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*जाड़ के दिन /नान्हे कहिनी*
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-रामनाथ साहू
जाड़ के दिन आ गय रहय । अंगनु हर अपन करिया कमरा ल खोज के फेर झर्रात- पीटत हे । कंबल ल झर्रात वो गुनत हे । आज जइसन मौसम रथे, तइसन के लइक पिंधे -ओढ़े के कपड़ा -ओनहा परिवार के सबो मनखे मन बर हांवे ।
ददा हर सुरता करे...वोमन के परिया म अइसन जाड़ - जड़कल्ला मन बिन ओनहा -कपड़ा के निकल घलव जाय । कमरा -कंबल बिसाय बर तो गुने बर लागे । दु चार टेपरी खेत रहिन । बरछा -बारी रहिन । वोमन ल जोगे जाय बर लागे ।
फेर आज न ददा ये , न वोकर खेत मन यें । हां ! सब मनखे मन बर कमरा- कंबल जरूर हे ।
*रामनाथ साहू*
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