Tuesday 28 September 2021

छत्तीसगढ़ी के ठेठ देहाती कवि श्री कोदूराम दलित


 

(28 सितम्बर 54 वें पुण्य तिथि पर विशेष)

छत्तीसगढ़ी के ठेठ देहाती कवि श्री कोदूराम दलित

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अऊ उंकर सियानी गोठ .

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डाँ. बलदेव

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       लइका पढ़ई के सुघ्घर करत हव॑व मैं काम   

       कोदूराम  दलित  हवयत्र मोर गंवइहा नाम 

       मोर गंवइहा नाम भुंलाहू , झन  गा भइय्या 

       जनहित खातिर गढ़े हवॅव मैं ए कुण्डलियां 

       सउक  महू ला घलो हवय कविता गढ़ई के    

       करथँव  काम  दुरूग मा मैं लइका पढ़ई के


 ए कुंडलियां हर दलित जी के व्यक्तित्व अऊ कृतित्व ल समझे के कुंजी आय । ए नानकन मुक्तक म बहुत अकन गूढ़ संकेत हे । भले ही उप्परे उप्पर एहर बड़ सरल रचना दिखत हे । सबले पहिली परिचय - लइका पढ़ई के काम वोहू म एक ठन बिसेषण लगा दिए गय हे सुग्घर अपन काम के अतेक गरब के वोकर फेर दुबारा कथन - करथँव काम दुरूग मा मैं लइका पढ़ई के। काम के बाद नाम- कोदूराम उपनाम दलित । ए ठेठ गॅवइहा नाम के परिचय देत बखत न संकोच के भाव अऊ न हीनता के बोध । अपन पाठक से जुड़े बर कवि के हिरदे म कतका कुलुक - भुलाहू झन गा भइय्या । बिना उद्देश्य के साहित्य लेखन अर्रा आय , कवि लेखन के प्रति बड़ सावचेत हे । उन जन हित खातिर कुण्डलिया गढ़थें । कविताई के अतेक सउक के एकर पीछू खवई , पिवई सुतई सब बिसुर जाथे , एला आसक्ति कहे जाय के अनुरक्ति ? अभिघा सक्ति अउ प्रसाद गुन के ताना - बाना म बुनाय काव्य भाषा । ठेठ छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रयोग के बात चले म दलित जी के संगे - संग उंकर जवरिहा अऊ आगू - पीछू के कवि पं . सुन्दरलाल शर्मा , पं . शुकलाल प्रसाद पांडेय , बिप्र जी , श्यामलाल चतुर्वेदी जइसन दो चार अऊ रचनाकर मन परथम पंक्ति म खड़े हो जाथें , फेर छत्तीसगढ़ी कुंडलिया के बात निकलथे त उंकर मुंहरन म अऊ कोनो देखाऊ नई दयं ।.... मूड़ म उज्जर गांधी टोपी खफाय , खादीच के दग उज्जर धोती कुरता म देंह तोपाय , जवाहिर बंडी अऊ सर्वोदयी चप्पल के अलग रौब .... .दुरिहा ले शास्त्री जी के भोरहा हो जाही । सुरता आवत हे सन् 1966 म भाठापारा म होय छत्तीसगढ़ी हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन के जिहां कवि सम्मेलन के मंच म उनला शास्त्री जी के नाम से ही पुकारे गय रहिस ... कद काठी ल देखके , ठेठ- मसखरी म , के श्रद्धा बस ... लेकिन श्रोतामन के ताली के गड़गड़ाहट के बीच उंकर मंच म जोरदार सुआगत हो रहिस । हिन्दी के सताधिक साहित्यकार मन के बीच दलित जी के बिल्कुल अलग धज हिन्दी छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन बर बड़ गरब के विषय आय ।


