Friday 17 September 2021

कहिनी : गरहन*-पोखनलाल जायसवाल

 *कहिनी : गरहन*-पोखनलाल जायसवाल


          जिनगी तो अपन आय, अपन ढंग ले जीना चाही। फेर मनमाने ढंग ले मनमानी घलव नइ करना चाही। ए जिनगी म घर-परिवार अउ समाज के घलव हक होथे। घर-परिवार जउन जन्म देहे के संग ननपन ले पाल-पोस के बड़े करे हे। खाय-पीए बर दाना-पानी, ओढ़े-बिछाय अउ पहिने बर ओनहा अउ कपड़ा-लत्ता जइसन जरूरी सरी बेवस्था करथे। समाज ह तइहा ले चले आवत हे। जब संविधान घलव नइ रहिस हे। समाज जउन ल मनखे डर्राथें, लोगन झेंपथें। ए अलग बात आय कि चतुरा मनखे मन अप्पड़ मनखे ऊपर धाक जमाय बइठे रहिन। शिक्षा ल पोटारे रखे रहिन। सुरुज देव ल बादर ह भला कतेक दिन ले छेंके पाथे। रतिहा के अँधियारी ह फुलफुलावत बिहना के अँजोर के परछो पात्तेच पल्ला भागे लगथे। वइसने शिक्षा के अँजोर ल कपटी मन कतेक दिन ले रोके पातिन। शिक्षा के अँजोर बगरे लगिस। धीरलगहा शिक्षा के उजियारी ले सबो अपन हक ल जाने लगिन हें। अशिक्षा जिहाँ-जिहाँ रहिथे, उहें-उहें शोषण करइया मन पाँव जमाथे। तरा-तरा के भय-भूत ले डरवावत लूट मचाय रहिथें। आजो चतुरा मन गरीब अउ अप्पड़ मन के शोषण करे म नइ डर्रावत हें। इही अशिक्षा अउ अज्ञानता के अँधियारी ल चीर के श्यामू ह समाज ल अँजोर बाँटत हाँसी-खुशी जिनगी जियत रहिस हे। 

         श्यामू जेन बीस-बाइस बछर के उमर म सरकारी नउकरी पागे रहिस। ओहर पढ़ई-लिखई म बड़ हुशियार रहिस हे। एकर प्रमाण ओकर पढ़ते-पढ़त नउकरी लगना हर आय। समे आगू बढ़त गिस। चार बछर नउकरी करे पाछू बिहाव होइस। ओकर घर के फुलवारी म ओकर अउ किसना के मया के नान्हें फूल मुसकाय लगिस। घर म उछाह मंगल मनाय गिस। पारा परोस के मन छट्ठी चहा के संग छट्ठी भात घलव खाइन। सगा-पहुना मन घलव बने सकलाय रहिन हें। पारा परोस के साहमत ले सगा-पहुना के स्वागत म कोनो किसम के कमी नइ होइस। श्यामू के ससुराली पहुना अउ ममा-फुफू के जुरियाये सगा मन बड़ उछाह ले खुशी ल बाँटिन। रतिहा घात बेरा ले रमायन होइस अउ जुरमिल के सबो झन श्यामू के बाबू ल अशीष देवत सोहर गाइन अउ नाचिन कुदिन।

          जिनगी म सुख के दिन रहिथे त दिन कइसे पहाथे गम नइ मिलय। समे फुर्र के उड़ जथे। लहुट के सुरता करबे त काली च के बात लागथे। देखते-देखत दिन महिना करत कतको बछर गुजरगिस।... श्यामू के बेटा बने बाढ़गे रहिस। लिखई-पढ़ई घलव बने कर डरे रहिस। स्कूल म अपन सँगवारी मन म अव्वल राहय अउ कक्षा म चौथा पाँचवाँ आतेच राहय।

