Saturday 18 September 2021

छत्तीसगढ़ी साहित्य म मड़ियावत बालगीत* पोखन लाल जायसवाल

 *छत्तीसगढ़ी साहित्य म मड़ियावत बालगीत*

       पोखन लाल जायसवाल


       साहित्य ल समाज के दरपन माने गे हावय। काबर कि साहित्य ले ही कौनो क्षेत्र के समाज अउ लोकजीवन ल कमती समे म जाने अउ समझे जा सकत हे। समाज अउ लोकजीवन के रीत-रिवाज ल समझे बर उहाँ गुजर-बसर करे  के परथे। कहे के मतलब हे कौनो समाज के बीच रहिके अध्ययन करे ले ही साहित्य लिखे जा सकत हे। अइसन ढंग ले लिखे साहित्य ह समाज के दरसन कराथे, तभे तो दरपन कहाथे। समाज म लइका सियान अउ जवान रहिथे। बाल मन बड़ पबरित माने जाथें। जेमा कौनो किसम के छलावा, दिखावा देखब म नइ मिलय। बाल मन ल काँचा माटी के लोंदा घलव कहे गे हे। जेन ल जइसन ढंग ले गढ़ना हे गढ़ ले जाथे। इही बालमन ल पढ़ के जउन साहित्य उँखर बर लिखे जाथे वो साहित्य ल बालसाहित्य कहे गे हे। जेमा लइका मन के हँसी-मजाक ले मनोरंजन करावत सामाजिक चेतना, देशभक्ति, सँस्कृति अउ साहस ले गुँथाय रचना के संग कल्पना शक्ति के विकास करत वैज्ञानिकता के परिचय घलव शामिल रहिथें। अइसे ए सबो किसम के बात सिरिफ कहानी या गीत कविता म नइ हो सकय। बालसाहित्यकार मन विषय अउ आवश्यकता के हिसाब ले विधा चुन के रचना गढ़थें। 

      छत्तीसगढ़ी साहित्य म बालकविता अउ बालगीत हमर पुरखा साहित्यकार मन नइ करे हे, अइसे नइ हो सकय। एकर प्रमाण रेडियो म बजइया बाल गीत ...सेना म जाहूँ बंदूक चलाहूँ... लइका बर फुग्गा ले ले...। जउन ल मैं ह अपन लइकापन ले रेडियो म सुनत हँव। प्रकाशन के समस्या अउ तरा तरा के अउ बात रहिन होही जेकर ले लिखित सरूप म जानबा नइ मिले धरय। यहू हो सकत हे कि मोर खोज के दिशा सही नइ रहिस होही। आज छत्तीसगढ़ी बालगीत जोगनी सहीं जुगजुगावत हे कहे जा सकत हे। छत्तीसगढ़ी बालगीत मड़ियाय धर ले हे। छत्तीसगढ़ी बालगीत म समे देवइया रचनाकार मन अभी भले गिनतीच म हवँय, फेर इँकर मिहनत के रंग दूसर ऊपर घलव चढ़ही। इँकर रोपे थरहा ले बालगीत के पउधा मुँजियाही अउ सजोर होही। ए थरहवटी ले मिहनत के खातू-पानी  पा शंभूलाल शर्मा के बादर के माँदर, नोनी बर फूल,  आजा परेवा कुरू कुरू, डॉ.माघी लाल यादव के 'करिया बादर' ; 'मड़ई जाबो', डॉ.पीसीलाल यादव के 'सरग निसैनी', 'झूलना के झूल, कदम के फूल' , 'बादर के जब माँदर बाजे', बिलई बोले माऊ रे, चँदैनी चमके झिलमिल, बगरे हे चँदा अँजोर, खिस बेंदरा खिस, जोगनी बरे जुग जुग, मोर गाड़ी,  छत्तीसगढ़ मैया, बलदाऊ राम साहू के बिन बरसे झन जाबे बादर, जल बिन मछरी मरे पियास, जर मछरी के पाँख होतिस, पर्यावरण ल सुग्घर बनाबो, मनीराम साहू 'मितान' के खोखो मोखो डलिया, कन्हैया लाल साहू 'अमित' के फुरफुंदी, मीनेश साहू के सगा पुतानी,  दिलीप वर्मा के छम छम पानी बने दमोर, मन के थरहा के रोपा लग गे हावँय।

       हँसी मजाक के रस ले पागे बालगीत के बानगी देखव-

      बेंदरा किहिस काला बतावँव मोर किस्सा ल भाई।

      किसान संग उरभेट्टा होगेंव, जमके करिस कुटाई।। 

(बलदाऊ राम साहू)

     बंदर मामा पहन पजामा, दूल्हा बनके आगे।

     दुल्हन बनके हथनी बइठे, देखत बंदर भागे।

     पाँव पकड़ के बंदर बोलिस, छोड़व बघवा राजा।

      हथनी दुल्हन बनके बइठे, मोर बजाही बाजा।

(दिलीप वर्मा)

