Thursday 16 September 2021

विषय--हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी* -------------------------



*विषय--हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी*

-------------------------

देवभाषा संस्कृत के दुलौरिन बेटी हिन्दी के सहोदरा हमर गुरतुर भाखा छत्तीसगढ़ी हा आय । ये हा अवधी भाषा के सगे बहिनी तको कहाथे। जइसे के कोनो बहिनी-बहिनी के  चेहरा-मोहरा अउ आदत-सुभाव मा कुछ समानता दिखथे ओइसने छत्तीसगढ़ी भाखा मा हिंदी के अमिट प्रभाव नजर आथे। दूनों के लिपि हा देवनागरी लिपि हर आय। थोड़-बहुत क्षेत्रीय लक्षण ला छोड़ देवन ता,दूनों के वर्णमाला एक समान हे।

      मौखिक भाखा के रूप मा छत्तीसगढ़ी कब ले हे ,तेकर सिरिफ अनुमान लगाये जा सकथे फेर एखर लिखित रूप लगभग 1100 साल पहिली हैहयवंशी राजा मन ले माने जाथे। वर्तमान मा छत्तीसगढ़ी के पुरातन लिखित स्वरूप 1703 ईस्वी मा मैथिल पंडित भगवान मिश्र के लिखे  दंतेवाड़ा(बस्तर) के दंतेश्वरी मंदिर के शिलालेख मा देखे ला मिलथे।

  बहुत झन विद्वान मन के कहना हे के छत्तीसगढ़ी मा  श,ष,क्ष, त्र, ज्ञ, अउ ऋ  वर्ण नइ बउरे जा। वोखर बदला स,छ,तर(तिर),ग्य(गिय) अउ रि के प्रयोग होथे। फेर अब तो शिक्षा के प्रभाव के सँगे-संग छत्तीसगढ़ी ला 28 नवम्बर 2007 ले छत्तीसगढ़ राज्य के राजभाषा घोषित करे के बाद हिंदी जइसे जम्मों 52 वर्ण के प्रयोग करे जावत हे।ये हा बने बात ये काबर के हिंदी अउ आन भाषा मन के कुछ शब्द अइसे हें जे मन ला छत्तीसगढ़ी मा जस के तस लिखे जाथे।ये मन ला पुरातन ठेठ छत्तीसगढ़ी मा बोले या लिखे मा विकृति आये के अंदेशा होथे।एक बात अउ हे के छत्तीसगढ़ी भाषा के मानकीकरण करे बर कोनो न कोनो एक रूप ला अपनाये ला परही।

          हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी मा प्रगाढ़ सबंध हे। हिंदी के कहावत, मुहावरा अउ भाव-संस्कार के नजदीकी रूप छत्तीसगढ़ी मा देखे-सुने मा आथे।सच कहे जाय ता छत्तीसगढ़ी भाषा मा हिंदी के ताकत हे।

        छत्तीसगढ़ी हा भाषा शास्त्र के दृष्टि ले पूर्वी हिंदी(अर्धमागधी) के बोली(उपभाषा) आय जेन हा आर्यभाषा समूह मा आथे। जइसे हिंदी हा भारत देश के सम्पर्क भाषा आय ओइसने छत्तीसगढ़ी हा हमर प्रदेश के सम्पर्क भाषा आय।अंग्रेज शासनकाल के वृहद छत्तीसगढ़ी क्षेत्र के रूप मा देखन ता ये हा अपन सीमा ले लगे महाराष्ट्र, उड़ीसा, मध्यप्रदेश अउ उत्तरप्रदेश मा तको बोले जाथे।एखर उलट देखन ता हमर राज्य के सीमावर्ती इलाका मन मा मराठी,उड़िया, बुंदेलखंडी अउ अवधी के मिले-जुले रूप द्रविड़ भाषा समूह के हल्बी, गदबा, कोरकु,तुरी, भतरी, उरांव, दड़मी आदि प्रचलित हे।

        हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा मा जेन प्रमुख भिन्नता हे वो व्याकरण मा हावय।छत्तीसगढ़ी के खुद के व्याकरण हे जेन हिंदी उपर आधारित नइये।छत्तीसगढ़ी मा लिंग परिवर्तन ले क्रिया रूप मा कोनो परिवर्तन नइ होवय जबकि हिंदी मा हो जथे। कई झन इतिहास कार अउ भाषाशास्त्री मन के कहना हे के छत्तीसगढ़ी के व्याकरण हा ,हिंदी के व्याकरण ले पहिली बनगे रहिस जेला काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहु जी हा लिखे रहिन।सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक, सर्वेक्षक ग्रियर्सन हा छत्तीसगढ़ मा भाषा सर्वेक्षण के बेरा एखर सहारा ले रहिन।

         हिंदी भाषा मा छत्तीसगढ़ी के लेखक-कवि मन चिरस्मरणीय सृजन करे हें। मान्यता हे के हिंदी के पहिली कहानी "एक टोकरी भर मिट्टी' ला इहाँ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, साहित्यकार पंडित माधव राव सप्रे जी हा लिखे हें। उही मन अपन साथी पंडित रामराव चिंचोलकर जी अउ श्री बलिराम लाखे जी संग सन् 1900 मा पेंड्रा ले हिंदी मासिक पत्रिका "छत्तीसगढ़ मित्र " के नेंव धरे रहिन। इहाँ के रहइयाँ छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी के मूर्धन्य सृजनकार सर्व श्री डा० पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, गजानन माधव 'मुक्तिबोध' ,छायावाद के प्रवर्तक पंडित मुकुटधर पाण्डेय,पंडित लोचन प्रसाद पाण्डेय,ठाकुर प्यारे लाल सिंह, डा० खूबचंद बघेल,लाला जगदलपुरी, नारायण लाल परमार,पंडित सुंदरलाल शर्मा,  केयुर भूषण हरि ठाकुर, पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी, लतीफ घोंघी, श्री कांत वर्मा,  पंडित रामदयाल तिवारी,  जया जादवानी, गुलशेर खाँ, डा० नरेंद्रदेव वर्मा ,संत पवन दीवान, जनकवि कोदूराम 'दलित' आदि मन साहित्य के कोठी ला भरे मा बहुमूल्य योगदान दे हावयँ।

         हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के वर्तमान दशा अउ दिशा उपर विचार करना जरूरी हे। भले हिंदी के विपुल साहित्य भंडार हे, संसार मा सबले जादा बोले जाने वाला दूसरा नंबर के भाषा आय फेर अपने देश मा उपेक्षित होवत जावत हे। देश ला आजाद होये 74 साल होगे फेर राष्ट्र भाषा के दर्जा नइ मिलिस। ये हा रोजगार परक नइ होइस। अंग्रेजी के मोह जाल मा फँसके सब भटक गेन। एकर ले उबरे के जरूरत हे।ओइसने छत्तीसगढ़ी राजभाषा तो बनगे फेर राजकाज के भाषा नइ बन पाये हे।प्राथमिक शिक्षा तको एमा नइ होवत ये तब एखर बढ़वार कइसे होही? छत्तीसगढ़ी भाषा मा साहित्य तो अब्बड़ रचे जावत हे फेर पाकठ नइये। छत्तीसगढ़ी पुस्तक मन ला जन-जन तक पहुँचाये के जरूरत हे।

      हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के कोनो भाषा संग विरोध नइये।लोगन हजारों भाषा जानयँ, लिखयँ-पढ़यँ फेर पुरखा साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद जी के कहना ला सुरता करके ,आत्मसात करके अपन मातृभाषा ला व्यवहार मा लावयँ। भारतेंदु जी कहे हें---


*निज भाषा उन्नति अहै*,

*सब उन्नति के मूल।*

*बिन निज भाषा ज्ञान के,*

*मिटत न हिय को सूल।*


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment