Sunday 26 September 2021

जाड़ के दिन /नान्हे कहिनी*


 

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           *जाड़ के दिन /नान्हे कहिनी*

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-रामनाथ साहू



         जाड़ के दिन आ गय रहय । अंगनु हर अपन करिया कमरा ल खोज के फेर झर्रात- पीटत हे । कंबल ल झर्रात वो गुनत हे । आज जइसन मौसम रथे, तइसन के लइक पिंधे -ओढ़े के कपड़ा -ओनहा परिवार के सबो  मनखे मन बर हांवे ।


       ददा हर सुरता करे...वोमन के परिया म अइसन जाड़ - जड़कल्ला मन   बिन ओनहा -कपड़ा के निकल घलव जाय । कमरा -कंबल बिसाय बर तो गुने बर लागे । दु चार टेपरी खेत रहिन । बरछा -बारी रहिन । वोमन ल जोगे जाय बर लागे ।


         फेर आज न ददा ये , न वोकर खेत  मन यें । हां ! सब मनखे मन बर कमरा- कंबल जरूर हे ।


*रामनाथ साहू*


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