Tuesday 21 September 2021

छत्तीसगढ़ी ला पोठ करे बर समाचार पत्र के भूमिका का होना चाही*

 *विषय - छत्तीसगढ़ी ला पोठ करे बर समाचार पत्र के भूमिका का होना चाही*



          *मुँह ले हम कोनो बोली भाँखा ल कतको कहि सुन डरन, फेर जब तक वोला कलम शब्द नइ देय, तब  तक वो बोली- भाँखा साहित्य के रूप नइ ले सके।* छत्तीसगढ़ी भाँखा के बारे म अपन विचार रखे के पहली कहूँ कि-जब हिंदी साहित्य के आधुनिक काल चालू होइस, अउ  अपन जुबान म बसे भाषा ल कलमकार मन पोथी म उतारिन ताहन का कहना , हिंदी के बढ़वार सतत होते गिस, अउ आज देखते हन हिंदी खूब फलत फूलत हे। हिंदी खड़ी बोली जब कागज म उतरिस त, वोला पढ़े बर कतको झन मन हिंदी सीखिन। उदाहरण बर सुरता आवत हे, देवकीनंदन खत्री के उपन्यास *चन्द्रकान्ता(1888),*  ये अतिक प्रसिद्ध अउ नामी होइस कि जउन मन हिंदी नइ जानत रिहिस तहू मन, वोला पढ़े बर हिंदी भाषा ल सीखे के उदिम करिन। भारतेंदु, राजा लक्ष्मण सिंह, जगन्नाथदास रत्नाकर,श्रीधर पाठक, राधाचरण गोस्वामी,बद्री नारायण चौधरी प्रेमधन, बालकृष्ण भट्ट, बालमुकुंदगुप्त,प्रतापनारायण, ठाकुर जगमोहन सिंह, राधाकृष्ण दास,लाला भगवान दींन, प्रेमचंद-------जइसन कतको अउ मूर्धन्य साहित्यकार मन  हिंदी भाषा म खड़ी बोली ल स्थापित करे बर जी जान लगाके भाषा के सेवा करिन। ये सब साहित्यकार मन साहित्य के संगे संग हिंदी भाषा ल  सब तीरन पहुचाये खातिर पत्र पत्रिका घलो निकालिन, जेखर ले भाषा के बढ़वार दुगुना होय लगिस।  छत्तीसगढ़ी भाषा म घलो साहित्य के संगे संग पत्र पत्रिका बरोबर देखे बर मिलथे, हमर पुरखा साहित्यकार-भाषाविद  मन साहित्य रचे के संगे संग छत्तीसगढ़ी भाषा ल सब तीर सहज पहुँचाये बर पत्र पत्रिका के सहारा लिन, जेमा खबर, कहिनी, लेख, कविता अउ ज्ञान विज्ञान के बात समाहित रहय। अंचल के समाचार अउ कवि लेखक मनके विचार लेख, कविता ल जन जन तक पहुँचाये बर कतको हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के अखबार निकलिस, जेखर ले हमर छत्तीसगढ़ी भाँखा के विकास होइस अउ आजो घलो पत्र पत्रिका, साहित्य, रेडियो, टीवी, सम्मेलन आदि के माध्यम ले सतत होवत हे। 

              छत्तीसगढ़ म पत्र पत्रिका के जनक के रूप म माधवराव सप्रे जी ल जाने जाथे, जे वामनराव लाखे अउ रामराव चिंचोलकर के सहयोग ले सन 1900 म, गौरेला पेंड्रा ले *छत्तीसगढ़ मित्र* नामक मासिक पत्रिका निकालिन। 1955 म मुक्तिबोध जी के सम्पादन म रायपुर ले *छत्तीसगढ़ी* नामक मासिक पत्रिका निकलिस। रायपुर ले ही श्री सुशील वर्मा जी के सम्पादन म *मयारू माटी* अउ श्री रंजन लाल पाठक के सम्पादन म *छत्तीसगढ़ सहयोग* नामक पत्रिका जन जन तक पहुँचिस।  डाँ विनय कुमार पाठक जी के सम्पादन म बिलासपुर ले *भोजली, धान के कटोरा, चिंगारी के फूल* अउ सन 1998 म श्री नन्दकिशोर तिवारी जी के सम्पादन म *लोकाक्षर* जइसे लोकप्रिय समाचार पत्रिका हिंदी के संगे संग छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर समर्पित रिहिस।  सुधा वर्मा जी के सम्पादन म *मड़ई*,  शकुंतला तरार जी के सम्पादन म *नारी सम्बल*, दुर्गाप्रसाद पारकर जी के संपादन म  *लोकमंजरी*, जयंत साहू जी के सम्पादन म  *अंजोर,* विश्वनाथ वैशम्पायन जी के सम्पादन म  *विचार समाचार*, तुकाराम कंसारी जी के सम्पादन म  *राजिम टाइम्स* जइसे अनेक मासिक, त्रैमासिक अउ साप्ताहिक समाचार पत्र पत्रिका लोकप्रिय होइस। श्याम वर्मा जी के संयोजन म  *मोर भुइयां* जइसे रेडियों पत्रिका घलो छत्तीसगढ़ी भाषा ल पोठ करे बर सतत लगे हे। साहित्यिक पत्रिका साहित्य बर समर्पित होथे, तभो आज सोसल मीडिया अउ रंग रंग के आधुनिक चीज आय ले माँग कमती होय हे।