     कोदूराम जी दलित ल छत्तीसगढ़िया , उंकर बोली , उंकर रहन सहन खान - पान पहिनावा सब्बेच बर बड़ गरब रहिस । छत्तीसगढ़ी बोली के परसंग म उंकर सियानी गोठ हे " हमर छत्तीसगढ़ी बोली हर ब्रजभाषा साहीच सरल अऊ हाना मनन विसिष्ट अर्थ रखथें । " जे समय कोदूराम जी लिखे के सुरुवात करीन वोकर पहिलीच ले छत्तीसगढ़ी रचना के पेडगरी निकल चुके रहिस ... छत्तीसगढ़ी दानलीला , भूल - भुलैय्या / कामेडी आफ एरर्स के आधार म लिखे गये खंडकाव्य अऊ हीरू के कहिनी जइसन ऐतिहासिक महत्व के किताब मन छप गय रहिन , छत्तीसगढ़ी एक अइसन बोली आय जेकर भाषा के विकास अवस्था म ही बियाकरन लिखा गय रहिस । खड़ी बोली के छत्तीसगढ़ी खंभा मन के बाहिर घलोक म प्रतिष्ठा हो चुके रहिस ... सिक्षा अऊ राजनीति के कमान हमर इहां के धाकड़ नेता अऊ समाज सुधारक मन के हाथ म आ गय रहिस । पूर्ण स्वराज के मांग सुरु हो गय रहिस । गांधी जी भारत के राजनीतिक चेतना के प्रतीक बन चुके रहिन । हिन्दी म स्वच्छन्दवादी काव्य धारा के रोमानी स्वर के एही छत्तीसगढ़ म  छायावाद शीर्षक से नामकरन हो चुके रहिस । ए सबके वैचारिक जीवाणु मन दलित जी के दिलो - दिमाग म कुलबुलात रहिन होहय । सवाल रहिस अपन कसकत दुर्दम अनुभूति अऊ विचार ल उन कउन भाषा म व्यक्त करें । महतारी के गोरस जइसे मीठ , सबल अऊ सुपाच्य छत्तीसगढ़ी बोली के मरम ल उन समझिन अऊ वोहीच बोली म लिखे लगिन , एकर बाद भी राष्ट्रभाषा ल उन कभू अनदेखा नई करीन , उंकर विचार अनुकरणनीय हे ये हर राष्ट्र - भाषा ल अड़बड़ सहयोग दे सकत है । वो समय हिन्दी - भाषा भाषी क्षेत्र म आचार्य महावीर द्विवेदी के अउ मध्यप्रदेश म आचार्य भानु के अनुसासन रहिस । कोनो साहित्यकार मन ये आचार्य मन के अवहेलना नई कर सकत रहिन । हिन्दी म मुक्त- छन्द के अतिसय आग्रह के बाद भी छंद के आग्रह छत्तीसगढ़िया कवि मन म जउन देखाऊ देथे , वोहर पिंगलाचार्य भानु के प्रभाव आय ।


        कोदूराम जी दलित के रचना - विधान ल समझे बर ये प्रसंग म उंकर बिचार घलो ह सहायक हो सकत हे- " ये बोली मां खासकर के छन्द बद्धता के अभाव असन हाबय । इहां कवि मन ला चाही कि उन ये अभाव के पूर्ति करयं । स्थायी छन्द लिखे डहर जासती ध्यान देंवे । " ये बात ल दलित जी खुदे अपन लेखन म चरितार्थ करथें । 


             अपन बोली म लिखे के जोखिम उठाना हर कउनो अंचल विशेष के मुक्ति आंदोलन ले कम महत्व के नोहय , बल्कि वोहर तो ए दिसा म सुरूआत आय । छत्तीसगढ़ी बोली ल भाषा के दर्जा दिलाय म दलित जी के लेखन के अहम् भूमिका आय , राष्ट्रीय ऐतिहासिक संदर्भ म ए हिस्सा ल काट के देखना हर आधा - अधूरा दृष्टि आय ।


                   दलित जी छत्तीसगढ़ी के लोक जीवन अऊ संस्कृति के बड़ भारी पुजेरी ऑय । देखा दू डांड म उन इहां के सब्बोच महिमा के बखान कर डारे हैं-


     छत्तीसगढ़ पैदा करय , अब्बड़ चाऊर दार 

     हवय लोगमन इहां के सिधवा अउर उदार 


               एतकेच नहीं इहां के अनलेख बन संपदा , किसिम किसिम के रतन के खदान घलोक बर उनला बड़ अभिमान हे , लोहा जेहर कोनो भी राष्ट्र के रीढ़ के हड्डी होथे , इहेंच ढलथे इंहेच के लोग रोज आगी संग खेलथे लोहा ढलाई के दुख ला हंस हंस के झेलथें ।


    भेलाई अऊ कोरबा बर कोन छत्तीसगढ़िया ल गरब गुमान नई होही । दलित जी के भिलाई शीर्षक कविता ह राष्ट्रीय एकता के दृष्टि ले एक महत्वपूर्ण रचना आय । दलित जी के हिरदे म जांगर टोरइया कमिया किसान के प्रति बड़ मया - पीरा हे । उंकर श्रम के प्रति उनला बड़ घमंड हे । कमिया के तुलना सूरज से करके उन मेहनत के मान ल बहुत बढ़ा दे हावै -


      दिन भर करय काम कमिया टूटत ले कनिहा   

      सूरूज साही सूतयं रात भर , उठय बिहनिया '


                    पांव ' शीर्षक कविता म अकाट्य तर्क देके दलित जी एही निम्र वर्ग से आय कमिया मन के पूजा करे के सलाह देथें । दलित जी ला इहां के रोटी - पीठा , पहिनावा बर भी बड़ गुमान हैं । उंकर बिचार म छत्तीसगढ़ के बासी म गजब के गुन भराय हे , उंकर सीख धियान देहे लाइक हे-


         कठिया भर पसिया पियो 

        अऊ   सौ   बच्छर  जिओ


       छत्तीसगढ़िया मनखे खुदे बासी खाथे अऊ आन ल तात्तेतात भात खवाथे । उंकर पहुनाई अऊ सिघाई घलोक हर छत्तीसगढ़ के गरीबी के कारन अऊ जी के काल आय । बंचकमन के तिहार लहुटे हे , अत्तेक धन धान , दान - पुन के बाद भी छत्तीसगढ़िया धान के खाली कटोरा धरके भीख मांगे बर खड़े हे । अकाल अऊ सुरसा जइसे महंगाई एकरो ऊपर बंचकमन के चतुराई , हमन ल भिखारी अऊ ओमन ला मतवार बना देथे फूटहा लोटा म सोषक वर्ग के ऊपर तीखा व्यंग हे । फूटहा लोटा ए बंचक मन ले देखते देखत लखपतिया बना देथे अऊ उन हमला हमर जमीन से बेदखल घलोक कर देथें .... सोचथौं कभू दलित जी आज जिन्दा होतिन त ए अरबपति जउन मन अपन उद्योग - धंधा मढ़ाय बर हमर घर - खेत गावं के गांव ल गटागट लीलत हे , तेला देख के कइसन कविता लिखतीन ....। दलित जी हिरदे म भारी पीरा लेके ए धरती ले बिदा होइन होहयं । काबर उंकर एक पंक्ति म चेतावनी ले जादा तो पीरा हर ही झलक मारत हे ।-


     धरती ला हथियाव झन धरती सबके आय

     सिरजे हे भगवान सब्बों खातिर धरती ल


                  एकर बाद भी दलित जी के उदारता के कोई जवाब नहीं , उंकर म कहीं संकीर्ण क्षेत्रीयतावाद के बदबू नइये । दलित जी सही मायने म गांधीवादी विचारधारा के कवि आयं , भूदान आंदोलन से भी उन जुड़े रहिन । सत्य अहिंसा अऊ चरखा उंकर हिसाब म सुराज अऊ स्वावलम्बन के अइसन मियार आय जेमा हमर ए लोकतंत्र हर टिके हे । एकरे बल म गांधी जी ब्रिटिश हुकूमत के मुरवा मडोर के ओला बिदारे म सफल होथें । गांधी जी के बलिदान ले दलित जी अवाक हे , मुस्किल से एतकेच कहि सकथें -