        लइकापन ले लइका म संघर्ष करे खातिर हिम्मत जगाना जरूरी होथे। बालगीत के माध्यम ले घलव साहस पैदा करे के उदिम देखव-

     काल बिपत जब आही,निच्चट झन घबराबे पंछी।

     लालच के पिंजरा म तैंहर, सोज्झे झन फँस जाबे पंछी। 

(बलदाऊ राम साहू)

जंगल झाड़ी अउ प्रकृति के सुग्घर चित्रण देखव 

      काँदा कोसम चार तेंदू अउ हावय बेल।

      खा पी के चिरई चिरगुन चढ़ावत हें तेल।

      कोइली हर हाँकत हावय, रद्दा हमर ताकत हावय।

अउ आमा के झुँझकुर ले, टुकुर टुकुर झाँकत हावय। (शंभू लाल शर्मा)

      गड़गड़ गड़गड़ करथे बादर, धीर कहाँ ले धरथे बादर।

      रुक्खा झुक्खा चारो कोती, हरियर हरियर करथे बादर।

(कन्हैया लाल साहू)

     हू हू हू हू जाड़ लगे,जस कोड़ा के मार पड़े।

      घाम उजा घाम उजा, कोलिहा के बिहा हो जा।

रात म कनकनी बरसय,सीत अउ खर्रा परसय।

जाड़ सबो के यार लगे। (डॉ. माघीलाल यादव)

      बालगीत ले सामाजिक भाव साँस्कृतिक मूल्य ल लइका मन म जागृत करे म रचनाकार मन के योगदान देखव-

     भाखा बोली धरम अलग फेर, एके मया म बँधाये हन।

ताग ताग डोरी कस जुरके, डोरी बनके जुरियाये हन। (डॉ. पीसीलाल यादव)

     एक दू तीन चार आथे दस बीस हे।

      लड़य नइ आपस म करथे नंगत पिरीत हे।

      सुमत के भाव जगा जाथे, रोज बिहनिया गउरइया आथे।

(पाठक परदेशी)

    फाँद ददा गो बइला गाड़ी चल जाबो मेला।

    घघड़ी बजही बइला भगहीकाटत ओला एला। (मनीराम साहू मितान)

       कच्चा आमा अड़बड़ अमसुर, चेर बँधावय गोही चुरमुर।

       नून डारके चटनी पीसवाबो, चल संगी अमरइया जाबो।

       वैज्ञानिक दृष्टिकोण अउ जिज्ञासा ल घलव बालगीत म कइसन ढंग ले बड़ सरलता ले जगहा देहे यहू ल एक नजर मारव-

     बड़े बिहनिया ले झटकुन उठ, कुनकुन पानी पी घुट घुट।

    पेट कब्ज नइ तो होवय, गैस बिमारी नइ पदोवय।

(मीनेश साहू)


    बड़े बिहनिया सुरुजदेव उत्ती डहर ले आथे।

    भरभर अंजुरी सात रंग के नवा किरण बगराथे।


     पूड़ी काबर फूल जथे माँ गरम तेल मा जाके।

     अइसन का जादू कर देथस पूड़ी ला लहुटाके।

(दिलीप वर्मा)

         काल्पनिक शक्ति ल विकसित करे म शिक्षा के महत्तम हवय वइसने काल्पनिकता ल घलव दिलीप वर्मा जी मन बालगीत म पिरोवत लिखे हें

    दाई एक ठन बात बता दे, साँच साँच अब्भी फरिया दे।

     कहाँ रहय ओ राजा रानी, कइसन ऊँखर हे जिनगानी।

      ओमन कइसन सुने कहानी, उँखरो मा हे राजा रानी।

      का ओ चंदा जइसन होथे, रात जगे अउ दिन मा सोथे।

       देशभक्ति के जोश अउ जज्बा १५ अगस्त अउ २६ जनवरी के दिन लइका मन ऊपर देखे जा सकत हे। लइका मन हाथ म तिरंगा झंडा धरे कतकोन गीत गाथें अउ इहें ले उनकर मन म देशप्रेम उमड़थे। इही म एक सुर देवत मनीराम साहू मितान लिखथे-

     ए दाई मोला दे दाई बंदूक अउ तलवार ओ।

     जाहूँ देश के सीमा म बनहूँ मैं रखवार ओ।

      इही क्रम म डॉ. पीसीलाल यादव जी लइकामन के संकल्प ल मोती कस पिरोवत लिखथे

      बिपत परे म देस के खातिर, हम सउँहे जूझ जाबो रे।

      सीमा म जाके जान लड़ाके, धजा तिरंगा फहराबो रे।

       इही सब उदाहरण मन ए साबित करथें कि छत्तीसगढ़ी साहित्य म बालगीत अपन माड़ी म चले धर ले हे, मड़ियावत हे। 


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी बलौदाबाजार छग.

No comments:

Post a Comment