        एती श्यामू ह समाजिक बूता म घलव भिंड़े राहय। अड़ताफ भर म ओकर समाज सेवा अउ सहयोग के भावना के शोर फइले रहिस। गरीब मनखे अउ रुचि लेके पढ़इया लइका मन बर ओहर दूनो हाथ ले सहयोग करँय। ए बूता करत ओहर घर म अपन जिम्मेदारी ल घलव पूरा करत रहिस। कभू कोनो ल शिकायत करे के मउका नइ दिस। समाज म फइले कतकोन बुराई अउ कुरीति ल मेटे बर घलव बाना धरे रहिन। नशाखोरी, दहेज, बाल बिहाव, बालश्रम, जइसन समाजिक समस्या बर समाजिक चेतना लाय बर सरलग उदिम करँय। अपन ए बूता ल करत श्यामू कभू ए नइ सोचिन कि लोगन मोर नाँव लय। एकर आड़ म ओहर कभू राजनीति करना चाहबे नइ करिस। अइसे तो कतकोन मन समाज सेवा ले राजनीति म जाय के रस्ता चतवारथें। चार महीना बरोबर समाज सेवा करे नइ राहय अउ राजनीति म बड़का पद पाय के सपना सँजोय लगथे।

         पढ़ई-लिखई पूरा करे के पाछू महेश बेरोजगारी म पिसाय लगिस। ठलहा रेहे ले दिनभर लठंग-लठंग घूमई होइस अउ संगति म बिगड़े धर लिस। ...सबो किसम के नशा पानी, जुआ, सट्टा अब ओकर आदत बनगिस। इही बीच श्यामू बड़ उदिम करिन कि महेश स्वरोजगार अपना लय। अपन मनपसंद के दूकान चलावय। फेर महेश एको चेत नइ करिस। उल्टा कहे लगय- "मँय दूकान खोलके दिनभर बइठे नइ राहँव। मँय दूकान म बइठ के पिंजरा के मिट्ठू सहीं नइ धँधावँव।" श्यामू अब करतिस त करतिस का? पइसा तो हे फेर पानी बरोबर बोहाय नइ जा सकँय। 

         श्यामू सोचे नइ रहिन के कभू अइसन नौबत घलव आही। हमरे लइका हमरे बात नइ मानही। ....अब तो महेश मंद-मउहा पीके गली म गिरे-परे राहँय। श्यामू के जम्मो मान सम्मान ल माटी म मिलाय धर लिस। जन-जन मेर उधारी कर के जुआ अउ सट्टा म पइसा ह हार गे राहय। बेटा के करे करजा ल छुटत श्यामू हलाकान हो जय। अब तो नउकरी के पइसा घलव पूर नइ परत रहिस। करजा छुटय त जेब खाली हो जात रहिस। अउ करजा चुकता नइ करँय त जगा जगा बदनामी के डर...।

           श्यामू ह अपन आप ल अब स्कूल ले घर अउ घर ले स्कूल तक समेट लिस। काकरो मेर बइठ के गोठियाय के मन नइ होवत रहिस। मन टूट गे राहय। सियान मन कहे हें- 'अपन हितवा करा दुख गोठियाय ले अधिया जथे।' सच आय दुख ल गोठियाय ले मन के बोझा थोरिक कमती हो जथे। फेर श्यामू गोठियाय त  गोठियाय काखर तिर? घर म बेटा ह रोजेच झगरा मतावय। परोसी मन ल घलव गारी देवय। परोसी मन श्यामू के हियाव करत कलेचुप रहि जावँय। कोनो दूसर के लइका रहितिच त थाना कछेरी के नौबत घलव आ जतिस।

       महेश अपन बाप ल रोजेच पइसा कौड़ी बर तँगावय। नइ मिले म मर जहूँ कहिके धमकी घलव देवय। धमकी सुन के श्यामू मनेमन कहे लगिस- "मनखे दुनिया ले लड़ लिही अउ जीत घलव जही, फेर घर ले नइ लड़ पावय। जीतई तो दूर आय। बेटा ले पार पाना तो अउ मुश्किल हे।" 

         श्यामू हलाकान होगे राहय। ओकर मन उचट गे। तरा-तरा के विचार ओकर मन म हिलोर मारे लगिस। सरी मान सम्मान माटी म मिलत जात रहिस। एक दिन हताश श्यामू घर ले कलेचुप निकल गे। कहाँ गिस अउ कहाँ हे एकर कोनो ल आरो नइ मिलिस।

       गाँव म इही बात के शोर हावय कि समाज म फइले बुराई मन के गरहन कोनो ल धर सकत हे।

      

पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा

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