     रहिस जरूरत  तोर  आज चिटिको नहि  अगोरे 

     अमर लोक जाके दुनिया ला दुख सागर मा बोरे


          देश जब सुतंत्र होइस त दलित जी मगन होके एक से बढ़ के एक जागरन गीत लिखिन । आजादी के सुवागत म उन मोटियारी नोनी मन ल ओरी ओरी दिया बारे बर कथे । काबर के एही हर उंकर बर सुरहुत्ती देवारी आय ।


      चारों मुड़ा गांव म , घर म , गली - खोर म उजाला खुसियाली ही खुसियाली , दिसा - द्वार हांसे - कुलके लगथे- नोनी के दाई जुगुर - जुगुर दिया बारत हे , सुत उठके बड़े बिहनिया भउजी तिरंगा झंडा फहरावत हे , गलीखोर बन्दनवार अऊ धजा ले सज गय हैं । भारत माँ के पूजा होवत हे , जन गन मन के फाग चलत हे । अरूणकुमार दूध पी के किलकारी मारत हे । मंजुलाकुमारी हांस - हांस के जय हिन्द करत हे । चारों तरफ मंगल वर्षा होवत हे । इहां अरुण कुमार अऊ मंजुलाकुमारी व्यक्ति के सिवाय भाव के भी बोध करावत हे । लोकतंत्र के तिहार शीर्षक रचना हमर इन्द्रिय मन ला जगाय बर काफी हे- बड़ लोभ - लोभावन दृश्य हे देखा -


     हमर सास हर ठेठरी खुरमी भजिया बरा पकावय        

     लमगोड़वा  भउजी  के भाई चोरा चोरा के खावय


                 वोती नाचा सुरू हो गय हे , घर अंगना म कहूं ल सल नई परत हे , भेद नई खुलही सोच समधिन छिनरिया वोही कोती सुटुर सुटुर रेंगत हे फेर भगवानी भांचा के कारन पोल - पट्टी खुल गइस -


    सुटुर सुटुर सटकिस समधिन हर देखे बर नाचा    

    रोवत ओकर पिछलग्गा भागिस भगवानी भांचा


     छत्तीसगढ़ के कई अंचल म कई जात म भांजा बर कन्यादान के रिवाज हे , एकरे बर समधिन के लइका बर इहां भांचा शब्द के प्रयोग होय हे , फेर सटकिस हर बिलमे के अर्थ - बोध कराथे रेंगे के नहीं । अनुप्रास के चक्कर म दलित जी घलोक चक्कर खा गय हें । सुनो जी मितान म डंडा गीत के धुन के सुन्दर प्रयोग होय हे-


      नारि नारि नाना हरि नाना गोसाई 

      आपस के झगरा होथे दुख - दाई 


     सुधार अऊ नव - निर्माण के गीत हर देसभक्ति के सच्चा परिचायक आय । दलित जी महान स्वप्र - द्रष्टा पं . नेहरू के सपना ल साकार होत देखिन अउ उमंग म वोकर फोटोग्राफी भी कर दीन-


         ये कतको बांध खना  डारिस 

         कतको ठन नहर बना डारिस 

         पड़ती  जमीन  ला  टोर  टोर 

         पानी  मा   करके     सराबोर 

         ये  गजब  अन्न  उपजाव त हे 

         भूखमरी  भगावत  जावत  हे 


         बांध खना डारिस के जगा बांध - बंधा डारिस करे म ए चरन हर निर्दोष हो जातिस । दलित जी भविष्य द्रष्टा कवि आय , उन कभू लिखे रहिन-


          एक दिन मनवा के लोहा ला 

          आजाद   कराही     गोवाला 


                     आगे चल के उंकर भविष्यबानी सच निकलीस । पंचायत के बारे म भी उंकर मन म सुखद कल्पना रहिस । सोंच म पड़ जाथों , पंचायत राज के वर्तमान अवस्था देख के उंकर आत्मा कइसे करत होहय .... पंचवर्षीय , अल्प बचत , परिवार नियोजन , सहकारिता , गोरक्षा , भूदान जइसन कल्याणकारी , योजना अऊ आंदोलन मन सब्द के दुनिया म बड़ नीरस विषय आय , लेकिन निषेध के जगा विधान पक्ष ल लेके दलित जी एक से बढ़ के एक सुग्घर अऊ सरस गीत लिखे हे , जेकर ले उंकर समसामयिक चेतना , समाजिक दायित्व अऊ रचना धर्मिता के प्रमान मिलथे । वस्तुवादी या उपयोगितावादी साहित्य हर प्रचार अऊ प्रसार के सुविधा के बिना भी एतेक लोकप्रिय हो सकत हे , ए बात के सबूत दलित जी के ए रचना मन हवय । उंकर कविता के विषय म तुलसीदास के ये पंक्ति हर चरितार्थ होथे- ' निरस विसद गुनमय फल जासू ' । दलित जी के रचना म जऊन ताप जऊन उष्मा हे वोकर भेद उंकर करनी अऊ कथनी के एका म छुपे हवय । उंकर ए आहवान हर हरेक जुग म नौजबान मन ल प्रेरना देत रही -


    मांगे  स्वदेस  श्रमदान  तोर  संपदा तोर विज्ञान तोर     

    जब तोर पसीना आ जाही ये पुण्यभूमि हरिया जाही 


                      दलित जी प्रगतिसील धारा के वाहक आय वैज्ञानिक प्रगति म उंकर आस्था हवय । उन अणु सूक्ष्म अऊ सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व ल दर्सन ले जोड़थे , जीवन ल सुन्दर बनाम बर विज्ञान के प्रयोग होना चाही । वोकर विनासक या निषेध पक्ष से उन ला सख्त नफरत हवय । दू डॉर एमेर देखे लाईक हे-


       बौराइन बमबाज मन बम ला करयं तैयार     

       बमबाजी कर निठुर मन करथें नर - संहार 


         उंकर प्रार्थना हे बम ला नष्ट करो हे 

         बम      लाई।    ए   बम     संकर । 


       विज्ञान के निषेध पक्ष ले आज समूचा वातावरन दूषित हो गय हे , एकर समन बर पेड़ लगाना ही सर्वोत्तम उपाय आय ।


      भाई अब सब ठउर मा अइसन पेड़ लगाव 

      खाये खातिर फल मिलय , सुरता बर छांव 


             दलित जी ए छांव अऊ फल के रक्षा घलोक बर सचेत हे ... उंकर हिसाब म पेड़ लोड़ी भी देथे जेकर ले दुष्टन मन के सुधार किए जा सकत हे । बेंदरा बिनास करवइया मन बर दलित जी जंग रथें , उनला सुरता भर आना चाहिए दुष्टन के कहां तक कहे जाय - बिहाव म कन्या के चुनाव तक उनला दुष्टन के बराबर ख्याल रहथे । सभ्य समाज म जिये बर , गुंडा मन ला ठीक करना भी जरूरी हे दलित जी के मांग हे -


       खटला  खोजो  मोर  बर ददा बबा  सब झन

       खेखरी   सही   नहीं   बधनीन   सही    लाव

       जे गुण्डा के मुंह  मा  चप्पल  मारय   फट ला

       खोजा ददां - बबा तू मजा के अइसन खटला


                         छत्तीसगढ़ मूलतः कृषि प्रधान राज आय दलित जी वोकरे बर गाय ल लक्ष्मी मान के उंकर सेवा के सिक्षा देथे , वोकर से पिये बर दूध , खातू बर गोबर , नांगर - गाड़ी खीचे बर बइला मिलथे । गोबर जइसे तुच्छ जिनिस बर उंकर विज्ञानिक दृष्टि हवय । छेना थापे के जगा उन खातू बनाय ल जादा लाभकारी बताथों राख जइसे चीज उन उपयोग ल समझथें । एकर से उंकर गांधीवादी वृत्ति के पता लगथे । गांधी जी छोटे - छोटे बात पर भी ध्यान देवय । कोदूराम दलित जी मूलतः कृषि - संस्कृति अऊ प्रकृति के कल्यान रूप के सफल चितेरा आय । चद्रमास सीर्षक उंकर लम्बा रचना के एकठन छंद देखा -


       धाम  दिन   गइस , आइस  बरखा  के दिन

       सनन     सनन    चलै    पवन      लहरिया 

       छाये रथे अकास  म चारों खूट धुआं साही 

       बरसा   के   बाद   निच्चट    मिम्म  करिया 

       चमकय   बिजली    गरजे   घन  घेरी  बेरी 

       बरसे   मूसलाधार      पानी   छर    छरिया 

       भरगे खाई - खोंधरा कुंआ डोली डांगर ओ      

       टिपटिप        ले     भरगे     नदी  -  नरवा 


      युग्म सब्द के मोह म एमेर दलित जी खोंधरा अऊ डांगर घलोक म पानी भरो दे हावै अइसन प्रयोग से बचना चाहिए । चउमास दलित जी के प्रतिनिधि रचना आय एमा मत्तगयंद अऊ किरीट सवैया के प्रयोग होय हे । मरत हाथी के चाल अऊ परबत श्रेणी मन के ऊपर जइसे छाये बादर के सादृस्य विधान एमेर अनूठा हवय । एक जगह दलित जी संस्कृति के इतिवृत्तात्मक सैली म किसिम किसम के रुखराई , चार चिरौंजी , जरी - बूटी , जीव - जन्तु के बिस्तार ले गिन्ती कर डारे हे , एकर से कविता बड़ कमजोर अऊ नीरस हो गय हे , अइसन वर्णन पं . लोचन प्रसाद पांडेय के रचना म भी देखे बर मिलथे , एत्तेक सचेत कवि मन के अइसन कोरा वर्णन के पीछे का कारन हो सकत हे । संभवत : छत्तीसगढ़ के बन - बैभव संपदा अऊ खांटी शब्द मन के सरक्षण के चिंता एकर एक कारन हो सकत हे ।


                  कोदूराम दलित जी के गीत , ' हमर गांव पढ़के ' प्यारे लाल गुप्त के लिखे हमर कतका सुग्घर गांव , जइसे लक्ष्मी जी के पांव के सुरता आ जाना सुभाविक आय । मूल संवेदना एक होय के बाद भी दूनों रचना म सूक्ष्मता अऊ स्थूलता , संक्षिप्तता अऊ विस्तार के अंतर हवय । गुप्तजी के रचना म चिकनाई अपेक्षा कृत जादा हे धान कटाई , जोताई , जइसन मेहनत के काम म भी सुधराई खोज लेना दलित जी बर सहज आय । चन्देनी गीत म ए गीत के सैकड़ों बार मंचन हो चुके हे अऊर एकर , प्रसिद्धि गांव - गंवई तक पहुंच गय हे । ध्वनि , प्रकास अऊ रूप रंग के मन - भावन दृश्य वाला ए रचना म अर्थ व्यक्ति या डायरेक्टनेश के वर्णन चातुरी अद्भूत हे । 16 + 12 = 28 मात्रा के हरिगीतिका अऊ सार के छंद - विधान देखे लाइक हे-


