरा धरे .. दाना दाना बर लुलुवावत पोट पोट करत रहय । पारा के मुखिया हा अपन जुम्मेवारी ला मुँहुँ ले फेंकत ... हाँथ म हथियार निही .. कामे काटों कुशियार कहत .. गाँव के मुखिया डहर आँखी टड़ेरत .. भुखाये मनखे के पेट ले निकलत खलबल खलबल कलबल कलबल के संगीत म नाचय कूदय । एक डहर ... गाँव के मुखिया हा हमर जुम्मेवारी नोहय कहिके ... पारा के मुखिया के करम म थोथना टेड़गा करके थुँके लगिस । त दूसर डहर ... पारा के मुखिया हा अघाये भुखाये मनखे के धोंध भरे बर ... गाँव के मुखिया अऊ ओकर संगवारी मनके इही थूँक म बरा चुरोये बर ... बिगन कराही के बेवस्था करे ... जगा जगा आगी सिपचा डरिस । तब से आज घला ... एक कोति .. उही पारा के मन लरघियावत ... आस्वासन के भात अगोरत हे त दूसर कोति ... दुनों मुखिया मन ... उपर से नीचे ... सबो ला संतुष्ट करे बर ... थुँके थुँक म बरा चुरोवत हे । 


हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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