                 समाचार पत्र मन म घलो छत्तीसगढ़ी भाषा म एक साप्ताहिक कालम आथे। दैनिक भास्कर म सूर्यकांत चतुर्वेदी जी के सम्पादन म *संगवारी*, पत्रिका म गुलाल वर्मा जी के सम्पादन म  *पहट*, हरिभूमि म डाँ हिमांशू द्विवेदी जी अउ डाँ दीनदयाल साहू जी के सम्पादन म *चौपाल*, नवभारत म डाँ पालेश्वर शर्मा जी के सम्पादन म *गुड़ी के गोठ*, अमृतसन्देश म तुकाराम कंसारी जी के सम्पादन म  *अपन डेरा*, देशबन्धु म परमानंद वर्मा जी के सम्पादन म  *डहर चलती बेरा बेरा के बात*,  *चैनल इंडिया*  म डाँ स्वराज करुण जी के सम्पादन म साहित्य विशेष अंक पढ़े सीखे बर मिलथे। एखर आलावा *आरुग चौरा, लोकसदन, कान्यकुब्ज, महाकौशल, लोक वाणी, बस्तरिया* जइसे अउ कतको नवा जुन्ना आंचलिक पत्र पत्रिका निकलिस अउ कुछ निकलते हे, जे छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर प्रत्यक्ष अउ अपत्यक्ष रूप ले समर्पित हे। साहित्य के  धार जन जन तक इही सब पत्र पत्रिका के माध्यम ले पहुँचथे, जेखर ले भाषा बोली के संगे सँग मनखे अउ देश राज के घलो विकास होथे। 

            हमर महतारी भाँखा छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर हमर पुरखा मन खूब महिनत करिन, अब हमर बारी हे। आज  के समय म नवा नवा  साहित्य तो छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर जरूरी हे ही, संगे संग पत्र पत्रिका के घलो अहम भूमिका हे। समाचार पत्र मन म ज्यादातर देखे बर मिलथे कि साहित्य विशेष पृष्ठ भर छत्तीसगढ़ी भाषा म होथे, बाकि पेज नही। संगे संग आज के समय अनुसार मानक छत्तीसगढ़ी रूप के घलो अभाव दिखथे। विकृत अउ अपभ्रंश शब्द के मोह अभो नजर आथे। छत्तीसगढ़ी भाषा सिरिफ  गीत कविता परोसे ले समृद्ध नइ होय, चिंतन, मनन,खेल कूद अउ ज्ञान विज्ञान के समायोजन घलो जरूरी हे। साहित्य म सबे विधा के संगे संग साहित्य के स्तर ऊपर सम्पादक मंडल अउ साहित्यकार दुनो ल धियान देना पड़ही। आज ई पत्रिका के समय हे, जेला सालों साल सहजे जा सकत हे, जे सोसल मीडिया म लगातार छाये रहिथे, अइसन म छत्तीसगढ़ी म समाचार ल बढ़ाये अउ सिरजाय के जरूरत हे। *वइसे तो हिंदी ल हर छत्तीसगढिया पढ़ के समझ जाथन, तभो जब अपन महतारी भाषा के बात आथे त, निरवा छत्तीसगढ़ी म  समाचार के आवश्यकता मससूस होथे।* यदि छत्तीसगढ़ी म समाचार सिरजाये जाही त छत्तीसगढ़ी भाषा के जानकार मनके माँग बढ़ही, अउ जब मनखे के माँग बढ़ही त, भाषा के घलो बढ़वार होही। *समर्पण कहिके कतको चिल्ला डरन, एक-दू-तीन- चार समर्पित आदमी जरूर मिल जही, जे छत्तीसगढ़ी बर निःस्वार्थ लगे हे, फेर जब तक छत्तीसगढ़ी रोजगार म नइ जुड़ही लोगन के रुझान बढ़ नइ सके।*  *अंग्रेजी म अवसर हे, रोजगार हे ,तेखर सेती ओखर बोलइयाँ, जनइयाँ बढ़ते जावत हे।* अपन राज म छत्तीसगढ़ी के महत्ता ल बढ़ाके महतारी भाषा के मान अउ माँग बढ़ाये जा सकत हे। आज के युग म संचार क्रांति अउ ज्ञान विज्ञान के बढ़वार के सेती, मनखें मन बहुभाषी होवत हे, अइसन म छत्तीसगढ़ के रोजगार, पत्र पत्रिका, पढ़ई लिखई छत्तीसगढ़ी म होय। *अपन राज म छत्तीसगढ़ी, भारत भ्रमण बर हिंदी अउ विश्व के बात करन त अंग्रेजी ये त्रिफार्मूला म चिंतन करना पड़ही।*