   छन्नर  छन्नर  चूरी  बाजय  खन्नर  खन्नर   पइरी

   हांसत कुलकत  मटकत रेंगय  बेलबेलहीन टूरी

   काट काट  के धान  मढ़ावय ओरी  ओरी करपा 

   देखत मा बड़ नीक लागय सुंदर चरपा के चरपा     

   लकर - धकर बपुरी लइकोरी समधिन के घर जावय  

   चुकुर  चुकुर  नान्हें बाबू ला दूदू पिया के आवय 

   दिदी  लुवय  धान खबा  खब भाठों बांधय भारा 

  अऊ हाँ - झऊँहा बोहि बोहि के लेजय भउजी ब्यारा


         काम म हाथ बंटाय बर दीदी - भांठो लइकोरही समधिन घलोक आ गय हे । पूरा कुटुम काम - धाम म भिड़े हे । भरदराय काम म समूह के ताकत , सिंगार बीर अऊ वात्सल्य के तिरबेनी , द्विरूक्ति , अऊ सब्दमैत्री के सरल प्रवाह , बिल्कुल धमनी के हाट जइसन सब्द चयन । साफ - सुथरा अऊ मनमोहक ए रचना म अनुप्रास के लरी मन संगीत पैदा कर देथे । संस्कृत भाषा के भातृ सब्द हर कै सौ बरिस के जात्रा करिस होहय छत्तीसगढ़ी म तो परूष - ध्वनि के बाद भी कहत - सुनत म बड़ नीक लागथे ' भांटों ' जे कोण ले देखा ए हीरा के कटाव ह प्रकास के परावर्तन / अर्थ - बोध / के साथ चमक चमक उठथे । " भांटो " 


               आज के जटिल अनुभव , उग्रविचार जीवन के कटुता विसंगति अऊ दिसाहीनता के कारन कविता के परंपरागत ढांचा मन चरमरा के कुटकुट्टा हो गय हे अऊ पद्य के जगा गद्य हर ले ले हावै । तम्भो ले दलित जी के एन रचना मन हमला आस्वत करथे के आजो भी छंद के महत्ता हावै । एकर से रचना म स्थिरता , अऊ सम्प्रेषणीयता के गुन आपे आप आ जाथे । दलित जी अपन दीर्घ काव्ययात्रा मरोला , दोहा , उल्लाला , हरिगीतिका , चौपई पद्धति , मांत्रिक छंद , म जइसन सिद्धि मिले हे , वोहर आने जगा दुर्लभ आय । दलित जी के कुंडलिया मन नीति अऊ सिक्षा हवय , लेकिन हास्य व्यंग्य के पाग से बड़ चटकारे दार बन गय हे । दलित जी के कुंडलिया मन जीवन अऊ जगत , व्यक्ति अऊ समाज , दर्सन विज्ञान अऊ राजनीति सत्तालोलुपता अऊ मेहनत याने समग्र जन जीवन के दर्पन आय । दलित जी के हास्य - व्यंग्य मन काफी पैना हे , जेकर ऊपर चोट पड़थे वो तिलमिलाय के बाद भी खलखला के हांस डारथे , यही हर हास्य - व्यंग्य के आदर्स आय मापदण्ड आय ।


             हरही के संग कपिला के बिनास बहुत पुराना मुहावरा आय , लेकिन दलित जी के कलम म निथर के ओही धारदार हो गय हे । कुसंगति के परिनाम सुनो-


   बिगड़े कपिला गाय , खाय के सब के चीज बसला    

   जउने  पाय  ठठाय  अऊर   टोरय  नस   नस    ला 


           स्वार्थी अऊ अवसरवादी के पटन्तर एक ठन कुंडलिया म दलित जी टेटका से दे हावे देखा कतका सही दृष्टांत हावै -


      मूड़ी   हलावय  टेटका  अपन  टेटकी   संग 

      जइसन देखय समय ला तइसन बदलय रंग    

      तइसन  बदलय रंग बचाय  अपन  वो चोला

      लिलय गटागट जतका किरवा पाय सबो ला 

      भरय  पेट  जब पान - पतेरा मां छिप जावय

      ककरो  जावय  जीव  टेटका  मूड़ी  हलावय 


           राजनीति के क्षेत्र म दंवधतिया अऊ पन पेटया म जादा तपथें । सत्ताधारी के पांव चाट के उन समाज बर बड़ घातक बन जाथे , उन अपन औकात भुलाके सबे के मूड म चढ़े खोझ थे । अइसन मन - बढ़ा मन के तुलना दलित जी पतंग से करथे अऊ कड़क - बोली म चेतावनी देथे -


    गिर  जाबे  तें  धागा  कटही  तउने   पल     मा

    बचा नहीं सकिही उन उड़थस जिनकर बल मा


        अखबार लोकतंत्र के चउथा खंभा आय , लेकिन पीत - पत्रकारिता के बढ़त ल देख के उन कउवा जाथे । स्वास्थ बस पेपर ला झन पिस्तौल बनाओ , जइसन कथन हर समझइया मन बर भारी फटकार आय । पं . शुकलाल प्रसाद पांडेय जइसन दलित जी अपन पेसा ( मास्टरी ) के प्रति ईमानदार रहीन वो मन बच्चा मन के बड़ हितैषी आयं । एकरे बर भारी मात्रा म सरल पदावली म बाल - साहित्य के रचना करे हबय । माता - पिता गुरु पोथी के सेवा , सपूत अउ कपूत , कायर बीर , सिंह अऊर सियार जइसन परस्पर विरोधी गुण के पात्र ल आमने सामने रख के लइकन मन के चरित्र - निर्माण के दिसा म एक कवि मन बड़ योगदान करे हैं । कविता म कॉन्ट्रास्ट या विरोधाभास पैदा करना कवि के निजी विसेषता आय । खटारा साइकिल ऊपर ले हास्य पैदा करथे लेकिन भीतर - भीतरे अध्यात्म के दुनिया घलोक म ले जाथे । गृहस्थ जीवन के मन ल छू लेने वाला चित्र , निरमोही धनी के दर्सन , बिरहीन के बिनती दलित जी के भावुक हृदय के प्रतिबिम्ब आय । एमेर उंकर हृदय के विदग्धता के दरसन होथे ।


    कोदूराम जी दलित के कविता - संसार बड़ व्यापक हे , वोकर कई ठन विसेषता हवय । पहिली तो विषय के विविधता , दूसर चटकदार मुहावरा मनके प्रयोग तीसर हास्य - व्यंग्य के तेजधार चौथा छंद मन के कसाव , खासकर कुंडलिया के नाग - मोरी कसाय , आखर थोरे अरथ अति वाला ठेठ छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रयोग जेकर से उंकर कविता म बड़ कड़कपन आ गय हे । एकठन अऊ अउ अंतिम विसेषता के उंकर रचना म कोनो काल या स्थान विसेष के व्यामोह नइये , एकर बर हर समय उंकर प्रासंगिकता बने रहही ।


                     वोइसे तो समय के तेज बहाय म कोन कहां किनारे लग जाही , कोनो ला पता नइये । त फेर कोनो रचनाकार के कोनो रचना बर कोन्हो  किसिम के भविष्य बानी करना अर्रा आय । सार बात तो एतकेच आय के कोन रचनाकार हर अपन समय अऊ समाज के संग कतका दूरिहा तक चल सकिस , कतका मनला प्रभावित कर सकिस अऊ कतका उंकर से प्रभावित होइस । आज के जमाना मा राजनीति के आघू साहित्य के का बिसात वोकर आघू एहर दीन - हीन अऊ निरतेज हो गय हे । आज के दिसाहीन धुरीहीन समाज म जब बड़े - बड़े साहित्य मनीषी के अस्तित्व खतरा म पड़ गय हे त हम साधारन छत्तीसगढ़ी रचनाकार मन के का बिसात ? आज तो पूंजीपति अऊ सत्ताधारी मन के दलाल तथा कथित जनरलिस्ट मन के ही पूछ पुछारी हे , तभ्भो ले हमरो बीच कुछ अइसन ईमानदार , सुआभिमानी साहित्यकार मन यस : काय शरीर म जिंदा रथे जेमन बताथे के स्वस्थ समाज अऊ बेहतर दुनिया के निर्मान म आजो भी उंकर दरकार हे , अइसन साहित्यकार मन म एक नाम कोदूराम दलित जी के भी हवय । 


(लोकाक्षर जून -2000/ छत्तीसगढ़ सेवक 2000 के 2 अंकों में)साभार


प्रस्तुति:बसन्त राघव, रायगढ़, छत्तीसगढ़

मो.नं.8319939396

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