                  ज्यादातर देखे बर मिलथे, पत्र पत्रिका म कोनो साहित्यकार के लेख, कविता छ्पथे त वो पेज ओखरे बर महत्व के होथे, बाकी मन पढ़े घलो नही, यहू चिंतनीय हे। साहित्य म सा-हित के क्षमता होय, सबके मन ल लुभाय, सबके ज्ञान बढ़ाये, ये दिशा म चितंन अउ काम करना पड़ही। छत्तीसगढ़ी म छपत समाचार पत्र पत्रिका मन ल सरकारो ल बढ़ावा देना चाहिये। जइसे हिंदी अन्ग्रेजी म शब्द शुद्धता अउ एकरूपता दिखथे, वइसने छत्तीसगढ़ी म घलो जरूरी हे। मानकता भाषा के विकास बर आवश्यक हे। पत्र पत्रिका मनके लोकप्रियता बने रहय ये दिशा म प्रयास जरूरी हे। कतको पत्रिका पूरा के पूरा छत्तीसगढ़ी भाषा म घलो निकलथे, फेर आज ओखर माँग नइ हो पावत हे, सम्पादक मंडल खर्चा ल वहन नइ कर पावत हे। अइसन म समर्पण के दिन तक रही? आखिर म एके रद्दा बचथे-कलेचुप बैठ जाना। माँग के हिसाब ले उपज काम आथे, माँगे नइ रही त उपज ल का करबों, अउ कहूँ छत्तीसगढ़ म  ही छत्तीसगढ़ी के माँग नइ रही त, भला अउ कहाँ रही। छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर वइसे तो मनखें संग पत्र पत्रिका ल घलो निःस्वार्थ काम करना चाही, फेर आज के समय म बिना कुछ अर्जन के सम्भव नइ हे। नाना प्रकार के संचार क्रांति के चलते प्रतियोगिता  के दौर आगे हे, अइसन म कोन पत्र पत्रिका रही कोन नइ रही, यहू कह पाना मुश्किल हे। कतको इही सब के कारण बन्द होगे, कतको ले देके छपत घलो हे। एक जमाना रिहिस जब पत्र पत्रिका पढ़े बर दुकान या ठेला म अपन बारी जोहे बर पड़त रिहिस, इही क्रांति पैदा करत रिहिस, फेर आज नवा जमाना म, पत्र पत्रिका खुदे अधर म हे। तभो स्थापित अउ जम्मो पत्र पत्रिका ल छत्तीसगढ़ी भाषा के बढ़वार बर छपे साहित्य अउ कोनो ज्ञान विज्ञान के बात के स्तर, शुद्धता अउ मॉनकता ऊपर धियान देना चाही। *साहित्यकार ले बढ़के सम्पादक होथे।* साहित्यकार लिख दिस अउ सम्पादक जस के तस छाप दिस यहू सबे लेख, कविता म नइ होना चाही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

No comments:

Post a Comment